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    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक / सद य संयोजक डॉ. एम. एल. जैन ‘म ण’ (पवू उप ाचाय , व व व यालय वा ण य महा व यालय, जयपरु) परामशदाता – वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    सद य ो. (डॉ.) गरधर सोरल

    लेखा एव ंसांि यक वभाग एम. एल. सखुा डया व व व यालय, उदयपरु

    ो. (डॉ.) पी. के. शमा ोफेसर, ब ध अ ययन वभाग

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा ो. (डॉ.) एन. डी. माथुर

    ई.ए.एफ.एम. वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    डॉ. राजेश कोठार नदेशक, पो यार इं ट यटू ऑफ मनेैजमट राज थान व व व यालय, जयपरु

    ो. (डॉ.) गो व द पार क उप ाचाय, वा ण य महा व यालय राज थान व व व यालय, जयपरु

    डॉ. आर. एस. अ वाल व र ठ या याता, ए.बी.एस.ट . राजक य एस.डी. कॉलेज, यावर

    संपादन एवं पाठ-लेखन संपादक ो. (डॉ.) नवीन माथुर शास नक स चव, कुलप त

    राज थान व व व यालय, जयपरु

    पाठ लेखक सा ी अरोड़ा (इकाई सं या 1,2,3,4)

    या याता, एस.एस.जैन सबुोध पी.जी. महा व यालय जयपरु

    डॉ. यो त गु ता (इकाई सं या 15,19) या याता, वै दक क या महा व यालय राजापाक, जयपरु

    डॉ. अनुकृ त शमा (इकाई सं या 5,6,7,8,9) सहायक आचाय, बस ए ड ाइट तकनीक श ा महा व यालय जयपरु

    डॉ. भवानी शंकर शमा (इकाई सं या 16,17) सहायक आचाय, यावसा यक शासन, व व व यालय वा ण य महा व यालय जयपरु

    डॉ. क पल देव (इकाई सं या 10,11,12,13) वभागा य , नातको तर यावसा यक शासन वभाग, राजक य जानक बजाज क या महा व यालय कोटा

    ो. (डॉ.) राजीव जैन (इकाई सं या 18,20) नदेशक, ब ध अ ययन सकंाय ज.ना. व यापीठ व व व यालय उदयपरु

    डॉ. राजेश यास (इकाई सं या 14) विज टंग ोफेसर एव ंसचूना जनस पक अ धकार , राज थान सरकार, जयपरु

    अकाद मक एवं शास नक य था ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. (डॉ.) एम. के. घड़ो लया नदेशक

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य सामा ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

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    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    पुनः उ पादन – जलुाई 2010 ISBN - 13/978-81-8496-018-1 सवा धकार सरु त : इस साम ी के कसी भी अंश को वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ यथा पनुः ततु करने क अनुम त नह ं है।

    व. म. ख.ु व., कोटा के लये कुलस चव व. म. ख.ु व., कोटा (राज.) वारा मु त एव ं का शत।

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    M.COM-01

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    अनु म णका

    संगठन एवं ब ध (ORGANISATION AND MANAGEMENT) इकाई सं या इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई - 1 संगठन का प रचय 7—17 इकाई – 2 संगठन क वचारधारा 18—34 इकाई – 3 संगठन संरचना 35—49 इकाई – 4 संगठन के कार एवं औपचा रक व अनौपचा रक संगठन 50—73 इकाई – 5 संगठना मक यवहार 74—90 इकाई – 6 यि तगत यवहार और सीखना 91—107 इकाई – 7 अवबोध 108—120 इकाई – 8 मनोविृ त 121—129 इकाई – 9 यि तगत 130—142 इकाई - 10 ब धन णा लयाँ एवं या 143—158 इकाई - 11 नणयन 159—185 इकाई – 12 नयोजन 186—207 इकाई – 13 उदे यानुसार ब धन 208—223 इकाई – 14 स ेषण या 224—240 इकाई – 15 संघष का ब ध 241—255 इकाई – 16 नेतृ व 256—268 इकाई – 17 अ भ ेरणा 269—280 इकाई – 18 सं कृ त व ब ध 281—290 इकाई – 19 संगठना मक प रवतन / प रवतन- ब ध 291—309 इकाई – 20 संगठन वकास 310—323

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    इकाई-1: संगठन का प रचय (Introduction of Organization)

    इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 इ तहास एव ं वकास 1.3 अथ एव ंप रभाषा 1.4 मह व 1.5 संगठन के उ े य 1.6 े एव ं कृ त 1.7 अ य वषय से स ब ध 1.8 स ा त 1.9 काय 1.10 साराशं 1.11 न 1.12 उपयोगी पु तक

    1.0 उ े य : इस इकाई को अ ययन करने के बाद आप : संगठन के इ तहास एव ं वकास के बारे म जानकार ा त कर सकगे। संगठन का अथ एव ंप रभाषा जान सकगे। संगठन के मह व, े एव ं कृ त को समझ सकगे। संगठन के व भ न स ा त एव ंकाय के बारे म जानकार ा त कर सकगे।

    1.1 तावना : जब दो या दो से अ धक यि त मलकर कसी एक उ े य क ाि त के लए कायशील होत ेह तो संगठन क आव यकता पड़ती है। उ े य के अ पकाल न होने से संगठन क आव यकता म कमी नह ं आती। य द कुछ यि तय को मलकर भार वजन उठाना हो तो इस णक उ े य क पू त के लए संगठन क आव यकता होती है। कसी भी यावसा यक उप म के लए यवसाय ारंभ करने के पवू से उसको संचा लत करने के लए संगठन का नमाण कर लया जाना चा हए। बगरै संगठन के कसी भी उ े य क भावपणू ढंग से पू त संभव नह ं है। एक अ छा संगठन कसी नि य उप म को भी जीवन दान कर सकता है। एक कमजोर संगठन अ छे उ पाद को म ी म मला सकता है जब क एक अ छा संगठन िजसके पास कमजोर उ पाद है, अपने से अ छे उ पाद को बाजार से नकाल सकता है। संगठन स पणू ब ध के सचंालन का के है िजसके वारा मानवीय यास को समि वत करके उ ह

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    सह याशील बनाया जाता है। संगठन काय , साधन व स ब ध क एक औपचा रक अव था है िजसके मा यम से ब ध अपना काय स प न करता है। यह ब ध का तं एव ंशर र रचना है। संग ठत यास के वारा ह उप म क योजनाओं एव ंआव यकताओं को साकार कया जा सकता है। एक सु ढ़ संगठन यवसाय क येक सम या का उ तर है।

    1.2 इ तहास एवं वकास : यवसाय म संगठन के मह व को ए य ूका नगो के 1901 म अपनी वशाल स पि त को बेचते समय कहे गये कथन से यह प ट होता है क 'हमार सम त मु ा, महान ्काय, खाने तथा कोयले क भ या ँय द सब कुछ ले जाओ, क त ुहमारा संगठन हमारे पास छोड़ दो। कुछ ह वष म ह हम वय ंको पनु: था पत कर लगे। एक यवसा यक उप म को अपने उ े य क ाि त के लए कुशल संगठन का नमाण करना चा हए। इस कार प ट है क संगठन यि तय के काय थल पर आपसी स ब ध , भू मकाओं व पद ि थ तय का ढांचा है, िजसके अ तगत सभी यि त एक एक कृत इकाई के प म सं था के उ े य क पू त का यास करते ह।

    1.3 अथ एवं प रभाषा : मनु य के ल य क ाि त का आधार संगठन ह है। संगठन काय , साधन एव ंसंबधं क एक औपचा रक अव था है िजसके वारा ब ध अपना काय स प न करता है। जब दो या अ धक यि त मलकर कसी उ े य क ाि त के लए कायशील हो तो उ ह संगठन क आव यकता होती है। उ े य चाहे अ पकाल न हो या द घकाल न, संगठन क आव यकता म कमी नह ं आती। संगठन के व भ न तर पर नयु त अ धका रय के म य सह-स ब ध क या या क जाती है। एक यावसा यक उप म को अपने उ े य क ाि त के लए कुशल संगठन का नमाण करना चा हए य क एक कमजोर संगठन अ छे उ पाद को म ी म मला सकता है। जब दो या दो से अ धक यि त मलकर कसी ल य क पू त के लए काय करत ेह तो उनके बीच था पत संबधं एव ंअ त याओं क सरंचना को 'संगठन' कहते 'ह। प रभाषाएँ - “संगठन मलूत: यि तय का एक समूह है जो एक नेता के नदशन म सामा य उ े य क पू त हेतु सहयोग करते ह।” -- आर.सी. डे वस “एक नि चत यि तय के समूह वारा उ े य क पू त के लए कये जाने वाले काय को ह संगठन कहते ह।”-- मेकफारलै ड “संगठन सामा य हत क पू त के लए बनाया गया एक समुदाय है।”-- ले तथा रैले “संगठन आपसी संबधं का ऐसा ढाचंा है िजसके वारा उप म को एक सू म बाधंा जाता है तथा वह ढाचंा है िजसके अ तगत यि तगत यास का सम वय कया जाता है।”

    -- कू टज तथा ओडोनेल

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    “संगठन मानवीय एव ंभौ तक साधन तथा काय के बीच संबधं का के है जो एक तं के अ तजाल या ढांचे के प म बनाया जाता है।” -- हॉज तथा जानसन “ कसी काय को करने के लए कौन-कौन सी याएँ क जाय का नधारण करना एव ंउन

    याओं को यि तय के बीच वत रत करने क यव था करना ह संगठन कहलाता है।” -- उ वक

    “संगठन एक काय- व ध है िजसके वारा आव यक वभाग म यि तय या समूह वारा कये जाने वाले काय को इस कार संयोिजत कया जाता है क उनके य न को ृंखलाब करके कुशल, यवि थत, सकारा मक एव ंसमि वत बनाया जा सके।”-- ओ लवर शे डन “संगठन वह ब ध या है, िजसके वारा वभाग तथा कमचा रय के बीच म- वभाजन कया जाता है, उसके प चात ्इन इकाईय एव ंकाय को एक एक कृत तं के नमाण के लए स ब कया जाता है।”-- लूक “ कसी सामा य उ े य अथवा उ े य क ाि त के लए व श ट अंग का मै ीपणू संयोजन ह संगठन कहलाता है।”-- ो. हैने “संगठन से ता पय उस यव था से है िजसके वारा सं था के नयत ल य एव ंउ े य को ा त करने के लए नयु त यि तय म काय का आवटंन कया जाता है।” --सी.एच. नॉथकाट

    “संगठन ब ध क वह संरचना है जो अ धक कुशलतापवूक काय न पादन हेतु कुल उ तरदा य व को उ चत भाग म वभ त करता है।”-- चे “संगठन म सभी सहभा गय का सम त यवहार सि म लत होता है।” -- स आग रस “'संगठन अंशत: संरचना मक संबधं का न है तथा अशंत: मानवीय संबधं का मामला है।”

    -- नऑल एव ं ा टॅन “' कसी उप म क याओं को प रभा षत एव ंसमूह करण करने तथा उनके म य अ धकार संबधं था पत करने क या संगठन है।” -- थयो हैमन “संगठन व तुत: व भ न याओं तथा घटक के बीच का स ब ध है।”

    -- व लयम आर. ीगल

    1.4 मह व : “संगठन ब ध अ ययन का एक उ तजेक एव ंचुनौतीपणू े है।” यवसाय म ह नह ,ं बि क

    येक े म सफलता का आधार सु ढ़ संगठन एव ंसम वय यव था ह है। आज मनु य क सभी याएँ संगठन के अ दर ह होती है। संगठन के बना मानव जीवन क कोई भी

    या यवि थत प से नह ं चल सकती है। “हम संगठन म ह ज म लेते ह, श ा ा त करत ेह तथा हमम से अ धकाशं लोग संगठन म ह अपना जीवन यतीत करत ेह। संगठन के बना ब ध वसेै ह भावह न है जैसे बना आ मा के शर र।” ''संगठन इस लए मह वपणू है य क यि त अपना अ य धक समय उनम यतीत करत ेह। मानव शि त अथात ्वय क जनसं या अपने जीवन का एक- तहाई समय संगठन म यतीत करती है।''

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    ‘United States Steel Corporation’ को बेचते समय उ योगप त ए य ूका नगी ने कहा था क हमारे पास जो कुछ भी है उसको ले जाओ ले कन हमारे संगठन को हमारे पास रहने दो य क इस संगठन से म अपने आपको कुछ ह वष म था पत कर लू ंगा।

    (1) सम वय म सु वधा - कृ य तथा वभाग का समाकलन करते समय सम वय का परूा-परूा यान रखा जाना चा हए। ब ध का यह मु य काय है क वह कमचार के अलग-अलग काय , यास , हत व ि टकोण म एक उ चत सम वय था पत करे। संगठन का नमाण करत े

    समय उप म क याओं का वग करण एव ं-समूह करण कया जाता है। उप म के सभी वभाग सामा य उ े य क पू त के लए यासरत रहते ह िजसके प रणाम व प सम वय का काय सु वधाजनक हो जाता है।

    (2) अ धकार यायोजन म सु वधा - एक अ छे संगठन म येक अ धकार को अपने काय े , उ े य एव ंअ धकार का प ट ान हो जाता है। वह अपने अधीन थ को आव यक काय एव ंअ धकार स प सकता है। कुशल संगठन अ धकार के यायोजन को सुगम बनाता है। एक कुशल संगठन म एक अ धकार को यह ात होता है क उनके अधीन थ कौन-कौन यि त ह और कसे या- या काय करना है। सु ढ़ संगठन यथाथ एव ं भावपणू यायोजन को सु वधाजनक बनाता है।

    (3) टाचार क समाि त - संगठन के व भ न तर पर नर तर नयं ण का काय कया जाता है। अ छा संगठन अपने कमचा रय म वयैि तक गणु . प र म, दा य व, भावना आ द को ो सा हत करके टाचार एव ं नि यता को समा त करता है।

    (4) संचार म सु वधा - संगठन के वारा सं था म अ धकार , अधीन थ संबधं था पत हो जाते ह एव ंऔपचा रक संचार के माग का नधारण हो जाता है। िजसके कारण ऊपर से नीचे क ओर आदेश के वाह म और नीचे से ऊपर क और ' के वचार , सुझाव एव ंसम याओं के वाह म सु वधा होती है।

    (5) अ छे मानवीय संबधं को बढ़ावा - भावी संगठन संरचना का मक म समूह भावना का वकास करती है, एक साथ मलकर काय करने क ेरणा देती है तथा मानव के साथ मानवता का यवहार करने के लए े रत करती है। अ धकार-दा य व क प ट या या, कुशल संचार, यायोजन, च के अनसुार काय- वतरण, आदेश- नदश क एकता आ द घटक से े ठ

    मानवीय संबधं का वकास होता है। (6) मनोबल का वकास - व थ संगठन म कमचा रय के मनोबल म वृ होती है। कमचा रय

    को उनक यो यता के अनु प ह काय दया जाता है िजससे कमचा रय को अपने दा य व एव ंअ धकार का प ट ान होता है। अत: कमचा रय को अ छा काय करने पर शसंा एव ंखराब काय पर चेतावनी मलती है िजससे कमचा रय के मनोबल म वृ होती है।

    (7) व श ट करण को बढ़ावा - संगठन सरंचना का नमाण म वभाजन के आधार पर कया जाता है। संगठन सरंचना का मु य आधार म वभाजन होता है, िजसम येक यि त एक वशेष काय ह करता है। व श ट करण से कमचा रय क काय मता बढ़ती है तथा अ धक उ पादन का माग श त होता है। इसके प रणाम व प यि तय क कुशलता बढ़ती है।

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    कुशलता बढ़ने से उ पादन अ धक होता है तथा त इकाई लागत घटती है िजससे लोग को कम आय म अ धक व तुएँ ा त होती है एव ंजीवन तर म वृ होती है।

    (8) उप म के काय को यवि थत करना - संगठन येक यि त के लए नि चत काय, नि चत थान तथा नि चत साधन क यव था करता है, िजससे उप म के काय यवि थत प

    से चलते रहते ह। संगठन यव था को ज म देता है। संगठन का अभाव ह अ यव था को ज म देता है।

    (9) वकास को बढ़ावा - संगठन वकास का मूल मं है। उप म का वकास संगठन क कुशलता पर नभर करता है। बड़-ेबड़े उप म के वकास का इ तहास अ छे एव ंकुशल संगठन क ह कहानी है। कोई भी उप म संगठन के अभाव म वकास क आशा नह ंकर सकता है।

    (10) रचना मक वचारधारा को ो साहन - संगठन म काय करने वाले कमचार रचना मक ि टकोण रखत ेह। कमचा रय क इ छा के अनु प काय मलने पर वे उसे स प न करने

    म स म होत ेह िजससे कमचा रय को संतोष ा त होता है। अत: उनक सोचने समझने क शि त बढ़ती है फल व प रचना मक वचार को ो साहन मलता है।

    (11) यव था का नमाण - एक सं था म छोट सी गलती सम त पूजंी व नयोजन को यथ बना सकती है। अत: संगठन के वारा ह मतभेद एव ंअ नय मतताओं को उ प न होने से रोका जा सकता है।

    (12) ब धक य काय मता म वृ - कमचा रय म मधुर संबधं था पत करना, काय क आव यकता के अनु प कमचा रय क भत , काय का वै ा नक आधार पर बटंवारा आ द के वारा ब धक य काय- मता म वृ क जा सकती है।

    (13) साधन का अनकूुलतम उपयोग - कमचा रय क इ छा के अनु प काय मलने पर उसे वे भल -भां त स प न करने म स म होते ह तथा उ चत सम वय के वारा काय के दोहराव व अप यय को समा त कया जा सकता है िजसके कारण साधन का अनकूुलतम उपयोग होता है।

    (14) यि तगत यो यताओं के मापन का आधार - जब कमचा रय को कायभार स प दया जाता है तो कमचा रय को अपने दा य व का बोध हो जाता है अत: यह आसानी से पता कया जा सकता है क कमचार ने स पे गये काय को कस सीमा तक परूा कया है िजसके फल व प कमचार क यि तगत यो यता एव ं मता का सह मापन हो जाता है।

    (15) सामू हक यास क भावशीलता - संग ठत यास के मा यम से ह उ े य क पू त क जा सकती है। इसके मा यम से ह यि तगत यास का एक करण कया जाता है।

    (16) नयं ण म सु वधा - काय , अ धकार एव ंदा य व के नि चत होने के कारण संगठन के व भ न तर पर अनाव यक ह त ेप क आव यकता नह ंहोती है तथा उ च ब धक को केवल मह वपणू नयं ण के पर यान देने क आव यकता होती है।

    (17) मानवीय यास का समु चत उपयोग - व श ट करण के मा यम से जब का मक को अपनी यो यता, अनभुव एव ं च के अनसुार काय मल जाता है तो वे स पे गये कृ य का अपनी यो यता, कुशलता एव ंअनभुव का परूा उपयोग करके ठ क ढंग से न पादन करत ेह। इस

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    कार सु ढ़ संगठन से “सह यि त को सह काय” दान करने से उनके यास का समु चत उपयोग स भव होता है और समय, म एव ंधन का दु पयोग नह ं होता।

    (18) तकनीक सधुार का समु चत उपयोग - इस वै ा नक यगु म शोध एव ंअनसुधंान के कारण औ यो गक जगत म आये दन प रवतन होत ेरहते ह। इन प रवतन , सुधार एव ं वक सत नवीन तकनीक क यिु त यनूतम लागत पर अ धकतम उ पादन ा त करने के लए आव यक हो जाती है। भावी संगठन वारा ह इन नवीन सधुार का लाभ उठाया जा सकता है।

    1.5 संगठन के उ े य : संगठन णाल व भ न संघटक से न मत होता है। इसक संरचना म व भ न नवेश का योगदान होता है, िज ह संगठन के उ े य कहा जाता है।

    (1) म वभाजन - यि तय एव ं वभाग के वारा स प न क जाने वाल याओं का उ चत नधारण, प ट करण एव ंपथृ करण कया जाना चा हए। त प चात ्काय का वतरण यि त क च एव ंयो यता के आधार पर कया जाना चा हए। इससे काय न पादन म दोहराव समा त होता है तथा यास भावपणू बन जाते ह।

    (2) मानव समूह - मानव समहू संगठन का सवा धक मह वपणू उ े य है। याओं के समूह करण व स ता के वतरण म यि तय क सीमाओं व मताओं का पणू वचार कया जाना चा हए।

    (3) भौ तक साधन - संगठन एक सीमा तक भौ तक ससंाधन - पूँजी, मशीन, यं , साम ी, भू म आ द का संकलन एव ंसंयोजन भी है। यि तय को उनके काय न पादन म सहायता पहु ँचात ेह।

    (4) वातावरण - नयोजन क भाँ त येक संगठन सरंचना का एक आ थक, राजनै तक, सामािजक एव ंनै तक वातावरण होता है जो काय न पादन म सहायक होता है।

    (5) अ धकार स ता - अ धकार स ता अ य यि तय को नदश देने व उनका पालन करवाने हेत ुबा य करवाने क शि त होती है। कमचा रय को ा त होने वाल स ता संगठन म उनक ि थ त, वधैा नक नयम , अनभुव, ान एव ं थाओं पर नभर करती है।

    (6) संचार यव था - संगठन संचार यव था को सु यवि थत ढंग से चलाने का काय करता है य क यह संगठन म र त वाह के समान है जो इसके सम त अंग को ग त दान करता

    है। (7) संबधं का ढाचंा - काय के वतरण से कमचा रय के म य व भ न भू मकाओं व ि थ तय

    का नमाण होता है जो उ ह पर पर स बि धत करती है। सगंठन काय स ब ध का जाल एव ंढांचा है।

    1.6 े एवं कृ त : (1) यह एक ग तशील या मक या है। (2) यह सहकार यास क एक यव था है। (3) यह पर परवाद चल का समूह है।

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    (4) यह ब ध का काय, साधन एव ंशर र रचना है। (5) इसम सद य के अ धकार व काय े क सीमा प ट होती है। (6) संगठन यां क नह ं है, न ह एक संकलन है। यह एक मानवीय एव ंजै वक यव था

    भी है। (7) संगठन यि तय का समूह है। (8) इसम सद य के कायकार स ब ध नि चत होते ह। (9) यह एक ब धक य या है जो च य है, न क एक दै नक घ टत होने वाल या। (10) यह समूह एक कायकार नेतृ व के अ तगत काय करता है। (11) आधु नक संगठन सामािजक स ब ध क णाल है। (12) इसम सद य क पद-ि थ तया,ँ भू मकाएँ एव ंऔपचा रक स ता भी नि चत होती है।

    1.7 अ य वषय के संबंध म (संगठन क या) : कसी भी उप म के संगठन का नमाण करने के लए जो आव यक कदम उठाये जात ेह, वे न न कार से ह -

    (1) उ े य का नधारण करना - संगठन या का थम कदम सं था के उ े य का नधारण करना है। सं था के उ े य के नधारण के अभाव म संगठन का कोई मह व नह ं रहता। वा तव म संगठन का अपने आप म कोई उ े य नह ं होता, यह तो उ े य क ाि त का साधन है।

    (2) काय को प रभा षत करना - काय को प रभा षत करते समय सं था वारा कये जाने वाले सम त काय को प रभा षत कया जाता है। काय को प रभा षत करते समय सं था के उ े य को यान म रखना आव यक होता है। येक काय को उपकाय म वभािजत कया जाता है िजससे क उ ह कमचा रय म बाँटा जा सके और उनका दा य व नधा रत कया जा सके।

    (3) कमचा रय के म य काय का वभाजन - याओं को ेणीब करने के उपरा त अगला कदम है, काय का कमचा रय के म य वभाजन करना। काय वभाजन म कमचा रय क च, शार रक मता, शै णक यो यता, काय अनभुव आ द को यान म रखना आव यक होता है।

    (4) सम वय - संगठन संरचना क अि तम या है। व भ न वभाग के बीच सम वय था पत करना, िजससे क उप म के सम त वभाग एकजुट होकर सं था के उ े य क ाि त म य नशील हो सक। व भ न वभाग के बीच स ब ध को प रभा षत करना ह संगठन या

    क अि तम कड़ी होती है। (5) याओं को ेणीब करना - समान कृ त अथवा स बि धत याओं को ेणीब कया

    जाता है। याओं के ेणीब करने से वभाग तथा उप वभाग का नमाण होता है। (6) यु प न उ े य , नी तय तथा योजनाओं का नमाण (7) याओं का उपल ध मानवीय एव ंभौ तक साधन क ि ट से ेणीब करना िजससे क

    साधन , का अ धकतम उपयोग हो सके।

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    (8) याओं क व भ न े णय का पर पर गठब धन। इस कार का गठब धन तजीत तथा ऊ व धर हो सकता है।

    (9) अ धकार का यायोजन - कमचा रय के म य काय वतरण वारा उ ह काय स पादन व उ तरदा य व स प दया जाता है। उ तरदा य व क पू त के लए उ तरदा य व के अनु प अ धकार भी कमचा रय को स पे जाने चा हए।

    1.8 स ा त : संगठन के स ा त न न ह :

    (1) उ े य का स ा त - उ े य के बना संगठन का नमाण नह ं कया जा सकता है, अत: संगठन के येक भाग का उ े य प ट होना चा हए। संगठन म कायरत सभी यि तय को संगठन के उ े य प ट होने चा हए। उ े य नि चत न होने पर मानव एव ंमानव साम ी का कुशल एव ं भावी उपयोग नह ं कया जा सकता है।

    (2) सम वय का स ा त - सम वय संगठन के सम त स ा त को अ भ य त करता है। संगठन का उ े य ह उप म के व भ न वभाग पर कये जाने वाले काय म सम वय था पत करता है।

    (3) व श ट करण का स ा त - यि त क इ छा एव ंकाय मता के अनसुार ह काय स पा जाना चा हए िजसको करने म वह स म है। तो वह उस काय म द ता ा त करता है। इस स ा त के पालन से वभाग एव ंकमचा रय क काय मता म भी वृ होती है।

    (4) अ धकार का स ा त - सव च स ता से अ धकार के ह ता तरण के लए पद ेणी म का नि चत नधारण होना चा हए। येक काय के संबधं म अ धकार का उ चत नधारण कया जाना चा हए।

    (5) उ तरदा य व का स ा त - अ धकार एव ं दा य व साथ-साथ होने चा हए। अधीन थ कमचा रय के वारा कये गये काय के लए उ च अ धका रय का पणू दा य व होता है।

    (6) या या का स ा त - येक संगठन म हर एक क ि थ त ल खत म प टत: नधा रत क जानी चा हए। येक कमचार के कत य, दा य व, अ धकार व संबधं क प ट या या क जानी चा हए।

    (7) आदेश क एकता का स ा त - संगठन म कायरत यि त एक समय म एक ह अ धकार क सेवा कर सकता है अत: एक समय म एक ह अ धकार से आदेश ा त कर सकता है। एक से अ धक अ धका रय से आदेश ा त होने पर उसक काय च पर तकूल भाव पड़ सकता है।

    (8) अनु पता का स ा त - य द यि त के दा य व अ धकार क तलुना म अ धक है तो वह उ ह परूा नह ं कर सकता है तथा यि त के अ धकार दा य व क तुलना म अ धक है तो वह उनका दु पयोग करने क को शश करेगा। अत: दोन ह ि थ तयाँ संगठन के लए अ छ नह ं है।

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    (9) नयं ण के व तार का े - नयं ण के े से आशय एक अ धकार वारा व भ न अधीन थ क याओं पर नयं ण बनाये रखने से है। कोई भी अ धकार य प से पाचं या छ: कमचा रय क याओं पर नयं ण कर सकता है।

    (10) संतुलन का स ा त - यह स ा त संगठन क व भ न इकाईय , नयं ण के व तार एव ंआदेश क ृंखला, रेखा व कमचार ा प आ द म उ चत सतंलुन बनाये रखने पर बल देता है।

    (11) नर तरता का स ा त - संगठन सरंचना म पया त लोच होनी चा हए िजससे क संगठन संरचना म आव यकता पड़ने पर इसका पनुगठन कया जा सके। संगठन एक या है जो क नर तर चलती रहती है। इस लए संगठन आव यकताओं के अनु प होना चा हए।

    (12) अ धकार यायोजन का स ा त - अ धकार का यायोजन संगठन के न न तर तक कया जाना चा हए। य द उस तर पर काय करने वाला यि त नणय के प रणाम से भा वत होता है। उ च ब धक को मह वपणू नणय लेने एव ंभार नयोजन के लए पया त समय मल जाता है।

    (13) सरलता का स ा त - संगठन संरचना सरल से सरल होनी चा हए िजससे सेवारत सभी यि त आसानी से समझ सक तथा न पादन म अ धक लागत न आये व क ठनाइय को कम कया जा सके।

    (14) लोचशीलता का स ा त - संगठन के लोचशील होने से, बना भार फेरबदल के ह सं था म नवीन तकनीक को लाग ूकरके काय कुशलता म वृ क जा सकती है। अत: संगठन सरंचना लोचशील होनी चा हए। य द संगठन संरचना म भावी आव यकताओं के अनसुार समायोजन क यव था नह ं होगी तो संगठन अ भावशील हो जायेगा।

    (15) यनूतम स ता तर का स ा त - ठोस एव ंशी नणयन के लए संगठन संरचना म स ता तर को यनूतम कया जाना चा हए। स ता तर क नदश ृंखला ल बी हो जाती है तो न न तर पर कायरत यि त क नदश ा त होने म वल ब होने के साथ-साथ संदेश क शु ता पर भी वपर त भाव पड़ता है।

    (16) अनु पता का स ा त - समान काय करने वाले कमचा रय के अ धकार एव ंदा य व म भी एक पता होनी चा हए िजसके कारण अ धकार के टकराव समा त हो जायगे तथा न पादन म कुशलता आ जायेगी।

    (17) पदा धका रय से स पक का स ा त - एक उप म म संगठन के व भ न तर पर ब धक म ऊपर से नीचे क ओर व र ठता तथा अधीनता के म म पर पर स पक होना चा हए।

    (18) नि चतता का स ा त - संगठन के इस स ा त के अनसुार सं था म कायरत यि त क येक या यनूतम यास वारा अ धकतम कायकुशलता से नधा रत ल य क ाि त

    म योगदान दान करने वाल होनी चा हए।

    1.9 काय : (1) सम वय - आदश संगठन व भ न वभाग , कमचा रय एव ंअ धका रय क याओं म

    भावशाल सम वय बनाये रखने म मह वपणू भू मका अदा करता है। सं था के उ े य क

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    ाि त के लए एक समहू के यास क मब या या करने, काय म एक पता लाने के लए सम वय आव यक है।

    (2) सरलता - संगठन संरचना इतनी सरल बनानी जानी चा हए िजससे क उसे येक यि त वारा आसानी से समझा जा सके। ज टल सरंचना संगठन म दबाव उ प न करती है एव ं

    कमचा रय को ल य से वच लत करती है। (3) प टता - यह संगठन म कायरत सभी कमचा रय एव ंअ धका रय क ि थ त प ट करता

    है अथात ्उसे अपने काय , अ धकार , दा य व व संबधं का प ट ान होना चा हए िजसके कारण मतभेद, श थलता आ द दोष दरू हो जाते है।

    (4) था य व - एक आदश संगठन वह माना जाता है जो द घकाल तक फम के उ े य को ा त करने क मता रखता है। साथ ह िजसम व भ न उप व व प रव तत दशाओं के साथ समायोिजत होने क मता होती है।

    (5) उ े य के त सजगता - संगठन का उप म के उ े य का पणू ान होना चा हए तथा इनक ाि त के लए उसे य नशील होना चा हए। साथ ह संगठन के उ े य क या या भी क

    जानी चा हए। (6) संतुलन - एक अ छे संगठन वारा येक इकाई साधन एव ंल य स तु लत कये जा सकत े

    ह। इसे 'संगठना मक सा य कहते है। (7) यास क मत य यता - एक संगठन ढांचे को वे सम याएँ ह अ छा बनाती है जो यह उ प न

    नह ं करता है। एक अ छे संगठन म ब धक का समय एव ं य न आ त रक संघष एव ंमतभेद म यय उ प न नह ं होते ह।

    (8) भावी नणयन - एक सु ढ़ संगठन म सहभा गता के आधार पर सह सम याओं पर नणय लये जाते ह तथा नणयन क या कायवाह धान होती है।

    (9) काया वयन म सु वधा - एक अ छा संगठन काय न पादन म सहायक होता है। सव तम संगठन वह है जो सामा य यि तय को असामा य काय करने म सहायता करता है।

    1.10 सारांश : इस कार हम यह कह सकते ह क संगठन एक या है िजसम नि चत उ े य क ाि त के लए उप म क याओं का नधारण एव ंवग कर का कया जाता है तथा उन याओं को करने का दा य व व भ न ब धक को स पा जाता है तथा ब धक को अपने अधीन

    याओं को करने वाले यि तय पर नयं ण करने का अ धकार होता है। उप म क सभी याओं तथा यि तय के म य भावपणू सामंज य था पत कया जाता है।

    1.11 न : (1) संगठन क प रभाषा द िजये तथा संगठन के मह व बताइये। (2) संगठन क या प ट क िजए। (3) संगठन का अथ समझाते हु ए संगठन के स ा त का वणन क िजए। (4) संगठन का अथ समझाते हु ए इसके कार का वणन क िजए।

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    (5) ट पणी क िजए - (i) रेखा तथा वशेष संगठन (ii) या मक संगठन

    1.12 उपयोगी पु तक : 1. डॉ. एम.डी. अ वाल ( ब ध शा ) 2. डॉ. आर.एल. नौलखा ( ब ध)

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    इकाई-2: संगठन क वचारधारा (Theories of Organization)

    इकाई क परेखा : 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 इ तहास एव ं वकास 2.3 अथ एव ंप रभाषा 2.4 े एव ं कृ त 2.5 वचारधाराओं के कार 2.6 अ तर 2.7 साराशं 2.8 न 2.9 उपयोगी पु तक

    2.0 उ े य : इस इकाई को अ ययन करने के बाद आप : संगठन क वचारधारा के इ तहास एव ं वकास के बारे म जानकार ा त कर सकगे। संगठन क वचारधारा का अथ एव ंप रभाषा समझ सकगे। संगठन क आधु नक एव ंपर परावाद वचारधारा के अ तर को जान सकगे। संगठन क वचारधारा के े एव ं कृ त का वणन कर सकगे। संगठन क वचारधारा के व भ न कार एव ंइसका अ य वषय से स ब ध को जान

    सकगे।

    2.1 तावना अना दकाल से ह मानव संगठन का नमाण करता रहा है। क तु संगठन के नमाण का ढंग, उनका वकास म, उनके स ा त, संगठन म होने वाले प रवतन, संगठन यवहार आ द से स बि धत कई न संगठन क वचारधारा से जुड़े हु ए ह। ब धक संगठन म ऐसे स ा त को लाग ूकरते ह िजससे कमचा रय को अ धक स तुि ट दान क जा सके तथा संगठन के सचंालन को भावी बनाया जा सके। ब धक संगठन का सजृन करते ह, संगठन म काय करत ेह, संगठन को दशा देते ह तथा समय क आव यकता के अनु प उनम प रवतन भी करते ह। ब धक का उ े य संगठन क काय- णाल को भावी बना कर संगठन के ल य को ा त करना होता है। संगठन क वचारधारा का वकास मक प से हुआ है। ब ध ान क वृ तथा समाज म होने वाले प रवतन के प रणाम व प संगठन क वचारधाराओं

    का वकास म आगे बढ़ता रहा है। नयी-नयी सम याओं के हल खोजे जात ेह। जाचँ पड़ताल,

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    अवलोकन एव ंशोध के स ा त म सधुार कये जाते ह। इस कार वचारधाराओं म नर तर प रवतन एव ंसंशोधन होत ेरहते ह।

    2.2 इ तहास एवं वकास : संगठन का अि त व मानव समाज म अना दकाल से रहा है। ले कन इस वषय म क संगठन का नमाण कस कार से होता है, उनके वकास का म या है, उनम प रवतन कस कार आता है तथा संगठन के सद य कस कार आचरण करत ेह। उनका यवहार कन- कन बात से भा वत होता है आ द अनेक मह वपणू वषय एव ं न ह िजन पर स ा त का यान गत 40-50 वष म ह आकृ ट हो पाया है। संगठन क वचारधारा का योजन इस कार के न का तकसंगत एव ंमा य उ तर खोजना होता है। ब धक इस कार क काय दशाओं का नमाण तथा उन पर नयं ण रखना चाहेगा िजससे उ े य क अ धका धक ाि त हो सके तथा संगठन के येक तर पर एव ं येक वभाग म कायरत का मक संगठन क ग त व धय म ह सा ले सके। उसे यह जानना भी आव यक होता है क व भ न प रवत घटक, उसक भावशीलता को कस कार भा वत करगे जैसे उदाहरण के लए संगठन के प रमाण म

    वृ होती है तो वह संगठन को भावशीलता को कस कार भा वत करती है। उसे मह वपणू प रवत घटक को प हचानने क आव यकता होती है। इस ि ट से ब धक को संगठन क वचारधाराओं का ान होना आव यक है।

    2.3 अथ एवं प रभाषा : संगठन क वचारधारा का मक वकास होता है। वचारधारा का आर भ व भ न घटक के म य आकि मक स ब ध तथा उनके म य कारण एव ं भाव के प ट करण से होता है। आर भ म यह प ट करण, पवूानमुान अथवा भ व य कथन के प म होता है। अनभुव एव ंपर ण के वारा उ त कार के प ट करण का ववेचन कया जाता है, तकसंगतता देखी जाती है तथा स यता जाचँी जाती है। जसेै-जैसे ान के भ डार म अ भवृ होती है तथा सामािजक प रवतन को महससू कया जाता है, वसेै-वसेै संगठन क वचारधाराओं का वकास म आगे बढ़ता जाता है। जाँच-पड़ताल एव ंशोध के इस म म वचारधाराओं म नर तर

    प रवतन एव ं संशोधन होता रहता है। उदाहरण के लए पर परावाद वचारधाराएँ, व श ट करण तथा अ धकार के यायोजन जसेै आधार- त भ पर टक हु ई थी।ं त प चात ्संचार यव था के मह व को पहचाना गया, जब क आधु नक वचारधारा प त णाल पर आधा रत है। “संगठन वचारधारा से आशय अ तसबं धत न कष , प रभाषाओं एव ं स ा त के एक समूह से है जो कसी ल य नद शत एव ं त प या के अ तगत अ त यवहार कर रहे यि तय , समूह तथा उप-समूह के यवहार का एक यवि थत दशन तुत करता है।”

    -- हेनर एल. तोसी “संगठन वचारधारा, संगठन क वचारधारा, काय णाल एव ं न पादन तथा उनम कायशील समूह एव ं यि तय के यवहार का अ ययन है।”

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    2.4 े एवं कृ त : आज मानव जीवन के सभी े म संगठन का अ धक योगदान होने के कारण व भ न े पर यान देना आव यक है -

    (1) उप म के काय का यवि थत होना - आज के बड़े औ यो गक नगम के यगु म जहाँ हजार लोग एक साथ काय करत ेह, वहाँ उप म के काय म संगठन के बगरै यव था नह ं हो सकती है। संगठन येक यि त के लए नि चत काय, नि चत थान तथा नि चत साधन क यव था करता है, िजससे उप म के काय यवि थत प से चलते रहते है।

    (2) उप म क व भ न याओं म सामंज य एव ंसंतलुन - संगठन का नमाण करने से पवू संगठन के उ े य का नधारण कया जाता है। सम त याओं को प रभा षत करके उनका वग करण एव ं े णयन कया जाता है। इससे संगठन क व भ न याओं म सतंुलन था पत कया जाता है तथा सभी याओं को उपयु त मह व दया जाता है। संगठन के नमाण के बना काय ार भ करने पर कुछ याओं को भलूने तथा कुछ को अनाव यक प से अ धक मह व दान करने क संभावना बनी रहती है।

    (3) सम वय म सु वधा - संगठन का नमाण करते समय उप म क याओं का वग करण एव ंसमूह करण कया जाता है। वग करण याओं के समूह करण से िजन वभाग का नमाण होता है उनके म य पार प रक स ब ध क थापना क जाती है।

    (4) मनोबल का वकास - कुशल संगठन म येक कमचार को इसक जानकार होती है क उसके या दा य व है? तथा उन दा य व को परूा करने के लए उसे या अ धकार ा त है? दा य व

    एव ंअ धकार क प ट या या के कारण कमचार को संगठन म अपने अि त व का बोध होता है तथा वह सदैव उ च कुशलता के लए य नशील रहता है।

    (5) टाचार पर रोक - कुशल संगठन म सभी कमचा रय के अ धकार एव ंदा य व क प ट या या होती है। संगठन के व भ न तर पर नर तर नयं ण काय कया जाता है। येक यि त को यो यतानसुार काय एव ंपरु कार दया जाता है। कमचा रय का मनोबल ऊंचा रहता है। ऐसी ि थ त म कमचार अपना काय ईमानदार तथा न ठा के साथ करते रहत ेह, िजससे

    टाचार पर रोक लगी रहती है। उपरो त सभी त य से संगठन के े एव ं कृ त का पता चलता है। संगठन ह वह तं है जो उप म के सभी कमचा रय को नि चत उ े य क ाि त के लए दान करता है। संगठन ह वह मा यम है िजसके वारा सं था के कमचार नि चत ल य क ओर अ सर होत ेह।

    2.5 वचारधाराओं के कार संगठन क वचारधारा का वकास पछले सात-आठ दशक म ह हुआ है। ब धक य ान के वकास के साथ-साथ इन वचारधाराओं क संरचना, या, मू य व स ा त म भी बदलाव आये ह कसी भी वचारधारा के उ गम, वकास तथा स ा त के तपादन म उस वचारधारा के वतक एव ंअनयुायी वचारक के ि टकोण का वशेष मह व रहा है। येक वचारधारा यि तय क भ न- भ न आव यकताओं व भ न- भ न मा यताओं पर आधा रत रह है। क तु वे सभी संगठन क काय णाल को भावी बनाने पर जोर देती है। संगठन

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    क कृ त, सामािजक मू य व बदलते हुए वातावरण के आधार पर इ ह मुख प से न न े णय म वभािजत कया जा सकता है-

    (1) पर परावाद वचारधारा (2) नवीन पर परावाद वचारधारा (3) आधु नक वचारधारा (4) अ य वचारधाराय

    (1) संगठन क पर परावाद वचारधारा - इस वचारधारा के मखु तपादक मै स वेबर एव ंहेनर फेयोल माने जाते है। पर परागत वचारधारा संगठन को कसी उप म के उ े य एव ंल य क ाि त का एक साधन मानती है। यह वचारधारा संगठन को काय नधारण, साधन के एक ीकरण तथा अ धकार व दा य व के वभाजन क एक ' या तथा एक 'संयोजन जो संगठन या का ह प रणाम होता है, के प म वीकार करती है। यह वचारधारा संगठन को एक 'औपचा रक यव था एक मशीन, एक उपकरण मानती है। पर परावाद वचारधारा के त व - संगठन क पर परावाद वचारधारा औपचा रक संगठन क संरचना का अ ययन करती है। इस वचारधारा के मु य त व न न ह - 1. म वभाजन एव ं व श ट करण - इसम संगठन के सम त काय का व श ट करण के

    स ा त के आधार पर वभाजन कर दया जाता है। येक कमचार का काय एक व श ट या होता है।

    2. औपचा रक संरचना - संगठन म पद , कायि थ तय भू मकाओं, काय कृ य आ द क एक मा पत सरंचना होती है िजसम उप म के उ े य को कुशलतापवूक ा त कया जा सके।

    3. उ े य - पर परागत संगठन के उ े य को प ट प से प रभा षत कया जाता है। येक पद एव ंकाय के ल य क भी या या क जाती है।

    4. सौपा नक यव था - संगठन का ढाँचा, पद , दा य व , अ धकार के व भ न तर म बँटा होता है। आदेश, स ता एव ंउ तरदा य व का वाह ऊपर से नीचे तक रेखाब होता है।

    5. नयं ण का े - इसके अनसुार येक ब धक के नयं ण का एक नि चत े होता है। यह सकं पना बताती है क एक ब धक कतने अधीन थ के काय का भावशाल ढंग से नर ण कर सकता है।

    6. अ य ल ण - ये न न ह - (1) यह काय न पादन हेतु यव था, अनशुासन, मौ क रेणा पर बल देती है। (2) यह पिं त एव ंकमचार संगठन सरंचना पर बल देती है। (3) यह आव यक य प से के यकरण पर जोर देती है। (4) यह वचारधारा लेखांकन मॉडल पर न मत हु ई है। (5) इसक संगठन सरंचना म यि त क तलुना म काय पर अ धक बल दया जाता है। (6) यह वचारधारा कुछ नि चत स ा त का पालन करती है।

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    (7) इसके उपकरण, याएँ, साधन आ द मा पत होते ह। (8) यह यास के सम वय पर आधा रत है। (9) यह मानवीय यवहार क ववेकशीलता म व वास करती है। (10) यह स ता तथा दा य व के म य समानता पर जोर देती है। (11) यह कमचार के था य व, नयं ण 'तथा गल तय क खोज एव ंसधुार पर वशेष बल

    देती है। संगठन क पर परागत वचारधारा क तीन मुख धाराएँ रह ह – नौकरशाह , वै ा नक ब ध तथा शास नक ब ध। पर परावाद वचारधारा का मू याकंन - यह वचारधारा आधु नक यगु म भी अ य त मह व रखती है। बड़-ेबड़े उप म क संगठन सरंचना इसी वचारधारा के स ा त पर आधा रत है। इस वचारधारा के मुख गणु न नां कत ह - 1. यह कमचा रय को मौ क लाभ के आधार पर उ े रत करती है। 2. यह संगठन म कमचा रय क भू मकाओं, काय , अ धकार व दा य व के म य म

    एव ंसंघष दरू करके इनको प ट प से प रभा षत करती है। 3. यह उ पादन, काय एव ंकायकुशलता का मह वपणू आधार तुत करती है। 4. यह उ पादकता बढ़ाने म सहायक होती है। 5. यह संगठन म न प ता, नि चतता, ववेकशीलता, था य व, व श ट करण,

    पवूानमुान मता जातं आ द को ो सा हत करती है। 6. यह काय को तकसंगत ढंग से तथा नयम के अनसुार करने पर बल देती है। 7. यह यव था एव ंकाय पर नयं ण रखती है। दोष व आलोचना - संगठन क पर परावाद वचारधारा क कई ब ध वचारक वारा आलोचना क गई है। यह आलोचना न न दोष पर आधा रत है - 1. इस वचारधारा को अपनाने वाले संगठन म कायकुशलता क लागत बहु त ऊँची बठैती

    है। 2. इसम ब धक के यवहार का ढंग पणूत: अवयैि तक तानाशाह एव ंसा ाि यक होता

    है। उनका यवहार यां क एव ं खा होता है। 3. यह संगठन के भाग , अंग तथा पथृक् याओं पर बल देती है तथा उनके अ तस ब ध

    को भलुा देती है। 4. यह मानवीय पहलओंु क उपे ा करती है। 5. इस वचारधारा के कई स ा त दोषपणू है। इसके स ा त म सावभौ मकता का अभाव

    है तथा वे पया त शोध पर आधा रत नह ं है। आदेश क एकता, सौपा नक-काया मक या का स ा त, पदानु म स ा त आ द अ यावहा रक स हो रहे ह।

    6. यह बहु त यादा ववरणा मक, औपचा रक, यां क तथा सतह है। 7. यह बदं णाल मा यताओं पर आधा रत है।

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    8. इसम उ च ब धक न न तर पर काय करने वाले कमचा रय का यान नह ं रख पाते ह।

    9. यह भू मकाओं, स ता, दा य व व अ य सरंचना के संबधं म अ त सरल ि टकोण रखती है।

    10. इसम संगठन क औपचा रक संरचना लोचह न एव ंकठोर होती है, िजससे नये प रवतन के समायोजन म बाधा पड़ती है।

    11. यह वचारधारा कमचा रय क सामािजक एव ंमनोवै ा नक आव यकताओं क उपे ा करती है। उ ह केवल मु ा से े रत मानती है।

    12. इस वचारधारा म समाजशा तथा मनो व ान जसेै यवहारवाद व ान को कोई थान दान नह ं कया गया है। इसका मनोवै ा नक समथन शू य है।

    13. यह संगठन म नौकरशाह , असुर ाओं, रोगा मक ि टकोण को ो सा हत करती है। 14. यह अ तसंगठना मक संघष जसेै मह वपणू वषय क उपे ा करती है। 15. यह संगठन के बारे म जड़ ि टकोण अपनाती है। अत: यह तेजी से बदलत ेहु ए वातावरण

    म यावहा रक स होती है। यह बा य वातावरण क उपे ा करती है। 16. यह अनौपचा रक काय-समहू क उपे ा करती है।

    (2) संगठन क नवीन पर परावाद वचारधारा - 1930 के लगभग ब ध जगत म मानवीय स ब ध क वचारधारा का सू पात हुआ। इ टन मेयो तथा उनके सहयो गय ने वै टन इलैि क क पनी के हॉ थान संय म कये गये पर ण के न कष तुत कये। इन पर ण के फल व प 'संगठन' स ब धी ान म एक नई ाि त उ प न हु ई। कायकुशलता तथा उ पादकता बढ़ाने के लए अब तक पर परावाद संगठन म भौ तक एव ंयां क घटक पर यान दया जा रहा था। क तु हॉ थान योग ने यह स कया क संगठन म मानवीय त व ह उ पादकता वृ का मुख आधार होता है। काय- थल पर मानवीय स ब ध पर यान देकर उ पादन म ाि त लायी जा सकती है। इस कार संगठन म मानवीय त व, मानवीय स ब ध तथा मानवीय यवहार के आ वभाव के साथ ह संगठन क नवीन पर परावाद वचारधारा का ज म हुआ। यह वचारधारा संगठन के मानवीय प को उजागर करती है। यह वचारधारा संगठन म कमचा रय क सामािजक व मनोवै ा नक आव यकताओं क संतुि ट पर बल देती है। नवीन पर परावाद वचारधारा क मा यताय - संगठन क नवीन पर परावाद वचारधारा न न ल खत त व पर आधा रत है- 1. पर परावाद वचारधारा के आधार- त भ म सधुार - नई वचारधारा ने पर परावाद

    वचारधारा के कई स ा त क क मय को उजागर कया तथा उनम सुधार का माग श त कया। उदाहरण के लए नवीन वचारक ने व श ट करण के कारण संगठन म

    कमचा रय म उ प न होने वाले पथृ करण, एकांगी वकास तथा एकरसता क ओर यान आकृ ट कया। सौपा नक स ा त, के यकरण, नयं ण के े के कारण मानवीय स ब ध पर पड़ने वाले दु भाव को प ट कया। नवीन वचारक ने औपचा रक संगठन क लोचह नता व यां कता के कारण उ प न सम याओं जैसे रेखा एव ं वशेष

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    कमचा रय के बीच अ त द ॣ, का मक का अपणू वकास, समूह वचार, सजृना मकता का हनन, वकास आ द क ओर पर परावा दय का यान आक षत कया।

    2. अनौपचा रक संगठन - पर परावा दय का ि टकोण औपचा रक संगठन तक ह सी मत था। नवीन पर परावा दय ने प ट कया क काय ि थ तय म अनौपचा रक समूह का नमाण एक वाभा वक बात है। अत: संगठन संरचना म इन अनौपचा रक समहू क भू मका को मा यता दान क जानी चा हए। ये समूह संगठन पर सामािजक नयं ण रखते ह तथा संगठन क भावशीलता को बढ़ाने म सहायक हो सकते ह। ब धक औपचा रक संगठन तथा अनौपचा रक समूह के अ त यवहार क उपे ा नह ंकर सकता है। नवीन पर परावाद वचारधारा ने अनौपचा रक समूह क याशीलता को वीकार कर संगठन वचारधारा को एक नया आयाम दया है।

    3. सामािजक मनु य क अवधारणा - यह वचारधारा मानती है क संगठन म कायरत कमचार केवल आ थक मनु य ह नह ं, वरन ्सामािजक मनु य भी ह। वे मु ा के अ त र त सामािजक स ब ध , सहयोग, सामािजक, समूह सद यता आ द से भी उ पे त होते ह।

    4. उ पादकता एक सामािजक घटना भी - इस वचारधारा के अनसुार संगठन क उ पादन मता पर भौ तक वातावरण के साथ-साथ सामािजक त व , जैसे मनोबल, संतुि ट आ द

    का भी गहन भाव पड़ता है। 5. अ य त व एव ंमा यताएँ - (1) इस वचारधारा के अनसुार संगठन एक सामािजक णाल है, एक सामािजक इकाई

    है। (2) यह वचारधारा मानती है क संगठन म यि त सहयोग, समहू त ठा से भी सचंा लत

    होते ह। (3) संगठन के भावी संचालन के लए तकनीक कौशल ह नह ,ं वरन ्सामािजक कौशल

    आव यक होता है। (4) इसके अनसुार काय एव ंसामू हक या है। (5) यह वचारधारा मानवो मखुी है, इसम काय नह ं यि त ह संगठन के आधार है। (6) यह संगठना मक उ े य तथा वयैि तक ल य के एक करण पर बल देती है। (7) यह मानती है क यि त अ त नभर है तथा उसके यवहार को सामािजक एव ं

    मनोवै ा नक आयाम से देखा जाना चा हए। (8) यि त व वध कार से उ े रत होता है तथा वह अपनी व भ न कार क

    आव यकताओं क स तुि ट के लए काय करता है। (9) संगठन के भावी सचंालन के लए वमाग संचार, दल य भावना, सहभा गता

    आव यक होती है। गणु - (1) यह वचारधारा अ धक यथाथवाद है।

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    (2) यह काय स तुि ट, मनोबल एव ंउ पादकता म वृ करती है। (3) यह ाथ मक काय समूह , सामािजक अ त यवहार को मह व देकर यि त क ग रमा

    को ति ठत करती है। (4) यह संगठन को यवहारवाद आयाम दान करती है। (5) यह अ त वषयक ि टकोण को ो सा हत करती है। (6) यह ल बवत ्संगठन सरंचना के थान पर समतल संगठन ढाँचे को था पत करती

    है। (7) यह संगठन वचारधारा मेक ेगर क वाई मा यताओं के अनकूुल है। (8) सह संगठन संरचना म स ता के वके करण को ो सा हत करती है। (9) यह वचारधारा उदार पयवे ण, आ म- वकास, भावनाओं के तक को बढ़ावा देती है। दोष - (1) यह वचारधारा अ मता, अ पकाल न प र े य तथा मानवीय यवहार के व भ न

    पहलुओं म एक करण के अभाव जैसे दोष से सत है। (2) कुछ आलोचक के अनसुार इस वचारधारा म मानवीय स ब ध का उपयोग यि तय

    को कठपतु लय क भाँ त नचाने के लए कया जाता है। (3) कुछ व वान के अनसुार इस वचारधारा क कई मा यताय वा त वक नह ं है। (4) नवीन पर परावाद वचारक वारा सुझाये गये संगठन के कई ा प एव ंसंरचनाय

    भी सम त दशाओं म लाग ूनह ं होते ह। मानवीय संगठन क भी कुछ सीमाय ह। (5) यह वचारधारा संगठन वचारधारा का एक एक कृत ि टकोण तुत नह ं करती है।

    वा तव म, यह कोई नवीन वचारधारा नह ं है, वरन ्पर परावाद मॉडल म ह कुछ सुधार मा है। मलूत: यह संगठना मक सधुार से स बि धत है, संगठना मक पा तरण से नह ं।

    (6) यह वचारधारा संगठन के उ च तर के लए उपयु त नह ंहै। (7) इसके न कष िजन योग पर आधा रत है, उनम पणूत: वै ा नक व धय का योग

    नह ं हुआ है। यह कई घटक पर वचार नह ंकरती है। (8) यह वातावरणीय एव ंतकनीक घटक क उपे ा करती है। (9) यह अ भ रेणा तथा सम वय क सम याओं को अ त सुगम मान लेती है। (10) यह स पणू यि त क उपे ा करती है तथा इसम यापक सामािजक प र य का भी

    अभाव है। (3) संगठन क आधु नक वचारधारा - नर तर हो रहे आ थक, ौ यो गक य एव ंसामािजक

    प रवतन तथा यवसाय म बढ़ रह सं वलयन याओं के कारण आधु नक संगठन क संरचना भी तेजी से बदल रह है। ग त, ज टलता एव ंप रवतन क नयी माँग व सम याओं का सामना करने के लए नई संगठन वचारधाराएँ एव ंसरंचनाएँ तपा दत क गई ह। ''संगठन संरचना कसी चाट पर बनाये गये खान से कुछ अ धक है। यह अ त याओ तथा सम वय का ा प

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    है जो ौ यो गक , काय तथा संगठन के मानवीय संघटक को जोड़ता है ता क संगठन अपने ल य क ाि त म सफल हो सके।'' संगठन दो या दो से अ धक यि तय क सचेत प से समि वत कयाओं क एक णाल के प म पहचाना जाता है। इस कार संगठन म णाल एव ं यि तय पर बल देकर संगठन वचारधारा को एक नया आयाम दान कया। संगठन चाट पर बने खाने नह ,ं वरन ् यि त संगठन का नमाण करते है। 1960 से ह संगठन क आधु नक वचारधारा का ार भ माना जाता है। आधु नक वचारधारा न न चार दशाओं म वक सत हु ई है- (1) संगठन क यवहारवाद वचारधाराएँ, (2) संगठन णाल वचारधारा, (3) संगठन क सूचना ससंाधन वचारधारा तथा (4) आकि मकता संगठन वचारधारा।

    (4) अ य संगठन वचारधाराएँ - मूल