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www.krishiexpert.com | Feature article | May 2017 Page 1 of 9 लाख कीट पालन डॉ. हेमत वामी, परियोजना भािकीट विान विभाग, राजथान क वि महावियालय महाराणा ताप क वि एिं ौयोगगकी वििवियालय उदयपुर - 313 001 (राज.) संपक क ः फोनः 09414169035 / 09636999035 ई मेलः [email protected] Lac is the scarlet resinous secretion of a number of species of lac insects. Cultivation begins when a farmer gets a stick (broodlac) that contains eggs ready to hatch and ties it to the tree to be infested. Lac is a natural resin secreted by insects that feed on certain host trees. It is a valuable natural product, used widely in the food, furniture, cosmetics and pharmaceutical industries with a huge international market potential. India is the largest producer of lac in the world and contributes to about 70% of the world’s need. However, there is currently a gap of 21% between demand and supply. Within India, the state of Jharkhand has the largest number of host trees and ranks first in the country for production. The insects live as a parasite, feeding on the sap of certain trees and shrubs. The important trees on which the lac insects breed and thrive well are: Kusum (Schleichera trijuga), Palas (Butea frondosa), Ber (Zizyphus jujuba), Babul (Acacia arabica), Khair (Acacia catcchu), Arhar (Ca]anus indicus) ,Cultivation of lac involves proper care of host plants, regular pruning of host plant, infection or inoculation, crop-reaping, control of insect pests, and forecast of swarming, collection and processing of lac. लाख हमारे देश की एक ाक तक धरोहर है। जो आददिासी ि गरीब का नकदी फसल की अनुपथतत म आय का मुख ोत है। लाख एक ाक तक रॉल है जो क शकीय मादा लाख कीट के शरीर से ाि के गाढ़े होने के पचात् ात होती है। लाख की खेती मुयतः भारत, मयांमार, थाईलैड, मलाया आदद देश म होती है। भारत झारखड, बहार, छीसगढ़, मयदेश, पचम बंगाल, उर देश आद अणी राय है। राजथान म उदयपुर, गचौड़गढ़, बासिाड़ा, डंगरपुर ि भीलिाड़ा म लाख की खेती की बल समभािनाए है। भारत म विि की 70 तशत लाख का उपादन होता है जसम से 90 ततशत झारखड, बबहार, छीसगढ़, मयदेश, पचम बंगाल राय से आता है। लाख कीट का िैातनक नाम कै ररया लेका ‘कैर’ है। यह लैससकफरेडी परिार का सदय है। लाख कीट की दो कम होती है जह रंगीनी ि क सुमी कहते ह। येक जातत से ििक म दो फसल ली जाती है। भारतििक म लाख उपादन का लगभग 70 ततशत

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  • www.krishiexpert.com | Feature article | May 2017 Page 1 of 9

    लाख कीट पालन

    डॉ. हेमेंत स्वामी, परियोजना प्रभािी कीट विज्ञान विभाग, राजस्थान कृवि महाविद्यालय महाराणा प्रताप कृवि एि ंप्रौद्योगगकी विश्िविद्यालय उदयपरु - 313 001 (राज.) संपकक ः फोनः 09414169035 / 09636999035 ई मेलः [email protected]

    Lac is the scarlet resinous secretion of a number of species of lac insects. Cultivation begins when a farmer gets a stick (broodlac) that contains eggs ready to hatch and ties it to the tree to be infested. Lac is a natural resin secreted by insects that feed on certain host trees. It is a valuable natural product, used widely in the food, furniture, cosmetics and pharmaceutical industries with a huge international market potential. India is the largest producer of lac in the world and contributes to about 70% of the world’s need. However, there is currently a gap of 21% between demand and supply. Within India, the state of Jharkhand has the largest number of host trees and ranks first in the country for production. The insects live as a parasite, feeding on the sap of certain trees and shrubs. The important trees on which the lac insects breed and thrive well are: Kusum (Schleichera trijuga), Palas (Butea frondosa), Ber (Zizyphus jujuba), Babul (Acacia arabica), Khair (Acacia catcchu), Arhar (Ca]anus indicus) ,Cultivation of lac involves proper care of host plants, regular pruning of host plant, infection or inoculation, crop-reaping, control of insect pests, and forecast of swarming, collection and processing of lac.

    लाख हमारे देश की एक प्राकृततक धरोहर है। जो आददिासी ि गरीबों का नकदी फसलों की अनपुस्स्थतत में आय का प्रमखु स्रोत है। लाख एक प्राकृततक रॉल है जो कक शल्कीय मादा लाख कीट के शरीर से स्राि के गाढ़े होने के पश्चात ्प्राप्त होती है। लाख की खेती मखु्यतः भारत, मयांमार, थाईलणै्ड, मलाया आदद देशों में होती है। भारत में झारखण्ड, बबहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पस्श्चम बगंाल, उत्तर प्रदेश आदद अग्रणी राज्य है। राजस्थान में उदयपरु, गचत्तौड़गढ़, बााँसिाड़ा, ड गंरपरु ि भीलिाड़ा में लाख की खेती की प्रबल समभािनाएाँ है। भारत में विश्ि की 70 प्रततशत लाख का उत्पादन होता है स्जसमें से 90 प्रततशत झारखण्ड, बबहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पस्श्चम बगंाल राज्यों से आता है। लाख कीट का िजै्ञातनक नाम कैररया लेका ‘कैर’ है। यह लसैसकफरेडी पररिार का सदस्य है। लाख कीट की दो ककस्में होती है स्जन्हें रंगीनी ि कुसमुी कहत ेहैं। प्रत्येक जातत से ििक में दो फसलें ली जाती है। भारतििक में लाख उत्पादन का लगभग 70 प्रततशत

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    भाग रंगीनी ककस्म की फसलों से उत्पन्न होता है तथा शिे भाग कुसमुी फसलों से पदैा होता है। सबसे अच्छी लाख कुसमुी फसलों से ही पदैा होती है और बाजार में दाम भी अगधक प्राप्त होता है। 1 कक.ग्रा राल के उत्पादन के सलए 300,000 कीटों की आिश्यकता होती है।

    लाख के मखु्य पोषक वकृ्ष लाख ककस्म पोषक वकृ्ष

    िंगीनी बेर, पलास, पीपल, गलुर, रेन ट्री, पटुकल फ्लेमेस्न्जया माइक्रोफाइला, गोंट आदद कुसमुी कुसमु, बेर, सेसमयालता, खरै, गलिांग (ससररस) आदद।

    इन सभी पोिक पौधों में पलास, कुसमु, बेर, खैर एि ंगलिांग मखु्य हैं। भारत में लगभग 90 प्रततशत लाख का उत्पादन इन्हीं पर होता है।

    लाख फसल एव ंअवधि

    लाख फसल बीहड़ चढ़ाना पकने का समय अवधि (माह)कुसमुी अगहनी ज न-जुलाई जनिरी-फरिरी 6 माह

    जेठिी जनिरी-फरिरी जुन-जुलाई 6 माह िंगीनी कतकी ज न-जुलाई अक्ट बर-निमबर 4 माह

    बसैाखी अक्ट बर-निमबर ज न-जुलाई 8 माह

    लाख का उत्पादन एव ंववभभन्न प्रकियाएँ लाख उत्पादन की प्रकक्रया आसान ि बबना बड़ ेखचक के शरुू की जा सकती है। लाख उत्पादन की दो विगधयााँ प्रचसलत हैं:-

    1. प्रचभलत ववधि/पिम्पिागत ववधि: यह विगध बहुत प्राचीन एि ंअिजै्ञातनक है। इसमें लाख के पौधों को ही काटकर लाख एकबित की जाती है। तथा लक्ष कीट का कोई ध्यान न देकर लाख तनकाली जाती है। फलस्िरूप कीट नष्ट हो जात ेहैं। यह विगध प्रायः आददिाससयों द्िारा ही अपनाई जाती है।

    2. आिुननक ववधि: यह विगध के अनसुार पौधों को 3 भागों (कुसमु को 4 भागों) में विभास्जत ककया जाता है। तथा उनस ेलाख एक साथ न तनकालकर बारी-बारी से तनकालत ेहैं। इसस ेसभी िकृ्षों को आराम समलता है। तथा िे स खत ेनहीं है। अच्छी लाख के उत्पादन के सलए विसभन्न प्रकक्रयाएाँ अपनाई जाती है जो तनमन हैं – (i) उपयकु्त स्थान का चुनाि, (ii) िकृ्षों की कांट-छांट, (iii) कीट सचंारण, (iv) फंुकी उतारना (v) दिा का तछड़काि, (vi) फसल कटाई।

    (i) उपयकु्त स्थान का चुनाव स्थान का चुनाि पोिक पौधों के सलए आिश्यक िातािरण के आधार पर करना चादहए। लाख उत्पादन के सलए िाविकक ििाक 1000 से 1500 सममी. तथा तापमान 24-27 डडग्री सेन्टीग्रेड तक उपयकु्त माना जाता है। तथा मदृा पोिक तत्िों यकु्त हो।

    (ii) वकृ्षों की कांट-छांट पौधों की कांट-छांट लाख उत्पादन की मखु्य प्रकक्रया हैं पौधों की तनरन्तर िदृ्गध के सलए हल्की

    कांट-छांट करनी चादहये तथा इससे पेड़ का आकार भी बनता है। अगं ठे से मोटी (2.5 से.मी. व्यास से अगधक) टहतनया ंन काटे । 1.25 से.मी. व्यास से कम तथा 2.5 से.मी. से कम के मधय् की टहतनयों को

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    उनके उत्पवत्त स्थान से काट देंिे। स खी, रोग ग्रस्त, कमजोर टहतनयों को भी काट देना चादहये। अगधकतर लाख उत्पादक कांट-छांट के सलए कुल्हाड़ी ि दराती का उपयोग करत ेहैं। लेककन इनस ेसही काट-छांट नहीं हो पाती है ि कभी-कभी पेड़ को भी नकुसान पहुाँच जाता है। ससकेदटयर ि पेड़ प्रनुर इसके सलए उपयकु्त यिं है।

    उद्देश्य 1. नई, स्िस्थ, रसदार टहतनयों को बढ़ाने के सलए। 2. पोिक पेड़ को आराम प्रदान करन के सलए स्जससे िह स्िस्थ रहे।

    पोिक पौधे की काट-छांट के प्रकार 1. हल्की कटाई : 2.5 से.मी. व्यास से कम की टहतनयों की कटाई। उदाहरण - बेर, पलास, कुसमु। 2. भािी कटाई: 7 से.मी. व्यास से कम की टहतनयों की कटाई। उदाहरण - फ्लेमेस्न्जया सेसममालता, फ्लेमेस्न्जया माइक्रोफाइला।

    काट-छांट का समय: पलास ि बेर में कीट सचंरण के 6 माह प िक तथा कुसमु में 18 माह प िक।

    पेड़ फसल कब

    पलास कतकी मध्य फरिरी बैसाखी अप्रेल

    बैर बैसाखी अप्रेल अगहनी जनिरी

    कुसुम अगहनी जनिरी /फरिरी जेठिी ज न/जुलाई

    (iii) कीट सचंािण पोिक पेड़ों पर लक्ष कीट को चढ़ाने की कक्रया को सचंारण कहत ेहैं। स्जन पौधों पर लाख कक्ष

    होती है। उनमें से अच्छी ि स्िस्थ लाख टहतनयों को छांट लेत ेहैं। और इन बीहन लाख (गभकयकु्त मादा लाख कीट सदहत टहतनयााँ) का बण्डल बनाकर िकृ्षों की डासलयों पर बांध ददया जाता है। उनमें से सशश ुतनकल कर पोिक पौधों की हरी टहतनयों पर इधर-उधर टहल कर उपयकु्त स्थान तलाश कर लेत ेहैं। और िही पर गचपक कर रस च सत ेहैं तथा लाख उत्पन्न करने लग जात ेहैं। साविाननया ँ जब लक्ष कक्ष पर पीला धब्बा ददखाई दे। मतलब यह टहनी कीट सचंारण के सलए उपयकु्त हो गई

    है। लगभग आधा फीट लमबी 3-4 टहतनयों के बण्डल बनायें। बीहन लाख के बण्डलों को िकृ्षों की टहतनयों के समानान्तर ऊपर की ओर मोटी डासलयों पर कसकर

    बांधे। बीहन लाख के टुकड़ों (टहतनयों से अलग हुए) का उपयोग नाईलाॅ न की जाली में भरकर करे। शि ुकीटों से सरुक्षा हेतु 60 मेश नाईलाॅ न की जाली (33 से.मी × 10 से.मी.) में भरकर पेड़ों पर

    बांध दे।

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    (iv) फंुकी उतािना बीहन लाख बांधने के 21 ददन बाद सशशकु कीट तनगकमन के पश्चात ्बची हुई लाख डण्डी ही फंुकी लाख कहलाती है।

    (v) दवा का नछड़काव परजीिी एि ं सशकारी दोनों प्रकार के ही कीट इसके शि ु है। इनस े लगभग 30-40 प्रततशत

    नकुसान का अनमुान लगाया गया है।

    पिजीवी कीट सभी परजीिी कीटों में से टेकार डडफेगसटेकारडडई ि टेट्रास्स्टकल परप्यरुरयम मखु्य है। जो लाख

    को नकुसान पहुाँचात ेहैं। यह अपने अण्ड ेलक्ष कक्ष में दे देत ेहैं। तथा अण्डों से तनकलत ेही लाख कीट पर भरण करत ेहैं। इनस े5-10 प्रततशत हातन प्रततििक होती है।

    भिकािी कीट सभी सशकारी कीटों में से यबुलेमा अमाबबसलस ि होलोसेरा पलुिेई प्रमखु हैं इन दोनों की ससु्ण्डयां

    लक्ष कीट और लाख दोनों को ही खाती है। इनके अततररक्त क्राइसोपा स्स्पसीज भी कीटों को खाती है। सशकारी कीटों से उपज में लगभग 40 प्रततशत हातन का अनमुान लगाया गया है।

    िोकथाम एव ंननयतं्रण परजीिी ि सशकारी कीटों से यकु्त बीहन लाख का ही उपयोग करें। फंुकी लाख को 3 सप्ताह (21 ददन) बाद हटा लेना चादहए। यांबिक तनयिंण: शि ुकीटों से सरुक्षा हेत ु60 मेश नाईलॉन की जाली (33 से.मी.× 10 से.मी.)

    टहतनयों स्जन पर लाख का कीट स्स्थत है पर दोनों ससरे से बांध दे।

    िासायननक ननयतं्रण सामान्यतः कीटनाशक इथोफेनप्राक्स 0.02 प्रततशत, डाइक्लोरिाश 0.03 प्रततशत ि फफ ं दनाशक

    काबेन्डास्जम 50 प्रततशत डब्ल्य पी 0.01 प्रततशत सभी फसलों में कीट सचंारण के एक माह पश्चात ्या फंुकी हटान ेके एक सप्ताह के भीतर तथा द सरी बार डाइक्लोरिाश 0.03 प्रततशत नर कीट तनकलने के एक सप्ताह पहले। िंगीनी-बसैाखी: पलास ि बेर पर कीट सचंारण के 30, 60 और 90 ददन पर (105-125 ददनों के बीज

    तछड़काि न करे) तछड़काि करे। कतकी: अगस्त के प्रथम सप्ताह में कीट सचंारण के 30, 60 ददन पर (42-58 ददन के बीच

    तछड़काि न करे) तछड़काि करे। कुसमुी-जेठवी: फरिरी के अस्न्तम या माचक के प्रथम सप्ताह और अप्रेल के अस्न्तम या मई के प्रथम

    सप्ताह में। अगहनी: कीट बठैने के पश्चात ्अगस्त प्रथम सप्ताह और अक्ट बर के प्रथम सप्ताह में तछड़काि करे।

    सकू्ष्म जैववक ननयतं्रण जैविक कीटनाशी थुरीसाइड (बसैसलस थुरीन्जैनेससस) का 30-35 ददन की फसल पर तछड़काि करे।

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    (vi) फसल कटाई जब लाख कक्ष पर पीला धब्बा ददखाई देने लगे तब यह बीहन लाख के सलए फसल की कटाई का

    उपयकु्त समय होता है। यह सशशकु कीट के कक्ष से तनकलने का स चकांक भी होता है। फसल की कटाई भी ससकेदटयर ि लमब ेपेड़ छांटन ेके यिं (प्रनुर) से की जाती है। यदद प री फसल एक साथ न पके तो स्जन टहतनयों पर लाख पररपक्ि हो गई हो उन की कटाई कर लेनी चादहये। अपररपक्ि (अरी) लाख कटाई पर पररपक्ि (स्स्टक) लाख की अपेक्षा 25 प्रततशत उपज कम प्राप्त होती है। पररपक्ि कटी टहतनयों को इकट्ठा कर ि लाख को खुरचकर प्राप्त की जाती है।

    फसल की कटाई पि ननम्न बातों का ध्यान िखें ग्रीष्मकालीन फसलें (जेठवी व बसैाखी): इनकी प री कटाई अण्ड ेसे सशशकु कीट तनकलने के एक

    सप्ताह पहल े(पीला धब्बा ददखने पर) कर लेनी चादहए। िीतकालीन फसलें (अगहनी व कतकी): इनकी प री कटाई अण्ड ेसे सशशकु कीट तनकलने लगत ेही

    प री कर लेनी चादहये। लाख को शीघ्र द सरे स्थान पर पहुाँचाए जहााँ कीट का सचंारण करना है।

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