izfrfuf/k jpuk,jpuk,¡€¦ · िदल िमरा बुझ गया जवानी मे...

92
izfrfuf/k jpuk, izfrfuf/k jpuk,¡ egkohj mŸkjkapyh NEET ( National Eligibility Entrance Test ) MBBS & BDS Exam Books 2017 : Practice Tests Guide 2017 with 0 Disc Rs. 160 NEET - 12 Years' Solved Papers (2006 - 2017) Rs. 237 29 Years NEET/ AIPMT Topic wise Solved Papers PHYSICS (1988 - 2016) 11th Edition Rs. 169

Upload: others

Post on 26-Apr-2020

2 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • izfrfuf/k jpuk,izfrfuf/k jpuk,¡

    egkohj mŸkjkapyh

    NEET ( National Eligibility Entrance Test ) MBBS & BDS Exam Books 2017 : Practice Tests Guide 2017 with 0 DiscRs. 160

    NEET - 12 Years' Solved Papers (2006 - 2017)Rs. 237

    29 Years NEET/ AIPMT Topic wise Solved Papers PHYSICS (1988 - 2016) 11th EditionRs. 169

    http://www.sahityasudha.comhttps://dl.flipkart.com/dl//neet-national-eligibility-entrance-test-mbbs-bds-exam-books-2017-practice-tests-guide-0-disc/p/itmew2eafgkztqzr?pid=9788172545536&affid=anilkr112ghttps://dl.flipkart.com/dl//neet-12-years-solved-papers-2006-2017/p/itmezawewp4numnd?pid=9789311127644&affid=anilkr112ghttps://dl.flipkart.com/dl//29-years-neet-aipmt-topic-wise-solved-papers-physics-1988-2016-11th/p/itmezunpyyjnbrzh?pid=9789386146038&affid=anilkr112g

  • समपरणकशमीर मे सन 1948 से आज तक शहीद हए हर भारतीय जवान के िलए शदांजिल सवरप

    वीरवर (िवजय िदवस; कारिगल युद 1999)

    धनय हमारी मातृभूिम, धनय हमारे वीरवर लौट आये काल मुख से, शतू की छाती चीरकर बढ चले िवजयनाद करते, काल को परासत कर

    रीढ शतू का तोड आये, वज मुष पहार कर पीछे न हट सके वो पग, जब काल का पण िकया रणबांकुरो ने ऐसे हसँके, मृतयु का वरण िकया

    —महावीर उतरांचली

    Redmi Y1 (Dark Grey, 32GB)by Xiaomi₹8,999.00

    Moto G5s Plus (Lunar Grey, 64GB) by Motorola ₹16,999.00

    OnePlus 5T (Midnight Black 6GB RAM + 64GB memory)by OnePlus ₹32,999.00

    Mammon Women's Handbag And Sling Bag Combo(Hs-Combo-Tb,Multicolor)

    Rani Saahiba Printed Art Bhagalpuri Silk Saree

    Vaamsi Crepe Digital Printed Kurti(VPK1265_Muti-Coloured_Free Size)

    Amayra blue floral printed long length anarkali Cotton kurti for womens

    https://www.amazon.in/gp/product/B0756ZJ1FN/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B0756ZJ1FN&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=64473cf53b151afbb16ee65f2de3d203https://www.amazon.in/gp/product/B071HWTHPH/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B071HWTHPH&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=dd99b618c9dd61cf730dcc90c934af60https://www.amazon.in/gp/product/B0756ZFXVB/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B0756ZFXVB&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=594d8f1926ee580336c55464b117c24ehttps://www.amazon.in/gp/product/B0756ZJ1FN/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B0756ZJ1FN&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=64473cf53b151afbb16ee65f2de3d203https://www.amazon.in/gp/product/B071HWTHPH/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B071HWTHPH&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=dd99b618c9dd61cf730dcc90c934af60https://www.amazon.in/gp/product/B0756ZFXVB/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B0756ZFXVB&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=594d8f1926ee580336c55464b117c24ehttps://www.amazon.in/gp/product/B078P5QNHG/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B078P5QNHG&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=018abb49622410df371f704857a885eahttps://www.amazon.in/gp/product/B072PTGN1G/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B072PTGN1G&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=bf2e32622c31d422770cb6eb9290a486https://www.amazon.in/gp/product/B076FFCBGQ/ref=as_li_tl?ie=UTF8&camp=3638&creative=24630&creativeASIN=B076FFCBGQ&linkCode=as2&tag=anilkr112-21&linkId=0e91df646f990bea41f2773bd2afd426

  • egkohj mŸkjkapyh

    mÙkjkapyh lkfgR; laLFkkuch&4@79] i;ZVu fogkj]

    olqU/kjk bUdyso] fnYyh & 110096

    izfrfuf/k jpuk,izfrfuf/k jpuk,¡

  • USBN 09-2016-007-96

    izfrfuf/k jpuk,¡ (Representative Poetry)

    © egkohj mRrjkapyh (Mahavir Uttranchali)

    2016 izFke laLdj.k

    izdk”kd % mRrjkapyh lkfgR; laLFkkuch&4@79] i;ZVu fogkj]olqU/kjk bUdyso] fnYyh & 110096

    dher % 50@& #i;s

  • nks “kCndfork esjs fy;s vkRek dh rjg gSA vFkkZr ;fn “kjhj esa ls izk.k fudky fn;s tk;sa rks dguk vko”;d ugha fd eSa e`r gw¡A ftl fnu lalkj esjh jpukvksa dks Hkwy tk;sxk ml fnu eq>s iw.kZr% e`r eku fy;k tk;sA esjs dqN xhr] x+t+y] dfork] nksgs] tud NUn] NIi;] dq.Mfy;k] gkbdw] {kf.kdk;sa ;gk¡ ekStwn gSaA ftuds Hkhrj vki esjs dfo :i dks ryk”k dj ldrs gSaA

    &&dfo

  • fo’k; lwph

    [k.M ,d% x+t+y ....... 09&24[k.M nks% dfork ....... 25&42

    [k.M rhu% vU; i| ....... 43&90

  • खणड एक : गजल

  • इंकलाबी दौर को, तेजाब दो जजबात काआग यह बदलाव की, हर वक जलनी चािहए

  • (1.)

    गरीबो को फकत, उपदशे की घुटी िपलाते होबड ेआराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो

    ह ैमुिशकल दौर, सूखी रोिटयां भी दरू ह ैहमसेमजे से तुम कभी काजू, कभी िकशिमश चबाते हो

    नजर आती नही, मुफिलस की आँखो मे तो खुशहालीकहाँ तुम रात-िदन, झूठे उनह ेसपने िदखाते हो

    अँधेरा करके बैठे हो, हमारी िजनदगानी मेमगर अपनी हथेली पर, नया सूरज उगाते हो ववसथा कषकारी कयो न हो, िकरदार ऐसा है

    ये जनता जानती ह ैसब, कहाँ तुम सर झुकाते हो

    (2.)

    जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहएलोकशाही की नई, सूरत िनकलनी चािहएमुफिलसो के हाल पर, आंसू बहाना वथर है

    कोध की जवाला से अब, सता बदलनी चािहएइंकलाबी दौर को, तेजाब दो जजबात का

    आग यह बदलाव की, हर वक जलनी चािहएरोिटयाँ ईमान की, खाएँ सभी अब दोसतो

    दाल भषाचार की, हरिगज न गलनी चािहएअम ह ैनारा हमारा, लाल ह ैहम िवश के

    बात यह हर शखस के, मँुह से िनकलनी चािहए

    खणड एक : गजल (9)

  • (3.)

    पँख टूटे ह ैतो कया परवाज करते पोच ह ैतकदीर तो कया नाज करते बेच आये अपने ही जब िदल हमारा

    िफर भला हम कया उनह ेनाराज करते िकस तरह करते िशकायत हम खुदा से कर िदया गूँगा तो कयो आवाज करते

    यूँ मुझे तुमने कभी चाहा कहाँ था इक दफा ही काश! तुम आवाज करते

    हो गई गुसतािखयाँ कुछ बेखुदी मे वरना उनको और हम, नाराज करते

    (4.)

    साधना कर यूँ सुरो की, सब कह ेकया सुर िमलाबज उठे सब साज िदल के, आज तू यूँ गुनगुना

    हाय! िदलबर चुप न बैठो, राजे-िदल अब खोल दोबजमे-उलफत मे िछडा ह,ै गुफतगूं का िसलिसला उसने हरदम कष पाए, कामना िजसने भी की

    वथर मत जी को जलाओ, सोच सब अचछा हआ इशक की दिुनया िनराली, कया कह ँमै दोसतो

    िबन िपए ही मय की पयाली, छा रहा मुझपर नशा मीरो-गािलब की जमी पर, शेर जो मैने कहे

    कहकशां सजने लगा और लुतफे-महिफल आ गया

    खणड एक : गजल (10)

  • (5.)

    बडी तकलीफ दतेे ह ैये िरशतेयही उपहार दतेे रोज अपने जमी से आसमां तक फैल जाएँ

    धनक मे खवािहशो के रंग िबखरेनही टूटे कभी जो मुिशकलो सेबहत खुदार हमने लोग दखेे

    ये कडवा सच ह ैयारो मुफिलसी कायहाँ हर आँख मे ह ैटूटे सपने

    कहाँ ले जायेगा मुझको जमानाबडी उलझन ह,ै कोई हल तो िनकले

    (6.)

    तीरो-तलवार से नही होताकाम हिथयार से नही होता घाव भरता ह ैधीरे-धीरे ही

    कुछ भी रफतार से नही होता खेल मे भावना ह ैिजदा तोफकर कुछ हार से नही होता िसफर नुकसान होता ह ैयारोलाभ तकरार से नही होता उसपे कल रोिटयां लपेटे सब

    कुछ भी अखबार से नही होता

    खणड एक : गजल (11)

  • (7.)

    यूँ जहाँ तक बने चुप ही मै रहता हँकुछ जो कहना पडे तो गजल कहता हँजो भी कहना हो कागज पे करके रकम िफर कलम रखके खामोश हो रहता हँ

    दजर होने लगे शे'र तारीख मे बात इस दौर की खास मै कहता हँ

    दोसतो! िजन िदनो िजदगी थी गजलखुश था मै उन िदनो, अब नही रहता हँ

    ढंूढते हो कहाँ मुझको ऐ दोसतोआबशारे-गजल बनके मै बहता हँ

    (8.)

    चढा ह ँमै गुमनाम उन सीिढयो तकिमरा िजक होगा कई पीिढयो तक ये बदनाम िकससे, िमरी िजदगी को

    नया रंग दगेे, कई पीिढयो तक जमा शायरी उमभर की ह ैपूंजी

    ये दौलत ही रह जाएगी पीिढयो तक "महावीर" कयो मौत का ह ैतुमह ेगम

    गजल बनके जीना ह ैअब पीिढयो तक

    खणड एक : गजल (12)

  • (9.)

    पग न तू पीछे हटा, आ वकत से मुठभेड कर हाथ मे पतवार ले, तूफान से िबलकुल न डर कया हआ जो चल न पाए, लोग तेरे साथ मे तू अकेले ही कदम, आगे बढा होके िनडर िजनदगी ह ैबेवफा, ये बात तू भी जान ले

    अंत तो होगा यकीनन, मौत से पहले न मर बांध लो सर पे कफन, ये जंग खुशहाली की है

    कािनत पथ पे बढ चलो अब, बढ चलो होके िनडर

    (10.)

    रौशनी को राजमहलो से िनकाला चािहयेदशे मे छाये ितिमर को अब उजाला चािहये सुन सके आवाम िजसकी, आहटे बेखौफ अब आज सता के िलए, ऐसा िजयाला चािहये

    िनधरनो का खूब शोषण, भष शासन ने िकया बनद हो भाषण फकत, सबको िनवाला चािहये

    सूचना के दौर मे हम, चुप भला कैसे रह ेभष हो जो भी यहाँ, उसका िदवाला चािहये िगर गई ह ैआज कयो इतनी िसयासत दोसतो एक भी ऐसा नही, िजसका हवाला चािहये

    खणड एक : गजल (13)

  • (11.)

    काश! होता मजा कहानी मेिदल िमरा बुझ गया जवानी मे फूल िखलते न अब चमेली पर

    बात वो ह ैन रातरानी मे उनकी उलफत मे ये िमला हमकोजखम पाए ह ैबस िनशानी मे आओ िदखलाये एक अनहोनीआग लगती ह ैकैसे पानी मे

    तुम रह ेपाक-साफ िदल हरदममै रहा िसफर बदगुमानी मे

    (12.)

    रेशा-रेशा, पता-बूटाशाखे चटकी, िदल-सा टूटा गैरो से िशकवा कया करतेगुलशन तो अपनो ने लूटा ये इशक ह ैइलजाम अगर तोद ेइलजाम मुझे मत झूटा

    तुम कया यार गए दिुनया सेपयारा-सा इक साथी छूटा िशकवा कया ऊपर वाले सेभाग िमरा खुद ही था फूटा

    खणड एक : गजल (14)

  • (13.)

    जां से बढकर ह ैआन भारत कीकुल जमा दासतान भारत की सोच िजदा ह ैऔर ताजादम नौ'जवां ह ैकमान भारत की दशे का ही नमक िमरे भीतरबोलता ह ँजबान भारत की

    कद करता ह ैसबकी िहनदोसतांपीिढयां ह ैमहान भारत की सुखरर आज तक ह ैदिुनया मे

    आन-बान और शान भारत की

    (14.)

    िदल िमरा जब िकसी से िमलता हैतो लगे आप ही से िमलता ह ै

    लुतफ वो अब कही नही िमलतालुतफ जो शा'इरी से िमलता ह ैदशुमनी का भी मान रख लेनाजजबा ये दोसती से िमलता ह ैखेल यारो! नसीब का ही है

    पयार भी तो उसी से िमलता ह ैह ै"महावीर" जांिनसारी कया

    जजबा ये आिशकी से िमलता ह ै

    खणड एक : गजल (15)

  • (15.)

    जो हआ उसपे मलाल करके कया िमलेगा यूँ बवाल करके कौन-सा िरशता बचा ह ैभाई बीच आँगन मे िदवाल करके

    खवाब मे माजी ने जब दी दसतक लौट आया कुछ सवाल करके इस ववसथा ने गरीब को ही छोड रकखा ह ैिनढाल करके वकत हरैाँ ह ैजमाने से खुद एक पेचीदा सवाल करके

    (16.)

    तलवारे दोधारी कयासुख-दःुख बारी-बारी कया

    कतल ही मेरा ठहरा तोफांसी, खंजर, आरी कया कौन िकसी की सुनता हैमेरी और तुमहारी कया चोट कजा की पडनी है

    बालक कया, नर-नारी कया पूछ िकसी से दीवाने

    करमन की गित नयारी कया

    खणड एक : गजल (16)

  • (17)

    हार िकसी को भी सवीकार नही होती जीत मगर पयारे हर बार नही होती एक िबना दजूे का, अथर नही रहता

    जीत कहाँ पाते, यिद हार नही होती बैठा रहता मै भी एक िकनारे पर राह अगर मेरी दशुवार नही होती

    डर मत लहो से, आ पतवार उठा ले बैठ िकनारे, नैया पार नही होती

    खाकर रखी-सूखी, चैन से सोते सब इचछाएं यिद लाख उधार नही होती

    (18.)

    तसववुर का नशा गहरा हआ ह ैिदवाना िबन िपए ही झूमता ह ै

    गुजर अब साथ भी मुमिकन कहाँ था मै उसको वो मुझे पहचानता ह ैिगरी िबजली नशेमन पर हमारे

    न रोया कोई कैसा हािदसा ह ैबलनदी नाचती ह ैसर पे चढकेकहाँ वो मेरी जािनब दखेता ह ै

    िजसे कल गैर समझे थे वही अब रगे-जां मे हमारी आ बसा ह ै

    खणड एक : गजल (17)

  • (19.)

    नजर मे रौशनी ह ैवफा की ताजगी है िजयूं चाह ेमै जैसे ये मेरी िजदगी ह ै

    गजल की पयास हरदम लह कयो मांगती ह ैिमरी आवारगी मे फकत तेरी कमी है

    इसे िदल मे बसा लो ये मेरी शा'इरी है

    (20.)

    सोच का इक दायरा ह,ै उससे मै कैसे उठँू सालती तो ह ैबहत याद,े मगर मै कया करँ िजदगी ह ैतेज रौ, बह जायेगा सब कुछ यहाँ कब तलक मै आँिधयो से, जूझता-लडता रह ँ

    हािदसे इतने हए ह ैदोसती के नाम पर इक तमाचा-सा लगे ह,ै यार जब कहने लगूं जा रह ेहो छोडकर इतना बता दो तुम मुझे मै तुमहारी याद मे तडपूँ या िफर रोता िफरँ सच हो मेरे सवप सारे, जी, तो चाह ेकाश मै

    पंिछयो से पंख लेकर, आसमाँ छूने लगूं

    खणड एक : गजल (18)

  • (21.)

    िदल से उसके जाने कैसा बैर िनकला िजससे अपनापन िमला वो गैर िनकला था करम उस पर खुदा का इसिलए ही

    डूबता वो शखस कैसा तैर िनकला मौज-मसती मे आिखर खो गया कयो जो बशर करने चमन की सैर िनकला सभयता िकस दौर मे पहचँी ह ैआिखर

    बंद बोरी से कटा इक पैर िनकला वो वफादारी मे िनकला यूँ अबबल आंसुओ मे धुलके सारा बैर िनकला

    (22.)

    आपको मै मना नही सकता चीरकर िदल िदखा नही सकता इतना पानी ह ैमेरी आँखो मे बादलो मे समा नही सकता

    तू फिरशता ह ैिदल से कहता हँ कोई तुझसा मै ला नही सकता हर तरफ एक शोर मचता है सामने सबके आ नही सकता

    िकतनी ही शौहरत िमले लेिकन कजर माँ का चुका नही सकता

    खणड एक : गजल (19)

  • (23.)

    राह उनकी दखेता ह ैिदल िदवाना हो गया ह ैछा रही ह ैबदहवासी ददर मुझको पी रहा ह ै

    कुछ रहम तो कीिजये अब िदल हमारा आपका ह ैआप जबसे हमसफर हो

    रासता कटने लगा ह ैखतम हो जाने कहाँ अब िजदगी का कया पता ह ै

    (24.)

    नजर को चीरता जाता ह ैमंजर बला का खेल खेले ह ैसमनदर मुझे अब मार डालेगा यकीनन

    लगा ह ैहाथ िफर काितल के खंजर ह ैमकसद एक सबका उसको पाना िमले मिसजद मे या मंिदर मे जाकर पलक झपके तो जीवन बीत जाये ये मेला चार िदन रहता ह ैअकसर नवािजश ह ैितरी मुझ पर तभी तो िमरे मािलक खडा ह ँआज तनकर

    खणड एक : गजल (20)

  • (25.)

    बीती बाते याद न कर जी मे चुभता ह ैनशतर

    हािसल कब तकरार यहाँ टूट गए िकतने ही घर चाँद-िसतारे साथी थे नीद न आई एक पहर तनहा ह ँमै बरसो से

    मुझ पर भी तो डाल नजर पीर न अपनी वक करो यह उपकार करो मुझ पर

    (26.)

    छूने को आसमान काफी है पर अभी कुछ उडान बाकी है कैसे ईमाँ बचाएं हम अपना सामने खुशबयान साकी ह ैकैसे वो ददर को जबां दगेा कैद मे बेजबान पाखी है

    लकय पाकर भी कयो कह ेदिुनया कुछ ितरा इिमतहान बाकी है कहने ह ैकुछ नए फसाने भी इक नया आसमान बाकी है

    खणड एक : गजल (21)

  • (27.)

    लहजे मे कयो बेरखी है आपको भी कुछ कमी ह ै

    पढ िलया उनका भी चेहरा बंद आँखो मे नमी ह ै

    सच जरा छूके जो गुजरा िदल मे अब तक सनसनी ह ै

    भूल बैठा हािदसो मे गम ह ैकया और कया खुशी ह ै

    ददर कागज मे जो उतरा तब ये जाना शाइरी ह ै

    (28.)

    दशुमनी का वो इिमतहान भी था दोसती की वो दासतान भी था रख िदया खुद को दाँव पर मैने सब का खूब इिमतहान भी था मै अकेला नही था यार िमरे!

    बदगुमानी मे तो जहान भी था खून ही तो बहाया बस उसने

    शाह-ेयूनान कया महान भी था जब बुजुगो के उठ गए साये

    हर कदम एक इिमतहान भी था

    खणड एक : गजल (22)

  • (29.)

    खवाब झूठे ह ैददर दतेे ह ै

    रंग िरशतो के रोज उडते ह ैकैसे-कैसे सच लोग सहते ह ैपयार सचा था जखम गहरे ह ैहाथ मे िसगेट तनहा बैठे ह ै

    (30.)

    मकडी-सा जाला बुनता ह ैये इशक तुमहारा कैसा ह ै

    ऐसे तो न थे हालात कभी कयो गम से कलेजा फटता ह ै

    मै शुकगुजार तुमहारा ह ँमेरा ददर तुमह ेभी िदखता ह ैचारो तरफ तसववुर मे भी इक सनाटा-सा पसरा ह ैकरता ह ँखुद से ही बाते

    कोई हम सा तनहा दखेा ह ै

    खणड एक : गजल (23)

  • (31.)

    कया अमीरी, कया गरीबी भेद खोले ह ैफकीरी

    गम से तेरा भर गया िदल गम से मेरी आँख गीली तीरगी मे जी रहा था तूने आ के रौशनी की खूब भाएं मेरे िदल को मिसतयाँ फरहाद की सी मौत आये तो सुकँू हो

    कया िरहाई, कया असीरी

    (32.)

    िजनके पँखो मे दो जहान हए वे ही पंछी लहलुहान हए दोसती के जहाँ तकाजे है

    फजर भी खूब इिमतहान हए सुन नही पाए बात मेरी जो हमवतन मेरे हमजुबान हए आपने कह दी बात मेरी भी

    आप ही िदल की दासतान हए कयो 'महावीर' मौत का डर ह ै

    हािदसे रोज दरिमयान हए

    •••

    खणड एक : गजल (24)

  • खणड दो : किवता

  • काल के कपाल परअगर मेरी रचनाएँ दसतक नही द ेसकती

    तो वथर ह ैमेरा किव होना

  • १. पाँव

    पाँव थककर भीचलना नही छोडते

    जब तक वेगंतव तक न पहचँ जाएँ ...

    थक जाने पर कुछ दरेराह मे िवशाम करपुन: चल पडते है

    अपने लकय की ओर...

    जबिकघोड ेके रथ पर सवार लोगया िफर ईधन से चलायमान

    अतयाधुिनकतम गािडयो मे बैठे लोगिबना पिहयो के

    अगले पडाव तक नही पहचं पाते...

    मगरपाँव सिदयो से

    याता करते आये हैकई समयताओ

    और संसकृितयो की दासताँ कहते!!!

    •••

    खणड दो : किवता (27)

  • २. पतन

    मानव को अनेक िचनतायेिचनताओ के अनेक कारणकारणो के नाना पकार

    पकारो के िविवध सवरपसवरपो की असंखय पिरभाषायेपिरभाषाओ के महाशबदजालशबदजालो के घुमावदार अथरपितिदन अथो के होते अनथरखणड-खणड खंिडत िवशास

    मानो समग नैितकता बनी पिरहासबुिदजीवी िचिनतत है

    जीिवकोपाजरन को लेकर!कया करेगे जीवन मूलयो को ढोकर?

    वथर ह ैघर मे रखकर कलेशकया करेगे मूलयो के धर अवशेष?

    •••

    खणड दो : किवता (28)

  • ३. मवाद

    धमर जब तकमंिदर की घंिटयो मे

    मिसजद की अजानो मेगुरदारे के शबद-कीतरनो मे

    गंूजता रह ेतो अचछा हैमगर जब वो

    उनमाद-जुनून बनकरसडको पर उतर आता है

    इंसानो का रक पीने लगता हैतो यह एक गंभीर समसया है?

    एक कोढ की भांित हर ववसथा और समाज कोिनगल िलया ह ैधािमक कटरता के अजगर ने ।

    अब कुछ-कुछ दगुरनध-सी उठने लगी हैदगंो की िशकार कत-िवकत लाशो की तरह

    सभी धमर गंथो के पनो से!

    कया यही सब विणत हैसिदयो पुराने इन रीितिरवाजो मे?

    रिढयो-िकदािनतयो की पंखहीन परवाजो मे?

    ऋिष-मुिनयो पैगमबरो साधु-संतो दाराउपलबध कराए इन धािमक िखलौनो को

    टूटने से बचने की िफराक मेताउम पंिडत-मौलिवयो की डुगडुगी पेनाचते रहगेे हम बनदर- भालुओ से...!

    कया कोई ऐसा नही जो एक थपपड मारकरबंद करा द ेइन रात-िदन

    लाउडसपीकर पर चीखते धमर केठेकेदारो के शोर को?

    िजनह ेसुनकर पक चुके ह ैकानऔर मवाद आने लगा ह ैइकीसवी सदी मे!

    •••

    खणड दो : किवता (29)

  • ४. हकीकत

    जब भी मै समझता हँबडा हो गया हँअदना आदमी सेखुदा हो गया हँ

    तो इितहास उठा लेता हँये भम खुद-ब-खुद टूट जाता है

    मौत रपी दपरण मेसतय का पितिबमब िदख जाता है

    िमटटी मे िमल गएिजतने भी थे धुरंधरकया हलाकू-चंगेजकया पोरस-िसकंदर

    िजनहोने कायम की थीपूरी दिुनया मे हकूमतकही नजर आती नहीआज उनकी गुरबततो ऐ महावीर तुझेघमंड िकस बात का!दिुनया-ए-फानी मे

    भला तेरी औकात कया?

    •••

    खणड दो : किवता (30)

  • ५. दढृता कभी आिशत नही

    जीवन कभी मोहताज नही होतामोहताज तो होता है

    हीन िवचार, िनजी सवाथर और कीण आतमिवशास ।

    कयोिक यह मृगमरीिचका विक कोउस वक तक सेहरा मे भटकती है

    जब तक िकवह पूणररपेण िनषपाण नही हो जाता

    इसके िवपरीतजो दढृिनशयी, महतवकांकी व सवािभमानी है

    वह िनरंतरपगित की पायदान चढता हआ

    कायम करता ह ैवो बुलंद रतबा िक —यिद वो चाह ेतो खुदा को भी छू ले ।

    वह शखस घोर िनराशाएवम द:ु ख के कणो को ऐसे िमटा दतेा है

    जैसे —िकरणो के सफुिटत होने पर

    तम का सीना सवयमेव िचर जाता ह ै।

    •••

    खणड दो : किवता (31)

  • ६. रामराज

    गाँधी जी कहते थेजब भारत सवतंत होगातो रामराज आ जायेगा

    अछूतोदार होगाजातपात; छुआछूत; असपृशयता का अंत होगा

    सवरधमर एक िनयम होगागौपूजा होगी

    हर कोई एक-दजेू के हदय मे समा जायेगागाँधी जी कहते थे

    ऐसा रामराज आ जायेगा ।लेिकन—

    सवतंत भारत मेमार-काट होती हैगौ मांस िबकता है

    जात-पात के नाम पर आरकण होता हैिहनद ूमिसजद मुिसलम मंिदर ढाता है

    कौन जानता थासवतंतता पािप उपरानत ऐसा हो जायेगा

    जब भारत सवतंत होगातो ऐसा रामराज आ जायेगा?

    •••

    खणड दो : किवता (32)

  • ७. मौत

    मौत तुम भी कया खूब खेल खेलती हो?

    जब हमारे िदल मे जीने की चाह होती हैतुम आ टपकती हो; तमाशा करती मजा लेती हो ।

    जब हम मरना चाहते ह—ैतुम ऊबा दनेे वाली पतीका करवाती हो!

    मानो सिदयो तक आओगी ही नही ।आज भी तुम गलत समय मे आई हो

    जब मै खयाित के िशखर से थोडा-सा दरू ह ँ।जबिक मै जानता हँ

    तुम बेवक नही आती? वक की पाबनद होआगाज के िदन ही हमारा अंजाम भी तय हो चुका है

    मगर कया आज मेरे वासतेतुमहारी वो घडी थोडा आगे नही िखसक सकती

    मै जानता ह ँतुमहारी गोद मेअसीम सुख ह;ै महाशांित हैकभी न टूटने वाली िनदा है

    और ह.ै..कभी न खतम होने वाली खामोशी ....!

    •••

    खणड दो : किवता (33)

  • ८. दसतक

    काल के कपाल परअगर मेरी रचनाएँ दसतक नही द ेसकतीबुझे हए चेहरो पर रौनक नही ला सकती

    मजदरूो के पसीने का मूलयांकन नही कर सकतीशोषण करने वालो का रक नही पी सकती

    तो वथर ह ैमेरा किव होनाइन रचनाओ का कागज पर आकार लेना

    और वथर ह ैआलोचको काइनह ेमहान रचनाएँ कहकर संबोिधत करना

    •••

    खणड दो : किवता (34)

  • ९. आसरा

    कौन रोक सका है?या रोक सकता है

    तूफान या भूचाल को!ये तो सिदयो से आयेआते रहगेे मनुजो....

    ऐसे मे —जो कमजोर है

    उनका उखड जानासवाभािवक है

    िकनतु? िफर भी?कम से कम अपनी जगह

    िसथर रहने का पयासहमे अवशय करना है!

    अनयथा ..िकसी टूटे हई दपरण की भांित

    हो जायेगे हम खणड-खणडअवशेष भी न बचेगे हमारे

    इितहास बन जायेगे - यूनान िमश रोम की तरह...

    बहरहाल —इन बुरे िदनो मे भी

    अनेक सवाथो के बीचतेरी ही पुरातन परमपराओ का

    आसरा ह ैऐ भारत माँ...

    •••

    खणड दो : किवता (35)

  • १०. मनतमुगध गढवाल

    'गढवाल'जैसे िकसी िचतकार कीकोई सुनदर कलाकृित

    बावजूद आधुिनक संसाधनो के अभाव मेयहाँ िनरंतर पाकृितक सौनदयर के भाव मेिछपी ह ैअधयाितमक भूख और आतमतृिप

    भौितकवाद िदखावे के अितिरक यहाँ कुछ भी नहीिनधरनता के पशात भी

    यहाँ वाप ह ै/ संतोष पयारपजंगलात के कंदमूल

    शद हवा और पानी मेह ैयहाँ के दीघर जीवन का सार ।

    सनातन धमर की पवाहमान धारा के तहतयहाँ पचिलत ह ैअनेक िलिखत-मौिखक िकदािनतयाँ

    रिढयाँ और िकससे कहािनयां...यहाँ पशुबिल और भूत भातपैतृक दोष और छुआछातदवे नरिसह और नरकार

    जागर-मागर और जात/घातह ैपारमपिरक िवरासत और सौगात

    खडे ह ैयुगो से िसथरन जाने िकतने असंखय अदभुत रहसय

    अपने गभर मे िछपाये / सौनदयर िबखेरतेशृखंलावद िवशालकाय पवरत

    िजनकी गोद मे ..ये मंतमुगध गढवाल

    और उतराखंड की संसकृितह ैपीढी-दर-पीढी सुरिकत ।

    •••

    खणड दो : किवता (36)

  • ११. जीवन आधार

    फूल नमर, नाजुक और सुगिनधत होते हैउनमे काँटो-सी बेरखी कुरपता और अकडन नही होती

    िजस तरह छायादार और फलदार वृकझुक जाते ह ैऔरो के िलए

    उनमे सूखे चीड-िचनारो जैसी गगन छूतीमहतवकांका नही होती ।

    कयोिक ..अकडन बेरखी और महतवकांका मेजीवन का सार हो ही नही सकता

    जीवन तो िनिहत ह ैझुकने मेसवयं िवष पीकर

    औरो के िलए सवरसव लुटाने मेनारी जीवन ही सही मायनो मे जीवनाधार हैमाँ बहन बेटी पती पेयसी आिद समसत रपो मे

    सवरत वह झुकती आई हैतभी तो पुरष ने अपनी मंिजल पाई है

    उसने पाया हैबचपन से ही आँचल, दधू और गोद

    ममता पयार सेह, िवशास वातसलय आिद

    िकनतु सोचो..यिद नारी भी पुरष की तरह सवाथी हो जायेया समझौतावादी वृित से िनजात पा जाये

    तो कया रह पायेगा आजिजसे कहते ह ैपुरष पधान समाज ।

    •••

    खणड दो : किवता (37)

  • १२. िवरासत

    जानते हो यारमैने िवरासत मे कया पाया है?

    जहालत मुफिलसी बेरखीतृषकार, ईषया, कंुठा आिद- आिद

    शबदो की िनरंतर लमबी होती सूचीजो भिवषय मे...

    एक िवसतृत / िवशालशबदकोष का सथान ले शायद?

    तुम सोचते होसहानुभूित पाने को गढे ह ैये शबद मैने!

    मगर नही दोसतये वासतिवकता नही है

    भोगा ह ैमैने इनहेएक अरसे से हदय मे उठे मुदार िवचारो के

    यातना िशिवर मे पताडना की तरहतब कही पाया ह ैइनके अथो मे अहसास चाबुक-सा

    और जुटा पाया ह ँसाहस इनह ेगढने का

    किवता यूँ ही नही फूट पडतीजब तक ' अंतर ' मे िकसी के

    मरने का अहसास न होऔर सांसो मे से लाश के सडने की सी

    दगुरनध न आ जाये...तब तक कहाँ उतर पाती है

    कागज पर कोई रचना ऐ दोसत?

    •••

    खणड दो : किवता (38)

  • १३. महानगर मे

    कौन से उजवलभिवषय की खाितर

    हम पडे ह—ैमहानगर के इस

    बदबूदार घुटनयुकवातावरण मे ।

    जहाँ साँस लेने परटी०बी० होने का खतरा है

    जहाँ असथमा भीबुजुगो से िवरासत मे िमलता है

    और िमलती हैकजर के भारी पवरत तलेदबी सहमी-सहमी-सी

    खोखली िजनदगी ।और दखेे जा सकते है

    भरी जवानी मे िपचके गाल/ धंसी आँखेिसगरेट सी पतली टांगे

    िखजाब से काले िकये सफेद बालहिरयाली-पकृित के नाम पर

    दरू-दरू तक फैलाकंकरीट के मकानो का िवसतृत जंगल

    कोलतार की सडकेबदनाम कोठो मे हसंता एच०आई०वी०

    और अिधक सोच-िवचार करने परकैसर जैसा महारोग... िगफट मे ।

    •••

    खणड दो : किवता (39)

  • १४. टूटा हआ दपरण

    एक टीस-सीउभर आती है

    जब अतीत की पगडंिडयोसे गुजरते हए

    यादो की राख कुरेदता ह ँ।

    तब अहसास होने लगता हैिकतना सवाथी था मेरा अहम?जो सािहतयक लोक मे खोया

    न महसूस कर सकातेरे हदय की गहराई

    तेरा वह मुझसे आंतिरक लगाव

    मै तो मात तुमहेरचनाओ की पेयसी समझता रहा

    परनतु तुम िकसी पकाशक की भांितमुझ रचनाकार को पूणरत: पाना चाहती थी

    आह! िकतना द:ुखांत थावह िवदा पूवर तुमहारा रदन

    कैसे कह दी थीतुमने अनकही सचाई

    िकनतु वथरसामािजक रीितयो मे िलपटी

    तुम हो गई थी पराई

    आज भी तेरी वही यादेमेरे हदय का पितिबमब है

    िजनके भीतर मै िनरंतरटूटी हई रचनाओ के दपरण जोडता ह ँ।

    •••

    खणड दो : किवता (40)

  • १५. एक मई का िदन

    कुछ भी तो ठीक नहीइस दौर मे!

    वक सहमा हआएक जगह ठहर गया है!!जैसे घडी की सुइयो कोिकसी अनजान भय ने

    अपने बाहपाश मेबुरी तरह जकड रखा हो ।

    ववसथा ने कभी भीवापक फलक नही िदया शिमको को

    जान िनकल दनेे वालीमेहनत के बावजूद

    एक चौथाई टुकडे से हीसंतोष करना पडाएक रोटी भूख को

    सालो -साल ।... पीढी-दर-पीढी!!

    एक पश कौधता ह ै-कया कीमतो को बनाये रखनाऔर मुिशकलो को बढाये रखना

    इसी का नाम ववसथा है?

    "रसी कांित'' और ''माओ का शासन''अब पढाये जाने वाले

    इितहास का िहससा भर ह ै।साल बीतने से पूवर ही

    वह ऐितहािसक लाल पनेकागज की नाव या हवाई जहाज

    बनाकर ककाओ मे उडने के काम आते हैहमारे नौिनहालो के -

    खणड दो : किवता (41)

  •  िजनह ेपढाई बोझ लगती है!

    एक मजदरू से जब मैने पूछा -कया तुमह ेअपनी जवानी का

    कोई िकससा याद है?वह चौक गया!

    मानो कोई पहलेी पूछ ली हो?बाबू ये जवानी कया होती ह!ै

    मैने तो बचपन के बादइस फैकटी मे सीधा अपना बुढापा ही दखेा है!!

    मै ही कयादिुनया का कोई भी मजदरू

    नही बता पायेगाअपनी जवानी का कोई यादगार िकससा!!

    अब मन मे यह पश कौधता ह—ैकया मजदरू का जनम

    शोषण और तनाव झेलनेमशीन की तरह िनरंतर काम करने

    कभी न खतम होने वाली िजममेदािरयो को उठानेऔर िसफर द:ुख-तकलीफ के िलए ही हआ ह?ैकया यह सारे शबद मजदरू के पयारयवाची है?

    मुझे भी यह अहसास होने लगा हैकोई बदलाव नही आएगाकोई इंकलाब नही आएगा

    पूंजीवादी कभी हम मेहनत कशो कावक नही बदलने दगेे!

    हमे चैन की करवट नही लेने दगेे ।हमारे िहससे के चाँद-सूरज को

    एक सािजश के तहतिनगल िलया गया है!

    अफसोस—पूरे साल मेएक मई का िदन आता हैिजस िदन हम मेहनतकशचैन की नीद सोये रहते है!

    •••

    खणड दो : किवता (42)

  • खणड तीन : अनय पद

  • गजल कह ँतो मै असद, मुझमे बसते मीर दोहा जब कहने लगूँ, मुझमे संत कबीर

  • दोह ेगजल कह ँतो मै असद, मुझमे बसते मीर

    दोहा जब कहने लगूँ, मुझमे संत कबीर // 1. //

    युग बदले, राजा गए, गए अनेको वीर अजर-अमर ह ैआज भी, लेिकन संत कबीर // 2. //

    धवज वाहक मै शबद का, हरँ िहया की पीर ऊँचे सुर मे गा रहा, मुझमे संत कबीर // 3. //

    हदय तलक पहचें नही, िमतो के उदार सब मतलब के यार थे, िकये पीठ पर वार // 4. //

    दादा-दादी सोचते, यह कैसा बदलाव टीवी इनटरनेट से, बंटी को ह ैचाव // 5. //

    पूंजीवादी दौर मे, िबखर गया दहेात बद से बदतर हो रहे, िनधरन के हालात // 6. //

    काँधे पर बेताल-सा, बोझ उठाये रोज पशोतर से जूझते, नए अथर तू खोज // 7. //

    िवकम तेरे सामने, वकत बना बेताल पशोतर के दनद मे, जीवन हआ िनढाल // 8. //

    िवकम-िवकम बोलते, मजा लेत बेताल काँधे पर लाधे हए, बदल गए सुरताल // 9. //

    एक िदवस बेताल पर, होगी मेरी जीत िवकम की यह सोचते, उम गई ह ैबीत // 10. //

    खणड तीन : अनय पद (45)

  • िससटम मे ह ैभेिडये, शान बसे हर ओर पहरी पूँजीवाद के, िजतने काले चोर // 11. //

    कुछ भी कहाँ िविचत था, जनजीवन मे िमत पाक-साफ थे जो यहाँ, उनका िगरा चिरत // 12. //

    मानवता को मारकर,कैसा मचा िजहाद खािरज की अललाह ने, बनद ेकी फिरयाद // 13. //

    कट जाये सर गम नही, िजदा रह ेजमीर वतन की आबर रहे, कह ेकिव महावीर // 14. //

    ह ैखवाबो मे रोिटयाँ, सोये खाली पेट कुचल िदया धनहीन को, बढते जाएँ रेट // 15. //

    रोज िदखता िमिडया, उलटी-सीधी बात चंदा को सूरज कह,े कह ेिदवस को रात // 16. //

    कडवी बाते भर रही, जन-मन मे आकोश मानवता को तयाग दे, भरे िजहादी जोश // 17. //

    तेजाब फैक कया िमला, सूरत हई खराब तिनक किणक आवेश मे, टूटे िकतने खवाब // 18. //

    िकसने समझी ह ैयहाँ, मानव मन की पीर तन से राजकुमार है, मन से सभी फकीर // 19. //

    जम रही परत-दर-परत, हदय पर मकड जाल मन डूबा अजान मे, मचता रोज बवाल // 20. //

    खणड तीन : अनय पद (46)

  • अदभुत यह अहसास ह,ै बुझे न बुझती पयास चकोर दखेे चाँद को, मधुर िमलन की आस // 21. //

    दीमक जैसे खा रही, लकडी के गोदाम नैितकताएँ खोखली, यूँ िबके सरे आम // 22. //

    महानगर ने खा िलए, िरशते-नाते खास सबके िदल मे नकश है, ददर भरे अहसास // 23. //

    रेखाओ को लाँघकर, बचे खेले खेल बटवारे को तोडती, छुक- छुक करती रेल // 24. //

    बटवारा कयोकर हआ, इस पर करो िवचार िहनद-ूमुिसलम एकता, कहाँ गई थी यार // 25. //

    महगँाई की मार है, पेट-पेट ह ैभूख पूंजीपित के हाथ मे, शोषण की बनदकू // 26. //

    भूली-िबसरी दासताँ, आ रही मुझे याद आँसू बनकर बह चली, होठो की फिरयाद // 27. //

    मनथन, िचनतन ही रहा, िनरनतर महायुद दिुवधा मे वह पाथर थे, या सनयासी बुद // 28. //

    जीवन के कुरकेत मे, जब-जब आया सवाथर ले गीता को हाथ मे, बन जा तू भी पाथर // 29. //

    बडे-बडे योदा यहाँ, वार गए जब चूक'महावीर' कैसे चले, जंग लगी बंदकू // 30. //

    खणड तीन : अनय पद (47)

  • सच को आप िछपाइए, यही बाजारवाद नैितकता को तयागकर, हो जाओ आबाद // 31. //

    लकमी और सरसवती, दोनो की कया बात हसं िदवस मे िवचरता, उललू जागे रात // 32. //

    वहाँ न कुछ भी शेष है, जहाँ गया इंसान पृथवी पर संकट बना, पगितशील िवजान // 33. //

    हावी ह ैबाजार यूँ, मुिशकल ह ैहालात िरशते-नाते गौण है, िसमट गए जजबात // 34. //

    महगंाई की दने ह,ै पेट-पीठ ह ैएक जीवनभर फुटपाथ पर, संकट िमले अनेक // 35. //

    कमर साधते सब यहाँ, जब तक िमला शरीर अटल समय ह ैमृतयु का, काल खडा गमभीर // 36. //

    िजतना जो गुंडा बडा, उसकी उतनी धाक ऐसे दबंग काटते, लोकतंत की नाक // 37. //

    मानवता वापार की, बनने लगी मशीन पैसो के इस खेल मे, सब कुछ महतवहीन // 38. //

    कफयूर के इस दशृय का, कैसे करँ बखान लाशे, खून जगह-जगह, बाकी जले मकान // 39. //

    चुपपी ओढी शाम ने, कफयूर बना नसीब दसतक दतेी गोिलयाँ, लगती मौत करीब // 40. //

    खणड तीन : अनय पद (48)

  • िकतने मारे ठणड ने, मेरे शमभूनाथउतर सभय समाज ह,ै मांग रहा फुटपाथ // 41. //

    दहशतगदी आपने, फैलाई िदन-रात इंसानो को मारते, जेहादी जजबात // 42. //

    गीता मै शी कृषण ने, कही बात गंभीरऔरो से दिुनया लडे, लडे सवयं से वीर //43. //

    लाल यशोदानंद का, िगिरधर माखन चोर

    िदखता ह ैमुझको वहां, मै दखंूे िजस ओर /44. //

    रप-रंग-शंृगार कयो, नाचे मन मे मोरउतसािहत ह ैगोिपयाँ, कृषण सखी िचतचोर //45. //

    गीता मे शी कृषण ने, कही बात गंभीर

    अजर-अमर ह ैआतमा, होवे नष शरीर //46. //

    राधे शरमाकर कह,े आवे मोह ेलाजबंसी बाजे कृषण की, भूल गई सब काज //47. //

    लडते-लडते लड गए, राधा पयारी से नैन

    महावीर ये हाल अब, कृषण हए बेचैन //48. //

    िनमरल जमुना जल बह,े कृषण खडे ह ैतीरआ जाओ अब रािधके, मनवा खोवे धीर //49. //

    कृषण-सलोना रप ह,ै राधा हिर का मान

    दहे अलौिकक गंध है, पेम अमर पहचान //50. //

    खणड तीन : अनय पद (49)

  • दहे जाय तक थाम ले, राम नाम की डोरफैले तीनो लोक तक, इस डोरी के छोर //51. //

    भको मे ह ैकिव अमर, सवामी तुलसीदास

    'रामचिरत मानस' रचा, राम भक ने खास //52. //

    राम-कृषण के काज पर, रीझे सकल जहानदोनो हिर के नाम है, दोनो रप महान //53. //

    छूट गई मन की लगन, कहाँ िमलेगे राम

    पर नारी को दखेकर, उपजा तन मे काम //54. //

    िसयाराम समझे नही, कैसा ह ैये भेदसोने का कैसा िहरन, हआ न कुछ भी खेद //55. //

    वाण लगा जब लखन को, हए राम आधीर

    मै भी तयागूँ पाण अब, रोते ह ैरघुवीर //56. //

    मेघनाद की गरजना, रावन का अिभमानराम-लखन तोडा िकये, वकत बडा बलवान //57. //

    राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान

    पछताई तब कैकयी, चूर हआ अिभमान //58. //

    राजा दशरथ के यहाँ, हए राम अवतारकौशलया माँ धनय है, िकया जगत उदार //59. //

    शुद नही आबो-हवा, दिूषत ह ैआकाशसभय आदमी कर रहा, सवयं शृिष का नाश //60.//

    खणड तीन : अनय पद (50)

  • ओजोन परत गल रही, पगित बनी अिभशापवकत अभी ह ैचेितए, पछताएंगे आप //61.//

    अंत िनकट संसार का, सूख रही ह ैझील

    दिूषत ह ैवातावरण, लुप हो रही चील //62.//

    हिथयारो की होड से, िवश हआ भयभीतरोज परीकण गा रहे, बरबादी के गीत //63.//

    निदया कयो नाला बनी, इस पर करो िवचार

    जहर न अब जल मे घुले, ऐसा हो उपचार //64.//

    आितशबाजी छोडकर, ताली मत द ेयारशोर पटाखो का बहत, होता ह ैबेकार //65.//

    गलोबल वािमग कर रही, सभी को सावधान

    पदषूण पर लगाम कस, मत बन तू नादान //66.//

    कुदरत से िखलवाड पर, बने सखत कानूनपहले दो चेतावनी, िफर काटो नाखून //67.//

    ऊँचे सुर मे लग रहे, जयकारे िदन-रात

    शोर पदषूण हो रहा, भको की सौगात //68.//

    िनयिमत गाडी जांच हो, तो पदषूण न होयअथरदणड से भी बचे, सदा चैन से सोय //69.//

    दिूषत जल से हो रही, मछली भी बेचैन

    हरैानी इस बात से, मानव मंूद ेनैन //70.//

    खणड तीन : अनय पद (51)

  • सूखा-बाढ-अकाल ह,ै कुदरत का आकोश

    िकया पदषूण अतयिधक, मानव का ह ैदोष //71.//

    महगंाई डायन डसे, िनधरन को िदन-रातधनवानो की िपयतमा, पल-पल करती घात //72.//

    महगंाई के राग से, िबगड गए सुरताल िसर पर चढकर नाचती, झडते जाएँ बाल //73.//

    महगंी रोटी-दाल ह,ै मुिखया तुझे सलामपूछे कौन गरीब को, इजजत भी नीलाम //74.//

    आटा गीला हो गया, कया खाओगे लालबहत तेज इस दौर मे, महगंाई की चाल //75.//

    आटा-चावल-दाल कया, सतू तक ह ैदरूमहगंाई के खेल मे, िहममत चकनाचूर //76.//

    बचे िबलखे भूख से, िपता रहा ह ैकाँपडसने को आतुर खडा, महगंाई का साँप //77.//

    महगंाई पितपल बढे, कैसे हो हम तृपकलयुग का अहसास है, भूख-पयास मे िलप //78.//

    महगंाई के पेत ने, िकया लाल को मौनमात-िपता हरैान है, उनको पूछे कौन //79.//

    गपशप मे होने लगी, महगंाई की बातवेतन जयो का तयो रहा, दाम बढे िदन-रात //80.//

    खणड तीन : अनय पद (52)

  • महगंाई के दौर मे, कटुता का अहसासबदल िदया ह ैभूख ने, वतरमान इितहास //81.//

    सिदयो से िनधरन यहाँ, होते रह ेहलालधनवानो के हाथ मे, इजजत रोटी-दाल //82.//

    छह ऋतु, बारह मास ह,ै गीषम-शरद-बरसात

    सवचछ रह ेपयारवरण, सुबह-शाम, िदन-रात //83.//

    कूके कोिकल बाग मे, नाचे सममुख मोरमनोहरी पयारवरण, आज बना िचतचोर // 84.//

    खूब संपदा कुदरती, आँखो से तू तोल

    कह रही शृिष चीखकर, वसुंधरा अनमोल // 85. //

    मन पसनिचत हो गया, दखे हरा उदानफूल िखले ह ैचार सू, बढा रह ेह ैशान //86.//

    मानव मत िखलवाड कर, कुदरत ह ैअनमोल

    चुका न पायेगा कभी, कुदरत का तू मोल //87.//

    आने वाली नसल भी, सुने पीत के गीतकुदरत के कण-कण रचा, हरयाली संगीत //88.//

    फल-फूल कंदमूल ह,ै पृथवी को वरदान

    इन सबको पाकर बना, मानव और महान //89.//

    कर द ेमानव िजनदगी, कुदरत के ही नामवृक -लताओ पर िलखा, पयार भरा पैगाम // 90.//

    खणड तीन : अनय पद (53)

  • हरयाली के गीत मै, गाता आठो याम

    कोिट-कोिट पयारवरण, तुमको करँ पणाम // 91.//

    दीवाने -गािलब पढो, महावीर यूँ आपउदूर -अरबी -फारसी, िहनदी करे िमलाप // 92.//

    िशका -दीका ताक पर, रखता रोज गरीब

    बचपन बेगारी करे, फूटे हाय नसीब // 93.//

    पीढी -दर -पीढी गई, हरेक सची बातअकर-अकर जान ह,ै खुिशयो की सौगात //94.//

    िशका एक समान हो, एक बनेगा दशे

    फैला दो सवरत ही, पावन यह सनदशे // 95.//

    िजसमे िजतना जान है, उतना उसका तेजमहावीर िफर जान से, करता कयो परहजे //96. //

    िवदा मे हर शिक ह,ै हर मुिशकल का तोड

    पुसतक से मत फेर मुख, शबद बड ेबेजोड // 97.//

    अकर से कर िमतता, सची िमत िकताबतेरे सभी सवाल का, इसके पास जवाब // 98.//

    सारी भाषा-बोिलयाँ, िवदा का ह ैरप

    िवश मे चह ँओर ही, िखली जान की धूप //99. //

    जीवन ही अिपत िकया, सरसवती के नामउस साधक को यह जगत, झुककर करे पणाम //100.//

    खणड तीन : अनय पद (54)

  • पढा-िलखा इनसान ही, िलखता ह ैतकदीर

    अनपढ सदा दखुी रहा, कह ेकिव महावीर // 101.//

    एकानतवास जब कभी, मुझे करे बेचैन समृितवन के चलिचत मे, िवचरं तो हो चैन // 102.//

    वतरमान से भूत की, सारी किडयाँ जोड याद करो पल खुशनुमा, उदािसयो को छोड // 103.//

    कया भिवषय की गतर मे, मत हो तू हरैान कया अचछा तू कर सके, कर इसकी पहचान // 104.//

    परलौिकक आनंद ह,ै अधयातम द ेसकून मृगतृषणा ह ैवासना, कर इचछा का खून // 105.//

    िमले न जीवन मे कभी, तुझे परम् संतोष इचछा का पिरतयाग कर, भर जायेगा जोश // 106.//

    सबका खेवनहार है, एक वही मललाह िहदी मे भगवान है, अरबी मे अललाह // 107.//

    होता आया ह ैयही, अचरज की कया बात सच की खाितर आज भी, जहर िपए सुकरात // 108.//

    भकक बनता आदमी, दीन, धमर को ओढ धमर रसातल को गया, फूटा बनकर कोढ // 109.//

    लोकतनत की नाव मे, नेता करते छेद जनता बडी महान है, तिनक न करती खेद // 110.//

    खणड तीन : अनय पद (55)

  • दोहा गीत

    मैने इस संसार मे, झूठी दखेी पीतमेरी वथा-कथा कह,े मेरा दोहा गीत

    मैने इस संसार मे ….

    मुझको कभी िमला नही, जो थी मेरी चाहसहज न थी मेरे िलए, कभी पेम की राहउर की उर मे ही रही, अपना यही गुनाहकैसे होगा रात-िदन, अब जीवन िनवारहजब भी आये याद तुम, उभरे कष अथाहअब तो जीवन बन गया, ददर भरा संगीत

    मेरी वथा-कथा कह,े मेरा दोहा गीत //१. //मैने इस संसार मे ….

    आये िफर तुम सवप मे, उपजा सनेह िवशेषिनदा से जग िपये, छाया रहा कलेश

    िमला िनमंतण पत जो, लगी िहया को ठेसडोली मे तुम बैठकर, चले गए परदसे

    उस िदन से पाया नही, िचटी का सनदशेहाय! पराये हो गए, मेरे मन के मीत

    मेरी वथा-कथा कह,े मेरा दोहा गीत //२ . //मैने इस संसार मे ….

    छोड गए हो नैन मे, अशको की बौछारितल-ितलकर मरता रहा, जनम-जनम का पयार

    िवष भी द ेजाते मुझे, हो जाता उपकारिवरह अिग मे उर जले, पाए ददर अपार

    छोड गए कयो कर िपये, मुझे बीच मझधारअधरो पर मेरे धरा, िवरहा का यह गीत //३. //

    मेरी वथा-कथा कह े….

    •••

    खणड तीन : अनय पद (56)

  • जनक छनद१.

    जनक छंद की रौशनीचीर रही ह ैितिमर को

    िखली-िखली जयो चाँदनी२.

    भारत का हो ताज तुमजनक छंद तुमने िदया

    हो किवराज अराज तुम३.

    जनक छंद सबसे सहजतीन पदो का बंद है

    माता उनतािलस महज४.

    किवता का आननद हैफैला भारतवषर मे

    जनक पूरी का छंद है५.

    सुर-लय-ताल अपार हैजनक छंद के जनक काकिवता पर उपकार है

    ६.पूरी हो हर कामना

    जनक छंद की साधनादवेी की आराधना

    ७.छंदो का अब दौर है

    जनक छंद सब ही रचेयह सबका िसरमौर है

    खणड तीन : अनय पद (57)

  • ८.िकिचत नही िववाद यह

    गद-पद मे दौडताजीवन का संवाद यह

    ९.ईशर की आराधना

    शबदो को लय मे िकयाकिव की महती साधना

    १०.यूँ किवता का तप करेडोले आसन दवे का

    ऋिष-मुनी जयो जप करे११.

    तीन पदो का रप यहपेडो की छाया तले

    छांव अरी ह ैधूप यह१२.

    बात हदय की कह गएजनक छंद के रप मे

    सब िदल थामे रह गए१३.

    उर मे यिद संकलप होकालजयी रचना बनेकाम भले ही अलप हो

    १४.सोच-समझ कर यार िलख

    अजर-अमर ह ैशबद तोथामे कलम िवचार िलख

    खणड तीन : अनय पद (58)

  • १५.काल कसौटी पर कसेगीत-गजल अचछे-बुरे‘महावीर’ तुमने रचे

    १६.रामचिरत ‘तुलसी’ रचे

    सारे घटना चक कोभावो के तट पर कसे

    १७.जीवन तो इक छंद है

    किवता नही तुकांत भरअथर युक बंद है

    १८.कर िहसाब से िमतताजान भरी निदया बहेकर िकताब से िमतता

    १९.मीर-असद की शायरी

    लगे हमारे सामनेबीते कल की डायरी

    २०.किवता को आला िकया

    मुक िनराले छंद नेहर बंद िनराला िकया

    २१.बचन युग-युग तक िजए

    जीवन दशरन द ेरहेमधुशाला की मय िपए

    खणड तीन : अनय पद (59)

  • २२.‘परसाई’ के रंग मे

    चलो सतय के संग तुमवंिजत वंगय तरंग मे

    २३.अपने दम पर ही िजयावीर िशवाजी-सा नहीिजसने जो ठाना िकया

    २४.काल परािजत हो गया

    सािवती के यतन सेपित िफर जीिवत हो गया

    २५.राम कथा की शान वहह ैवीर ‘महावीर’ इकबजरंगी हनुमान वह

    २६.वेदो का गौरव िगराकरके सीता का हरणरावण का सौरव िगरा

    २७.दतैय अकल चकरा गईवथर िकया सीता हरणदवेी कुल को खा गई

    २८.माया मृग की मोिहनीहदय हरण करने लगीसीता सुध-बुध खो रही

    खणड तीन : अनय पद (60)

  • २९.राजा बिल के दान परिवषणु अचिमभत से खडे

    लुट जाऊं ईमान पर३०.

    कहर सभी पर ढा गयािजदी दयुोधन बनापूरे कुल को खा गया

    ३१.बनी महाभारत नईघात करे अपने यहाँभाई दयुोधन कई

    ३२.गंगा की धारा बहे

    धोकर तन की गंदगीमन कयो िफर मैला रहे

    ३३.लकमी ठहरी ह ैकहाँइनकी िकससे िमतताआज यहाँ तो कल वहाँ

    ३४.बात करो तुम लोकिहतअचछा-बुरा िवचार लोकाज करो परलोक िहत

    ३५.अपना-अपना िहत धरािकसको कब परवाह थीगठबंधन अचछा-बुरा

    खणड तीन : अनय पद (61)

  • ३६.राजनीित सबसे बुरी

    ‘महावीर’ सब पर चलेये ह ैदो धारी छुरी

    ३७.बनी बुरी गत आपकीरकाकमी रात-िदनसेवा मे रत आपकी

    ३८.भाषा भले अनेक हैदोनो का उतर नही

    उदूर-िहदी एक है३९.

    िहदी की बंदी बडीननह-ेननह ेपग धरे

    दिुनया के आगे खडी४०.

    सकल िवश ह ैदखेताअनेकता मे एकता

    भारत की सुिवशेषता४१.

    भारत का ह ँअंग मैमुझको ह ैअिभमान यूँ

    मानवता के संग मै४२.

    भारत ऐसा दशे हैमानवता बहती जहाँसबको यह सनदशे है

    •••

    खणड तीन : अनय पद (62)

  • जनक छनद गीत फूल िखले ह ैपयार केगले िमलो गुलनार के

    साये मे दीवार केफूल िखले ह ै……………….

    जीतो अपने पयार कोलकय करो संसार को

    अपना सब कुछ हार केफूल िखले ह ै……………….

    ऐसे डूबो पयार मेजयो डूबे मझधार मेनैया िबन पतवार के

    फूल िखले ह ै……………….

    खुशी मनाओ झूमकरधरती-अमबर चूमकरसपने दखेो यार के

    फूल िखले ह ै……………….

    िदल से िदल को जोिडयेपेम डोर मत तोिडयेबोल बडे ह ैपयार के

    फूल िखले ह ै……………….

    •••

    *गुलनार — अनार की एक िकसम की पजाित िजसमे फल नही लगते।

    खणड तीन : अनय पद (63)

  • छपपय छंद (१.)

    िनधरनता अिभशाप, बनी कडवी सचाईवक बडा ह ैसखत, बढे पल-पल महगंाई

    िपसते रोज गरीब, हाय! कयो मौत न आई“महावीर” किवराय, िवकलप न सूझे भाईलोकतंत की नीितयाँ, पहरी पूंजीवाद कीभषतंत की बोिलयाँ, दोषी कडवे सवाद की

    (२.)भषतंत को बदल, मचल मत भषाचारी

    जनिहत मे कर काम, कह ेजनता यह सारीकुचल रह ेअरमान, कुशासन ह ैबीमारीकैसा बना िवधान, दखुी जनता बेचारी

    अचछी छिव के लोग ही, अब सता मे लाइएलोकतंत मे आसथा, िफर से आप जगाइए

    (३.)पेम पयार की बात, लगे सबको ही मीठी

    पयार िबना ह ैिमत, खुशी भी फीकी-फीकीकानो मे िदन-रात, पेम की गूंजे सीटीमन मे आठो याम, तुमहारी मूरत दीखी

    कृषण बना तो रास रच, बंसी मधुर बजाइएमीठी वाणी बोलकर, हरदम ही इतराइए

    खणड तीन : अनय पद (64)

  • (४.)सबका बेडागकर , वगरभेद ही कर रहा

    अमीर करते ऐश, गरीब ितल-ितल मर रहा“महावीर” किवराय, आम आदमी डर रहाशासक खुद इलजाम, िनजाम पे धर रहा

    कहते तुलसीदास भी, समरथ को कया दोष हैजनता तो इक गाय है, गवाला तो िनदोष है

    (५.)“महावीर” यह राष, एक सवर मे गाएगािशका पर यिद केद, कठोर नीित लाएगाअमीर-गरीब भेद, िफर कहाँ रह पायेगायिद िशका का गाफ, एक सा हो जायेगा

    भारत को यह िवश भी, बडे गवर से दखेतािशका एक समान यिद, और बढेगी एकता

    •••

    खणड तीन : अनय पद (65)

  • कुणडिलया छंद(1.)

    मानव दानव बन गया, ऐसी चली बयारचह ँओर आतंक की, मचती हाहाकार

    मचती हाहाकार, धमर, मजहब को भूलेबम, गोला, बारद, इसी के दम पर फूलेमहावीर किवराय, बन रह ेमानव दानवचला यिद यही दौर, बचेगा कैसे मानव

    (2.)कैसा यह दसतूर है, कैसा खेल अजीबसीधे साधे लोग ही, चढते यहाँ सलीब

    चढते यहाँ सलीब, जहर िमलता सचो कोबुरे करे सब ऐश, कष दतेे अचछो कोमहावीर किवराय, बडा ह ैसबसे पैसाइसके आगे टूट, चुका सच कैसा कैसा

    (3.)ममता ने संसार को, िदया पेम का रप

    माँ के आँचल मे िखली, सदा नेह की धूपसदा नेह की धूप, पयार का ढंग िनरालाभूखी रहती और, बाँटती सदा िनवाला

    महावीर किवराय, िदया जब दःुख दिुनया नेिसर पर हाथ सदवै, रखा माँ की ममता ने

    (4.)ईशर का यह शाप कयो, अब तक अप-टू-डेट

    हर युग मे खाली रहा, िनधरन का ही पेटिनधरन का ही पेट, राम की लीला नयारीसोये पीकर नीर, सडक पर कयो खुदारी

    महावीर किवराय, घाट का रहा न घर काभूखे पेट गरीब, न पूजन हो ईशर का

    खणड तीन : अनय पद (66)

  • (5.)पहचानो इस सतय को, िमट जायेगी साखजीवन दशरन बस यही, इक मुटी भर राखइक मुटी भर राख, कह ेसब जानी धयानीमगर आज भी सतय, नही समझे अजानीमहावीर किवराय, बात बेशक मत मानोिनकट खडी ह ैमृतयु, सतय कडवा पहचानो

    (6.)राधा-रानी कृषण की, थी बचपन की मीतमीरा ने भी सुन िलया, बंसी का संगीत

    बंसी का संगीत, हरे सुध-बुध तन-मन कीमुरलीधर गोपाल, खबर तो लो जोगन कीमहावीर किवराय, अमर यह पेम कहानीमीरा बनी िमसाल, सुनो ओ राधा-रानी

    (7.)सावन के बदरा िघरे, सखी िबछावे नैनरप सलोना दखेकर, साजन ह ैबेचैनसाजन ह ैबेचैन, भीग न जाये सजनी

    ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनीमहावीर