शीहीन होती हमारी दुननया...शीहीन होती...

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  • शीहीन होती हमारी दुननया

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    करण संह चौहान

    `ंुषमा ंंसकृनत ंंससान ' का रकाशन

  • ंुषमा ंंसकृनत ंंससान

    रसम सहदी ंंसकरर २०१४

    A 'Sushma House of Culture' publication

    Karan Singh Chauhan

    First edition 2014

  • यह पुसतक उन ंबको ंमरपत

    निनकक

    समॄनतयां इंमं ंंिोयी गई हह

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    पूरणकसन

    इं पुसतक मं उन लोगं का समरर है िो अब हमारे बीच नहं हह । और

    कयंकक इनका लेखक ंानहतय और ंंसकॄनत के केर के लोगं के ही ंंंगण मं

    अनिक रहा है इंनलए इन ंंसमररं मं अनिकांश मं उनहं कक समॄनत है । इं

    ंंकलन मं ंब समॄनतयं को देना ंंभर नहं सा इंनलए यहां ंानहतय ंे िुङे

    लोगं पर ही अनिक है ।

    इन ंंसमररं मं ंे कुछ ऐंे हह िो उन लोगं के िीनरत रहते ही नलखे

    गए से और पनरकां मं छपे भी से । आचायण शुकल का ंाकातकार ूप मं छपा

    ंंसमरर कालपननक है और यनिगत समॄनत ंे नहं रकानशत ंामगी ंे री–

    कंसरकट ककया गया है , इंनलए सोड़ा अलग है ।

    इंमं अनिकांश के नाम तो उन लोगं के िाने ुए ही हह िो ंानहतय मं

    गनत रखते हह । कुछ ऐंे भी हह निनहंने नलखा तो नहं कक उंंे बाद मं आने

    राले लोग पढ़कर िानं , लेककन रे ंानहतय और ंानहतयकारं के ककतने अपने से

    यह उं िमाने के लोग िानते से और िो बचे हह रे िानते हह ।

    लेखक का िोर यह रहा है कक इन ंंसमररं मं उन लोगं को कम नलया

    िाय निनके बारे मं पहले ंे ही बुत िानकारी है । हालांकक यह पूरी तरह तो

    ंंभर नहं सा । किर भी ऐंे बुत ंे लोगं के ंंसमररं को शानमल करने को

    रासनमकता दी गई निनहं इिर के लोग उतना नहं िानते ।

    इन समॄनतयं को पढ़कर कुछ हद तक उं िमाने का अंदाि तो होगा ही

    । आिादी के बाद उंका खुमार और किर मोहभंग और उंंे उपिी हताशा ,

    अरािकता , असणहीनता , आकोश , बोहेनमयनपन िब होकर हो चुके तो देश के

    रािनीनतक , ंामानिक और ंांसकॄनतक िीरन मं किर ंे ंंगठित और ंामूनहक

    हो कुछ ंासणक और ंकमणक हसतकेप करने कक तमनाएं ंककय ुं । और िैंा

    पहले भी ुआ सा , ऐंी आकांकाएं राय : रामपंसी बाने मं ही अनिक रकट होती

    पपषठ / 5

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    हह । इंनलए इं बार भी रे ऐंे ही रकटं । इं रामपंस के अब कई ूप से

    निनमं तीन तो आकिनशयल ही से । बाकक और भी रहे ंतत और ननरंकुश

    नरदोही । इंनलए अभी हाल मं रह िमाना गुिरा है निंने ंानहतय को एक

    नया सरर , नया िोश , नई रसतु और नई कहन दी सी । उं िमाने कक अनिकतर

    बहंं भी उंी के इदणनगदण सं । उं िमाने के जयादातर लोग आि भी ंककय हह ।

    इन समॄनतयं मं उं माहौल कक कुछ झलक नमलेगी ।

    निनके बारे मं यहां नलखा गया है रे ंब अब हमारे बीच नहं हह ।

    उनकक समॄनतयां हह और एक अपठरभानषत अभार , ठरिता और दुख है । कहते हह

    कह देने ंे दुख कुछ हलका हो िाता है । इंनलए कहना चानहए कक भुलाने के

    नलए ही यह नलखा गया है । समृनतयं मं कोई तथयातमक भूल या रनतककयां

    मं चूक हो गई हो लेखक उंके नलए कमारासी है ।

    पपषठ / 6

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    यनि -कम

    आचायण रामचंद शुकल

    बाबा नागािुणन

    भैरररंाद गुप

    डड . महादेर ंाहा

    िनकनर शील

    डड . नगेनद

    भरत संह उपाधयाय

    ंयंाची

    ंुरेनद चौिरी

    चनदभूषर नतरारी

    का . इंराइल

    नशरदान संह चौहान

    भीषम ंाहनी

    मोनहत कुमार हालदार

    नरलोचन शासी

    हंंराि रहबर

    रमेश रंिक

    शलभ शीराम संह

    सरामी शरर सरामी

    ंोमदत

    रेमेनद

    पपषठ / 7

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    कदनेश शमाण

    ओमरकाश गेराल

    शीपाद बाबा

    हरीश पचौरी

    इंदुकांत शुकल

    कनर रेरु गोपाल

    का. नशर रमाण

    अजेय

    यू .िी .कॄषरमूरत

    डड . रामनरलां शमाण

    चंदबली संह

    पपषठ / 8

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    आचायण रामचंद शुकल

    पपषठ / 9

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    सहदी के महान आलोचक शुकल िी कक ियंती (१९८४) के अरंर पर

    बुत िगह उनपर कायणकम आयोनित हो रहे से । उंी कम मं नरिय बहादुर

    संह दारा नरकदशा नससत अपने कालेि मं शुकल िी पर एक ंेनमनार आयोनित

    ककया गया । शुकल िैंे ंरणनरकदत पर कोई कया नई बात कहे ! और पुरानी

    बातं को ही किर ंे कहे तो कयं कहे ! और कुछ नहं तो कहने का अंदाि ही

    नया हो । इंी ंोच ंे इं अरंर के नलए यह कालपननक ंाकातकार नलखा

    गया और रहां पढ़ा गया । ंबको यह रयोग अचछा लगा । बाद मं रहं कक

    पनरका मं यह छपा । उंके बाद तो शुकल िी पर नरचार का यह ूप लोगं को

    इतना पंंद आया कक किर कई पनरकां ने इंे छापा ।

    पपषठ / 10

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    आचायण रामचंद शुकल ंे ंाकातकार

    इिर ंमकालीन ंानहतय ंे उिने राली ंमसयां को लेकर कािक राद -

    नरराद ुए हह और हो रहे हह । ऐंे मं यह इचछा सराभानरक सी कक उनको लेकर

    ककंी ऐंे नरदान आलोचक ंे नमला िाय और उनके ंंबंि मं उंकक राय पूछी

    िाय निंकक बात अनिकांश सहदी के लेखकं , पािकं को गाह हो ंके । सहदी

    आलोचना पर दृनष डालने के कम मं ंबंे पहले डड . रामनरलां शमाण का नाम

    धयान मं आया , िो माकंणरादी आलोचक होने के बारिूद यापक सहदी लेखकं -

    पािकं के बीच कािक रनतनित हह ।

    उनंे नमले तो उनहंने बताया कक नपछले कुछ रषर ंे रे कयंकक

    ंानहतयेतर मंलं के अधययन -नररेचन मं उलझे ुए हह और ंानहतय के नलए

    ंमय नहं ननकाल पाए हह इंनलए इन ंमसयां के नलए आरशयक माननंकता

    बना पाना किलहाल ंंभर नहं । रैंे भी एनशयाई ंमािं पर काम करने के

    बाद अब भारतीय दंदराद कक ूपरेखा उनके कदमाग मं घूम रही है । लेककन

    हमारी परेशानी ंमझकर उनहंने ंुझार कदया कक इं ंबके नलए सहदी के रसम

    ंानहनतयक आलोचक आ. रामचंद शुकल ंे बेहतर आदमी नहं नमलेगा ।

    ंमसयां के सरूप को देखकर उनहंने कहा कक आ.शुकल ने लगातार इन पर

    नरचार ककया है , इंनलए उनकक राय को हम नए ूप मं िानं तो बुत -ंा

    गड़बड़झाला दूर हो ंकता है ।

    ंमसया ुई कक उनंे नमला कैंे िाए ? इिर नपछले पचां रषर ंे

    उनका न तो कोई ंमाचार ही नमला , न कुछ नया नलखा ही कहं देखा । कहते हह

    1941 मं िब रे नरवनरदालय कक नौकरी छोड़ परलोक यारा पर गए तो

    उनकक रनतभा के आतंक मं दबे -घुटे नरवनरदालयं के रोिैंर नरदानं ने

    मौका पाकर यह अिराह उड़ा दी कक शुकल िी गए तो बं गए । इंे नरनिरत

    बनाने के नलए उनहंने शोक - ंभाएं और शदांिनलयाय अरपत कर चैन कक

    पपषठ / 11

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    ंांं ली । कया आदमी सा कक ंानहतय कक बुननयाद ही नहला दी , सहदी

    नरभागं के ंामाजय को धरंश के कगार पर ला खड़ा ककया । न ंानहतयशास कक

    पठरपाटी को मानता सा , न आनंदराद और अलौकककतर कक िाररां को , भाषा

    के पांनडतय का ुआब ही खतम कर कदया पटे ने । अरे बाबा , तुम पर लोकमंगल

    कक ंनक ंरार है तो िाते चलाते कहं आंदोलन -िांदोलन , हमारी रोिी -रोटी

    पर कयं लात मार रहे हो? यहाय तो शास -नरकदत रशसत पस है , भारं , रंं के

    रगीकरर कक िानी -बूझी ंमसयाएय हह , ंानहनतयक शासासण का शावत ंहचार

    है । इंंे हटे तो किर ंानहतय के आंदोलनकारी रचनाकारं का डंका बिेगा

    सहदी के अपने ंुरनकत ंामाजय मं । ंो , शुकल िी के लंबी यारा पर िाने कक

    खबर ने इन हलकं मं खुशी कक लहर दौड़ा दी ।

    ंुना कुछ सहदी के रचनाकार भी इन शदांिनल -ंमारोहं मं शानमल

    ुए । ऐंे रचनाकार शुकल िी ंे अनिक उनकक लोकमंगल राली भारना ंे

    कुनपत से निंकक रिह ंे उनहंने अपने इनतहां मं उनका नोठटं तक नहं

    नलया । एक ंे रहा नहं गया तो नबलकुल ंाि ही बोल गए-``शरम कक बात कह

    दंू कक उनका इनतहां महने यह टटोलने कक इचछा ंे खोला सा कक रहाय मह हय तो

    कहाय और कैंे हय ।''(िैनहद कुमार ) शुकल िी कक आलोचना मं झलकते पौुष ंे

    नचढ़े ुए ंानहतय मं कोमलता और सैरता के बेहद नहमायती एक शांनत नरय

    ंजन बोले -``ंब नमलाकर कोमल और कठिन रंं के ंंचय मं उनका झुकार

    पुुष -रृनत कक ओर ही है , कोमल रृनत कक ओर नहं । रातंलय , कुरा और

    शृंगार मं उनके मन का रही अंश है निंमं पुुष का अनुगह या अहम है , नारी

    कक ंृदयता नहं । `अदणनारीवर ' ंे उनहंने ईवर -ूप ही नलया है , नारी ूप

    पठरनशष रह गया है ।''(शांनत नरय नदरेदी )

    कहने का असण यही कक शुकल िी के आगमन ने सहदी आलोचना के ंंपूरण

    पठरदृशय को नरषाि बना कदया सा , ंभय -ंुंंसकृत शास -नरनहत मागण पर चलने

    राले नरदत ंमाि मं अनपढ़ , गयरारं कक ओर ंे उिकर आया यह अंिड़ सा ,

    निंके ननकल िाने पर बेहद ंुकून नमला है और नरदगि गोनियं कक गठरमा किर

    कायम हो ंकक है ।

    पपषठ / 12

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    खैर । हम इन अिराहं के चकर मं न आकर ंीिे उनके परम नशषय

    पंनडत कृषरशंकर िी ंे रारारंी मं दशावमेि पर नससत उनके मकान पर नमले

    । उनके माधयम ंे ही मेरा भी शुकलिी ंे एक ननकट ठरशता बनता है । िैंे रे

    शुकल िी के परमनरय नशषय हह , रैंे मह उनका परमनरय नशषय हं और पांच -

    छःरषर तक उनके ंाननधय मं रहकर ंानहतय का अधययन ककया है । कािक

    इिर -उिर करने पर अंत मं रे हमारे आगह को न टाल ंके और आ. शुकल ंे

    हमारी मुलाकात कराने के नलए रािी हो गए । लेककन कुछ काररं ंे उनहंने

    उनके ंास मुलाकात करने के ससान और ंमय को ककंी ंे भी न बताने कक

    तिबीि कक , ंो मह उंे गुप ही रखे हय ।

    उनंे यह मुलाकात कई कदनं तक चलती रही । हमने ंुन रखा सा कक

    रे बुत ंंकोची हह और बोलते बुत ही कम हह । पुसतकं मं छपी उनकक तसरीर

    ंे यह भी लगा कक गुसंैल भी अरशय ही हंगे । ंो , शुू मं ही मामला गड़बड़ा

    न िाए इंनलए रारंभ मं कुछ ऐंे मुलायम और शाकाहारी ंराल ही उनके

    ंामने रखे निन पर बुत नरराद न हो और रे खुलं । लेककन िैंे -िैंे बातचीत

    आगे बढ़ी तो उनके इकतरिा बयानं , सपषीकररं कक िगह गमण राद -नरराद ने

    ले ली निंमं कई बार तो नससनत यहाय तक आ प युची कक लगा बातचीत का

    नंलनंला खतम ही हो िाएगा । लेककन उनकक नननितता और ननसितता ने इंे

    बने रखने मं कािक मदद कक । बहं के बाद अकंर रे कह देते कक इं नरषय पर

    मुझे िो कहना है , मह कह चुका -अब आगे आप िो कुछ कहं । किर कुछ देर तक

    मौन रहकर रे हमारे रतयारोपं को ंुनते रहते और घनी मूछं मं मुसकराते

    िाते । इं बातचीत का तींरा नहसंा रह है िहां उनके कदए तमाम िराबं के

    ंंदभण मं महने ंाकातकार लेने राले के ूपमं नहं एक ंमीकक कक हैनंयत ंे

    उनका नरशेषर -मूलयांकन ककया है ।

    ंंकेप मं यह कहा िा ंकता है कक इं ंाकातकार का पहला नहसंा

    यकद उनकक ओर ंे ंानहतय के ंरालं पर कदए गए अपने इकतरिा बे -रोकटोक

    बयानं , ससापनां का है तो उंका अंनतम नहसंा मेरे दारा ककए गए नरशेषर -

    मूलयांकन का , बीच का नहसंा आपंी बहं -मुबाहंे और नभड़ंत का है और

    पपषठ / 13

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    इंनलए कािक रोचक बन पड़ा है । लेककन इं तरह कक बहं कयंकक ंाकात कक

    चीि होती है इंनलए उंे इं तरह कक ंभा मं रखना आंान नहं है । किलहाल

    ंाकातकार के रारंनभक नहसंे के कुछ अंशं को ही मह आपके ंामने रखना

    चाहता हं - रैंे तमाम बातचीत को पुसतकाकार छपाने कक इिाित आ. शुकल ने

    ंहषण दे दी है । और हां , एक बात और । कयंकक उनहंने बातचीत को टेप नहं

    होने कदया इंनलए समृनत के आिार पर ही उंे नोट ककया है और िहाय उनकक

    पूरी बात याद नहं रह ंकक , रहाय उनकक पुसतकं के आिार पर उंे मुकममल कर

    कदया है । तो किर आइए , शुू ंे ही लं ।

    शुकल िी ंे िब हम नमले तो पाया कक रे शयामल ररण के , मयझौले कद

    के सोड़ा भारीपन नलए से । मह ककताबं मं छपी उनकक तसरीर को देखकर

    ंमझता सा कक कोट -पहट -टाई राला नलबां िोटो सखचाने िैंे खां अरंरं के

    नलए उनहंने रख छोड़ा होगा । लेककन िब उनहं बाकायदा उंी नलबां मं बैिे

    पाया तो आियण ुआ । छोटे कटे ुए और िीक ंे ंंरारे ुए नखचड़ी बाल , दोनं

    ओिं को ढकने राली लंबी और ककनारं ंे ंाि कक ुई मूछं , आंखं पर गोल

    फेम का चशमा , तीखी नाक , आंखं गोल चशमे ंे बाहर ंीिे झायकती ुं । गौर ंे

    देखा तो उनकक आयखं मं सखचे लाल डोरे भी कदखाई पड़े । रे एकदम ंतर और

    गंभीर मुदा मं बैिे से । ऐंी गंभीरता ंे मह बुत घबराता हं िो ंारे उतंाह

    और उमंग पर घड़ं पानी डालने िैंा रभार उतपन करे । लेककन इं घनघोर

    गांभीयण के बारिूद उनकक शकल मं कोई बात सी कक रे ंौमयता और मािुयण कक

    मूरत निर आ रहे से । और इंे उनकक घनी लंबी मूछं के नीचे नछपी अनुमाननत

    मुसकान के कारर ंमनझए या रश आमंनरत करती -ंी उनकक आकृनत का रभार

    कक मह एकदम ंहि और मुखर अनुभर कर रहा सा । नबना नहले -डुले उनहंने मौन

    मं ही मानो नमसकार सरीकार ककया और नबना ंंकेत के ही िैंे बैिने का

    ननमंरर कदया ।

    रश : शुकल िी , ंानहनतयक मुदं पर बातचीत शुू करने ंे पहले आपके

    घर-पठररार , सरयं आपके िीरन के बारे मं िानने कक निजांा है । यकद

    अनयसा न लं तो ंंकेप मं आप ही ंे ंुनना है ।

    पपषठ / 14

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    शुकल िीः मेरे िीरन मं कोई ऐंी नरशेष उललेखनीय बात नहं है

    निंका निक करने का महतर हो । एक आम भारतीय नागठरक के िीरन कक िो

    कहानी होती है , रैंा ही अपना भी है । किर भी आप िानना ही चाहते हह तो

    ंंकेप मं इं रकार कहा िा ंकता है :

    मेरे पूरणि गोरखपुर निले के भेड़ी नामक ससान मं रहते से ।मेरे नपता

    पंनडत चंदबली शुकल कक अरससा िब 4-5 रषण कक सी तो नपतामह पंनडत

    नशरदत शुकल का देहांत हो गया । दादी उनहं लेकर बसती निले के अगोना गायर

    मं रहने लगं , िहाय उनको `नगर ' के राि -पठररारकक ओर ंे यसेष भूनम नमली

    सी । नपतािी कक नशका अगोना ंे दो मील दूर नगर के मदरंे मं िारंी मं ुई

    सी । इंी गायर मं ंंरतत 1940 कक आनवन -पूररमा को मेरा िनम ुआ बताते हह

    । नपतािी सहदी कनरता के बड़े रेमी से , रायः रात को`रामचठरत मानं ',

    `रामचननदका ' या भारतंदु िी के नाटक बड़े नचताकषणक ढंग ंे पढ़ा करते से ... ।

    महने बीच मं टोककर पूछा : लेककन शुकल िी , यकद िृषता न ंमझं तो

    कहय कक आपके नपता के बारे मं इिर कािक कुछ और तरह कक बातं भी पढ़ने को

    नमली हह । मंलन यह कक रे अंगेिी और िारंी के ंमसणक से , सहदी - ंंसकृत

    को बेहदा िबान ंमझते से , बामरं को `बमन ' कहते से और उनके अनिकांश

    नमर मुंलमान ही से । यही नहं , उनकक रेश -भूषा भी कुछ इंी तरह कक सी ।

    मंलन मुनसलम ढंग कक दाढ़ी रखना , पटेदार बाल कटाना , शेररानी तसा

    चूड़ीदार पािामा पहनना , घर मं उदूण बोलना और ढीली िोती पहनने रालं ंे

    ंखत निरत करना । और तो और आपके पुर पंनडत केशर चंद शुकल िी ने भी

    इन बातं कक एक हद तक पुनष कक है ।

    शुकल िीः हो ंकता है इन बातं मं ंतय का कुछ अंश हो । लेककन मुझ

    पर उनके यनितर कक िो छाप है , रह रही है निंका उललेख ऊपर कर आया

    हय । रैंे इन चीिं को तूल देने कक पठरपाटी केशर के उं कसन ंे चल पड़ी है

    िहाय उंने कहा -``भाषा बोल न िानहं निनके घर के दां ।'' इंमं ककंी

    महानुभार के सहदी रेम को गौरराननरत करने का भार नछपा होता है । लेककन ये

    ंब अनतशयोनियां बन िाती हह और बात का बतंगड़ बन िाता है । खैर ! मेरे

    पपषठ / 15

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    नपता सहदी के रेमी से , मेरी माय गाना के उं नमश रंश ंे सं निंमं कई ंौ रषण

    पहले गोसरामी तुलंीदां ुए से । रे परम रैषरर राम भि सं ,

    रामचठरतमानं उनहं कंिसस सा और सहदी ंंसकृत ंे उनहं सराभानरक रेम सा ।

    िब मह आि रषण का सा तो माय कक मृतयु हो गई । नपता हम लोगं को

    नमिाणपुर ले आए िहाय रे नौकरी करते से । नमिाणपुर रकृनत कक अनुपम

    ककड़ाससली है । रहं नपता िी ने दूंरा नरराह ककया और िैंा लोगं ने नलखा

    भी है , घरं मं इंंे कुछ तनार पैदा होते ही हह । किर 12 रषण कक अरससा मं

    मेरा भी नरराह कर कदया गया । अंल बात यह है कक नमिाणपुर के ंुरभय

    राताररर मं मेरी नशका -दीका ुई , रहं नलखना भी महने शुू ककया । रहाय ंे

    नागरी -रचाठररी -ंभा के `सहदी शबद ंागर ' मं आने ंे लेकर बनारं सहदू

    नरवनरदालय के सहदी नरभाग मं ननयुनि कक कहानी तो ंब िानते ही हह ।

    इिर कई लोगं ने मेरे िीरन कई कुछेक घटनां को उिाकर ऐंा ररणन ककया

    है निंमं मुझे िीरोदत नायकोनचत गुरं ंे नरभूनषत करके कदखाया है ।

    लेककन उंमं रैंी कोई बड़ी बात नहं । िीरन मं ंभी लोगं को कुछ -न-कुछ

    ंंघषण करना ही होता है । िो कुछ बन िाते हह उनके ककसंे शोि -गंसं मं बढ़-

    चढ़कर छपते हह , िो आम नागठरक के ूप मं िूझते चले िाते हह उनके बड़े -बड़े

    बनलदानं को भी कोई नहं पूछता ।

    रश : इं ंराल का रयोिन एक हद तक यह िानना भी सा कक आपके

    नरगत िीरन कक रे कौन -ंी घटनाएय रहं निनका बाद मं आपके लेखन पर अंर

    पड़ा हो?

    उतर : अपने पठररार के नरदानुराग और सहदी रेम कक बातं तो मह बता

    ही चुका हय निनहंने मुझे उं ओर ररृत करने मं अरशय ही महतरपूरण भूनमका

    ननभाई होगी । दूंरा अंर मुझ पर नमिाणपुर के राकृनतक ंंदयण का रहा । रहाय

    के ंघन रनय -रृकं ंे लदी परणत मालाएय , ऊयची -नीची परणत -ससनलयं के बीच

    ककड़ा करते ुए टेढ़े -मेढ़े नाले , ंुदूर तक िैले ुए हरे -भरे लहलहाते कछार ,

    बड़ी -बड़ी चटानं के बीच मं हरहराते ुए ननझणर , रंग -नबरंगे नशला खंडं पर

    बहती ुई नकदयं कक ननमणल िाराएय तसा िूली -िली अमराइयं के बीच बंी ुई

    पपषठ / 16

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    गाम -बनसतयाय मेरे मन मं बं गं । मह रकृनत के ंंदयण का उपांक रहा हय और

    िब-िब भी नंदांत या ंानहतय चचाण के बीच रकृनत का रंंग आता है तो मेरा

    मन नमिाणपुर के उंी राकृनतक ंंदयण मं खो िाता है । इंनलए िहाय भी उं पर

    बात चली तो ररणन का नरसतृत हो िाना सराभानरक है ।

    एक बार काशी ंे नमिाणपुर ंानहतय -मंडल आया तो मह अपने उदारं को

    रोक नहं पाया -

    ``यदनप मह काशी मं रहता हय और लोगं का यह नरवां है कक रहाय

    मरने ंे मुनि नमलती है । तसानप मेरी हारदक इचछा तो यही है कक िब मेरे

    रार ननकलं तब मेरे ंामने नमिाणपुर का रही भूखंड रहे । मह यहाय के एक-एक

    नाले ंे पठरनचत हय -यहाय कक नकदयं , कांटं , पतसरं तसा िंगली पौिं मं एक-

    एक को िानता हय ।''

    रहाय पुसतकालय भरन के कनर -ंममेलन पर भी यही उदार आप-ंे -आप

    िूट पड़े -

    ``मह नमिाणपुर कक एक-एक झाड़ी , एक-एक टीले ंे पठरनचत हय । उंके

    टीलं पर चढ़ा हय । बचपन मेरा इन झानड़यं कक छाया मं पला है । मह इंे कैंे

    भूल ंकता हय ।...आपने कनर -ंममेलन का आयोिन पुसतकालय भरन मं ककया

    है , यह िीक नहं । दूंरी बार िब कनर -ंममेलन ककनिए तब पहाड़ पर,

    झानड़यं मं ककनिए िब पानी बरं रहा हो , झरने झर रहे हं , तब मह भी हयगा

    और आप लोग भी । तब नमिाणपुर के कनर -ंममेलन का आनंद रहेगा ।''

    इंके अलारा निं चीि ने मुझ पर ंबंे अनिक अंर डाला रह से

    गोरखपुर , बसती निले के गायरं मं रहने राले ंािारर िन । यह इलाका बुत

    गरीब , दबा -नपंा है । यहाय के लोगं का िीरन बड़ा कठिन है । मेरा बचपन

    इनहं लोगं के बीच बीता । बीच -बीच मं झगड़ा -टंटा हो िाने या नौकरी न

    नमलने पर ननराश हो यहं लौट आता सा । अगोना बसती ंे छः मील दूर दनखन

    मं एक छोटा -ंा गायर है । भाषा शुद अरिी है । अयोधया यहाय ंे कुल 30-32

    मील पनिम है । अब तक इं रदेश कक गामीर नसयाय बेलगानड़यं पर घंूघट

    पपषठ / 17

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    काढ़े ``रस हांकर गाड़ीरान अिोधयन िानो '' गाती ुई राम कक पारन भूनम के

    दशणनासण िाती ुई नमल िाएंगी ।

    नरसतार ंे तो और भी ऐंी ककतनी ही बातं कही िा ंकती हह निनका

    गहरा अंर मुझ पर रहा ।

    (िीरन कक यह चचाण कािक ंमय तक चली निंमं उनके िीरन के ऐंे

    अनेक पक उभरकर आए निनका उनके यनितर और नंदांतं पर पड़ा रभार

    ंहि ही देखा िा ंकता है । उंके बाद उनके ंानहतय -नंदांतं पर चचाण चली

    निंके कुछ अंश इं रकार हह ।)

    रश : शुकल िी , इिर के तमाम लोग ऐंा मानते हह कक आप सहदी नर

    िागरर कक रगनतशील चेतना के अगगामी ंानहतय नरचारक हह निंने भारतीय

    और पािातय , नरीन और राचीन , जान कक नरनभन परंपरां के गंभीर

    अधययन और सरतंर सचतन के आिार पर सहदी मं रसतुरादी ंानहतय -दृनष का

    नरकां ककया । आपने इनतहां , दशणन , भाषाशास , नरजान और ंानहतय -

    ंंबंिी नए-पुराने सचतन कक रैचाठरक यारा करने के बाद एक ंुनननित

    ंमािोनमुखी रसतुरादी ंानहतय दृनष अरित कक और अपनी इं अरित नई

    ंानहतय दृनष ंे ही परंपरा के मूलयांकन , रतणमान कक आरशयकतां कक पहचान

    और भारी नरकां कक कदशा खोिने का रयां ककया । इं ंब कक रेररा आपको

    कहाय ंे नमली और इंकक िूरत कैंे महंूं ुई ?

    उतर : निं ंमय महने नलखना शुू ककया उं ंमय सहदी आलोचना कक

    दशा कुछ ऐंी सी कक रह लकर -गंसं मं रंं , अलंकारं , नायक -नानयकां कक

    ंूची बनाने मं ही अपनी नंनद ंमझ रही सी । ंानहतय के अनुशांन कक बात

    तो दूर ंािारर मागण ननदेश भी इनंे नहं हो पा रहा सा । आलोचना मं अचछे -

    बुरे कक पहचान का कोई िौर -ठिकाना नहं सा , िो निंे ले उड़े बं रही महान ।

    रीनतकालीन दरबारी माहौल आलोचना मं भी सा और काय -चमतकार पर रीझ

    `कलम तोड़ दी ' राले अंदाि मं आलोचक आह-राह करते से । भारतंदु िी के

    ंमय ंे सहदी के नशष ंानहतय का यह रयां ुआ कक आलोचना भी लकर -गंसं

    पपषठ / 18

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    कक इं िकड़ या भारोचछरांमयी रराली ंे मुि हो ंके । इंके नलए कुछ

    रासता भी बनने लगा सा । पं . बाल कृषर भट के `सहदी रदीप ' तसा `ंरसरती '

    मं नए ढंग कक ंमालोचना आने लगी सी । इंी को हमने आगे बढ़ाने कक कोनशश

    कक ।

    दूंरी बात यह कक इं ंमय अंगेिं और उनके नपछलगगू रािा -बाबुं

    के नरुद ककंानं के आंदोलन िोर पकड़ने लगे से । सहदी के एक हिार रषण के

    ंानहतय पर निर डालने ंे मेरी यह िाररा और भी पुष होती गई कक ``ंानहतय

    िनता कक नचत रृनतयं का ंंनचत रनतसबब है ।'' िनता कक नचररृनत मं

    पठररतणनं के ंास ही ंानहतय के सरूप मं भी पठररतणन होते हह । िनता कक

    नचररृनत मं पठररतणन ंामानिक पठररतणन ंे रेठरत और रभानरत होता है ।

    इंनलए मह इं ननषकषण पर पुंचा कक ंानहतय का इनतहां बुननयादी तौर पर

    ंानहतय के नरकां और ंामानिक नरकां के आपंी ंंबंिं को नलए -कदए

    चलता है । भाषा के बारे मं भी कुछ इंी तरह कक बात कही िा ंकती है ।

    माचण , 1911 कक `नागरी रचाठररी पनरका 'मं रकानशत `सहदी कक पूरण और

    रतणमान नससनत ' मं महने यही कहा है कक ``कोई भाषा नितने ही अनिक यापारं

    मं मनुषय का ंास देगी उंके नरकां और रचार कक उतनी ही

    अनिक ंंभारना होगी ।''

    महने उनके नरचार -रराह के बीच किर यरिान उपनससनत करते ुए

    र श ककया : लेककन शुकल िी , यह बात ंमझ मं नहं आती कक एक ओर तो आप

    लकर -गंसं के िंिाल को तोड़ रहे से और शासबद सचतन कक िगह नर-

    िागरर और िन-आंदोलन कक आरशयकतां के आिार पर ंानहतय ंंबंिी नया

    दृनषकोर गढ़ रहे से और दूंरी ओर रं को ही काय का अंनतम ंरोपठर लकय

    मानकर रंराद कक ही रनतिा कर रहे से । आनखर रह कौन ंी मिबूरी सी कक

    आप एक बारगी ही उं ंबंे सपड छुड़ाकर नए रनतमानं कक खोि कक ओर रैंे

    ंाहं के ंास अगंर नहं ुए ।

    शुकल िी ंीिे आंखं मं झायकते ुए ंराल के असण को ंमझकर

    पपषठ / 19

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    मुसकुराए , किर बोले : देनखए , मह ंरणसा नएपन का रैंा कायल नहं हय िैंा

    लोग ंमझते हह । रैंे भी पनिम मं रोि -रोि उिने -नमटने राले नए-नए

    ंानहतयांदोलनं को मह ंंदेह कक दृनष ंे देखता रहा हय । ऐंे आंदोलनं के कारर

    रहाय इं शताबदी मं आकर कायकेर के भीतर बड़ी गड़बड़ी और अयरससा

    िैली । काय कक सराभानरक उमंग के ससान पर नरीनता के नलए आकुलता मार

    रह गई । कनरता चाहे हो , चाहे न हो , कोई नरीन ूप या रंग -ढंग अरशय खड़ा

    हो । पर कोरी नरीनता केरल मरे ुए आंदोलन का इनतहां छोड़ िाय तो छोड़

    िाय , कनरता नहं खड़ी कर ंकती । ंमालोचना कक भी कुछ ऐंी ही हराई

    नससनत इं नरीनता के चकर मं ुई । रहसयराद , रतीकराद , मुिछंदराद ,

    `कला का उदेशय कलाराद ' इतयाकद तो अब रहाय बुत कदन के मरे ुए आंदोलन

    ंमझे िाते हह । इं शताबदी के आंदोलनं मं अनभयंिनाराद , िािणकाल -

    ररृनत , मूरतमताराद , ंंरेदनाराद , और नरीन मयाणदाराद चले ।

    लेककन मुझे लगता है इन बुत ंी `राद ' यानियं का ररतणक है

    `यनिराद ' िो बुत पुराना रोग है । इंकक नंर भेदराद पर है । अब तक कनर

    के यनितर के नाम पर भेद रदशणन होता सा , अब उंकक कृनत के यनितर के

    नाम पर होने के लकर कदखाई दे रहे हह । अब तक ककंी कनरता मं उंके कनर के

    यनितर को रिान रसतु कहने कक चाल सी पर अब कृनत ही रिान रसतु कही

    िाने लगी है और उंकक ंता कनर और पािक दोनं ंे सरतंर िहराई िाने लगी

    है । अब नरीनता के नाम पर होने राले इन तमाशं और उड़ाए िाने राले

    कनकौरं पर मेरी आससा नहं रही । एक तो इंनलए ।

    दूंरे , मुझे लगा कक काय के ंंदभण मं ंंदयाणनुभूनत रारंनभक नससनत है

    । और रंानुभूनत बाद कक । भारत राचीन देश है निंका काय सचतन भी कािक

    लंबा है इंनलए रह ंंदयाणनुभूनत ंे ंंतुष न होकर रंानुभूनत पर प युचा । इं

    रं कक िो याखया बाद मं चलकर होने लगी और उं पर अलौकककतर और

    आनंदराद के िो आररर डाले गए रह चाल दाशणननकं के कारर पड़ी । इंनलए

    ंराल इं इतने अचछे नंदांत को छोड़कर नया गढ़ने का उतना नहं सा

    नितना उंे इं मायािाल ंे मुि कर नई नससनतयं मं उंकक नई याखया करने

    पपषठ / 20

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    का सा । ूकढ़राकदयं , आनंदराकदयं , कलाराकदयं कक िकड़ ंे छुड़ाकर उंे

    रसतुगत और ंामानिक असण मं सरीकार करने का सा । `लोकमंगल ' कक भारना

    ंे उंकक नई याखया ुई और रंानुभूनत का दिाण तय ककया गया ।

    तींरे , पनिम के िागूक और गंभीर ंानहतय सचतकं ने भी भारतीय

    सचतन मं ूनच ली है और उंंे उनहं नया आलोक नमला है । इिर तो ंुना है कक

    बुत ंे ूपरादी ंंरदाय हमारे धरनन , रकोनि , रीनत ंे अपने को िोड़कर नए

    नंदांत गढ़ रहे हह । रं उनके काम का नहं है कयंकक उंमं ंामानिक कक

    रनतिा है और लोकृदय ंे ंािाररीकरर कक मायग है , कनर , पािक , ंमीकक

    ंभी ंे । इंनलए महने आि कक पठरनससनतयं मं इं नंदांत मं कािक

    ंंभारनाएय देखं । इंे छोड़कर कोई नंदांत खड़ा नहं ककया िा ंकता है ।

    इंके अलारा एक और कारर भी रहा । निं ंमय हम लोग ंानहतय मं

    ंककय ुए उंंे पहले अंगेि नरदानं ने कुछ ऐंा माहौल बना कदया सा िैंे

    मनुषय ने िो कुछ भी आि तक अरित ककया है , रह पनिम कक देन है । हमारे

    देश कक तमाम उपलनबियं और सचतािारा को अंभय और िड़ता के ूप मं पेश

    ककया गया । ऐंे मं अपनी राचीन उपलनबियं के रनत कुछ दुरागह भी

    सराभानरक सा । रािनीनत मं गायिी िी भी कुछ -कुछ रैंा ही ररैया अपनाए से ।

    हम लोग उनके ंब तरीकं ंे तो ंहमत नहं से , किर भी राचीन के पुनससाणपन

    कक भारना ंे तो रेठरत से ही । हाय , शायद अब रैंी कोई मिबूरी लोगं को

    महंूं न होती हो ।

    (लगभग दो -तीन घंटे इं बातचीत को हो चुके से और यह लगने लगा सा

    कक रे कुछ अनौपचाठरक होते िा रहे हह , इंनलए अनुकूल अरंर िान महने रह

    रंंग छेड़ कदया ।)

    पूछा : शुकल िी , यह ंब चीिं और तकण तो हमारी ंमझ मं आते हह

    लेककन एक बात ंमझ मं नहं आती । आप िानते हह कक 1917 मं दुननया मं

    एक बड़ी घटना ंोनरयत ंमािरादी कांनत के ूप मं ुई निंने शोनषत -

    पीनड़तं कक ंता ससानपत कक और ंामाजयराद कक नंर नहला दी । अंतराणषीय

    पपषठ / 21

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    पैमाने पर यह ऐंी ंता और शनि सी िो न केरल नंदांत मं ंामाजयराद -

    नररोिी सी बनलक कमयुननसट इंटरनेशनल के माधयम ंे दुननया के तमाम

    उपननरेशी देशं के सरािीनता आंदोलनं कक यारहाठरक मदद भी कर रही सी ।

    उंने दुननया भर के बुनदिीनरयं के ऊपर कांनतकारी रभार डाला । लेककन

    आियण तो इं बात पर होता है कक आप िैंे कटर ंामाजयराद , ंामंतराद -

    नररोिी , शोनषतं -दनलतं के पक मं बराबर आराि उिाने राले और चीिं को

    बुनद और तकण ंे परखने राले यनि ने कभी उंका गंभीरता ंे अधययन करने

    कक आरशयकता ही न ंमझी । इंके उलट कुछ इं तरह कक ठटपपनरयाय आपने

    उं पर कक -

    ``ूं के बोलशेनरकं कक बात ंुननए तो रे बड़ी उपेका ंे अब तक के

    ंारे ंानहतय को ऊयचे रगण के लोगं का ंानहतय बताकर बढ़ैयं , लोहारं और

    मिदूरं के ंानहतय का आंरा देखने को कहंगे ।'' (सचतामनर -3, पृ . 276)

    या -

    ``ऊयची शेनरयं के कतणय कक पुष यरससा न होने ंे ही योरप मं

    नीची शेनरयं मं ईषयाण , देष और अहंकार का राबलय ुआ निंंे लाभ उिाकर

    `लेननन ' अपने ंमय मं महातमा बना रहा । ंमाि कक ऐंी रृनतयं पर नससत

    `महातमय ' का सरीकार घोर अमंगल का ंूचक है ...ूं ंे भारी -भारी नरदानं

    और गुनरयं का भागना इं बात का आभां दे रहा है ।''(गोसरामी तुलंीदां ,

    पृ . 42) ।

    उनके इन उदररं का हराला देने के बाद महने आरेश मं यह भी कह ही

    तो डाला : कया आपका यह ंोच उं ंमय ंोनरयत ूं के बारे मं हो रहे

    यापक ंामाजयरादी रचार ंे रभानरत नहं है ? कया ये ंब बातं रसतुनससनत

    कक गंभीर पड़ताल ककए नबना केरल दुषरचार के बहार मं आकर कही गई बातं

    नहं हह ? आप िैंे ंमीकक ंे कया इंकक अपेका कक िा ंकतीहै ? आपकक

    ंमीका का यह ंबंे कमिोर और गलाननिनक रंंग है ।

    (बात कुछ यहाय तक पुंच गई सी कक मेरी बगल मं बैिे पं . कृषर शंकर

    पपषठ / 22

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    भी बार -बार मेरा हास दबाते । रे भी ंकते कक हालत मं से कक मामला गलत

    मोड़ ले रहा है । पहले -पहल महने पाया कक शुकल िी सोड़े अंतसस ुए । कािक

    देर तक मौन रहे । इं रंंग ने उनहं िैंे बेहद नरचनलत कर कदया सा । उनका

    िराब भी कािक टाल -मटोल राला और कमिोर सा ।)

    किर भी कुछ नससर होकर रे बोले - हो ंकता है यह ऐंे ही हो िैंा

    आप ंोच रहे हह । लेककन मह निं राताररर मं पला -बढ़ा और कायणरत सा उंमं

    यही सराभानरक रनतककया सी । यह बात कुछ हद तक ंही है कक महने कभी

    गंभीरता ंे माकंणराद या ंोनरयत यरससा के बारे मं अधययन नहं ककया । िो

    भी बातं कहं रे आम िाररा के आिार पर ही कहं । और ...

    (इंके बाद मिदूर और ककंान आंदोलन , रगनतशील लेखक ंंघ ,

    रराणशम यरससाबद दृनष और रगण -दृनषकोर , उं ंमय कक रचनाशीलता मं

    उभरते यसासण के नए सरर , ंोनरयत कांनत के ंानहतय पर पड़ते रभार आकद

    ककतने ही ऐंे नरषयं पर बहं होती रही , िो शुकल िी कक दुखती रग कक

    तरह से । इं पूरे ंमय रे बुत अंहि रहे और बीच मं कई बार चाय मयगाई ।

    पता लगा कक रे चाय के ककतने शौककन हह । राताररर को ंहि बनानेके नलए

    कुछ खान -पान , ुनचयं -अुनचयं पर बातं कक ।)बहं को आगे बढ़ाने के नलए

    महने नए कोर ंे ंराल को उिाया - आचायण िी , यह अरांतर चचाण तो यूय ही चल

    पड़ी , मूल नरषय ंे इंका अनिक ंंबंि नहं सा । अंल मं तो ननरणय इं आिार

    पर नहं हो ंकता कक कोई आदमी अपने बारे मं कया कहता है । अंल बात है

    कक ंमग ूप मं उंका रभार कया पड़ता है , यरहार मं रह कया दशाणता है ।

    बालिाक कक तारीि माकंण ने और तालसताय कक लेननन ने इनहं बड़े और यापक

    रनतमानं ंे कक सी । कानलदां ंे लगाकर तुलंी और भारतंदु , आ. नदरेदी और

    आपके बारे मं भी हमारा दृनषकोर रही है । हम िानते हह कक आपकक सपष

    ंहानुभूनत शोनषतं -पीनड़तं के पक मं और अनयायी अतयाचाठरयं के नरुद है

    । इंके नलए आपका अरसतुत नरिान अकाय गराही पेश करता है । अरसतुत

    नरिान यनि के राग -नरराग का ंबंे बड़ा रमार होता है कयंकक रहाय अचेतन

    मन बोलता है । यही नहं , आपने छायारादी कनरयं के रहसयराद , ंंदयणराद

    पपषठ / 23

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    कक कटु आलोचना करने के बारिूद पंत और ननराला कक उन कनरतां कक मुि

    कंि ंे रशंंा कक है निनमं यसासण िीरन के रासतनरक नचर हह और लोकमंगल

    कक भारना है । इंी लोकमंगल कक भारना ंे आपने ंानहतय मं अचछे -बुरे का

    ननरणय ककया है । ंमकालीन कनरता मं लोकमंगल कक यही भारना यि हो रही

    हह । इंी नाते भी हम चाहते हह कक आपके लोक मंगल का असण हम लोगं के नलए

    सपष हो ंके ।

    शुकल िी : महने अनयानययं , अतयाचाठरयं या शोनषतं , दनमतं या

    लोकमंगल कक िब-िब बात कक है तो रह उतनी अमूतण नहं है कक उंे ंमझा न

    िा ंके । हाय , उंे ंमािरादी दशणन या रगण -दृनष का िामा महने नहं पहनाया ।

    लेककन ये अतयाचारी या शोनषत कोई यनि रतीक मार नहं हह , रे िनता के

    बीच मौिूद रगर का ही रनतनननितर करते हह । मह हमेशा कनर के नलए यह

    िूरी मानता रहा हय कक उंे लोक ृदय कक पहचान हो । लोकृदय का असण

    नरनशष रगर ंे नहं यापक िनंमूह ंे ही ह

    कनरता को भी महने ननषरयोिन नखलराड़ या मनोरंिन कक चीि कभी

    नहं सरीकार ककया । उंे मनुषय को कमण मं ररृत करने राली भारानतमका रृनत

    माना और कहा कक कनरता भार -रंार दारा कमणणय के नलए कमणकेर का और

    नरसतार कर देती है । इंका सपष उदाहरर देकर कहय तो यकद ककंी िन ंमुदाय

    के बीच कहा िाय कक अमुक देश तुमहारा इतना ुपया रनतरषण उिा ले िाता है

    तो ंंभर है उं पर कुछ रभार न पड़े । पर यकद दाठरद और अकाल का भीषर

    और कुर दृशय कदखाया िाय , पेट कक जराला ंे िले ुए कंकाल कलपना के

    ंममुख रखे िाएय और भूख ंे तड़पते ुए बालक के पां बैिी ुई माता का आदण

    कंदन ंुनाया िाय तो बुत ंे लोग कोि और कुरा ंे याकुल हो उिंगे और

    इं दशा को दूर करने का उपाय नहं तो ंंकलप अरशय करंगे । पहले ढंग कक

    बात करना रािनीनतज या असणशासी का काम है और नपछले रकार का दृशय

    भारना मं लाना कनर का । अतः यह िाररा कक काय यरहार का बािक है ,

    उंके अनुशीलन ंे अकमणणयता आती है , िीक नहं ।

    यकद यह भार इिर के ंानहतय मं आया है तो मंगल का ंूचक है । लेखक

    पपषठ / 24

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    के काम को असणशासी या रािनीनतज ंे अलगाने कक िूरत है । कई बार लोग

    रादं के चकर मं पड़ कनरता न नलखकर राद नलखने लगते हह । नरचारिारा के

    लंबे -लंबे भाषर देकर उपदेशक बन िाते हह । ंूर तुलंी के बारे मं नलखते ुए

    महने बार -बार यह ंराल उिाया है कक उनहं हमं उपदेशक के ूप मं न देखना

    चानहए । उपदेशं का गहर ऊपर ही ऊपर ंे होता है । न रे ृदय के ममण को भेद

    ंकते हह न बुनद कक कंौटी पर ही नससर भार ंे िमे रह ंकते हह । ृदय तो

    उनकक ओर मुड़ता ही नहं और बुनद उनको लेकर अनेक दाशणननक रादं के बीच

    िा उलझती है । उपदेशराद या तकण गोसरामी िी के अनुंार `राकय जान ' मार

    कराते हह , निंंे िीर -कलयार का लकय पूरा नहं होता -

    ``राकय जान अतयंत ननपुन भर पार न पारै कोई ।

    नननं गृह मधय दीप कक बातन तम ननरृत नहं होई । ।''

    इंनलए कनरता को उपदेशातमकता और रकृतराद ंे भी बचाना होता है

    । अब यकद हम ककंी कारखाने का पूरे बयौरे के ंास ररणन करं , उंमं मिदूर

    ककं यरससा के ंास कया काम करते हह ये ंब बातं अचछी तरह ंामने रखं तो

    ऐंे ररणन ंे ककंी यरंायी का ही काम ननकल ंकता है , काय रेमी के ृदय

    पर कोई रभार न होगा । बात यह है कक ये ंब नरिान िीरन के मूल और

    ंामानय सरूप ंे बुत दूर के हह । पर यकद हम उंी कारखाने के पां बने ुए

    मिदूरं के झंपड़ं के भीतर के िीरन का नचरर करं , रोटी के नलए झगड़ते ुए

    कृशकाय बचं पर झललाती ुई माय का दृशय ंामने लाएय तो कनरकमण मं हमारे

    ररणन का उपयोग हो ंकता है ।

    इं िकण को ंमझना िूरी है ।

    रश : शुकल िी आपने बुत ही अचछी तरह ंे आि के ंंदभण मं इन

    बातं को सपष कर कदया । अब इंी ंे िुड़ा एक ंराल और इिर उि रहा है ।

    आि के िनरादी रचनाकार अपनी रचनां मं िब मिदूर -ककंान को लाते हह ,

    उंके ंंघषण को लाते हह तो कई बार लोगं को लगता है कक उनहंने उनहं इकहरे

    ूप मं ही पेश ककया , िहाय ंब कुछ अचछा -ही -अचछा , ंिल -ही -ंिल है ।

    पपषठ / 25

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    ंोनरयत ूं मं िनरादी यसासणरादी उपनयांं के पडिीठटर हीरो िैंा कुछ

    देखने मं आता है । आपका इंके बारे मं कया नरचार है?

    शुकल िी : देनखए इंको ंीिे ूप मं नहं दंदातमक ूप मं देखना

    चानहए । इंी एक पकीयता के नलए महने तालसताय , गायिी और ररंदनास कक

    कटु आलोचना करते ुए एक िगह नलखा है -

    ``दीन और अंहाय िनता को ननरंतर पीड़ा प युचाते चले िानेराले कूर

    आततानययं को उपदेश देने , उनंे दया कक नभका मायगने और रेम िताने तसा

    उनकक ंेरा -ंुशुषा करने मं ही कतणय कक ंीमा नहं मानी िा ंकती , कमणकेर

    का एक मार ंंदयण नहं कहा िा ंकता । मनुषय के शरीर के िैंे दनकर और

    राम दो पक हह रैंे ही उंके ृदय के भी कोमल और किोर , मिुर और तीकर ,

    दो पक हह और बराबर रहंगे । काय -कला कक पूरी रमरीयता इन दोनं पकं के

    ंमनरय के बीच मंगल या ंंदयण के नरकां मं कदखाई पड़ती है ।''

    और यह बात हर कहं लागू होती है । रकृनत के ंंबंि मं भी । मंलन

    रनं , परणतं , नदी -नालं , कछारं , पटपरं , खेतं कक नानलयं , घां के बीच ंे

    गई ुई ढुररयं , हल-बैलं , झंपड़ं और शम मं लगे ुए ककंानं इतयाकद मं िो

    आकषणर हमारे नलए है रह हमारे अंतःकरर मं नननहत रांना के कारर है ,

    अंािारर चमतकार या अपूरण शोभा के कारर नहं । िो केरल पारं कक

    हठरयाली और रंंत के पुषपहंं के ंमय ही रनं और खेतं को देखकर रंन हो

    ंकते हह , निनहं केरल मंिरी मंनडत रंालं , रिुलल कदंबं और ंघन मालती

    कंुिं का ही दशणन नरय लगता है , गीषम के खुले ुए पटपर , खेत और मैदान ,

    नशनशर कक पर नरहीन नंगी रृकारली और झाड़ -बबूल आकद निनके ृदय को

    कुछ भी सपशण नहं करते उनकक ररृनत रािंी ंमझनी चानहए ।

    अब रही नायकं के ंंदयण और ंिलता कक बात । तो मंगल -अमंगल के

    दंद मं कनर लोग अंत मं मंगल शनि कक िो ंिलता कदखा कदया करते हह उंमं

    ंदा नशकाराद या असराभानरकता कक गंि ंमझकर नाक -भं नंकोड़ना िीक

    नहं । असराभानरकता तभी आएगी िब बीच का नरिान िीक न होगा असाणत

    पपषठ / 26

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    िब रतयेक अरंर पर ंतपार ंिल और दुषपार नरिल या धरसत कदखाए

    िाएयगे । पर ंचे कनर ऐंा कभी नहं करते । इं िगत मं अिमण रायः

    दुदणमनीय शनि राप करता है निंके ंामने िमण कक शनि बार -बार उिकर

    यसण होती रहती है ।

    यही नससनत नायकं के ंरणगुर ंंपन होने कक है । रासतर मं लोक -ृदय

    आकृनत और गुर , ंंदयण और ंुशीलता , एक ही अनििान मं देखना चाहता है ।

    19 रं शती के कनर शैली -िो रािशांन , िमणशांन , ंमाि शांन आकद ंब

    रकार कक शांन यरससा के घोर नररोिी से उनहंने भी अपने रबंि कायं मं

    ूप ंंदयण और कमणंंदयण का ऐंा ही मेल ककया है । उनके नायक (या नानयका )

    निं रकार पीड़ा अतयाचार आकद ंे मनुषय िानत का उदार करने के नलए

    अपने रार तक उतंगण करने राले , घोर ंे घोर कष और यंररा ंे मुयह न

    मोड़ने राले पराकमी , दयालु और िीर हह उंी रकार ूप मािुयण ंंपन भी ।

    (अंत मं शैली का रंंग आ गया तो महने शैली के बारे मं नरसतार ंे

    उनंे पूछा कक रे उंे इतना अनिक पंंद कयं करते हह कक बार -बार अपने लेखं

    मं उंकक रशंंा नलखी है । ंास ही महने शैली के ंंबंि मं माकंण कक उं बात

    को उदिृत ककया निंमं बायरन ंे उंकक नभनता दशाणते ुए उनहंने यहाय तक

    कह डाला कक-``निनहंने भी बायरन और शैली को ंमझा और निया है रे इं

    बात पर ंंतोष यि करते हह कक बायरन 36 ंाल कक उम मं मर गया कयंकक

    अगर रह और िीनरत रहता तो एक रनतककयारादी पंूिीरादी लेखक हो गया

    होता । रे शैली कक मृतयु पर गहरा अिंों रकट करते हह कक रह 29 ंाल मं ही

    कयं मर गया कयंकक रह बुननयादी तौर पर कांनतरादी सा और हमेशा ही

    ंमािराद के नलए लड़ने रालं कक अगली पायत मं रहता ।'' इं तरह के रंंगं

    को शुकल िी बड़े गौर ंे ंुनते रहे और भारानरष होकर शैली के बारे मं बातं

    करते रहे ।)

    पपषठ / 27

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    पपषठ / 28

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    नागािुणन समॄनत

    पपषठ / 29

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    [ नागािुणन ंतर (1981) के ुए तो कई ंभा –गोनियां ुं । उनमं

    पहल कक कदलली कक सहदी अकादमी ने निंमं उन कदनं ंनचर कदलली रशांन

    के अनिकारी ुआ करते से । उंी ंे ंानहतय रेमी शी दयाकॄषर नंनहा उंके

    पदानिकारी से निनहंने यह कायणकम नरटलभाई पटेल भरन , नई कदलली मं

    आयोनित ककया । चंदभूषर नतरारी िी के शबदं मं यह `पंणनल एसंे ' उंी

    गोिी मं रसतुत ककया गया सा । भीषम ंाहनी भी उंमं उपनससत से और रे

    इंकक टोन ंे इतना रभानरत ुए कक तुरत रसतार रखा कक सहदी के लेखकं को

    बाबा के नलए कुछ करना चानहए । ंराल सा कक लेखक ककं -ककं के नलए कया -

    कया करंगे िब अनिकतर मनंिीनरयं का हाल यह हो ।]

    पपषठ / 30

  • शीहीन होती हमारी दुननया

    देरी तुम तो काले िन कक बैंाखी पर खड़ी ुई हो

    नागािुणन कक ७०रं रषणगांि पर रसतुत ककया रिय

    नागािुणन का नाम ंुनते ही हमं ककतना कुछ याद आ िाता है और अगर

    रे ंममुख हं तो ंाकात आयखं के ंामने ंे गु़र िाता है । मंलन , सहदी ही

    कयं , देश -नरदेश मं कनरयं के ंास िुड़ी चली आ रही िकड़पन , मसती ,

    घुमकड़ी और िोनखम भरे ंाहं कक लंबी परंपरा - नहनदी मं कबीर और ननराला

    निंकक खूबंूरत नमंालं हह । उनहं देखकर हमं इं देश के नास , नंद , ंंत या

    िननरय लोककनरयं कक परंपरा याद आती है , िनता के बीच यहाय ंे रहाय तक

    बेिड़क घूमते , डंके कक चोट अपनी बात कहते या किर ढपली नलए गाते उनहं मं

    घुलनमल िाते ुए । नागािुणन को देख हमं हमारा देश , उंकक माटी कक गंि और

    उंमं रचे -बंे भारतीय िन-गर कक रासतनरक आकृनतयं का आभां होता है -

    बेतरतीब पहने मैले मोटे कपड़े , पैरं मं नघंटती चपपलं , नंर पर अयगोछा ,

    अनंयररी िंगली घां ंी उग आई नखचड़ी दाढ़ी , कंिे पर सैला और ंिर मं हह

    तो दूंरी बगल मं दबी कपड़ं और कलेरे कक पोटली �