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http://srimadhvyasa.wordpress.com/https://sites.google.com/site/srimadhvyasa/ Page 1 आचाराय ीमदाचाराय सϿु मे जв जвनि॥गुभावं ӜरनϿ भानि ी जरिीयवाक् ॥कृ ӿं वДे जगο ुम ् ರೀಮದಾನನದತೀಥಭಗವಾಾದಾಚಾಥಃ Tracking: Sr Date Remarks By 1 1/11/2011 Typing Started on Srinivasa Rao H K 3 18/12/2012 I Proof Reading M S Venugopal 4 25/07/2012 Correction By Srinivasa Rao H K

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Page 1: Sriman Nyaya Sudha - SRIMADHVYASA · //sites.google.com/site/srimadhvyasa/ आचारााःय श्रीमदाचारााःय

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Page 1 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ಶ್ರೀಮದಾನನದತೀರ್ಥಭಗವತ್ಾಾದಾಚಾರ್ಥಃ

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1 1/11/2011 Typing Started on Srinivasa Rao H K

3 18/12/2012 I Proof Reading M S Venugopal

4 25/07/2012 Correction By Srinivasa Rao H K

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Page 2 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

॥ಶ್ರೀ ಹರ್ವದನ ರಂಗವಿಠ್ಠಲ ಗ ೀಪೀನಾಥ ೀ ವಿಜರ್ತ್ ೀ॥

Blessed by Lord and with His divine grace, we are pleased to publish this Magnanimous Work of sri Acharya Madhwa. It is a humble effort to make available this Great work to sadhakas who are interested in the noble path of propagating Acharya Madhwa’s Philosophy.

With great humility, we solicit the readers to bring to our notice any inadvertant typographical mistakes that could have crept in, despite great care. We would be pleased to incorporate such corrections in the next versions. Users can contact us, for editable version, to facilitate any value additions.

Contact: H K SRINIVAsA RAO, N0 26, 2ND FLOOR, 15TH CROSS, NEAR VIDHYAPEETA CIRCLE, ASHOKANAGAR, BANGALORE 560050. PH NO.

26615951, 9901971176, 8095551774, Skype Id: SRKARC6070

Email : [email protected]

ಕೃತಜ್ಞತ್ ಗಳು

ಜನಾಮಂತರದ ಸುಕೃತದ ಫಲವಾಗಿ ಮಧ್ವಮತದಲಿ್ಲ ಜನಿಸಲು, ಪ ರೀಮಮ ತಥಗಳಾಗಿ ನನನ ಅಸಿ್ತತವಕ್ ೆ ಕ್ಾರಣರಾದ, ಈ ಸಾಧ್ನ ಗ ಅವಕ್ಾಶಮಾಡಿದ, ನನನ ಪೂಜಯ ಮಾತ್ಾ ಪತೃಗಳಾದ, ದಿವಂಗತರಾದ ಲಲ್ಲತಮಮ ಮತುಿ ಕೃಷ್ಣರಾವ್ ಹ ಚ್ ಆರ್ ಅವರ ಸವಿ ನ ನಪನಲಿ್ಲ ಈ "ಸವಥಮ ಲ ರ್ಜ್ಞ"

‘‘ಮಾಮಾತೃದ ೀವೀ ಭವ ಪತೃದ ೀವೀ ಭವ-ಆಚಾರ್ಥದ ೀವೀ ಭವ

ಗರಂರ್ಋಣ: ವಾಯಸನಕ್ ರ ಪರಭಂಜನಾಚಾರ್ಥರಂದ ಪರಕ್ಾಶ್ತವಾದ ಸವಥಮ ಲಗರಂರ್ಗಳು.

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Page 3 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

॥श्रीमद्भगवद्गीि॥-॥श्रीमद्भगवद्गीिा भाष्यम॥् ...................................................................... 4 उपोद्घािाः .......................................................................................................................... 4

श्रीमद्भगवद्गीिा .......................................................................................................... 6 अर् प्रर्मोऽध्याराः .............................................................................................................. 6 अर् नििीरोऽध्याराः ........................................................................................................... 12 आर् ििृीरोऽध्याराः .......................................................................................................... 42 अर् चिरु्ोऽध्याराः॥ ......................................................................................................... 55 अर् पञ्चमोऽध्याराः॥ ......................................................................................................... 65 अर् षष्ठोऽध्याराः ............................................................................................................... 71 अर् सप्तमोऽध्याराः ............................................................................................................ 83 अर् अष्टमोऽध्याराः ............................................................................................................ 92 अर् िवमोऽध्याराः .......................................................................................................... 101 आर् दशमोऽध्याराः ......................................................................................................... 112 अर् एकादशोऽध्याराः ....................................................................................................... 121 अर् िादशोऽध्याराः ......................................................................................................... 134 अर् त्ररोदशोऽध्याराः ....................................................................................................... 142 अर् चिदु यशोऽध्याराः........................................................................................................ 150 अर् पञ्चदशोऽध्याराः ........................................................................................................ 155 अर् षोडशोऽध्याराः ......................................................................................................... 159 अर् सप्तदशोऽध्याराः ........................................................................................................ 164 अर् अष्टादशोऽध्याराः....................................................................................................... 169

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Page 4 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

॥श्रीमद्भगवद्गीि॥-॥श्रीमद्भगवद्गीिा भाष्यम॥् दवे ंिारारण ंित्वा सवयदोषनववनज यिम।् पनरपणू ंगरंुश्चानप गीिार् ंवक्ष्यानम लेशिाः॥

उपोद्घािाः िष्टधमयज्ञािलोककृपालुनभब्रह्मरुदे्रन्द्रानदनभरनर् यिो ज्ञाि प्रदश यिार भगवाि ् व्यासोsवििार। ििश्चषे्टानिष्टप्रानप्त पनरहार साधिादश यिाि ् वदेार्ा यज्ञािाच्च ससंार े निश्रमािाि ं वदेािनधकानरणा ं स्त्रीशदू्रादीिा ं च धमयज्ञाििारा मोक्षो भवनेदनि कृपालुाः सव यवदेाद्यर्ोपबृनंहिा ं िदिकु्तकेवलशे्वर - ज्ञािदृष्टार् यरकु्ता ं च सव यप्रानण िामावगाह्यािवगाह्यरपा ं केवल भगवत्स्वरपपरा ं परोक्ष्यार्ा ंमहाभारिसनंहिामचीिृपि॥् िच्चोक्तम ् - लोकेशा ब्रह्मरुद्राद्यााः ससंार ेिेनशि ंजिम।् वदेार्ा यज्ञमधीकारवनज यि ंच नस्त्ररानदकम॥्

अवके्ष्य प्रार् यरामासदुवेशे ंपरुुषोत्तमम।् ििाः प्रसन्नो भगवाि ् व्यासो भतू्वा च ििे च॥

अन्याविाररपशै्च वदेािकु्तार् यभनूषिम।् केवलेिात्मभोधिे दृष्ट ंवदेार् यसरंिुम॥्

वदेादनप परं चके्र पञ्चम ंवदेमतु्तमम।् भारि ंपञ्चरात्र ंच मलूरामारण ंिर्ा॥

परुाण ंभागवि ंचनेि सनंभन्नाः शास्त्र पङु्गवाः ॥ -इनि िारारणाष्टाक्षरकल्प॥े

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Page 5 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ब्रह्माऽनप िन्न जािानि ईषि ् सवोऽनप जािनि। बह्वर् यमषृरस्ति ् ि ुभारि ंप्रवदनन्त नह॥इत्यपुिारदीर॥े

ब्रह्माद्याैः प्रानर् यिो नवष्णभुा यरि ंस चकार ह। रनिि ् दशार्ा याः सवयत्र ि ज्ञरेााः सवयजन्तनुभाः॥

इनि िारदीर॥े

भारि ंचानप कृिवाि ् पङ्चम ंवदेमतु्तमम।् दशावरार् ंसवयत्र केवलं नवष्णबुोधकम॥्

परोक्षार् ंि ुसवयत्र वदेादप्यतु्तम ंि ुरि॥्इनि स्कान्द॥े

“रनद नवद्याच्छिवुदेाि ् साङ्गोपनिषदाि ् निजाः। ि चिे ् परुाण ंसनंवद्यान्नवै स स्यानिचक्षणाः॥

इनिहासपरुाणाभ्ा ंवदे ंसमपुबृहंरिे।् नबभते्यल्पश्रिुािदेो मामर ंप्रचनलष्यनि॥”

“मन्वानद केनचद्ब्रवुि ेह्यास्तीकानद िर्ाऽपर।े िर्ोपनरचराद्यन्य ेभारि ंपनरचक्षि॥े”

भारि ंसवयवदेाश्च िलुामारोनपिााः परुा। दवेबै्र यह्मानदनभाः सवरैऋ्नषनभश्च समनन्विाैः॥

व्यासस्यवैाज्ञरा ित्र त्वत्यनरच्यि भारिम ् महत्त्वाद्बारवत्त्वाच्च महाभारिमचु्यि॥े

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Page 6 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

निरुक्तमस्य रो वदे सवयपापाैः प्रमचु्यि।े “रनदहानस्त िदन्यत्र रन्नहेानस्त ि कुत्रनचि॥्” ‘नवराटोद्योगसारावाि ्’ इत्यानद ििाक्यपरा यलोचिरा, ऋनषाः सपं्रदाराि ्, ‘कोह्यन्याः पणु्ढरीकाक्षान्महाभारिकृद्भविे ्’ इत्यानद परुाणान्तग यिवाक्यार्ा यन्यर्ाऽिपुपत्या, िारदाध्यरिानद-नलङ्गशै्चाव-सीरि।े कर्मन्यर्ा भारिनिरुनक्तज्ञािमात्रणे सव यपापक्षराः ? प्रनसद्धश्च सोऽर् याः। कर् ंचान्यस्य ि कि ु ं शक्यि े ? ग्रन्थान्तरगित्वाच्च िानवद्यमािस्तनुिाः। ि च कि ुयरवे। इिरत्रानप साम्याि।् ित्र च सव यभारिार् यसङ्ग्रहा ं वासदुवेाज ुयिसवंादरपा ं भारि-पानरजािमधभुिूा ं गीिामपु निबबन्ध | िच्चोक्तम ् - भारि ंसवयशास्त्रषे ुभारि ेगीनिका वरा। नवष्णोाः सहस्रिामानप ज्ञरे ंपाठ्य ंच िद्द्वरम॥्

इनि महाकौम।े

‘स नह धमयाः सपुरा यप्तो ब्रह्मणाः पदवदेि’े। इत्यानद च।

उपोद्घािाः समाप्ताः |

श्रीमद्भगवद्गीिा अर् प्रर्मोऽध्याराः

धिृराष्ट्र उवाच धम य क्षते्र ेकुरुक्षते्र ेसमविेा ररुतु्सवाः। मामकााः पाण्डवाश्चवै नकमकुव यि सञ्जर॥01॥ सञ्जर उवाच

दृष्ट्वा ि ुपाण्डवािीकं व्यढू ंदुरोधिस्तदा। आचार यमपुसङ्गम्य राजा वचिमब्रवीि॥्02॥

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Page 7 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

पश्रिैा ंपाण्डुपतु्राणामाचार य महिीं चममू।् व्यढूा ंदु्रपदपतु्रणे िव नशष्यणे धीमिा॥03॥

अत्र शरूा महषे्वासा भीमाज ुयि समारनुध। ररुधुािो नवराटश्ज दृपदश्च महारर्ाः॥04॥

धषृ्टकेिशु्चनेकिािाः काशीराजश्च वीर यवाि।् परुुनजतु्कनन्तभोजश्च शभै्श्च िरपङु्गवाः॥05॥

रधुामन्यशु्च नवक्रन्त उत्तमौजाश्च वीर यवाि।् सौभद्रो द्रौपदरेाश्च सवय एव महारर्ााः॥06॥

अिाकं ि ुनवनशष्टा र ेिाि ् निबोध निजोत्तम। िारका मम सनै्यस्य सङ्ञार् ंिाि ् ब्रवीनम ि॥े07॥

भवाि ् भीष्मश्च कणयश्च कृपश्च सनमनिञ्जराः। अश्वत्थामा नवकण यश्च सौमदनत्तस्तिवै च॥08॥

अन्य ेच बहवाः शरूा मदर् ेत्यक्त जीनविााः। िािाशस्त्रप्रहरणााः सव ेरदु्धनवशारदााः॥09॥

आपरा यप्त ंिदिाकं बलं भीष्मानभरनक्षिम।् परा यप्त ंनत्वदमिेषेा ंबलं भीमानभरनक्षिम॥्10॥

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Page 8 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अरिषे ुच सवषे ुरर्ाभागमवनििााः। भीष्ममवेानभरक्षन्त ुभवन्ताः सवय एव नह॥11॥

िस्य सञ्जिरि ् हष ंकुरुवदृ्धाः नपिामहाः। नसहंिाद ंनविद्योच्चाैः शङं्ख दद्मौ प्रिापवाि॥्12॥

ििाः शङ्खाश्च भरे यश्च पणवािकगोमखुााः। सहसवैाभ्हन्यन्त स शब्धस्तमुलुोऽभवि॥्13॥

ििाः श्विेहैयररै ुयके्त महनि स्यन्दि ेनििौ। माधवाः पाण्डवश्चवै नदव्यौ शङ्खौ प्रदध्मिाुः॥14॥

पाञ्चजन्य ंहृषीकेषो दवेदत्त ंधिञ्जराः। पौण्रं दध्मौ महाशङं्ख भीमकमा य वकृोदराः॥15॥

अिन्तनवजर ंराजा कुन्ती पतु्रो रनुधनष्ठराः। िकुलाः सहदवेश्च सघुोषमनणपषु्पकौ॥16॥

काश्रश्च परमषे्वासाः नशखण्डी च महारर्ाः। धषृ्टद्यमु्नो नवराटश्च सात्यनकश्चापरानजिाः॥17॥

दृपदो द्रौपदरेाश्च सवयशाः पनृर्वीपि।े सौभद्रश्च महाभाहाः शङं्ख दध्माुः परृ्क ्परृ्क॥्18॥

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Page 9 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

स घोषो धार् यराष्ट्राणा ंहृदरानि व्यदाररि।् िभश्च पनृर्वीं चवै िमुलुो व्यििुादरि॥्19॥

अर् व्यवनििाि ् दृष्ट्वा धाि यराष्ट्राि ् कनपध्वजाः। प्रवतृ्त ेशस्त्र सम्पाि ेधिरुुद्यम्य पाण्डवाः॥20॥

हृषीकेष ंिदा वाक्यनमदमाह महीपि।े अज ुयि उवाच

सिेरोरुभरोम यध्य ेरर् ंिापरमऽेच्यिु॥21॥

रावदिेाि ् निरीक्षऽेहं रोद्धकुामािवनििाि।् कैम यरा सह रोद्धव्यमनिि ् रणसमदु्यम॥े22॥

रोत्स्यमािािवके्षऽेहं र एिऽत्र समागिााः। धाि यराष्ट्रस्य दुब ुयद्धरे ुयद्ध ेनप्ररनचकीष यवाः॥23॥ सञ्जर उवाच

एवमकु्तो हृषीकेशो गडुाकेशिे भारि। सिेरोरुभरोम यध्य ेिापनरत्वा रर्ोत्तमम॥्24॥

भीष्मद्रोणप्रमखुिाः सवषेा ंच महीनक्षिाम।् उवाच पार् य पश्रिैाि ् समविेाि ् कुरनिनि॥25॥

ित्रापश्रि ् नििाि ् पार् याः नपि-ृिर् नपिामहाि।् आचारा यि ् मािलुाि ् भ्राि-ृि ् पतु्राि ् पौत्राि ् सखींस्तर्ा॥26॥

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Page 10 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

श्वशरुाि ् सहुृदश्चवै सिेरोरुभरोरनप। िाि ् समीक्ष्य स कौन्तरेाः सवा यि ् बन्धिूवनििाि॥्27॥

कृपरा परराऽऽष्टो नवषीदनन्नदमब्रवीि।् अज ुयि उवाच

दृष्ट्वमे ंस्वजि ंकृष्ण ंररुतु्स ु ंसमपुनििम॥्28॥

सीदनन्त मम गात्रानण मखु ंच पनरशषु्यनि। वपेिशु्च शरीर ेम ेरोमहष यश्च जारि॥े29॥

गाण्ढीव ंस्रसंि ेहस्ताि ् त्वक ्चवै पनरदह्यि।े ि च शक्नोम्यविाि ु ंभ्रमिीव च म ेमिाः॥30॥

निनमत्तानि च पश्रानम नवपरीिानि केशव। ि च श्ररेोऽिपुश्रानम हत्वा स्वजिमाहव॥े31॥

ि काङे्क्ष नवजर ंकृष्ण ि च राज्य ंसखुानि च। नकं िो राज्यिे गोनवन्द नकं भोगजैीनवििे वा॥32॥

रषेामर् ेकानङ्क्षि ंिो राज्य ंभोगााः सखुानि च। ि इमऽेवनििा रदु्ध ेप्राणासं्त्यक्त्वा धिानि च॥33॥

अचारा याः नपिराः पतु्रास्तर्वै च नपिामहााः। मािलुााः श्वशरुााः पौत्रााः श्रालााः सम्बनधिस्तर्ा॥34॥

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Page 11 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

एिाि ् ि हन्तनुमच्छानम घ्निोऽनप मधसुदूि। अनप त्रलैोक्यराज्यस्य हिेो नकं ि ुमहीकृि॥े35॥

निहत्य धाि यराष्ट्राि ् िाः का प्रीनिाः स्याज्जिाद यि। पापमवेाश्ररदेिाि ् हत्विैािाििानरिाः॥36॥

ििान्नाहा य वर ंहन्त ु ंधाि यराष्ट्राि ् स्वबान्धवाि।् स्वजि ंनह कर् ंहथ्वा सनुखिाः स्याम माधव॥37॥

रद्यप्यिे ेि पश्रनन्त लोभोपहिचिेसाः। कुलक्षरकृि ंदोष ंनमत्र द्रोह ेच पािकम॥्38॥

कर् ंि ज्ञरेमिानभाः पापादिानन्नवनि यिमु।् कुलक्षरकृि ंदोष ंप्रपश्रनद्बज्जिाद यि॥39॥

कुलक्षर ेप्रणश्रनन्त कुलधमा याः सिाििााः। धम ेिष्ट ेकुलं कृत्स्नमधमोऽनभभवत्यिु॥40॥

अधमा यनभभवाि ् कृष्ण प्रदुष्यनन्त कुलनस्त्रराः। स्त्रीष ुदुष्टास ुवाष्णरे जारि ेवण यसङ्कराः॥41॥

सङ्करो िरकारवै कलघ्नािा ंकुलस्य च। पिनन्त नपिरो ह्यषेा ंलुप्त नपण्डोदकनक्ररााः॥42॥

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Page 12 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

दोषरैिेाैः कुलघ्नािा ंवण यसङ्करकारकैाः। उत्साद्यन्त ेजानिधमा याः कुलधमा यश्च शाश्विााः॥43॥

उत्सन्नकुलधमा यणा ंमिषु्याणा ंजिाद यि। िरके निरि ंवासो भविीत्यिशुशु्रमु॥44॥

अहो बि महात्पाप ंकि ु ंव्यवनसिा वरम।् रद्राज्यसखुलोभिे हन्त ु ंस्वजिमदु्यिााः॥45॥

रनद मामप्रिीकारमशस्त्र ंशस्त्रपाणराः। धाि यराष्छ्रा रण ेहन्यसु्तन्म ेक्षमेिरं भविे॥्46॥ सञ्जर उवाच

एवमकु्त्वाऽज ुयिाः सङ्ख्य ेरर्ोपि उपानवशि।् नवसजृ्य सशरं चाप ंशोकसनिग्नमािसाः॥47॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंप्रर्मोऽध्याराः॥

अर् नििीरोऽध्याराः सञ्जर उवाच

ि ंिर्ा कृपराऽऽनवष्टमश्रपुणूा यकुलेक्षणम।् नवषीदन्तनमद ंवाक्यमवुाच मधसुदूि॥01॥ श्री भगवािवुाच

कुिस्त्वा कश्मलनमद ंनवषम ेसमपुनििम।्

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Page 13 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अिार यजषु्टमस्वर्गर यमकीनि यकरमज ुयि॥02॥

िैभ् ंमा ि गमाः पार् य ििैि ् त्वय्यपुपद्यि।े क्षदंु्र हृदरदौब यल्य ंत्यक्तोनत्तष्ठ परन्तप॥03॥ अज ुयि उवाच

कर् ंभीष्ममहं सङ्ख्य ेद्रोण ंच मधसुदूि। इषनुभाः प्रनिरोत्स्यानम पजूाहा यवनरसदूि॥04॥

गरुिहत्वा नह महािभुावाि ् श्ररेो भोकंु्त भकै्ष्यमपीह लोके। हत्वाऽर् यकामासं्त ुगरनिहवै भङु्जीर भोगाि ् रुनधरप्रनदर्गधाि॥्05॥

ि चिैनिद्माः किरन्नो गरीरो रिा जरमे रनद वा िो जररेाुः। रािवे हत्वा ि नजजीनवषाम स्तऽेवनििााः प्रमखु ेधाि यराष्ट्रााः॥06॥

काप यण्रदोषोपहिस्वभावाः पचृ्छानम त्वा ंधम यसम्मडूचिेााः। रचे्छ्रराः स्यानन्ननश्चि ंब्रनूह िन्म े नशष्यस्तऽेहं शानध मा ंत्वा ंप्रपन्नम॥्07॥

ि नह प्रपश्रानम ममापिदु्याद ्रच्छोकमचु्छोषणनमनन्द्रराणाम।् अवाप्य भमूावसपत्नमदृ्ध ंराज्य ंसरुाणामनप चानधपत्यम॥्08॥ सञ्जर उवाच

एवमकु्त्वा हृषीकेश ंगडुाकेशाः परन्तप। ि रोत्स्य इनि गोनवन्दमकु्त्वा िषू्णीं बभवू ह॥09॥

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Page 14 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िमवुाच हृषीकेशाः प्रहसनन्नव भारि। सिेरोरुभरोम यध्य ेनवषीदन्तनमद ंवचाः॥10॥ भाष्यम ्: ित्र सिेरोम यध्य े बान्धवानदमोहचालसवंिृ ंनवषीदन्तमज ुयि ंभगवािवुाच॥ श्री भगवािवुाच

अशोच्यािन्व शोचस्त्व ंप्रज्ञावादाशं्च भाषस।े गिासिूगिासूशं्च िािशुोचनन्त पनण्डिााः॥1॥ प्रज्ञावादाि ् स्वमिीषोत्थवचिानि। कर्मशोच्यााः ? गिासिू॥्11॥ ि त्ववेाहं जाि ुिास ंि त्व ंिमे ेजिानधपााः। ि चवै ि भनवष्यामाः सव ेवरमिाः परम॥्12॥ नकनमनि? ित्ववेाहम।् ईश्वरनित्यत्वस्याप्रस्तिुत्वाद ् दृष्टान्तत्विेाह - ि त्ववेनेि। रर्ाऽहं नित्याः सव यवदेान्तषे ुप्रनसद्धाः, एव ंत्वमिे े जिानदपाश्च नित्यााः॥12॥

दनेहिोऽनिि ् रर्ा दहे ेकौमारं रौवि ंजरा। िर्ा दहेान्तरप्रानप्तधीरस्तत्र ि महु्यनि॥13॥ दनेहिो भाव एिद्भवनि; िदवेानसद्धनमनि चिे ्, ि। दनेहिोऽनिि ् रर्ा कौमारानदशरीरभदेऽेनप दहेी िदीनक्षिा नसद्धाः, एव ं दहेान्तरप्राप्तावनप, ईनक्षितृ्वाि।् िनह जडस्य शरीरस्य कौमाराद्यिभुवाः सम्भवनि। मिृस्यादश यिाि।् मिृस्य वाय्वाद्यपगमादिभुवाभावाः, अहं मिषु्य इत्याद्यिभुावाच्चिैि ् नसद्धनमनि चिे ्, ि। सत्यवेानवशषे े दहे े सपु्त्यादौ ज्ञािानदनवशषेादश यिाि।् समश्चानभमािो मिनस। काष्ठानदवच्च।श्रिुशे्च। प्रामाण्र ंच प्रत्यक्षानदवि।् ि च बौद्धानदवाक्यवि।् अपौरुषरेत्वाि।् िह्यपौरुषरे ेपौरुषरेाज्ञािादराः कल्पनरि ं शक्यााः। नविा च कस्यनचिाक्यस्यापौरुषरेत्व ं सव यसमरानभमिधमा यद्यनसनद्धाः।रश्च िौ िाङ्गीकुरुि ेिासौ समरी। अप्ररोजकत्वाि।् माऽस्त ुधमोऽनिरप्यत्वानदनि चिे ्, ि। सवा यनभमिस्य प्रमाण ंनविा निषदे्धमुशक्यत्वाि।्

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ि च नसनद्धरहप्रमानणकस्यनेि चिे ् , ि। सवा यनभमिरेवे प्रमाणत्वाि।् अन्यर्ा सव यवानचकव्यवहारानसद्धशे्च। ि च मरा श्रिुनमनि िव ज्ञाि ु ंशक्यम।् अन्यर्ा वा प्रत्यतु्तरं स्याि।् भ्रानन्तवा य िव स्याि ् सव यदुाःखकारणत्व ंवा स्याि।् एको वाऽन्यर्ा स्याि।् रनचित्व ेच धमयप्रमाणस्य कि ुयरज्ञािानद दोषशङ्का स्याि।् ि चादोषत्व ं स्ववाक्यिेवै नसद्ध्यरनि। ि च रिे केिनचदपौरुषरे-नमत्यकु्तमकु्तवाक्यसमम।् अिानदकालपनरग्रहनसनद्धत्वाि।् अि प्रामाण्र ं श्रिुाेः। अिाः कुिकैाः धीरस्तत्र ि महु्यनि॥ अर्वा, जीविाश ंदहेिाश ंवाऽपके्ष्य शोकाः ? ि िावि ् जीविाशम।् नित्यत्वानदत्याह - ित्ववेनेि। िानप दहेिाशनमत्याह दनेहि इनि। रर्ा कौमारानददहेहाििे जरानद प्राप्तावशोकाः, एव ंजीणा यनददहेहाििे दहेान्तर प्राप्तावनप॥13॥

मात्रास्पशा यस्त ुकौन्तरे शीिोष्ण सखुदुाःखदााः। आगमापानरिोऽनित्यास्तानंस्तनिक्षस्व भारि॥14॥ िर्ाऽनप िद्दश यिाभावानदिा शोक इनि चिे ्, िते्याह - मात्रास्पशा य इनि।मीरन्त इनि मात्रा नवषरााः। िषेा ं स्पशा याः सम्बन्धााः। ि एव नह शीिोष्णसखुदुाःखदााः। दहे े शीिोष्णानद सम्बन्धानद्द शीिोष्ण्याद्यिभुव आत्मिाः। ििश्च सखुदुाःख।े ि ह्यात्मिाः स्विाः सखुदुाःखानद सम्भवनि।कुिाः ? आगमापानरत्वाि ् । रद्यात्मिाः स्विाः स्याुः सपु्तावनप स्याुः। अिो रिो मात्रास्पशा य जाग्रदादाववे ि ेसनन्त िान्यदनेि िदन्वरव्यनिरनेकत्वाि ् िनन्ननमत्ता एव िात्मिाः स्विाः। आत्मिश्च िनैव यषरनवषनरभावसम्बन्धादन्याः सम्बन्धो िानस्त। ि चागमापानरत्वऽेनप प्रवाहरपणेानप नित्यत्वमनस्त। सनुप्तप्रलरादावभावानदत्याह। अनित्या इनि। अि आत्मिो दहेाद्यात्मभ्रम एव सखुदुाःखकारणम।् अिस्तनिमकु्तस्य बन्धमुरणानददुाःख ं ि भवनि। अिोऽनभमाि ं पनरत्यज्य िाि ् शीिोष्णादीि ् निनिक्षस्व॥14॥ र ंनह ि व्यर्रन्त्यिे ेपरुुष ंपरुुषष यभ।

समदुाःखसखु ंधीरं सोऽमिृत्वार कल्पि॥े15॥

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अिाः प्ररोजिमाह - र ं हीनि। रमिे े मात्रास्पशा य ि व्यर्रनन्त पनुरशरमवे सन्तम।् शरीरसम्बन्धाभाव े सवषेामनप व्यर्ाभावाि ् परुुषनमनि नवशषेणम।् कर् ं ि व्यर्रनन्त ? समदुाःखसखुत्वाि।् िि ् कर्म ् ? धरैणे॥15॥

िासिो नवद्यि ेऽभावो िाभावो नवद्यि ेसिाः। उभरोरनप दृष्टोऽन्तस्त्विरोस्तत्त्वदनश यनभाः॥16॥ नित्य आत्मते्यकु्तम।् नकमात्मवै नित्य आहोनस्वदन्यदनप ? अन्यदनप। िि ् नकनमत्यि आह िासि इनि। असिाः कारणस्य सिाः ब्रह्मणश्च अभावो ि नवद्यि।े ‘प्रकृनि परुुषश्चवै नित्यौ कालश्चसत्तम’। इनि वचिाि ् श्री नवष्णपुरुाण।े परृ्क ् नवद्यि इत्यादरार् याः। असिाः कारणत्व ंच ‘सदसदू्रपरा चासौ गणुमय्याऽगणुो नवभाुः’। इनि श्रीभागवि।े ‘असिाः सदजारि’ इनि च। अव्यके्तश्च। सम्प्रदारिश्चिैि ् नसद्धनमत्याह। उभरोरपीनि। अन्तो निण यराः ॥16॥ अनविानश ि ुिनिनद्ध रिे सवयनमद ंििम।् नविाशमव्यरस्यास्य ि कनश्चि ् कि ुयमहयनि॥17॥ नकं बहिा। रद्दशेिोऽिन्तम ् िनन्नत्यमवे वदेाद्यन्यदपीत्याह - अनविाशीनि। िानप शापानदिा नविाश इत्याह नविाशनमनि। अव्यर ंच िि॥्17॥ अन्तवन्त इम ेदहेा नित्यस्योक्तााः शरीनरणाः। अिानशिोऽप्रमरेस्य ििाद्यधु्यस्व भारि ॥18॥ भवि ु दहेस्यानप कस्यनचनन्नत्यत्वनमनि। िते्याह -अन्तवन्त इनि। अस्त ु िनहि दप यणिाशाि ् प्रनिनबम्बिाशवदात्मिाश इत्यि आह - नित्यस्यनेि। शरीनरण इिीश्वरव्यावृत्तर।े ि च िनैमनत्तक इत्याह - अिानशि इनि। कुिाः ? अप्रमरेशे्वरसरपत्वाि।् िह्यपुानदनबम्बसानन्नध्यिाश ेप्रनिनबम्बिाशाः सनि च प्रदश यके। स्वरमवेात्र प्रदश यकाः। नचत्त्वाि।्नित्यश्चोपानधाः कनश्चदनस्त।

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प्रनिपत्तौ नवमोक्षस्य नित्योपाध्या स्वरपरा। नचदू्रपरा रिुो जीवाः केशवप्रनिनबम्बकाः॥इनि भगविचिाि॥्18॥ र एि ंवनेत्त हन्तारं रश्चिै ंमन्यि ेहिम।् उभौ िौ ि नवजािीिो िार ंहनन्त ि हन्यि॥े19॥ व्यवहारस्त ुभ्रान्त इत्याह - र एिनमनि। कुिाः ? उक्तहिेभु्ो िार ंहनन्त ि हन्यि।े िनह प्रनिनबम्बस्य नक्ररा। स नह नबम्बनक्रररवै नक्ररावाि।् ‘ध्यारिीव’ इनि श्रिुषे्छ्च॥19॥

ि जारि ेनिरि ेवा कदानचन्ना(ऽ)र ंभतू्वा भनविा वा ि भरूाः। अजो नित्याः शाश्विोऽर ंपरुाणो ि हन्यि ेहन्यमाि ेशरीर॥े20॥ अत्र मन्त्रवणोऽप्यस्तीत्याह - ि जारि इनि। िचशे्वरज्ञािवदू्भत्वा भनविा। िनद्ध ‘िदकै्षि’ ‘दशेिाः कालिो रोऽसावविािाः स्विोऽन्यिाः। अनवलुप्तावबोधात्मा’ इत्यानद श्रनुििनृिनसद्धम।् कुिाः ? अजानदलक्षणशे्वरसरपत्वाि।् शाश्विाः सदकैरपाः। परंु दहेमणिीनि परुाणाः। िर्ाऽनप ि हन्यि ेहन्यमािऽेनप दहे॥े20॥ वदेानविानशि ंनित्य ंर एिमजमव्यरम।् कर् ंस परुुषाः पार् य कं घािरनि हनन्त कम॥्21॥ अिो र एव ं वदे स कर् ं कं घािरनि हनन्त वा ? अनविानशि ं िनैमनत्तकिाशरनहिम।् नित्य ंस्वाभानवकिाशरनहिम।् अर्वा, अनविानशि ं दोषरोगरनहिम ्, नित्य ं सदाभानविम ् इनि सव यत्र नववकेाः। दोषरकु्तपरुुषानदष ुिष्टशब्दप्ररोगाि॥्21॥ वासानंस जीणा यनि रर्ा नवहार िवानि गहृ्णानि िरोऽपरानण। िर्ा शरीरानण नवहार जीणा यन्यन्यानि सरंानि िवानि दहेी॥22॥ दहेात्मनववकेािभुवार् ंदृष्टान्तमाह - वासासंीनि॥22॥ ििै ंनिन्दनन्त शस्त्रानण ििै ंदहनि पावकाः। ि चिै ंिेदरन्त्यापो ि शोषरनि मारुिाः॥23॥

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स्विाः प्रारो निनमत्तशै्चानविानशिोऽनप केिनचनन्ननमत्तनवशषेणे स्याि ्, ककच्छदेवि ्, इत्यिो नवशषेनिनमत्तानि निषधेनि - ििैनमनि॥23॥ अच्छेद्योऽरमदाह्योऽरमिेद्योऽशोष्य एव च। नित्याः सवयगििाणरुचलोऽर ंसिाििाः॥24॥ वि यमािनिषधेाि ् स्यादुत्तरत्रते्यि आह - अच्छदे्य इनि। वि यमा-िादश यिाद्यकु्तमरोर्गरत्वनमनि सचूरनि वि यमािापदशेिे। कुिोऽरोर्गरिा ? नित्यसव यगिानद नवशषेणशे्वरसरपत्वाि।् ‘शाश्वि’ इत्यकेरपत्वमात्रमकु्तम।् स्धाणशुब्दिे िनैमनत्तकमन्यर्ात्व ं निवाररनि। नित्यत्व ंसव यगित्वनवशषेणम।् अन्यर्ा पिुरुके्ताः। ऐक्योक्तावप्यिकु्तनवशषेणोपादािान्नशे्वरकै्य े पिुरुनक्ताः। रकु्ताश्च नबम्बधमा याः निनबम्बऽेनवरोध।े ित्ताच - ‘रप ं रप ं प्रनिरपो बभवू’ ‘आभास एव च’ इत्यानदश्रनििनृिनसद्धा। ि चाशंत्वनवरोधाः। िस्यवैाशंत्वाि।् ि चकैरपवैाशंिा। प्रमाण ंचोभरनवधवचिमवे।ि चाशंस्य प्रनिनबम्बत्व ंकल्प्यम।् गाध्यानदष्वप्यशंबाहल्यदृष्टनेरिरत्रादृष्टाेः। िाणतु्वऽेनप ‘ऐक्षि’ इत्याद्यनवरुद्धमीश्वरस्य। उभरनवधवाक्याि।् अनचन्त्यशके्तश्च। ि च माररकैम ् - ‘त्वरीश्वर ेब्रह्मनण िो नवरुद्ध्यि’े ‘ि रोनगत्वादीश्वरत्त्वाि ्’ ‘नचत्र ंि चिैि ् त्वनर कार यकारण’े इत्याद्यशै्वरणेवै नवरुद्धधमा यनवरोधोके्ताः। महािात्परा यच्च। मोक्षो नह महापरुुषार् याः - ‘ित्रानप मोक्ष एवार् याः’

‘अन्तषे ुरनेमर ेधीरा ि ि ेमध्यषे ुरनेमर।े अन्तप्रानप्त ंसखु ंप्राहदु याःखमन्तरमिेरोाः॥’ ‘पणु्रनचिो लोकाः क्षीरि’े इत्यानदश्रनुििनृिभ्ाः स च नवष्णपु्रसादादवे नसद्ध्यनि - ‘वासदुवेमिाराध्य को मोक्ष ंसमवाप्नरुाि ् ’

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‘िषु्ट ेि ुित्र नकमलभ्मिन्त ईश’े ‘ित्प्रसादादवाप्नोनि परा ंनसनद्ध ंि सशंराः’ ‘रषेा ंस एव भगवाि ् दररदेिन्ताः सवा यत्मिा नश्रिपदो रनद निव्य यलीकम।् ि ेव ैनवदन्त्यनििरनन्त च दवेमारा ंिषैा ंममाहनमनि धीाः श्वसगृालभक्ष्य’े॥

‘िनिि ् प्रसन्न ेनकनमहास्त्यलभ्म ् धमा यर् यकामरैलमल्पकास्त’े ‘ऋि ेरदनिि ् भव ईश जीवास्तापत्ररणेोपहिा ि शमय। आत्मि ् लभन्त ेभगवसं्तवानिच्छाराशंनवद्यामि आश्ररमे’ ‘ऋि ेभवत्प्रसादानद्ध कस्य मोक्षो भवनेदह’, ‘िमवे ंनविाि ्’ इत्यानदश्रनुििनृिभ्ाः। स चोत्कष यज्ञािादवे भवनि। लोकप्रनसद्धाेः। लोकनसद्धमनवरुद्धमन्यत्राप्यङ्गीकार यम।् अहल्याजारत्वाद्यनप दोषकृिोऽनप ि ेि बहिरोलपे आसीनदत्यतु्कष यमवे वनक्त। बहिरकफलो ह्यसौ।

‘िस्य ि लोम च मीरि’े इनि श्रतु्यन्तराच्च। ‘रो मामवेमसम्मढूो जािानि परुुषोत्तमम ्’ इनि िदुके्तश्व। ‘सत्य ंसत्य ंपिुाः सत्य ंशपर्शै्चानप कोनटनभाः। नवष्णमुाहात्म लेशस्य नवभक्तस्य च कोनटधा। पिुश्चािन्तदा िस्य पिुश्चानप ह्यिन्तदा। िकैाशंसममाहात्म्ााः श्रीशषेब्रह्मशङ्करााः’ इनि िारदीर।े अन्योत्कष य ऐक्य ंच - ‘िर्वै सवयशास्त्रषे ुमहाभारिमतु्तमम ्’

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को ह्यन्याः पणु्डरीकाक्षान्महाभारिकृद्भविे।् इत्यानद ग्रन्थान्तरनसद्धोत्कष यमहाभारिनवरुद्धम।् ित्र नह - ‘िानस्त िारारणसम ंि भिू ंि भनवष्यनि। एििे सत्यवाक्यिे सवा यर्ा यि ् साधराम्यहम ्’ ‘रस्य प्रसादजो ब्रह्मा रुद्रश्च क्रोधसम्भवाः।’ ‘ि त्वत्समोऽनस्त’ इत्यानदष ु साधारणप्रश्नावसर एव महान्तमतु्कष ं नवष्णोव यनक्त। अन्यत्र रनत्कञ्चदुक्तावप्यसाधारण एवावसर।े िद्ध्यग्न्यादरेनप वदेादावनस्त -

‘त्वमग्न इन्द्रो वषृभाः सिामनस त्व ंनवष्णरुुरुगारो िमस्याः’ ‘नवश्विानदन्द्र उत्तराः’ इत्यानदष।ु िद्ग्रन्थनवरोधाच्च। िर्ानह स्कान्द ेशवै े- रदन्तरम ् व्याघ्रहरीन्द्ररोव यि ेरदन्तरं मरेुनगरीन्द्रनवन्द्यरोाः। रदन्तरम ् सरू यसरुढे्यनबम्बरोस्तदन्तरं रुद्रमहने्द्ररोरनप॥ रदन्तरम ् नसहंगजने्द्ररोव यि ेरदन्तरं सरू यशशाङ्करोनदिनव। रदन्तरम ् जाह्ननवसरू यकन्यरोस्तदन्तरं ब्रह्मनगरीशरोरनप॥ रदन्तरम ् प्रलरजवानरनवप्लषुोर यदन्तरं स्तम्भनहरण्रगभ यरोाः। सु्फनलङ्गसवंि यकरोर यदन्तरं िदन्तरं नवष्णनुहरण्रगभ यरोाः॥ ‘अिन्तत्वान्महानवष्णोस्तदन्तरमिन्तकम।् माहात्म् सचूिार्ा यर ह्यदुाहरणमीनरिम॥् ित्समोऽभ्नधको वाऽनप िानस्त कनश्चि ् कदाचि। एििे सत्यवाक्यिे िमवे प्रनवशाम्यहम ्’॥इत्याद्याह॥

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ित्रवै नशव ंप्रनि माकयण्ढरेवचिम ् -

‘ससंाराण यवनिम यग्न इदािीं मनुक्तमषे्यनस’ इत्यानद। पाद्म ेशवै ेमाकयण्डरेकर्ाप्रबन्ध ेनशवानन्ननषद्य नवष्णोरवे मनुक्तमाह -

"अहं भोगप्रदो वत्स मोक्षदस्त ुजिादयिाः" इत्यानद। समब्राह्मनवरोधाच्च। वदेश्चनेिहासाद्यनवरोधिे रोज्याः। ‘रनद नवद्याि ्’ इत्यानदवचिाि।् अनिण यराच्चने्द्रानदशङ्कराऽन्यर्ा। ित्रापीष्टनसनद्धाः। िामवशैषे्याि।् अिो भगवदुत्कष य एव सवा यगमािा ंमहािात्पर यम।् िर्ाऽनप स्विाःप्रामाण्राि ् सन्नवेोच्यि।े अनवरोधाि।् ि च प्रमाणनसद्धस्यान्यत्रादृष्ट्याऽपह्नवो रकु्ताः। दम यवनैचत्र्यादर्ा यिाम।् स्विाःप्रामाण्रािङ्गीकार ेमािोक्तावप्यदोषत्व ंच साधरनेदत्यनिप्रसङ्गाः। अिन्यापके्षरा च ित्परत्व ंनसनद्धमागा यिाम ् - ‘िारारणपरा वदेााः’ ‘सव ेवदेा रत्पदमामिनन्त’ ‘वासदुवेपरा वदेााः’ इनि। ‘ि चिैनिरुद्धम।् ईश्वरनिरमाि।् अिादौ च िि ् नसद्धम ् - ‘द्रव्य ं कमय कालश्च च’ इत्यादौ। प्ररोजकत्व ं ि ु पवूोक्तन्यारिे।अिाः नसद्धमिेि।् िच्चािन्यापके्षानचन्त्यशनक्तत्व एव रकु्तम।् अिो ि मारामरमकेम।् अचलत्व ंि।ु- ‘अप्रहष यमिािन्दम ्’ ‘असखुम ्’ ‘अप्रज्ञम ्’ ’असिा’ इत्यानदवि।् नक्ररादृष्टाेः- ‘िपो म ेहृदर ंसाक्षाि ् ििनुव यद्या नक्रराऽऽकृनिाः’ इत्याद्यकेु्ताः। अिश्च ि मारामर ं सव।ं ऐश्वर यवाचीभगशब्दिेवै सबंोधिाच्च ं ‘ि ं त्वा भग’ इत्यादौ। स्वरपत्वान्नमारामरत्व ंरकु्तम।्

‘नवज्ञािशनक्तरहमासमिन्तशके्ताः’ ‘मय्यिन्तगणुऽेिन्त ेगणुिोऽिन्तनवग्रह’े ‘पराऽस्य शनक्तनव यनवधवै श्ररूि ेस्वाभानवकी ज्ञािबलनक्ररा च’ इत्यानदवचिाि॥्24॥

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Page 22 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अव्यक्तोऽरमंनचन्त्योऽरमनवकारोऽरमचु्यि।े ििादवे ंनवनदत्विै ं िािशुोनचिमुहयनस॥25॥

अिएवाव्यक्तानदरपाः॥25॥ आर् चिै ंनित्यजाि ंनित्य ंवा मन्यस ेमिृम।् िर्ाऽनप त्व ंमहाबाहो ििै ंशोनचिमुहयनस॥26॥ अस्त्ववेमात्मिो नित्यत्वम ् ; िर्ाऽनप दहेसरंोगनवरोगात्मकजनिमिृी स्त एवते्यि आह - अर्नेि ॥26॥ जािस्य नह ध्रवुो मतृ्यदुु्रयव ंजन्म मिृस्य च। ििादपनरहारऽेर् ेि त्व ंशोनचिमुहयनस॥27॥ कुिोऽशोकाः ? निरित्वानदत्याह - जािस्यनेि॥27॥ अव्यक्तादीनि भिूानि व्यक्तमध्यानि भारि। अव्यक्तनिधिान्यवे ित्र का पनरदवेिा॥28॥ िदवे स्पष्टरनि - अव्यक्तादीिीनि॥28॥

आश्चरयवि ् पश्रनि कनश्चदिेमाश्चर यविदनि िर्वै चान्याः। आश्चरयवच्चिैमन्याः शृणोनि श्रतु्वाऽप्यिे ंवदे ि चवै कनश्चि॥्29॥ दहेरोगनवरोगस्य निरित्वादात्मिश्चशे्वरसरपत्वाि ् सव यर्ाऽिाशान्न शोकाः कार य इत्यपसहंि ुयमशै्वरं सामर्थ्य ं पिुद यश यरनि - आश्चरयवनदनि। दुलयभत्विेते्यर् याः। िद्द्याश्चर ं लोके। दुलयभोऽपीश्वरसरपत्वाि ् सकू्ष्मत्वाच्चात्मिस्तद्रष्टा॥29॥

दहेी नित्यमवध्योऽर ंदहे ेसवयस्य भारि। ििाि ् सवा यनण भिूानि ि त्व ंशोनचिमुहयनस॥30॥

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स्वधमयमनप चावके्ष्य ि नवकनम्पिमुहयनस। धम्या यनद्ध रदु्धाचे्छ्ररोऽन्यि ् क्षनत्ररस्य ि नवद्यि॥े31॥

रदृच्छरा चोपपन्न ंस्वगयिारमपाविृ ंसनुखिाः क्षत्ररााः पार् य लभन्त ेरदु्धमीदृशम॥्32॥

अर् चिे ् त्वनमम ंधम्य ंसङ्ग्राम ंि कनरष्यनस। ििाः स्वधम ंकीनि ंच नहत्वा पापमवाप्स्यनस॥33॥

अकीनि ंचानप भिूानि कर्नरष्यनन्त िऽेव्यराम।् सम्भानविस्य चाकीनि यम यरणादनिनरच्यि॥े34॥

भराद्रणादुपरि ंमसं्यन्त ेत्वा ंमहारर्ााः। रषेा ंच त्व ंबहमिो भतू्वा रास्यनस लाघवम॥्35॥

अवाच्यवादाशं्च बहूि ् वनदष्यनन्त िवानहिााः। निन्दन्तस्तव सामर्थ्य ंििो दुाःखिरं ि ुनकम॥्36॥

हिो वा प्राप्यनस स्वग ंनजत्वा वा भोक्ष्यस ेमहीम।् ििादुनत्तष्ठ कौन्तरे रदु्धार कृिनिश्चराः॥37॥

सखुदुाःख ेसम ेकृत्वा लाभालाभौ जराजरौ। ििो रदु्धार रजु्यस्व िवै ंपापमवाप्स्यनस॥38॥

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एषा िऽेनभनहिा साङ्ख्य ेबनुद्धरोग ेनत्वमा ंशृण।ु बदु्ध्या रकु्तो ररा पार् य कमयबन्द ंप्रहास्यनस॥39॥ साङ्ख्य ंज्ञािम।् ‘शदु्धात्मित्त्वनवज्ञाि ंसाङ्ख्यनमत्यनभधीरि’े इनि भगविचिाद्व्यासििृौ। रोग उपाराः। ‘दृष्टा रोगााः प्ररकु्ताश्च प ुसंा ंश्ररेाः प्रनसद्धर’े इनि प्ररोगाद्भागवि।े ििेरौ साङ्ख्यरोगावपुादरेत्विे नववनक्षिौ कुत्रनचि ् सामस्त्यिे। कमयरोग इत्यानदप्ररोगाच्च। निनन्दित्वाच्चिेररोाः मोक्षधमषे ु नभन्नमित्वमकु्त्वा पञ्चरात्रस्तत्या। वदेािा ं त्वकेार् यत्वान्न नवरोधाः। पार् यक्य ंि ुसाङ्ख्याद्यपके्षरा रकु्तम।् ित्रवै नचत्रनशखनण्डशास्त्र ेपञ्चरात्रमलू ेवदेकै्योके्तश्च। एवमवे सव यत्र साङ्ख्यरोगशब्दार् य उपादरेवाचको वण यिीराः। रकेु्तश्च। ज्ञाि ं नह जवैमकु्तम।् उपारश्च वक्ष्यि।े बदु्ध्यिऽेिरनेि बनुद्धाः। साङ्ख्यनवषरो ररा वाचा बदु्ध्यि ेसा वागनभनहिते्यर् याः॥29॥ िहेानभक्रमिाशोऽनस्त प्रत्यवारो ि नवद्यि।े स्वल्पमप्यस्य धम यस्य त्रारि ेमहिो भराि॥्40॥

व्यवसारानत्मका बनुद्धरकेेह कुरुिन्दि। बहशाखा ह्यिन्ताश्च बदु्धरोऽव्यवसानरिाम॥्41॥ रोग इमा ं बनुद्ध ंश्रनुण्वत्यकु्तम ् ; बह्व्यो नह बदु्धरो मिभदेाि ् ; िि ् कर्मकेत्र निष्ठा ंकरोमीत्यि आह - व्यवसारानत्मकेनि। सम्यर्गरनुक्तनिणीिािा ंमिािामकै्यमवेते्यर् याः॥41॥

रानममा ंपनुष्पिा ंवाच ंप्रवद्यन्त्यनवपनश्चिाः। वदेावादरिााः पार् य िान्यदस्तीनि वानदिाः॥42॥

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कामात्मािाः स्वगयपरा जन्मकमयफलप्रदाम।् नक्ररानवशषेबहला ंभोगशै्वर यगनि ंप्रनि॥43॥

भोगशै्वर यप्रसक्तािा ंिराऽपहृिचिेसाम।् व्यवसारानत्मका बनुद्धाः समादौ ि नवधीरि॥े44॥ स्यरुवनैदकानि मिान्यव्यवसारात्मकानि, ि ि ु वनैदकानि। िऽेनप नह केनचि ् कमा यनण स्वगा यनदफलान्यवेाहनरत्यि आह - रानममानमनि। रामाहस्तरते्यन्वराः। मोक्षफलमपके्ष्य स्वगा यनदपषु्परकु्ता ं वाच ं प्रवदनन्त। वदेवादरिााः कमा यनद वाचकवदेवादरिााः ; वदेरै यन्मखुि उच्यि ेित्रवै रिााः। िान्यदस्तीनि वानदिाः। ‘परोक्ष्यनवषरा वदेााः’ ‘परोक्षनप्ररा इव नह दवेााः’, ‘मा ंनवधत्तऽेनभदत्त ेमाम ्’ इत्यानदनभाः पारोक्ष्यणे प्रारो भगवन्त ंवदनन्त। भोगशै्वर यगनि ंप्रनि ित्प्रानप्त ंप्रनि। ित्प्रानप्त फला एव वदेा इनि वदन्तीत्यर् याः। िषेा ं सम्यर्गरनुक्तनिण यरानत्मका बनुद्धाः, समाधौ समाध्यर् े ि नवधीरि।े सम्यग ् निणीिार्ा यिा ंहीश्वर ेमिाःसमाधािा ंसम्यग्भवनि। िनद्ध मोक्षसाधिम।् उकं्त चिैदन्यत्र - ‘ि िस्य ित्त्वग्रहणार साक्षािरीरसीरनप वाचाः समासि।् स्वप्न ेनिरुक्त्या गहृमधेसौख्य ंि रस्य हरेािनुमि ंस्वर ंस्याि ् ’ इनि॥42-44॥ त्रगैणु्र नवषरा वदेा निस्त्रगैणु्रो भवाज ुयि। निियन्द्वो नित्यसत्त्वस्तो निरोगक्षमे आत्मवाि॥्45॥ िा ं रोगबनुद्धमाह। त्रगैणु्रनवषरा इत्यानदििेरपोद्य। वदेािा ं परोक्षार् यत्वाि ् नत्रगणुसम्बनन्ध स्वगा यनद प्रिीनििोऽर् य इव भवनि।

‘परोक्षवादी वदेोऽरम ्’ इनि ह्यक्तम।् अिाः प्रािीनिकेऽर् ेभ्रानन्त ंम कुनवत्यर् याः।

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‘वादो नवषरकत्व ंच मखुिो वचि ंििृम ्’ इत्यनभधािम।् ि ि ुवदेपक्षो निनषध्यि।े ‘वदे ेरामारण ेचवै परुाण ेभारि ेिर्ा। आदावन्त ेच मध्य ेच नवष्णाुः सवयत्र गीरि।े’ ‘सव ेवदेा रत्मदम ्’ ‘वदेोऽनखलो धमयमलंू िनृिशीले च िनिदाम।् आचारश्चवै साधिूामात्मिो रुनचरवे च।’ ‘वदेप्रनणनहिो धमोह्यधमयस्तनिपर यराः।’ इनि वदेािा ंसवा यत्मिा नवष्णपुरत्वोके्ताः। िनिनहिस्य िनिरुद्धस्यच धमा यधम यत्वोके्तश्च॥45॥ रावािर् य उदपाि े सवयिाः सपं्लिुोदके। िावाि ् सवषे ुवदेषे ुब्राह्मणस्य नवजाििाः॥46॥ िर्ाऽनप काम्यकनम यणा ंफलं ज्ञानििा ंि भविीनि साम्यमवेते्यि आह -रावािर् य इनि। रर्ा रावािर् याः प्ररोजिमदुपाि े कूप े भवनि िावाि ् सव यिाः सम्प्लिुोदकेऽन्तभ यवत्यवे, एव ं सवषे ु वदेषे ु रि ् फलं िनिजाििाऽनप ज्ञानििो ब्राह्मणस्य फलऽेन्तभ यवनि। ब्रह्म अणिीनि ब्राह्मणाः अपरोक्षज्ञािी। स नह ब्रह्म गच्छनि। नवजािि इनि ज्ञािफलत्व ंिस्य दश यरनि॥49॥ कमयण्रवेानधकारस्त ेमा फलेष ुकदाचि। मा कमयफलहिेभुू यमा य ि ेसङ्गोऽस्त्वकमयनण॥47॥ कामात्मिा ंनिन्दा कृिा कर्मषेा ं‘स्वगय कामो रजिे’ इत्यादौ कामस्यानप नवनहित्वानदत्यि आह - कमयण्रवेनेि। ि इत्यपुलक्षणार् यम।् िव ज्ञानििोऽनप ि फलकामकि यव्यिा। नकिन्यषेाम।् ित्वनस्तकेषानंचन्निऽेस्तीनि। स नह ज्ञािी िराशं इन्द्रश्च। मोहानदस्त्वनभभवादाेः। रनद िषेा ं

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शदु्धसत्त्वािा ं ि स्याज्ञािम ्, क्वान्यषेाम?् उपदशेादशे्चनसद्ध ं ज्ञाि ं िषेाम।् ‘पार्ा यनष्ट िषणे ......’ इत्यानदज्ञानिगणिाच्च। कामनिषदे एवात्र। फलानि ह्यस्वािन्त्र्यणे भवनन्त। िनह कमयफलानि कमा यभाव ेरत्निोऽनप भवनन्त। भवनन्त च काम्यकनम यणो नवपर यरप्ररत्नऽेप्यनवरोध।े अिाः कमा यकरण एव प्रत्यवाराः।ि ि ुज्ञािानदिावाऽकामिार वा फलाप्राप्तौ। अिाः कमयण्रवेानधकाराः। अिस्तदवे कार यम।् ि ि ु कामिे ज्ञािानदनिषधेिे वा फलप्रानप्ताः। कामवचिािा ंि ुिात्पर ंभगविवैोक्तम-्

‘रोचिार् ंफलशृनिाः’ ‘रर्ाभषैज्यरोचिम ्’ इत्यादौ भागवि।े अि एव कामी रजिेते्यर् याः . ि ि ु कामी भतू्वते्यर् याः। ‘निष्काम ं ज्ञािपवू ं च’ इनि वचिाि।् वक्ष्यमाणभे्श्च।

‘वसन्त ेवसन्त ेज्योनिषा रजिे’ इत्यानदभ्श्च। अिो मा कमयफलहिेभुू याः। कमयफलं ितृ्किौ हिेरु यस्य स कमयफलहिेाुः। स मा भाूः। िनहि ि करोमीत्यि आह - मा ि इनि। कमा यकरण ेस्नहेो माऽनस्त्वत्यर् याः। अन्यफलाभावऽेनप मत्प्रसादाख्य-फलभावाि।् इच्छा च िस्य रकु्ता ‘वणृीमह ेि ेपनरिोषणार’ इत्यानद महदाचाराि।् अनिन्दिाि ् , नवशषेि इिरनिन्दिाच्च। सामान्य ंनवशषेो बाधि इनि च प्रनसद्धम ्’ सवा यिािर िकंै मतै्रम ्’ इत्यादौ। अिाः . ‘िकैात्मिा ंम स्पहृरनन्त केनचि ्’ , ‘भनक्तमनन्वच्छन्ताः’ , ‘ब्रह्मनजज्ञासा’ , ‘नवज्ञारप्रज्ञा’ं, ‘द्रष्टव्याः’ इत्यनदवचिभे्ाः, स्वार् यसवेकं प्रनि ि िर्ा स्नहेाः। नकं ददामीत्यकेु्त सवेानद राचकं प्रनि बहिराः स्नहे इनि लोकप्रनसद्धन्याराच्चभनक्तज्ञािानदप्रार् यिा कारनेि नसद्ध॥ं47॥ रोगिाः कुरु कमा यनण सङं्ग त्यक्त्वा धिञ्जर। नसद्ध्याः नसद्ध्योाः समो भतू्वा समत्व ंरोग उच्यि॥े48॥ पवू यश्लोकोकं्त स्फष्टरनि - रोगि इनि। रोगि - उपारिाः। सङं्ग - फलस्नहंे, त्यक्त्वा। िि एव नसद्ध्यनसद्ध्योाः समो भतू्वा। स एव च मरोक्तो रोगाः॥48॥ दूरणे ह्यवरं कमय बनुद्धरोगाद्धिञ्जर। बदु्धौ शरणमनन्वच्छ कृपणााः फलहिेवाः॥49॥

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इिश्चरोगार रजु्यस्वते्याह - दूरणेनेि। बनुद्धरोगाि ् - ज्ञािलक्षणादुपाराि।् दूरणे - अिीव। अिो बदु्धौशरण ं-ज्ञाि ेनिनिम।् फलं कमयकृिौ हिेरुषेा ंि ेफलहिेवाः॥49॥ बनुद्धरकु्तो जहािीह उभ ेसकृुिदुषृ्कि।े ििाद्योगार रजु्यस्व रोगाः कमयस ुकौशलम॥्50॥ ज्ञािफलमाह - बनुद्धरकु्त इनि। सकृुिमप्यनप्रर ंमािषु्यानद जहानि, ि बहृत्फलमप्यपुासिानदनिनमत्तम ् -

‘ि हास्य कमय क्षीरि े’, ‘अनवनदत्वाऽनिि ् लोके जहुोनि रजि ेिपस्तप्यि े बहूनि वष यसहस्राण्रन्तवदवेास्य िद्भवनि ’ इत्यानदश्रनुिभ्ाः अिाः कमयक्षरश्रनुिरज्ञानिनवषरा सव यत्र। उभरक्षरश्रनुिरप्यनिष्टनवषरा। िहीष्टपणु्रक्षर े नकनञ्चि ् प्ररोजिम।् ि चषे्टिाशो ज्ञानििो रकु्ताः। इष्टाष्छ्च केनचनिषरााः -

‘स रनद नपिलृोककामो भवनि सङ्कल्पादवेास्य नपिराः समनुत्तष्ठनन्त’, ‘प्रजापिाेः सभा ंवशे्म प्रपद्य।े रशोऽहं भवानि ब्राह्मणािाम ्’, ‘स्त्रीनभवा य रािवैा य’, ‘अिाद्द्यवेात्मिो रद्यि ् कामरि ेित्ति ् सजृि’े ‘कामान्नी कामरप्यिसुञ्चरि ्’ , ‘स एकधा भवनि’ इत्यानद श्रनुिभ्ाः। बहत्वऽेप्यात्मसखुस्य पिुनरष्टत्वाि ् कमयसखु ेि नवरोधाः। अिभुवशनक्तश्चषे्वरप्रसादाि।् श्रिुशे्च। ि च शरीरपािाि ् पवू यमिेि ् ‘स ित्र परनेि’, ‘एिमािन्दमरमात्मािमपुसङ्चम्य ’ इत्याद्यतु्तरत्र श्रवणाि।् ि चकैीभिू एव ब्रह्मणा साः -

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‘मग्नस्य नह परऽेज्ञाि ेनकं ि दुाःखिरं भविे ् ’ इत्यानदनिन्दिान्मोक्षधम।े पनरहार े परृ्ग्भोगानभधािाच्च। शकुादीिा ं परृ्र्गदृष्टशे्च। ‘जगिापारवज यम ् ’ इत्यशै्वर यमा यरा यदोके्तश्च

‘इद ंज्ञािमपुानश्रत्य मम साधम्ययमागिााः ’ इनि च। उपानधिाश े िाशाच्च प्रनिनबम्बस्य। ि चकैीभिूस्य परृ्ग ् ज्ञाि ेमाि ंपश्रामाः। ‘आस ंदुाःखी िासम ् ‘ इनि ज्ञािनवरोधाश्चशे्वरस्य। अििे रपणेनेि च। भदेाभावाि।् ि च प्रनिनबम्बस्य नबम्बकैम ् लोके पश्रामाः। उपानधिाश े माि ं वा। ‘मग्नस्य नह परऽेज्ञाि’े इनि दुाःखात्मकत्वोके्तश्च। ‘राव दात्मभानवत्वाि ् ‘इत्यपुानदनित्यिानभधािाच्च। अिोऽन्यवचि ं प्रिीरमािमप्यौपचानरकम।् दृष्ट्वाश्चि ेभगविो नभन्ना िारदिे। प्रनिशाख ं च ‘स एकधा’ इत्यानदष ुभदेिे प्रिीरन्त।े नवरोध ेि ुरनुक्तमिामवे बलवत्त्वम।् रकु्तरशु्चात्रोक्तााः ‘मग्नस्य नह’ इत्यादराः। अिो जल ेजलकैीभाववदकेीभावाः। उकं्त च - ‘रर्ोदकं शदु्ध ेशदु्धम ् ‘, ‘रर्ा िद्याः ’ इत्यादौ। ित्राप्यन्योन्यात्मकत्व ेवृद्ध्यसम्भवाः। अनस्त चषेिे ् समदेु्रऽनप िानर। महत्त्वादन्यत्रा दृनष्टाः। ‘िा एवापो ददौ िस्य स ऋनषाः शनंशिव्रिाः’ इनि महाकौम ेसमर्ा यिा ंभदेज्ञािाच्च। ‘िवै िि ् प्राप्नवुन्त्यिे े ब्रह्मशेािादराः सरुााः। रि ् ि ेपद ंनह कैवल्यम ् ‘ इनि निषदेाच्च िारदीर।े सनवचारश्च निण यराः कृिो मोक्षधमषे।ु बलवाशं्च सनवचारो निण यरो वाक्यमात्राि।् अिो - ‘रत्र िान्यि ् पश्रनि’ ‘इत्याद्यनप िदधीिसत्तानदवानच। अन्यर्ा कर्मशै्वरा यनद स्याि?् ि च िन्मारामरनमत्यकु्तम।् अन्यर्ा कर् ंित्रवै, ‘स एकदा’ इत्यानद ब्ररूाि ् ? ि च - ‘ि ह व ै सशरीरस्य’ इत्यानदनवरोधाः। वलैक्षण्राि ् िच्छरीराणाम।् अभौनिकानि नह िानि नित्योपानधनिनम यिािीश्वरशक्त्या। िर्ाचोक्तम ्

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‘शरीरं जारि े िषेा ं षोडश्रा कलरवै ि’ु इत्यानद िारारणकल्प।े वदनन्त च लौनककवलैक्षण्रऽेभावशब्दम ् - ‘अप्रहष यमिािन्दम ्’, ‘सखुदुाःखबाह्याः’ इत्यानदष।ु निरुक्त्यभावाच्च ि िानि शरीरानण। िर्ानह श्रनुिाः॥ ‘अशारीिीँ िच्चरीरमभवि ् ’ इनि । िनह िानि शीणा यनि भवनन्त। ‘सगऽेनप िोपजारन्त ेप्रळर ेि व्यर्नन्त च’। इत्यानदवचिाि।् साम्याि ् प्ररोगाः । प्ररोगाच्च -

‘अनिनन्द्ररा अिाहारा अनिष्पन्दााः सगुनन्दिाः’, ‘दहेनेन्द्ररासहुीिािा ंवकुैण्ठपरुवानसिाम ्’ इत्यानद दृष्टदहेशे्ववे। ि चषैाऽन्या गौणी मनुक्ताः।

‘बहिाऽत्र नकमकेु्ति रावच्छ्विे ंि गच्छनि। रोगी िावन्न मकु्ताः स्यादषे शास्त्रस्य निण यराः ’ -इत्यानदत्यपरुाण ेिदन्यमनुक्तनिषधेाि।् र े त्वत्रवै भगवन्त ं प्रनवशनन्त िऽेनप पश्चाि ् ित्रवै रानन्त। रोर्गरत्व ं चात्र नववनक्षिम।् रनुधनष्ठरप्रश्न इिरनिन्दिाच्च। सारजु्य ंच ग्रहवि।् िदुके्तश्च- ‘ भञु्जि ेपरुुष ंप्राप्य रर्ादवेग्रहादराः। िर्ा मकु्तावतु्तमारा ं बाह्याि ् भोगासं्त ुभञु्जि े’ इनि िारारणाष्टाक्षरकल्प।े अिोऽनिष्टस्यवै नवरोगाः। सोऽस्त्यवे सवा यत्मिा -

‘अदुाःख’ं , ‘सवयदुाःखनववनज यिााः’, ‘अशोकमनहमम ् ’ , ‘रत्र गत्वा ि शोचनि ’ इत्यानदभ्ाः। नवशषेवचिाभावाच्च। रषेा ं त्वीषदृ्धश्रि े ि े ि सारज्य ं प्राप्तााः। सामीप्याद्यवे िषेाम।् अिाः प्रारब्धकमयशषेभावाि ् िद्भकु्त्वा सारजु्य ंगच्छनन्त। िच्चोक्तम ् -

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Page 31 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘सङ्कष यणादराः सव ेस्वानधकारादिन्तरम ् । प्रनवशनन्त परं दवे ंनवष्णु ंिास्त्यत्र सशंराः ’ इनि व्यासरोग।े अिोऽनिष्टस्य सवा यत्मिा नवरोगाः। ‘परब्रह्मत्वनमच्छानम परब्रह्म जिादयि ’ इत्यानदिा ब्रह्मानदनभरनप प्रानर् यित्वाि।् ‘ि मोक्षसदृश ंनकनञ्चदनधकं वा सखु ंक्वनचि।् ऋि ेवषै्णवमािन्द ंवाङ्मिोऽगोचरं महि ् ’ इत्यादशे्च ब्रह्मानदपादादप्यनधकिम ंसखु ंच मोक्ष इनि नसद्धम।् अिो रोगार रज्यस्व ज्ञािोपारार। िनद्ध कमयकौशलम॥् 50॥ कमयज ंबनुद्धरकु्ता नह फलं त्यक्त्वा मिीनषणाः। जन्मबन्धनवनिम ुयक्तााः पद ंगच्छन्त्यिामरम॥्51॥ िदुपारमाह - कमयजनमनि। कमयज ं फलं त्यक्त्वा , अकामिारशे्वरार समप्यय। बनुद्धरकु्तााः सम्यग ् ज्ञानििो भतू्वा पद ंगच्छनन्त। सरोगकमय ज्ञािसाधिम ् , िन्मोक्षसाधिनमनि भावाः॥51॥ रदा ि ेमोहकनललं बनुद्धव्य यनििनरष्यनि। िदा गन्तानस निवदे ंश्रोिव्यस्य श्रिुस्य च॥52॥ नकरत्पर यन्तमवश्र ंकि यव्यानि ममुकु्षणुवै ंकमा यणीनि ? आहरदनेि। निवदे ं- नििरा ंलाभम।् प्ररोगाि ् - ‘ििाद्ब्राह्मणाः पानण्डत्य ंनिनव यद्य’ इत्यानद। िनह ित्र वरैार्गरमपुपद्यि।े िर्ा सनि पानण्डत्यानदनि स्याि।् ि च ज्ञानििा ं भगवन्मनहमानदश्रवण ेनवरनक्तभ यवनि।

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Page 32 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘आत्मारामा नह मिुरो निग्रा यह्या अप्यरुुक्रम।े कुव यन्त्यहिैकुीं भनक्तनमत्थभंिूगणुो हनराः’ इनि वचिाि।् अिषु्ठािाच्च शकुादीिाम।् ि च िषेा ंफलं िानस्त। िस्यवै महत्सखुत्वाि ् िषेाम ् - ‘रा निवनृिस्तिभुिृा ंिव पादपद्मध्यािाद्भवज्जिकर्ाश्रवणिे वा स्याि।् सा ब्रह्मनण स्वमनहमन्यनप िार् मा भिू ् नकिन्तकानसलुनलिाि ् पििा ंनवमािाि ्’॥इत्यानदवचिाि।् िषेामप्यपुासिानधफलस्य सानधित्वाि।् िारिम्यानधगिशे्च। िर्ानह रनद िारिम्य ंि स्याि ्,

‘ िात्यनन्तकं नवगणरन्त्यनप ि ेप्रसादम ् ’, ‘ िकैात्मिा ंम ेस्पहृरनन्त केनचि ् ’ ‘ एकत्वमप्यिु दीरमाि ंि गहृ्णनन्त ’ इनि मनुक्तमप्यनिच्छिामनप मोक्ष एव फलं िनमनच्छिामनप स एव भवनि सपु्रिीकादीिानमनि कर्मनिच्छिा ंस्तनुिरुपपन्ना स्याि ् ? वचिाच्च- ‘रर्ा भनक्तनवशषेोऽत्र दृष्यि ेपरुुषोत्तम।े िर्ा मनुक्तनवशषेोऽनप ज्ञानििा ंनलङ्ग भदेि।े रोगीिा ंनभन्ननलङ्गािामानवभू यिस्वरनपणाम।् प्राप्तािा ंपरमािन्द ंिारिम्य ंसदवै नह’ इनि। ‘ि त्वामनिशनरष्यनन्त मकु्तावनप कर्ञ्चि। मद्भनक्तरोगाज्ञािाच्च सवा यिनिशनरष्यनस’ इनि च। साम्यवचि ंि ुप्राचरु यनवषर ं दुाःखाभावनवषर ंच। िर्ा चोक्तम।्

‘दुाःखाभावाः परािन्दो नलङ्गभदेाः समा मिााः।

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Page 33 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िर्ाऽनप परमािन्दो ज्ञािभदेाि ् ि ुनभद्यि’ेइनि िारारणाष्टाक्षरकल्प।े अिो ि वरैार्गर ं श्रिुादावत्र नववनक्षिम।् ि च सङ्कोच े माि ं नकनञ्चनिद्यमाि इिरत्र प्ररोग।े महनद्बाः श्रवणीरस्य श्रिुस्य च वदेादाेः फलं प्राप्स्यसीत्यर् याः॥52॥

शृनिनवप्रनिपन्ना ि ेरर्ा िास्यनि निश्चला। समाधावचला बनुद्धस्तदा रोगमवाप्स्यनस॥53॥ िदवे स्पष्टरनि श्रनिनवप्रनिपन्ननेि। पवू ं श्रनुिनभवदेनैव यप्रनिपन्ना नवरुद्धा सिी रदा वदेार्ा यिकूुलेि ित्त्वनिश्चरिे नवपरीिवानग्भरनप निश्चला भवनि; ििश्च समाधावचला, ब्रह्मप्रत्यक्षदशयििे भरेीिाडिादावनप परमािन्दमग्नत्वाि ् ; िदा रोगमवानप्स्यनस - उपारनसद्धो भवसीत्यर् याः॥53॥ अज ुयि उवाच

नििप्रज्ञ्यस्य का भाषा समानधस्तस्य केशव। नििधीाः नकं प्रभाषिे नकमासीि व्रजिे नकम॥्54॥ नििाप्रज्ञा ज्ञाि ं रस्य स - निर्प्रज्ञाः। भाष्यिऽेिरनेि - भाषा। लक्षणनमत्यर् याः। उकं्त लक्षणमिवुदनि लक्षणान्तरं पचृ्छामीनि ज्ञापनरिमु ् समानधिस्यनेि। कं ब्रह्माणमीश ं रुदं्र च वि यरिीनि - केशवाः। िर्ाऽनह निरुनक्ताः कृिा हनरवशंषे ुरुद्रेण कैलासरात्राराम।् ‘नहरण्रगभ याः काः प्रोक्त ईशाः शङ्कर एव च। सषृ्ट्यानदिा वि यरनि िौ रिाः केशवो भवाि ् ’ इनि वचिान्तराच्च।’ नकमासीि ? नकं प्रत्यासीि ? ि चाज ुयिो ि जािानि िल्लक्षणानदकम ् - ‘जािनन्त पवू यराजािो दवेष यरस्तर्वै नह। िर्ाऽनप धमा यि ् पचृ्छनन्त वािा यर ैगहु्यनवत्तर।े ि ि ेगहु्यााः प्रिीरन्त ेपरुाणषे्वल्पबनुद्धिाम ्’ इनि वचिाि॥्54॥ श्री भगवािवुाच

प्रजहानि रदा कामाि ् सवा यि ् पार् य मिोगिाि।्

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आत्मन्यवेात्मिा िषु्टाः नििप्रज्ञ्यस्तदोच्यि॥े55॥ गमिानदप्रवनृत्तिा यत्यनभसनन्धपनूव यका मत्तानदप्रवनृत्तवनदनि ‘रा निशा’ इत्यानदिा दश यनरष्यि ् लक्षण ंप्रर्मि आह - प्रजाहािीनि। एव ं परमािन्दिपृ्ताः नकमर् यमवे ं प्रवनृत्त ं करोिीनि प्रश्नानभप्राराः। प्रारब्धकमयणषेनत्तरोनहि ब्रह्मणो वासिरा प्रारोऽल्पानभसनन्धप्रवृनत्ताः सम्भविीत्याशरवाि ् पनरहरनि। प्राराः सवा यि ् प्रजहानि। शकुादीिामपीषद्दश यिाि।् ‘त्वत्पादभनक्तनमच्छनन्त ज्ञानििस्तत्वदनश यिाः’ इत्यकेु्तस्तानमच्छनन्त। रदा नत्वन्द्रादीिामाग्रहो दृश्रि ेिदऽनभभिू ंिषेा ंज्ञािम।् िच्चोक्तम ् -

‘अनधकानरकप ुसंा ंि ुबहृत्कमयत्वकारणाि।् उद्भवानभभवौ ज्ञाि ेििोऽन्यभे्ो नवलक्षणााः’ इनि अि एव वलैक्षण्रादिनधकानरणामाग्रहानद चदेनस्त ि ि ेज्ञानिि इत्यवगन्तव्यम।् ि चात्र समानध ं कुव यिो लक्षणमचु्यि।े ‘राः सव यत्रािनभस्नहेाः’ इनि स्नहेनिषधेाि ् । िनह समानध ं कुव यिस्तस्य शभुाशभुप्रानप्तरनस्त। असम्प्रज्ञािसमाधाेः । सम्प्रज्ञाि े त्वनवरोधाः। िर्ाऽनप ि ित्रवैनेि निरमाः। कामादरो ि जारन्त ेह्यनप नवनक्षप्तचिेसाम।् ज्ञानििा ंज्ञािनिधू यिमलािा ंदवेसशं्रराि ्’ इनि ििृाेः। मिोगिा नह कामााः। अिस्तत्रवै िनिरुद्धज्ञािोत्पात्तौ रकंु्त हाि ंिषेानमनि दश यरनि -मिोगिानिनि। नवरोधश्चोच्यि े‘रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वानिवि यि’े इनि। ि चिैददृष्ट्वाऽफलपिीरम।् परुुषवशैषे्याि।् आत्मिा परमात्मिा। परमात्मन्यवे नििाः सि।् आत्माख्य े िनिि ् नििस्य ित्प्रसादादवे िनुष्टभ यवनि। ‘नवषरासं्त ुपनरत्यज्य राम ेनिनिमिस्तिाः। दवेाद्भवनि विैनुष्टिा यन्यर्ा ि ुकर्ञ्चि ‘इनि िारारणरामकल्प’े।अिो िात्मा जीवाः॥55॥ दुाःखषे्विनुिग्नमिााः सखुषे ुनवगिस्पहृाः। वीिरागभरक्रोधाः नििधीम ुयनिरुच्यि॥े56॥

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Page 35 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िदवे स्पष्टरत्यतु्तरनैस्त्रनभाः श्लोकैाः। एिान्यवे ज्ञािोपारानि च। िच्चोक्तम-् ‘िि ैनजज्ञासनुभाः साध्य ंज्ञानििा ंरि ् ि ुलक्षणम ्’ इनि। शोभिाध्यासो रागाः। ‘रसो रागस्तर्ा रनक्ताः शोभिाध्यास उच्यि’े इनि ह्यनभधािम॥्56॥ राः सवयत्रािनभस्नहेस्तत्ति ् प्राप्य शभुाशभुम।् िानभिन्दनि ि िनेष्ट िस्य प्रज्ञा प्रनिनष्ठिा॥57॥ सव यत्रािनभस्नहेत्वाच्छुभाशभु ंप्राप्य िानभिन्दनि ि िनेष्ट॥57॥

रदा सहंरि ेचार ंकूमोङ्गािीव सवयशाः। इनंद्रराणीनन्द्ररार्भे्से्तस्य प्रज्ञा प्रनिनष्ठिा॥58॥

नवषरा नवनिवि यन्त ेनिराहारस्य दनेहिाः। रसवज ंरसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवि यि॥े59॥ ि चिैल्लक्षण ं ज्ञािमरत्निोऽनप भविीत्याहोत्तरश्लोकैाः। निराहारत्विे नवषरभोगसामर्थ्या यभाव एव भवनि। इिरनवषराकाङ्क्षाभावो वा। रसाकाङ्क्षानदि य निवि यि।े स त्वपरोक्षज्ञािादवे निवि यि इत्याह - नवषरा इनि।

‘इनन्द्ररानण जरन्त्याश ुनिराहार मिीनषणाः। वज यनरत्वा ि ुरसिामासौ रस्य ेि ुवध यि े‘ इनि वचिाद्भागवि।े रसशब्दस्यरागवानचत्वाच्च॥59॥ रििो ह्यनप कौन्तरे परुुषस्य नवपनश्चिाः। इनन्द्ररानण प्रमार्ीनि हरन्ती प्रसभ ंमिाः॥60॥ अपरोक्षज्ञािरनहिज्ञानििोऽनप साधारणरत्नविोऽनप मिोहरिीनन्द्ररानण।परुुषस्य शरीरानभमानििाः। को दोषस्तिाः ? प्रमार्ीनि प्रमर्िशीलानि परुुषस्य॥60॥

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Page 36 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िानि सवा यनण सरंम्य रकु्त आसीि मत्पराः। वश ेनह रस्यनेन्द्ररानण िस्य प्रज्ञा प्रनिनष्ठिा॥61॥ िह्य यशक्त्यान्यवेते्यि आह - िािीनि। बहरत्नविाः शक्यानि। अिो रत्न ंकुरा यनदत्याशराः। रकु्तो - मनर मिोरकु्ताः। अहमवे पराः सव यिादुतृ्कष्टो रस्य स मत्पराः। फलमाह - वश ेहीनि॥61॥

ध्यारिो नवषराि ् प ुसंाः सङ्गस्तषेपूजारि।े सङ्गाि ् सञ्जारि ेकामाः कामाि ् क्रोधोऽनभजारि॥े62॥

क्रोदाद्भवनि समंोहाः सहंोहाि ् िनृिनवभ्रमाः। िनृिभ्रशंाद्बनुद्धिाशो बनुद्धिाशाि ् नविश्रनि॥63॥ रागानददोषकारणमाह पनरहारार श्लोकिरिे। सम्मोहाः अकारचे्छा। िर्ानह मोहशब्दार् य उक्त उपगीिास ु- ‘मोहसनज्ञिम।् अधमयलक्षण ंचवै निरि ंपापकमयस’ु इनि। िर्ा रान्यत्र ‘सम्मोहोऽधम यकानमिा’ इनि। िनृिनवभ्रमाः - प्रनिषधेानदिनृििाशाः। बनुद्धिाशाः - सवा यत्मिा दोषबनुद्धिाशाः। नविश्रनि िरकाद्यिर् ंप्राप्नोनि। िर्ाह्यकु्तम ् - अधमयकानमिाः शास्त्र ेनविनृिजा यरि ेरदा। दोषादृष्टसे्ततृ्किशे्च िरकं प्रनिपद्यि’े इनि॥62,63॥ रागिषेनवरकैु्तस्त ुनवषरानिनन्द्ररशै्चरि।् आत्मवश्रनैव यधरेात्मा प्रसादमनधगच्छनि॥64॥ इनन्द्ररजरफलमाहोत्तराभ्ा ं श्लोकाभ्ाम।् नवषराििभुवन्ननप नवधरे आत्मामिो रस्य। नजिात्मते्यर् याः। प्रसाद ं- मिाःप्रसादम॥्64॥ प्रसाद ेसवयदुाःखािा ंहानिरस्योपजारि।े प्रसन्नचिेसो ह्याश ुबनुद्धाः पर यवनिष्ठिी॥65॥

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Page 37 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

कर् ंप्रसादमात्रणे सव यदुाःखहानिाः ? प्रसन्नचिेसो नह बनुद्धाः पर यवनिष्ठनि। ब्रह्मापरोक्षणे सम्यक ्निनि ंकरोनि। प्रसादो िाम स्विोऽनप प्रारो नवषरागनिाः॥65॥ िानस्त बनुद्धररकु्तस्य ि चारकु्तस्य भाविा। ि चाभावरिाः शानन्तरशान्तस्य कुिाः सखुम॥्66॥ प्रसादाभाव े दोषमाहोत्तरश्लोकाभ्ाम।् िनह प्रसादाभाव े रनुक्तनश्चत्तनिरोधाः। अरकु्तस्य च बनुद्धाः - सम्यग ् ज्ञाि,ं िानस्त। िदवेोपपादरनि ि चारकु्तस्यनेि। शानन्त मनुक्ताः।

‘शानन्तमोक्षोऽर् निवा यणम ् ’ इत्यनभधािाि ् ॥66॥ इनन्द्रराणा ंनह चरिा ंरन्मिोऽिनुवधीरि।े िदस्य हरनि प्रज्ञा ंवारिुा यवानमवाम्भनस॥67॥ कर्मरकु्तस्य भाविा ि भवनि ? आह - इनन्द्रराणानमनि। अिनुवधीरि े - नक्ररि।े िन्वीश्वरणेनेन्द्रराणामि।ु ‘बनुद्धज्ञा यिम ्’ इत्यानद वक्ष्यमाणत्वाि।् प्रज्ञा ं -प्रज्ञािम।् उत्पत्स्यदनप निवाररिीत्यर् याः। उत्पन्नस्याप्यनभभवो भवनि॥67॥ ििाद्यस्य महाबाहो निगहृीिानि सवयशाः। इनन्द्रराणीनन्द्ररार्भे्स्तस्य प्रज्ञा प्रनिनष्ठिा॥68॥ ििाि ् सवा यत्मिा निगहृीिनेन्द्रर एव ज्ञािीनि निगमरनि - ििानदनि॥68॥ रा निशा सवयभिूािा ंिस्या ंजागनि य सरंमी। रस्या ंजाग्रनि भिूानि सा निशा पश्रिो मिुाेः॥69॥ उकं्त लक्षण ं नपण्डीकृत्याह - रा निशनेि - रा सव यभिूािा ं निशा परमशे्वरस्वरपलक्षणा, रस्या ंसपु्तािीव ि नकनञ्चज्जािनन्त, िस्यानमनन्द्रर - सरंमरकु्तो ज्ञािी जागनि य - सम्यगापरोक्ष्यणे पश्रनि, परमात्मािनमत्यर् याः। रस्या ं -नवषरलक्षणारा ं भिूानि, जाग्रनि िस्या ं निशारानमव सपु्ताः प्रारो ि जािानि। मत्तानदवद्गमिानदप्रवनृत्ताः। िदुक्तम ् -

‘दहंे ि ुिन्न चरमम ्’ ‘दहेोऽनप दवैवशगाः’ इनि श्लोकाभ्ाम ्

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Page 38 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘मििरकु्तो मनुिाः। पश्रि इत्यस्य साधिमाह॥69॥ अपरू यमाणमचलप्रनिष्ठ ंसमदु्रमापाः प्रनवशनन्त रिि।् ििि ् कामा र ंप्रनवशनन्त सव ेस शानन्तमाप्नोनि ि कामकानम॥70॥ ििे नवषरािभुवप्रकारमाह - अपरू यमाणनमनि। रो नवषररैापरू यमाणोऽप्यचलप्रनिष्ठो भवनि। िोत्सकंे प्राप्नोनि। ि च प्ररत्न ं करोनि। ि चाभाव े शषु्यनि। िनह समदु्राः सनरत्प्रवशेाप्रवशेनिनमत्तवनृद्धशोषौ बहिरौ प्राप्नोनि। प्ररत्न ंवा करोनि। स मनुकं्त प्राप्नोिीत्यर् याः॥70॥

नवहार कामाि ् राः सवा यि ् पमुाशं्चरनि निाःस्पहृाः। निम यमो निरहङ्काराः स शानन्तमनधगच्छनि॥71॥ एिदवे प्रपञ्चरनि - नवहारनेि। कामाि ् नवषराि ् निस्पहृिरा नवहार रश्चरनि - भक्षरनि। भक्षरामीत्याद्यहङ्कार ममकारवनज यिश्च। स नह पमुाि।् स एव मनुक्तमनधगच्छिीत्यर् याः॥ एषा ब्राह्मी निनिाः पार् य ििैा ंप्राप्य नवमहु्यनि। नस्धत्वास्यामन्तकालेऽनप ब्रह्मनिवा यणमचृ्छनि॥72॥

॥इनि श्रीमद्भगवर्गदीिारा ंनििीरोऽध्याराः॥

उपसहंरनि - एषनेि। ब्राह्मी निनिाः - ब्रह्मनवषरा निनिलयक्षणम।् अन्त-कालऽेप्यस्या ंनित्ववै ब्रह्म गच्छनि। अन्यर्ा जन्मान्तरं प्राप्नोनि। ‘र ं र ं वाऽनप’ इनि वक्ष्यमाणत्वाि।् ज्ञािीिामनप सनि प्रारब्धकमा यनण शरीरान्तरं रकु्तम।् ‘भोगिे नत्विर े’ इनि ह्यकु्तम।् सनन्त नह बहशरीरफलानि कमा यनण कानिनचि।् ‘सप्तजन्मनि नवप्राः स्याि ्’ इत्यादाेः। दष्टशे्च ज्ञानििामनप बहशरीरप्राप्ताेः। िर्ाह्यकु्तम ् -

‘नििप्रज्ञोऽनप रस्तधू्वयाः प्राप्य रौद्रपद ंििाः। साङ्कष यण ंििो मनुक्तमगानिष्णपु्रसादिाः’ इनि गारुड।े ‘महादवे पर ेजन्मसं्तव मनुक्तनि यरप्यि’े इनि िारदीर।े निनश्चिफलं च ज्ञािम ् - ‘िस्य िावदवे नचरम ् ’, ‘रदु च िानच यषमवेानभसम्भवनि’ इत्यानद शृनिभ्ाः।ि च कारव्यहूापके्षा।

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Page 39 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘िद्यर्षैीकािलूम ्’ , ‘िद्यर्ा पषु्करफलाश’े, ‘ज्ञािानग्नाः सव य कमा यनण ’ इत्यानद वचिभे्ाः। प्रारब्द ेत्वनवरोधाः। प्रमाणाभावाच्च। ि च िच्छास्त्र ंप्रमाणम ् - ‘अक्षपादकणादािा ंसाङ्ख्यरोगजटाभिृाम।् मिमालम्ब्य र ेवदे ंदूषरन्त्यल्पचिेसाः ’ इनि निन्दिाि।् रत्र ि ु स्तनुिस्तत्र नशवभक्तािा ं स्तनुिपरत्वमवे ि सत्यत्वम।् ि नह िषेामपीिरग्रन्थनवरुद्धार् ेप्रामाण्रम।् िर्ा ह्यकु्तम ् एष मोहं सजृाम्याश ुरो जिाि ् मोहनरष्यनि। ‘त्व ंच रुद्र महाबाहो मोहशास्त्रानण कारर। अिर्थ्यानि नविर्थ्यानि दशयरस्व महाभजु’ प्रकाश ंकुरु चात्मािमप्रकाश ं च मा ंकुरु॥इनि वाराह।े ‘कुनत्सिानि च नमश्रानण रुद्रो नवष्णपु्रचोनदिाः। चकार शास्त्रानण नवभरुऋ्षरस्तत्प्रचोनदिााः। दधीच्याद्यााः परुाणानि िच्छास्त्रसमरिे ि।ु चकु्रवदेशै्च ब्राह्मानण वषै्णवाि ् नवष्णवुदेिाः। पञ्चरात्र ंभारि ंच मलूरामारण ंिर्ा। िर्ा परुाण ंभागवि ंनवष्णवुदे इिीनरिाः। अिाः शवैपरुाणानि रोज्यान्यन्यानवरोधिाः ’ इनि च िारदीर।े अिो ज्ञािीिा ंभवत्यवे मनुक्ताः। भीष्मादीिा ंि ुित्क्षण ेरकु्त्यभावाः। ‘िरंस्त्यजनि’ इनि वि यमािापदशेो नह कृिाः। िच्चोक्तम ् - ‘ज्ञानििा ंकमयरकु्तािा ंकारत्यागक्षणो रदा। नवष्णमुारा िदा िषेा ंमिो बाह्य ंकरोनि नह’ इनि गारुड।े ि चान्यषेा ंिदा िनृिभ यवनि-

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Page 40 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘बहजन्मनवपाकेि भनक्तज्ञाििे र ेहनरम।् भजनन्त ित्स्मनृि ंत्वन्त ेदवेो रानि ि चान्यर्ा’ इत्यकेु्तब्र यह्मववैि।े निबा यणमशरीरम।् ‘कारो बाण ं शरीरं च’ इत्यनभधािाि।् ‘एिद्बाणमवष्टभ्’ इनि प्ररोगाच्च। निबा यणशब्दप्रनिपादिम ्’अनिनन्द्ररााः’ इत्यानदवि।् कर्मन्यर्ा सव यपरुाणानद प्रनसद्धाऽऽकृनिभ यगवि उपपद्यि े? ि चान्यद्बगवि उत्तम ंब्रह्म - ‘ब्रह्मनेि परमात्मनेि भगवानिनि शब्द्यि े’ इनि भागवि।े ‘भगवन्त ं परं ब्रह्म’ ‘परब्रह्म जिाद यिाः’ , ‘परम ं रो महद्ब्रह्म ’, ‘रिाि ् क्षरमिीिोऽहमक्षरादनप चोत्तमाः’, ‘रोऽसाविीनन्द्ररग्राह्याः’ , ‘िानस्त िारारणसम ं ि भिू ं ि भनवष्यनि’, ‘ि त्वत्समोऽस्त्यभ्नधकाः कुिोऽन्याः’ इत्यानदभ्ाः। ि च िद्ब्रह्मणोऽशरीरत्वादिेि ् कल्प्यम।् िस्यानप शरीरश्रवणाि ् ‘आिन्दरपममिृम ्’ , ‘सवुण यज्योनिाः’, ‘दहरोऽनिन्नन्तराकाशाः’ इत्यानदष।ु रनद रप ं ि स्याि ् , आिन्दनमत्यवे स्याि ् , ि त्वािन्दरपनमनि। कर् ंच सवुण यरपत्व ंस्यादरपस्य ? कर् ंदहरत्वम ् ? दहरिश्च ‘केनचि ् स्वदहे - ’ इत्यादौ रपवािचु्यि।े ‘सहस्रशीषा य परुुषाः’ , ‘रुर्गमवण ंकिा यरम ् ’ , ‘आनदत्यवण ंिमसाः परस्ताि ्’, ‘सव यिाः पानण पाद ंिि ्’, ‘नवश्विश्चक्षरुुि’ इत्यानदवचिाि।् नवश्वरपाध्यारादशे्च रपवािवसीरि।े अनिपनरपणू यिमज्ञािशै्वर य-वीरा यिन्दश्रीशक्त्यानदमाशं्च भगवाि ् ‘पराऽस्य शनक्तनव यनवधवै श्ररूि े स्वाभानवकी ज्ञािबलनक्ररा च’ ‘राः सव यज्ञाः’,‘आिन्द ं ब्रह्मणाः’ ,‘एिस्यवैािन्दस्यान्यानि भिूानि मात्रामपुजीवनन्त’, ‘अिानदमध्यान्तमिन्तवीर यम ्’,‘सहस्रलक्षानमिकानन्तकान्ताः’, ‘मय्यिन्तगणुऽेिन्त ेगणुिोऽिन्तनवग्रह’े, ‘नवज्ञािशनक्तरहमासमिन्तशके्ताः’, ‘िरु ंिि ् सव यदृक ्सदा’ , ‘आत्मािमन्य ंच स वदे नविाि ्’, ‘अन्यिमो मकुुन्दाि ् को िाम लोके भगवत्पदार् याः ’ ¸‘ऐश्वर यस्य समग्रस्य’।

‘अिीव पनरपणू ंि ेसखु ंज्ञाि ंच सौभगम।् रच्चात्यरकंु्त ििु ंव शक्ताः कि ुयमिाः पराः ’ इत्यानदभ्ाः। िानि च सवा यण्रन्योन्यस्वरपानण -

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Page 41 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘नवज्ञािमािन्द ंब्रह्म’, ‘आिन्दो ब्रह्मनेि व्यजािाि ् ’,‘सत्य ंज्ञािमिन्त ंब्रह्म’, ‘रस्य ज्ञािमर ंिपाः’, ‘स मा भग प्रनवश स्वाहा’। ‘ि िस्य प्राकृिा मनूि यमांसमदेोनिसम्भवा। ि रोनगत्वादीश्वरत्वाि ् सत्यरपाच्यिुो नवभाुः’॥ ‘सद्दहेाः सखुगन्धश्च ज्ञािभााः सत्पराक्रमाः। ज्ञािाज्ञािाः सखुसखुाः स नवष्णाुः परमोऽक्षराः’ इनि पङै्गीनखले। ‘दहेोऽर ंम ेसदािन्दो िार ंप्रकृनिनिनम यिाः। पनरपणू यश्च सवयत्र ििे िारारणोऽस्म्यहम ्’ इत्यानदभ्ो ब्रह्मववैि।े िदवे लीलरा चासौ पनरनच्छन्नानदरपणे दश यरनि माररा - ‘ि च गभऽेवसद्दवे्या ि चानप वसदुवेिाः। ि चानप राघवाज्जािो ि चानप जमदनग्निाः। नित्यािन्दोऽिरोऽप्यवे ंक्रीडिऽेमोघदशयिाः’ इनि पाद्म।े ‘ि व ैस आत्माऽऽत्मविामधीश्वरो भङेु्त नह दुाःख ंभगवाि ् वासदुवेाः’, ‘सगा यदरेीनशिाऽजाः परमसखुनिनधभोधरपोऽप्यभोद ं लोकािा ं दश यरि ् रो मनुिसिुहृिात्मनप्ररार् ेजगाम’। ‘स ब्रह्मवन्द्यचरणो िरवि ् प्रलापी स्त्रीसनङ्गिानमनि रनि ंप्रर्रशं्चकार’, ‘पिूरेनचन्त्यवीरो रो रश्च दाशरनर्ाः स्वरम।् रुद्रवाक्यमिृ ंकि ुयमनजिो नजिवि ् नििाः॥ ‘रोऽनजिो नवनजिो भक्त्या गाङे्गर ंि जघाि ह। ि चाम्बा ंग्राहरामास करुणाः कोऽपरस्तिाः’

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Page 42 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

इत्यानदभ्श्च स्कान्द ेि ित्र ससंारधमा य निरप्यााः। रत्र च परावरभदेोऽवगम्यि ेित्राज्ञबनुद्धमपके्ष्यावरत्वम।् नवश्वरपमपके्ष्यान्यत्र। िच्चोक्तम ् -

‘पनरपणूा यनि रपानण समान्यनखलरपिाः। िर्ाऽप्यपके्ष्य मन्दािा ंदृनष्ट ंत्वामषृरोऽनप ि।ु परावरं वदन्त्यवे ंह्यभक्तािा ंनवमोहि’े इनि गारुड।े ि चात्र नकनञ्चदुपचनरिा वाच्यम।् अनचन्त्यशके्ताः पदार् यवनैचत्र्याच्चते्यकु्तम।्

‘कृष्णरामानदरपानण पनरपणूा यनि सवयदा। ि चाणमुात्र ंनभन्नानि िर्ाऽप्यिाि ् नवमोहनस’॥इत्यादशे्च िारदीर।े

ििाि ् सव यदा सव यरपषे्वपनरगनणिािािन्तगणुगण ं नित्यनिरस्ताशषेदोष ं च िारारणाख्य ं परं ब्रह्मापरोक्षज्ञािी ऋच्छिीनि नसद्धम॥्72॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् य भगवत्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिा भाष्य ेनििीरोऽध्याराः॥

आर् ििृीरोऽध्याराः आत्मस्वरप ंज्ञािसाधि ंचोकं्त पवू यत्र। ज्ञािसाधित्विेाकम य नवनिन्द्य कमय नवधीरि उत्तराध्यार े- अज ुयि उवाच

ज्यारसी चिे ् कमयणस्त ेमिा बनुद्धज यिाद यि। िि ् नकं कमा यनण घोर ेमा ंनिरोजरनस केशव॥01॥

व्यानमश्रणेवे वाक्यिे बनुद्ध ंमोहरसीव म।े िदकंे वद निनश्चत्य रिे श्ररेोऽहमाप्नरुाम॥्02॥

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कमयणो ज्ञािमत्यतु्तमनमत्यनभनहि ंभगविा ‘दूरणे ह्यवरम ् कमय’ इत्यदौ। एव ंचिे ् नकनमनि कमयनण घोर ेरदु्धाख्य े निरोजरनस निवृत्तधमा यि ् नविते्याह - ज्यारसीनि। कमयणाः सकाशाि ् बनुद्धज्या यरसी चिे ् ि ेमिा िनहि॥1,2॥ श्री भगवािवुाच

लोकेनिि ् निनवधा निष्ठा परुा प्रोक्ता मराऽिघ। ज्ञािरोगिे साङ्ख्यािा ंकमयरोगिे रोनगिा॥ं03॥ ज्यारस्त्वऽेनप बद्धरेानधकानरकत्वाि ् त्व ंकमयण्रप्यनधकृि इनि ित्र निरोक्ष्यामीत्याशरवाि ् भगवािाह - लोक इनि। निनवधा अनप जिााः सनन्त। गहृिानधकमयत्यागिे ज्ञािनिष्ठााः सिकानदवि।् ित्स्था एव ज्ञािनिष्ठाश्च जिकानदवि।् मद्धमयिा एवते्यर् याः। साङ्ख्यािा ंज्ञािीिा ंसिकादीिाम।् रोनगिामपुानरिा ंजिकादीिाम।् ज्ञािनिष्ठा अप्यानधकानरकत्वादीश्वरचे्छरा लोक सङ्ग्रहार् यत्वाच्च र ेकमयरोर्गरा भवनन्त िऽेनप रोनगिाः। निष्ठा निनिाः। त्व ं ि ु जिकानदवि ् सकमवै ज्ञािरोर्गराः ि ि ु सिकानदवि ् ित्त्यागिेते्यर् याः। सनन्त हीश्वरचे्छरवै कमयकृिाः नप्ररव्रिादरो ज्ञानिि एव। िर्ाह्यकु्तम ् - ‘ईश्वरचे्छरा नवनिवनेशिकमा यनधकाराः’ इनि॥03॥ ि कमयणामिारम्भान्नषै्कम्य ंपरुुषोऽश्निु।े ि च सनं्यसिादवे नसनद्ध ंसमनधगच्छनि॥04॥ इिश्च निरोक्ष्यामीत्याह - ि कमयणानमनि। कमयणा ं रदु्धादीिामिारम्भणे िषै्कम्य ं निष्कमयिा ंकाम्यकमयपनरत्यागिे प्राप्यि इनि मोक्ष ंिाश्निु।े ज्ञािमवे ित्साधि,ं ि ि ुकमा यकरणनमत्यर् याः। कुिाः? परुुषत्वाि।् सव यदा िलूेि सकू्ष्मणे वा परुणे रकु्तो िि ु जीवाः। रनद कमा यकरणिे मनुक्ताः स्याि ् िावराणाम।् िचाकरण े कमयभावान्मनुक्तभ यवनि। प्रनिजन्मकृिा-िामिन्त-कमा यणा ं भावाि।् ि च सवा यनण कमा यनण भकु्तानि। एकनिि ् शरीर े बहूनि नह कमा यनण करोनि। िानि चकैैकानि बहजन्मफलानि कानिनचि।् ित्रकैैकानि कमा यनण भञु्जि ् प्राप्नोत्यवे शषेणे मािषु्यम।् ििश्च बहशरीरफलानि कमा यणीत्यसमानप्ताः। िच्चोक्तम ् - ‘जीवशं्चिदु यशादूधं्व परुुषो निरमिे ि।ु स्त्री वाऽप्यििूदशकं दहंे मािषुमाज यि।े

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Page 44 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

चिदु यशोध्वयजीवीनि ससंारश्चानदवनज यिाः। अिोऽनवत्वा परं दवे ंमोक्षाशा का महामिु’े इनि ब्रह्माण्ड।े रनद सानदाः स्याि ् ससंाराः पवू यकमा यभावादित्प्रानप्ताः। अबन्धकत्व ं त्वकामिेवै भवनि। िच्च वक्ष्यि े‘अनिष्टनमष्टम ् ’ इनि िि ुनिष्कामकमयणाः फलाभावान्मोक्षाः ििृाः -

‘निष्काम ंज्ञािपवंू ि ुनिवतृ्तनमनि चोच्यि।े निवतृ्त ंसवेमािस्त ुब्रह्माभ्नेि सिाििम ्’ इनि मािव।े अिस्तत्साम्यादकरणऽेनप भविीत्यि आह - ि चनेि। सनं्यासाः काम्यकमयपनरत्यागाः। ‘काम्यािा ंकमयणाम ्’ इनि वक्ष्यमाणत्वाि।् अकामकमयणामन्ताः-करणशदु्ध्याज्ञािान्मोक्षो भवनि। िच्चोक्तम ् - ‘कमयनभाः शदु्धसत्त्वस्य वरैार्गर ंजारि ेहृनद’ इनि भागवि।ेनवरक्तािामवे च ज्ञािमकु्तम ् - ‘ि िस्य ित्त्वग्रहणार साक्षािरीरसीरनप वाचाः समासि।् स्वप्न ेनिरुक्त्या गहृमधेसौख्य ंि रस्य हरेािनुमि ंस्वर ंस्याि ् ’इनि। ि ि ु फलाभावाि।् कमा यभावाि।् अिो ि कमयत्याग एव मोक्षसाधिम ् । रत्याश्रमस्त ु प्रारत्यार्ो भगवत्तोषणार् यश्च। अप्ररित्वमवे नह प्रारो गहृिादीिाम।् इिरकमोद्योगाि।् अप्ररिािा ंच ज्ञाि।ं िर्ानह शृनिाः ‘िाशान्तो िासमानहिाः’ इनि।

महाशं्चरत्याश्रम ेिोषो भगविाः। िर्ा ह्याह- रत्याश्रम ंिरुीर ंि ुदीक्षा ंमम सिुोनषणीम ्’ इनि िारारणाष्टाक्षरकल्प।े अनधकानरकास्त ुित्स्था एव प्रारत्य ेसमर्ा याः। स एव च महाि ् भगवत्तोषाः। िच्चोक्तम ् - ‘दवेादीिामानदराज्ञा ंमहोद्योगऽेनप िो मिाः। नवष्णोश्चलनि िद्भोगोऽप्यिीव हनरिोषणम ् ’ इनि पाद्म॥े04॥

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Page 45 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ि नह कनश्चत्क्षणमनप जाि ुनिष्ठत्यकमयकृि।् कार यि ेह्यवशाः कमय सवयाः प्रकृनिजगै ुयणाैः॥05॥ ि ि ुकमा यनण सवा यत्मिा त्यकंु्त शक्यािीत्याह - िहीनि॥05॥ कमनेन्द्ररानण सरंम्य र अस्त ेमिसा िरि।् इनन्द्ररार्ा यि ् नवमढूात्मा नमर्थ्याचाराः स उच्यि॥े06॥

रस्त्वीनन्द्ररानण मिसा निरम्यारभिऽेज ुयि। कमनेन्द्रराैः कमयरोगमसक्ताः स नवनशष्यि॥े07॥ िर्ाऽनप शनक्तिस्त्यागाः कार य इत्यि आह - कमनेन्द्रराणीनि। मि एव प्ररोजकनमनि दश यनरिमुन्वरव्यनिरकेावाह - मिसा िरि ् मिसा निरम्यनेि॥कमयरोग ंस्ववणा यश्रमोनचिम।् ि ि ुगहृिकमवैनेि निरमाः। सनं्यासानदनवधािाि।् सामान्यवचिाच्च॥6, 7॥ निरि ंकुरु कमय त्व ंकमय ज्यारो ह्यकमयणाः। शरीररात्राऽनप च ि ेि प्रनसद्ध्यदेकम यणाः॥08॥ अिो निरि ंवणा यश्रमोनचि ंकमय कुरु॥8॥

रज्ञार्ा यि ् कमयणोऽन्यत्र लोकोऽर ं कमयबन्धिाः। िदर् ंकमय कौन्तरे मकु्त सङ्गाः समाचर॥09॥ ‘कमयणा बध्यि ेजन्ताुः’ इनि कमय बन्धकं ििृनमत्यि आह - रज्ञार्ा यनदनि। कमय बन्धि ंरस्य लोकस्य स कमयबन्धिाः। रज्ञो नवष्णाुः। रज्ञार् ंसङ्गरनहि ंकमय ि बन्धनमत्यर् याः। मकु्तसङ्ग इनि नवशषेणाि।् ‘कामाि ् राः कामरि’े इनि श्रिुशे्च। ‘अनिष्टनमष्टम ् ’ इनि वक्ष्यमाणत्वाच्च। ‘एिान्यनप ि ुकमा यनण ’ इनि च। ‘ििान्ननेष्टराजकुाः स्याि ्’ इनि च। नवशषेवचित्व ेसमऽेनप नवशषेण ंपनरनशष्यि॥े09॥

सहरज्ञााः प्रजााः सषृ्ट्वा परुोवाच प्रजापनिाः। अििे प्रसनवष्यध्वमषे वोऽनस्त्वष्टकामधकु॥्10॥

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दवेाि ् भावरिाििे ि ेदवे भावरन्त ुवाः। परस्परं भावरन्ताः श्ररेाः परमवाप्स्यि॥11॥

इष्टाि ् भोगाि ् नह वो दवेा दास्यिं ेरज्ञभानविााः। िदै यत्तािप्रदारभै्ो रो भङेु्क्त स्तिे एव साः॥12॥

रज्ञनशष्टानशिाः सन्तो मचु्यन्त ेसवयनकनिषाैः। भञु्जि ेि ेत्वघ ंपापा र ेपचन्त्यात्मकारणाि॥्13॥ अत्रार् यवादमाह - सहरज्ञा इनि॥10-13॥ अन्नाद्भवनन्त भिूानि पज यन्यादन्नसम्भवाः। रज्ञाद्भवनि पज यन्यो रज्ञाः कमय समदु्भवाः॥14॥ हते्वन्तरमाह - अन्नानदनि। रज्ञाः पज यन्यान्नत्वाि ् ित्कारणमचु्यि।े पवू यरज्ञनववक्षारा ं च िस्य चक्रप्रवशेो ि सम्भवनि। िद्ध्यापाद्य ंकमयनवधर।े ि ि ुसाम्यमात्रणेदेािीं कार यम।् मघेचक्रानभमािी च पज यन्याः। िच्च रज्ञाद्भवनि। ‘अग्नौ प्रास्ताऽऽहनिाः सम्यगानदत्यमपुनिष्ठनि। आनदत्याज्जारि ेवनृष्टवषृ्टरेन्न ंििाः प्रजााः’ इनि ििृशे्च। उभरवचिादानदत्याि ् समुदु्राच्चानवरोधाः। अिश्च रज्ञाि ् पज यन्योद्भवाः सम्भवनि। रज्ञो दवेिामनुद्दश्र द्रव्यपनरत्यागाः। कमय इिरनक्ररा॥14॥

कमय ब्रह्मोद्भव ंनवनद्ध ब्रह्माक्षरसमदु्भवम।् ििात्सवयगि ंब्रह्म नित्य ंरज्ञ ेप्रनिनष्ठिम॥्15॥ कमय ब्रह्मणो जारि।े ‘एष ह्यवे साध ु कमय काररनि’, ‘बनुद्धज्ञा यिम ् ’ इत्यानदभ्ाः। ि च मखु्य ेसम्भाव्यमाि ेपारम्परणेौपचानरकं कल्प्यम।्

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ि च जडािा ंस्विाः प्रवनृत्ताः सम्भवनि। ‘एिस्य वा अक्षरस्य’ इत्यानद सव यनिरमिश्रिुशे्च। ‘द्रव्य ंकमय च कालश्च’ इत्यादशे्च। अनचन्त्यशनक्तश्चोक्ता। जीवस्य च प्रनिनबम्बस्य नबम्बपवूवै चषे्टा। ‘ि किृ यत्वम ्’ इत्यानदनिषधेाच्च। अक्षरानण प्रनसद्धानि। िभे्ो ह्यनभव्यज्यि ेपरं ब्रह्म। अन्यर्ाऽिानदनिधिमनचन्त्य ंपनरपणू यमनप ब्रह्मको जािानि ? ि च रनढं नविा रोगाङ्गीकारो रकु्ताः। परामशा यच्च- ‘ििाि ् सव यगि ंब्रह्म’ इनि। ि ह्यकेशब्दिे निरुके्ति भदेशृनि ंनविा वस्तिुर ंकुत्रनचदुच्यि।े िानि चाक्षरानण नित्यानि। ‘वाचा नवरप नित्यरा’ , ‘अिानदनिधिा नित्या वागतु्सषृ्टा स्वरम्भवुा’ , ‘अि एव च नित्यत्वम ्’ इत्यानद शृनििनृिभगविचिभे्ाः। दोषश्चोक्ताः सकिृ यकत्व।े ि चाबनुद्धपवू यमतु्पन्नानि। ित्प्रमाणाभावाि।् निश्वनसिशब्दस्त्विेशानभप्राराः। िाबनुद्धपवूा यनभप्राराः। ‘सोऽकामरि’ इत्यादशे्च। ‘इष्ट ं हिम ्’ इत्यानदरपप्रपञ्चिे सहानभधािाच्च। महािात्पर यनवरोदाच्च। िच्चोकं्त परुस्ताि।् ि ह्यस्वािन्त्र्यणेोत्पनत्तकि ुयाः प्राधान्यम।् अस्वािन्त्र्य ं च िदमनिपवू यकत्विे भवनि। रर्ा रोगादीिा ंपरुुषस्य िज्जत्वऽेनप। उत्पनत्तवचिान्यनभव्यक्त्यर्ा यन्यनभमानिदवेिानवषरानण च। ‘नित्या’ इत्यकु्त्वा ‘उत्सषृ्टा’ इनि वचिाि।् अनभव्यञ्जके किृ यवचि ं चानस्त। ‘कृत्स्न ं शिपर् ं चके्र’ इनि। कर्मानदत्यिावदेास्तिेवै नक्ररन्त।े वचिमात्राच्च निण यरात्मकशारीरकोकं्त बलवि।् शास्त्र ंरोनिर यस्यनेि ि ुशास्त्ररोनित्वम।् ‘जन्माद्यस्य रिाः’ इत्यकेु्त प्रमाण ंनह ित्रापनेक्षिम।् ि ि ुिस्य जाित्व ं वदेकारणत्व ं वा। िनह वदेकारणत्व ं जगत्कारणत्व े हिेाुः। ि नह नवनचत्रजगत्सषृ्टवेदेसनृष्टरशक्त्या सजृ्यत्व।े ि च सव यज्ञत्व।े रनदवदेस्रष्टा सव यज्ञाः नकनमनि ि जगत्स्रष्टा ? ििािदेप्रमाणकत्वमवेात्र नववनक्षिम।् अिो नित्यान्यक्षरानण। रि एव ं परम्पररा रज्ञानभव्यङं्ग ब्रह्म ििाि ् िनन्नत्य ं रज्ञ े प्रनिनष्ठिम।् िानि चाक्षरानण भिूानभव्यङ्ग्यािीनि चक्रम॥्15॥ एव ंप्रवनि यि ंचकं्र िािवुि यरिीह राः। अघारनुरनन्द्ररारामो मोघ ंपार् य स जीवनि॥16॥ िदिेि ् जगच्चकं्र रो िािवुि यरनि स िनििाशकत्वादघाराुः। पापनिनमत्तमवे रस्याराुः सोऽघाराुः ॥16॥

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Page 48 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

रस्त्वात्मरनिरवे स्यादात्मिपृ्तश्च मािवाः। आत्मन्यवे च सन्तषु्टस्तस्य कार ंि नवद्यि॥े17॥ िह्य यिीव मिाःसमाधािमनप ि कार यनमत्यि आह - रनस्त्वनि। रमण ं परदश यिानदनिनमत्त ं सखुम।् िनृप्तरन्यत्रालम्बनुद्धाः। सन्तोषस्तज्जिकं सखुम।् ‘सन्तोषस्तनृप्तकारणम ्’ इत्यनभधािाि।् परमात्मदशयिानदनिनमत्त ं सखु ं प्राप्ताः। अन्यत्र सवा यत्मिाऽलम्बनुद्ध ं च। महच्च िि ् सखुम।् ििेवैान्यत्रालम्बनुद्धनरनि दश यरनि आत्मन्यवे च सन्तषु्ट इनि। ित्स्थ एव सि ् सन्तषु्ट इत्यर् याः। िान्यि ् नकमनप सन्तोषकारणनमत्यवधारणम।् आत्मिा िपृ्ताः। िह्यात्मन्यलम्बनुद्धर ुयक्ता। ििानचत्व ंच ‘वर ंि ुि नविपृ्याम उत्तमश्लोकनवक्रमाैः’ इनि प्ररोगाि ् नसद्धम।् अध्याहारस्त्वगनिका गनिाः। ‘आत्मरनिरवे’ इत्यवधारणादसम्प्रज्ञािसमानधिस्यवै कार ंि नवद्यि।े

‘नििप्रज्ञस्यानप कारो दहेानददृयश्रि ेरदा। स्वधमो मम िषु्ट्यर् याः सा नह सवरैपनेक्षिा’ इनि वचिाच्च पञ्चरात्र।े अन्यदाऽन्यरनिरपीषि ् सव यस्य भवनि। ि च ित्रालम्बनुद्धमात्रमकु्तम।् आत्मिपृ्त इनि परृ्गनभधािाि।् किृ यशब्दाः कालावच्छदे े चार ं प्रनसद्धाः ‘रो भङेु्त स ि ु ि ब्ररूाि ् ’ इत्यादौ। अिोऽसम्प्रज्ञािसमाधाववेिैि।् मािव इनि ज्ञानिि एवासम्प्रज्ञािसमानधभ यविीनि दश यरनि। ‘मि ुअवबोधि’े इनि धािोाः। परमात्मारनिश्चात्र नववनक्षिा। ‘नवष्णाववे रनिर यस्य नक्ररा िस्यवै िानस्त नह’ इनि वचिाि॥्17॥

िवै िस्य कृििेार्ो िाकृििेहे कश्चि। ि चास्य सवयभिूषे ुकनश्चदर् यव्यपाश्रराः॥18॥ िस्य ‘कमयकाल ेवक्तव्योऽहम ्’ इनि नकनञ्चि ् प्रत्यकु्त्वा ितृ्किावात्मरत्यनधकाः समो वाऽर्ो िानस्त। ि च सन्ध्याद्यकृिौ कनश्चद्दोषोऽनस्त। ि चिैदपहार सव यभिूषे ु कनश्चि ् प्ररोजिाश्रराः। अर्ो रिे दश यिानदिा भवनि सोऽर् यव्यपाश्रराः। ज्ञािमात्रणे प्रत्यवारो रद्यनप ि भवनि। िदज ुयिस्यानप समनमनि। ि िस्य कमोपदशेरोर्गर े िद्भवनि। ईषि ् प्रारब्दािर् यसचूकं च िद्भवनि। महच्चदे ्वतृ्रहत्यानदवि॥्18॥

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Page 49 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ििादसक्ताः सिि ंकार ंकमय समाचर। आसक्तो ह्याचरि ् कमय परमाप्नोनि परूुषाः॥19॥ रिोऽसम्प्रज्ञािसमाधरेवे कारा यबावस्तिाि ् कमय समाचर॥19॥ कमयणवै नह सनंसनद्धमानििा जिकादराः। लोकसङ्ग्रहमवेानप सम्पश्रि ् कि ुयमहयनस॥20॥ आचारोऽप्यस्तीत्याह - कमयणवैनेि। कमयणा सह, कमय कुव यन्त एवते्यर् याः। कमय कृत्ववै ििो ज्ञाि ंप्राप्य वा। ि ि ु ज्ञाि ं नविा। प्रनसद्ध ं नह िषेाजं्ञानित्व ं भारिानदष।ु ‘िमवे ं नविािमिृ इह भवनि’ इत्यानद श्रनुिभ्श्च। अत्रानप कमा यणा ं ज्ञािसाधित्वोके्तश्च ‘बनुद्धरकु्ताः’ इनि गत्यन्तरं च ‘िान्याः पन्थााः’ इत्यस्य िानस्त। इिरषेा ंज्ञाििाराऽप्यनवरोधाः। रत्र च िीर्ा यऽद्यवे मनुक्तसाधिमचु्यि े-

‘ब्रह्मज्ञाििे वा मनुक्ताः प्ररागमरणिे वा। अर्वा स्नािमात्रणे गोमत्या ंकृष्णसनन्नधौ’ इत्यादौ ित्र पापानदमनुक्ताः।स्तनुिपरिा च।ित्रानप नह कुत्रनचद्ब्रह्मज्ञािसाधित्वमवेोच्यिऽेन्यर्ामनुकं्त निनषद्ध्य - ‘ब्रह्मज्ञाि ंनविामनुक्ति य कर्नञ्चदपीष्यि।े प्ररागादसे्त ुरा मनुक्तज्ञा यिोपारत्वमवे नह’ इत्यादौ। ि च िीर् यस्तनुिवाक्यानि ित्प्रस्तावऽेप्यकंु्त ज्ञािनिरम ंघ्ननन्त। रर्ा कनङ्चद्दक्ष ंभतृ्य ंप्रत्यकु्तानि ‘अरमवे नह राजा नकं राज्ञा’ इत्यादीनि। रर्ाऽऽह भगवाि ् -

‘रानि िीर्ा यनदवाक्यानि कमा यनदनवषरानण च। स्तावाकान्यवे िानि स्यरुज्ञािा ंमोहकानि वा। भवने्मोक्षस्तमुदृ्धष्टिेा यन्यिस्त ुकर्चंि’ इनि िारदीर।े अिोऽपरोक्षज्ञािादवे मोक्षाः। कमय ि ुित्साधिमवे॥20॥

रद्यदाचरनि श्रषे्ठस्ति ् िदवेिेरो जिाः। स रत्प्रमाण ंकुरुि ेलोकस्तदिवुि यि॥े21॥

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Page 50 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

स रि ् वाक्यानदकं प्रमाण ंकुरुि,े रिकु्तप्रकारणे निष्ठिीत्यर् याः॥21॥

ि म ेपार् यनस्त कि यव्य ंनत्रष ुलोकेष ुनकञ्चि। िािवाप्तमवाप्तव्य ंवि य एव च कमयनण॥22॥

रनद ह्यहं ि विरे ंजाि ुकमयण्रिनन्द्रिाः। मम वत्मा यिवुि यन्त ेमिषु्यााः पार् य सवयशाः॥23॥

उनत्सदरेनुरम ेलोका ि कुरां कमय चदेहम।् सङ्करस्य च किा य स्यामपुहन्यानममााः प्रजााः॥24॥

सक्तााः कमयण्रनविासंो रर्ा कुव यनन्त भारि। कुरा यनििासं्तर्ाऽसक्तनश्चकीष ुयलोकसङ्ग्रहम॥्25॥

ि बनुद्धभदे ंजिरदेज्ञािा ंकमयसनङ्गिाम।् जोषरिे ् सवयकमा यनण नविाि ् रकु्ताः समाचरि॥्26॥

प्रकृिाेः नक्ररमाणानि गणुाैः कमा यनण सवयशाः। अहङ्कारनवमढूात्मा किा यऽहनमनि मन्यि॥े27॥ नविदनवदुषोाः कमयभदेमाह - प्रकृिनेरनि। प्रकृिगे ुयणाैः इनन्द्ररानदनभाः। प्रकृनिमपके्ष्य गणुभिूानि नह िानि। ित्सम्बन्दीनि च। ि नह प्रनिनबम्बस्य नक्ररा॥27॥ ित्त्वनवि ् ि ुमहाबाहो गणुकम यनवभागरोाः। गणुा गणुषे ुवि यनन्त इनि मत्वा ि सज्जि॥े28॥ कमेभदेस्य गणुभदेस्य च ित्त्वनवि।् गणुााः -इनन्द्ररादीनि। गणुषे ुनवषरषे॥ु28॥

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Page 51 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

प्रकृिगे ुयणसमंढूााः सज्जन्त ेगणुकम यस।ु िािकृत्स्ननवदो मन्दानृ्कत्स्ननवन्न नवचालरिे॥्29॥ प्रकृिगे ुयणषे ुइनन्द्ररानदष ुसम्मढूााः। इनन्द्रराद्यनभमािानद्ध नवषरानदसङ्गाः। गणुकमयस ुनवषरषे ुकमयस ुच- ‘शब्दाद्या इनन्द्रराद्याश्च सत्त्वाद्याश्च शभुानि च। अप्रधािानि च गणुा निगद्यन्त ेनिरुनक्तगाैः’ इत्यनभधािाि।् सत्वाद्यङ्गीकार े“गणुा गणुषे”ु इत्यरकंु्त स्याि॥्29॥ मनर सवा यनण कमा यनण सनं्यस्याध्यात्मचिेसा। निराशीनि यम यमो भतू्वा रधु्यस्य नवगिज्वराः॥30॥ अिाः सवा यनण कमा यनण मय्यवे सनं्यस्य, भ्रान्त्या जीवऽेध्यारोनपिानि मय्यवे नवसजृ्य भगवािवे सवा यनण कमा यनण करोिीनि, मत्पजूनेि च। आत्मािमनधकृत्य रच्चिेस्तदध्यात्मचिेाः। सनं्यासस्त ु भगवाि ् करोिीनि। निम यमत्व ंिाहं करोमीनि॥30॥

र ेम ेमिनमद ंनित्यमिनुिष्ठनन्त मािवााः। श्रद्धावन्तोऽिसरून्तो मचु्यन्त ेिऽेनप कमयनभाः॥31॥

र ेत्विेदभ्सरून्तो िािनुिष्ठनन्त म ेमिम।् सवयज्ञािनवमढूासं्ताि ् नवनद्ध िष्टा िचिेसाः॥32॥ फलमाह - र ेम इनि। र ेत्ववे ंनिवृत्तकनम यणस्तऽेनप मचु्यन्त ेज्ञाििारा। नकिपरोक्षज्ञानििाः ? ि ि ुसाधिान्तरमचु्यि े- ‘निवतृ्तादीनि कमा यनण ह्यपरोक्षशेदृष्टर।े अपरोक्षशेदृनष्टस्त ुमकु्तौ नकनञ्चन्न माग यि।े सवं िदन्तराधार मकु्तरो साधि ंभविे।् ि नकनञ्चदन्तराधार निवा यणारापरोक्षदृक ्‘

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Page 52 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

इनि ह्यकंु्त िारारणाष्टाक्षरकल्प।े अर् एव समचु्चरनिरमो निराकृिाः॥31-32॥ सदृश ंचषे्टि ेस्वास्यााः प्रकृिजे्ञा यिवािनप। प्रकृनि ंरानन्त भिूानि निग्रहाः नकं कनरष्यनि॥33॥ एव ंचिे ् नकनमनि ि ेमि ंिािनुिष्ठनन्त लोका इत्यि आह - सदृशनमनि। प्रकृनिाः - पवू यससं्काराः॥33॥ इनन्द्ररस्यनेन्द्ररस्यार् ेरागिषेौ व्यवनििौ। िरोि य वशमागच्छेि ् िौ ह्यस्य पनरपनन्थिौ ॥34॥ िर्ाऽनप शनक्तिो निग्रहाः कार याः। निग्रहाि ् सद्याः प्ररोजिाभावऽेनप भवत्यवेानिप्ररत्नि इत्याशरवािाह - इनन्द्ररस्यनेि। िर्ाह्यकु्तम ् ‘ससं्कारो बलवािवे ब्रह्माद्या अनप ििशााः। िर्ाऽनप सोऽन्यर्ाकि ु ंशक्यिऽेनिप्ररत्निाः’ इनि॥34॥ श्ररेाि ् स्वधमो नवगणुाः परधमा यि ् स्विनुष्ठिाि।् स्वधम ेनिधि ंश्ररेाः परधमो भरावहाः॥35॥ िर्ाऽप्यगु्र ंरदु्ध ंकमेत्यि आह - श्ररेानिनि॥35॥ अज ुयि उवाच

अर् केि प्ररकु्तोऽर ंपाप ंचरनि परूुषाः। अनन्नच्छन्ननप वाष्णरे बलानदव निरोनजिाः॥36॥ बहवाः कमयकारणााः सनन्त क्रोधादराः कामश्च। ित्र को बलवानिनि पचृ्छनि - अर्नेि। अर्ते्यर्ा यन्तरम ् । ‘िरोि य वशमागच्छिे ्’ इनि प्रश्नप्रापकम॥्36॥

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Page 53 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

श्री भगवािवुाच काम एष क्रोध एष रजोगणुसमदु्भवाः। महाशिो महापाप्मा नवद्यिेनमह वनैरणम॥्37॥ रस्त ुबलवाि ् प्रवि यकाः स एष कामाः। क्रोधोऽप्यषे एव। िज्जन्यत्वाि।् ‘कामाि ् क्रोधोऽनभजारि’े इनि ह्यकु्तम।् रत्रानप गरुुनिन्दानदनिनमत्ताः क्रोधस्तत्रानप भनक्तनिनमत्ता निन्दा कामनिनमत्त एव। र ेत्वन्यर्ा वदनन्त ि ेसङ्करान्न सकू्ष्म ंजािनन्त। उकं्त च-

‘ऋि ेकाम ंि कोपाद्या जारन्त ेनह कर्ञ्चि’ इनि। महाशिाः। महनद्ध कामभोर्गरम।् महाब्रह्महत्यानद कारणत्वान्महापाप्मा। सव य परुुषार् यनवरोनधत्वािरैी॥37॥ धमूिेानव्ररि ेवनह्नर यर्ाऽऽदशो मलेि च। रर्ोल्बिेाविृो गभ यस्तर्ा ििेदेमाविृम॥्38॥ कर् ं नवरोनध साः ? इदमििेाविृम।् रर्ा धमूिेानग्नराविृाः प्रकाशरपोऽप्यन्यषेा ंसम्यगदशयिार िर्ा परमात्मा। रर्ाऽऽदशो मलेिाविृोऽन्यानभव्यनक्तहिेिु य भवनि िर्ाऽन्ताःकरण ंपरमात्मादवे्य यनक्तहिेिु य भवनि कामिेाविृम।् रर्ोल्बिेावतृ्य बद्धो भवनि गभ यस्तर्ा कामिे जीवाः॥38॥ अविृ ंज्ञािमिेिे ज्ञानििो नित्यवनैरणा। कामरपणे कौन्तरे दुष्परूणेािलेि च॥39॥ शास्त्रिो जािमनप ज्ञाि ंपरमात्मापरोक्ष्यार ि प्रकाशि ेकामिेाविृ ंज्ञानििोऽनप।नकम ुअल्पज्ञानििाः ? कामरपणे कामाख्यिे नित्यवनैरणा। दुष्परूणे। दुाःखिे नह कामाः परू यि।े िहीन्द्रानदपद ं सखुिे लभ्ि।े रद्यपीन्द्रानदपद ंप्राप्त ंपिुब्र यह्मानदपदनमच्छिीत्यलंबनुद्धिा यस्तीत्यिलाः। उकं्त च ‘ज्ञािस्य ब्रह्मणश्चाग्नधेू यमो बदु्धमे यलं िर्ा। आदशयस्यार् जीवस्य गभयस्योिो नह कामकाः’ इनि॥39॥

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Page 54 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

इनन्द्ररानण मिो बनुद्धरस्यानधष्ठािमचु्यि।े एिनैव यमोहरत्यषे ज्ञािमावतृ्य दनेहिम॥्40॥ वधार् ं शत्रोरनधष्ठािमाह - इनन्द्रराणीनि। एिजै्ञा यिमावतृ्य। बदु्ध्यानदनभनहि नवषरगजै्ञा यिमाविृ ं भवनि ॥40॥

ििाि ् त्वनमनन्द्रराण्रादौ निरम्य भरिष यभ। पाप्माि ंप्रजनह ह्यिे ंज्ञािनवज्ञाििाशिम॥्41॥ हृिानधष्ठािो नह शत्रिु यश्रनि॥41॥ इनन्द्ररानण पराण्राहनरनन्द्ररभे्ाः परं मिाः। मिसस्त ुपरा बनुद्धरो बदु्ध ेपरिस्त ुसाः॥42॥ शत्र ुहिि आरधुरप ंज्ञाि ंवकंु्त ज्ञरेमाह - इनन्द्रराणीनि। ‘असङ्गज्ञािानसमादार िरानिपारम ्’ इनि ह्यकु्तम।् शरीरादीनन्द्ररानण परानण उतृ्कष्टानि। ि केवलं बदु्धाेः पराः। श्रतु्यकु्तप्रकारणेाव्यक्तादनप। ‘अव्यक्ताि ् परुुषाः पराः ’ इनि श्रनुिाः। ि च ित्रित्रोकै्तकदशेज्ञािमात्रणे भवनि मनुक्ताः। साव यनत्रकगणुोपसहंारो नह भगविा गणुोपसहंारपादऽेनभनहिाः ‘आिन्दादराः प्रधािस्य’ इत्यानदिा। िर्ा चान्यत्र - ‘अपौरुषरेवदेषे ुनवष्णवुदेषे ुचवै नह। सवयत्र र ेगणुााः प्रोक्तााः सम्प्रदारागिाश्च र।े सवसै्ताैः सह नवज्ञार रो पश्रनन्त परं हनरम।् िषेामवे भवने्मनुक्तिा यन्यर्ा ि ुकर्ञ्चि’ इनि गारुड।े ििादव्यक्तादनप परत्विे ज्ञरेाः। ि चात्र जीव उच्यि।े ‘रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवि यि’े इत्यकु्तत्त्वाि॥्42॥ एव ंबदु्ध ेपरं बदु्ध्वाससं्तभ्ात्मािमात्मिा। जनह शत्र ु ंमहाबाहो कामरप ंदुरासदम॥्43॥

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Page 55 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘अनवज्ञार परं मत्तो जराः कामस्य व ैकुिाः’ इनि च। अिाः परमात्मज्ञािमवेात्र नववनक्षिम।् आत्माि ं मिाः। आत्मिा बदु्ध्या॥43॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवद्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेििृीरोऽध्याराः ॥

अर् चिरु्ोऽध्याराः॥

बदु्धाेः परस्य महात्म् ंकमयभदेो ज्ञािमाहात्म् ंचोच्यिऽेनिन्नध्यार-े श्री भगवािवुाच

इम ंनववस्वि ेरोग ंप्रोक्तवािहमव्यरम।् नववस्वाि ् मिव ेप्राह मिनुरक्ष्वाकवऽेब्रवीि॥्01॥ पवूा यिनुष्ठिश्चार ंधमय इत्याह - इमनमनि॥01॥

एव ंपरम्पराप्राप्तनमम ंराजष यरो नवदुाः। स कालेिहे महिा रोगो िष्टाः परन्तप॥02॥

स एवार ंमरा िऽेद्य रोगाः प्रोक्ताः परुाििाः। भक्तोऽनस म ेसखा चनेि रहस्य ंह्यिेदुत्तमम॥्03॥ अज ुयि उवाच

अपरं भविो जन्म परं जन्म नववस्विाः। कर्मिेनिजािीरा ं त्वमादौ प्रोक्तवानिनि॥04॥ ‘मनर सवा यनण’ इत्यकंु्त िन्माहात्म्मानदिो ज्ञाि ु ंपचृ्छनि - अपरनमनि॥04॥

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श्री भगवािवुाच बहूनि म ेव्यिीिानि जन्मानि िव चाज ुयि। िान्यहं वदे सवा यनण ि त्व ंवते्थ परन्तप॥05॥

अजोऽनप सन्नव्यरात्म भिूािामीश्वरोऽनप सि।् प्रिनृि ंस्वामनधष्ठार सम्भवाम्यात्ममारारा॥06॥ ि िह्य यिानदभ यवानित्यि आह - अजोऽपीनि। अव्यर आत्मादहेोऽपीत्यव्य- रात्मा। ‘अिन्त ंनवश्विोमखुम ्’इनि नह रपनवशषेणमतु्तरत्र। ‘एिन्नािाविारणा ंनिधाि ंबीजमव्यरम ्’ इनि च। ‘जगहृ’े इनि ि ु व्यनक्ताः। रकु्तरस्तकू्तााः। आत्मािानदत्व ं ि ु सव यसमम।् कर्मिानदत्यस्य जनिाः? प्रकृनि ं स्वामनधष्ठार। प्रकृत्या जािषे ु वसदुवेानदष।ु िर्वै िषेा ं जाि इव प्रिीरि इत्यर् याः। ि ि ुस्विन्त्रामनधष्ठारते्याहस्वानमनि। ‘द्रव्य ं कमय च’इनि ह्यकु्तम ् । सा नह ित्रोक्ता। ििाः सव यसषृ्टाेः आत्ममाररा आत्मज्ञाििे। प्रकृिाेः परृ्गनभधािाि।् ‘केिाुः केिनश्चनिनश्चत्त ं मनिाः क्रिमु यिीषा मारा’ इनि ह्यनभधािम।् सनृष्टकारणरा िषेा ंशरीरानद सषृ्ट्वा नवमोनहकराऽजाि एव जाि इव प्रिीरि ेवा। उकं्त च - ‘महदादसे्त ुमािा रा श्रीभू यनमनरनि कनल्पिा। नवमोनहका च दुगा यख्या िानभनव यष्णरुजोऽनप नह। जािवि ् प्रर्ि ेह्यात्मनजद्बलान्मढूचिेसाम ्’ इनि ईश्वराः ईशभे्ोऽनप वराः। िच्चोक्तम ् - ‘ईशभे्ो ब्रह्मरुद्रश्रीषानदभ्ो रिो भवाि।् वरोऽि ईश्वराख्या ि ेमखु्या िान्यस्य कस्यनचि ्’ इनि ब्रह्मववैि े

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‘समर् य ईश इत्तकु्तस्तिरत्वाि ् त्वमीश्वराः’ इनि च॥06॥ रदा रदा नह धम यस्य र्गलानिभ यवनि भारि। अभ्तु्थािमधम यस्य िदाऽऽत्माि ंसजृाम्यहम॥्07॥

पनरत्राणार साधिूा ंनविाशार च दुषृ्किा।ं धम यसिंापिार्ा यर सम्भवानम रगु ेरगु॥े08॥ ि जन्मिवै पनरत्राणानदकं कार यनमनि निरमाः। िर्ाऽनप लीलरा स्वभाविे च रर्षे्टाचारी। िर्ा ह्यकु्तम ् - ‘दवस्यषै स्वभावोऽरम ्’, ‘लोकवि ् ि ुलीलाकैवल्यम ्’, ‘क्रीडिो बालकस्यवे चषे्टा ंिस्य निशामर’, ‘अनरभरानदव स्वर ंपरुाद्व्यवात्सीद्यदिन्तवीर याः’, ‘पणूोऽरमस्यात्र ि नकनञ्चदाप्य ंिर्ऽनप सवा याः कुरुि ेप्रवनत्ताः। अिो नवरुद्दषेनुमम ंवदनन्त परावरज्ञा मिुराः प्रशान्तााः’ इत्यानद ऋर्गवदेनखलेष॥ु08॥ जन्म कमय च म ेनदव्यमवे ंरो वनेत्त ित्त्विाः। त्यक्त्वा दहंे पिुज यन्म िनैि मामनेि सोऽज ुयि॥09॥ परृ्ङ्मकु्त्यनुक्ताः सव यज्ञािनिरमदशयिार् यम।् ि ि ुिावन्मात्रणे मनुक्तनरत्यकु्तम।्

‘वदेाद्यकंु्त ि ुसवं रो ज्ञात्वोपास्त ेसदा नह माम।् िस्यवै दशयिपर् ंरानम िान्यस्य कस्यनचि ्’ - इत्यकेु्तश्च महाकौम।े

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अत्रोक्तस्यिैज्ञात्ववै जन्म ििैीनि गनिाः इिरवाक्यािा ं िान्या गनिाः ‘िान्यस्य कस्यनचि ्’ इनि नवशषेणाि।् ‘ित्त्विाः’ इनि नवशषेणेा च्च सव यज्ञािमापिनि। रत्रवै ंभवनि ित्र ित्त्विाः इनि नवशषेणिे ि नवरोधाः। उकं्त च - ‘एकं च ित्त्विो ज्ञाि ु ंनविा सवयज्ञिा ंिराः। ि समर्ो महने्द्रोऽनप ििाि ् सवयत्र नजज्ञसिे ्’ इनि स्कान्द॥े09॥ वीिरागभरक्रोधा मन्मरा मामपुानश्रिााः। बहवो ज्ञाििपसा पिूा मद्भावमागिााः॥10॥ सनन्त च िर्ा मकु्ता इत्याह - नविरागनेि। मन्मरा मत्प्रचरुााः। सव यत्र मा ं नविा ि नकनञ्चि ् पश्रन्तीत्यर् याः॥10॥

र ेरर्ा मा ंप्रपद्यन्त ेिासं्तर्वै भजाम्यहम।् मम वत्मा यिवुि यन्त ेमिषु्यााः पार् य सवयशाः॥11॥ ि च मद्भजिमात्रणे मनुक्तभ यवत्यन्यदवेिानदरपणे। िर्ाऽनप सवषेामािरुप्यणे फलं ददामीत्याह - र े रर्नेि। सवेरानम फलदाििे। ि ि ु गणुभाविे। कर्मर ं नवशषे इत्यि आह - मम वत्मनेि। अन्यदवेिा रजन्तोऽनप मम वत्मवैािवुि यन्त।े सव यकम यकिृ यत्वाद्भोकृ्तत्वाच्च मम। ‘रऽेप्यन्यदवेिाभक्ता’ इनि नह वक्ष्यनि। ‘रो दवेािा ं िामधा एक एव’ इनि श्रनुिाः। भगवािवे च ित्रानभधीरि।े ‘अजस्यिाभावद्यकेमनप यिम ्’ इनि नलङ्गाि॥्11॥

काङ्क्षन्ताः कमयणा ंनसनद्ध ंरजन्त इह दवेिााः। नक्षप्र ंनह मािषु ेलोके नसनद्धभ यवनि कमा यजा॥12॥ कुिो मम वत्मा यिवुि यन्त े ? - नक्षप्र ं नह। अि एव नह फलप्रानप्ताः। ‘ििाि ् ि ेधिसिराः’ इनि श्रनुिाः ॥1 2॥ चािवु यण्र ंमरा सषृ्ट ंगणुकम यनवभागशाः। िस्य किा यरमनप मा ंनवद्ध्यकिा यरमव्यरम॥्13॥

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अहमवे नह किते्याह चािवु यण्र यनमनि । चिवु यण यसमदुाराः। सानत्त्वको बाह्मणाः। सानत्वक राजसाः क्षनत्रराः। राजसिामसो वशै्राः। िामसाः शदू्र इनि गणुनवभागाः। कमयनवभागास्त ु ‘शमो दमाः’ इत्यानदिा वक्ष्यि।े नक्ररारा ंवलैक्षण्राि ् किा यऽप्यकिा य। िर्ानह श्रनुिाः ‘नवश्वकमा य नवमिााः’ इत्यानद। ‘ििनुव यद्या नक्रराऽऽकृनिाः’ इत्यानद च। सानधि ंचिैि ् परुस्ताि॥्13॥

ि मा ंकमा यनण नलम्पनन्त ि म ेकमयफले स्पहृा। इनि मा ंरोऽनभजािानि कमयनभि य स बध्यि॥े14॥ अि एव ि मा ंकमा यनण नलम्पनन्त। इिश्च ि नलम्पन्तीत्याह - ि म ेकमयफल े स्पहृा। इच्छामात्र ंत्वनस्त। ि ि ुित्रानभनिवशेाः। िच्चोक्तम ्

‘आकाङ्क्षन्ननप दवेोऽसौ िचे्छि ेलोकवि ् पराः। िह्याग्रहस्तस्य नवष्णोज्ञा यि ंकामो नह िस्य ि’ु इनि। ि च केनचन्मकुाभवन्तीनि क्रमणे सव यमनुक्ताः। िर्ानह श्रनुिाः - ‘ज्ञात्वा िमिे ं मिसा हृदा च भरूो ि मतृ्यमुपुरानि नविानिनि कर् ं वा इत्यिन्ता इत्यिन्तवनदनि होवाच’ इनि॥14॥

एव ंज्ञात्वा कृि ंकमय पवूरैनप ममुकु्षनुभाः। कुरु कमवै ििाि ् त्व ंपवूाैः पवू यिरं कृिम॥्15॥ एव ंज्ञात्वाऽनप कमयकरण आचारोऽप्यस्तीत्याह- एवनमनि। पवू यिरं कमय पवू यभावीत्यर् याः॥15॥

नकं कमय नकमकमनेि कवरोऽप्यत्र मोनहिााः। िि ् ि ेकमय प्रवक्ष्यानम रज्ज्ञ्ज्ञ्यात्वा मोक्ष्यसऽेशभुाि॥्16॥ कमय कुनव यत्यकु्तम।् िस्य कमयणो दुनव यज्ञरेत्वमाह सम्यगकु्तम ् - नकं कमनेि॥16॥ कमयणो ह्यनप बोद्धव्य ंबोद्धव्य ंच नवकम यणाः। अकमयणश्च बोद्धव्य ंगहिा कमयणो गनिाः॥17॥ ि केवलं िज्ज्ञात्वा मोक्षस,े ज्ञात्ववैते्याशरवािाह - कमयण इनि। िच्चोक्तम-्

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‘अज्ञात्वा भगवाि ् कस्य कमा यकम यनवकम यकम।् दशयि ंरानि नह मिु ेकुिो मनुक्तश्च िनििा’ इनि। अकमय - कमा यकारणम।् कमा यकमा यन्यनिकमय, निनषद्दकम य। बन्धकत्वाि।् ििो नवनवच्य कमा यनद बोद्धव्यनमत्यानद। ि च शापानदिा। कवरोऽप्यत्र मोनहिााः। अशक्य ं चिैज्ज्ञािनुमत्याह गहिनेि॥17॥ कमयण्रकम य राः पश्रदेकम यनण च कमय राः। स बनुद्धमाि ् मिषु्यषे ुस रकु्ताः कृत्स्नकमयकृि॥्18॥ कमा यनदस्वरपमाह - कमयणीनि। कमयनण नक्ररमाण े सनि अकमय राः पश्रिे ् नवष्णोरवे कमय िाहं नचत्प्रनिनबम्बाः नकनञ्चि ् करोमीनि। अकमयनण सपु्त्यादावकरणाविारा ं परमशे्वरस्य राः कमय पश्रनि अरमवे परमशे्वराः सव यदा सव यसषृ्ट्यानद करोिीनि। स बनुद्धमाि ् - ज्ञािी। स एव च रकु्तो -रोगारकु्ताः। सवा यकरणाि ् स एव च कृत्स्नकमयकृि ् - कृत्स्नफलवत्वाि॥्18॥

रस्य सव ेसमारम्भााः कामसङ्कल्पवनज यिााः। ज्ञािानग्नदर्गधकमा यण ंिमाहाः पनण्डि ंबधुााः॥19॥ एिदवे प्रपञ्चरनि - रस्यते्यानदश्लोकपञ्चकेि। उक्तप्रकारणे ज्ञािानग्नदर्गधकमा यणम॥्19॥

त्यक्त्वा कमा यफलासङं्ग नित्यिपृ्तो(ऽ) निराश्रराः। कमयण्रनभप्रवतृ्तोऽनप िवै नकनङ्चि ् करोनि साः॥20॥ ि च कामसङ्कल्पाभाविेालम।् आसङं्ग स्नहंे च त्यक्त्वा। ज्ञािस्वरपमाह- पिुाः नित्यिपृ्त इनि। नित्यिपृ्तनिराश्ररशे्वरसरपोऽहमिीनि िर्ानवधाः॥20॥

निराशीर यिनचत्तात्म त्यक्तसवयपनरग्रहाः। शारीरं केवलं कमय कुव यि ् िाप्नोनि कनल्बषम॥्21॥ कामानदत्यागोपारमाह-निराशीनरनि। रिनचत्तात्मा भतू्वा निराशीनरत्यर् याः। आत्मा - मिाः। पनरग्रहत्यागोऽिनभमािम।् िवै नकनञ्चि ् करोिीत्य-स्यानभप्रारमाह - िाप्नोनि नकनल्बषनमनि॥21॥

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रदृच्छालाभसन्तषु्टो िन्द्वािीिो नवमत्सराः। समाः नसद्धावनसद्धौ च कृत्वाऽनप ि निबद्ध्यि॥े22॥ रिनचत्तात्मिो लक्षणमाह - रदृच्छालाभनेि। कर् ं िन्द्वादीित्वनमत्यि आह- समाः नसद्धानवनि॥22॥

गिसङ्गस्य मकु्तस्य ज्ञािावनििचिेसाः। रज्ञाराचरिाः कमय समग्र ंप्रनवलीरि॥े23॥ उपसहंरनि - गिसङ्गस्यनेि। गिसङ्गस्य - फलस्नहेरनहिस्य। मकु्तस्य शरीराद्यि-नभमानििाः ज्ञािावनििचिेसाः - परमशे्वरज्ञानििाः॥23॥

ब्रह्माप यण ंब्रह्म हनवब्र यह्माग्नौ ब्रह्मणा हिम।् ब्रह्मवै ििे गन्तव्य ंब्रह्मकमयसमानधिा ॥24॥ ज्ञािावनििचिेस्त्व ंस्पष्टरनि - ब्रह्माप यणनमनि। सव यमिेद्ब्रह्मते्यचु्यि।े िदधीिसत्ताप्रिीनित्वाि।् ि ि ुित्स्वरपत्वाि।् उकं्त नह - ‘त्वदधीि ंरिाः सवयमिाः सवो भवानिनि। वदनन्त मिुराः सव ेि ि ुसवयस्वरपिाः’ इनि पाद्म।े ‘सव ंित्प्रज्ञािते्रम ्’ इनि च। ‘एि ंह्यवे बहृ्वचााः’ इत्यानद च। समानधिा सह ब्रह्मवै कमय॥24॥ दवैमवेापरे रज्ञ ंरोनगिाः पर ुयपासि।े ब्रह्मग्नावपर ेरज्ञ ंरज्ञिेवैोपजहु्वनि॥25॥ रज्ञभदेािाह - दवैनमत्यानदिा। दवै ं - भगवन्तम।् स एव िषेा ं रज्ञाः। भगवदुपासिम।् रज्ञनमनि नक्ररानवशषेणम।् िान्यि ् िषेामनस्त रिीिा ं केषानञ्चि।् रज्ञ ं - भगवन्तम।् ‘रज्ञिे रज्ञम ्’ , ‘रज्ञो नवष्णदुवेिा’ इत्यानद श्रनुिभ्ाः। रज्ञिे प्रनसद्धिेवै। रज्ञ ं प्रनि जहु्विीनि सव यत्र ं सम,ं ‘ि ं रज्ञम ्’ इत्यादौ। उकं्त च-

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‘नवष्णु ंरुदे्रण पशिुा ब्रह्माज्यषे्ठिे सिूिुा। अरजन्मािस ेरज्ञ ेनपिरं प्रनपिामहाः’ इनि॥25॥ श्रोत्रादीिीनन्द्रराण्रन्य ेसरंमानग्नष ुजहु्वनि। शब्दादीि ् नवषरािन्य इनन्द्ररानग्नष ुजहु्वनि॥26॥

सवा यणीनन्द्ररकमा यनण प्राणकमा यनण चापर।े आत्मसरंमरोगाग्नौ जहु्वनि ज्ञािदीनपि॥े27॥ आत्मसरंमाख्योपाराग्नौ॥27॥ द्रव्यरज्ञास्तपोरज्ञा रोगरज्ञास्तर्ाऽपर।े स्वाद्यारज्ञािरज्ञाश्च रिराः सनंशिव्रिााः॥28॥ द्रव्य ंजहु्विीनि द्रव्यरज्ञााः। िपाः परमशे्वराप यणबदु्ध्या ित्र जहु्विीनि िपोरज्ञा इत्यानद। इद ंिपो हनवाः, एिद्ब्रह्माग्नौ जहुोनम ित्पजूार् यनमनि होमाः। िदप यण एव च होमबनुद्धाः॥28॥

अपाि ेजहु्वनि प्राण ंप्राणऽेपाि ंिर्ाऽपर।े प्राणापािगिीरुद्ध्वा प्राणारामपरारणााः॥29॥ अपर ेप्राणारामपरारणााः प्राणमपाि ेजहु्वनि, अपाि ंच प्राण।े कुम्भकिा एव भवन्तीत्यर् याः॥29॥

अपर ेनिरिाहारााः प्राणाि ् प्राणषे ुजहु्वनि। सवऽेप्यिे ेरज्ञनवदो रज्ञक्षनपिकल्मषााः॥30॥ निरिाहारत्विेवै प्राणशोषाि ् प्राणाि ् प्राणषे ुजहु्वनि। ‘रच्छिेाङ्मिसी प्राज्ञस्तद्यच्छजे्ज्ञाि आत्मनि’ इत्यानदश्रतु्यकु्तप्रकारणे वा। अन्यदनप ग्रन्थान्तर ेनसद्धम-्

‘रदस्याल्पाशि ंििे प्राणााः प्राणषे ुव ैहिााः’ इनि॥30॥

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रज्ञनशष्टामिृभजुो रानन्त ब्रह्म सिाििम।् िार ं लोकोऽस्त्यरज्ञस्य कुिोऽन्याः कुरुसत्तम॥31॥

एव ंबहनवधा रज्ञा नवििा ब्रह्मणो मखु।े कमयजाि ् नवनद्धिाि ् सवा यिवे ंज्ञात्वा नवमोक्ष्यस॥े32॥ ब्रह्मणाः - परमात्मिो, मखु।े ‘अहं नह सवयरज्ञािा ंभोक्ता च प्रभरुवे च’ इनि नह वक्ष्यनि। मािसवानचककानरककमयजा एव नह ि े सव।े एव ं ज्ञात्वा िानि कमा यनण कृत्वा, नवमोक्ष्यस।े रदु्ध ंपनरत्यज्य रन्मोक्षार् ंकनरष्यनस िदनप कमय। अिो नवनहि ंि त्याज्यनमनि भावाः॥32॥

श्ररेाि ् द्रव्यमराद्यज्ञाि ् ज्ञािरज्ञाः परन्तप। सवं कमा यनखलं पार् य ज्ञाि ेपनरसमाप्यि॥े33॥ अनखलं - उपासिाद्यङ्गरकु्तम।् ज्ञािफलमवेते्यर् याः॥33॥

िनिनद्द प्रनणपाििे पनरप्रश्निे सवेरा। उपदके्ष्यनन्त ि ेज्ञाि ंज्ञानििस्तत्वदनश यिाः॥34॥

रज्ज्ञात्वा ि पिुमोहमवे ंरास्यनस पाण्डव। रिे भिूान्यशषेणे द्रक्ष्यस्यात्मन्यर्ो मनर॥35॥ इदािीमनप ज्ञान्यवे। िर्ाऽप्यनभभवान्मोहाः। मा िकू्ता। रिे ज्ञाििे मय्यात्मभिू े सव यभिूानि अर्ो ििादवे मोहिाशाि ् पश्रनस॥35॥ करणभिू ंज्ञाि ंस्तौनि - पिुाः श्लोकत्ररणे।

अनप चदेनस पापभे्ाः सवभे्ाः पापकृत्तमाः। सवं ज्ञािप्लविेवै वनृजि ंसन्तनरष्यनस॥36॥

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रर्धैानंस सनमद्धोऽनग्नभ यिसाि ् कुरुिऽेज ुयि। ज्ञािानग्नाः सवयकमा यनण भिसाि ् कुरुि ेिर्ा॥37॥

ि नह ज्ञाििे सदृश ंपनवत्रनमह नवद्यि।े िि ् स्वर ंरोगसनंसद्धाः कालेिात्मनि नवन्दनि॥38॥ ित्साधि ंनवरोनधफलं च िदुत्तररैुक्त्वोपसहंरनि॥38॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेचिरु्ोऽध्याराः॥

श्रद्धावान्लभि ेज्ञाि ंमत्पराः सरंिनेन्द्रराः। ज्ञाि ंलब्ध्वा परा ंशानन्तमनचरणेानधगच्छनि॥39॥

अज्ञश्चाश्रद्धधािश्च सशंरात्मा नविश्रनि। िार ंलोकोऽनस्त ि परो ि सखु ंसशंरात्मिाः॥40॥

रोगसनं्यस्तकमा यण ंज्ञािसनिन्नसशंरम।् आत्मवन्त ंि कमा यनण निबध्ननन्त धिञ्जर॥41॥

ििादज्ञािसभंिूम ् हृत्स्थ ंज्ञािानसिाऽऽत्मिाः। नित्त्विै ंसशंर ंरोगमानिष्ठोनत्तष्ठ भारि॥42॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंचिरु्ोऽध्याराः॥

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अर् पञ्चमोऽध्याराः॥ ििृीराध्यारोक्तमवे कमयरोग ंप्रपञ्चरत्यििेाध्यारिे ‘रद्दृच्छालाभ - सन्तषु्टाः’ इत्यानद सनं्यासम ्, ‘कुरु कमवै’ इत्यानद कमयरोग ंच - अज ुयि उवाच

सनं्यास ंकमा यणा ंकृष्ण पिुरोग ंच शसंनस। रचे्छ्रर एिरोरकंे िन्म ेब्रनूह सनुिनश्चिम॥्01॥ निरमिानदिा सकललोककष यणाि ् कृष्णाः। ‘रिाः कष यनस दवेशे निरम्य सकलं जगि।् अिो वदनन्त मिुराः कृष्ण ंत्वा ंब्रह्मवानदिाः’ इनि महाकौम।े सनं्यासशब्दार् ं भगवािवे वक्ष्यनि। अर ं प्रश्नाशराः रनद सनं्यासाः श्ररेोऽनधकाः स्याि ् िनहि सनं्यासस्यषेनिरोनध रदु्धनमनि॥01॥ श्री भगवािवुाच

सनं्यासाः कमयरोगश्च निाःश्ररेसकरावभुौ। िरोस्त ुकमयसनं्यासाि ् कमयरोगो नवनशष्यि॥े02॥ िार ंसनं्यासो रत्याश्रमाः -

‘िन्द्वत्यागाि ् ि ुसनं्यासाि ् मत्पजूवै गरीरनस’ इनि वचिाि।् ‘िानि वा एिान्यवरानण िपानंस, न्यास एवात्यरचेरि ्’ इनि च। ‘सनं्यासस्त ुिरुीरो रो निनिराख्याः सधमयकाः। ि ििादुत्तमो धमो लोके कश्चि नवद्यि।े िद्भक्तोऽनप नह रद्गचे्छि ् िद्गहृिो ि धानम यकाः। मद्भनक्तश्च नवरनक्तस्तदनधकारो निगद्यि।े रदाऽनधकारो भवनि ब्रह्मचरा यनप प्रव्रजिे ्’ इनि िारदीर।े

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‘ब्रह्मचरा यदवे प्रव्रजिे ्’ , ‘रदहरवे नवरजिे ्’ इनि च। ‘सनं्यास ेि ुिरुीर ेव ैप्रीनिमम य गरीरनस। रषेामत्रानधकारो ि िषेा ंकमनेि निश्चराः’ इत्यादशे्च ब्राह्म।े अिो िात्राश्रमाः सनं्यास उक्ताः॥02॥

ज्ञरेाः स नित्यसनं्यासी रो ि िनेष्ट ि काकं्षनि। निियन्द्वो नह महाबाहो सखु ंबन्दाि ् प्रमचु्यि॥े03॥ सनं्यासशब्दार् यमाह - ज्ञरे इनि। सनं्यासस्य निाःश्ररेसकरत्व ं ज्ञापनरि ु ं िच्छब्दार् ं िाररनि ज्ञरे इनि॥03॥ साङ्ख्यरोगौ परृ्र्गबालााः प्रवदनन्त ि पनण्डिााः। एकमप्यानििाः सम्यगभुरोनव यन्दि ेफलम॥्04॥ सनं्यासो नह ज्ञािान्तरङ्गत्विेोक्ताः - ‘ि िस्य ित्त्वग्रहणार’ इत्यादौ। अिाः कर् ंसोऽवम इत्यि आह -साङ्ख्यरोगानवनि। उभरोरप्यन्तरङ्गत्विेानवरोधाः। ‘अनग्नमरु्गदो ह व ैधमूिान्ताः स्व ंलोकं ि प्रनिजािानि’ ‘मा वाः पदव्याः नपिरिदानश्रिा रा रज्ञशालासिधमूवत्मयिाम ्’ इत्यानदि ुकाम्यकमयनवषरनमनि भावाः। र ेत्वन्यर्ा वदनन्त ि ेबालााः॥04॥ रि ् साङ्ख्य ैप्राप्यि ेस्धाि ंिद्योगरैनप गम्यि।े एकं साङ्ख्य ंच रोग ंच राः पश्रनि स पश्रनि॥05॥ ‘एकमनप’ इत्यस्यानभप्रारमाह - रि ् साङ्खनैरनि। रोनगनभरनप ज्ञाििारा ज्ञािफलं प्राप्यि इत्यर् याः॥05॥ सनं्यासस्त ुमहाबाहो दुाःखमाप्तमुरोगिाः। रोगरकु्तो मनुिब्र यह्म ि नचरणेानधगच्छनि॥06॥

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Page 67 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

इत्यश्च सनं्यासाद्योगो वर इत्याह - सनं्यासनस्त्वनि। रोगाभाव े मोक्षानदफलं ि भवनि। अिाः कामजरानददुाःखमवे िस्य। मोक्षाद्यवे नह फलम ्; अन्यि ् फलमल्पत्वादफलमवेते्याशराः। िच्चोक्तम ् ‘नविा मोक्ष ंफलं रि ् ि ुि िि ् फलमदुीर यि’े इनि पाद्म।े रि ् ि ु महाफलरोर्गर ं िस्याल्प ं फलमवे ि भवनि। रर्ा पद्मरागस्य िण्डुलमनष्टाः। महफलश्र रोगरकु्तश्चिे ् सनं्यास इत्याह - रोगरकु्त इनि। मनुिाः -सनं्यासी। िच्चोक्तम ् - ‘स नह लोके मनुििा यम राः कामक्रोधवनज यिाः’ इनि॥06॥ रोगरकु्तो नवशदु्धात्मा नवनजिात्मा नजिनेन्द्रराः। सवयभिूात्म भिूात्मा कुव यन्ननप ि नलप्यि॥े07॥ एिदवे प्रपञ्चरनि - रोगरकु्त इनि। सव यभिूात्मभिूाः - परमशे्वराः। ‘रच्चाप्नोनि’ इत्यादाेः। स आत्मभिूाः - स्वसमीप ंप्रत्यादािानदकिा य रस्य साः सव यभिूात्मभिूात्मा॥07॥ िवै नकनञ्चि ् करोमीनि रकु्तो मन्यिे ित्त्वनवि।् पश्रि ् शृण्वि ् स्पशृि ् नजघ्रन्नश्नि ् गच्छि ् स्वपि ् श्वसि॥्08॥

प्रलपि ् नवसजृि ् गहृ्णन्ननुन्मषि ् निनमषन्ननप। इनन्द्रराणीनन्द्ररार्षे ुवि यन्त इनि धाररि॥्09॥ सनं्यास ंस्पष्टरनि पिुाः श्लोकिरिे॥08,09॥ ब्रह्मण्राधार कमा यनण सङं्ग त्यक्त्वा करोनि राः। नलप्यि ेि स पापिे पद्मपत्रनमवाभंसा॥10॥ सनं्यासरोगरकु्त एव च कमयणा ि नलप्यि इत्याह - ब्रह्मणीनि। साधिनिरमस्योपचारत्वनिवतृ्त्यर् ंपिुाः पिुाः फलकर्िम॥्10॥ कारिे मिसा बदु्ध्या केवलनैरनन्द्रररैनप। रोनगिाः कमय कुव यनन्त सङं्ग त्यक्त्वाऽऽत्मशदु्धर॥े11॥ एव ंचाचार इत्याह - कारिेनेि॥11॥

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रकु्ताः कमयफलं त्यक्त्वा शानन्तमाप्नोनि िनैष्ठकीम।् अरकु्ताः कामकारणे फले सक्तो निबध्यि॥े12॥ पिुर ुयक्त्यानदनिरमिार् ंरकु्तारकु्तफलमाह - रकु्त इनि। रकु्तो -रोगरकु्ताः॥12॥ सवयकमा यनण मिसा सनं्यास्यास्त ेसखु ंवशी। िविार ेपरु ेदनेह िवै कुव यि ् ि काररि॥्13॥ पिुाः सनं्यासशब्दार् ंस्पष्टरनि - सव यकमा यणीनि। मिसनेिनवशषेणादनभमाित्यागाः॥13॥

ि किृ यत्व ंि कमा यनण लोकस्य सजृनि प्रभाुः। ि कमयफलसरंोग ंस्वभावस्त ुप्रवि यि॥े14॥ ि च करोनि वस्तिु इत्याह - ि किृ यत्वनमनि। प्रभनुहि जीवो जडमपके्ष्य॥14॥ िादत्त ेकस्यनचि ् पाप ंि चवै सकृुि ंनवभाुः। अज्ञाििेाविृ ंज्ञाि ंििे महु्यनन्त जन्तवाः॥15॥

ज्ञाििे ि ुिदज्ञाि ंरषेा ंिानशिमात्मिाः। िषेामानदत्यवज्ञाि ंप्रकाशरनि ित्परम॥्16॥ ज्ञािमवेाज्ञाििाशकनमत्याह - ज्ञाििेनेि। प्रर्मज्ञाि ंपरोक्षम॥्16॥ िद्बदु्धरस्तदात्मािस्तनन्नष्ठास्तत्परारणााः। गच्चन्त्यपिुरावनृत्त ंज्ञािनिधू यिकल्मषााः॥17॥ अपरोक्षज्ञािाव्यवनहिसाधिमाह - िद्बदु्धर इनि॥17॥ नवद्यानविरसम्पन्न ेब्राह्मण ेगनव हनस्तनि। शनुि चवै श्वपाके च पनण्डिााः समदनश यिाः॥18॥ परमशे्वरस्वरपाणा ंसव यत्र साम्यदशयि ंचापरोक्षज्ञािसाधिनमत्याशरवािाह - नवद्यनेि॥18॥

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इहवै िनैज यिाः सगो रषेा ंसाम्य ेनिि ंमिाः। निदोष ंनह सम ंब्रह्म ििाद्ब्रह्मनण ि ेनििााः॥19॥ िदवे स्तौनि - इहवैनेि॥19॥ ि प्रहृष्यिे ् नप्रर ंप्राप्य िोनिजिे ् प्राप्य चानप्ररम।् निरबनुद्धरसमंढूो ब्रह्मनवद्ब्रह्मनण नििाः॥20॥ सनं्यासरोगज्ञािानि नमनलत्वा प्रपञ्चरत्यध्यारशषेणे -

बाह्यस्पशषे्वसक्तात्मा नवन्दत्यात्मनि रि ् सखुम।् स ब्रह्मरोगरकु्तात्मा सखुमक्षरमश्निु॥े21॥ पिुरोगस्यानधक्य ं स्पष्टरनि - भाह्यास्पशनेष्वनि। कामरनहिाः आत्मनि रि ् सखु ं नवन्दनि स एव ब्रह्मरोगरकु्तात्मा चिे ् िदवेाक्षर ं सखु ं नवन्दनि। ब्रह्मनवषरो रोगो - ब्रह्मरोगाः। ध्यािानदरकु्तस्यवैात्मसखुमक्षरमन्यर्ा िते्यर् याः॥21॥

र ेनह ससं्पशयजा भोगा दुाःखरोिर एव ि।े आद्यन्तवन्ताः कौन्तरे ि िषे ुरमि ेबधुाः॥22॥ सनं्यासार् ंकामभोग ंनिन्दरनि - रो हीनि॥22॥ शक्नोनिहवै राः सोढुं प्राक ्शरीरनवमोक्षणाि।् कामक्रोदोद्भव ंवगे ंस रकु्ताः स सखुी िराः॥23॥ ित्पनरत्याग ंप्रशसंनि - शक्नोिीनि। कामक्रधोद्भव ंवगे ंसोढुं शक्नोनि, शरीरनवमोक्षणाि ् प्राक।् रर्ा मिषु्यशरीर ेसोढुं सशुकं िर्ा िान्यत्रनेि भावाः। ब्रह्मलोकानदस्तनुजिकामािामवे भवनि॥23॥ ज्ञानिलक्षण ंप्रपञ्चरत्यतु्तरश्लोकैाः - रोऽन्ताःसखुोऽन्तरारामस्तर्ाऽन्तज्योनिरवे राः। स रोगी ब्रह्म निवा यण ंब्रह्मभिूोऽनधगच्छनि॥24॥

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आरामाः - परदश यिानदनिनमत्त ंसखुम।् अत्र ि ुपरमात्मदशयिानदनिनमत्त ंिि।् सखु ंपद्रवक्षरव्यक्तम।् अत्र ि ु कामानदक्षर े व्यक्तमात्मसखुम।् स्वरजं्योनिष्ट्वाद्बगविस्तद्व्यके्तरन्तज्योनिाः। सवषेामन्तज्योनिष्ट्वऽेनप व्यके्तनव यशषेाः। असम्प्रज्ञािसमाधीिा ं बाह्यादश यिाि।् दश यिऽेप्यनकनञ्चत्करा-दवेशब्दाः। उकं्त चिैि ् -

‘दशयिस्पशयसम्भाषाद्यि ् सखु ंजारि ेिणृाम।् आरामाः स ि ुनवज्ञरेाः सखु ंकामक्षरोनदिम ्’ इनि िारदीर।े ‘स्वज्योनिष्ट्वान्महानवष्णोरन्तज्योनिस्त ुिनत्स्थिाः’ इनि च अन्ताःसखुत्वादाेः कारणमाह - ब्रह्मनण भिू इनि॥24॥ लभन्त ेब्रह्म निवा यणमषृराः क्षीणकल्मषााः। निन्निधैा (ऽऽ)रिात्मािाः सवयभिूनहि ेरिााः॥25॥ पापक्षराच्चिैद्भविीत्याह - लभन्त इनि। क्षीणकल्मषा भतू्वा निन्निधैा-रिान्मािाः। िधैाभावो िधै,ं सशंरो नवपर यरो वा - िच्चोक्तम ् - ‘नवपर यराः सशंरो वा रद्द्वधै ंत्वकृिात्मिाम।् ज्ञािानसिा ि ुिनच्छत्त्वा मकु्तसङ्गाः परं व्रजिे ्’ इनि। निन्निधैास्त एवारिात्मािाः दीघ यमिसाः।सवयज्ञा इत्यर् याः।िि एव निन्निधैााः।िच्चोक्तम-् ‘क्षीणपापा महाज्ञािा जारन्त ेगिसशंरााः’ इनि। निन्निधैााः रिात्माि इनि वा॥25॥ कामक्रोधनवरकु्तािा ंरिीिा ंरिचिेसाम।् अनभिो ब्रह्म निवा यण ंवि यि ेनवनदिात्मिाम॥्26॥ सलुभ ंच िषेा ंब्रह्मते्याह - कामक्रोधनेि। अनभिाः - सव यिाः॥26॥

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Page 71 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

स्पशायि ् कृत्वा बनहबा यह्याशं्चक्षशु्चवैान्तर ेभ्रवुोाः। प्राणापािौ समौ कृत्वा िासाभ्न्तरचानरणौ॥27॥ ध्यािप्रकारमाह - स्पशा यनित्यानदिा। बाह्याि ् स्पशा यि ् बनहषृ्कत्वा। श्रोत्रादीनि रोगिे निरम्यते्यर् याः। चक्षाुः भ्रवुोरन्तर ेकृत्वा। भ्रवुोम यध्य-मवलोकरनन्नत्यर् याः। उकं्त च।

‘िासाग्र ेवा भ्रवुोम यध्य ेज्ञािी चक्षनुि यधापरिे ्’ इनि। प्राणापािौ समौ कृत्वा - कुम्भके नित्वते्यर् याः॥2 7॥

रिनेन्द्ररमिोबनुद्धम ुयनिमोक्षपरारणाः। नवगिचे्छाभरक्रोधो राः सदा मकु्त एव साः॥28॥

भोक्तारं रज्ञिपसा ंसवयलोकमहशे्वरम।् सहृद ंसवयभिूािा ंज्ञात्वा मा ंशानन्तमचृ्छनि॥29॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंपञ्चमोऽध्याराः॥ ध्यरेमाह - भोक्तारनमनि॥29॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेपञ्चमोऽध्याराः॥

अर् षष्ठोऽध्याराः ज्ञािान्तरङं्ग समानधरोगमाहाििेाध्यारिे श्री भगवािवुाच

अिानश्रिाः कमयफलं कार ंकमय करोनि राः। स सनं्यानस च रोगी च ि निरनग्नि य चानक्रराः॥01॥ नववनक्षि ं सनं्यासमाह रोगिे सह - अिानश्रि इनि। चिरु्ा यश्रनमणोऽप्यनग्नाः क्रीरा चोक्ता ‘दवैमवे’ इत्यादौ।

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‘अनग्नब्रयह्म च ित्पजूा नक्ररा न्यासाश्रम ेििृा’ इनि च ििानन्नरनग्नरनक्रराः सनं्यासी रोगी च ि भवत्यवे॥01॥ र ंसनं्यासनमनि प्राहरोग ंि ंनवनद्ध पाण्डव। ि ह्यसनं्यस्तसङ्कल्पो रोगी भवनि कश्चि॥02॥ सनं्यासोऽनप रोगान्तभू यि इत्याह - र ं सनं्यासनमनि। कामसङ्कल्पाद्यपनरत्याग े कर्मपुारवाि ् स्यानदत्याशराः॥02॥

आरुरुक्षोम ुयिरेोग ंकमय कारणमचु्यि।े रोगारढस्य िस्यवै शमाः कारणमचु्यि॥े03॥ नकरत्कालं कमय कि यव्यनमत्यि आह -आरुरुक्षोनरनि। रोगमारुरुक्षोाः -उपारसम्पनूि यनमच्छोाः। रोगारढस्य - सम्पणूोपारस्य। अपरोक्षज्ञानिि इत्यर् याः। कारण ं - परमसखुकारणम।् अपरोक्षज्ञानििोऽनप समाध्यानद फलमकु्तम।् िस्य सवोपशमिे समानधरवे कारण ंप्राधान्य-ेिते्यर् याः। िर्ाऽनप रदा भोक्तव्योपरमस्तदवै सम्यगसपं्रज्ञाि-समानधजा यरि।े अन्यदा ि ु भगवच्चनरिादौ निनिाः। िच्चोक्तम ् - ‘र ेत्वा ंपश्रनन्त भगवसं्त एव सनुखिाः परम।् िषेामवे च सम्यक ्ि ुसमानधजा यरि ेिणृाम।् भोक्तव्यकमयण्रक्षीण ेजपिे कर्राऽनप वा। वि यरनन्त महात्मािस्त्वद्भक्तास्त्वत्परारणााः’ इनि॥03॥ रदा नह िनेन्द्ररार्षे ुि कमयस्विषुज्जि।े सवयसङ्कल्पसनं्यासी रोगारढस्तदोच्यि॥े04॥ रोगारढस्य लक्षणमाह - रदनेि। सम्यगििषुङ्गस्तस्यवै भवनि। उकं्त च- ‘स्विो दोषलरो दृष्ट्वानत्विरषेा ंप्ररत्निाः’ इनि॥04॥

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Page 73 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

उद्धरदेात्मिाऽऽत्माि ंिात्मािमवसादरिे।् अत्मवै ह्यात्मिो बन्धरुात्मवै नरपरुात्मिाः॥05॥

बन्धरुात्माऽऽत्मिस्तस्य रिेात्मवैात्मिा नजिाः। अिात्मिस्त ुशितृ्व ेवििेात्मवै शत्रवुि॥्06॥ स च रोगारोहाः प्ररत्निे कि यव्य इत्याह - उद्धरनेदत्यानदिा। कस्य बन्धरुात्मनेि? आह - बन्धरुात्मनेि। आत्मा - मिाः। आत्मिाः - जीवस्य। अत्मिा - मिसा। आत्मिा ं - जीवम।् आत्मवै मिाः। आत्मिा बदु्ध्या, जीविेवै वा। स नह बदु्ध्या नवजरनि। उकं्त च - ‘मिाः परं कारणमामिनन्त’ ‘मि एव मिषु्याणा ंकारण ंबन्धमोक्षरोाः’ ‘उद्धरने्मिसा जीव ंि जीवमवसादरिे।् जीवस्य बन्धाुः शत्रशु्च मि एव ि सशंराः’ ‘जीविे बदु्ध्या नह रदा मिोनजि ंिदा बन्धाुः शत्ररुन्यत्र चास्य। ििो जरदे्बनुद्धबलो िरस्तद्दवे च भक्त्या मधकैुटभारौ’ इत्यानद ब्रह्मववैि।े अिात्मिाः - अनजिात्मिाः परुुषस्य, अनजिमिस्कस्य सदनप मिोऽिपुकारीत्यिात्मा। सन्ननप भतृ्यो रस्य ि भतृ्यपद ेवि यि ेस ह्यभतृ्याः। िस्यात्मा - मि एव, शत्रवुि ् शत्रतु्व ेवि यि॥े05,06॥

नजिात्मािाः प्रशान्तस्य परमात्मा समानहिाः। शीिोष्णसखुदुाःखषे ुिर्ा मािापमािरोाः॥07॥

ज्ञािनवज्ञाििपृ्तात्मा कूटिो नवनजिनेन्द्रराः। रकु्त इत्यचु्यि ेरोगी समलोष्टाश्मकाञ्चिाः॥08॥

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नजिात्मिाः फलमाह - नजिात्मि इनि। नजिात्मा नह प्रशान्तो भवनि। ि िस्य मिाः प्रारो नवषरषे ुगच्छनि। िदा च परमात्मा सम्यक ्हृद्यानहिाः सनन्ननहिो भवनि - अपरोक्षज्ञािी स भविीत्यर् याः। अपरोक्षज्ञानििो लक्षण ं स्पष्टरनि- शीिोष्णते्यानदिा। शीिोष्णानदष ुकूटिाः। ज्ञािनवज्ञाििपृ्तात्मा नवनजिनेन्द्रर इनि कूटित्व ेहिेाुः। नवज्ञाि ं- नवशषेज्ञाि,ं अपरोक्षज्ञाि ंवा। िच्चोक्तम-् ‘सामान्यरै ेत्वनवज्ञरेा नवशषेा मम गोचरााः। दवेादीिा ंि ुिज्ज्ञाि ंनवज्ञािनमनि कीनि यिम॥्’ ‘श्रवणान्मििाच्चवै रज्ज्ञािामपुजारि।े िज्ज्ञाि ंदशयि ंनवष्णोनव यज्ञाि ंशम्भरुब्रवीि॥्’ ‘नवज्ञाि ंज्ञािमङ्गादनेव यनशष्ट ंदशयि ंिर्ा’ इत्यानद॥ कूटिो - निनव यकाराः। कूटवि ् निनि इनि व्यतु्पत्ताेः। कूटम ् - आकाशाः।

‘कूटं ख ंनवदलं व्योम सनन्धराकाश उच्यि’े इत्यनभधािाि।् रोगी - रोग ंकुव यि।् रकु्तो - रोगसम्पणू याः। एवभंिूो रोगािषु्ठािा रोगसम्पणू याः उच्यि इत्यर् याः॥ सहुृनन्मत्रार ुयदासीिमध्यििषे्यबन्धषु।ु साधषु्वनप च पापषे ुसमबनुद्धनव यनशष्यि॥े09॥ स एव च सव यिानिनशष्यि े साधपुापानदष ु समबनुद्धाः। जीवनचिाः परमात्मिाः सव यस्य िनन्ननमत्तत्वस्यच सव यत्रकैरप्यणे। नचदू्रपा एव नह जीवााः। नवशषेस्त्वन्ताःकरणकृिाः। सवषेा ं च साधतु्वानदकं सव यमीश्वरकृिमवे स्विो ि नकनञ्चदनप। उकं्त चिैि ् सव यम ् - ‘स्विाः सवऽेनप नचदू्रपााः सवयदोषनववनज यिााः। जीवास्तषेा ंि ुर ेदोषास्त उपानदकृिा मिााः। सवं चशे्वरिस्तषेा ंि नकनञ्चि ् स्वि एव ि।ु समा एव ह्यिाः सव ेवषैम्य ंभ्रानन्तसम्भवम।्

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एव ंसमा िजृीवास्त ुनवशषेो दवेिानदष।ु स्वाभानवकस्त ुनिरमादि एव सिाििाः। असरुादसे्तर्ा दोषा नित्यााः स्वाभानवका अनप। गणुदोषौ मािवािा ंनित्यौ स्वभानवकौ मिौ। गणुकैमात्ररपास्त ुदवेा एव सदा मिााः’ इनि ब्राह्म।े ि ि ुसाधपुापादीिा ंपजूानदसाम्यम।् ित्र दोषििृाेः -

‘समािा ंनवषमा पजूा नवषमाणा ंसमा िर्ा। क्रीरि ेरिे दवेोऽनप स्वपदाद्ब्रश्रि ेपमुाि ्’ इनि ब्राह्म।े ‘नवत्त ंबन्धवुर याः कमय नवद्या चवै ि ुपञ्चमी। एिानि मान्यिािानि गरीरो रद्यदुत्तरम ्’ इनि मािव।े ‘गणुािसुानरणीं पजूा ंसमा ंदृनष्ट ंच रो िराः। सवयभिूषे ुकुरुि ेिस्य नवष्णाुः प्रसीदनि॥ वषैम्यमतु्तमत्व ंि ुददानि िरसञ्चराि।् पजूारा नवषमा दृनष्टाः समा साम्य ंनवदुाःखजम॥्’ इनि ब्रह्मववैि।े सहृदानदष ुशास्त्रोक्तपजूानदकृनिरन्यिूानधका रा साऽनप समा। िदप्याह- ‘रर्ा सहुृत्स ुकियव्य ंनपिशृत्रसुिुषे ुच। िर्ा करोनि पजूानद ंसमबनुद्धाः स उच्यि’े इनि गारुड े प्रत्यपुकारनिरपके्षरोपकारकृि ् - सहुृि ् िेशिाि ं निरप्य रो रक्षा ं करोनि स - नमत्रम।् अनराः - वधानदकिा य। कि यव्य उपकारऽेपकार ेच र उदास्त ेस उदासीिाः। कि यव्यमभुरमनप राः करोनि स - मध्यिाः। अवानसिकृि ् िेष्याः। आह चिैि ् - ‘िषे्योऽवानसिकृि ् कार यमात्रकारी ि ुमध्यमाः।

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नप्ररकृि ् नप्ररो निरप्यानप िेश ंराः पनररक्षनि॥ स नमत्रमपुकारं ि ुअिपके्ष्योपकारकृि।् रस्तिाः स सहुृि ् प्रोक्ताः शत्रशु्चानप वधानदकृि ्’ इनि॥09॥ रोगी रञु्जीि सििमात्माि ंरहनस नििाः। एकाकी रिनचत्तात्मा निराशीरपनरग्रहाः॥10॥ समानधरोगप्रकारमाह - रोगी रञु्जीिते्यानदिा। रञु्जीिसमानध-रोगरकंु्त कुरा यि।् आत्मािम ् - मिाः॥10॥ शचुौ दशे ेप्रनिष्ठाप्य निरमासिमात्मिाः। िात्यनुच्छ्रि ंिानििीच ंचलेानजिकुशोत्तरम॥्11॥

ििकैाग्र ंमिाः कृत्वा रिनचत्तनेन्द्ररनक्रराः। उपनवश्रासि ेरञु्ज्याद्योगमात्मनवशदु्धर॥े12॥ रोगम ् - समानधरोग,ं रञु्ज्याि॥्12॥ सम ंकारनशरोग्रीव ंधाररन्नचलं निराः। सपं्रके्ष्य िानसकाग्र ंस्व ंनदशश्चािवलोकरि॥्13॥

प्रशान्तात्मा नवगिभीब्र यह्मचानरव्रि ेनििाः। मिाः सरंम्य मनच्चत्तो रकु्त आसीि मत्पराः॥14॥

रञु्जन्नवे ंसदाऽऽत्माि ंरोगी निरिमािसाः। शानन्त ंनिवा यणपरमा ंमत्सिंामनधगच्छनि॥15॥ निवा यणपरमाम ् - शरीरत्यागोत्तरकालीिाम॥्15॥

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िात्यश्निस्त ुरोगोऽनस्त ि चकैान्तमिश्निाः। ि चानि स्वप्नशीलस्य जाग्रिो िवै चाज ुयि॥16॥ अिशिानदनिषधेोऽशक्तस्य। उकं्त नह - ‘निद्राशिभरश्वासचषे्टािन्द्र्यानदवज यिम।् कृत्वानिमीनलिाक्षस्त ुशक्तो ध्यारि ् प्रनसद्ध्यनि’ इनि िारदीर॥े16॥ रकु्ताहारनवहारस्य रकु्तचषे्टस्य कमयस।ु रकु्तस्वप्नावबोधस्य रोगो भवनि दुाःखहा॥17॥ रकु्ताहारनवहारस्य - सोपाराहारादाेः। राविा श्रमाद्यभावो भवनि िावदाहारादनेरत्यर् याः॥17॥

रदा नवनिरि ंनचत्तमात्मन्यवेािनिष्ठि।े निाःस्पहृाः सवयकामभे्ो रकु्त इत्यचु्यि ेिदा॥18॥ आत्मनि - भगवनि॥18॥

रर्ा दीपो निवाििो िङे्गि ेसोपमा ििृा। रोनगिो रि नचत्तस्य रञु्जिो रोगमात्मिाः॥19॥ आत्मिाः भगवनिषर ंरोगम॥्19॥ रत्रोपरमि ेनचत्त ंनिरुद्ध ंरोगसवेरा। रत्र चवैात्मिाऽऽत्माि ंपश्रन्नात्मनि िनुष्यनि॥20॥ आत्मिा - मिसा। आत्मनि - दहे।े आत्माि ं- भगवन्त ंपश्रि॥्20॥ सखुमत्यानन्तकं रि ् िद्बनुद्धग्राह्यमिीनन्द्ररम।् वनेत्त रत्र ि चवैार ंनििश्चलनि ित्त्विाः॥21॥ ित्त्विाः - भगवदू्रपाि॥्21॥

र ंलब्ध्वा चापरं लाभ ंमन्यि ेिानधकं ििाः।

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रिि ् नििो ि दुाःखिे गरुुणाऽनप नवचाल्यि॥े22॥

ि ंनवद्याद्दाुःखसम्योगनवरोग ंरोगसनङ्ञिम।् स निश्चरिे रोक्तव्यो रोगोऽनिनव यण्णचिेसा॥23॥ दुाःखसरंोगो रिे नवरजु्यि े स दुाःखसरंोगनवरोगाः। ि केवलमतु्पन्न ं दुाःख ं िाशरनि, उत्पनत्तमवे निवाररिीनि दश यरनि सरंोगशब्दिे। निश्चरिे रोक्तव्याः - रोक्तव्य एव बभुषूणुते्यर् याः॥23॥ सङ्कल्पप्रभवाि ् कामासं्त्यक्त्वा सवा यिशषेिाः। मिसवैनेन्द्ररग्राम ंनवनिरम्य समन्तिाः॥24॥ सवा यि ् - सव यनवषराि।् अशषेिाः एकनवषरोऽनप कामाः स्वल्पाः कादानचत्कोऽनप ि कि यव्य इत्यर् याः। मिसवै निरन्तमु ् शक्यि ेिान्यिेते्यवेशब्दाः॥24॥

शिाैः शिरैुपरमदे्बदु्ध्या धनृिगहृीिरा। आत्मसिं ंमिाः कृत्वा ि नकनञ्चदनप नचन्तरिे॥्25॥ बदु्धाेः कारणत्व ंमिोनिग्रहं आत्मरमण॥े25॥ रिो रिो निश्चरनि मिश्चञ्चलमनिरम।् ििस्तिो निरम्यिैदात्मन्यवे वश ंिरिे॥्26॥ रिो रिाः - रत्र रत्र। ‘रिो रिो धावनि’ इत्यानदप्ररोगाि।् आत्मन्यवे वश ंिरिे ् - आत्मनवषर एव वशीकुरा यनदत्यर् याः॥26॥

प्रशान्तमिस ंह्यिे ंरोनगि ंसखुमतु्तमम।् उपनैि शान्तरजस ंब्रह्मभिूमकल्मषम॥्27॥

रञु्जन्नवे ंसदाऽऽत्माि ंरोगी नवगिकल्मषाः। सखुिे ब्रह्मससं्पशयमत्यन्त ंसखुमश्निु॥े28॥

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पवू यश्लोकोकं्त प्रपञ्चरनि - एव ंरञु्जनन्ननि॥28॥

सवयभिूिमात्माि ंसवयभिूानि चात्मनि। ईक्षि ेरोगरकु्तात्मा सवयत्र समदशयिाः॥29 ॥ ध्यरेमाह - सव यभिूिनमनि। सव यभिूिमात्मािम ् - परमशे्वरम।् सव यभिूानि, चात्मनि - परमशे्वर।े ि ंच परमशे्वरं ब्रह्मिणृादावशै्वरा यनदिा साम्यिे पश्रनि। िच्चोक्तम ् - ‘आत्माि ंसवयभिूषे ुभगवन्तमवनििम।् अपश्रि ् सवयभिूानि भगवत्यनप चात्मनि’ इनि। ‘सम ंसवषे ुभिूषे ुनिष्ठन्त ंपरमशे्वरम ्’ इनि च॥29॥ रो मा ंपश्रनि सवयत्र सवं च मनर पश्रनि। िस्याहं ि प्रणश्रानम स च म ेि प्रणश्रनि॥29॥ फलमाह - रो मानमनि। िस्याहं ि प्रणश्रामीनि सव यदा रोगक्षमेवहाः स्यानमत्यर् याः। स च म े ि प्रणश्रनि - सव यदा मद्भक्तो भवनि। सत्यनप स्वानमन्यरक्षत्यिार्ाः, एव ंभतृ्यऽेप्यभजत्व भतृ्याः इनि नह प्रनसनद्धाः। उकं्त च -

‘सवयदा सवयभिूषे ुसम ंमा ंराः प्रपश्रनि। अचला िस्य भनक्ताः स्याद्योगक्षमे ंवहाम्यहं॥’ इनि गारुड॥े30॥ सवयभिूनिि ंरो मा ंभजत्यकेत्वमानििाः। सवयर्ा वि यमािोऽनप स रोगी मनर वि यि॥े31॥ िदवे स्पष्टरनि - सव यभिूनििनमनि। एकत्वमानििाः - सव यत्रकै एवशे्वर इनि नििाः। सव यप्रकारणे वि यमािोऽनप मय्यवे वि यि।े एवमपरोक्ष ं पश्रिो ज्ञािफलं निरिनमत्यर् याः। िर्ाऽनप प्रारो िाधम ंकरोनि। कुव यिस्त ुमहच्चदे्दाुःखसचूकं भविीत्यकंु्त परुस्ताि।् आह च - ‘कदानचदनप िाधम ेबनुद्धनव यष्णदुृशा ंभविे।् प्रमादाि ् ि ुकृि ंपापमल्प ंभिीभनवष्यनि।

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आदराजसै्तर्ा दवेरैऋ्नषनभाः नक्ररि ेनकरि।् बाहल्याि ् कमयणस्तषेा ंदुाःखसचूकमवे िि ्’ इनि॥31॥ आत्मौपम्यिे सवयत्र सम ंपश्रनि रोऽज ुयि। सखु ंवा रनद वा दुाःख ंस रोगी परमो मिाः॥32॥ साम्य ंप्रकान्तरान्तरणे व्याचष्ट े- आत्मौपम्यिेनेि॥32॥ अज ुयि उवाच

रोऽर ंरोगस्त्वरा प्रोक्ताः साम्यिे मधसुदूि। एिस्याहं ि पश्रानम चञ्चलत्वाि ् निनि ंनिराम॥्33॥

चञ्चलम ् नह मिाः कृष्ण प्रमानर् बलवदृ्धढम।् िस्याहं निग्रहं मन्य ेवारोनरव सदुुष्करम॥्34॥ श्री भगवािवुाच

असशंर ंमहाबाहो मिो दुनि यग्रहं चलम।् अभ्ासिे ि ुकौन्तरे वरैार्गरणे च गहृ्यि॥े35॥ एिस्य रोगस्य निरा ंनिनि ंि पश्रानम मिसश्चञ्चलत्वाि।् उकं्त च - ‘मिसश्चञ्चलत्वानद्ध निनिरोगस्य व ैनिरा। नविाऽभास्य ंि शक्या स्वािरैार्गरािा ि सशंराः’ इनि व्यासरोग॥े33-35॥ असरंिात्मिा रोगो दुष्ट्राप इनि म ेमनिाः। वश्रात्मिा ि ुरििा शक्योऽवाप्तमुपुारिाः॥36॥ ि च कदानचि ् स्वरमवे मिो निरम्यि े-

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‘शभुचे्छारनहिािा ंच िनेषणा ंच रमापिौ। िानस्तकािा ंच व ैप ुसंा ंसदा मनुक्ति यजारि॥े’ इनि निषधेाद्ब्राह्म॥े36॥ अज ुयि उवाच

अरनिाः श्रद्धरोपिेो रोगाच्छनलिमािसाः। अप्राप्य रोग सनंसनद्ध ंका ंगनि ंकृष्ण गच्छनि॥37॥ अरनिाः- अप्ररत्नाः॥37॥ कनच्चन्नोभरनवभ्रष्टनश्िन्नाभ्रनमव िश्रनि। अप्रनिष्ठो महाबाहो नवमढूो ब्रह्मणाः पनर्॥38॥

एिन्म ेसशंर ंकृष्ण िते्तमुहयस्यशषेिाः। त्वदन्याः सशंरस्यास्य िते्ता ि ह्यपुपद्यि॥े39॥ श्री भगवािवुाच

पार् य िवैहे िामतु्र नविाशस्तस्य नवद्यि।े ि नह कल्याणकृि ् कनश्चद्दगु यनि ंिाि गच्छनि॥40॥

प्राप्य पणु्रकृिा ंलोकािनुषत्वा शाश्विीाः समााः। शचुीिा ंश्रीमिा ंगहे ेरोगभ्रष्टोऽनभजारि॥े41॥

अर्वा रोनगिामवे कुले भवनि धीमिाम।् एिनद्ध दुलयभिरं लोके जन्म रदीदृशम॥्42॥

ित्र ि ंबनुद्धसरंोग ंलभि ेपौव यदनेहकम।्

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रिि ेच ििो भरूाः सनंसद्धौ कुरुिन्दि॥43॥

पवूा यभ्ासिे ििेवै निरि ेह्यवशोऽनप साः। नजज्ञासरुनप रोगस्य शब्धब्रह्मानिवि यि॥े44॥ रोगस्य जीज्ञासरुनप - ज्ञािव्यो मरा रोग इनि रस्यािीवचे्छासोऽनप। शब्दब्रह्मानिवि यि े - परं ब्रह्म प्राप्नोिीत्यर् याः॥44॥ प्ररत्नाद्यिमािस्त ुरोगी सशंदु्धनकनिषाः। अिकेजन्मसनंसद्धस्तिो रानि परा ंगनिम॥्45॥ िकैजन्मिीत्याह - प्ररत्नानदनि। जीज्ञासजु्ञा यत्वा प्ररत्न ं करोनि। एवमिकेजन्मनभाः सनंसद्धोऽपरोक्षज्ञािी भतू्वापरा ंगनि ंरानि।आह च -

‘अिीव श्रद्धरा रकु्तो नजज्ञासनुव यष्णिुत्पराः। ज्ञात्वा ध्यात्वा िर्ा दृष्ट्वा जन्मनभब यहनभाः पमुाि।् नवशने्नारारण ंदवे ंिान्यर्ा ि ुकर्ञ्चि’ इनि िारदीर॥े45॥ िपनस्वभ्ोऽनधको रोगी ज्ञानिभ्ोऽनप मिोऽनधकाः। कनम यभ्श्चानधको रोगी ििाद्योगी भवाज ुयि॥46॥

रोगीिामनप सवषेा ंमद्गििेान्तरात्मिा। श्रद्धावान्भजि ेरो मा ंस म ेरकु्तिमो मिाः॥47॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिार ंषष्ठोऽध्याराः॥

ज्ञानिभ्ाः -रोगज्ञानिभ्ाः। िपनस्वभ्ाः - कृच्छ्रानदचानरभ्ाः। उकं्त च - ‘कृच्छ्रादरेनप रज्ञादधे्या यिरोगो नवनशष्यि।े ित्रानप शषेश्रीब्रह्मनशवानदध्याििो हराेः।

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ध्याि ंकोनटगणु ंप्रोक्तमनधकं वा ममुकु्षणुाम ्’ इनि गारुड।े ‘अज्ञात्वा ध्यानरिो ध्यािाि ् ज्ञािमवे नवनशष्यि।े ज्ञात्वा ध्याि ंज्ञािमात्राद्ध्यािदनप ि ुदशयिम।् दशयिाच्चवै भके्तश्च ि नकनञ्चि ् साधिानधकम ्’ इनि िारदीर॥े46,47॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेषष्ठोऽध्याराः॥

अर् सप्तमोऽध्याराः

साधि ंप्राधान्यिेोक्तमिीिरैध्याराैः। उत्तरसै्त ुषनिभ यगवन्माहात्म् ंप्राधान्यिेाह - श्री भगवािवुाच

मरासक्तमिााः पार् य रोग ंरञु्जि ् मदाश्रराः। असशंर ंसमग्र ंमा ंरर्ा ज्ञास्यनस िच्छृण॥ु01॥ आसक्तमिााः - अिीव स्नहेरकु्तमिााः। मदाश्रराः। भगवािवे मरा सव ं काररनि; स एव च म ेशरणम ्; िनिन्नवे चाहं निि इनि नििाः। असशंर ंसमग्रनमनि नक्ररानवशषेणम॥्01॥ ज्ञाि ंिऽेहं सनवज्ञािनमद ंवक्ष्याम्यशषेिाः। रज्ज्ञात्वा िहे भरूोऽन्यज्ज्ञािव्यमवनशष्यि॥े02॥ इद ं- मनिषर ंज्ञािम।् नवज्ञाि ं- नवशषेज्ञािम॥्02॥

मिषु्याणा ंसहस्रषे ुकनश्चद्यिनि नसद्धर।े रििामनप नसद्धािा ंकनश्चन्मा ंवनेत्त ित्त्विाः॥03॥ दौलयभ् ंज्ञािस्याह -मिषु्याणानमनि॥03॥ भनूमरापोऽिलो वाराुः ख ंमिो बनुद्धरवे च। अहङ्कार इिीर ंम ेनभन्ना प्रकृनिरष्टधा॥04॥

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प्रनिज्ञाि ंज्ञािमाह - भनूमनरत्यानदिा। महिोऽहङ्कार एवान्तभा यवाः॥04॥

अपररेनमिस्त्वन्या ंप्रकृनि ंनवनद्ध म ेपराम।् जीवभिूा ंमहाबाहो ररदे ंधार यि ेजगि॥्05॥ अपरा - अितु्तमा, वक्ष्यमाणमपके्ष्य। जीवभिूा - श्रीाः। जीवािा ंप्राणधानरणी नचदू्रपभिूा सव यदा सिी। ‘एिन्महदू्भिम ्’ इनि श्रिुाेः। जगाद च - ‘प्रकृिी ि ेि ुदवेस्य जडा चवैाजडा िर्ा। अव्यक्ताख्या जडा सा च सषृ्ट्यानभन्नाऽष्टधा पिुाः। महाि ् बनुद्धम यिश्चवै पञ्चभिूानि चनेि नह। अवरा सा जडा श्रीश्च पररे ंधार यि ेिरा। नचदू्रपा सा त्विन्ता च अिानदनिधिा परा। रि ् सम ंि ुनप्रर ंनकनञ्चन्नानस्तनवष्णोम यहात्मिाः। िारारणस्य मनहषी मािा सा ब्रह्मणोऽनप नह। िाभ्ानमद ंजगि ् सवं हनराः सजृनि भिूराट’् इनि िारदीर।े ि केवलं ि े जगत्प्रकृिी मिश े इत्यिेावन्मद्यशै्वर यनमत्याह - अहनमनि। प्रभवादाेः। सत्ताप्रिीत्यानदकारणत्वाि ् िद्भोकृ्तत्वाच्चप्रभव इत्यानद। िर्ा च श्रनुिाः- ‘सव यकमा य सव यकामाः सव यगन्धाः सव यरसाः सव यनमदमभ्ात्तोऽवाक्यिादराः’ इनि। आह च - ‘स्रष्टा पािा च सहंिा य निरन्ता च प्रकानशिा। रिाः सवयस्य ििेाहं सवोऽत्यनृषभाः स्तिुाः। सखुरपस्य भोकृ्तत्वान्न ि ुसवयस्वरपिाः। आगनमष्यि ् सखु ंचानप िच्चास्त्र्यवे सदाऽनप ि।ु

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िर्ाऽप्यनचन्त्यशनक्तत्वाज्जाि ंसखुमिीव च’ इनि िारदीर॥े05॥ एिद्योिीनि भिूानि सवा यणीत्यपुधारर। अहं कृत्नस्य जगिाः प्रभव प्रळरस्तर्ा॥06॥

मत्ताः परिरं िान्यि ् नकनङ्चदनस्त धिञ्जर। मनर सवयनमद ंप्रोि ंसतू्र ेमनणगणा इव॥07॥ अहमवे परिराः। मत्तोऽन्यि ् परिरं ि नकनञ्चदनप। इद ंज्ञािम॥्07॥

रसोऽहमप्स ुकौन्तरे प्रभाऽनि शनशसरू यरोाः। प्रणवाः सवयवदेषे ुशब्धाः ख ेपौरुष ंिषृ॥ु08॥

पणु्रो गन्धाः पनृर्व्या ंच िजेश्चानि नवभावसौ। जीवि ंसवयभिूषे ुिपश्चानि िपनस्वष॥ु09॥

बीज ंमा ंसवयभिूािा ंनवनद्ध पार् य सिाििम।् बनुद्धब ुयनद्धम यिामनि िजेस्तजेनस्विामहम॥्10॥

बलं बलविा ंचाहं कामरागनववनज यिम।् धमा यनवरुद्धो भिूषे ुकामोऽनि भरिष यभ॥11॥ रसोऽहनमत्यानद नवज्ञािम।् अबादरोऽनप िि एव। िर्ाऽनप रसानदस्वभावािा ंसाराणा ंच स्वभावत्व ेसारत्व ेच नवशषेिोऽनप स एव निरामकाः। ि त्वबानदनिरमािबुद्धो रसानदस्तत्सारत्वानदश्चनेि दश यरनि अप्स ुरस इत्यानद नवशषेशब्दाैः। भोगश्च नवशषेिो रसादरेनेि च उपासिार् ंच। उकं्त च गीिाकल्प े-

‘रसादीिा ंरसानदत्व ेस्वभावत्व ेिर्वै च। सारत्व ेसवयधमषे ुनवशषेणेानप कारणम।्

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Page 86 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

सारभोक्ता च सवयत्र रिोऽिो जगदीश्वराः। रसानदमानििा ंदहे ेस सवयत्र व्यवनििाः। अबादराः पाष यदा एव ध्यरेाः स ज्ञानििा ंहनराः। रसानदसम्पत्त्याऽन्यषेा ंवासदुवेो जगत्पनिाः’ इनि। ‘स्वभावो जीव एव च’ ‘सवयस्वभावो निरिस्तिेवै नकमिाः परम ्’ ‘ि िदनस्त नविा रि ् स्यान्मरा भिू ंचराचरम ्’ इनि च। ‘धमा यनवरुद्धाः’ ‘कामरागनववनज यिम ्’ इत्यादुपासिार् यम।् उकं्त च गीिाकल्प े- ‘धमा यनवरुद्धकामऽेसावपुास्याः कामनमच्छिा। नवहीि ेकामरागादबे यले च बलनमच्छिा। ध्यािस्तत्र त्वनिच्छनद्भज्ञा यिमवे ददानि साः’ इत्यानद। ‘पणु्रो गन्धाः’ इनि भोगापके्षरा च। िर्ा च श्रनुिाः - ‘पणु्रमवेाम ु ंगच्छनि ि ह व ैदवेाि ् पाप ंगच्छनि’ ‘ऋि ं नपबन्तौ सकृुिस्य लोके’ इत्यानदका। ऋि ंच पणु्र ं- ‘ऋि ंसत्य ंिर्ा धमयाः सकृुि ं चानभधीरि’े इत्यनभधािाि।् ‘ऋि ंि ुमािसो धमयाः सत्य ंस्याि ् सप्ररोगगाः’ इनि च। ि च ‘अिश्नन्नन्यो अनभचाकशीनि’ ‘अन्यो निरन्नोऽनप बलेि भरूाि ्’ इत्यानद नवरोधाः। िलूािशिोके्ताः। आह च सकू्ष्माशिम ् -

‘प्रनवनवक्ताहारिर इवषै भवत्यिाच्छारीरादात्मिाः’ इनि। ि चात्र जीव उच्यि।े ‘शारीरादात्मिाः’ इनि भदेानभधािाि।् स्वप्नानदश्च शारीर एव -

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Page 87 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘शारीरस्तनुिनत्रधा नभन्नो जाग्रदानदष्ववनििाेः’ इनि वचिाद्गारुड।े ‘अिाि ्’ इिीश्वरनिवतृ्त्यर् याः - ‘शारीरौ िावभुौ ज्ञरेौ जीवशे्वरसनंज्ञिाः। अिानदबन्धिस्त्वकेो नित्यमकु्तस्तर्ाऽपराः’ इनि वचिान्नारदीर।े भदेश्रिुशे्च। सनि गत्यन्तर ेपरुुषभदे एव कल्प्यो ि त्वविाभदेाः। आह च- ‘प्रनवनवक्तभरु्गरिो ह्यिाच्छारीराि ् परुुषोत्तमाः। अिोऽभोक्ताच भोक्ता च िलूभोगाि ् स एव ि’ुइनि गीिाकल्प॥े08-11॥ र ेचवै सानत्त्वका भावा राजसास्तामसाश्च र।े मत्त एवनेि िाि ् नवनद्ध ि त्वहं िषे ुि ेमनर॥12॥ ित्वहं िनेष्वनि िदिाधारत्वमचु्यि।े उकं्त च ‘िदानश्रि ंजगि ् सवं िासौ कुत्रनचदानश्रिाः’ इनि गीिाकल्प॥े12॥ नत्रनभग ुयणमरभैा यवरैनेभाः सवयनमद ंजगि।् मोनहि ंिानभजािानि मामभे्ाः परमव्यरम॥्13॥ िनहि कर्मवे ं ि ज्ञारस इत्यि आह - नत्रनभनरनि। िादात्म्ार् ेमरट।् िच्चोक्तम ् -

‘िादात्म्ार् ेनवकारार् ेप्राचरुा यर् ेमरट ्नत्रधा’ इनि। िनह गणुकार यभिूा मारा। ‘गणुमरी’ इनि च वक्ष्यनि। नसद्ध ंच कार यस्यानप िादात्म्म ् -

‘िादात्म् ंकार यधमा यदाेः सरंोगो नभन्नवस्तिुोाः’ इनि व्यासरोग।े

भावाैः - पदार्ाैः। सव य भावा दृष्यमािा गणुमरा एि इनि दश यरनि एनभनरनि। ज्ञानिव्यावतृ्त्यर् यम ् इदनमनि। गणुमरदहेानदकं दृष्ट्वशे्वरदहेोऽनप िादृश इनि मारामोनहि इत्यर् याः। जगाद च व्यासरोग े-

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‘गौणाि ् ब्रह्मानददहेादीि ् दृष्ट्वा नवष्णोरपीदृशाः। दहेानदनरनि मन्वािो मोनहिोऽज्ञो जिो भशृम ्’ इनि। एभ्ाः - गणुमरभे्ाः। ‘गणुभे्श्च परम ्’ इनि वक्ष्यमाणत्वाि।् ‘केवलो निग ुयणश्च’ इत्यानदश्रनुिभ्श्च। ‘त्रगैणु्रवनज यिम ्’ इनि चोक्तम॥्13॥

दवैी ह्यषेा गणुमरी मम मारा दुरत्यरा। मामवे र ेप्रपद्यन्त ेमारामिेा ंिरनन्त ि॥े14॥ कर्मिानदकाल ेमोहाित्यरो बहूिानमत्यि आह - दवैीनि। अरमाशराः - मारा ह्यषेा मोनहका। सा च सषृ्ट्यानदक्रीडानदमद्दवे-सम्बनन्धत्वादनिशके्तदुयरत्यरा। िर्ानह दवेशब्दार् ंपठनन्त - ‘नदव ुक्रीडानवनजगीषाव्यवहारद्यनुिस्तनुिमोदमदस्वप्नकानन्तगनिष’ु इनि। कर् ंदवैी? मदीरत्वाि।् अहं नह दवे इनि। अब्रवीच्च - ‘श्रीभू यदुगनेि रा नभन्ना महामारा ि ुवषै्णवी। िच्चक्त्यिन्ताशंहीिाऽर्ानप िस्याश्रराि ् प्रभोाः। अिन्तब्रह्मरुद्रादिेा यस्यााः शनक्ताः कलाऽनप नह। िषेा ंदुरत्यराऽप्यषेा नविाऽनवष्णपु्रसादिाः’ इनि व्यासरोग।े िनहि ि कर्नंचदत्यिे ु ंशक्यि े इत्यि आह - मामवेनेि। अन्यि ् सव ं पनरत्यज्य मामवे र े प्रपद्यन्त।े गवुा यनदवन्दि ं च मय्यवे समप यरनन्त। स एव च ित्र नित्वागवुा यनदभ यविीत्यानद पश्रनन्त। आह च िारदीर।े ‘मत्सम्पत्त्या ि ुगवुा यदीि ् भजन्त ेमध्यमा िरााः। मधपुानधिरा िाशं्च सवयभिूानि चोत्तमााः॥’ इनि ‘आचार यचतै्यवपषुा स्वगनि ंव्यिनङ्क्ष’ इनि च॥14॥ ि मा ंदुषृ्कनििो मढूााः प्रपद्यन्त ेिराधमााः। माराराऽपहृिज्ञाि आसरंु भावमानश्रिााः॥15॥

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Page 89 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िनहि नकनमनि सव े िात्यारनन्नत्यि आह - ि मानमनि। दुषृ्कनित्वान्मढूााः। अि एव िराधमााः। अपहृिज्ञािात्वाच्च मढूााः। अि एवासरंु भावमानश्रिााः। स च वक्ष्यि े - ‘प्रवृनत्त ं च निवनृत्त ं च’ इत्यानदिा। अपहाराः - अनभभवाः। उकं्त चिैद्व्यासरोग े- ‘ज्ञाि ंस्वभावो जीवािा ंमाररा चानभभरूि’े इनि। आसषु ुरिा असरुााः। िच्चोकं्त िारदीर-े ‘ज्ञािप्रधािा दवेास्त ुअसरुास्त ुरिा असौ’ इनि॥15॥ चिनुव यधा भजन्त ेमा ंजिााः सकृुनििोऽज ुयि। आिो नजज्ञासरुर्ा यनर् य ज्ञािी च भरिष यभ॥16॥

िषेा ंज्ञािी नित्यरकु्त एकभनक्तनव यनशष्यि।े नप्ररो नह ज्ञानििोऽत्यर् यमहं स च मम नप्रराः॥17॥ एकनिन्नवे भनक्तनरत्यकेभनक्ताः। िच्चोकं्त गारुड े-

‘मय्यवे भनक्तिा यन्यत्र एकभनक्ताः स उच्यि’े इनि॥17॥ उदारााः सवय एविै ेज्ञािी त्वात्मवै म ेमिम।् आनििाः स नह रकु्तात्मा मामवेाितु्तमा ंगनिम॥्18॥

बहूिा ंजन्मिामन्त ेज्ञािावाि ् मा ंप्रपद्यि।े वासदुवेाः सवयनमनि स महात्मा सदुुलयभाः॥19॥ बहूिा ंजन्मिामन्त ेज्ञािवाि ् भवनि। िच्चोकं्त ब्राह्म े- जन्मनभब यहनभज्ञा यत्वा ििो मा ंप्रनिपद्यि’े इनि॥19॥ कामसै्तसै्तहैृयिज्ञािााः प्रपद्यन्तऽेन्यदवेिााः। ि ंि ंनिरममािार प्रकृत्या निरिााः स्वरा॥20॥

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प्रकृत्या - स्वभाविे। ‘स्वभाव प्रकृनिश्चवै ससं्कारो वासिनेि च’ इत्यनभधािाि॥्20॥

रो रो रा ंरा ंिि ु ंभक्ताः श्रद्धराऽनच यिनुमच्छनि। िस्य िस्याचला ंश्रद्धा ंिामवे नवदधाम्यहम॥्21॥ रा ंरा ं- ब्रह्मानदरपा ंििमु॥्21॥

स िरा श्रद्धरा रकु्तस्तस्याराधिमीहि।े लभि ेच ििाः कामाि ् मरवै नवनहिाि ् नह िाि॥्22॥

अन्तवि ् ि ुफलं िषेा ंिद्भवत्यल्पमधेसाम।् दवेाि ् दवेरजो रानन्त मद्भक्ता रानन्त मामनप॥23॥ उकं्त च िारदीर-े

‘अन्तो ब्रह्मानदभक्तािा ंमद्भक्तािामिन्तिा’ इनि। ‘मकु्तश्च का ंगनि ंगचे्छन्मोक्षश्चवै नकमात्मकाः’ इत्यादाेः पनरहारसन्दभा यच्च मोक्षधमषे।ु ‘अविार ेमहानवष्णोभ यक्ताः कुत्र च मचु्यि’े इत्यादशे्च ब्रह्मववैि॥े23॥ अव्यकं्त व्यनक्तमापन्न ंमन्यन्त ेमामबदु्धराः। परं भावमजािन्तो ममाव्यरमितु्तमम॥्24॥ को नवशषेस्तवान्यभे्ाः इत्यि आह - अव्यक्तनमनि। कार यदहेानदवनज यिम।् ििानिव प्रिीरस इत्यि आह - व्यनक्तमापन्ननमनि। कार यदहेाद्यापन्नम।् िच्चोक्तम ् ‘सदसिाः परम ्’ ‘ि िस्य कार यम ्’ ‘आपानणपादाः’ ‘आिन्ददहंे परुुष ंमन्यन्त ेगौणदनेहकम ्’ इत्यादौ। भाव ं- रार्ार्थ्य यम।् िर्ाऽब्रवीच्च- ‘रर्ािर्थ्यमजािन्ताः परं िस्य नवमोनहिााः’ इनि॥24॥ िाहं प्रकाशाः सवयस्य रोगमारासमाविृाः। मढूोऽर ंिानभजािानि लोको मामजमव्यरम॥्25॥

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Page 91 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अज्ञाि ं च मनदच्छरते्याह - िाहनमनि। रोगिे - सामर्थ्योपारिे माररा च। मरवै मढूो िानभजािानि। िर्ाऽऽह पाद्म-े ‘आत्मिाः प्रवनृत्त ंचवै लोकनचत्तस्य बन्धिम।् स्वसामर्थ्यिे दवे्या च कुरुि ेस महशे्वराः’ इनि॥25॥ वदेाहं समिीिानि वि यमािानि चाज ुयि। भनवष्यानण च भिूानि मा ंि ुवदे ि कश्चि॥26॥ ि च मा ंमारा बद्नािीत्याह - वदेनेि। ि कश्चिानिसमर्ोऽनप स्वसामर्थ्या यि॥्26॥ इच्छािषेसमतु्थिे िन्द्वमोहिे भारि। सवयभिूानि सम्मोहं सग ेरानन्त परन्तप॥27॥ िन्द्वमोहिे - सखुदुाःखानदनवषरमोहिे। इच्छािेषरोाः प्रवदृ्दरोि यनह नकनञ्चज्ज्ञाि ु ं शक्यम।् कारणान्तरमिेि।् सग े- सग यकाल आरभ्वै। शरीर ेनह सन्तीच्छादराः। पवू ंत्वज्ञािमात्र॥ं27॥

रषेा ंत्वन्तगि ंपाप ंजिािा ंपणु्रकम यणाम।् ि ेिन्द्वमोहनिम ुयक्ता भजन्त ेमा ंदृढव्रिााः॥28॥ नवपरीिाश्च केनचि ् सन्तीत्याह - रषेानमनि॥28॥ जरामरणमोक्षार मामानश्रत्य रिनन्त र।े ि ेब्रह्म िनिदुाः कृत्स्नमध्यात्म ंकमय चानखलम॥्29॥

सानधभिूानधदवै ंमा ंसानधरज्ञ ंच र ेनवदुाः। प्रराणकलेऽनप च मा ंि ेनवदुर ुयक्तचिेसाः॥30॥ ॥इति श्रीमद्भगवद्गीिायाां सप्िमोऽद्यायः॥7॥

जरामरणमोक्षारते्यन्यकामनिवतृ्त्यर् यम।् मोक्ष ेसनक्तस्ततु्यर् ंवा। ि नवनधाः। ‘ममुोक्षोरममुकु्षसु्त ुवरो ह्यकेान्त भनक्तभाक’् इिीिरस्तिुिेा यरदीर।े ‘िात्यनन्तकम ्’ इनि च।

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‘दवेािा ंगणुनलङ्गािामािशु्रनवककमयणाम।् सत्त्व एवकैमिसो वनृत्ताः स्वाभानवकी ि ुरा। अनिनमत्ता भगवनि भनक्ताः नसद्धगे यरीरसी। जररत्याश ुरा कोश ंनिगीण यमिलो रर्ा’ इनि भागवि ेलक्षणाच्च। आह च - ‘सव ेवदेास्त ुदवेार्ा य दवेा िारारणार् यकााः। िारारणस्त ुमोक्षार् ेमोक्षो िान्यार् य इष्यि।े एव ंमध्यमभक्तािामकेान्तािा ंि कस्यनचि।् अर् ेिारारणो दवेस्त्वन्यि ् सवं- िदर् यकम।् इनि गीिाकल्प।े ि एव च नवधाुः। ‘रमवेषै वणृिु’े इनि श्रिुाेः॥29,30॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेसप्तमोऽध्याराः॥7॥

अर् अष्टमोऽध्याराः मरणकाल ेकि यव्यगत्याद्यनिन्नध्यार उपनदशनि अज ुयि उवाच

नकं िद्ब्रह्म नकमध्यात्म ंनकं कमय परुुषोत्तम। आनधभिू ंच नकं प्रोक्तमनधदवै ंनकमचु्यि॥े01॥

अनधरज्ञाः कर् ंकोऽत्र दहेऽेनिि ् मधसुदूि। प्रराणकाले च कर् ंज्ञरेोऽनस निरिात्मनभाः॥02॥ श्री भगवािवुाच

अक्षरं ब्रह्म परम ंस्वभावोऽध्यात्ममचु्यि।े

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भिूभावोद्भवकरो नवसग याः कमयसनज्ञिाः॥03॥ परममक्षरं - परब्रह्म। वदेानदशङ्काव्यावतृ्त्यर् यमिेि।् आत्मन्यनध रि ् िदध्यात्मम।् आत्मानधकार ेरि ् िनदनि वा। िर्ानह चवैाः स्वभावाः। स्वाख्यो भाव इनि व्यतु्पत्त्या जीवो वा स्वभावाः। सव यदाऽस्त्यवेकैप्रकारणेनेि भावाः | अन्ताःकरणानदव्यावृत्त्यर्ो भावशब्दाः | ि ह्यकेप्रकारणे निनिरन्ताःकरणादाेः नवकानरत्वाि ् | स्वशब्द ईश्वरव्यावतृ्यर् याः | भिूािा ं जीवािा ं भाविा ंजडपदार्ा यिा ंचोद्बवकरशे्वरनक्ररा नवसग याः | नवशषेणे सज यि ंनवसग य इत्यर् याः॥03॥

अनधभिू ंक्षरो भावाः परुुषश्चानधदवैिम।् अनधरज्ञोऽहमवेात्र दहे ेदहेभिृा ंवर॥04॥ भिूानि सशरीराि ् जीवािनदकृत्य रि ् िदनधभिूम।् क्षरो भावाः - नविानशकार यपदार् याः। अव्यक्तन्तभा यवऽेनप िस्याप्यन्यर्ाभावाख्यो नविाशोऽस्त्यवे। िच्चोक्तम ् - ‘अव्यक्तम ् परम ेव्योनम्न निनिर ेसम्प्रलीरि’े इनि ‘ििादव्यक्तमतु्पन्न ंनत्रगणु ंनिजसत्तम’ इनि च। ‘नवकारोऽव्यक्तजन्म ही’ इनि च स्कान्द।े पनुर शरिाि ् परुुषो जीवाः। स च सङ्कष यणो ब्रह्मा वा। स सव यदवेािनधकृत्य पनिनरत्यनधदवैिम।् दवेानधकारि इनि वा। सव यरज्ञ भोकृ्तत्वादरेनधरज्ञाः। अन्योऽनधरज्ञोऽग्न्यानदाः प्रनसद्दाः इनि दहे इनि नवशषेणम।्

भोक्तारं रज्ञिपसाम ्’ , ‘त्रनैवद्या माम ्’ ‘रऽेप्यन्यदवेिाभक्तााः’ एिस्य वा अक्षरस्य प्रशासि ेगानग य’ ‘ददिो मिषु्यााः प्रशसंनन्त रजमाि ंदवेााः’ इत्यादाेः। ‘कुिो ह्यस्य ध्रवु ंस्वगयाः कुिो िाैःश्ररेस ंपरम ्’ इत्यानद पनरहाराच्च मोक्षधम।े भगवाशं्चिे ् िद्भोकृ्तत्वादरेनधरज्ञत्व ं नसद्धनमनि कर्नमत्यस्य पनरहाराः परृ्ज्ञ्िोक्ताः। सव यप्रानणदहेिरपणेानधरज्ञाः। अत्रनेि स्वदहेनिवृत्त्यर् यम।् िनह ित्रशे्वरस्य निरन्ततृ्व ं परृ्गनस्त।

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िात्रोकं्त ब्रह्म भगविोऽन्यि।् ‘ि े ब्रह्म’ इत्यकु्त्वा ‘सानधभिूानधदवै ं मा ं सानधरज्ञ ं च र े नवदुाः’ इनि परमशा यि ् | िस्यवै च प्रश्नाि ् | सानधरज्ञनमनि भदेप्रिीिसे्तनन्नवतृ्त्यर् यम ् ‘अनधरज्ञोऽहम ्’ इत्यकु्तम ् | मानमत्यभदेप्रिीिरेक्षरनमत्यवेोक्तम ् | आह च गीिाकल्प े-

‘दहेिनवष्णरुपानण अनधरज्ञ इिीनरिाः। कमशे्वरस्य सषृ्ट्वाख्य ंिच्चापीच्छाद्यमचु्यि।े अनधभिू ंजड ंप्रोक्तमध्यात्म ंजीव उच्यि।े नहरण्रगभोऽनधदवै ंदवेाः सङ्कष यणोऽनप वा। ब्रह्म िारारणो दवेाः सवदेवेशे्वरशे्वराः’ इनि। ‘रर्ाप्रिीि ंवा सवयमत्र व ैि नवरुद्द्यि”ेइनि च। स्कान्द ेच ‘आत्मानभमािानधकारनििमध्यात्ममचु्यि।े दहेाद्बाह्य ंनविाऽिीव बाह्यत्वादनधदवैिम।् दवेानधकारग ंसवं महाभिूानधकारगम।् ित्कारण ंिर्ा कार यमनधभिू ंिदनन्तकाि ्’ इनि महाकौम ेच । ‘अध्यात्म ंदहेपर यन्त ं केवलात्मोपकारकम।् सदहेजीवभिूानि रि ् िषेामपुकारकृि।् अनधभिू ंि ुमारान्त ंदवेािामनधदवैिम ्’ इनि॥04॥ अन्तकाले च मामवे िरन्मकु्त्वा कलेवरम।् राः प्ररानि स मद्भाव ंरानि िास्त्यत्र सशंराः॥05॥ मद्भाव ं- मनर सत्ताम।् निदु याःखनिरनिशरािन्दात्मकम।् िच्चोक्तम ् ‘मकु्तािा ंच गनिब्र यह्मि ् क्षिेज्ञ इनि कनल्पिाः’ इनि मोक्षधम॥े05॥

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Page 95 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

र ंर ंवाऽनप िरि ् भाव ंत्यजत्यन्त ेकलेवरम।् ि ंिमवेनैि कौन्तरे सदा िद्भावभानविाः॥06॥

ििात्सवषे ुकालेष ुमामििुर रधु्य च। मय्यनप यिमिोबनुद्धमा यमवेषै्यस्यसशंराः॥07॥ िरि ् परुुषस्त्यजिीनि नभन्नकालीित्वऽेप्यनवरोध इनि मन्दमिाेः शङ्का मा भनूदनि ‘अन्त’े इनि नवशषेणम।् समुििेवै शङ्कावकाशाः। िरंस्त्यजिीत्यकेकालीित्वप्रिीिाेः। दुम यिदेु याःखान्न िरंस्त्यजिीनि भनवष्यनि शङ्का। ‘त्यजि ् दहंे ि कनश्चि ् ि ुमोहमाप्नोत्यसशंरम ्’ इनि च स्कान्द।े ‘िस्य हिैस्य हृदरस्याग्र ं प्रद्योिि े ििे प्रद्योििेषै आत्मा नििामनि’ इनि नह श्रनुिाः। सदा िद्भावभानवि इत्यन्तकाल े िरणोपारमाह। भावोऽन्तग यिम ् मिाः। िर्ाऽनभधािाि।् भानवित्वम ् अनि वानसित्वम।् ‘भाविा त्वनिवासिा’ इत्यनभधािाि॥्06,07॥

अभ्ासरोगरकेु्ति चिेसाऽिान्यगानमिा। परम ंपरुुष नदव्य ंरानि पार्ा यिनुचन्तरि॥्08॥ सदा िद्भावभानवित्व ंस्पष्टरनि - अभ्ासनेि। अभ्ास एव रोगोऽभ्ासरोगाः। नदव्य ंपरुुष ंपनुरशर ंपणू ंच। ‘स वा अर ंपरुुषाः सवा यस ुपषू ुय पनुरशरो ििैिे नकञ्चिािाविृ ंििैिे नकञ्चिासवंिृम ्’ इनि श्रिुाेः। नदव्य ंसषृ्ट्यानदक्रीडारकु्तम।् ‘नदव ुक्रीडा-’ इनि धािोाः॥08॥ कनव ंपरुाणामिशुानसिारमणोरणीरासंमििुरदे्याः। सवयस्य धािारमनचन्त्यरपमानदत्यवणं िमसाः परुस्ताि॥्09॥

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Page 96 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ध्यरेमाह - कनवनमनि। कनव ं - सव यज्ञम।् ‘राः सव यज्ञाः’ इनि श्रनुिाः। ‘त्व ं कनवाः सव यवदेिाि ्’ इनि ब्राह्म।े धािारं - धारणपोषणकिा यरम।् ‘डुधाञ धारणपोषणरोाः’ इनि धािोाः। ‘धािा नवधािा परमोि सन्दृग ्’ इनि च श्रनुिाः। ‘ब्रह्मा िाणाुः’ इत्यारभ् ,

‘िस्य प्रसादानदच्छनन्त िदानदष्टफला ंगनिम ्’ इत्यादशे्च मोक्षधम।े िमसोऽव्यक्ताि ् परिाः नििम ् - ‘िमसाः परस्तानदनि। अव्यकं्त व ैिमाः। परस्तानद्ध स ििाः’ इनि नपप्पलादशाखाराम।् ‘मतृ्यवुा यव िमाः। मतृ्यवु ैिमो ज्योनिरमिृम ्’ इनि श्रिुाेः॥09॥ प्रराणकाले मिसाऽचलेि भक्त्या रकु्तो रोगबलेि चवै। भ्रवूोम यध्य ेप्राणमावशे्र सम्यक ् स ि ंपरं परुुषमपुनैि नदव्यम॥्10॥ वारजुरानदरोगरकु्तािा ंमनृिकालकि यव्यमाह नवशषेिाः - प्रराणकाल इनि। वारजुरानदरनहिािामनप ज्ञािभनक्तवरैार्गरानदसपंणूा यिा ंभवत्यवे मनुक्ताः। िििा ंत्वीषज्ज्ञािाद्यसम्पणूा यिामनप निपणुािा ंिद्बलाि ् कर्नंचद्भविीनि नवशषेाः। उकं्त च भागवि-े ‘पाििे ि ेदवेकर्ासधुारााः प्रवदृ्धभक्त्या नवशदाशरा र।े वरैार्गरसारं प्रनिलभ् बोध ंरर्ाऽञ्जसा त्वाऽऽपरुकुण्ठनधष्ण्यम।् िर्ा पर ेत्वात्मसमानधरोगबलेि नजत्वा प्रकृनि ंबनलष्ठाम।् त्वामवे धीरााः परुुष ंनवशनन्त िषेा ंश्रमाः स्यान्न ि ुसवेरा ि’े। ‘र ेि ुिद्भानविा लोक एकानन्तत्व ंसमानश्रिााः। एिदभ्नधकं िषेा ंिि ् िजेाः प्रनवशन्त्यिु’ इनि च मोक्षधम।े

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सम्पणूा यिा ंभवने्मोक्षो नवरनक्तज्ञािभनक्तनभाः। निरमिे िर्ाऽपीरजरानदरिुरोनगिा।ं वश्रत्वान्मि स्त्वीषि ् पवू यमप्याप्यि ेध्रवुम ्’ इनि च व्यासरोग॥े10॥ रदुक्षरं वदेनवदो वदनन्त नवशनन्त रद्यिरो वीिरागााः। रनदच्छन्तो ब्रह्मचर ंचरनन्त िि ् ि ेपद ंसङ्ग्रहणे प्रवक्ष्य॥े11॥ िदवे सध्यरे ंप्रपञ्चरनि - रदक्षरनमत्यानदिा। प्राप्यि ेममकु्षनुभनरनि पद-ंस्वरपम।् ‘पद गिौ’ इनि धािोाः | ‘िनिष्णोाः परम ंपदम ्’ इनि श्रिुशे्च | ‘गीरस ेपदनमत्यवे मनुिनभाः पद्मस ेरिाः’ इनि च िारदीर॥े11॥ सवयिारानण सरंम्य मिो हृनद निरुद्य च। मरू्ध्न्ा यधारात्मािाः प्राणमानििो रोगधारणम॥्12॥ ब्रह्मिाडीं नविा रद्यन्यत्र गच्छनि िनहि नविा मोक्ष ंिािान्तरं प्राप्नोिीनि सव यिारानण सरंम्य।

‘निग यचं्छश्चक्षषुा सरू ंनदशाः श्रोत्रणे चवै नह’ इत्यानदवचिाद्व्यासरोग ेमोक्षधम ेच। हृनद - िारारण े-

‘निरि ेत्वरा जगद्यिादृ्धनदत्यवे ंप्रभाष्यस’े इनि नह पाद्म।े िनह मनूध्न य प्राण ेहृनद मिसाः निनिाः सम्भवनि।

‘रत्र प्राणो मिस्तत्र ित्र जीवाः परस्तर्ा’ इनि व्यासरोग।े रोगाधारणामानििाः रोगभरण एवानभरकु्त इत्यर् याः॥12॥ ओनमत्यकेाक्षरं ब्रह्म व्याहरि ् मामििुरि।् राः प्ररानि त्यजि ् दहंे स रानि परमा ंगनिम॥्13॥

अिन्यचिेााः सिि ंरो मा ंिरनि नित्यशाः। िस्याहं सलुभाः पार् य नित्यरकु्तस्य रोनगिाः॥14॥

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नित्यरकु्तस्य - नित्योपारविाः। रोनगिाः - पनरपणू यरोगस्य॥14॥

मामपुते्य पिुज यन्म दुाःखालरमशाश्विम।् िाप्नवुनन्त महात्मािाः सनंसनद्ध ंपरमा ंगिााः॥15॥ ित्प्रानप्त ंस्तौनि - मानमनि। परमा ंसनंसनद्ध ंगिा नह ि इनि ित्र हिेाुः॥15॥

आब्रह्मभवुिाल्लोकााः पिुरावनि यिोऽज ुयि। मामपुते्य ि ुकौन्तरे पिुज यन्म ि नवद्यि॥े16॥ महामरेुिब्रह्मसदिमारभ् ि पिुरावनृत्ताः। िच्चोकं्त िारारण-गोपालकल्प े- ‘आमरेुब्रह्मसदिादाजिान्न जनिभ ुयनव। िर्ाऽप्यभावाः सवयत्र प्राप्यवै वसदुवेजम ्’ इनि॥16॥ सहस्ररगुपर यन्तमहर यद्ब्रह्मणो नवदुाः। रानत्र ंरगुसहस्रान्ता ंिऽेहोरात्रनवदो जिााः॥17॥ मा ं प्राप्य ि पिुरावनृत्तनरनि िापनरिमुव्यक्ताख्यात्मसामर्थ्य ं दश यनरि ु ं प्रलरानद दश यरनि - सहस्ररगुते्यानदिा। सहस्रशब्दोऽत्रािकेवाची। ‘सा नवश्वरपस्य रजिी’ इनि ह श्रनुिाः॥17॥

अव्यक्ताद्व्यक्तराः सवा याः प्रभवन्त्यहरागम।े रात्र्यागम ेप्रलीरन्त ेित्रवैाव्यक्तसजं्ञके॥18॥

भिूग्रामाः स एवार ंभतू्वा भतू्वा प्रलीरि।े रात्र्यागमऽेवशाः पार् य प्रभवत्यहरागम॥े19॥

परस्तिाि ् ि ुभावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्ताि ् सिाििाः। राः स सवषे ुभिूषे ुिश्रत्स ुि नविश्रनि॥20॥ निपराध यप्रलर एवात्र नववनक्षिाः। ‘अव्यक्ताद्व्यक्तराः सवा याः’ इत्यकेु्ताः। उकं्त च महाकौम-े

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‘अिकेरगुपर यन्तमहनव यष्णोस्तर्ा निशा। रात्र्यादौ लीरि ेसवयमहरादौ च जारि’े इनि। ‘राः स सवषे ुभिूषे’ु इनि वाक्यशषेाच्च॥18-20॥ आव्यक्तोऽक्षर इत्यकु्तस्तमाहाः परमा ंगनिम।् र ंप्राप्य ि निवि यन्त ेिद्धाम परम ंमम॥21॥ अव्यक्तो- भगवाि।् ‘र ंप्राप्य ि निवि यन्त’े इनि ‘मामपुते्य’ इत्यकु्तस्य परामशा यि ् । ‘अव्यकं्त परम ंनवष्णमु ्’ इनि प्ररोगाच्च गारुड।े धाम -स्वरपम।् ‘िजेाः स्वरप ंच गहंृ प्राज्ञ्यधैा यमनेि गीरि’े इत्यनभधािाि॥् परुुषाः स पराः पार् य भक्त्या लभस्त्विन्यरा। रस्यान्ताःिानि भिूानि रिे सवयनमद ंििम॥्22॥ परम ंसाधिमाह - परुुष इनि॥22॥

रत्र काले त्विावनृत्तमावनृत्त ंचवै रोनगिाः। प्ररािा रानन्त ि ंकालं वक्ष्यानम भरिष यभ॥23॥ रत्कालाद्यनभमानिदवेिा गिा आवतृ्त्यिावृत्ती गच्छनन्त िा आह - रत्रते्यानदिा। काल इत्यपुलक्षणम।् अग्न्यादरेनप वक्ष्यमाणत्वाि॥्23॥ अनग्नज्योनिरहाः शिुाः षण्मासा उत्तरारणम।् ित्र प्ररािा गच्छनन्त ब्रह्म ब्रह्मनवदो जिााः॥24॥

धमूो रानत्रस्तर्ा कृष्णाः षण्मासा दनक्षणारिम।् ित्र चान्द्रमस ंज्योनिरोगी प्राप्य निवि यि॥े25॥

शिु कृष्ण ेगिी ह्यिे ेजगि ंशाश्वि ेमि।े

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एकरा रात्यिावनृत्तमन्यराऽऽवि यि ेपिुाः॥26॥ ज्योनिाः - अनच याः। ‘िऽेनच यषमनभसम्भवनन्त’ इनि नह श्रनुिाः | िर्ा च िारदीर े- ‘अनग्न ंप्राप्य ििश्चानच यस्तिश्चाप्यहरानदकम ्’ इनि। अनभमानिदवेिाश्चाग्न्यादराः । कर्मन्यर्ा ‘अह्न आपरू यमाणपक्षम ्’ इनि रजु्यि।े ‘नदवानददवेिानभस्तपुनूजिो ब्रह्म रानि नह’ इनि नह ब्राह्म ेमासानभमानिभ्ोऽरिानभमािी च परृ्क।् िच्चोकं्त गारुड-े ‘पनूजिस्त्वरििेासौ मासाैः पनरविृिे ह’ इनि। अहरनभनजिा शिुपौण यमास्या आरि ंनवषवुा सह। िच्चोकं्त ब्रह्मववैि े- ‘साह्ना मध्यनन्दििेार् शिेुि च स पनूण यमा। सनवष्वा चारििेासौ पनूजिाः केशव ंव्रजिे ्’ इनि॥24-26॥ ििै ेसिृी पार् य जािि ् रोगी महु्यनि कश्चि। ििात्सवषे ुकालेष ुरोगरकु्तो भवाज ुयि॥27॥

वदेशे ुरज्ञषे ुिपाःस ुचवै दािषे ुरत्पणु्रफलं प्रनदष्टम।् अत्यनेि िि ् सवयनमद ंनवनदत्वा रोगी परं िािमपुनैि चाद्यम॥्28॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारामष्टमोऽध्याराः॥8॥

एि ेसिृी सोपार ेज्ञात्वा-अिषु्ठार, ि महु्यनि। िच्चाह स्कान्द-े सिृी ज्ञात्वा ि ुसोपार ेचािषु्ठार च साधिम।् ि कनश्चन्मोहमाप्नोनि ि चान्या ित्र व ैगनिाः’ इनि॥27-28॥

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Page 101 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिभाष्य ेअष्टमोऽध्याराः॥8॥

अर् िवमोऽध्याराः सप्तमाध्यारोकं्त स्पष्टरत्यनिन्नध्यार े- श्री भगवािवुाच

इद ंि ुि ेगहु्यिम ंप्रवक्ष्याम्यिसरूव।े ज्ञाि ंनवज्ञािसनहि ंरज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसऽेशभुाि॥्01॥

राजनवद्या राजगहु्य ंपनवत्रनमदमतु्तमम।् प्रत्यक्षावगम ंधम्य ंससुखु ंकि ुयमव्यरम॥्02॥ राजनवद्या - प्रधािनवद्या। प्रत्यक्ष ंब्रह्म अवगम्यि ेरिे िि ् प्रत्यक्षावगमम।् अक्षषे ुइनन्द्ररषे ुप्रनि प्रनि निि इनि प्रत्यक्षाः। िर्ा च श्रनुिाः।

‘राः प्राण ेनिष्ठि ् प्राणादन्तरो र ंप्राणो ि वदे रस्य प्राणाः शरीरं राः प्राणमन्तरो रमरत्यषे ि आत्माऽन्तरा यम्यमिृाः’। ‘रो वानच निष्ठि ्’ ‘रश्चक्षनुष निष्ठि ्’ इत्यादाेः। ‘र एषोऽन्तरनक्षनण परुुषो दृष्यि’े इनि च। ‘अङ्गषु्टमात्राः परुुषोऽङ्गषु्ठ ंच समानश्रिाः’ इनि च। ‘त्व ंमिस्त्व ंचन्द्रमास्त्व ंचक्षरुानदत्याः’ इत्यादशे्च मोक्षधम।े ‘स प्रत्यक्षाः। प्रनि नह सोऽक्षषे्वक्ष्ववाि ् नह , स भवनि र एव ंनविाि ् प्रत्यक्ष ंवदे’ इनि सामवदे ेवारुणशाखाराम।् धमो - भगवाि।् िनिषर ं - धम्य यम।् सव ं जगि ् धत्त इनि धमयाः। ‘पनृर्वी धमयमधू यनि’ इनि प्ररोगान्मोक्षधम।े

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‘भारभिृ ् कनर्िो रोनग’इनि च। ‘भिा य सि ् नभ्ररमाणो नबभनि य’ इनि च श्रनुिाः। ‘धमो वा इदमग्र आसीन्न पनृर्वी ि वारिुा यकाशो ि ब्रह्मा ि रुद्रो िने्द्रो ि दवेा ि ऋषराः सोऽध्यारि ्’ इनि च सामवदे ेबाभ्रव्यशाखाराम॥्02॥ अश्रद्धधािााः परुुषा धम यस्यास्य परन्तप। अप्राप्य मा ंनिवि यन्त ेमतृ्यसुसंारवत्मयनि॥03॥

मरा ििनमद ंसवं जगदव्यक्तमनूि यिा। मत्स्थानि सवयभिूानि ि चाहं िषे्ववनििाः॥04॥ प्रत्यक्षावगमशब्दिेापरोक्षज्ञािसाधित्वमकु्तम।् िज्ज्ञािाद्याह मरनेि। िनहि नकनमनि ि दृश्रि इत्यि आह - अव्यक्तमनूि यिनेि॥04॥ ि च मत्स्थानि भिूानि पश्र म ेरोगमशै्वरम।् भिूभनृ्न च भिूिो ममात्मा भिूभाविाः॥05॥ मत्स्थते्वऽेनप रर्ा पनृर्व्या ंस्पषृ्ट्वा नििानि ि िर्ा मरीत्याह - ि चनेि।

‘ि दृश्रश्चक्षषुा चासौ ि स्पषृ्याः स्पशयििे च’ इनि मोक्षधम।े ‘सजं्ञासजं्ञ’ इनि च। ममात्मा - दहे एव, भिूभाविाः। ‘महानवभिू ेमाहात्म्शरीर’ इनि नह मोक्षधम॥े05॥ रर्ाऽऽकाशनििो नित्य ंवाराुः सवयत्रगो महाि।् िर्ा सवा यनण भिूानि मत्स्थािीत्यपुधारर॥06॥

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मत्स्थानि ि च मत्स्थािीत्यस्य दृष्टान्तमाह - रर्ाऽऽकाश निि इनि। िह्याकाशनििोऽनप वाराः स्पशा यद्याप्नोनि॥06॥ सवयभिूानि कौन्तरे प्रकृनि ंरानन्त मानमकाम।् कल्पक्षर ेपिुिानि कल्पादौ नवसजृाम्यहम॥्07॥

प्रकृनि ंस्वामवष्टभ् नवसजृानम पिुाः पिुाः। भिूग्रामनमम ंकृत्स्नमवश ंप्रकृिवे यशाि॥्08॥ ज्ञािप्रदश यिार् ंप्रलरानद प्रपञ्चरनि - सव यभिूािीत्यानदिा। प्रकृत्यवष्टम्भस्त ु रर्ा कनश्चि ् समर्ोऽनप पादिे गन्तु ंलीलरा दण्डमवष्टभ्ाः गच्छनि। ‘सवयभिूगणरै ुयकं्त िवै ंत्व ंज्ञािमुहयनस’ इनि मोक्षधम।े ‘सवयभिूगणुरै ुयकं्त दवै ंत्व ंज्ञािमुहयनस’ इनि च। ‘नवनदत्वा सप्तसकू्ष्मानण षडङ्गम ् च महशे्वरम।् प्रधािनवनिरोगिाः परं ब्रह्मानधगच्छनि’ इनि च ‘ि कुत्र नचच्छनक्तरिन्तरपा नवहन्यि ेिस्य महशे्वरस्य। िर्ाऽनप मारामनधरुह्य दवेाः प्रवि यि ेसनृष्टनवलापिषे’ु

इनि ऋर्गवदेनखलेष।ु ‘मय्यिन्तगणुऽेिन्त ेगणुिोऽिन्तनवग्रह’े इनि भागवि।े ‘अर् किादुच्यि ेपरं ब्रह्म बहृनि बृहंरनि च’ इत्यार्वयण।े ‘पराऽस्य शनक्तनव यनवधवै श्ररूि’े इनि च। ‘नवष्णोि ुय कं वीरा यनण प्रवोच ंराः पानर् यवानि नवमम ेरजानंस’ ‘ि ि ेनवष्णो जारमािो ि जािो दवे मनहम्नाः परमन्तमाप’

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इत्यादशे्च प्रकृिवे यशादवशम ् - ‘िमवेिैत्सजयि ेसवयकम यण्रिन्तशक्तोऽनप स्वमाररवै। मारावश ंचावश ंलोकमिेि ् ििात्स्रक्षस्यनत्स पासीश नवष्णो’ इनि गौिमनखलेष॥ु07,08॥ ि च मा ंिानि कमा यनण निबद्ननन्त धिञ्जर। उदासीिवदासीिमसकं्त िषे ुकमयस॥ु09॥ उदासीिवि ् , ििदूासीिाः। िदर् यमाह - आसक्तनमनि। ‘अवाक्यिादराः’ इनि नह श्रनुिाः। ‘द्रव्य ंकमय च कालश्च स्वभावो जीव एव च। रदिगु्रहिाः सनन्त ि सनन्त रदुपके्षरा॥इनि भागवि।े रस्यासक्त्यवै सव यकम यशनक्ताः कुिस्तस्य सव यकम यबन्ध इनि भावाः। ‘ि कमयणा वध यि ेिो किीराि ्’ इनि श्रनुिाः। राः कमा यनप निरामरनि कर् ंच िि ् ि ंबद्नानि?॥09॥

मराऽध्यक्षणे प्रकृनिाः सरूि ेसचराचरम।् हिेिुाऽििे कौन्तरे जगनिपनरवि यि॥े10॥ उदासीिवनदनि चिे ् स्वरमवे प्रकृनिाः सरूि इत्यह आह - मरनेि। प्रकृनिसनूिद्रष्टा किा यऽहमवेते्यर् याः। िर्ा च श्रनुिाः - ‘रिाः प्रसिूा जगिाः प्रसिूी िोरिे जीवाि ् व्यससज य भमू्याम।् इनि॥10॥

अवजािनन्त मा ंमढूा मािषुीं ििमुानश्रिम।् परं भावमजािन्तो मम भिूमहशे्वरम॥्11॥ िनहि केनचि ् कर् ंत्वामिजािनन्त ? का च िषेा ंगनिनरनि? आह -अवजािन्तीत्यानदिा। मािषुीं िि ु ं- मढूािा ंमािषुवि ् प्रिीिाम ्, िि ुमिषु्यरपाम।् उकं्त च मोक्षधम े- ‘रनत्कञ्चनदह लोके व ैदहेबद्ध ंनवशापंि।े

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Page 105 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

सवं पञ्चनभरानवष्ट ंभिूरैीश्वरबनुद्धज।ै ईश्वरो नह जगत्स्रष्टा प्रभिुा यरारणो नवराट।् भिूान्तरात्मा वरदाः सगणुो निग ुयणोऽनप च। भिूप्रलरमव्यकं्त शशु्रषूिु ृ यपसत्तम’ इनि। अविारप्रसङे्ग चिैदुक्तम।् अिो िाविाराश्च परृ्क ्शङ्क्या।

‘रपाण्रिकेान्यसजृि ् प्रादुभा यवभवार साः। वाराहं िारनसहंं च वामि ंमािषु ंिर्ा’॥ इनि ित्रवै प्रर्मसग यकाल एवाविाररपनवभक्त्यकु्त्वाेः। अिो ि िषेा ंमािषुत्वानदनव यिा भ्रानन्तम।् भिू ंमहदीश्वरं चनेि भिूमहशे्वरम।् िर्ा नह बाभ्रव्यशाखाराम।् ‘अिाद्यिन्त ंपनरपणू यरपमीश ंवराणामनप दवेवीर यम ्’ इनि। ‘अस्य महिो भिूस्य निश्वनसिम ्’ इनि च। ‘ब्रह्मपरुोनहि ब्रह्मकानरक महारानजक’ इनि च मोक्षधम॥े11॥ मोघाशा मोघकमा यणो मोघज्ञािा नवचिेसाः। राक्षसीमासरुीं चवै प्रकृनि ंमोनहिीं नश्रिााः॥12॥ िषेा ं फलमाह - मोघाशा इनि। वरृ्ाशााः भगविनेषनभराशानसिमामनुष्मकं ि नकनञ्चदाप्यि।े रज्ञानदकमा यनण च िषेा ं वरृ्वै। ज्ञाि ं च। केिानप ब्रह्मरुद्रानदभक्त्याद्यपुारिे ि कनश्चि ् परुुषार् य आमनुष्मकस्तरैाप्यि इत्यर् याः। वक्ष्यनि च -

‘िािहं निषिाः कू्रराि ् ससंारषे’ु इत्यानद। मोक्षधम ेच - ‘कमयणा मिसा वाचा रो निष्यानिष्णमुव्यरम।् मज्जनन्त नपिरस्तस्य िरके शाश्विीाः समााः। रो निष्यानिबधुश्रषे्ठ ंदवे ंिारारण ंहनरम।्

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Page 106 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

कर् ंस ि भवदे्द्वषे्य आलोकान्तस्य कस्यनचि ्’ इनि। ‘सवोतृ्कष्ट ेज्ञािभक्ती नह रस्य िारारण ेपषु्करनवष्टराद्य।े सवा यवमो िशेरिुश्च िनिि ् भ्रणूािन्तघ्नोऽप्यस्य समो ि चवै’

इनि च सामवदे शानण्डल्यशाखाराम।् ‘िषेाच्चदै्यादरो िपृााः’ ‘वरैणे रन्नपृिराः नशशपुालपौण्रसाल्वादरो गनिनवलासनवलोकिाद्याैः। ध्यारन्त आकृिनधराः शरिासिादौ ित्साम्यमापरुिरुक्तनधराः पिुाः नकम ्’ इत्यानद ि ु भगविो भक्तनप्ररत्वज्ञापिार् यम ्, नित्यध्यािस्ततु्यर् ं च। स्वभक्तस्य कदानजच्छापबलाद्द्वनेषणोऽनप भनक्तफलमवे भगवाि ् ददािीनि। भक्ता एव नह ि ेपवू ं नशशपुालादराः। शापबलादवे च िनेषणाः। ित्प्रश्न े पवू यपाष यदत्वशापानदकर्िाच्चिैज्ज्ञारि।े अन्यर्ा नकनमनि िदप्रस्तिुमचु्यिे? भगविाः साम्यकर्ि ं ि ु िेनषणामनप िेषमनिरप्य पवू यििभनक्तफलमवे ददािीनि ज्ञापनरिमु।् ‘ि म े भक्ताः प्रणश्रनि’ इनि वक्ष्यनि | ि च ‘भावो नह भवकारणम ्’ इत्यानद नवरोधाः िेषभानविा ंिषे एव भविीनि नह रकु्तम ् | अन्यर्ा गरुुिनेषणोऽनप गरुुत्व ंभविीत्यनिष्टमापद्यिे | ि चाकृिधीत्व ेनवशषेाः | िषेामवे नहरण्रकनशप्वादीिा ंपापप्रिीिाेः |

‘नहरण्रकनशपशु्चानप भगवनन्नन्दरा िमाः। नवनवक्षरुत्यगाि ् सिूोाः प्रह्लादस्यािभुाविाः’ इनि। ‘रदनिन्दि ् नपिा मह्यम ्’ ‘त्वद्भके्त मनर चाघवाि ्’ इत्यारभ्, ‘ििाि ् नपिा म ेपरूिे दुरन्ताद्दसु्तरादघाि ्’ इनि प्रह्लादिे भगविो वरराचिाच्च। बहष ु ग्रन्थषे ु च निषदेाः। कुत्रनचदवे िदुनक्तनरनि नवशषेाः। रनिसं्तदुच्यि े ित्रवै च निषधे उक्ताः। महािात्पर यनवरोधश्चोक्ताः परुस्ताि।् अरनुक्तमद्यो रनुक्तमन्त्यवे बलवनन्त वाक्यानि। रकु्तरश्चोक्ता अन्यषेाम।् ि चिैषेा ं कानचद्गनिाः। साम्यऽेनप

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वाक्यरोलोकािकूुलाििकूुलरोरिकूुलमवेबलवि।् लोकािकूुलं च भक्तनप्ररत्व ंििेरि।् उकं्त च िषेा ंपवू यभक्तत्वम ् ‘मन्यऽेसरुाि ् भागविासं्त्र्यधीश ेसरंम्भमागा यनभनिनवष्टनचत्ताि ्’ इत्यानद। अिो ि भगविनेषणा ंकानचद्गनिनरनि नसद्धम।् िषेकारणमाह - राक्षसीनमनि॥12॥

महात्मािस्त ुमा ंपार् य दवैीं प्रकृनिमानश्रिााः। भजन्त्यिन्यमिसो ज्ञात्वा भिूानदमव्यरम॥्13॥ ििेर ेनिषन्तीनि दश यनरि ु ंदवेािाह - महात्माि इत्यानदिा॥13॥ सिि ंकीि यरन्तो मा ंरिन्तश्च दृढव्रिााः। िमस्यन्तश्च मा ंभक्त्या नित्यरकु्ता उपासि॥े14॥

ज्ञािरज्ञिे चाप्यन्य ेरजन्तो मामपुासि।े एकत्विे परृ्क्त्विे बहधा नवश्विोमखुम॥्15॥ सव यत्रकै एव िारारणाः निि इत्यकेत्विे। परृ्क्त्विे - सव यिो वलैक्षण्रिे। ‘बहधा नह िस्य रपम ्’। ‘आभानि शिुनमव लोनहिनमवार्ो िीलमर्ाज ुयिम ्’ इनि सित्सजुाि।े ‘दवैमवेापर’े इत्यकु्तप्रकारणे बहवो वा बहधा’॥15॥ अहं क्रिरुहं रज्ञाः स्वधाऽहमहमौषधम।् मन्त्रोऽहमहमवेाज्यमहमनग्नरहं हिम॥्16॥

नपिाऽहमस्य जगिो मािा धािा नपिामहाः। वदे्य ंपनवत्रमोङ्कार ऋक्साम रजरुवे च॥17॥

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प्रनिज्ञाि ं नवज्ञािमाह - अहं क्रिनुरत्यानदिा। क्रिवोऽनग्नष्टोमादराः। रज्ञो - दवेिामनुद्दश्र द्रव्यपनरत्यागाः। ‘उनद्दश्र दवेाि ् द्रव्याणा ंत्यागो रज्ञ इिीनरिाः’ इत्यनभधािाि॥्17॥ गनिभ यिा य प्रभाुः साक्षी निवासाः शरण ंसहुृि।् प्रभवाः प्रलराः िाि ंनिधाि ंबीजमव्यरम॥्18॥ गम्यि ेममुकु्षनुभनरनि गनि। िर्ानह सामवदे ेवानसष्ठशाखाराम ्

‘अर् किादुच्यि ेगनिनरनि। ब्रह्मवै गनिस्तनद्द गम्यि ेपारमकैु्ताः’ इनि साक्षादीक्षि इनि साक्षी। िर्ानह बाष्कलशाखाराम ् - ‘स साक्षानददमदु्राक्षीद्यदद्राक्षीि ् िि ् सानक्षणाः सानक्षत्वम ्’ इनि। शरणमाश्रराः ससंारभीिस्य - ‘परम ंराः परारणम ्’ इनि ह्यकु्तम।् ‘िारारण ंमहाज्ञरे ंनवश्वात्माि ंपरारणम ्’ इनि च। सहंारकाल ेप्रकृत्या जगदत्र निधीरि इनि निधािम।् िर्ा ह्यरृ्गवदेनखलेष ु- ‘अपश्रमप्यर ेमाररा नवश्वकमयण्रदो जगनन्ननहि ंशभु्रचक्षाुः’ इनि॥18॥ िपाम्यहमहं वष ंनिगहृ्णाम्यतु्सजृानम च। अमिृ ंचवै मतृ्यशु्च सदसच्चाहमज ुयि॥19॥ सि ् - कार।ं असि ् कारणम ् - ‘सदनभव्यक्तरपत्वाि ् कार यनमत्यचु्यि ेबधुाैः। असदव्यक्तरपत्वाि ् कारण ंचानप शनब्दिम ्’ इनि ह्यनभधािाि।् ‘असच्च सच्चवै च रनिश्व ंसदसिाः परम ्’ इनि च भारि॥े19॥ त्रनैवद्या मा ंसोमपााः पिूपापा रज्ञनैरष्ट्वा स्वगयनि ंप्रार् यरन्त।े

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ि ेपणु्रमासाद्य सरुने्द्रलोकमश्ननन्त नदव्याि ् नदनव दवेभोगाि॥्20॥

ि ेि ंभकु्त्वा स्वगयलोकं नवशालं क्षीण ेपणु्र ेमत्ययलोकं नवशनन्त। एव ंत्ररीधम यमिपु्रपन्ना गिागि ंकामकामा लभन्त॥े21॥ िर्ाऽनप मद्भजिमवेान्यदवेिाभजिािरनमनि दश यरनि। त्रनैवद्या इत्यानदिा॥20-21॥ अिन्यानश्चन्तरन्तो मा ंर ेजिााः पर ुयपासि।े िषेा ंनित्यानभरकु्तािा ंरोगक्षमे ंवहाम्यहम॥्22॥ अिन्यााः- अन्यदनचन्तनरत्वा। िर्ानह गौिमनखलेष-ु ‘सव ं परत्यज्य मिोगि ं रनििा दवे ं केवलं शदु्धमाद्यम।् र े नचन्तरन्तीह िमवे धीरा अिन्यास्त ेदवेमवेानवशनन्त’ इनि ‘कामाः कालेि महिा एकानन्तत्वाि ् समानहिाैः। शक्यो द्रष्टु ंस भगवाि ् प्रभासन्दृश्रमण्डलाः’ इनि मोक्षधम।े नित्यमनभिाः सव यिो रकु्तािाम॥्22॥

रऽेप्यन्यदवेिा भक्ता रजन्त ेश्रद्धराऽनन्विााः। िऽेनप मामवे कौन्तरे रजन्त्यनवनधपवू यकम॥्23॥ िनहि ‘अहं क्रिाुः’ इत्याद्यसत्यनमत्यि आह - रऽेपीनि॥23॥

अहं नह सवयरज्ञािा ंभोक्ता च प्रभरुवे च। ि ि ुमामनभजािनन्त ित्त्विेािश्च्यवनन्त ि॥े24॥ कारणमाह नवनधपवू यकत्व े- अहं हीनि॥24॥ रानन्त दवेव्रिा दवेाि ् नपि-ृन्यानन्त नपिवृ्रिााः। भिूानि रानन्त भिूजे्या रानन्त मद्यानजिोऽनप माम॥्25॥

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फलं नवनवच्याह -रान्तीनि॥25॥

पत्र ंपषु्प ंफलं िोर ंरो म ेभक्त्या प्ररच्छनि। िदहं भक्त्यपहृिमश्नानम प्ररिात्मिाः॥26॥ दुब यलसै्त्व ं पजूनरिमुशक्यो महत्त्वानदत्याशङ्क्याह - पत्रनमनि॥ि त्वनवनहिपत्रानद। िस्यापराधत्वोके्तवा यराहादौ। भकै्तवाहं िषु्ट इनि भावाः। ‘भक्तनप्रर ंसकललोकिमसृ्कि ंच’ इनि भारि।े ‘एिावािवे लोकेऽनिि ् प ुसंाः स्वार् याः पराः ििृाः। एकान्तभनक्तगोनवन्द ेरि ् सवयत्रात्मदशयिम ्’ इनि भागवि॥े26॥ रत्करोनष रदश्नानस रज्जहुोनष ददानस रि।् रत्तपस्यनस कौन्तरे ितु्करुष्व मदप यणम॥्27॥ अिो रि ् करोनष॥27॥

शभुाशभुफलरैवे ंमोक्ष्यस ेकमयबन्धिाैः। सनं्यासरोगरकु्तात्मा नवमकु्तो मामपुषै्यनस॥28॥

समोऽहं सवयभिूषे ुि म ेिषे्योऽनस्त ि नप्रराः। र ेभजनन्त ि ुमा ंभक्त्या मनर ि ेिषे ुचाप्यहम॥्29॥ िनहि स्नहेानदमत्त्वादल्पभक्तस्यानप कस्यनजद्बह फलं ददानस; नवपरीिस्यानप कस्यनचनिपरीिनमत्यि आह - समोऽहनमनि। िनहि ि भनक्तप्ररोजिनमत्यि आह - र ेभजन्तीनि। मनर ि ेिषे ुचाप्यहनमनि मम ि ेवशास्तषेामहं वश इनि। उकं्त च पङै्गनखलेष-ु

‘र ेव ैभजन्त ेपरम ंपमुासं ंिषेा ंवशाः स ि ुि ेििशाश्च’ इनि। ििशा एव ि े सव े सव यदा। िर्ाऽनप बनुद्धपवू यकत्वाबनुद्धपवू यकत्विे भदेाः। उद्धवानदवि ्, नशशपुालानदवच्च। िच्चोकं्त ित्रवै -

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‘अबनुद्धपवूा यद्यो वशस्तस्य ध्यािाि ् पिुव यशो भवि ेबनुद्धपवू यम ्’ इनि॥29॥ अनप चिे ् सदुुराचारो भजि ेमामिन्यभाक।् साधरुवे स मन्तव्याः सम्यर्गव्यवनसिो नह साः॥30॥ ि भवत्यवे प्रारशस्तद्भक्तो दुराचाराः। िर्ाऽनप बहपणु्रिे रनद कर्नंचद्भवनि िनहि साधरुवे मन्तव्याः॥30॥ नक्षप्र ंभवनि धमा यत्मा शश्वच्छानन्त ंनिगच्छनि। कौन्तरे प्रनिजािीनह ि म ेभक्ताः प्रणश्रनि॥31॥

मा ंनह पार् य व्यपानश्रत्य रऽेनप स्याुः पापरोिराः। नस्त्ररो वशै्रास्तर्ा शदू्रास्तऽेनप रानन्त परा ंगनिम॥्32॥

नकं पिुब्रा यह्मणााः पणु्रा भक्त्या राजष यरस्तर्ा। अनित्यमसखु ंलोकनमम ंप्राप्य भजस्व माम॥्33॥

मन्मिा भव मद्भक्तो मद्याजी मा ंिमसु्करु। मामवेषै्यनस रकु्त्ववैमात्माि ंमत्परारणाः॥34॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंिवमोऽध्याराः॥9॥

कुिाः? नक्षप्र ंभवनि धमा यत्मा। दवेदवेाशंानदष्ववे चिैद्भवनि। उकं्त च शानण्डल्यशाखाराम-्

‘िानवरिो दुश्चनरिान्नाभक्तो िासमानहिाः। सम्यग्भक्तो भविे ् कनश्चिासदुवेऽेमलाशराः। दवेष यरस्तदशंाश्च भवनन्त क्व च ज्ञाििाः’ इनि।

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अिोऽन्याः कनश्चद्भवनि चिे ् डानम्भकत्विे सोऽिमुरेाः। साधारणपापािा ं ि ु सत्सङ्गान्महत्यनप कर्नञ्चद्भनक्तभ यवनि। साधारणभनक्तविेरषेाम।् ‘स शठमनिरुपारनि रोऽर् यिषृ्णा ंिमधमचषे्टमवनैह िास्य भक्तम ्’

इनि नह श्रीनवष्णपुरुाण।े

‘सा श्रद्धधािस्य नववध यमािा नवरनक्तमन्यत्र करोनि प ुसंाम।् इनि च। ‘वदेााः स्वधीिा मम लोकिार् िप्त ंिपो िाििृमकु्तपवू यम।् पजूा ंगरुणा ंसिि ंकरोनम परस्य गहु्य ंि च नभन्नपवू यम।् गपु्तानि चत्वानर रर्ागम ंम ेशत्रौ च नमत्र ेच समोऽनि नित्यम।् ि ंचानप दवे ंशरण ंप्रपन्न एकान्तभाविे िमाम्यजस्रम।् एिनैव यशषेाैः पनरशदु्धसत्त्वाः किान्न पश्ररेमिन्तमिेम ्’ इनि मोक्षधम ेआचारस्य साधित्वोके्तश्च। ज्ञािाभाव ेच सम्यग्भक्त्यभावाि।् िर्ानह गौिमनखलेष-ु ‘नविा ज्ञाि ंकुिो भनक्ताः कुिो भनक्तनव यिा च िि ्’ इनि। ‘भनक्ताः पर ेस्वऽेिभुवो नवरनक्तरन्यत्र चिैि ् नत्रकमकेकालाः’ इनि च भागवि॥े31-34॥

इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेिवमोऽध्याराः॥9॥

आर् दशमोऽध्याराः

उपासिार् ंनवभिूीनव यशषेकारणत्व ंच केषानंचदििे अध्यारिेाह- श्री भगवािवुाच

भरू एव महाबाहो शृण ुम ेपरम ंवचाः। रि ् िऽेहं प्रीरमाणार वक्ष्यानम नहिकाम्यरा॥01॥

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प्रीरमाणार श्रतु्वा सिंोष ंप्राप्नवुि॥े01॥

ि म ेनवदुाः सरुगणााः प्रभव ंि महष यराः। अहमानदनहि दवेािा ंमहषीणा ंच सवयशाः॥02॥ प्रभव ं - प्रभावम ्, मदीरा ंजगदुत्पनत्त ंवा। ििशत्वाि ् िस्यते्यचु्यि।े रद्यनस्त िनहि दवेादरो जािनंि सव यज्ञत्वाि ्, अिो िास्तीनि भावाः। ‘अहमानदनहि’ इनि ितू्पनत्तरनप रस्य वशा कुिस्तस्य जनिनरनि ज्ञापिार् यम।् ‘अहं सव यस्य जगिाः प्रभवाः’ इनि चोक्तम।् उकं्त चिैि ् सव यमन्यत्रानप-

‘को अद्धा वदे क इह प्रवोचि ् कुि आजािा कुि इर ंनवसनृष्टाः। अवा यर्गदवेा अस्य नवसज यििेार् को वदे रि आ बभवू’ इनि। ‘ि ित्प्रभावमषृरश्च दवेा नवदुाः कुिोऽन्यऽेल्पधनृिप्रमाणााः’ इनि ऋर्गवदेनखलेष।ु अन्यस्त्वर्ो ‘रोमामजम ्’ इनि वाक्यादवे ज्ञारि॥े12॥ रो मामजमिानद ंच वनेत्त लोकमहशे्वरम।् असमंढूाः स मत्यषे ुसवयपापाैः प्रमचु्यि॥े03॥ अिश्चषे्टनरिा आनदश्च सव यस्यते्यिानदाः। अजत्विे नसद्धनेरिरस्य॥03॥ बनुद्धज्ञा यिमसमंोहाः क्षमा सत्य ंदमाः शमाः। सखु ंदुाःख ंभवोऽभावो भर ंचाभरमवे च॥04॥ िि ् प्रर्रनि - बनुद्धनरत्यानदिा। कारा यकार यनवनिश्चरो बनुद्धाः। ज्ञाि ं- प्रिीनिाः - ‘ज्ञाि ंप्रिीनिब ुयनद्धस्तकुारा यकार यनवनिणयराः’ इत्यनभधािम।् दमाः - इनंद्ररनिग्रहाः। शमाः - परमात्मनिष्ठिा - ‘शमो मनन्नष्ठिा बदु्धदे यम इनंद्ररनिग्रहाः’ इनि नह भागवि॥े04॥

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Page 114 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अनहंसा समिा िनुष्टस्तपो दाि ंरशोऽरशाः। भवनन्त भावा भिूािा ंमत्त एव परृ्नर्गवधााः॥05॥ िनुष्टरलं बनुद्धाः- ‘अलंबनुद्धस्तर्ा िनुष्टाः’ इत्य इत्यनभधािाि॥्05॥ महष यराः सप्त पवू ेचत्वारो मिवस्तर्ा। मद्भावा मािसा जािा रषेा ंलोक इमााः प्रजााः॥06॥ पवू ेसप्तष यराः- ‘मरीनचरत्रनङ्गरसौ पलुस्त्याः पलुहाः क्रिाुः। वनसष्ठस्य महािजेााः’ इनि मोक्षधमोक्तााः। ि े नह सव यपरुाणषेचू्यन्त।े चत्वाराः प्रर्मााः स्वारम्भवुाद्यााः। िषेा ंहीमााः प्रजााः। िनह भनवष्यिानममााः प्रजा इनि रकु्तम।् नवभागाः प्राधान्य ंच प्रार्नमकत्वादवे भवनि। गौिमानखलेष ुचोक्तम-् ‘स्वारम्भवु ंस्वारोनचष ंरवैि ंच िर्ोत्तमम।् वदे राः स प्रजावाि ्’ इनि। पवूभे्ो ह्यतु्तरा जारन्त इनि च िषेा ं प्राधान्यम।् अजािषे ु च ज्यषै्ठ्यम।् िापसस्य भगवदविारत्वादिनुक्ताः। िच्च भागवि ेनसद्धम।् मािसत्व ंच सवषेा ंमििूामकंु्त भागवि-े

‘ििो मििू ् ससजा यन्त ेमिसा लोकभाविाि ्’ इनि। अन्यपतु्रत्व ं त्वपनरत्वज्यानप शरीरं िद्भवनि। प्रमाण ं चोभरनवधवाक्यान्यर्ािपुपनत्तरवे। ‘पवू’े इनि नवशषेणाच्चिैनत्सनद्धाः। मत्तो भावो रषेा ंि ेमद्भावााः। र ेि ेब्रह्मणो मिसा जािास्त ेमत्त एव जािा इनि भावाः॥06॥ एिा ंनवभनूि ंरोग ंच मम रो वनेत्त ित्त्विाः। सोऽनवकम्पिे रोगिे रजु्यि ेिात्र सशंराः॥07॥

अहं सवयस्य प्रभवो मत्ताः सवं प्रवि यि।े इनि मत्वा भजन्त ेमा ंबधुा भावसमनन्विााः॥08॥

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मनच्चत्ता मद्गिप्राणा भोदरन्ताः परस्परम।् कर्रन्तश्च मा ंनित्य ंिषु्यनन्त च रमनन्त च॥09॥

िषेा ंसििरकु्तािा ंभजिा ंप्रीनिपवू यकम।् ददानम बनुद्धरोग ंि ंरिे मामपुरानन्त ि॥े10॥

िषेामवेािकुम्पार् यमहमज्ञािज ंिमाः। िाशराम्यात्मभाविो ज्ञािदीपिे भास्विा॥11॥ सनन्त च भजन्ताः केनचनदत्याह - अहनमत्यानदिा॥11॥ अज ुयि उवाच

परंब्रह्म परंधाम पनवत्र ंपरम ंभवाि।् परुुष ंशाश्वि ंनदव्यमानददवेमज ंनवभमु॥्12॥ ब्रह्म - पनरपणू यम ् -

‘अर् किादुच्यि ेपरं ब्रह्म। बहृनि बृहंरनि च’ इनि श्रनुिाः। ‘बहृ बृहं बनृह वदृ्धौ’ इनि च पठनन्त। ‘परम ंरो महद्ब्रह्म’ इनि च। नवनवधमासीनदनि नवभाुः। िर्ानह वारुणशाखाराम ् - ‘नवभ ुप्रभ ुप्रर्म ंमहेिावि इनि। स ह्यवे पाभवनिनवधोऽभवि ्’ इनि। ‘सोऽकामरि बह स्या ंप्रजाररे’ इत्यादशे्च॥12॥ अहस्त्वामषृराः सव ेदवेनष यिा यरदस्तर्ा। अनसिो दवेलो व्यासाः स्वर ंचवै ब्रवीनष म॥े13॥

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सवयमिेदृि ंमन्य ेरन्मा ंवदनस केशव। ि नह ि ेभगवि ् व्यनकं्त नवदुदवेा ि दािवााः॥14॥

स्वरमवेात्मिाऽऽत्माि ंवते्थ त्व ंपरुुषोत्तम। भिूभावि भिूशे दवेदवे जगत्पि॥े15॥

वकु्तमहयस्यशषेणे नदव्या ह्यात्मनवभिूराः। रानभनव यभनूिनभलोकानिमासं्त्व ंव्याप्य निष्ठनस॥16॥ नवभिूरो - नवनवधभिूराः॥16॥ कर् ंनवद्यामहं रोनगसं्त्वा ंसदा पनरनचन्तरि।् केष ुकेष ुच भावषे ुनचन्तोऽनस भगवन्मरा॥17॥

नवस्तरणेात्मिो रोग ंनवभनूि ंच जिाद यि। भरूाः कर्र िनृप्तनहि शृण्विो िानस्त मऽेमिृम॥्18॥ ि जारिऽेद यरनि च ससंारं इनि जिाद यिाः। िर्ाच बाब्रव्यशाखाराम ् -

‘स भिूाः स जिादयि इनि स ह्यासीि ् स िासीि ् सोऽदयरनि’ इनि च॥18॥ श्री भगवािवुाच

हन्त ि ेकर्नरष्यानम नदव्या ह्यात्मनवभिूराः। प्राधान्यिाः कुरुश्रषे्ठ िास्त्यन्तो नवस्तरस्य म॥े19॥

अहमात्मा गडुाकेश सवयभिूाशरनििाः। अहमानदश्च मध्य ंच भिूािामन्त एव च॥20॥

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आनदत्यािामहं नवष्णजु्योनिषा ंरनवरंशमुाि।् मरीनचम यरुिामनि िक्षत्राणामहं शशी॥21॥ नवष्णाुः सवयव्यानपत्वप्रवनेशत्वादाेः। ‘नवष्छ्लृ व्याप्तौ’ , ‘नवश प्रवशेि’े इनि नह पठनन्त। ‘गनिश्च सवयभिूािा ंप्रजािा ंचानप भारि। व्याप्तौ म ेरदसी पार् य कानन्तश्चाभ्नधका मम। अनधभिूनिनवष्टश्च िनदच्चशु्चानप भारि। क्रमणाच्चाप्यहं पार् य नवष्णनुरत्यनभसनंज्ञिाः’ इनि मोक्षधम॥े21॥ वदेािा ंसामवदेोऽनि दवेािामनि वासवाः। इनन्द्रराणा ं मिश्चानि भिूािामनि चिेिा॥22॥

रुद्राणा ंशङ्करश्चानि नवत्तशेो रक्षरक्षसाम।् वसिूा ंपावकश्चानि मरेुाः नशखनरणामहम॥्23॥

परुोधसा ंच मखु्य ंमा ंनवनद्ध पार् य बहृस्पनिम।् सिेािीिामहं स्कन्दाः सरसामनि सागराः॥24॥

महषीणा ंभगृरुहं नगरामस्म्यकेमक्षरम।् रज्ञािा ंजपरज्ञोऽनि िावराणा ंनहमालराः॥25॥

अश्वत्थाः सवयवकृ्षाणा ंदवेषीणा ंच िारदाः। गन्धवा यणा ंनचत्ररर्ाः नसद्धािा ंकनपलो मनुिाः॥26॥ सखुरपाः पाल्यि ेलीरि ेच जगदििेनेि कनपलाः -

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‘प्रीनिाः सखु ंकमािदंाः’ इत्यनभधािाि।् ‘प्राणो ब्रह्म कं ब्रह्म ख ंब्रह्म’ इनि च। ऋनष ंप्रसिू ंकनपलं रस्तमग्र ेज्ञािनैभ यभनि य जारमाि ंच पश्रिे।् सखुादिन्ताि ् पालिाल्लापिाच्च र ंव ैदवे ंकनपलमदुाहरनन्त’ इनि च बाभ्रव्यशाखाराम॥्26॥ उच्छाैःश्रवसमश्वािा ंनवनद्ध माममिृोद्भवम।् ऐरावि ंगजने्द्राणा ंिराणा ंच िरानधपम॥्27॥

आरधुािामहं वज्र ंधिेिूामनि कामधकु।् प्रजिश्चानि कन्दप याः सपा यणामनि वासनुकाः॥28॥

अिन्तश्चानि िागािा ंवरुणो रादसामहम।् नपि-ृणामर यमा चानि रमाः सरंिमामहम॥्29॥

प्रह्लादश्चानि दतै्यािा ंकालाः कलरिामहम।् मगृाणा ंच मगृने्द्रोऽहं विैिरेश्च पनक्षणाम॥्30॥

पविाः पविामनि रामाः शस्त्रभिृामहम।् झषाणा ंमकरश्चानि स्रोिसामनि जाह्नवी॥31॥ आिन्दरपत्वाि ् पणू यत्वाि ् लोकरमणाच्च रामाः।

‘आिन्दरपो निष्परीमाण एष लोकश्चिैिाद्रमि ेििे रामाः’ इनि शानण्डल्यशाखाराम।् रश्च अमश्चनेि व्यतु्पनत्ताः॥31॥

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सगा यणामानदरन्तश्च मध्य ंचवैाहमज ुयि। अध्यात्मनवद्या नवद्यािा ंवादाः प्रवदिामहम॥्32॥

अक्षराणामकारोऽनि िन्द्वाः सामानसकस्य च। अहमवेाक्षराः कालो धािाऽहं नवश्विोमखुाः॥33॥

मतृ्याुः सवयहरश्चाहमदु्भवश्च भनवष्यिाम।् कीनि याः श्रीवा यच िारीणा ंिनृिमधेा धनृिाः क्षमा॥34॥

बहृत्साम िर्ा साम्ना ंगारत्री िन्दसामहम।् मासािा ंमाग यशीषोऽहमिृिूा ंकुसमुाकराः॥35॥

द्यिू ंिलरिामनि िजेस्तजेनस्विामहम।् जरोऽनि व्यरसारोऽनि सत्त्व ंसत्त्वविामहम॥्36॥

वषृ्णीिा ंवासदुवेोऽनि पाण्ढवािा ंधिञ्जराः। मिुीिामप्यहं व्यासाः कवीिामशुिा कनवाः॥37॥ आच्छादरनि सव ंवासरनि वसनि च सव यत्रनेि वासाुः। दवेशब्दार् य उक्ताः परुस्ताि।् ‘िादरानम जगनिश्व ंभतू्वा सरू य इवाशंनुभाः। सवयभिूानदवासश्च वासदुवेस्तिो ह्यहम ्’। इनि मोक्षधम।े नवनशष्टाः सवयिादासमन्ताि ् स एवनेि व्यासाः। िर्ा चाग्नरेशाखाराम।् ‘स व्यासो वीनि िम ंस व ैनव सोऽधस्ताि ् स उत्तरिाः स पश्राि ् स पवू यिाि ् स दनक्षणिाः स उत्तरि इनि’ इनि।

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‘रच्च नकनञ्चि ् जगत्सवं दृश्रि ेश्ररूिऽेनप वा। अन्तबयनहश्च िि ् सवं व्याप्य िारारणाः नििाः’ इनि च॥37॥ दण्डो दमरिामनि िीनिरनि नजगीषिाम।् मौि ंचवैानि गहु्यािा ंज्ञाि ंज्ञािविामहम ् ॥38॥

रच्छानप सवयभिूािा ंबीज ंिदहमज ुयि। ि िदनस्त नविा रि ् स्यान्मरा भिू ंचराचरम॥्39॥ मरा नविा रदू्बि ं स्याि ् िन्नानस्त। ‘नवश्वरप अिन्तगि े अिन्तभाग अिन्तग अिन्त’ इत्यानद नह मोक्षधम॥े39॥ िान्तोऽनस्त मम नदव्यािा ंनवभिूीिा ंपरन्तप। एष िदू्दशेिाः प्रोक्तो नवभिूनेव यस्तरो मरा॥40॥

रद्यनिभनूिमत्सत्त्व ंश्रीमदूनज यिमवे वा। िि ् िदवेावगच्छ त्व ंमम िजेोंश सम्भवम॥्41॥ रद्यनिभनूिमनदनि नवस्तराः। नवष्ण्वादीनि ि ु स्वरपाण्रवे। अन्यानि ि ु िजेोंऽशरकु्तानि। िर्ाच पनैङ्गनखलेष ु-

‘नवशषेका रुद्रवनै्यने्द्रदवेराजन्याद्या अशंरिुा अन्यजीवााः। कृष्णव्यासौ रामकृष्णौ च रामकनपलरज्ञप्रमखुााः स्वर ंसाः’ इनि। ‘स एवकैो भाग यवदाशरनर्कृष्णाद्यास्त्वशंरिुा अन्यजीवााः’ इनि गौिमनखलेष।ु ‘ऋषरो मिवो दवेा मिपुतु्रा महौजसाः। कलााः सव ेहररेवे सप्रजापिराः ििृााः।

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एि ेस्वाशंकालााः प ुसंाः कृष्णस्त ुभगवाि ् स्वरम ्’॥ इनि च भागवि ेऋष्यादीिशंरिुत्विेोक्त्वा वराहादीि ् स्वरपत्विेाह। िशुब्द एवार्।े अन्यस्त ुनवशषेो ि कुत्राप्यवगिाः। अशंत्व ंच ित्राप्यवगिम ् ‘उद्बबहा यत्मिाः केशौ’ इनि। ‘मडृरनन्त’ इनि बहवचि ंचारकु्तम।् िह्यन्तराऽन्यदुक्त्वा पवू यमपरामशृ्र िनिरोच्यमािा दृष्टा कुत्रनचि॥्41॥

अर्वा बहििैिे नकं ज्ञाििे िवाज ुयि। नवष्टभ्ाहनमद ंकृत्स्न ंएकाशंिे नििो जगि॥्42॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीरा ंदशमोऽध्याराः ॥10॥ नकनमनि वक्ष्यमाणप्राधान्यज्ञापिार् यम।् ि िकू्तनिष्फलत्वज्ञापिार। िर्ा सनि िोच्यिे। ‘अज्ञात्विै ंसवयनवशषेरकंु्त दवे ंपरं को नवमचु्यिे बन्धाि ्’ इनि ऋर्गवदेनखलेष।ु त्व ंि ुबहफलप्रानप्तरोर्गर इनि िवनेि नवशषेणम।् अन्यस्तरु् यत्विे प्रनसद्धश्चकैत्र नकंशब्दाः- ‘रागिषेौ रनद स्यािा ंिपसा नकं प्ररोजिम।् िावभुौ रनद ि स्यािा ंिपसा नकं प्ररोजिम ्’॥ इत्यादौ प्राधान्य ंच नसद्धमकेत्र दश यिाि ् सव यत्र भगवद्दश यिस्य ‘रो मा ंपश्रनि सव यत्र’ इत्यादौ॥42॥

इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेदशमोऽध्याराः॥10॥

अर् एकादशोऽध्याराः

रर्ा श्रिु ेध्याि ंशक्य ंिर्ा स्वरपनिनिरििेाध्यारिेोच्यि-े अज ुयि उवाच

मदिगु्रहार परम ंगहु्यमध्यात्मसनंज्ञिम।् रि ् त्वरोकं्त वचस्तिे मोहोऽर ंनवगिो मम॥01॥

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भवाप्यरौ नह भिूािा ंश्रिुौ नवस्तरशो मरा। त्वत्ताः कमलपत्राक्ष माहात्म्मनप चाव्यरम॥्02॥

एवमिेद्यर्ाऽऽत्थ त्वमात्माि ंपरमशे्वर। द्रष्टनुमच्छानम ि ेरपमशै्वरं परुुषोत्तम॥03॥

मन्यस ेरनद िच्छक्य ंमरा द्रष्टनुमनि प्रभो। रोगशे्वर ििो म ेत्व ंदशयरात्मािमव्यरम॥्04॥ प्रभाुः - समर् याः - ‘िानस्तििाि ् परं भिू ंपरुषाि ैसिाििाि ्’ इनि नह मोक्षधम।े ‘प्रभरुीशाः समर् यश्च’ इत्यनभधािाि॥्04॥ श्री भगवािवुाच

पश्र म ेपार् य रपानण शिशोऽर् सहस्रशाः। िािानवधानि नदव्यानि िािावणा यकृिीनि च॥05॥

पश्रानदत्याि ् वसिू ् रुद्रािनश्विौ मरुिस्तर्ा। बहून्यदृष्टपवूा यनण पश्राश्चरा यनण भारि॥06॥

इहकैि ंजगि ् कृत्स्न ंपश्राद्य सचराचरम।् मम दहे ेगडुाकेश रच्छान्यद्द्रष्टनुमच्छनस॥07॥

ि ि ुमा ंशक्यस ेद्रष्टमुििेवै स्व चक्षषुा। नदव्य ंददानम ि ेचक्षाुः पश्र म ेरोगमशै्वरम॥्08॥

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सञ्जर उवाच एवमकु्त्वा ििो राजि ् महारोगशे्वरो हनराः। दशयरामास पार्ा यर परम ंरपमशै्वरम॥्09॥ हनराः सव यरज्ञानदभागहानरत्वाि-्

‘इडोपहूि ंगहेषे ुहर ेभाग ंक्रिषु्वहम।् वणो म ेहनरिाः श्रषे्ठस्तिाद्धनरनरनि ििृाः’ इनि मोक्षधम॥े09॥ अिकेवक्त्रिरिमिकेाद्भिुदश यिम।् अिकेनदव्याभरण ंनदव्यािकेोद्यिारधुम॥्10॥

नदव्यमाल्याम्भरधरं नदव्यगन्धािलेुपिम।् सवा यश्चर यमर ंदवेमिन्त ंनवश्विोमखुम॥्11॥ सवा यश्चर यमर ं- सवा यश्चरा यत्मकम॥्11॥

नदनव सरू यसहस्रस्य भवदे्यगुपदुनत्थिा। रनद भााः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मिाः॥12॥ सहशब्दोऽिन्तवाची। िदनप ‘पाकशासिनवक्रमाः’इत्यानदवि ् प्रत्यारिार् यमवे।िर्ानह ऋर्गवदेनखलेष ु-

‘अिन्तशनक्ताः परमोऽिन्तवीर याः सोऽिन्तिजेाश्च ििस्तिोऽनप’ इनि। महािात्परा यच्च प्राबल्यम।् ि च पनरमाणोक्त्या नकनञ्चि ् प्ररोजिम ् ॥12॥

ित्रकैि ंजगि ् कृत्स्न ंप्रनवभक्तमिकेधा। अपश्रद्दवेदवेस्य शरीर ेपाण्डवस्तदा॥13॥

ििाः स नविरानवष्टो हृष्टरोमा धिञ्जराः। प्रणम्य नशरसा दवे ंकृिाञ्जनलरभाषि॥14॥

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अज ुयि उवाच पश्रानम दवेासं्तव दवे दहे ेसवांस्तर्ा भिूनवशषेसङ्घाि।् बह्माणमीश ंकमलासििमषृींश्च सवा यिरुगाशं्च नदव्याि॥्15॥

अिके बाहूदरवक्त्रिते्र ंपश्रानम त्वा ंसवयिोऽिन्तरपम।् िान्त ंि मध्य ंि पिुस्तवानद ंपश्रानम नवश्वशे्वर नवश्वरप॥16॥ अिकेशब्दोऽिन्तवाची। ‘अिन्तबाहम ्’ इनि च वक्ष्यनि। ‘सव यिाः पानणपाद ंिि ्’ इत्यानद च।

‘नवश्विश्चक्षरुुि नवश्विोमखुो नवश्विोबाहरुि नवश्विस्पाि।् स ंबाहभ्ा ंधमनि स ंपित्र्यदै्या यवापनृर्वी जिरि ् दवे एकाः’ इनि ऋर्गवदे।े ‘नवश्विश्चक्षरुुि नवश्विोमखुो नवश्विोहस्त उि नवश्विस्पाि।् स ंबाहभ्ा ंिमनि स ंपित्र्यदै्या यवाभमूी जिरि ् दवे एकाः’ इनि रजवुदे ेच। नवश्वशब्दश्चािन्तवाची-

‘सवं समस्त ंनवश्व ंचािन्त ंपणू यमवे च’ इत्यनभधािाि।् ‘अिन्तपाद ंिमिन्तबाहमिन्तवकं्त्र परुुरपमकेम ्’ इनि च बाभ्रव्यशाखाराम।् महत्वाद्यनुक्तस्त ु िदात्मकत्विेानप भवनि। अन्यर्ा ‘अिानदमि ् परं ब्रह्म’ इत्याद्यरकंु्त स्याि।् एकत्रािन्तान्यस्य रपाणीत्यिन्तरपाः। अन्यत्र त्वपनरमाण इनि। उकं्त ह्यभुरमनप ‘पराि ् परं रन्महिो महान्तम ्’, ‘रदकेमव्यक्तमिन्तरपम ्’ इनि रजवुदे।े अव्यक्तास्यािन्तत्वादवे महिो महत्त्वऽेपनरमरेत्व ंनसद्द्यनि। ‘महािं ंच समावतृ्य प्रधाि ंसमवनििम।्

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Page 125 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अिन्तस्य ि िस्यािंाः सङ्ख्याि ंचानप नवद्यि’े इत्यानदत्यपरुाण।े िानि चकैैकानि रपाण्रिन्तािीनि चकैत्र भवनन्त। असङ्ख्यािा ज्ञािकास्तस्य दहेााः सव ेपरीमाणनववनज यिाश्च’ इनि ह्यरृ्गवदेनखलेष।ु ‘रावाि ् वा अरमाकाशस्तावािषेोऽन्तहृयदर आकाशाः। उभ ेअनिि ् द्यावापनृर्वी अन्तरवे समानहि।े उभावनग्नश्च वारशु्च सरू यचन्द्रमसावभुौ’ इनि च। ‘कृष्णस्य गभयजगिोऽनिभरावसन्नपानष्णयप्रहारपनररुर्गणफणािपत्रम।्

इनि च भागवि।े

ि चिैदरकु्तम।् अनचन्त्यशनक्तत्वादीश्वरस्य।‘अनचन्त्यााः खलु र ेभावा ि िासं्तकेण रोजरिे ्’ इनि श्रीनवष्णपुरुाण।े ‘िषैा िकेण मनिरापिरेा’ इनि च श्रनुिाः। अनिप्रसङ्गस्त ुमहािात्पर यवशािाक्यबलाच्चापिरेाः। िनह घटवि ् कनश्चदनप पदार्ो ि दृष्ट इत्यिेाविा प्रमाणदृष्टाः स निरानक्ररि।े केषनुचि ् पदार्षे ुवाक्यव्यविाऽनचन्त्यशनक्तत्वाभावादङ्गीनक्ररि।े

‘गणुााः श्रिुााः सनुवरुद्दाश्च दवे ेसन्त्यश्रिुा अनप िवैात्र शङ्का। नचन्त्या अनचन्ताश्च िर्वै दोषााः श्रिुाश्च िाज्ञनैहि िर्ा प्रिीिााः। एव ंपरऽेन्यत्र श्रिुाश्रिुािा ंगणुागणुािा ंच क्रमाद्व्यविा’

इनि जाबालनखलश्रिुशे्च।

उपचारत्वपनरहारार ‘ि मध्यम ्’ इनि। अन्यर्ाऽऽद्यन्ताभाविेवै िनत्सद्धाेः। नवश्वरपाः - पणू यरपाः- ‘स नवश्वरपोऽििूरपो रिोऽर ंसोऽिन्तो िनह िाशोऽनस्त िस्य’ इनि शानण्डल्यशाखाराम॥्16॥

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Page 126 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

नकरीनटि ंगनदि ंचनक्रण ंच िजेोरानश ंसवयिो दीनप्तमन्तम।् पश्रानम त्वा ंदुनि यरीक्ष्य ंसमन्ता- दीप्तािलाकयद्यनुिमप्रमरेम॥्17॥ अिलाकयद्यनुिनमत्यकेु्त नमित्वशङ्कामपाकरोनि - अप्रमरेनमनि॥17॥

त्वमक्षरं परम ंवनेदिव्य ंत्वमस्यनवश्वस्य परं निधािम।् त्वमव्यराः शाश्विधम यगोप्ता सिाििस्त्व ंपरुुषो मिो म॥े18॥

अिानदमध्यान्तमिन्तवीर यमिन्तबाह ंशनशसरू यिते्रम।् पश्रानम त्वा ंदीप्तहिाशवकं्त्र स्विजेसा नवश्वनमद ंिपन्तम॥्19॥ शनशसरू यिते्रनमत्यनप’अहं क्रिाुः’ इत्यानदवि।् ‘िदङ्गजााः सवयसरुादरोऽनप ििाि ् िदङे्गत्यनृषनभाः स्तिुास्त’े इनि ऋर्गवदेनखलेष।ु ‘चन्द्रमा मिसो जािश्चक्षोाः सरूो अजारि’ इनि च। बहरपत्वाद्बह्वानश्रित्त्व ंच िषेा ंरकु्तम॥्19॥

द्यावापनृर्व्योनरदमन्तरं नह व्याप्त ंत्वरकेैि नदशश्च सवा याः। दृष्ट्वाऽद्भिु ंरपमगु्र ंिवदे ं लोकत्रर ंप्रव्यनर्ि ंमहात्मि॥्20॥ ‘मािानपत्रोरन्तरङ्गाः स एकरपणे चान्याैः सवयगिाः स एकाः’ इनि वारुणश्रिुरेकेेि रपणे द्यावापनृर्व्योरन्तरं व्याप्नोिीनि। ‘पश्र म ेपार् य रपानण’ इनि बहूनि नह रपानण प्रनिज्ञािानि। मािानपिरौ च पनृर्वीद्यावौ ‘मा िो मािा पनृर्वी दुम यिौ धाि ् ‘ ‘मध’ु द्यौरस्त ु

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Page 127 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िाः नपिा’ इत्यानद प्ररोगाि।् ि ि ु निरमिो भरप्रद ं ित्स्वरपम।् िारदस्य िदभावाि।् केषानंचि ् िर्ा दश यरनि भगवाि।् ‘प्रीरनन्त केनचि ् िस्य रपस्य दृष्टौ नवभनेि कनश्चदभ्स ेसवयिनृप्ताः’ इनि नह वारुणशाखाराम।् ि ि ुि ंसव ेपश्रनन्त अदृष्ट्वाऽनप िनन्नरप्य भर ेद्रष्टसु्तर्ा प्रनिभानि।

िर्ाच गौिमनखलषे ु-

दृष्ट्वा दवे ंमोदमािा अदृष्ट्वाऽप्यिेद्भरानद्बभ्िो दृष्टवि ् ि।े पश्रनन्त िन्न्यस्तचक्षमु ुयखासं्त ुिनिन्नवेिै ेमिसो गित्वाि ्’ इनि॥20॥ अमी नह त्वा ंसरुसङ्घा नवशनन्त केनचद्भीिााः प्राञ्जलरो गणृनन्त। स्वस्तीत्यकु्त्वा महनष यनसद्ध सघंााः स्तवुनन्त त्वा ंस्तनुिनभाः पशु्कलानभाः॥21॥

रुद्रानदत्या वसवो र ेच साध्या नवश्वऽेनश्विौ मरुिश्चोष्मपाश्च। गन्धवयरक्षासरुनसद्धसङ्घा वीक्षन्त ेत्वा ंनवनििाश्रवै सव॥े22॥

रप ंमहत्त ेबहवक्त्रिते्र ंमहाबाहो बहबाहूरुपादम।् बहूदरं बहदषं्ट्राकराळं दृष्ट्वा लोकााः प्रव्यनर्िास्तर्ाऽहम॥्23॥

िभाःस्पशृ ंदीप्तमिकेवणं व्यात्तािि ंदीप्तनवशालिते्रम।् दृष्ट्वानह त्वा ंप्रव्यनर्िान्तरात्मा धनृि ंि नवन्दानम शम ंच नवष्णो॥24॥

दषं्ट्राकराळानि च ि ेमखुानि दृष्ट्ववै कालािळसनन्नभानि। नदशो ि जाि ेि लभ ेच शमय प्रसीद दवेशे जगनन्नवास॥25॥

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अमी च त्वा ंधिृराष्ट्रस्य पतु्रााः सव ेसहवैावनिपालसङ्घाैः। भीष्मो द्रोणाः सिूपतु्रस्तर्ाऽसौ सहािदीररैनप रोधमखु्याैः॥26॥

वक्त्रानण ि ेत्वरमाणा नवशनन्त दषं्ट्राकराळानि भरािकानि। केनचनिलग्ना दशिान्तरषे ुसन्दृश्रन्त ेचनूण यिरैुत्तमाङ्गैाः॥27॥

रर्ा िदीिा ंबहवोऽम्बवुगेााः समदु्रमवेानभमखुा द्रवनन्त। िर्ा िवानम िरलोकवीरा नवशनन्त वक्त्राण्रनभनवज्वलनन्त॥28॥

रर्ा प्रदीप्त ंज्वलि ंपिङ्गा नवशनन्त िाशार समदृ्धवगेााः। िर्वै िाशार नवशनन्त लोकााः स्तवानप वक्त्रानण समदृ्धवगेााः॥29॥

लेनलह्यस ेग्रसमािाः समन्ताि ् ल्लोकाि ् समग्राि ् वदिजै्व यलनद्भाः। िजेोनभरापरू य जगत्समग्र ंभासस्तवोग्रााः प्रिपनन्त नवष्णोाः॥30॥

आख्यानह म ेको भवािगु्ररपो िमोऽस्त ुि ेदवेवर प्रसीद। नवज्ञािनुमच्छानम भवन्तमाद्य ंि नह प्रजािानम िव प्रवनृत्तम॥्31॥ धमा यन्तरज्ञािार् यमवे को भवानिनि पचृ्छनि। रर्ा कनश्चि ् नकनञ्चन्नामानधकं जािन्ननप जानिज्ञािार् ंपचृ्छनि कस्त्वनमनि। रनद िमवे ि जािानि िनहि नवष्णानवत्यवे सम्बोधि ंि स्याि।् ‘त्वमक्षरं’ इत्यानद च॥31॥

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श्रीभगवािवुाच कालोऽनि लोकक्षरकृि ् प्रवदृ्धो लोकाि ् समाहि ुयनमह प्रवतृ्ताः। ऋिऽेनप त्वा ंि भनवष्यनन्त सव ेरऽेवनििााः प्रत्यिीकेष ुरोधााः॥32॥ कालशब्दो जगद्बन्दिच्छदेिज्ञािानदसव यभगवद्धमयवाची। ‘कल बन्धि’े ‘कल च्छदेि’े ‘कल ज्ञाि’े ‘कल कामधिेाुः’ इनि च पठनन्त। प्रनसद्दशे्च स शब्दो भगवनि। ‘निरि ंकालपाशिे बद्ध ंशक्र नवकत्थस।े अर ंस परुुषाः श्रामो लोकस्य हरनि प्रजााः। बद्ध्वानिष्ठनि मा ंरौद्राः पशिू ् रशिरा रर्ा’ इनि मोक्षधम ेनवष्णिुा बद्धो बनलवयनक्त। ‘नवष्णौ चाधीश्वर ेनचत्त ंधाररि ् कालनवग्रह’े इनि नह भागवि।े प्रवदृ्धाः - पनरपणूोऽिानदवा य। ‘ऋि ंच सत्य ंचाभीद्धाि ्’ इनि नह श्रनुिाः। ‘एिन्महद्बिूमिन्तम ्’ इनि च। ‘प्र नवष्णरुस्त ुिवसस्तवीराि ् त्वषे ंह्यस्य िनवरस्य िाम’ इनि च। िि ुवध यिम ् -

‘िासौ जजाि ि मनरष्यनि िधैिऽेसौ’ इनि नह भागवि।े ‘रस्य ंनदव्य ंनह िदू्रप ंक्षीरि ेवध यि ेि च’ इनि मोक्षधम।े ‘ि कमयणा’ इनि ि ु कमयणाऽनप ि , नकम ु स्वरनमनि। लोकाि ् समाहि ुयनमह नवशषेणे प्रवृत्ताः। भ्रािादींश्चि य इत्यनपशब्दाः प्रत्यिीकत्व ंि ुपरस्परिरा। सवऽेनप नह ि भनवष्यनन्त। अक्षोनहण्रानदभदेिे बहवचि ंच रकंु्त॥32॥

ििात्वमनुत्तष्ठ रशो लभस्व नजत्वा शत्रिू ् भङु्क्ष्व राज्य ंसमदृ्धम।् मरवैिै ेनिहिााः पवू यमवे निनमत्तमात्र ंभव सव्यसानचि॥्33॥

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Page 130 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

द्रोण ंच भीष्म ंच जरद्रि ंच कण ंिर्ाऽन्यािनप रोधवीराि।्मरा हिासं्त्व ंजनह मा व्यनर्ष्ठा रधु्यस्व जिेानस रण ेसपत्नाि॥्34॥ रोऽस्य नशरनश्चन्न ं भमूौ पािरनि िनच्छरो भते्स्यिीनि िनत्पिवु यराज्जरद्रर्ो नवशषेणेोक्ताः। सवरा वासवी शनक्तनरनि कण याः॥34॥ सञ्जर उवाच

एिच्छृत्वा वचि ंकेशवस्य कृिाञ्जनलवपेमािाः नकरीटी। िमसृ्कत्वा भरू एवाह कृष्ण ंसगद्गद ंभीिभीिाः प्रणम्य॥35॥ अज ुयि उवाच

िाि ेहृषीकेश िव प्रकीत्या य जगत्प्रहृष्यत्यिरुज्यि ेच। रक्षानंस भीिानि नदशो द्रवनन्त सव ेिमस्यनन्त च नसद्धसङ्घााः॥36॥ रदिेिक्ष्यमाण ंिि ् िाि ेरकु्तमवेते्यर् याः। अनग्नषोमाद्यन्तरा यनमिरा जगद्दष यणाि ् हृषीकेशाः। केशत्व ंत्वशंिूा ं िनन्नरन्ततृ्वादाेः। प्रमाण ं ि ु ‘शनशसरू यिते्रम ्’ इत्यत्रोक्तम।् हृषीकाणानमनन्द्रराणामीशत्वाच्च हृषीकेशाः। िषेा ं नवशषेि ईशत्व ं च ‘राः प्राण े निष्ठि ्’ इत्यादौ नसद्धम।् ‘ि म े हृषीकानण पिन्त्यसत्पर्’े इत्यानद प्ररोगाच्च। इिरोऽर्ो मोक्षधम ेनसद्धाः -

‘सरू यचन्द्रमसौ शश्वि ् केशमै ेअशंसुनंज्ञिाैः। बोधरि ् िापरशं्चवै जगदुत्पद्यि ेपरृ्क।् बोधिाि ् िापिाच्चवै जगिो हष यसम्भवाि।् अनग्नषोमकृिरैनेभाः कमयनभाः पाण्डुिन्दि। हृषीकेशोऽहमीशािो वरदो लोकभाविाः’ इनि॥36॥ किाच्च ि ेि िमरेि ् महात्मि ् गरीरस ेब्रह्मणोऽप्यानदकत्र।े

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Page 131 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अिन्त दवेशे जगनन्नवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं रि॥्37॥ कर् ं िाि इनि ? िदाह - किानदत्यानदिा। पणू यश्चासौ आत्मा चनेि महात्मा। आत्मशब्दश्चोक्तो भारि े-

‘रच्चाप्नोनि रदादत्त ेरच्चानत्त नवषरानिह। रच्चास्य सन्तिो भावस्तिादात्मनेि भण्रि’े इनि। ित्परं - सदसिोाः परम।्

‘असच्च सच्चवै च रनिश्व ंसदसिाः परम ्’ इनि च भारि॥े37॥ त्वमानददवेाः परुुषाः परुाणस्त्वमस्य नवश्वस्य परं निधािम।् वते्ताऽनस वदे्य ंच परं च धाम त्वरा िि ंनवश्वमिन्तरप॥38॥

वाररु यमोऽनग्नव यरुणाः शशाङ्काः प्रजापनिस्त्व ंप्रनपिामहश्च। िमो िमस्तऽेस्त ुसहस्रकृत्वाः पिुश्च भरूोऽनप िमो िमस्त॥े39॥

िमाः परुस्तादर् पषृ्ठिस्त ेिमोऽस्त ुि ेसवयि एव सवय। अिन्तवीरा यनमिनवक्रमस्त्व ंसवं समाप्नोनष ििोऽनस सवय॥40॥

सखनेि मत्वा प्रसभ ंरदुकं्त ह ेकृष्ण ह ेरादव ह ेसखनेि। अजाििा मनहमाि ंिवदे ंमरा प्रमादाि ् प्रणरिे वानप॥41॥

रच्चापहासार् यमसतृ्किोऽनस नवहारशय्यासिभोजिषे।ु एकोऽर्वाप्यच्यिु िि ् समक्ष ं िि ् क्षामर ेत्वामहमप्रमरेम॥्42॥ एकस्त्वमवे कारनरिा िान्योऽनस्त अर्ानप॥42॥

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Page 132 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

नपिानस लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पजू्यश्च गरुुग यरीराि।् ि त्वत्समोऽस्त्यभ्नधकाः कुिोऽन्यो लोकत्ररऽेप्यप्रनिमप्रभाव॥43॥

ििाि ् प्रणम्य प्रनणधार कार ंप्रसादर ेत्वामहमीशमीड्यम।् नपिवे पतु्रस्य सखवे सख्याुः नप्रराः नप्रराराहयनस दवे सोढमु॥्44॥

अदृष्टपवंू हृनषिोऽनि दृष्ट्वा भरिे च प्रव्यनर्ि ंमिो म।े िदवे म दशयर दवेरप ंप्रसीद दवेशे जगनन्नवास॥45॥

करीनटि ंगनदि ंचक्रहस्तनमच्छानम त्वा ंद्रष्टमुहं िर्वै। ििेवै रपणे चिभु ुयजिे सहस्रबाहो भव नवश्वमिू॥े46॥ श्री भगवािवुाच

मरा प्रसन्निे िवाज ुयिदे ंरप ंपरं दनश यिमात्मरोगाि।् िजेोमर ंनवश्वमिन्तमाद्य ंरन्म ेत्वदन्यिे ि दृष्टपवू यम॥्47॥

ि वदेरज्ञाध्यरििै य दाििै य च नक्ररानभि य िपोनभरुग्राैः। एवरंप ंशक्य ंअहं िलृोके द्रष्टु ंत्वदन्यिे कुरुप्रवीर॥48॥

मा ि ेव्यर्ा मा च नवमढूभावो दृष्ट्वारप ंघोरमीदृङ्ममदेम।् व्यपिेभीाः प्रीिमिााः पिुस्त्व ंिदवे म ेरपनमद ंप्रपश्र॥49॥

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Page 133 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

सञ्जर उवाच इत्यज ुयि ंवासदुवेस्तर्ोक्त्वा स्वकं रप ंदशयरामास भरूाः। आश्वासरामास च भीिमिे ं भतू्वा पिुाः सौम्यवपमु यहात्मा॥50॥ स्वकं रप ंि ुभ्रान्तप्रिीत्या। अन्यर्ा िदनप स्वकमवे। प्रमाणानि िकू्तानि परुस्ताि॥्50॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेएकोदशोऽध्याराः॥11॥ अज ुयि उवाच

दृष्ट्वदे ंमािषु ंरप ंिव सौम्य ंजिाध यि। इदािीमनि सवंतृ्ताः सचिेााः प्रकृनि ंगिाः॥51॥ श्रीभगवािवुाच

सदुुद यश यनमद ंरप ंदृष्टवािनस रन्मम। दवेा अप्यस्य रपस्य नित्य ंदशयिकानङ्क्षणाः॥52॥

िाहं वदेिै य िपसा ि दाििे ि चजे्यरा। शक्य एवनंवधो द्रष्टु ंदृष्टवािनस मा ंरर्ा॥53॥

भक्त्या त्विन्यरा शक्य अहमवेनंवधोऽज ुयि। ज्ञाि ु ंद्रष्टु ंच ित्त्विे प्रवषे्टु ंच परन्तप॥54॥

मत्कमयकृन्मत्परमो मदभक्ताः सङ्गवनज यिाः। निवरैाः सवयभिूषे ुराः स मामनेि पाण्डव॥55॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारामकेादशोऽध्याराः॥11॥

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अर् िादशोऽध्याराः अव्यक्तोपासिाद्भगवदुपासिस्योत्तमत्व ंप्रदश्र य िदुपार ंप्रदश यरत्यनिन्नध्यार े- अज ुयि उवाच

एव ंसििरकु्ता र ेभक्तास्त्वा ंपर ुयपासि।े र ेचाप्यक्षरमव्यकं्त िषेा ंके रोगनवत्तमााः॥01॥ िदुपासिमनप मोक्षसाधि ंप्रिीरि े- ‘नश्रर ंवसािा अमिृत्वमारि ् भवनन्त सत्या सनमधा नमिद्रौ’ इनि। ‘अिाद्यिन्त ंमहिाः परं ध्रवु ंनिचाय्य ि ंमतृ्यमुखुाि ् प्रमचु्यि’े इनि च। अव्यकं्त च महिाः परम ् - ‘महिाः परमव्यक्तम ्’ इत्यकु्तपरामशोपपत्ताेः। ‘उपास्य िा ंनश्ररमव्यक्तसजं्ज्ञा ंभक्त्या मत्यो मचु्यि ेसवयबन्धाैः’ इनि सामवदे अनग्नवशे्रशाखाराम।् महच्च माहात्म् ंिस्या वदेषेचू्यि े- ‘चिषु्कपदा य रवुनिाः सपुशेा घिृप्रिीका वरिुानि वस्त।े

िस्या ंसपुणा य वषृणा निषदेिरु यत्र दवेा दनधर ेभागधरेम ्’ इनि। ‘चिाुःनशखण्डा रवुनिाः सपुशेा घिृप्रिीका वरिुानिवस्त’े इनि च। ‘अहं रुदे्रनभव यसनुभष्छ्चराम्यहमानदत्यरैुि नवश्वदवेाैः’ इत्यारभ्, ‘अहं राष्ट्री सङ्गमिी वसिूा ंनचनकिषुी प्रर्मा रनज्ञरािाम।् िा ंमा दवेा व्यदधाुः परुुत्रा भनूर िात्रा ंभरूा यवशेरन्तीम।् मरा सो अन्नमनत्त रो नव पश्चनि राः प्रानणनि र ईं शृणोत्यकु्तम।्

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Page 135 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अमन्तवो मा ंि उप नक्षरनन्त श्रनुध श्रिु श्रनद्धव ंि ेवदानम’, र ंकामर ेि ंिमगु्र ंकृणोनम ि ंब्रह्माण ंिमनृष ंि ंसमुधेाम।् अहं रुद्रार धिरुा ििोनम ब्रह्मनिष ेशरव ेहन्त वा उ, अहं सवु ेनपिरमस्य मधू यि ् मम रोनिरप्स्ाऽंिाः समदेु्र परो नदवा पर एिा पनृर्व्य ैिाविी मनहिा स ंबभवू इत्यानद च। ‘त्वरा जषु्टाः ऋनषभ यवनि दनेव त्वरा ब्रह्मा गिश्रीरुि त्वरा’ इनि च इनि शङ्का कस्यनचद्भवनि। अिो जािन्ननप सकू्ष्मरनुक्तज्ञािार् ंपचृ्छनिएवनमनि। एवशंब्दिे दृष्टश्रिुरप ं‘मत्कमयकृि ्’ इत्यानदप्रकाराश्च परामशृ्रि।े अव्यकं्त - प्रकृनिाः ‘महिाः परमव्यक्तम ्’ इनि प्ररोगाि।् ‘रि ् िि ् नत्रगणुमव्यकं्त नित्य ंसदसदात्मकम।् प्रधाि ंप्रकृनि ंप्राहरनवशषे ंनवशषेवि ्’ इनि भागवि।े अक्षरं च िि ् ‘अक्षराि ् परिाः पराः’ इनि श्रिुाेः परं ि ुब्रह्म िनह भगविोऽन्यि ् - ‘आिन्दमािन्दमरो वसाि ेसवा यत्मके ब्रह्मनण वासदुवे’े इनि भागवि।े रप ंचदेृश ंसानधि ंपरुस्ताि।् उपासि ंच िर्वै कार यम-्

‘सहस्रशीषा य परुुषाः सहस्राक्षाः सहस्रपाि ्’ इत्यारभ्, ‘िमवे ंनविािमिृ इह भवनि िान्याः पन्था अरिार नवद्यि’े इनि नह साभ्ासा। आनदत्यवण यत्वानदश्च ि वरृ्ोपचारत्विेाङ्गीकार याः। िर्ा च सामवदे ेसौकरारणश्रनुिाः - ‘िाणहुय व ैप्राजापत्याः। स प्रजापनि ंनपिरमते्योवाच। ममुकु्षनुभाः राधनुभाः पिूपापाैः नकमहु व ैिारकं िारवाच्यम।् ध्याि ंच िस्याप्तरुचाेः कर् ंस्याद्ध्यरेश्च काः परुुषोऽलोमपाद इनि। ि ंहोवाच। एष व ै

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Page 136 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

नवष्णसु्तारकोऽलोमपादो ध्याि ं च िस्याप्तरुचवे यदानम। सोऽिन्तशीषो बहवण याः सवुणो ध्यरेाः स व ैलोनहिानदत्यवण याः। श्रामोऽर्वा हृदर ेसोऽष्टबाहरिन्तवीरोऽिन्तबलाः परुाणाः’ इत्यानद। अरपत्वादसे्त ुगनिरुक्ता। परुुषभदेश्च प्रश्नादौ प्रिीरि े‘त्वा ंपर ुयपासि,े र ेचाप्यक्षरम ्’ इत्यादौ॥01॥ श्री भगवािवुाच

मय्यावशे्र मिो र ेमा ंनित्यरकु्ता उपासि।े श्रद्धरा पररोपिेास्त ेम ेरकु्तिमा मिााः॥02॥

रो त्वक्षरमनिदशे्रमव्यकं्त पर ुयपासि।े सवयत्रगमनचन्त्य ंच कूटिमचलं धवृम॥्03॥

सनंन्नरमे्यनेन्द्ररग्राम ंसवयत्र समबदु्धराः। ि ेप्राप्नवुनन्त मामवे सवयभिूनहि ेरिााः॥04॥ भवन्त ुत्वदुपासका एवोत्तमााः। इिरषेा ंि ुनकं फलनमत्यि आह - र ेनत्वत्यानदिा। अनिदशे्रत्व ंचोकं्त भागवि ेमारारााः- ‘अप्रिक्यायदनिदशे्रानदनि केष्वनप निश्चराः’ इनि। ईश्वरस्त ुदवैशब्दिेोक्ताः ‘दवैमन्यऽेपर’े इत्यत्र। उकं्त च सामवदे ेकाषारणश्रिुौ -

‘िासदासीन्नो सदासीि ् िदािीनमनि। ि महाभिू ंिोपभिू ंिदाऽऽसीि ्’ इत्यारभ् ‘िम आसीि ् िमसा गळू्हमग्र’े इनि। ‘िमो ह्यव्यक्तमजरमनिदशे्रमषेा ह्यवे प्रकृनिाः’ इनि। सव यगाऽनचन्त्यानदलक्षणा च सा। िर्ानह मोक्षधम े- ‘िारारणगणुाश्ररादजरादिीनन्द्ररादग्राह्यादसम्भवि असत्यादनहंस्राल्ललामानद्द्विीरप्रवनृत्तनवशषेादवरैादक्षरादमरादक्षरादमनूि यिाः सवयस्यााः सवयकि ुयाः शाश्वििमसाः’ इनि।

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Page 137 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘आसीनदद ंिमोभिूमप्रज्ञािमलक्षणम।् अप्रिक्ययमनवज्ञरे ंप्रसपु्तनमव सवयिाः’ इनि च मािव।े ‘कूटिोऽक्षर उच्यि’े इनि वक्ष्यनि। कूट आकाश ेनििा कूटिा ‘आकाशसनंििा त्वषेा ििाः कूटनििा मिा’ इनि ह्यरृ्गवदेनखलेष।ु ‘सा सवयगा निश्चला लोकरोनिाः सा चाक्षरा नवश्वगा नवरजस्का’ इनि च सामवदे ेगौपविशाखाराम॥्03, 04॥ िेशोऽनधकिरस्तषेामव्यक्तासक्तचिेसाम।् अव्यक्ता नह गनिदुयाःख ंदहेवनद्भरवाप्यि॥े05॥ कर् ं िनहि त्वदुपासकािामतु्तमत्वनमत्यि आह - िेश इनि। अव्यक्तागनिदुयाःख ं ह्यवाप्यि।े गनिाः - माग याः। अव्यक्तोपासििारको मत्प्रानप्तमागो दुाःखमाप्यि इत्यर् याः। अनिशरोपासिसवनेन्द्ररानि-निरमिसव यसमबनुद्धसव यभिूनहिरेित्वानिसषु्ठ्याचारसम्यनर्गवष्णभुक्त्यानदसाधिसन्दभ यमिृ ेिाव्यक्तापरोक्ष्यम।् िदृि े च नवष्णपु्रसादाः। सत्यनप िनिि ् ि सम्यर्गबगवदुपासिमिृ।े िि े च ि ंमोक्षाः। नविाऽप्यव्यक्तोपासि ं भवत्यवे भगवदुपासकािा ं मोक्ष इनि िेनशष्ठोऽर ं माग य इनि भावाः। िर्ाऽप्यपरोक्षीकृिव्यक्तािा ंसकुरं भगवदुपासिनमत्यिेावि ् प्ररोजिम।् ित्रानप रोऽव्यक्तापरोक्ष्य ेप्ररासस्ताविा प्ररासिे रनद भगवन्तमपुास्त,े ऊििे वा, िदा भगवदापरोक्ष्यमवे भविीनि नििीरमनधकम।् इनन्द्ररसरंमिाद्यिूभाव े सनि उपासकस्यानप दवेी िानिप्रसादमनेि। दवेस्त ु िानि साधिानि भनक्तमिाः स्वरमवेाप्ररत्निे ददािीनि चानिसौकर यनमनि भक्तािा ंभगवदुपासि।े इिरत्र िेशोऽनधकिराः। िदिेि ् सव ं ‘पर ुयपासि’े ‘सनन्नरम्य’ ‘अनधकिराः’ इनि पनर, स,ं िरष ् शब्द्याैः प्रिीरि।े सामवदे ेमाधचु्छन्दसशाखारा ंचोक्तम ् -

‘भक्ताश्च रऽेिीव नवष्णाविीव नजिनेन्द्ररााः सम्यगाचररकु्तााः। उपासि ेिा ंसमबदु्धरश्च िषेा ंदवेी दृश्रि ेििेरषेाम।् दृष्टा च सा भनक्तमिीव नवष्णौदत्वोपास्तौ सवयनवघ्नानंश्चिनत्त।

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Page 138 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

उपास्य ि ंवासदुवे ंनवनदत्वा ििस्तिाः शानन्तमत्यन्तमनेि’ इनि उकं्त च सामवदे ेआरास्यशाखाराम-् ‘प्रसन्नो भनविा दवेाः सोऽव्यके्ति सहवै ि।ु राविा ित्प्रसादो नह िाविवै ि सशंराः। ि ित्प्रसादमात्रणे प्रीरि ेस महशे्वराः। िनिि ् प्रीि ेि ुसवयस्य प्रीनिस्त ुभवनि ध्रवुम।् रद्यप्यपुासिानधक्य ंिर्ाऽनप गणुदो नह साः। मनुक्तदश्च स एवकैो िाव्यक्तादसे्त ुकश्चि’ इनि। ‘ममात्मभावनमच्छन्तो रिन्त ेपरमात्मिा’ इनि च मोक्षधम ेश्रीवचिम।् ‘धमयनित्य ेमहाबदु्धौ ब्रह्मण्र ेसत्यवानदनि। प्रनश्रि ेदािशीले च सदवै निवसाम्यहम ्’ इनि च महिाः परं ि ुब्रह्मवै। िर्ानह भगविा सरनुक्तकमनभनहिम ् - ‘वदिीनि चने्न प्राज्ञो नह’ ‘त्रराणामवे चवैमपुन्यासाः प्रश्नश्च’ इत्यानद। िनमनि पनुल्लङ्गाच्चिैनत्सनद्धाः। महिाः परत्व ंत्वव्यक्तपरस्य भवत्यवे। िर्ाचानग्नवशे्रशाखाराम ् - ‘अिाद्यिन्त ंमहिाः परं ध्रवुम ्’ इनि। ‘परो नह दवेाः परुुहूिो महत्ताः इनि’ इनि। ि चाव्यक्तस्वरप ंभगविा निनषद्धम।् भारिादौ सानधित्वाि।् ‘शरीररपकनवन्यस्तगहृीिाेः’ इत्यादौ साङ्ख्यप्रनसद्ध ंप्रधाि ंनिनषद्ध्य वनैदकमव्यक्तमवेोक्तम।् िर्ाच सौकरारणश्रनुिाः -

‘शरीररनपका साऽशरीरस्य नवष्णोर यिाः नप्ररा सा जगिाः प्रसनूिाः’ इनि। सवु्रिािा ंनक्षप्र ंमहदशै्वर ंदवेी ददानि ि दवे इनि नवशषेाः।

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Page 139 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘सवुणयवणां पद्मकरा ंच दवेीं सवशे्वरीं व्याप्तजडा ंच बदु्ध्वा। सवैनेि व ैसवु्रिािा ंि ुमासान्महानवभनूि ंश्रीस्तदुद्यान्नदवेाः’ इनि ऋर्गवदेनखलेष॥ु05॥ र ेि ुसवा यनण कमा यनण मनर सनं्यस्य मत्परााः। अिन्यिेवै रोगिे मा ंध्यारन्त उपासि॥े06॥ मदुपासकािा ंभक्तािा ंि कनश्चि ् िेश इनि दश यरनि - र ेनत्वत्यानदिा। उकं्त च सौकरारणश्रिुौ -

‘उपासि ेर ेपरुुष ंवासदुवेमव्यक्तादरेीनप्सि ंनकं ि ुिषेाम ्’ इनि। ‘िषेामकेानन्तिाः श्रषे्ठास्त ेचवैािन्यदवेिााः। अहमवे गनिस्तषेा ंनिराशीाः कमयकानरणम ्’ इनि मोक्षधम॥े06॥ िषेामहं समदु्धिा य मतृ्यसुसंारसागराि।् भवानम ि नचराि ् पार् य मय्यावनेशिचिेसाम॥्07॥

मय्यवे मि आधत्स्व मनर बनुद्ध ंनिवशेर। निवनसष्यनस मय्यवे अि ऊधं्व ि सशंराः॥08॥

अर् नचत्त ंसमाधाि ु ंि शक्नोनष मनर निरम।् अभ्ासरोगिे ििो मानमच्छाप्त ु ंधिञ्जर॥09॥

अभ्ासऽेप्यसमर्ोऽनस मत्कमयपरमो भव। मदर् यमनप कमा यनण कुव यि ् नसनद्धमवाप्स्यनस॥10॥

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Page 140 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अर्िैदप्यशक्तोऽनस कि ु ंमद्योगमानश्रिाः। सवयकम यफलत्याग ंििाः कुरु रिात्मवाि॥्11॥

श्ररेो नह ज्ञािमभ्ासाि ् ज्ञािाध्ध्ध्याि ंनवनशष्यि।े ध्यािाि ् कमयफलत्यागास्त्यागाच्छानन्तरिन्तरम॥्12॥ आज्ञािपवूा यदभ्ासाज्ञािमवे नवनशष्यि।े ज्ञािमात्राि ् सज्ञाि ं ध्यािम।् िर्ाच सामवदे ेअिनभम्लािशाखाराम ् -

‘अनधकं केवलाभ्ासाज्ज्ञाि ंित्सनहि ंििाः। ध्याि ंििश्चापरोक्ष्य ंििाः शानन्तभयनवष्यनि’ इनि। ‘ध्यािाि ् कमयफलत्यागाः’ इनि ि ुस्तनुिाः। अन्यर्ा कर्म ् ‘असमर्ोऽनस इत्यचु्यिे?

‘िरोऽस्त ुकमयसन्न्यासाि ् कमयरोगो नवनशष्यि’े इनि चोक्तम।् ‘सवा यनधकं ध्यािमदुाहरनन्त ध्यािानधके ज्ञािभनक्त परात्मि।् कमयफलाकाङ्क्षमर्ो नवरागस्त्यागश्च ि ध्यािकलाफलाहयाः’ इनि काषारणशाखाराम।् वाक्यसाम्यऽेप्यसमर् यनवषरत्वोके्तस्तात्परा यभाव इिरत्र प्रिीरि।े ध्यािानदप्रानप्तकारणत्वाच्चत्यागस्तनुिर ुयक्ता। केवलाद्ध्यािाि ् फलत्यागरकंु्त ध्यािमनधकम।् ध्यािरकु्तस्त्याग एव चात्रोक्ताः। अन्यर्ा कर् ं ‘त्यागाच्छानन्तरिन्तरम ्’ इत्यचु्यि?े कर् ं च ध्यािादानधक्यम।् िर्ाच गौपविशाखाराम ् - ‘ध्यािाि ् ि ुकेवलाि ् त्यागरकंु्त िदनधकं भविे ्’ इनि। िनह त्यागमात्रािन्तरमवे मनुक्तभ यवनि। भवनि च ध्यािरकु्ताि।् केवलत्यागस्तनुिरवेमनप भवनि। रर्ा ‘अििे रकु्तो जिेा, िान्यर्ा’ इत्यकेु्त॥12॥

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Page 141 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अिषे्टा सवयभिूािा ंमतै्राः करुण एव च। निम यमो निरहङ्काराः समदुाःखसखु क्षमी॥13॥

सन्तषु्टाः सिि ंरोगी रिात्मा दृढनिश्चराः। मय्यनप यिमिोबनुद्धरो मद्भक्ताः स म ेनप्रराः॥14॥

रिान्नोनिजि ेलोको लोकोन्नोनिजि ेच राः। हषा यमष यभरोिगेमै ुयक्तो राः स च म ेनप्रराः॥15॥

अिपके्षाः शनुचदयक्ष उदासीिो गिव्यर्ाः। सवा यरंभपनरत्यागी रो मद्भक्ताः स म ेनप्रराः॥16॥

रो ि हृष्यनि ि िनेष्ट ि शोचनि ि काङ्क्षनि। शभुाशभुपनरत्यागी भनक्तमाि ् राः स म ेनप्रराः॥17॥ ‘सवा यरम्भपनरत्यागी’ ‘शभुाशभुपनरत्यागी’ इत्यादाेः सामान्यनवशषेव्याख्याि-व्याख्यरेभाविेापिुरुनक्ताः। हषा यनदनभम ुयक्त इत्यकेु्त कदानचनद्कमनप भविीनि रो ि हृष्यिीत्यानद। उपचारपनरहारार् ं पवू यम।् आनधक्यज्ञापिार् ं भक्त्यभ्ासाः। ‘र े ि ु सवा यनण कमा यनण’ इत्यादाेः प्रपञ्च एषाः॥16-17॥

समाः शत्रौ च नमत्र ेच िर्ा मािापमािरोाः। शीिोष्णसखुदुाःखषे ुसमाः सङ्गनववनज यिाः॥18॥

िलु्यनिन्दास्तनुिमौिी सन्तषु्टो रिे केिनचि।् अनिकेिाः निरमनिभ यनक्तमाि ् म ेनप्ररो िराः॥19॥

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Page 142 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

र ेि ुधम्या यमिृनमद ंरर्ोकं्त पर ुयपासि।े श्रद्धधािा मत्परमा भक्तास्तऽेिीव म ेनप्ररााः॥20॥

॥इति श्रीमद्भगवद्गीिायाां द्वादशोऽध्ययः॥12॥

नपण्डीकृत्योपसहंरनि - र ेि ुधम्या यमिृनमनि। धमो - नवष्णाुः, िनिषर ंधम्य यम ् , मतृ्यानदससंारिाशकं चनेि धम्या यमिृम।् श्रदानस्तक्यम।् ‘श्रन्नामानस्तक्यमचु्यि’े इत्यनभधािम।् िद्दधािााः - श्रद्दधािााः॥20॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेिादशोऽध्याराः॥12॥

अर् त्ररोदशोऽध्याराः

पवूोक्तज्ञािज्ञरेक्षते्र परुुषाि ् नपण्डीकृत्य नवनवच्य दश यरत्यििेाध्यारिे- अज ुयि उवाच प्रकृनि ंपरुष ंचवै क्षते्र ंक्षते्रज्ञमवे च। एििनेदिनुमच्छानम ज्ञाि ंज्ञरे ंच केशव॥ ई मनेलि श्लोकव ु प्रनक्षप्तवॆंदु पनरगनणसलानग श्लोक सखं्यरॆनल्ल सनेरनसल्ल. ई श्लोक सनेरनसदाग गीिरॆनल्ल 701 श्लोकगळागतु्तद.ॆ गीिा सप्तशनि ऎदंरॆ 700 श्लोकगळु मात्रनवदरॆॆंदु प्रनसनद्द. श्री भगवािवुाच

इद ंशरीरं कौन्तरे क्षते्रनमत्यनभधीरि।े एिद्यो वनेत्त ि ंप्राहाः क्षते्रज्ञ इनि िनिदाः॥01॥

क्षते्रज्ञ ंचानप मा ंनवनद्ध सवयक्षते्रषे ुभारि। क्षते्रक्षते्रज्ञरोज्ञा यि ंरत्तज्ञाि ंमि ंमम॥02॥

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Page 143 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

िि ् क्षते्र ंरच्च रादृच रनिकानर रिश्च रि।् स च रो रत्प्रभावश्च ित्समासिे म ेशृण॥ु03॥ ‘रनिकानर’ रिे नवकारणे रकु्तम।् ‘रिश्च रि ्’ रिो रानि प्रवि यि।े स च प्रवि यि।े स च प्रवि यकाः। रिश्च रनदत्यिाि ् प्रवि यि ेक्षते्रनमनि वचिम।् स च र इनि स्वरपमात्रम॥्03॥

ऋनषनभब यहदा गीि ंिन्दोनभनव यनवधाैः परृ्क।् ब्रह्मसतू्रपदशै्चवै हिेमुनद्भनव यनिनश्चिाैः॥04॥ ब्रह्मसतू्रानण - शारीरकसतू्रानण॥04॥ महाभिूान्यहङ्कारो बनुद्धरव्यक्तमवे च। इनन्द्ररानण दशकंै च पञ्च चनेन्द्ररगोचरााः॥05॥

इच्छा िषेाः सखु ंदुाःख ंसघंािश्चिेिा धनृिाः। एित्क्षते्र ंसमासिे सनवकारमदुाहृि॥ं0॥ इच्छरादरो नवकारााः॥0॥ अमानित्व मदनम्बत्वमनहंसा क्षानन्तराज यवम।् आचारोपासि ंशौच ंस्धरै यमात्मनवनिग्रहाः॥07॥ स च रो रत्प्रभावश्चनेि वकंु्त िज्ज्ञािसाधन्याह - अमानित्वनमत्यानदिा। आत्माल्पत्व ं ज्ञात्वाऽनप महत्वप्रदशयि ं- दम्भाः -

‘ज्ञात्वऽनप स्वात्मिोऽल्पत्व ं दम्भो महात्म्भाविम ्’ इनि ह्यनभधािम।् आजयव ं- मिोवाक्कारकमयणामवपैरीत्यम॥्07॥ इनन्द्ररार्षे ुवरैार्गरमिहङ्कार एव च। जन्ममतृ्यजुराव्यानधदुाःखदोषािदुश यिम॥्08॥

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असनक्तरिनभष्वङ्गाः पतु्रदारगहृानदष।ु नित्य ंच समनचत्तत्वनमष्टानिष्टोपपनत्तष॥ु09॥ सनक्ताः - स्नहेाः। स एवानिपक्वोऽनभष्वङ्गाः - ‘स्नहेाः सनक्ताः स एवानिपक्वोऽनभष्वङ्ग उच्यि’े इत्यनभदािम॥्09॥ मनर चािन्यरोगिे भनक्तरव्यनभचानरणी। नवनवक्तदशेसनेवत्वमरनिज यिससंदी॥10॥

अध्यात्मज्ञािनित्यत्व ंित्वज्ञािार् यदश यिम।् एिज्ज्ञािनमनि प्रोक्तमज्ञाि ंरदिोऽन्यर्ा॥11॥ ित्त्वज्ञािार् यदश यिम ् - अपरोक्षज्ञािार् ंशास्त्रदशयिम॥्11॥

ज्ञरे ंरि ् िि ् प्रवक्ष्यानम रज्ज्ञात्वाऽमिृमश्निु।े अिानदमि ् परं ब्रह्म ि सि ् िन्नासदुच्यि॥े12॥ परम्ब्रह्मनेि च ‘स च राः’ इनि प्रनिज्ञािमचु्यि।े अन्याः ‘प्रभावाः’ इनि। आनदमद्दहेानदवनज यिम ् - अिानदमि।् अन्यर्ाऽिानदत्यवे स्याि॥्12॥

सवयिाः पानणपाद ंिि ् सवयिोऽनक्षनशरोमखुम।् सवयिाः शृनिमल्लोके सवयमावतृ्य निष्ठनि॥13॥

सवनेन्द्ररगणुाभास ंसवनेन्द्ररनववनज यिम।् असकं्त सवयभचृ्चवै निग ुयण ंगणुभोकृ्त च॥14॥ सवनेन्द्ररानण गणुाशं्चभासरिीनि सवनेन्द्ररगणुाभासाम।् इनन्द्ररवनज यिित्वाध्ययर् याः उक्ताः परुस्ताि।् नवकारान्तभा यवाज्ज्ञािसाधि ंप्रर्मि उक्तम।् बहत्वाि ् साधिात्यपुरोगाि ् प्रभावाः॥14॥

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Page 145 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

बनहरन्तश्च भिूािामचरं चरमवे च। सकू्ष्मत्वाि ् िदनवज्ञरे ंदूरि ंचानन्तके च िि॥्15॥

अनवभकं्त च भिूषे ुनवभक्तनमव च नििम।् भिूभिृ य च िज्ञरे ंग्रनसष्ण ुप्रभनवष्ण ुच॥16॥

ज्योनिषामनप िज्ज्योनिस्तमसाः परमचु्यि।े ज्ञाि ंज्ञरे ंज्ञािगम्य ंहृनद सवयस्य नवनष्ठिम॥्17॥

इनि क्षते्र ं िर्ा ज्ञाि ंज्ञरे ंचोकं्त समासिाः। मद्भक्त एिनिज्ञार मद्भावारोपपद्यि॥े18॥

प्रकृनि ंपरुुष ंचवै नवद्ध्यिादी उभावनप। नवकाराशं्च गणुाशं्चवै नवनद्ध प्रकृनिसम्भवाि॥्19॥ रिश्च रनदनि वकंु्त प्रकृनिनवकारपरुुषाि ् सनङ्क्षप्याह। गणुााःसत्त्वादराः। िषेामत्यल्पो नवशषेो लराि ् सग य इनि नवकारााः परृ्गकु्तााः।

‘कारा यकारा य गणुानस्तस्रो रिस्त्वल्पोद्बवो जिौ’ इनि माधचु्छन्दसशाखाराम॥्19॥ कार यकरणकिृ यत्व ेहिेाुः प्रकृनिरुच्यि।े परुुषाः सखुदुाःखािा ंभोकृ्तत्व ेहिेरुुच्यि॥े20॥ कार ं- शरीरम।् ‘शरीरं कार यमचु्यि’े इत्यनभधाि।ं कारणानि -इनन्द्ररानण। भोगाः - अिभुवाः। स नह नचदू्रपत्वादिभुवनि। प्रकृनिश्चजडत्वाि ् पनरणानमिी। ‘कार यकारणकिृ यत्व े कारण ंप्रकृनि ंनवदुाः।

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Page 146 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

भोकृ्तत्व ेसखुदुाःखािा ंपरुुष ंप्रकृिाेः परम ्’ इनि भागवि॥े20॥ परुुषाः प्रकृनििो नह भङेु्क्त प्रकृनिजाि ् गणुाि।् कारण ंगणुसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मस॥ु21॥

उपद्रष्ट्वाऽिमुन्ता च भिा य भोक्ता महशे्वराः। परमात्मनेि चाप्यकु्तो दहेऽेनिि ् परुुषाः पराः॥22॥ रिश्च रनदत्याह - उपद्रष्टनेि। अिमुन्ता - अन्वि ुनवशषेिो निरपकाः॥22॥

र एव ंवनेत्त परुुष ंप्रकृनि ंच गणु ैसह। सवयर्ा वि यमािोऽनप ि स भरूोनभजारि॥े23॥ परुुषाः सखुदुाःखािानमनि जीव उक्ताः। परुुष ं प्रकृनि ं चनेि जीवशे्वरौ सहवैोच्यि।े अन्यत्र महािात्पर यनवरोधाः। उत्कष ेनह महािात्पर यम।् िर्ानह सौकरारणश्रनुिाः - ‘अवाच्योत्कष ेमहत्त्वाि ् सव यवाचा ंसव यन्यारािा ंच महत्परत्वम ् नवष्णोरन्तस्य पराि ् परस्य िच्चानप ह्यस्त्यवे ि चात्र शङ्का॥ अिो नवरुद्ध ं ि ु रदत्र माि ं िदक्षजादावर्वाऽनप रनुक्ताः। ि िि ् प्रमाण ं कवरो वदनन्त ि चानप रनुक्तह्यिू यमनिनहि दृष्टाेः’ इनि। अिो रनुक्तनभरप्यिेदपलापो ि रकु्ताः। अिो ररा रकु्त्याऽनवद्यमाित्वानद कल्परनि साऽप्याभासरपनेि सदवे माहात्म् ंवदेरैुच्यि इनि नसद्ध्यनि। अवान्तरं च िात्पर ंित्रानस्त। उकं्त च ित्रवै - ‘अवान्तरं ित्परत्व ंच सत्त्व ेमहिाऽप्यकेत्वाि ् ि ुिरोरिन्त’े इनि। श्रामत्वाद्यनभधािाच्च। रकंु्त च परुुषमनिकनल्पिरकु्त्यादरेाभासत्वम।् अज्ञािसम्भवाि।् ि ि ु स्विाः प्रमाणस्य वदेस्याभासत्वम।् अदशयि ं च सम्भवत्यवे प ुसंा ं बहूिामप्यज्ञािाि।् िह्य यरिदिधीिश्रतु्यादौ नवपर यरोऽनप स्यानदनि ि वाच्यम।् रिस्तत्र्यवाह -

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Page 147 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘ििैनिरुद्धा वाचो ििैनिरुद्धा रकु्तर इनि ह प्रजापनिरुवाच प्रजापनिरुवाच’ इनि। िनिरुद्ध ंच जीवासाम्यम।् ‘आभास एव च’ इनि चोक्तम।् ‘बहवाः परुुषा ब्रह्मि ् उिाहो एक एव ि।ु को ह्यत्र परुुषश्रषे्ठस्त्व ंभवाि ् वकु्तमहयनि॥ वशैम्पारि उवाच- ििैनदच्छनन्त परुुषमकंे कुरुकुलोिह। बहूिा ंपरुुषाणा ंनह रर्कैा रोनिरुच्यि।े िर्ा ि ंपरुुष ंनवश्वमाख्यास्यानम गणुानधकम ्’ इनि च मोक्षधम।े ि चिैि ् सव ंस्वप्नने्द्र जालानदवि ् -

‘वधैम्या यच्च ि स्वप्नानदवि ्’ इनि भगविचिम।् ि च स्वप्नवदकेजीवकनल्पित्व ेमाि ंपश्रामाः। नवपर यर ेमा चोक्ता नििीर।े उकं्त चारास्यशाखाराम ् - ‘स्वप्नो हवा अर ंचञ्चलत्वान्न च स्वप्नो िनह नवचे्छद एिनदनि’ इनि। िार ं दोषाः। िहीश्वरस्य जीवकै्यमचु्यि,े जीवस्य हीश्वरकै्यनमनि ध्यरेम।् िदनप ि निरुपानदकम।् अिो ि प्रनिनबम्बत्वनवरोध्यकै्यम।् िर्ाच माधचु्छन्दसशृनिाः -

‘ऐक्य ंचानप प्रानिनबम्ब्यिे नवष्णोजीवस्यिैनद्ध ऋषरो वदनन्त’ इनि। अहंग्रहोपासि ेच फलानधक्यमानग्नवशे्रश्रनुिनसद्धम ् - ‘अहंग्रहोपासकस्तस्य साम्यमभ्ाशो ह वा अश्निु ेिात्र शङ्का’ इनि। ‘िदीरोऽहनमनि ज्ञािमहङ्ग्रह इिीनरिाः’ इनि वामि।े ‘ििशत्वाि ् ि ुसोऽिीनि भतृ्यरैवे ि ि ुस्विाः’ इनि च प्रानिनबम्ब्यिे सोऽनि भतृ्यश्चनेि भाविा| िर्ाह्यारास्यशाखाराम ् - ‘भतृ्यश्चाहं प्रानिनबयंिे सोऽिीत्यवे ंह्यपुास्याः परमाः पमुाि ् साः’

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Page 148 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

इनि प्रानिबम्ब्य ंच ित्साम्यमवे॥23॥ ध्याििेात्मनि पश्रनन्त केनचदात्मािमात्मिा। अन्य ेसाङ्ख्यिे रोगिे कमयरोगिे चापर॥े24॥

अन्य ेत्ववेमजािन्ताः श्रतु्वाऽिभे् उपासि।े िऽेनप चानििरन्त्यवे मतृ्य ु ंश्रनुिपरारणााः॥25॥ साङ्ख्यिे वदेोक्तभगवत्स्वरपज्ञाििे। कनम यणामनप श्रतु्वाज्ञात्वा ध्यात्वा दृनष्टाः। श्रावकाणा ं च ज्ञात्वा ध्यात्वा। साङ्ख्यािा ंच ध्यात्वा। िर्ाच गौपविश्रनुिाः- ‘कमयकृच्चानप ि ंश्रतु्वा ज्ञात्वा ध्यात्वाऽिपुश्रनि। श्रावकोऽनप िर्ा ज्ञात्वा ध्यात्वा ज्ञान्यनप पश्रनि’ इनि ‘अन्यर्ा िस्य दृनष्टनहि कर्नञ्चन्नोपजारि’े इनि ‘अन्य’े इत्यशक्तािामप्यपुारदशयिार् यम॥्24-25॥ रावि ् सञ्जारि ेनकनञ्चि ् सत्त्व ंिावरजङ्गमम।् क्षते्रक्षते्रज्ञसरंोगाि ् िनिनद्ध भरिष यभ॥26॥

सम ंसवषे ुभिूषे ुनिष्ठन्त ंपरमशे्वरम।् नविश्रत्स्वनविश्रन्त ंराः पश्रनि स पश्रनि॥27॥

सम ंपश्रि ् नह सवयत्र समवनििमीश्वरम।् ि नहिस्त्यात्मिाऽऽत्माि ंििो रानि परा ंगनिम॥्28॥ पिुश्च प्रकृनिपरुुषशे्वरस्वरप ंसाम्यानदधम यरिुमाह - रावनदत्यानदिा ॥26॥ प्रकृत्यवै च कमा यनण नक्ररमाणानि सवयशाः।

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Page 149 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

राः पश्रनि िर्ाऽऽत्मािमकिा यरं स पश्रनि॥29॥ आत्माि ंचाकिा यरं राः पश्रनि स पश्रनि॥29॥ रदा भिूपरृ्ग्भावामकेिमिपुश्रनि। िि एव च नवस्तारं ब्रह्म सम्पद्यि ेिदा॥30॥ एकिम ्, एकनिन्नवे नवष्णौनििम।् िि एव नवष्णोनव यस्तारम॥्30॥ अिानदत्वानन्नग ुयणत्वाि ् परमात्माऽरमव्यराः। शरीरिोऽनप कौन्तरे ि करोनि ि नलप्यि॥े31॥ ि च व्यरानदस्तस्यते्याह - अिानदत्वानदनि। सानद नह प्रारो व्यनर गणुात्मकं च। ‘ि करोनि’ इत्यादरेर् य उक्ताः परुस्ताि।् ि लौनककाः नक्ररानदस्तस्य। अिो ‘ि प्रज्ञम ्’ इत्यानदवनदनि॥31॥ रर्ा सवयगि ंसौक्ष्म्यादाकाश ंिोपनलप्यि।े सवयत्रावनििो दहे ेिर्ाऽऽत्मा िोपनलप्यि॥े32॥

रर्ा प्रकाशरत्यकेाः कृत्स्न ंलोकनमम ंरनवाः। क्षते्र ंक्षते्री िर्ा कृत्स्न ंप्रकाशरनि भारि॥33॥

क्षते्रक्षते्रज्ञरोरवेमन्तरं ज्ञािचक्षषुा। भिूप्रकृनिमोक्ष ंच र ेनवधरुा यनन्त ि ेपरम॥्34॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंत्ररोदशोऽध्याराः॥13॥

भिूभे्ाः प्रकृिशे्च मोक्षसाधिम ् अमानित्वानदकम॥्34॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिभाष्य ेत्ररोदशोऽध्याराः॥13॥

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Page 150 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अर् चिदु यशोऽध्याराः साधि ंप्राधान्यिेोत्तररैध्यारवै यनक्ताः - श्रीभगवािवुाच

परं भरूाः प्रवक्ष्यानम ज्ञािािा ंज्ञािमतु्तमम॥् रज्ज्ञात्वा मिुराः सव ेपरा नसनद्धनमिो गिााः॥01॥

इद ंज्ञािमपुानश्रत्य मम साधम्य यमागिााः। सगऽेनप िोपजारन्त ेप्रलर ेि व्यर्नन्त च॥02॥

मम रोनिम यहद्ब्रह्म िनिि ् गभं दधाम्यहम।् सम्भवाः सवयभिूािा ंििो भवनि भारि॥03॥ महद्ब्रह्म - प्रकृनिाः। सा च श्रीभू यदुगनेि नभन्ना। उमा सरस्वत्याद्यास्तिुदशंरिुान्यजीवााः। िर्ाच काषारणश्रनुिाः-

‘श्रीभू यदु यगा य महिी ि ुमारा सा लोकसनूिज यगिो बनन्धका च। उमावागाद्या अन्यजीवास्तदशंास्तदात्मािा सवयवदेषे ुगीिााः’ इनि। मम रोनिनरनि गभा यधािार्ा य रोनिाः। ि ि ुमािा। वाक्यनवशषेाि।् िर्ानह सामवदे ेशाकय राक्ष्यश्रिुौ - ‘नवष्णोरोनिग यभ यसन्धारणार्ा य महामारा सवयदुाःखनैव यहीिा िर्ाऽप्यात्माि ंदुाःनखवन्मोहिार् ंप्रकाशरनन्त सह नवष्णिुा सा’॥ -इनि अिाः सीिादुाःखानदकं सवं मषृाप्रदश यिामवे। िर्ा च कौम यपरुाण-े ि चरे ंभाूः। िर्ाच सौकरारणश्रनुिाः - ‘अन्या भभूू यनरर ंिस्य िारा भिूावमा सा नह भिूकैरोनिाः’ इनि।

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Page 151 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

‘अवाप्य स्वचे्छरा दास्य ंजगिा ंप्रनपिामही’ इत्याद्यिनभम्लािश्रिुाेः। मत्स्यपरुाणोक्तमनप स्वचे्छरवै। महद्ब्रह्मशब्दवाच्याऽनप ‘प्रकृनिरवे महिी ब्रह्मण े ि े ि ु प्रकृनिश्च महशे्वराः’ इनि ित्रवै॥03॥

सवयरोनिष ुकौन्तरे मिू यराः सम्भवनन्त रााः। िासा ंब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदाः नपिा॥04॥

सत्त्व ंरजस्तम इनि गणुााः प्रकृनिसम्भवााः। निबद्ननन्त महाबाहो दहे ेदनेहिमव्यरम॥्05॥ बन्धप्रकारं दश यरनि साधिािषु्ठािार - सत्त्वनमत्यानदिा॥05॥

ित्र सत्त्व ंनिम यलत्वाि ् प्रकाशकमिामरम।् सखु सङे्गि बध्नानि ज्ञािसङे्गि चािघ॥06॥

रजो रागात्मकं नवनद्ध िषृ्णासङ्गसमदु्भवम।् िनन्नबध्नानि कौन्तरे कमयसङे्गि दनेहिाम॥्07॥ िषु्णासङ्गरोाः समदु्भवम।् िरोाः कारणम॥्07॥

िमस्त्वज्ञािज ंनवनद्ध मोहि ंसवयदनेहिाम।् प्रमादालस्यनिद्रानभस्तनन्नबध्नानि भारि॥08॥ अज्ञाि ंजारि ेरिस्तदज्ञािजम।् ‘प्रमादमोहौ िमसाः’ इनि वाक्यशषेाि॥्08॥

सत्त्व ंसखु ेसञ्जरनि रजाः कमयनण भारि। ज्ञािमावतृ्य ि ुिमाः प्रमाद ेसञ्जरत्यिु॥09॥

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Page 152 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

रजस्तमश्चानभभरू सत्त्व ंभवनि भारि। रजाः सत्त्व ंिमश्चवै िमाः सत्त्व ंरजस्तर्ा॥10॥

सवयिारषे ुदहेऽेनिि ् प्रकाश उपजारि।े ज्ञाि ंरदा िदा नवद्यानिवदृ्धं सत्त्वनमत्यिु ॥11॥

लोभाः प्रवनृत्तरारम्भाः कमयणामशमाः स्पहृा। रजस्यिेानि जारन्त ेनववदृ्ध ेभरिष यभ॥12॥

अप्रकाशोऽप्रवनृत्तश्च प्रमादो मोह एव च। िमस्यिेानि जारन्त ेनववदृ्ध ेकुरुिन्दि॥13॥

रदा सत्त्व ेप्रवदृ्ध ेि ुप्रळर ंरानि दहेभिृ।् िदोत्तमनवदा ंलोकािमलाि ् प्रनिपद्यि॥े14॥

रजनस प्रळर ं गत्वा कमयसनङ्गष ुजारि।े िर्ा प्रलीिस्तमनस मढूरोनिष ुजारि॥े15॥

कमयणाः सकृुिाःस्याहाः सानत्त्वकं निम यलम ् फलम।् रजसस्त ुफलं दुाःखमज्ञाि ंिमसाः फलम॥्16॥ रजसस्त ुफलं दुाःखनमत्यल्पसखु ंदुाःखम।् िर्ानह शाकयराक्ष्यशाखाराम-्

‘रजसो ह्यवे जारि ेमात्ररा सखु ंदुाःख ंििाि ् िाि ् सनुखिो दुाःनखि इत्याचक्षि’े इनि। अन्यर्ा दुाःखस्यानिकष्टत्वाि ् िमोऽनधकत्व ंरजस ेि स्याि॥्16॥

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Page 153 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

सत्त्वाि ् सञ्जारि ेज्ञाि ंरजसो लोभ एव च। प्रमादमोहौ िमसो भविोऽज्ञािमवे च॥17॥

ऊधं्व गच्छनन्त सत्त्विा मध्य ेनिष्ठनन्त राजसााः। जघन्यगणुवनृत्तिा अधो गच्छनन्त िामसााः॥18॥

िा(ऽ)न्य ंगणुभे्ाः किा यरं रदा द्रष्टाऽिपुश्रनि। गणुभे्श्च परं वनेत्त मद्भाव ंसोऽनध गच्छनि॥19॥ पनरणानमकिा यरं गणुभे्ोऽन्य ंि पश्रनि। अन्यर्ा ‘रदा पश्राः पश्रि ेरुर्गमवण ंकिा यरमीश ंपरुुष ंब्रह्मरोनिम ्’ इनि श्रनुि नवरोधाः। ‘िाहं किा य ि किा य त्व ंकिा य रस्त ुसदा प्रभाुः’ इनि मोक्षधम॥े19॥ गणुाििेाििीत्य त्रीि ् दहेी दहेसमदु्भवाि।् जन्ममतृ्यजुरादुाःखनैव यमकु्तोऽमिृमश्निु॥े20॥ अज ुयि उवाच

कैनलयङ्गैस्त्रीि ् गणुाििेाििीिो भवनि प्रभो। नकमाचाराः कर् ंचिैासं्त्रीि ् गणुािनिवि यि॥े21॥ श्रीभगवािवुाच

प्रकाश ंच प्रवनृत्त ंच मोहमवे च पाण्डव। ि िनेष्ट सम्प्रवतृ्तानि ि निवतृ्तानि काङ्क्षनि॥22

उदासीिवदासीिो गणुरैो ि नवचाल्यि।े गणुा वि यन्त इत्यवे रोऽवनिष्ठनि िङे्गि॥े23॥

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Page 154 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

प्रारो ि िनेष्ट ि काङ्क्षनि। िर्ानह सामवदे ेभाल्लवरेशाखाराम ् - रजस्तमाःसत्त्वगणुाि ् प्रवतृ्ताि ् प्रारो ि च िनेष्ट ि चानप काङे्क्षि।् िर्ाऽनप सकू्ष्म ंसत्त्वगणु ंच काङे्क्षद्यनद प्रनवष्ट ंसिुमश्च जह्याि ्’ इनि। ‘ि नह दवेा ऋषरश्च सत्त्विा िपृसत्तम। हीिााः सकू्ष्मणे सत्त्विे ििो वकैानरका मिााः। कर् ंवकैानरको गचे्छि ् परुुषाः परुुषोत्तमम ्’ इनि नह मोक्षधम।े ‘सानत्त्वकाः परुुषव्याघ्र भवने्मोक्षार् यनिनश्चिाः’ इनि च॥22-23॥ समदुाःखसखुाः स्विाः समलोष्टाश्मकाञ्चिाः। िलु्यनप्ररानप्ररो धीरस्तलु्यनिन्दात्मससं्तनुिाः॥24॥

मािापमािरोस्तलु्यस्तलु्यो नमत्रानरपक्षरोाः। सवा यरम्भपनरत्यागी गणुािीिाः स उच्यि॥े25॥ िलु्यत्वार् याः उक्ताः परुस्ताि॥्24-25॥

मा ंच रोऽव्यनभचारणे भनक्तरोगिे सवेि।े स गणुाि ् समिीत्यिैाि ् ब्रह्मभरूार कल्पि॥े26॥ ब्रह्मवि ् प्रकृनिवि ् भगवनत्प्ररत्व ंब्रह्मभरूम।् ि ि ुिावनत्प्ररत्वम।् नकन्त ुनप्ररत्वमात्रम।् ‘बद्धोवाऽनप ि ुमकु्तो वा ि रमावि ् नप्ररो हराेः’ इनि पाद्म।े भरूार - भावार॥26॥ ब्रह्मणो नह प्रनिष्ठाऽहममिृस्याव्यरस्य च। शाश्विस्य च धम यस्य सखुस्यकैानन्तकस्य च॥27॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंचिदु यशोऽध्याराः॥14॥

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Page 155 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ब्रह्मणाः - मारारााः॥27॥ ॥इनि श्रीमदािन्दिीर् य भगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेचिदु यशोऽध्याराः॥14॥

अर् पञ्चदशोऽध्याराः ससंारस्वरपिदत्यरोपारनवज्ञािान्यनिन्नध्यार ेदश यरनि - श्री भगवािवुाच

ऊध्वयमलूमधाःशाखमश्वत्थ ंप्राहरव्यरम।् िन्दानंस रस्य पणा यनि रस्त ंवदे स वदेनवि॥्01॥ ऊध्वयाः - नवष्णाुः। ‘ऊध्वयपनवत्रो वानजिीवस्वमिृमनि द्रनवणसँवच यसम ्’ इनि नह श्रनुिाः। ‘ऊध्वयाः - उत्तमाः सव यिाः। अधाः - निकृष्टम।् शाखााः - भिूानि। श्वोऽप्यकेप्रकारणे ि निष्ठिीत्यत्वश्वत्थाः। िर्ाऽनप ि प्रवाहव्यराः। पवू य ब्रह्मकाल ेरर्ा निनिस्तर्ा सव यत्रापीत्यव्यरिा। फलकारणत्वाच्छन्दसा ंपण यत्वम।् ि नह कदानचदप्यजाि ेपण ेफलोत्पनत्ताः॥01॥ अधश्चोधं्व प्रसिृास्तस्य शाखा गणुप्रवदृ्धा नवषरप्रवालााः। अधश्च मलूान्यिसुन्तिानि कमा यिबुन्दीनि मिषु्यलोके॥02॥ अव्यके्तऽनप सकू्ष्मरपणे सनन्त शरीरादौ च भिूािीत्यधश्चोध्व ं च प्रसिृााः। गणुाैः - सत्त्वानदनभाः। प्रिीनिमात्रसखुत्वाि ् प्रवालााः - नवषरााः। मलूानि -भगवदू्रपादीनि। भगवािनप कमा यिबुन्धिे नह फलं ददानि। िर्ाच भाल्लवरेशाखाराम ् - ‘ब्रह्मा वा अस्य परृ्ङ्मलंू प्रकृनिाः समलंू सत्त्वादरोऽवा यचीिमलूम।् भिूानि शाखाश्िन्दानंस पत्रानण दवेिनृिरचंश्च शाखााः। पत्रभे्ो नह फलं जारि।े मात्रााः नशफााः। मनुक्ताः फलममनुक्ताः फलम।् मोक्षो रसोऽमोक्षो रसोऽव्यके्त च शाखा व्यके्त च शाखा अव्यके्त च मलंू व्यके्त च मलूम ्, एषोऽश्वत्थो गणुालोलपत्रो ि िीरि।े ि ि िीरि ेि ह्यषे कदाचिान्यर्ा जारि’े इनि॥02॥

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Page 156 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ि रपमस्यहे िर्ोपलभ्ि ेिान्तो ि चानदि य च सम्प्रनिष्ठा। अश्वत्थमिे ंसनुवरढमलूमसङ्गशस्त्रणे दृढिे नित्त्वा॥03॥

ििाः परं ित्पनरमानग यिव्य ंरिन्गिा ि निवि यनन्त भरूाः िमवे चाद्य ंपरुुष ंप्रपद्य ेरिाः प्रवनृत्ताः प्रसिृा परुाणी॥04॥ रर्ा निनिस्तर्ा िोपलभ्ि।े अन्तानदनव यष्णाुः। ‘त्वमानदरन्तो जगिोऽस्य मध्यम ्’ इनि भागवि।े ‘अिाद्यन्त ंपरं ब्रह्म ि दवेा ऋषरो नवदुाः’ इनि च मोक्षधम।े असङ्गशस्त्रणे - सङ्गरानहत्यसनहििे ज्ञाििे। ‘ज्ञािानसिोपासिरा नसििे’ इनि नह भागवि।े िेदश्च नवमशय एव। ििश्च िस्यवैाबन्धकं भवनि। िर्ानह मलूि ंब्रह्मप्रिीरि।े िच्चोकं्त च िि ् श्रिुाववे- ‘नवमशो ह्यस्य चे्छदस्त ंि बद्नानि बद्नानि चान्याि ्’ इनि। िदर् ंच िमवे प्रपद्य ेप्रपद्यिे। िच्चोकं्त ित्रवै - ‘ि ंव ैप्रपद्यिे र ंव ैप्रपद्य ि शोचनि ि हृष्यनि ि जारि ेि निरि ेिद्ब्रह्ममलंू िनच्चनच्छत्साुः’ इनि। ‘िारारणिे दृष्टश्च प्रनिबदु्धो भविे ् पमुाि ्’ इनि मोक्षधम।े िदेिोपारो ह्यत्राकानङ्क्षिाः। ि च भगविोऽन्याः शरण्रोऽनस्त॥03-04॥

निमा यिमोहा नजिसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या नवनिवतृ्तकामााः। िन्द्वनैव यमकु्तााः सखुदुाःखसज्ञगै यच्छन्त्यमढूााः पदमव्यरम ् िि॥्05॥ साधिान्तरमाह - निमा यिमनेि॥05॥

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Page 157 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ि िद्भासरि ेसरूो ि शशाङ्को ि पावकाः। रद्गत्वा ि निवि यन्त ेिद्धाम परम ंमम॥06॥ स्वरप ंकर्रनि - ि िनदत्यानदिा॥06॥ ममवैाशंो जीवलोके जीवभिूाः सिाििाः। मिाःषष्ठािीनन्द्ररानण प्रकृनििानि कष यनि॥07॥

शरीरं रदवाप्नोनि रच्चाप्यिुामिीश्वराः। गहृीत्विैानि सरंानि वारगु यन्धानिवाशराि॥्08॥ कष यिीत्यकेु्त जीवस्य स्वािन्त्र्य ं प्रिीिम।् िनन्नवाररनि - शरीरनमत्यानदिा। रि ् - रदा, शरीरमवाप्नोनि उिामनि च जीवाः , िदशे्वर एिानि गहृीत्वा सरंानि।

‘रत्र रत्रवै सरंकु्तो धािा गभ ंपिुाः पिुाः। ित्र ित्रवै वसनि ि रत्र स्वरनमच्छनि’ इनि नह मोक्षधम।े ‘भावाभावावनप जािि ् गरीरो जािानम श्ररेो ि ि ुिि ् करोनम। आशास ुहम्या यस ुहृदास ुकुव यि ् रर्ा निरकु्तोऽनि िर्ा वहानम’ इनि च। ‘हत्वा नजत्वाऽनप मघवि ् राः कनश्चि ् परुुषारि।े अकिा य त्ववे भवनि किा य त्ववे करोनि िि ्’इनि च | ‘िद्यर्ाऽिाः ससुमानहिमतु्सज यद्यारादवेमवेार ंशरीर आत्मा प्राज्ञिेात्मिाऽन्वारढ उत्सजयद्यानि’ इनि च श्रनुिाः। ‘वाङ्मिनस सम्पद्यि े मिाः प्राण े प्राणस्तजेनस िजेाः परस्या ं दवेिाराम ्’ इनिच। गन्धानिव सकू्ष्मानण॥08॥ श्रोत्र ंचक्षाुः स्पशयि ंच रसि ंघ्राणमवे च। अनधष्ठार मिश्चार ंनवषरािपुसवेि॥े09॥ भोगोऽस्यानप सानधिाः परुस्ताि।् इनन्द्ररिारा नह सोऽनप भङेु्क्त। ‘िद्य इम ेवीणारा ंगारन्त्यिे ंि ेगारनन्त’ इनि च श्रनुिाः॥09॥

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उिामन्त ंनिि ंवाऽनप भञु्जाि ंवा गणुानन्विम।् नवमढूा िािपुश्रनन्त पश्रनन्त ज्ञािचक्षषुाः॥1 0॥ गणुानन्विमवे भङेु्क्त। ‘ि ह व ैदवेाि ् पाप ंगच्छनि’ इनि शृिाेः। िनहि नकनमनि ि दृश्रि इत्यि आह - उिामन्तनमत्यानदिा॥10॥

रिन्तो रोनगिश्चिै ंपश्रन्त्यात्मन्यवनििम।् रिन्तोऽप्यकृिात्मािो ििै ंपश्रन्त्यचिेसाः॥11॥ रिन्तो ज्ञाि ंप्राप्य। अकृिात्मािाः अशदु्धबदु्धराः॥11॥ रदानदत्यगि ंिजेो जगद्भासरिऽेनखलम।् रच्चन्द्रमनस रच्चाग्नौ ित्तजेो नवनद्ध मामकम॥्12॥ पवूोके्तमवे ज्ञाि ंप्रपञ्चरनि - रदानदत्यगिनमत्यानदिा॥12॥ गामनवश्र च भिूानि धारराम्यहमोजसा। पषु्णानम चौषधीाः सवा याः सोमो भतू्वा रसात्मकाः॥13॥ गाम ् भनूमम॥्13॥

अहं वशै्वािरो भतू्वा प्रानणिा ंदहेमानश्रिाः। प्राणापािसमारकु्ताः पचाम्यन्न ंचिनुव यधम॥्14॥

सवयस्य चाहं हृनद सनन्ननवष्टो मत्ताः िनृिज्ञािमपोहि ंच। वदेशै्च सवरैहमवे वदे्यो वदेान्तकृिदेनवदवे चाहम॥्15॥ वदेनिण यरानत्मका मीमासंा वदेान्ताः। िर्ा च सामवदे ेप्राचीिशालश्रनुिाः

‘स वदेान्तकृि ् स कालकाः इनि। स ह्यवे रनुक्तसतू्रकृि ् स कालक इनि’ इनि॥15॥

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िानवमौ परुुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च। क्षराः सवा यनण भिूानि कूटिोऽक्षर उच्यि॥े16॥ क्षरभिूानि ब्रह्मादीनि। कूटिाः - प्रकृनिाः। िर्ा च शाकयराक्ष्यश्रनुिाः - ‘प्रजापनिप्रमखुााः सवयजीवााः क्षरोऽक्षर परुुषो व ैप्रधािम।् िदुत्तम ंचान्यमदुाहरनन्त जालाजालं मािनरश्वािमकेम ्’ इनि॥16॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेपञ्चदशोऽध्याराः॥15॥

उत्तमाः परुुषस्त्वन्याः परमात्मते्यदुाहृिाः। रो लोकत्ररमानवश्र नबभत्य यव्यर ईश्वराः॥17॥

रिात्क्षरमिीिोऽहमक्षरादनप चोत्तमाः। अिोऽनि लोके वदे ेच प्रनर्िाः परुुषोत्तमाः॥18॥

रो मामवेमसमं्मढूो जािानि परुुषोत्तमम।् स सवयनवद्भजनि मा ंसवयभाविे भारि॥19॥

इनि गहु्यिम ंशास्त्रनमदमकंु्त मराऽिघ। एिद्बदु्ध्वा बनुद्धमाि ् स्याि ् कृिकृत्यश्च भारि॥20॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंपञ्चदशोऽध्याराः॥15॥

अर् षोडशोऽध्याराः

पमुर् यसाधिनवरोधीन्यििेाध्यारिे दश यरनि -

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श्रीभगवािवुाच अभर ंसत्त्व सशंनुद्धज्ञा यिरोगव्यवनिनिाः। दाि ंदमश्च रज्ञश्च स्वाध्यारस्तप आजयवम॥्01॥ िपाः - ब्रह्मचरा यनद। ‘ब्रह्मचरा यनदकं िपाः’ इनि ह्यनभधािम॥्01॥

अनहंसा सत्यमक्रोधस्त्यागाः शानन्तरपशैिुम।् दरा भिूषे्वलोलुत्व ंमाद यव ंिीरचापलम॥्02॥ पशैिुम ् - परोपद्रवनिनमत्तदोषाणा ंराजादाेः कर्िम ् -

‘परोपद्रवहिेिूा ंदोषाणा ंपशैिु ंवचाः। राजादसे्त ुमदाद्बीिरेदृनष्टदयप य उच्यि’े इनि ह्यनभदािम।् लौल्यम ् - रागाः - ‘रागो लौल्य ंिर्ा रनक्ताः’ इत्यनभदािाि।् अचापलं - िरै यम ् - ‘चपलश्चञ्चलोऽनिराः’ इत्यनभधािाि॥्02॥ िजेाः क्षमा धनृि शौचमद्रोहो िानिमानििा। भवनन्त सम्पद ंदवैीमनभजािस्य भारि॥03॥ क्षमा - ि ुक्रोधाभाविे सहापकि ुयरिपकृनिाः॥03॥

‘अक्रोधोऽदोषकृच्छत्रोाः क्षमावाि ् स निगद्यि’े इत्यनभधािाि॥्03॥ दम्बो दपोऽनभमािश्च क्रोधाः पारुष्यमवे च। आज्ञाि ंचानभजािस्य पार् य सम्पदमासरुीम॥्04॥

दवैी सम्पनिमोक्षार निबन्धारासरुी मिा।

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Page 161 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

मा शचुाः सम्पदम ् दवैीमनभजािोऽनस पाण्ढव॥05॥ दवैीं सम्पदमनभजािाः - प्रनिजािाः॥05॥ िौ भिूसगौ लोकेऽनिि ् दवै आसरु एव च। दवैो नवस्तरशाः प्रोक्त आसरंु पार् य म ेशृण॥ु06॥

प्रवनृत्त ंच निवनृत्त ंच जिा ि नवदुरासरुााः। ि शौच ंिानप चाचारो ि सत्य ंिषे ुनवद्यि॥े07॥

असत्यमप्रनिष्ठ ंि ेजगदाहरिीश्वरम।् अपरस्परसम्भिू ंनकमन्यत्कामहिैकुम॥्08॥ जगिाः सत्य ंप्रनिष्ठा - ईश्वरस्य नवष्णाुः। ििपैरीत्यिेाहाः।

‘िस्योपनिषि ् सत्यस्य सत्यनमनि। प्राणा व ैसत्य ंिषेामषे सत्यम ्’ इनि नह श्रनुिाः। ि ेवाव ब्रह्मणो रप ेमिू ंचामिू ंच निि ंच रच्च सच्च त्यच्च’ इनि। ‘िस्योपनिषि ् सत्यस्य सत्यनमनि। ‘एष ह्यवेिैि ् सादरनि रामरनि चनेि’ इनि प्राचीिशालशृनिाः। परस्परसम्भवो ह्यकु्ताः - ‘अन्नाद्भवनन्त’ इत्यानदिा॥08॥ एिा ं दृनष्टमवष्टभ् िष्टात्मािोऽल्प बदु्धराः। प्रभवन्त्यगु्रकमा यणाः क्षरार जगिोऽनहिााः॥09॥

काममानश्रत्य दुष्परंू दम्भमािमदानन्विााः। मोहाद्गहृीत्वाऽसद्ग्राहाि ् प्रवि यन्तऽेशनुचव्रिााः॥10॥ दुष्परूु नह कामाः।

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‘पािाल इव दुष्परूो मा ंनह िेशरि ेसदा’ इनि नह मोक्षधम॥े10॥ नचन्तामपनरमरेा ंच प्रळरान्तमपुानश्रिााः। कामोपभोगपरमा एिावनदनि निनश्चिााः॥11॥

आशापाशशिबै यद्धााः कामक्रोधपरारणााः। ईहन्त ेकामभोगार् यमन्यारिेार् यसञ्चराि॥्12॥

इदमद्य मरा लब्धनमम ंप्राप्स्य ेमिोरर्म।् इदमस्तीदमनप म ेभनवष्यनि पिुध यिम॥्13॥

असौ मरा हिाः शत्रहुयनिष्य ेचापरािनप। ईश्वरोऽहमहं भोगी नसद्धोऽहं बलवान्सखुी ॥14॥

आढ्योऽनभजिवािनि कोऽन्योऽनस्त सदृशो मरा। रक्ष्य ेदास्यानम मोनदष्य इत्यज्ञािनवमोनहिााः॥15॥

अिकेनचत्तनवभ्रान्ता मोहजालसमाविृााः। प्रसक्तााः कामभोगषे ुपिनन्त िरकेऽशचुौ॥16॥

आत्मसम्भानविााः स्तब्धा धिमािमदानन्विााः। रजन्त ेिामरज्ञसै्त ेदम्भिेानवनधपवू यकम॥्17॥

अहङ्कारं बलं दप ंकाम ंक्रोध ंच सशं्रीिााः। मामात्म परदहेषे ुप्रनिषन्तोऽभ्सरूकााः॥18॥

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Page 163 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

मामात्मपरदहेनेष्वनि - ि कस्यनचनिष्णाुः कारनरिा, रनद स्यान्ममापीदािीं काररि’ु इत्यानद।

‘ईश्वरो रनद सवयस्य कारकाः काररीि माम।् अद्यनेि वानदि ंब्ररूाि ् सदाऽधो रास्यसीनि ि’ु इनि नह सामवदे ेरास्कश्रनुिाः॥18॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार य नवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेषोडशोऽध्याराः॥

िािहं निषिाः कू्ररान्ससंारषे ुिराधमाि।् नक्षपाम्यजस्रमशभुािासरुीष्ववे रोनिष॥ु19॥

आसरुीं रोनिमापन्ना मढूा जन्मनि जन्मनि। मामप्राप्यवै कौन्तरे ििो रोन्त्यधमाम ् गनिम॥्20॥

नत्रनवध ंिरकस्यदे ंिारं िाशिमात्मिाः। काम क्रोधस्तर्ा लोभस्तिादिेत्रर ंत्यजिे॥्21॥

एिनैव यमकु्ताः कौन्तरे िमोिारनैस्त्रनभि यराः। आचरत्यात्मिाः श्ररेस्तिो रानि परा ंगनिम॥्22॥

राः शास्त्रनवनधमतु्सजृ्य वि यि ेकामकारिाः। ि स नसनद्धमवाप्नोनि ि सखु ंि परा ंगनिम॥्23॥

ििाच्छास्त्र ंप्रमाण ंि ेकारा यकार यव्यवनििौ। ज्ञात्वा शास्त्रनवधािोकं्त कमय कि ुयनमहाहयनस॥24॥

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॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंषोडशोऽध्याराः॥16॥

अर् सप्तदशोऽध्याराः गणुभदेाि ् प्रपञ्चरत्यििेाध्यारिे - अज ुयि उवाच

र ेशास्त्रनवनधमतु्सजृ्य रजन्त ेश्रद्धराऽनन्विााः। िषेा ंनिष्ठा ि ुका कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमाः॥01॥ शास्त्रनवनधमतु्सजृ्य - अज्ञात्ववै। ‘वदेाः कृत्स्नोऽनधगन्तव्याः सरहस्यो निजन्मिा’ इनि नवनधरुत्सषृ्टो नह िाैः ‘र ेव ैवदे ंि पठन्त ेि चार् ंवदेोनििासं्ताि ् नवनद्ध साििूबदु्धीि ्’ इनि माधचु्छन्दसश्रनुिाः। अन्यर्ा िामसा इत्यवेोच्यिे। ि ि ुनवभज्य। रनद सानत्त्वकास्तनहि िोत्सषृ्टशास्त्रााः। ि नह वदेनवरुद्धो धमयाः।

‘वदेोऽनखलो धमयमलंू िनृिशीले च िनिदाम ्’ इनि नह श्रनुिाः। ‘वदेप्रनणनहिो धमो ह्यधमयस्तनिपर यराः’ इनि च भागवि॥े01॥ श्री भगवािवुाच

नत्रनवधा भवनि श्रद्धा दनेहिा ंसा स्वभावजा। सानत्त्वकी राजसी चवै िामसी चनेि िा ंशृण॥ु02॥ अिो नवभज्याह - नत्रनवदते्यानदिा॥02॥ सत्वािरुपा सवयस्य श्रद्धा भवनि भारि। श्रद्धामरोऽर ंपरुुषो रो रच्छ्रद्धाः स एव साः॥03॥ सत्त्वािरुपा - नचत्तािरुपा। रो रच्छ्रद्धाः स एव साः सानत्त्वक श्रद्धाः सानत्त्वक इत्यानद॥03॥

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रजन्त ेसानत्त्वका दवेाि ् रक्षरक्षानंस राजसााः। प्रिेाि ् भिूगणाशं्चान्य ेरजन्त ेिामसा जिााः॥04॥ काः सानत्त्वकश्रद्ध इत्यानद नवभज्याह - रजन्त इत्यानदिा॥04॥ अशास्त्रनवनहि ंघोरं िप्यन्त ेर ेिपो जिााः। दम्भाहङ्कारसरंकु्तााः कामरागबलानन्विााः॥05॥

कष यरन्ताः शरीरि ंभिूग्राममचिेसाः। मा ंचवैान्ताःशरीरि ंिाि ् नवद्यासरुनिश्चराि॥्06॥ भगवत्कशयि ंिामाल्पत्वदृनष्टरवे। ‘रो व ैमहान्त ंपरम ंपमुासं ंिवै ंद्रष्टा कशयकाः सोऽनिपापी’ इनि ह्यिनभम्लािश्रनुिाः। असरुो निश्चरो रषेा ंि आसरुनिश्चरााः। ‘दवेास्त ुसानत्त्वकााः प्रोक्तााः दतै्या राजसिामसााः’ इनि ह्यनग्नवशे्रश्िनुिाः॥06॥ आहारस्त्वनप सवयस्य नत्रनवधो भवनि नप्रराः। रज्ञस्तपस्तर्ा दाि ंिषेा ंभदेनमम ंशृण॥ु07॥

आरसु्सत्त्वबलारोर्गरसखुप्रीनिनववध यिााः। रस्यााः नस्नर्गधााः निरा हृद्या आहारा सानत्त्वकनप्ररााः॥08॥ प्रीनिरािन्तनरका। हृद्यत्व ंदश यि।े निराश्च ि िदवै पक्वा भवनन्त। िर्ा ह्याज्यादराः॥08॥ कट्वम्ललवणात्यषु्णिीक्ष्णरक्षनवदानहिाः। आहारा राजसस्यषे्टा दुाःखशोकमरप्रदााः॥09॥

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Page 166 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

रािराम ंगिरस ंपनूि पर ुयनषि ंच रि।् उनच्छष्टमनप चामधे्य ंभोजि ंिामसनप्ररम॥्10॥

अफलाकानङ्क्षनभर यज्ञो नवनधदृष्टो र इज्यि।े रष्टव्यमवेनेि मिाः समाधार स सानत्त्वकाः॥11॥

अनभसन्दार ि ुफलं दम्भार् यमनप चवै रि।् इज्यि ेभरिश्रषे्ठ ि ंरज्ञ ंनवनद्ध राजसम॥्12॥

नवनधहीिमसषृ्टान्न ंमन्त्रहीिमदनक्षणम।् श्रद्धानवरनहि ंरज्ञ ंिामस ंपनरचक्ष्यि॥े13॥

दवेनिजगरुुप्राज्ञपजूि ंशौचमाज यवम।् ब्रह्मचर यमनहंसा च शारीरं िप उच्यि॥े14॥

अििुगेकरं वाक्य ंसत्य ंनप्ररनहि ंच रि।् स्वाध्याराभ्सि ंचवै वाङ्मर ंिप उच्यि॥े15॥

मिाःप्रसादाः सौम्यत्व ंमौिमात्मनवनिग्रहाः। भावसशंनुद्धनरत्यिेि ् िपो मािसमचु्यि॥े16॥ सौम्यत्वम ् - अक्रौर यम।् ‘अकू्रराः सौम्य उच्यि’े इनि ह्यनभधािम।् मौि ं- मििशीलत्वम ् -

‘बाल्य ंच पानण्डत्यम ् च निनव यद्यार् मनुिाः’ इनि नह श्रनुिाः। ‘एििे हीद ंसवं मिम।् रदििेदे ंसवं मि ंििान्मनुिस्तिान्मनुिनरत्याचक्षि’े इनि नह भाल्लवरेश्रनुिाः।

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‘कर्मन्यर्ा मािस ंिपाः स्याि ् ?॥16॥

श्रद्धरा पररा िप्त ंिपस्ति ् नत्रनवध ंिराैः। अफलाकानङ्क्षनभर ुयकै्ताः सानत्त्वकं पनरचक्षि॥े17॥

सत्कारमािपजूार् ंिपो दम्भिे चवै रि।् नक्ररि ेिनदह प्रोकं्त राजस ंचलमध्रवुम॥्18॥

मढूग्राहणेात्मिो रत्पीडरा नक्ररि ेिपाः। परस्योत्सादिार् ंवा ित्तामसमदुाहृिम॥्19॥

दािव्यनमनि रद्दाि ंदीरिऽेिपुकानरण।े दशे ेकाले च पात्र ेच िद्दाि ंसानत्त्वकं ििृम॥्20॥

रत्त ुप्रत्यपुकारार् ंफलमनुद्दश्र वा पिुाः। दीरि ेच पनरनिष्ट ंिद्दाि ंराजस ं ििृम॥्21॥

अदशेकाले रद्दािमपात्रभे्श्च दीरि।े असतृ्किमवज्ञाि ंित्तामसमदुाहृिम॥्22॥

ओ ंित्सनदनि निदशेो ब्रह्मणनस्त्रनवधाः ििृाः। ब्राह्मणास्तिे वदेाश्च रज्ञाश्च नवनहिााः परुा॥23॥ पिुश्च कमा यदीनिकि यव्यिानवधािार् यमर् यवादमाह - ओ ं ित्सनदत्यानदिा। परस्य ब्रह्मणो ह्यिेानि िामानि -

‘ओ ंजगद्यत्र स्वर ंच पणूो वदेोक्तरपोऽिपुचारिश्च।

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Page 168 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

सवाैः शभुशै्चानभरिुो ि चान्यरैोन्ति ् सनदत्यिेमर्ो वदनन्त’ इनि ह्यरृ्गवदेानखलेष।ु नििीरपादस्तच्छब्दार् याः। ‘सदवे सोम्यदेमग्र आसीि ्’ इनि च। ‘ओनमनि ब्रह्म’ इनि च। ििे ब्रह्मणा। आत्मपजूार् यम।् वदेनवनधव्य यञ्जिम।्मा िकू्तापरुस्ताि॥्23॥

ििादोनमत्यदुाहृत्य रज्ञदाििपाःनक्ररााः। प्रवि यन्त ेनवधािोक्तााः सिि ंब्रह्मवानदिाम॥्24॥

िनदत्यिनभसन्धार फलं रज्ञ िपाःनक्ररााः। दािनक्रराश्च नवनवधााः नक्ररन्त ेमोक्षकानङ्क्षनभाः॥25॥ िि ् फलं म स्यानदत्यिनभसन्धार॥25॥

सद्भाव ेसाधभुाव ेच सनदत्यिेि ् प्ररजु्यि।े प्रशस्त ेकमयनण िर्ा सच्छब्धाः पार् य रजु्यि॥े26॥

रज्ञ ेिपनस दाि ेच निनिाः सनदनि चोच्यि।े कमय चवै िदर्ीर ंसनदत्यवेानभधीरि॥े27॥ सद्भावशब्दिे प्रजिि ं सनूचिम।् ओनमत्यकु्त्वाऽिनभसन्धार फलं रज्ञदाििपआनदकृिामनिप्रीििेा यमसाम्याद्ब्रह्मवै निष्पानदिभंविीत्याशराः। िर्ाच ऋर्गवदेनखलषे ु- ‘ओरंज्ञाद्या निष्फलं कमय िि ् स्याि ् सििैदर् ंकमय वदनन्त वदेााः। िच्छब्दािा ंसनन्नधबे्र यह्मप्रीिसे्तदू्रपत्वाज्जनिि ंब्रह्म िस्य’ इनि॥27॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंसप्तदशोऽध्याराः॥17॥

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Page 169 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

अश्रद्धरा हि ंदत्त ंिपस्तप्त ंकृि ंच रि।् असनदत्यचु्यि ेपार् य ि च िि ् प्रते्य िो इह॥28॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचि ेश्रीमद्भगवद्गीिाभाष्य ेसप्तदशोऽध्याराः॥17॥

अर् अष्टादशोऽध्याराः पवूोकं्त साधि ंसव ंसनङ्क्षप्तोपसहंरत्यििेाध्यारिे- अज ुयि उवाच

सनं्यासस्य महाबाहो ित्त्वनमच्छानम वनेदिमु।् त्यागस्य च हृषीकेश परृ्क ्केनशनिषदूि॥01॥ श्री भगवािवुाच

काम्यािा ंकमयणा ंन्यास ंसनं्यास ंकवरो नवदुाः। सवयकम यफलत्याग ंप्राहस्त्याग ंनवचक्षणााः॥02॥ फलानिच्छराऽकरणिे वा काम्यकमयन्यासाः सनं्यासाः। त्यागस्त ु फलत्याग एव। िर्ानह प्राचीिशालश्रनुिाः - ‘अनिच्छराऽकमयणा वाऽनप काम्यन्यासो न्यासाः फलत्यागस्ततु्यागाः’ इनि॥02॥ त्याज्य ंदोषवदीत्यकेे कमय प्राहम यिीनषणाः। रज्ञदाििपाःकम य ि त्याज्यनमनि चापर॥े03॥ मिीनषणाः इि ् नवशषेणाि ् पवू यपक्षोऽनप ग्राह्य एव। फलत्यागिे त्यागो नववनक्षिो रज्ञादसे्तत्वक्ष।े ‘रस्त ुकमयफलत्यागी’ इनि च वक्ष्यनि। अि एक एवार ंपक्षाः॥03॥ निश्चर ंशृण ुम ेित्र त्याग ेभरिसत्तम। त्यागो नह परुुषव्याघ्र नत्रनवधाः सम्प्रकीनि यिाः॥04॥

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ित्प्रकारं चाह - निश्चरनमत्यानदिा॥04॥

रज्ञदाििपाःकम य ि त्याज्य ंकार यमवे िि।् रज्ञो दाि ंिपश्चवै पाविानि मिीनषणाम॥्05॥ रज्ञभदे उक्तो ‘द्रव्यरज्ञा’ इत्यानदिा। दाि े त्वभरदािमन्तभ यवनि। एिषेा ं मध्य े रनत्कनञ्चद्यज्ञानधकं कि यव्यमवेते्यर् याः। अन्यर्ा ‘ब्रह्मचारी गहृिो वा वािप्रिो रनिस्तर्ा। रदीचे्छन्मोक्षमािािमुतु्तमाश्रममाश्ररिे ्’ इनि व्यासिनृिनवरोधाः। ‘ज्ञािरज्ञनवद्याभरदािब्रह्मचरा यनदिपसो नह ि।े अिो रिचोऽन्यर्ा प्रिीरि े, अनधकारभदेिे िद्योज्यम।् अन्यर्िेरषेा ंगत्यभावाि॥्05॥ एिान्यनप ि ुकमा यनण सङं्ग त्यक्त्वा फलानि च। कि यव्यािीनि म ेपार् य निनश्चि ंमिमतु्तमम॥्06॥

निरिस्य ि ुसनं्यासाः कमयणो िोपपद्यि।े मोहाि ् िस्य पनरत्यागस्तामसाः पनरकीनि यिाः॥07॥

दुाःखनमत्यवे रत्कमय कारिेशभराि ् त्यजिे।् स कृत्वा राजस ंत्याग ंिवै त्यागफलं लभिे॥्08॥

कार यनमत्यवे रत्कमय निरि ंनक्ररिऽेज ुयि। सङं्ग त्यक्त्वा फलं चवै स त्यागाः सानत्त्वको मिाः॥09॥

ि िषे्ट्य कुशलं कमय कुशले िािषुज्जि।े त्यागी सत्त्वसमानवष्टो मधेावी निन्नसशंराः॥10॥

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Page 171 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

ि नह दहेभिृा शक्य ंत्यकंु्त कमा यण्रशषेिाः। रस्त ुकमयफलत्यागी स त्यागीत्यनभधीरि॥े11॥ अन्यस्त्यागार्ो ि रकु्त इत्याह - ि हीनि॥11॥ अनिष्टनमष्ट ंनमश्र ंच नत्रनवध ंकमयणाः फलम।् भवत्यत्यानगिा ंप्रते्य ि ि ुसनं्यानसिा ं क्वनचि॥्12॥ त्याग ंस्तौनि - अनिष्टनमनि॥12॥

पञ्चिैानि महाबाहो कारणानि निबोध म।े साङ्ख्य ेकृिान्त ेप्रोक्तानि नसद्धर ेसवयकम यणाम॥्13॥ पिुाः सनं्यास ंप्रपञ्चनरि ु ंकमयकारणान्याह - पञ्चते्यानदिा। साङ्ख्य ेकृिान्त े- ज्ञािनिद्धान्त॥े13॥

अनधष्टाि ंिर्ा किा य करण ंच परृ्नर्गवधम।् नवनवधाश्च परृ्चेष्टा दवै ंचवैात्र पञ्चमम॥्14॥ अनधष्ठाि ं-दहेानदाः। किा य - नवष्णाुः। स नह सव यकिते्यकु्तम।् जीवस्य चाकिृ यत्व ेप्रमाणमकु्तम।् करणम ् - इनन्द्ररानद। चषे्टााः - क्रीरााः। हस्तानद नक्ररानभनहि होमानदकमा यनण जारन्त।े ध्यािादरेनप मािसी चषे्टा कारणम।् पवू यििचषे्टाऽनप ससं्कारकारणत्विे भवनि। दवैम ् - अदृष्टम।् िर्ा चारास्यश्रनुिाः - ‘दहेो ब्रह्मार्नेन्द्रराद्यााः नक्रराश्च िर्ाऽदृष्ट ंपञ्चम ंकमयहिेाुः’ इनि॥14॥ शरीरवाङ्मिोनभर यत्कम य प्रारभि ेिराः। न्यार ंवा नवपरीि ंवा पञ्चिै ेिस्य हिेवाः॥15॥

ित्रवै ंसनि किा यरमात्माि ंकेवलं ि ुराः। पश्रत्यकृिबनुद्धत्वान्न स पश्रनि दुम यनिाः॥16॥ केवलं - निनिरम।्

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Page 172 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

एि ंकेविमात्माि ंनिनिरत्वािदनन्त नह’ इनि ित्रवै॥16॥ रस्य िाहङृ्किो भावो बनुद्धर यस्य ि नलप्यि।े हत्वाऽनप स इमा ँँल्लोकाि ् ि हनन्त ि निबध्यि॥े17॥ िज्ज्ञाि ंस्तौनि - रस्यनेि। रस्त्वीषद्बद्ध्यि ेस ईषदहङ्कारी च॥17॥

ज्ञाि ंज्ञरे ंपनरज्ञािा नत्रनवधा कमयचोदिा। करण ंकमय किनेि नत्रनवधाः कमयसङ्ग्रहाः॥18॥ एव ं िनहि ि परुुषमपके्ष्य नवनधाः, अकिृ यत्वानदत्यि आह - ज्ञािनमनि। नत्रनवधा कमयचोदिा। एिि ् नत्रनवधमपके्ष्य कमयनवनधनरनि नत्रनवधते्यचु्यि।े कारणानि सनङ्क्षप्याह - करणनमनि। कमयसङ्ग्रहाः - कमयकारणसङे्क्षपाः। अनधष्ठािानद करण एवान्तभू यिम।् िर्ाह्यरृ्गवदेनखलेष-ु ‘ज्ञाि ंज्ञरे ंज्ञानिि ंचाप्यपके्ष्य नवनधरुनत्थिाः। करण ंचवै किा य च कमयकारणसङ्ग्रहाः’। इनि अकितृ्वऽेनप नवनधिारशे्वरप्रसादानदच्छोत्वत्त्वा उक्तकारणाैः कमयिारा परुुषार्ो भविीनि। ईश्वराधीित्वऽेनप नवनधिारा निरिस्तिेवै। रनद चचे्छानदजा यरि े िनहि कानरिमवेशे्वरणे। फलं च निरिम।् वस्तिुोऽकिृ यत्वऽेप्यानभमानिकं किृ यत्व ं िस्यवै | स्वािन्त्र्य ं च जडमपुके्ष्यनेि ि प्रवनृत्तनवनधवरैर्थ्य यम ् | सव ंचिैदिभुवोक्तप्रमाणनसद्धनमनि ि परृ्क ्प्रमाणमचु्यि॥े18॥ ज्ञाि ंकमय च किा य च नत्रदवै गणुभदेिाः। प्रोच्यि ेगणुसङ्ख्याि ेरर्ावच्छृण ुिान्यनप॥19॥ पिुाः साधिप्रर्िार गणुभदेािाह - ज्ञािनमत्यानदिा। गणुसङ्ख्याि-ेगणुगणिप्रकरण॥े19॥

सवयभिूषे ुरिेकंै भावमव्यरमीक्षि।े अनवभकं्त नवभके्तष ुिज्ज्ञाि ंनवनद्ध सानत्त्वकम॥्20॥ एकं भावम ् - नवष्णमु॥्20॥

परृ्क्त्विे ि ुरज्ज्ञाि ंिािाभावाि ् परृ्नर्गवधाि।्

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Page 173 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

वनेत्त सवषे ुभिूषे ुिज्ज्ञाि ंनवनद्ध राजसम॥्21॥

रि ् ि ुकृत्स्नवदकेनिि ् कार ेसक्तमहिैकुम।् अित्त्वार् यवदल्प ंच िि ् िामसमदुाहृिम॥्22॥

निरि ंसङ्गरनहिमरागिषेिाः कृिम।् अफलप्रपे्सिुा कमय रि ् िि ् सानत्वकमचु्यि॥े23॥

रि ् ि ुकामपे्सिुा कमय साहङ्कारणे वा पिुाः। नक्ररि ेबहलारास ंिद्राजसमदुाहृिम॥्24॥

अिबुन्ध ंक्षर ंनहंसामिवके्ष्य च पौरुषम।् मोहादारभ्ि ेकमय रि ् िि ् िामसमचु्यि॥े25॥

मकु्तसङ्गोऽिहंवादी धतृ्यतु्साहसमनन्विाः। नसद्ध्यनसद्ध्योनिनव यकाराः किा य सानत्त्वक उच्यि॥े26॥

रागी कमयफलप्रपे्सलुुयब्धो नहंसात्मकोऽशनुचाः। हष यशोकानन्विाः किा य राजसाः पनरकीनि यिाः॥27॥

अरकु्ताः प्राकृिाः स्तब्धाः शठो िषृै्कनिकोऽलसाः। नवषादी दीघ यसतू्री च किा य िामस उच्यि॥े28॥ परकृि ंदोष ंदीघ यकालकृिमप्यिनुचि ंराः सचूरनि स दीघ यसतू्री- ‘परणे राः कृिो दोषो दीघ यकालकृिोऽनप वा।

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Page 174 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

रस्तस्य सचूको दोषाद्दीघ यसतू्री स उच्यि’े इत्यनभधािाि॥्28॥ बदु्र्भेदे ंधिृशे्चवै गणुिनस्त्रनवद ंशृण।ु प्रोच्यमािमशषेणे परृ्क्त्विे धिञ्जर॥29॥

प्रवनृत्त ंच निवनृत्त ंच कारा यकार ेभराभर।े बन्ध ंमोक्ष ंच रा वनेत्त बनुद्धाः सा पार् य सानत्त्वकी॥30॥

ररा धम यमधम ंच कार ंचाकार यमवे च। अरर्ावि ् प्रजािानि बनुद्धाः सा पार् य राजसी॥31॥ रर्ार् यत्वनिरमाभावो राजस्यााः, अन्यर्ा िामस्या भदेाभावाि॥्31॥ अधम ंधम यनमनि र मन्यि ेिमसाऽऽविृा। सवा यर्ा यि ् नवपरीिाशं्च बनुद्धाः सा पार् य िामसी॥32॥

धतृ्वा ररा धाररि ेमिाःप्राणनेन्द्ररनक्ररााः। रोगिेाव्यनभचानरण्रा धनृिाः सा पार् य सानत्त्वकी॥33॥

ररा ि ुधम यकामार्ा यि ् धतृ्या धाररिऽेज ुयि। प्रसङे्गि फलाकाङ्क्षी धनृिाः सा पार् य राजसी॥34॥

ररा स्वप्न ंभर ंशोकं नवषाद ंमदमवे च। ि नवमञु्चनि दुमधेा धनृिाः स पार् य िामसी॥35॥

सखु ंनत्वदािीं नत्रनवध ंशृण ुम ेभरिष यभ।

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अभ्ासाद्रमि ेरत्र दुाःखान्त ंच निगच्छनि॥36॥

रि ् िदग्र ेनवषनमव पनरणामऽेमिृोपमम।् िि ् सखु ंसानत्त्वकं प्रोक्तमात्मबनुद्धप्रसादजम॥्37॥

नवषरनेन्द्ररसरंोगाद्यि ् िदग्रऽेमिृोपमम।् पनरणाम ेनवषनमव ित्सखु ंराजस ंििृम॥्38॥

रदग्र ेचािबुन्ध ेच सखु ंमोहिमात्मिाः। निद्रालस्यप्रमादोत्थ ंिि ् िामसमदुाहृिम॥्39॥

ि िदनस्त पनृर्व्या ंवा नदनव दवेषे ुवा पिुाः। सत्त्व ंप्रकृनिजमै ुयकं्त रदनेभाः स्याि ् नत्रनभग ुयणाैः॥40॥

ब्राह्मणक्षनत्ररनवशा ंशदू्राणा ंच परन्तप। कमा यनण प्रनवभक्तानि स्वभावप्रभवगै ुयणाैः॥41॥

शमो दमस्तपाः शौच ंक्षानन्तराज यवमवे च। ज्ञाि ंनवज्ञािमानस्तक्य ंब्रह्मकमय स्वभावजम॥्42॥

शौर ंिजेो धनृिदा यक्ष्य ंरदु्ध ेचाप्यपलारिम।् दािमीश्वरभावश्च क्षात्र ंकमय स्वभावजम॥्43॥

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Page 176 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

कृनषगोरक्षवानणज्य ंवशै्रकम य स्वभावजम।् पनरचरा यत्मकं कमय शदू्रस्यानप स्वभावजम॥्44॥

स्व ेस्व ेकमयण्रनभरिाः सनंसनद्ध ंलभि ेिराः। स्वकमयनिरिाः नसनद्ध ंरर्ा नवन्दनि िच्छृण॥ु45॥

रिाः प्रवनृत्तभू यिािा ंरिे सवयनमद ंििम।् स्वकमयणा िमभ्च्यय नसनद्ध ंनवन्दनि मािवाः॥46॥

श्ररेाि ् स्वधमो नवगणुाः परधमा यि ् स्विनुष्ठिाि।् स्वभावनिरि ंकमय कुव यन्नाप्नोनि नकनल्बषम॥्47॥

सहज ंकमय कौन्तरे सदोषमनप ि त्यजिे।् सवा यरम्भा नह दोषणे धमूिेानग्ननरवाविृााः॥48॥

असक्तबनुद्धाः सवयत्र नजिात्मा नवगिस्पहृाः। िषै्कम्य यनसनद्ध ंपरमा ंसनं्यासिेानधगच्छनि॥49॥ िषै्कम्य यनसनद्धम ् - िषै्कम्य यफला ंरोगनसनद्धम॥्49॥ नसनद्ध ंप्राप्तो रर्ा ब्रह्म िर्ाऽऽप्नोनि निबोध म।े समासिेवै कौन्तरे निष्ठा ज्ञािस्य रा परा॥50॥ रर्ा रिेोपारिे नसनद्ध ंप्राप्तो ब्रह्म प्राप्नोनि िर्ा निबोध। रा नसनद्धज्ञा यिस्य परा निष्ठा॥50॥ बदु्ध्या नवशदु्धरा रकु्तो धतृ्याऽऽत्माि ंनिरम्य च। शब्दादीि ् नवषरासं्त्यक्त्वा रागिषेौ व्यदुस्य च॥51॥

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Page 177 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

नवनवक्तसवेी लघ्वाशी रिवाक्कारमािसाः। ध्यािरोगपरो नित्य ंवरैार्गर ंसमपुानश्रिाः॥52॥

अहङ्कारं बलं दप ंकाम ंक्रोध ंपनरग्रहम।् नवमचु्य निम यमाः शान्तो ब्रह्मभरूार कल्पि॥े53॥ ब्रह्मभरूार कल्पि।े ब्रह्मनण भावाः - ब्रह्मभरूम ् - ब्रह्मनण निनिाः सव यदा िन्मिस्किते्यर् याः॥53॥ ब्रह्मभिूाः प्रसन्नात्मा ि शोचनि ि काङ्क्षनि। समाः सवषे ुभिूषे ुमद्भनकं्त लभि ेपराम॥्54॥

भक्त्या मामनभजािानि रावाि ् रश्चानि ित्त्विाः। ििो मा ंित्त्विो ज्ञात्वा नवशि ेिदिन्तरम॥्55॥

सवयकमा यण्रनप सदा कुवा यणो मद्व्यपाश्रराः। मत्प्रसादादवाप्नोनि शाश्वि ंपदमव्यरम॥्56॥ पिुरन्तरङ्गसाधिान्यकु्त्वोपरंहरनि - सव यकमा यणीत्यानदिा॥56॥

चिेसा सवयकमा यनण मनर सनं्यस्य मत्पराः। बनुद्धरोगमपुानश्रत्य मनच्चत्ताः सिि ंभव॥57॥

मनच्चत्ताः सवयदुगा यनण मत्प्रसादात्तनरष्यनस। अर् चते्वमहङ्कारन्न श्रोष्यनस नविङ्क्षनस॥58॥

रदहङ्कारमानश्रत्य ि रोत्स्य इनि मन्यस।े नमर्थ्यषै व्यवसारस्त ेप्रकृनिस्त्वा ंनिरोक्षनि॥59॥

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स्वभावजिे कौन्तरे निबद्धाः स्विे कमयणा। कि ु ंिचे्छनस रन्मोहाि ् कनरष्यस्यवशोऽनप िि॥्60॥

ईश्वराः सवयभिूािा ंहृद्दशेऽेज ुयि निष्ठनि। भ्रामरि ् सवयभिूानि रन्त्रारढानि माररा॥61॥ परोक्षवचि ंि ुद्रोण ंप्रनि भीमवचिवि॥्61॥ िमवे शरण ंगच्छ सवयभाविे भारि। ित्प्रसादाि ् परा ंशानन्त ंिाि ंप्राप्स्यनस शाश्विम॥्62॥

इनि ि ेज्ञािमाख्याि ंगहु्याि ् गहु्यिरं मरा। नवमशृ्रिैदशषेणे रर्चे्छनस िर्ा कुरु॥63॥

सवयगहु्यिम ंभरूाः शृणमु ेपरम ंवचाः। इष्टोऽनस म ेधढृनमनि ििो वक्ष्यानम ि ेनहिम॥्64॥

मन्मिा भव मद्भक्तो मद्यजी मा ंिमसु्करु। मामवेषै्यनस सत्य ंि ेप्रनिजाि ेनप्ररोऽनस म॥े65॥

सवयधमा यि ् पनरत्यज्य मामकंे शरण ंव्रज। अहं त्वा सवयपापभे्ो मोक्षनरष्यानम मा शचुाः॥66॥ धमयत्यागाः - फलत्यागाः। कर्मन्यर्ा रदु्धनवनधाः? ‘रस्त ुकमयफलत्यागी स त्यागीत्यनभदीरि’े इनि चोक्तम॥्66॥ इद ंि ेिािपस्कार िाभक्तार कदाचि।

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ि चाशशु्रषूव ेवाच्य ंि च मा ंरोऽभ्सरूनि॥67॥

र इद ंपरम ंगहु्य ंमद्भके्तष्वनभधास्यनि। भनकं्त मनर परा ंकृत्वा मामवेषै्यत्यसशंराः॥68॥

ि च ििान्मिषु्यषे ुकनश्चन्म ेनप्ररकृत्तमाः। भनविा ि च म ेििादन्याः नप्ररिरो भनुव॥69॥

अध्यषे्यि ेच र इम ंधम्य ंसवंादमावरोाः। ज्ञािरज्ञिे ििेाहनमष्टाः स्यानमनि म ेमनिाः॥70॥

श्रद्धावाििसरूश्च शृणरुादनप रो िराः। सोऽनप मकु्ताः शभुाि ् लोकाि ् प्राप्नरुाि ् पणु्रकम यणाम॥्71॥

कनच्चदिेि ् शृि ंपार् य त्वरकैाग्रणे चिेसा। कनच्चदज्ज्ञािसम्मोहाः प्रिष्टस्त ेधिञ्जर॥72॥ अज ुयि उवाच

िष्टो मोहाः िनृिलयभ्दा त्वत्प्रसादान्मराऽच्यिु। नस्धिोऽनि गिसन्दहेाः कनरष्य ेवचि ंिव॥73॥ सञ्जर उवाच

इत्यहं वासदुवेस्य पार् यस्य च महात्मिाः। सवंादनमममश्रौषमद्भिु ंरोमहष यणम॥्74॥

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Page 180 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

व्यासप्रसादाच्छ्रिुवाििेद्गहु्यमहं परम।् रोग ंरोगशे्वराि ् कृष्णाि ् साक्षाि ् कर्रर्ाः स्वरम॥्75॥

राजि ् सिंतृ्य सिंतृ्य सवंादनमममद्भिुम।् केशवाज ुयिरोाः पणु्र ंहृष्यानम च महुम ुयहाः॥76॥

िच्च सिंतृ्य सिंतृ्य रपमत्यद्भिु ंहराेः। नविरो म ेमहान्राजि ् हृष्यानम च पिुाः पिुाः॥77॥

रत्र रोगशे्वराः कृष्णो रत्र पार्ो धिधु यराः। ित्र श्रीनव यजरो भनूिध्र ुयवा िीनिम यनिम यम॥78॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिारा ंअष्टादशोऽध्याराः॥18॥

॥इनि श्रीमद्भगवद्गीिा॥

रस्य त्रीण्रनुदिानि वदेवचि ेरपानण नदव्यान्यलं बट ्िद्दशयिनमत्थमवे निनहि ंदवेस्य भगो महि।् वारो रामवचोिर ंप्रर्मकं पकृ्षो नििीर ंवपाुः मयध्वो रि ् ि ुििृीरकं कृिनमद ंभाष्य ंनह ििे प्रभौ॥ पणूा यदोषमहानवष्णगुीिामानश्रत्य लेशिाः। निरपण ंकृि ंििे प्रीरिा ंम ेसदा नवभाुः॥

॥इनि श्रीमदािन्दिीर् यभगवत्पादाचार यनवरनचिशे्रीमद्भगवद्गीिाभाष्यम॥्

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Page 181 आचारा याः श्रीमदाचारा याः सन्त ुम ेजन्म जन्मनि॥गरुुभाव ंव्यञ्चरनन्त भानि श्री जरिीर् यवाक ्॥कृष्ण ंवन्द ेजगद्गरुुम ् ॥

श्री कृष्णाप यणमस्त॥ु ॥मखु्यप्राण वश ेसवं स नवष्णोव यशगाः सदा॥

॥प्रीणरामो वासदुवे ंदवेामण्डलाखण्डमण्डािम॥्