b];xl/of0ff - desharyana.indesharyana.in/wp-content/uploads/2019/07/des-21.pdf · की जमmन...

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क 21, जनवरी - फरवरी 2019 पादक सुभाष च सह-पादक अŁण कैहरबा पादन सहयोग जयपाल, कृण कुमार, अविनाश सैनी, अमन िावश, राजकुमार जा गडा सलाहकार ो। टीआर कु डू, परमान द शाľी, ओमकाश कŁणेश सुरेपाल वस ह, सयिीर नाहवडया धन विपुला, विकास सायाण सार सुनील, इकबाल, राजेश कुमार, जपाल कानूनी सलाहकार जगदीश च आयय, राजवि चदी देस हररयाणा 912, सैटर-13, कुŁे, (हररयाणा)-136118 पादकीय - 94164-82156 पकय - यिथा - 99918-78352 -मेल : haryanades@gmail.com Website: desharyana.in Facebook.com//desharyana Youtube.com//desharyana सहयोग राशि यविगत: 3 िषय 500/, 1 िषय 200/- (रवज. डाक खचय अलग) था: 3 िषय 1400/-, 1 िषय 500/- आजीिन: 5000/- रक :10000/- ऑनलाईन भुगतान के शलए देस हररयाणा, इलाहाबाद बक कुŁे बक खाता संया - 50297128780, IFSC: ALLA0211940 कावशत रचनाओं म तुत विचार एिं ŀविकोण से सपादक का सहमत होना आियक नह । सपादक एिं संचालन अयिसावयक एिं अिैतवनक, समत कानूनी वििादŌ का याय-े कुŁे यायालय होगा। िामी-काशक-सपादक-मुक सुभाष चं ारा 912, सैटर-13, कुŁे हररयाणा से कावशत ISSN 2454-6879 b]; x l/of0ff इबकी बार पादकीय जनपीय राजनीवत का मागय शत कर 02 कहाशनया तारा पा चाल - दरअसल 14 एस. आर. हरनोट - लाई वकलर 22 जीवनी ोफे सर सुभाष सैनी - उधम वस ह की आमकथा 04 याा सुर पाल वस - 36 साशहय शवमिशवशका त ीिाति - अमीर खुसरो से चलकर ... 43 सााकार 18 कशवताए जोवतबा फु ले –19 दयालच द जाट 46 आर.डी. आनद 21 विजय कु मार वस घल 62 आमकय वदनेश दधीवच - म यŌ वलखता हं 20 इशतहास राज सोमेश - 63 वसीक अहमद मेि - ग घासेडा 41 दोहे राज गौतम - कायक की łत 47 खेल शखलाडी अविनाश सैनी - 45 आमकथा भीमराि आ बेडकर - िवट ग फॉर िीजा 51 शवरासत विनोबा भािे - म वह भी हं मुसलमान भी 48 लघु कथा हरभगिान चािला - इवतहास, भेवडया .... 38 रागनी मुके श यादि - मनजीत भोला 61 लोक कथा राजवकशन नैन - वकताब का वलया 50 - डरैगा सो मरैगा 50 हलचल जयलाल दास जय ती पर सावहयकार समावनत 49 पाठक पाशत ेम अिाल, डा. राज चौधरी 62 आवरण शिजाइन असीम

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  • अंक 21, जनवरी- फरवरी 2019

    संपादक

    सभुाष चंद्र

    सह-संपादक

    अरुण कैहरबा

    संपादन सहयोग

    जयपाल, कृष्ण कुमार, अविनाश सैनी,

    अमन िावशष्ठ, राजकुमार जांगडा

    सलाहकार

    प्रो। टीआर कंुडू, परमानंद शास्त्री, ओमप्रकाश

    करुणशे सरेुन्द्द्रपाल वसंह, सत्यिीर नाहवडया

    प्रबंधन

    विपलुा, विकास साल्याण

    प्रसार

    सनुील, इकबाल, राजेश कुमार, ब्रजपाल

    कानूनी सलाहकार

    जगदीश चंद्र आयय, राजविन्द्द्र चन्द्दी

    देस हररयाणा

    912, सैक्टर-13, कुरुक्षेत्र, (हररयाणा)-136118

    संपादकीय - 94164-82156

    संपकय - व्यिस्था - 99918-78352

    ई-मेल : [email protected]

    Website: desharyana.in

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    सहयोग राशि

    व्यविगत: 3 िषय 500/, 1 िषय 200/-

    (रवज. डाक खचय अलग)

    संस्था: 3 िषय 1400/-, 1 िषय 500/-

    आजीिन: 5000/- संरक्षक :10000/-

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    दसे हररयाणा, इलाहाबाद बैंक कुरुक्षते्र

    बैंक खाता संख्या - 50297128780,

    IFSC: ALLA0211940

    प्रकावशत रचनाओ ंमें प्रस्तुत विचार एिं दृविकोण से सम्पादक का सहमत होना आिश्यक नहीं ।

    सम्पादक एिं संचालन अव्यिसावयक एिं अिैतवनक, समस्त काननूी वििादों का न्द्याय-के्षत्र कुरुके्षत्र न्द्यायालय होगा।

    स्िामी-प्रकाशक-सम्पादक-मदु्रक सभुाष चंद्र द्वारा 912, सैक्टर-13, कुरुके्षत्र हररयाणा से प्रकावशत

    ISSN 2454-6879

    b];xl/of0ff इबकी बार सपंादकीय जनपक्षीय राजनीवत का मागय प्रशस्त करें 02 कहाशनयां तारा पांचाल - दरअसल 14

    एस. आर. हरनोट - फ्लाई वकल्लर 22

    जीवनी प्रोफेसर सभुाष सनैी - उधम वसहं की आत्मकथा 04

    यात्रा सरुेंद्र पाल वसहं - 36

    साशहत्य शवमिश शवशकांत श्रीिास्ति - अमीर खसुरो स ेचलकर ... 43

    साक्षात्कार 18

    कशवताए ं जोवतबा फुल े–19 दयालचदं जास्ट 46

    आर.डी. आनन्द्द 21

    ग़ज़ल विजय कुमार वसघंल 62

    आत्मकथ्य वदनशे दधीवच - मैं क्यों वलखता ह ं 20

    इशतहास राजेंद्र सोमशे - 63

    वसद्दीक अहमद मिे - गढ़ घासडेा 41

    दोहे राजेंद्र गौतम - कात्यक की रूत 47

    खेल शखलाडी अविनाश सनैी - 45

    आत्मकथा भीमराि आबेंडकर - िवेटंग फॉर िीजा 51

    शवरासत विनोबा भाि े - मैं वहदं ूभी ह ंमसुलमान भी 48

    लघु कथा हरभगिान चािला - इवतहास, भवेडया.... 38

    रागनी मकेुश यादि - मनजीत भोला 61

    लोक कथा राजवकशन ननै - वकताब का वलख्या 50

    - डरैगा सो मरैगा 50

    हलचल जयलाल दास जयंती पर सावहत्यकार सम्मावनत 49

    पाठक पाशत प्रमे अग्रिाल, डा. राजेंद्र चौधरी 62

    आवरण शिजाइन असीम

  • 2 जनिरी- फरिरी 2019

    b];xl/of0ff

    सेवा देि दी शजंदशडए बडी ओखी,

    गललां करशणयां ढेर सुखशललयां ने।

    शजननां देि सेवा शवच पैर पाइया

    उननां लख मुसीबतां झशललयां ने।

    - करतार शसंह सराभा

    यह साल जवलयांिाला बाग नरसहंार का सौिां साल ह।ै यह घटना सत्ता के दमन,

    कू्ररता, वनदययता और अमानिीयता के चररत्र को दशायती ह ैतो दसूरी तरफ सत्ता के इस मानि

    -विरोधी रियेै के वखलाफ जनता के सघंषय की याद वदलाती ह।ै यह बात सही ह ै वक सन ्

    1947 में भौवतक तौर पर तो साम्राज्यिादी सत्ता भारत स ेरुख़सत हो गई, लेवकन सामतंी ि

    साम्राज्यिादी शासकीय चररत्र के अिशेष जरूर छोड गई। शायद यही कारण ह ैवक जनता

    को जब-तब सत्ता के दमनकारी और कू्ररतापणूय व्यिहार के दशयन होते ही रहते हैं। लेवकन यह

    भी वदन के उजाले की तरह साफ ह ै वक वजस तरह से दशेभिों-क्रांवतकाररयों ने सत्ता को

    करारा जबाब वदया था िह लोकतंत्र में भरोसा करने िालों को हमशेा ही पे्ररणा दतेा रहगेा ।

    यह िषय भारत के लोकतंत्र के वलए अहम ह।ै इस िषय पदं्रहिीं लोकसभा के वलए चनुाि

    होने हैं। यही अिसर होता ह ैजब जनता राजनीवतक दलों स ेवहसाब मांगती ह ैऔर उनका

    वहसाब भी चकुता करती ह।ै इसी दौरान जनता राजनीवत सीखती भी ह ैऔर राजनीवतबाज

    नेताओ ंि दलों को वसयासत का पाठ वसखाती भी ह।ै

    चनुािों के दौरान वकसी न वकसी रूप में समस्त आबादी राजनीवतक प्रवक्रयाओ ंमें

    शावमल होती ह।ै जनता की समस्त ऊजाय एक वबंद ूपर कें वद्रत हो जाती ह।ै जनता राजनीवत

    में वदलचस्पी तो लेती ह,ै लवेकन अनभुि ये बताता ह ै वक चनुािों के दौरान राजनीवतक

    विमशय की गणुित्ता नहीं होती। जनता तो राजनीवत स े अपने जीिन से जडेु सामावजक-

    आवथयक मदु्दों पर सिंाद करना चाहती ह ैऔर अपनी समस्याओ ं के समाधान पर बहस

    चाहती ह,ै लेवकन विडम्बना ही ह ैवक अखबारों, इलेक्रोवनक मीवडया, सोशल मीवडया या

    परस्पर बातचीत में चनुािी जीत की वतकडमों, जोड-तोड, नेताओ ं की परस्पर की गई

    जनपक्षीय राजनीति का मार्ग प्रशस्त करें

    संपादकीय

  • जनिरी- फरिरी 2019 3

    b];x

    l/of0ff

    वटप्पवणयों और क्षेत्र विशेष के जावतगत समीकरणों के जोड-

    घटा में चनुािी-विमशय की इवतश्री हो जाती ह।ै

    अपनी नाकामयावबयों को छुपाने के वलए राजनीवतक

    दल लोगों को जात-धमय-क्षेत्र आवद की सकंीणयताओ ं में

    उलझाने की भरसक कोवशश करते हैं। भािनात्मक ि गैर-

    राजनीवतक सिालों पर ऐसा उन्द्माद पैदा करते हैं वक

    िास्तविक समस्याओ ं से ध्यान हट जाता ह।ै लोकतंत्र के

    चनुािी-पिय में शोर-शाराबा ि जोश तो होता ह,ै लेवकन

    वििके मदं पड जाता ह।ै

    इन अिसरों पर और ऐस े माहौल में बवुिजीवियों-

    सावहत्यकारों-सजृनकवमययों की अवधक भवूमका बनती ह,ै

    लेवकन अनभुि यही बताता ह ै वक इस दौरान साियजवनक

    जीिन पर उनका विशषे प्रभाि नजर नहीं आता। राजनीवत के

    इस बंभवुिये से ि ेबचकर ही वनकल जाना चाहते हैं। वसने-

    कलाकारों को तो राजनीवतक दल ि नेता अपने प्रचार में

    बलुाते भी हैं, लेवकन सावहत्यकारों की शायद ही वकसी को

    याद आती होगी। समाज में विचारों ि सिंदेना को पररष्कृत

    करने िाला यह जीि इस समय वनहायत अप्रासवंगक हो

    जाता ह।ै राजनीवतक दलों में विचारहीन लोगों के दबदबे के

    कारण ही ऐसा नहीं हो रहा, बवल्क स्ियं सावहत्यकार भी

    इसके वजम्मिेार हैं।

    सावहत्यकारों का दावयत्ि बनता ह ै वक िे राजनीवतक

    प्रवक्रयाओ ंऔर पररघटनाओ ं को तो अपनी रचनाओ ं की

    विषयिस्त ु बनाए ं ही, बवल्क जमीनी स्तर पर हरसभंि

    कोवशश करें वक राजनीवत की वदशा ि चररत्र जनपक्षीय बने।

    सत्ता-वपपास ु दलों की राजनीवत को जनता के समक्ष

    उदघावटत करने में रुवच लेते हुए जनपक्षीय राजनीवत का मागय

    प्रशस्त करें। पे्रमचदं ने िसै े ही नहीं कहा था वक सावहत्य

    राजनीवत का वपछलग्ग ू नहीं, बवल्क मशाल लेकर उसके

    आगे चलता ह।ै कुछ सावहत्यकार सावहत्य को राजनीवत से

    दरू रखने की िकालत करते रहते हैं और विवभन्द्न दलों के

    राजनेताओ ंि सरकारों स ेविवभन्द्न वकस्म के परुस्कार झटकने

    ि कवथत सम्मान प्राप्त करने के जगुाड भी वभडाते रहते हैं।

    लेवकन विचार करने की बात यह ह ै वक यवद बाल्मीवक के

    रामायण और व्यास के महाभारत महाकाव्य से राजनीवत

    वनकाल दें उसमें बचेगा ही क्या ? यवद ये महाकवि अपने

    समय की राजनीवत से उदासीन रहते तो ऐसी कालजयी

    कृवतयों की रचना वबल्कुल भी नहीं कर सकते थे।

    यह साझा करते हुए हमें बेहद खशुी हो रही ह ैवक दसे

    हररयाणा पवत्रका की टीम 9 ि 10 फरिरी को कुरुक्षेत्र

    विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के आर के सदन में तीसरे हररयाणा

    सजृन-उत्सि का आयोजन कर रही ह।ै पहले दो सजृन

    उत्सिों ने हररयाणा के सावहवत्यक-सांस्कृवतक-बौविक

    पररिशे में अपनी पहचान बनाई ह।ै यह एक ऐसा अनठूा

    काययक्रम ह,ै वजसमें सजृन के समस्त माध्यमों में काययरत

    सजृनकमी और समाज में बदलाि के वलए काययरत समस्त

    िचैाररक सरवणयों स े सबंंि काययकताय शावमल होते हैं।

    सामावजक ि सजृनात्मक मदु्दों पर रचनात्मक सिंाद करते हैं।

    रेखांवकत करने योग्य बात ये ह ै वक यह सिंाद बवुि-

    विलावसयों का चकल्लस नहीं, बवल्क सामावजक बदलाि

    की जमीन तैयार कर रहा ह।ै विशषे बात ये भी ह ै सजृन के ये

    उत्सि सरकारी ससं्थाओ ं अथिा सठेों-पूजंीपवतयों के

    अनदुान स ेनहीं, बवल्क जन-धन से हो रह ेहैं। इन उत्सिों ने

    प्रदशे और दशे के सावहत्यकारों का ध्यान अपनी ओर

    आकवषयत वकया ह ैऔर सावहत्यकारों-सजृनकवमययों का हर

    प्रकार स ेभरपरू सहयोग इन उत्सिों को वमल रहा ह।ै इनकी

    सफलता का परूा श्रये दसे हररयाणा पवत्रका की टीम को ह ै

    जो अपने वमत्रों-सहयोवगयों से धन एकवत्रत करने से लेकर

    काययक्रम की व्यिस्था के हरेक पहल ूमें जी-जान लगाती ह।ै

    इस अकं में तारा पांचाल ि एस. आर. हरनोट की

    कहावनयां, डॉ. भीमराि आबेंडकर की आत्मकथा, शहीद

    उधम वसहं की जीिनी, हरभगिान चािला की लघकुथाए,ं

    स्िामी िावहद काजमी के साक्षात्कार समेत रागनी ि

    लोकथाए ं भी हैं। इसमें कहानी, आत्मकथा ि जीिनी

    आकार की दृवि स ेकुछ लंबी लग सकती हैं, लेवकन ये बेहद

    जरूरी ि सामवयक हैं।

    उम्मीद ह ैवक आप को यह अकं पसदं आयेगा।

    प्रोफेसर सुभाष चंद्र

  • 4 जनिरी- फरिरी 2019

    b];xl/of0ff

    सेिा दशे दी वजंदवडए बडी ओखी,

    गल्लां करवणयां ढेर सखुवल्लयां ने।

    वजन्द्नां दशे सेिा विच पैर पाइया

    उन्द्नां लख मसुीबतां झवल्लयां ने।

    ये पंवियां मेरी जेब में हमेशा ही रहती हैं। अपने

    करतार वसंह सराभा के गीत की हैं। सराभा ? साढे़ उन्द्नीस साल

    की उम्र में ही फांसी पर चढ़ाया गया था उसे। गदर पाटी का हीरो

    था हीरो। क्रांवतकाररयों का पे्ररणा-पुंज। शहीद भगतवसंह की जेब

    में तो सराभा की फोटो हमेशा रहती थी। गदर पाटी का अखबार

    छापते थे सराभा। बडा वदलचस्प विज्ञापन छपता था उसमें।

    जरूरत ह ै.... जोशीले .... बहादरु .... सैवनकों की

    तनख्िाह - मौत

    इनाम - शहादत

    पेंशन - आजादी

    काययक्षेत्र - वहदंोस्तान

    मझुे जानते हो? शहर के चौक पे लगा बतु कुछ कुछ

    मेरी शक्ल से वमलता ह ैऔर उस पर नाम वलखा रहता ह ै -

    शहीद उधम वसंह। मेरी वजंदगी की दास्तान जानने की इच्छा ह।ै

    कहां से शरुु करें। चलो शरुु से ही शरुु करता ह ।ं

    उन्द्नीसिीं सदी खत्म होने और बीसिीं सदी शरुु होने

    में केिल पांच वदन बाकी थे जब जन्द्म हुआ। वहसाब वकताब

    लगाने लगे। 26 वदसम्बर 1899। वदन था मंगलिार।

    कोई भी शख्स अपने माहौल, अपने जमाने की

    हलचलों और अपनी परंपरा से ही बनता ह।ै वकसी शवख्सयत

    को जानना हो तो उस माहौल को दखेो वजसमें िो पला-बढ़ा।

    जन्द्म हुआ सनुाम में। पंजाब का एक कस्बेनमुा गांि।

    उस समय पवटयाला ररयासत का भाग था। पंजाब गरुुओ ंकी

    धरती ह।ै गरुुओ ंकी शहादत और त्याग के वकस्से तो घटु्टी में

    वमलते हैं यहां। लैला-मजनूं, शीरीं-फरहाद, सोहनी-मवहिाल के

    प्रेम वकस्से बच्चे-बच्चे की जबुान पर हैं। ये वकस्से भी त्याग से

    ही शरुु होते हैं और खत्म होते हैं शहादत पर।

    भारत का स्ितंत्रता संग्राम भी त्याग और बवलदान की

    दास्तान ह।ै पंजाब में हवथयारबंद आदंोलनों ि शहादत की धारा

    खबू परिान चढ़ी। कूका-आदंोलन, गदर-पाटी, बब्बर अकाली,

    नौजिान भारत सभा, वकरती पाटी और साम्यिादी ग्रपु सब

    हवथयारों से वहचवकचाहट नहीं करते। इन वहरािल दस्तों में

    लडाके थे - वकसानों और मजदरूों के बेटे। िो इसवलए वक

    अगं्रेजों के जमाने में सबसे ज्यादा दगुयवत इन्द्हीं की हुई थी। राजे-

    रजिाडे, जागीरदार तो चांदी कूट रह ेथे अगं्रेजों के साथ वमलकर।

    आप भी लटूो और लटू में साथ दो यही था इनका जीिन-सतू्र ।

    मेरे वपता छोटे वकसान थे। खतेी करते। वमट्टी के साथ

    वमट्टी होना पडता तब चार दाने हाथ लगते। वकतना ही पैदा कर

    लो। शोषण की चक्की में बचता ठन-ठन गोपाल। खाने के लाले

    पडे रहते। वजस बंद ेको दो टाइम की रोटी नसीब ना हो उसकी

    सामावजक हवैसयत का अदंाजा लगाना कोई मवुश्कल थोडे ही

    ह।ै बडा असर पडता ह ै बंद े की पसयनल्टी पर काम-धंधे का।

    पररिार की बैकराऊंड का। वकसान को हाडतोड मेहनत करनी

    पडती ह।ै नेचर के साथ। खलेु में। गमी-सदी-बरसात, अधंेरा-

    उजाला। कोई विंटर िेकेशन नहीं, कोई समर िेकेशन नहीं।

    भोलापन, सादगी, स्पििावदता वकसान के करेक्टर में रचे बसे

    होते हैं। एक और बडी खास बात होती ह ै - घोर विपवत्त भी

    वजंदगी का प्रसाद मानकर हसंते-हसंते खा लेना।

    मां का नाम हरनाम कौर और बाप था श्री टहल वसंह।

    सनुा ह ैपहले मेरी मां का नाम था नरैणी था और बाप का चहुड

    राम। सोच में पड गए वक वफर ये नाम कैसे बदल गए। बताता

    ह ं...

    एक थे बाब ू धन्द्ना वसंह। नीलोिाल नहर पर

    ओिसवसयर बन कर आए थे। उनका दफ्तर और घर सनुाम में

    था। बडे धमय-कमय िाले आदमी थे। मेरे वपता उनके संपकय में आ

    गए और उनसे प्रभावित होकर अमतृपान कर वलया। उस मौके

    पर मां नरैणी से हो गई हरनाम कौर और बाप ूचहूडऱाम हो गए

    टहलवसंह।

    दरअसल खालसा पंथ की नींि रखते समय गरुु

    गोवबंद वसंह ने पानी के कडाह ेमें शक्कर घोली थी अपने खांडे

    शहीद उधम तसंह की आत्मकथा िॉ. सुभाष चनद्र

    (जशलयांवाला बाग नरसंहार का 100 वां साल है। इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम व समाज को शवशभनन तरीकों से प्रभाशवत शकया था।

    िहीद उधम शसंह का नाम इससे जुडा है। इस अवसर पर प्रस्तुत है आत्मकथात्मक िैली में शलखी गई उनकी जीवनी। इसके लेखक सुभाष

    चंद्र कुरुके्षत्र शवश्वशवद्यालय के शहंदी-शवभाग में प्रोफेसर हैं और देस हररयाणा पशत्रका के संपादक हैं)

    जीवनी

  • जनिरी- फरिरी 2019 5

    b];x

    l/of0ff

    की धार से। उसी कडाह ेसे मुंह लगाकर वपया था सबने। कोई झठू

    -सचू नहीं थी। सब बराबर। कोई जात न पांत। ऊंच ना नीच।

    यही ह ै अमतृ छकना - अपने को समवपयत करने का भाि जगाने

    की एक वक्रया।

    दरअसल बात ये थी वक बाब ूधन्द्नावसंह ने नहर पे मेरे

    बाप ूकी नौकरी भी लगिा दी थी - यही बेलदार िगैरह। कुछ

    लोग ये भी कहते हैं वपता जी उनके घरेल ूनौकर थे। जो भी हो।

    एक बात पक्की ह ैजब उनकी सनुाम से बदली हो गई तो वपता

    जी बेरोजगार हो गए थे।

    बचपन को याद करना तो ऐसा ह ै जैसे हथेली पे

    अगंारा रख वदया हो। मां की तो शक्ल भी याद नहीं। मैं जब तीन

    साल का भी नहीं हुआ था तो िो दवुनया से चलाणा कर गई।

    कहते हैं बखुार वबगड गया था। घर में बच गए तीन जीि। बाप,ू

    मैं और मेरा बडा भाई साध ुवसंह। भाई मझुसे तीन साल बडा था।

    मां गजुर गई और बाप ू के पास कोई रोजगार नहीं।

    सोचता ह ं तो मैं थोडा भािकु हो जाता ह ।ं बाप ू पे क्या बीती

    होगी? दो छोटे-छोटे बच्चे रोजगार कुछ ह ैनहीं। पर पेट तो खाने

    को मांगता ह।ै

    वपता जी ने रेलिे की नौकरी कर ली। उपाली गांि में

    डयटूी। नौकरी थी - फाटकमैन। काम कुछ खास नहीं था। वदन में

    एक-दो गाडी गजुरती। गाडी आई, फाटक बंद कर वदया। गाडी

    गई, फाटक खोल वदया। सारा वदन खाली। रेलिे क्िाटर में रहते।

    क्िाटर क्या िह कोठडी ही थी। वपता जी वकसान तो थे ही। आस

    पास की जमीन ठीक कर ली। सब्जी उगा ली। दधू पीने के वलए

    बकररयां पाल ली। मैं छोटा सा ही था। पर मेरा भाई साध ु वसंह

    उनकी मदद कर दतेा। टाइम ठीक गजुरने लगा।

    एक वदन एक घटना घटी। याद करके रोमांच हो आता

    ह।ै हुआ ये था वक एक वदन सिेरे-सिेरे मुंह अंधेरे वपता जी

    जंगलपानी के वलए चले गए। बकररयों के बाडे में एक भवेडया

    घसु आया। बकररयां वमवमयायी। जानिर ह ै तो क्या। जान तो

    सभी को प्यारी होती ह।ै मेरी आंख खलु गई। मझुे इतनी अक्ल

    तो थी नहीं। पता नहीं कैसे हुआ। मैंने कुल्हाडी उठाई और भेवडये

    को द ेमारी। इतने में शोर सनुकर वपता जी भी आ गए। गांि के भी

    कुछ लोग दौडे दौडे आ गए। आदवमयों के आने की बीडक

    सनुकर भवेडय़ा भाग गया। लोगों ने मेरे हाथ में कुल्हाडी दखेी तो

    उन्द्होंने बडी शाबासी दी। मझुे बहादरु, वनडर कहकर पीठ

    थपथपाने लगे। कहने लगे नाम ही शेरवसंह नहीं, बच्चे का वदल

    भी शेर का ह।ै

    औलाद की तारीफ सनुकर वपताजी को खशुी तो जरूर

    हुई होगी। लेवकन उनके मन में दहशत बैठ गई। वपता जी ने सोचा

    होगा वकसी वदन भवेडया वफर आ गया। बच्चों को खा गया तो

    इस नौकरी को क्या चाटंूगा? जान की सरुक्षा तो रोजगार की

    सरुक्षा से पहले चावहए।

    छ: महीने में ही नौकरी छोड दी। अपने टांडे-वटरे

    उठाकर चल वदए अमतृसर शहर की ओर। चल तो वदए लेवकन

    अमतृसर पहुचंे नहीं। रास्ते में ही उनके मौत हो गई। ये बात ह ै

    1907 की। आठ साल का था मैं।

    धुंधली सी याद ह।ै इतने सालों बाद भी िो दृश्य नहीं

    भलूता मझुे। जब वपता जी ने हमारे दोनों भाइयों के हाथ सरदार

    चंचल वसंह के हाथ में पकडा कर कहा था, मेरे बच्चों का ख्याल

    रखना। इससे आगे जबुान उनके ताल ूसे वचपक गई थी।

    असल में वपता जी थे बीमार। उपाली गांि से अमतृसर

    के वलए चले तो रास्ते में बीमारी बढ़ गई। भैंसािाले टोबे पर

    उदासी संन्द्यासी ठहरे हुए थे। हम भी िहीं ठहर गए। वपताजी

    बेहोश हो गए। वपता जी की हालत दखेकर उन संन्द्यावसयों को

    हम पर तरस आ गया। हमें खाना वदया। वपता जी को दिाई भी

    दी। लेवकन बीमारी में कोई फकय नहीं पडा। संन्द्यावसयों ने भांप

    वलया वक वपता जी बचेंगे नहीं। िे मझुे और मेरे भाई को अपने

    सम्प्रदाय में शावमल करने के वलए तैयार हो गए। उन्द्होंने हमें

    पीला पटका भी पहनाना शरुु कर वदया था।

    एक वदन िहां से तरन तारन िाले सरदार छांगा वसंह

    का जत्था गजुर रहा था। उसमें सनुाम के रहने िाले सरदार चंचल

    वसंह भी थे। उन्द्होंने वपता जी को दखेते ही पहचान वलया। वपता

    जी ने हम दोनों के हाथ सरदार चंचल वसंह के हाथ में पकडा वदए

    और बडी ही दीनता से कहा - मेरे बेटों का ध्यान रखना। सरदार

    चंचल वसंह वपता जी को और हमें तांगे में ले गए। वपता जी को

    अस्पताल में दावखल करिा वदया। िहां डाक्टर ने जांच की और

    आश्वासन वदया वक ठीक हो जायेंगे। चंचल वसंह जी हमें साथ

    लेकर घर चले गए। जब अगले वदन अस्पताल पहुचंे तो हमें

    अनाथ होने की सचूना वमली। मझुे वसफय इतना याद ह ै वक

    साधवूसंह तो बकु्का फाड के रोये जा रहा था और सरदार चंचल

    वसंह हमारे वसर पर हाथ रखे हमें वदलासा द े रह े थे। मझुे कुछ

    समझ नहीं आ रहा था। उनको दखेकर मैं भी सबुकने लगा था।

    वजंदगी का दसूरा अध्याय शरुु हो गया। हम पहुचं गए

    सेंरल वसक्ख अनाथाश्रम, अमतृसर में।

    िहां पहुचंने की कहानी ये ह।ै सरदार चंचलवसंह थे -

    धमय प्रचारक। उन्द्होंने जाना था अपने जत्थे के साथ बमाय। घर पे

    कोई था नहीं जो हमारी दखेभाल करता। उन्द्होंने सोचा वक हमारे

    वलए अनाथाश्रम ही ठीक ह।ै 24 अिूबर 1907 को सरदार

    छांगा वसंह और वकशन वसंह रागी ने हमें दावखल करिा वदया।

  • 6 जनिरी- फरिरी 2019

    b];xl/of0ff

    परूा ररकाडय ह।ै अनाथाश्रम के दावखल-खाररज रवजस्टर में मेरा

    नाम दजय ह ैशेर वसंह और भाई का साध ुवसंह।

    आप कन्द्फूयज न हों? क्रांवतकारी के वलए नाम

    बदलना जरूरी सा हो जाता ह ैकई बार। मेरे नामों की कहानी

    बडी वदलचस्प ह।ै मां-बाप ने मेरा नाम रखा था - शेरवसंह।

    उधमवसंह नाम तो मेरा तब पडा जब मैं वजंदगी के चौंतीस साल

    वबता चकुा था। 20 माचय 1933 को लाहौर से उधम वसंह के नाम

    से मैंने पासपोटय बनिाया। तभी से उधमवसंह मेरा नाम ह।ै ये

    इसवलए वकया क्योंवक 1927 में मझु पर मकुदमा बना। गदरी

    सावहत्य और गैर-काननूी हवथयार रखने के जमुय में। सजा हुई। मेरे

    सारे नाम फ्रें क ब्राजील, उधे वसंह, उदय वसंह, शेर वसंह िगैरह

    सब पवुलस ररकाडय में आ चकेु थे। मझुे उन दशेों का िीजा नहीं

    वदया जा रहा था वजनमें गदर पाटी का असर था।

    जब अनाथाश्रम में दावखल हुआ तो मेरा नाम उधे

    वसंह कर वदया। मेरे भाई का नाम भी बदल वदया था। साध ुवसंह

    से मिुा वसंह।

    मेरा एक नाम और ह ै... वजसे मैं बहुत पसंद करता ह ।ं

    यह मैंने खदु ही रखा ह।ै पता ह ैक्या ? मोहम्मद वसंह आजाद।

    मैंने बाज ूपर टैटू बनिाया हुआ ह ै इस नाम का। जब कैक्सटन

    हाल में मैंने ओडिायर को गोली मारी तो मोहम्मद वसंह आजाद

    के नाम से ही मैंने पवुलस को बयान वदया था। मैंने कहा था वक

    मेरा नाम ना बदल दनेा। मेरा नाम ह ैमोहम्मद वसंह आजाद।

    मेरे जैसे िि के मारों के वलए िरदान था अनाथाश्रम।

    अनाथाश्रम में रहा दस साल। उस समय अनाथाश्रम के मैनेजर थे

    सरदार सोहनवसंह बाब ूधन्द्ना वसंह के दामाद। िही ओिरसीयर

    बाब ू धन्द्ना वसंह वजन्द्होंने मेरे बाप ू जी की नौकरी लगिाई थी।

    बाब ू धन्द्नावसंह की बेटी सरदारनी मायादिेी ने साधवूसंह को

    पहचान वलया था।

    अनाथाश्रम की वजंदगी बाहर वजंदगी से कुछ अलग

    थी। बंधा-बंधाया नीरस सा रूटीन। सबुह उठो। शौच जाओ।

    नहाओ। पाठ करो। नाश्ता करो। वफर दो तीन घटें कुछ काम करो।

    दोपहर का खाना खाओ। शाम कुछ खले लो। वफर खाना

    खाओ। पाठ करो। सो जाओ। हर रोज िही रूटीन।

    वजंदगी के सबक यहीं सीख।े घमूने वनकल जाते वजधर

    मन करता। रेलिे स्टेशन, रामबाग, हाल बाजार, वसविल लाइन।

    कहीं भी। जलसा-जलुसू वनकलता तो हो लेते साथ-साथ। बडा

    मजा आता वजंदाबाद-मदुायबाद करने में। एक बात वजसने मझुे

    तोड वदया ये थी वक मेरे भाई साध ु वसंह भी मझुे दवुनया में

    अकेला छोड गए। वनमोवनया वबगड गया था। ये बात ह ै1917

    की। मन बहुत ही उदास हो गया था। लगता था दवुनया ही उजड

    गई। मन में बरेु बरेु ख्याल आते।

    अनाथाश्रम में सबको कुछ न कुछ काम करना पडता।

    मेरा मन पेचकस-प्लास में लगता। मशीनों के साथ मजा आता।

    नतीजा ये हुआ वक मैं मकैवनक बन गया। ये हुनर वजंदगी भर

    काम आया। दवुनया में कहीं भी गया इसी हुनर से अपनी जगह

    बना ली। साईवकल-मोटर साईवकल मैं ठीक कर दतेा। लकडी-

    लोह ेका सारा काम मैं कर लेता। वबजली का काम मैं कर लेता।

    मेरा हाथ साफ था। दोस्त-वमत्र मझुे इजंीवनयर कहते। मजे की

    बात ह ैअमेररकी ररकाडय में भी इजंीवनयर वलखा ह।ै औपचाररक

    वशक्षा की वडग्री कोई थी नहीं। हां उदूय, गरुमखुी पढ़-वलख लेता

    और कामचलाऊ अगं्रेजी भी। अंग्रेजी सरकार के ररकाडय में भी

    मझुे कम पढ़ा वलखा यानी पअुर एजकेुवटड ही बताया ह।ै

    13 अपै्रल 1919 को जवलयांिाला बाग नरसंहार के

    बारे में परूा याद ह।ै उसको कैसे भलू सकता ह ।ं उस घटना ने

    विचवलत कर वदया था मझुे। िो मंजर कभी भलू नहीं पाया।

    अमतृसर में कई साल बाद तक इस घटना के चचे रह।े मैं लोगों

    की दास्तान सनुता तो मेरा खनू खौलने लगता। एक अजीब सी

    चीज मेरे अंदर पनप गई। डायर से मझुे नफरत हो गई। उसका

    वजक्र आते ही आखंों में खनू उतर आता। उस जावलम ने 1650

    राऊंड गोवलयां चलाई थी। सरकारी ररकाडय की मानें 379

    आदवमयों की मौत हो गई थी। प्राईिेट ररपोटें और भी ज्यादा

    बताती हैं। वकतने तो बच्चे और औरतें थी। बाग में एक कंुआ था

    सैंकडों लाशें तो उसी से वनकली थीं।

    जवलयांिाला बाग कोई बाग नहीं था, बवल्क एक

    मैदान था। तीन तरफ तो मकानों की वपछली दीिारें थीं ऊंची-

    ऊंची। एक तरफ से ही अदंर-बाहर आने-जाने का संकरा सा

    रास्ता था। िहां एक जलसा हो रहा था। हजारों लोग थे इसमें।

    अगं्रेज अफसर जनरल डायर फौजी दस्ते के साथ आया और

    दनादन गोवलयां चलानी शरुु कर दी। न उसने चेतािनी दी। ना

    जाने के वलए कहा। गोवलयां चली धांय-धांय। भगदड मच गई।

    हाहाकार मच गया।

    गोवलयां उसने इसवलए चलाई वक िह अगं्रेजी राज का

    विरोध करने िालों में दहशत पैदा करना चाहता था। असल में

    1914 से 1918 तक विश्व यिु हुआ। इसमें भारतीयों ने अगं्रेजों

    का साथ वदया। उनको उम्मीद थी वक यिु के बाद अगं्रेज कुछ

    राहत देंगे। पर हुआ एकदम विपरीत। एक काननू लाग ू वकया।

    उसका नाम था रोलेट एक्ट। इस काननू में सरकार वकसी को भी

    वगरफ्तार करती। जेल में डालती। ना िकील, ना दलील, ना

    अपील। लोगों को गसु्सा आया। विरोध शरुु कर वदया। अमतृसर

    में विरोध बहुत तीखा था। इसको कुचलने के वलए यहां के दो

  • जनिरी- फरिरी 2019 7

    b];x

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    बडे नेता डॉ. सत्यपाल गपु्त और सैफुद्दीन वकचल ूको वगरफ्तार

    कर वलया। उनकी गैर काननूी वगरफ्तारी के विरोध में था ये

    जलसा-जलुसू। असल में परूा शहर ही उमड पडा था।

    शहर के साथ दहेात से भी लोग शावमल थे। असल में

    लोगों का जीना दभूर हो गया था। विश्व यिु लोगों के वलए लेकर

    आया था - कंगाली, भखुमरी, दररद्रता। यिु खत्म होने के बाद

    गेह ,ं जौं, ज्िार, बाजरा, चना, मक्का, कपडे सभी की कीमतें

    तीन-तीन चार-चार गनुा तक बढ़ गई थी।

    अपने समय के क्रांवतकाररयों से वमला वक नहीं वमला।

    ये बात तो जानने लायक ह।ै भगतवसंह तो मेरा ब्रेन-फ्रें ड ह ै—

    मानस-वमत्र। मेरा सबसे प्यारा दोस्त। हमेशा मेरे साथ ही रहता ह।ै

    ये दखेो उसकी फोटो हमेशा साथ रखता ह ।ं िो मझुसे नौ साल

    बाद दवुनया में आया, पर नौ साल पहले शहीद हो गया। बडा

    फास्ट था बंदा। उससे मझुे बडी पे्ररणा वमलती ह।ै उसने अपने

    छोटे भाई कुलतार को पत्र में वलखा था ना -

    हिा में रहगेी मेरे ख्याल की वबजली

    ये मशु्ते खाक ह ैफानी, रह ेरह ेन रह।े

    मेरे वदलो-वदमाग में भगतवसंह के ख्याल की वबजली

    दौडती रही। पता ह ै िो ख्याल क्या था? दवुनया से शोषण के

    बीज का खात्मा हो। इकंलाब हो। मैं कहता ह ंवजसके वदल में ये

    ख्याल नहीं िो इसंान ही नहीं।

    जब उसे शहीद वकया गया। उन वदनों मैं मलु्तान जेल

    में था। हुआ यूं था वक अगस्त 1927 को मैं अमतृसर में था।

    अचानक एक पवुलस िाले ने पीछे से मझुे पकड वलया। चार

    पवुलस िाले थे। मैं कुछ समझता इससे पहले ही इसं्पेक्टर बोला -

    हमें गपु्त सतू्रों से तेरे बारे में सचूना वमली ह।ै और मेरी तलाशी

    लेने लगे। मेरे पास वपस्तौल थी। लाईसेंस था नहीं। वफर िो पछूने

    लगे वक बाकी सामान कहां ह।ै मैं काल्हा वसंह की िकय शाप पर

    रूका हुआ था। िहां मेरी अटैची की तलाशी ली। उसमें कुछ

    रसीदें थी, काला बटुआ था, कुछ सटीवफकेट, 6 फोटो और

    कुछ गदर पाटी का सावहत्य। गदर की गूंज, रूसी गदर ज्ञान

    समाचार, पम्फलेंट गलुामी का जहर, गदर की दरूी, दशेभिों की

    जान।

    उन्द्होंने पछूा - कहां से आए हो। मैंने बता वदया

    अमेररका से। अमेररका से आया कराची और कराची से

    अमतृसर। वफर पछूने लगे वकसवलए आए हो? तेरा वजंदगी का

    मकसद क्या ह?ै मैंने भी सच्ची बात बता दी वक मैं स्पि तौर पर

    कहता ह ंवक मेरा मकसद यरूोवपयनों को मारना ह,ै जो भारतीयों

    पर शासन करते हैं और मझुे बोल्शेविकों से परूी हमददी ह।ै

    उनका मकसद भारत को विदशेी वनयंत्रण से मिु करिाना ह।ै’’

    बस बना वदया गैर काननूी हवथयार और राजद्रोही सावहत्य रखने

    का केस। पांच साल की सजा काटी।

    अमरीका में कई जगह रहा — कैवलफोवनयया, न्द्ययूाकय ,

    वशकागो। अमरीका में गदर पाटी के कामरेडों से संपकय हुआ।

    उनकी बातें सनुकर तो रोंगटे खडे हो जाते। िहां कामागाटा मारू

    जहाज के वकस्से सनुता। गदररयों की कुरबानी के रोमांचक प्रसंग

    सनुकर मन में शहादत जोश मारती। अगं्रेजों के शोषण ि जलु्म

    की दास्तान सनुकर उनसे वचढ़ होती। दवुनया में घट रही घटनाओ ं

    पर चचाय होती। रूसी क्रांवत की बातें चलतीं। पता चलता वक

    मजदरूों और वकसानों ने जलु्म का जआु उतार फें का। ऐसा राज

    स्थावपत वकया ह ै वजसमें गरीब-अमीर, शोषक-शोवषत हैं ही

    नहीं। ये बातें बडी अच्छी लगती। अप्पां भी मेहनतकश तबके से

    ही थे। वदमाग में पक्की तौर पर बैठ गया वक दवुनया में सारे जलु्म

    -अत्याचार, यिु-फसादों की जड शोषण ह।ै दवुनया में कोई दशे

    दसूरे दशे का और एक व्यवि दसूरे व्यवि का शोषण न कर सके

    ऐसी व्यिस्था बनाने के वलए कोवशश करनी चावहए। जो दवुनया

    में इस तरह के प्रयास कर रहा ह ै िो अपना दोस्त ह।ै रूस के

    क्रांवतकाररयों से हमददी हो गई।

    मेरे जेहन में लाला हरदयाल के शब्द गूंजते रहते। हमारा

    नाम ह ैगदर। हमारा काम ह ैगदर। भारत में होगा गदर। गदर होगा

    जब कलम बनेगी बंदकू। स्याही होगी खनू।

    गदर पाटी की सोच मेरी सोच बन गई थी। मैं एक भारतीय

    के नाते और वकसान के तौर पर अगं्रेजी शासन को भारतीयों की

    वजंदगी के वलए हावनकारक समझता।

    पूंजीपवत और बडे जमींदार दशे की पैदािार हडप लेते।

    मौज उडाते, ऐश कूटते। हाई स्टैंडडय का जीिन जीते। लोगों की

    मेहनत की लटू-खसोट के बल पर। दशे के लोगों के उत्थान में

    रत्ती भर योगदान नहीं। न स्कूल खोलने में ना रोजगार दनेे में।

    चौबीसों घटें खेतों में खटते वकसान। दाने-दाने को मोहताज।

    मेहनतकश मजदरू खनू पसीना एक करते पर भखूों मरते। रोटी-

    कपडा-मकान, पढाई-दिाई हर चीज को तरसते।

    अगं्रेजों ने हमारे दशे को एक जेल और नरक में

    तबदील कर वदया । भारतीय राजनीवतक कैवदयों के साथ जेलों में

    मारपीट की जाती। असहनीय कि और वतरस्कृत वकया जाता।

    मवहलाओ ं के बाल पकड कर गवलयों में घसीटा जाता।

    अपमावनत वकया जाता। पैने औजार उनके शरीर में चभुोए जाते।

    इससे बहुत लोग पागल हो गए। बहुत से लोग अगं्रेजों के िहशी

    खनूी अत्याचारों से मर गए। बहुत से लोगों के चेहरे के अगं

    काट वदए। आंखें वनकाल दी।

    अगं्रेजी आतंकिाद भारतीयों को कुचल नहीं सकता।

  • 8 जनिरी- फरिरी 2019

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    अगं्रेजी आतंकिाद के साये में दयनीय हालत में जीने की बजाए

    अपने लोगों की खावतर मरना पसंद। मैं और मेरे दशे के लोग

    अगं्रेजी साम्राज्यिाद के अधीन रहने के वलए इस संसार में पैदा

    नहीं हुए। मैं सोचता वक ताकत से ही अंग्रेजों को भारत से

    वनकालना संभि होगा।

    ऐसे ऐसे विचार वदमाग में आने लगे। मैं खदु ही हरैान था

    वक मझुे क्या हो गया। असल में अपने लोगों से हमददी उनकी

    तकलीफें दरू करने के संघषय में वदमाग में नए नए विचार ि

    योजनाए ंआतीं। खदु से आगे वनकल कर दखेते हैं तो एक नई

    रोशनी वदखाई दतेी ह।ै

    डायरेक्टर इटेंलीजेंस ब्यरूो, गहृ विभाग, भारत सरकार की

    ओर से सन ्1934 में 'गदर डायरेक्टरी’ जारी की गई थी। वजसमें

    अमरीका, यरूोप, अफगावनस्तान और भारत में गदर आदंोलन में

    वहस्सा लेने िाले लोगों के नाम शावमल हैं। इस डायरेक्टरी में

    नंबर एस 44 (प.ृ 267) पर उधम वसंह का नाम भी दजय ह।ै

    पैर में ही कुछ चक्कर था। कहीं वटक के नहीं बैठ

    सका। वपता जी भी सनुाम से उपाली। और उपाली से अमतृसर

    की ओर। मैंने तो दवुनया के अनेक दशेों की धरती दखेी। इगं्लैंड

    का तो सभी को पता ह ैिहां कैक्सटन हाल में गोली मारने के

    बाद तो मशह र हो गया सारी दवुनया में। अमेररका, अफ्रीका।

    भतेरे धक्के खाए बडे पापड बेले। ये पछूो कहां कहां नहीं गया।

    कुछ समय काश्मीर में साध ुका बाणा बनाकर भी रहा। पर मन में

    दशे के वलए कुछ कर गजुरने की भािना हमेशा जोर मारती रही।

    1934 में पहुचंा इगं्लैंड। िहां एक जगह नहीं रहा। रोजी

    -रोटी के वलए कई काम बदले। कई वठकाने बदले। मोटर-वमस्त्री

    रहा। कारपेंटरी की। फेरी लगाई। वदहाडी भी की। ड्राईिरी भी की।

    वफल्मों में भी काम वकया।‘साब ू द ऐलींफें ट ब्िाय’

    और 'द फोर फैदर’ में। ‘एक्सरा’ के तौर पर। एक हगंरी के

    पत्रकार और वफल्म-वनमायता थे - एलेग्जेंडर कोरडा। उसने अपना

    स्टूवडयो बनाया था और उसने दो वफल्में बनाई थी गैर यरुोवपयन

    कलाकारों को स्पोटय करने के वलए। ये 1936 की बात ह।ै असल

    में एक गोरी मवहला वफल्म स्टूवडयो में एक्सरा कलाकार थी। मैं

    उसके सम्पकय में था। लंदन के पविमी छोर पर रहती थी िह।

    1938 इग्लैंड में एक झठूा केस भी दजय करिा वदया था

    मझु पर। जबरदस्ती पैसे ऐठंने का। इसमें मेरे 200 पौंड खचय हो

    गए। मेरी कार जब्त कर ली गई। मझुे नौकरी से वनकाल वदया।

    पांच महीने बाद पहली ही पेशी पर खाररज हो गया था। इसमें

    कोई अगं्रेज नहीं था बवल्क अपने इवंडयन के बीच ही वििाद था।

    लंदन में शैफडय बशु गरुुद्वारे में वमलता था दोस्तों से।

    वकसी से बहुत खास घवनष्ठता तो नहीं थी। कुछ ही दोस्त थे।

    वशि वसंह जौहल था। िह मझुे बािा कहता, इसवलए वक मझुे

    सांसाररक चीजों से कोई मोह नहीं था। और भी कुछ दोस्तों का

    नाम वलया जा सकता ह।ै सरदार अजयन वसंह पहलिान थे, सरदार

    गरुबचन वसंह, सरदार सरेुन वसंह, सरदार कबलू वसंह, सरदार

    नाजर वसंह, सरदार प्रीतम वसंह, बाब ूकरम वसंह। खबू हसंी-ठट्ठा

    करते। ताश खलेते। पावटययां करते। खबू खाते-पीते। एक-दसूरे की

    टांग वखचंाई करते। िही इवंडयन चटुकले। यही थी अपनी दवुनया

    लंदन में।

    ये सारे पंजाब से ही थे कोई जालंधर के पास गांि से कोई

    लवुधयाना के वकसी गांि से। पंजाब के लोग इकटे्ठ हों और पंजाब

    की बात ना हो ये कैसे हो सकता ह।ै परदशे में अपनी भाषा में

    बात करने का मजा तो दगुनुा हो जाता ह।ै अपना पंजाब याद आ

    जाता। असल में हम रहते तो लंदन में थे पर बातें पंजाब की ही

    करते। अपने ितन की बात चलते ही मक्के की रोटी और सरसों

    के साग का स्िाद मुंह में तैर जाता। आखंों में अजीब सा सरुर।

    एक-एक बात याद आने लगती। जवलयांिाला की बातें चलती।

    अगं्रेजों का जलु्म-अत्याचार और अपने लोगों की बेबसी। बातों-

    बातों में भगतवसंह का वजक्र भी आ जाता। मैं कहता एक वदन

    तमु भगतवसंह की तरह ही मेरी बातें करोगे अपने पोते-पोवतयों

    को सनुाओगे मेरी शहादत के वकस्से। जब मैं ऐसे कहता तो कोई

    मेरी बात पे यकीन ही नहीं करता था। दोस्त वमत्र शादी-वििाह

    का वजक्र करते। उन्द्हें क्या पता था अपनी शादी तो फंद ेसे पक्की

    हो गई थी।

    13 माचय 1940 को हुई थी कैक्सटन हाल िाली

    घटना। िहां मैं नया सटू पहनकर और हटै लगाकर गया था।

    अपने अल्टीमेट सफर के वलए। घटना के बाद जमयन

    आकाशिाणी ने सही ही प्रसाररत वकया था वक हाथी और

    भारतीय कभी भलूते नहीं िो बीस साल बाद भी प्रवतशोध ले

    लेते हैं।

    मीवटंग दोपहर तीन बजे शरुु होनी थी और लगभग

    साढे़ चार तक चलनी थी। वटकट पर ही अंदर जा सकते थे। डेढ़

    सौ के करीब लोग मौजदू थे। 130 तो सीटें ही थी। बाकी लोग

    आने-जाने के रास्तों में भी खडे थे। मैं दाएं तरफ के रास्ते में खडा

    था सामने िाली कुवसययों के पास ही। मीवटंग खत्म हुई। लोग जाने

    की तैयारी में थे। मैंने चार लोगों को गोली मारी थीं। कुल छह

    गोवलयां चलाई थी। ओडिायर तो मौके पर ही वचत हो गया था।

    बाकी घायल हो गए थे। जेटलैंड, लेवमंगटन। गोली चलाने के

    बाद मैं बाहर वनकलने के वलए लपका तो बरथा हरेरंग नाम की

    मवहला ने मेरा रास्ता रोक वलया और मेरे कंधे पकड वलए। तभी

    हरैी ररच्स ने मेरे कंधों पर झपट्टा मारा। मैं वगर गया। मेरे हाथ से

  • जनिरी- फरिरी 2019 9

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    ररिाल्िर भी छूट गई। ररच्स ने ररिाल्िर को दरू सरका वदया।

    इतनी दरे में पवुलस पहुचं गई।

    इसका मझुे कभी अफसोस नहीं हुआ। अफसोस मझु े

    इस बात का था वक केिल एक ही मरा। असल में रास्ते में कुछ

    मवहलाए ंथीं इस कारण शायद। उस समय मैं वकस अिस्था में था

    मैं अपना बयान पढ़ दतेा ह ं अदंाजा लगा लेना। मैंने िही

    वलखिाया था जो सच था।

    बयान से पहले एक बात बता दू ंमेरे गोली चलाने के

    बाद दहशत इतनी थी वक उस वबवल्डंग की रसोई में काम करने

    िाले िेटर और दफ्तर के चपरावसयों तक को भी बाहर नहीं आने

    वदया गया था। परूी तरह सील कर वदया था।

    वडटैवक्टि इसं्पैक्टर डीटन ने मझुसे पछूा - क्या तूं

    अगं्रेजी समझता ह।ै मैंने कहा - हां। डीटन कहने लगा - तमु्हें

    वहरासत में वलया जाएगा। पछूताछ के वलए।

    मैंने कहा - इसका कोई फायदा नहीं। यह सब खत्म हो

    चकुा ह।ै एक सारजैंट जोन्द्स था। िह मझुसे वमली िस्तओु ंकी

    सचूी बना रहा था। उसमें वलनोलीयम चाकू था। मैंने कहा - ये तो

    इसवलए रख वलया था क्योंवक कुछ वदन पहले लफंगों की टोली

    ने मझुे केमडन टाऊन में घरे वलया था।

    सारजेंट जोन्द्स ने सलाह दी - ज्यादा न बोल। पर मझुे

    क्या परिाह थी मैंने कहा - मैंने यह इसवलए वकया, क्योंवक मझुे

    उससे वचढ़ थी और िह इसका हकदार था। मेरा वकसी सोसायटी

    या ग्रपु से संबंध नहीं ह।ै --- मझुे इसकी कोई परिाह नहीं। मैं

    मौत से नहीं डरता। इसका क्या फायदा, मरने के वलए बढु़ापे तक

    इतंजार करो, यह कोई अच्छी बात नहीं। तब मरना चावहए, जब

    आप जिान हो, यह ठीक ह।ै मैं भी यही कर रहा ह ।ं

    मेरी बात सनुकर जोन्द्स बोला - जो कुछ बोल रहा ह ै

    ना, अदालत में सबतू के तौर पर पेश वकया जाएगा।

    मैंने कहा - मैं अपने दशे के वलए मर रहा ह ,ं क्या मझुे

    अखबार वमल सकता ह ै? मैंने पछूा - जैटलैंड मर गया क्या। ये

    भी मरना चावहए। मैंने उसको भी बक्खी में दो गोवलयां मारी हैं --

    मैंने यह वपस्तौल बैरन माऊथ से एक फौजी से खरीदी थी। तझुे

    पता? मैंने उसके वलए कुछ शराब खरीदी थी। --- जब मैं चार-

    पांच साल का था मेरे मां-बाप गजुर गए। मेरे पास जो जायदाद

    थी, मैंने बेच दी। जब मैं इगं्लैंड आया, मेरे पास 200 पौंड से ऊपर

    थे । --- वसफय एक ही मरा, ओह? मेरा यकीन था वक मैंने कईयों

    को मार वदया होगा। मैं काफी ससु्त रहा ह गंा। तझुे पता? िहां

    रास्ते पर कई औरतें थी।

    इस कारयिाई में आठ बजकर पचास वमनट हो गए।

    जोन्द्स बोला - मैं तझुे कैनन रोअ पवुलस स्टेशन ले जा रहा ह ।ं

    िहां तेरे पर सर माईकल ओडिायर को कत्ल करने का मकुद्दमा

    दजय वकया जाएगा।

    मैंने भी कहा वक - मैं तझुे बताऊंगा, मैंने कैसे अपना

    रोष प्रकट वकया ह।ै मझुे कैनल रोअ पवुलस स्टेशन ले गए। िहां

    मेरी उंगवलयों के वनशान वलए। मेरा नाम-गाम पछू कर सारजैंट

    जोन्द्स कहने लगा वलखिा अपना बयान।

    मैंने जो बयान वलखिाया िो ये ह ै - मझुे इस बारे में

    वडिीजनल वडटैवक्टि इसं्पैक्टर सिैन ने सपुररडैंट सैंडज की

    मौजदूगी में सचेत वकया वक यह िह बयान ह ैवक वजसके आधार

    पर मकुद्दमा चलेगा। मैं जानता ह ं वक जो कुछ मैं कह गंा, िह

    अदालत में पेश वकया जाएगा।

    कल लगभग सबुह 11.39 बजे मैं भारत के आवफस

    गया, सर हुसन सरूािदी को वमलने। गेटकीपर ने मझुे कहा वक

    िह बाहर गया हुआ ह।ै उसने मझुे इतंजार करने को कहा। मैं

    िेवटंग रूम में गया, िहां पहले ही तीन-चार लोग बैठे थे। जब मैं

    बाहर वनकल रहा था, तो एक नोवटस लगा दखेा - कैक्सटन हाल

    में एक मीवटंग होगी। मैं बाहर आ गया। गेटकीपर ने कहा वक िह

    सर हुसन को 3.45 बजे शाम को वमल सकता ह।ै मैं िहां से चल

    वदया और वफर िापस नहीं गया। मैंने सोचा था वक मैं उसको

    आज सबुह वमलूंगा, तावक पासपोटय में आ रही वदक्कत के वलए

    मदद ले सके। सबुह (आज) मैं सर हुसन को वमलने के इराद ेसे

    उठा, पर वफर मेरा मन बदल गया। मैंने सोचा वक िह मेरी मदद

    नहीं कर सकेगा। आज सबुह जब मैं कमरे से वनकला तो मैंने

    सोचा वक लैस्टर स्क्िेयर में पाल रोब्सन की वफल्म दखेी जाए। मैं

    िहां गया। परन्द्त ुवसनेमा अभी खलुा नहीं था। मैं वफर घर िावपस

    आ गया। मैंने सोचा वक शाम िाली मीवटंग में जाऊं। विरोध

    प्रकट करने के वलए मैं घर से अपना वपस्तौल साथ ले गया,

    विरोध व्यि करने के वलए। मीवटंग की शरुूआत में मैं पीछे खडा

    था। मैंने वपस्तौल वकसी को मारने के इराद ेसे नहीं उठाई, केिल

    विरोध व्यि करने के वलए। खरै, जैसे ही मीवटंग खत्म हुई, मैंने

    वपस्तौल अपनी जेब से बाहर वनकाली और गोली चलाई। मेरे

    ख्याल से दीिार पर गोली मैंने रोष व्यि करने के वलए ही

    चलाई। मैंने वब्रवटश साम्राज्य के अधीन भारत में लोगों को भखू

    से मरते हुए दखेा ह।ै मेरा यह वपस्तौल तीन-चार बार चला। मझु े

    रोष प्रकट करने का कोई अफसोस नहीं। दशे के रोष को व्यि

    करने के वलए इस बात की वचंता नहीं वक सजा होगी। 10, 20 ि

    50 साल की कैद या फांसी। मैंने अपना फजय वनभा वदया, पर

    असल में मेरा मकसद वकसी व्यवि की जान लेना नहीं था। क्या

    आप जानते हो, मेरा मतलब तो केिल विरोध प्रकट करना था,

    आप जानते हो।

  • 10 जनिरी- फरिरी 2019

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    दखेो मेरे दस्तखत भी हैं इस पर - मोहम्मद वसंह

    आजाद

    मेरे बारे में सारा ररकाडय इकट्ठा कर वलया। इवंडया से भी

    मंगिा वलया। कुछ बातें तो ऐसी थी वजसका मझुे भी नहीं पता

    था। टोटली मनघडंत। पता ही ह ै आपको पवुलस कैसी कैसी

    कहावनयां बनाती ह।ै सारी ररपोटों का लब्बो-लबुाब ये था वक

    इकंलाबी ह ैऔर वहसंा में विश्वास करता ह।ै मझु पर केस चल

    पडा।

    ओडिायर को गोली मारने पर नेताओ ं ने मेरी खासी

    वनंदा की थी। उसका मझुे कोई अफसोस नहीं और न ही कोई

    वगला वशकिा रहा। कुछ ऐसे थे जो िास्ति में ही खनू-खराबे को

    पंसद नहीं करते थे। लेवकन कुछ ऐसे भी थे जो राजनीवतक

    हालात के वहसाब से ऐसा कर रह ेथे। उस समय दसूरा विश्व यिु

    परेू जोरों पर था। जमयनी इगं्लैंड की फौजों को पछाड रहा था और

    इगं्लैंड-फ्रांस इस कोवशश में थे वक जमयनी का मुंह रूस की तरफ

    मोड वदया जाए। सयाने बहुत थे गोरे शासक। एक तीर से दो

    वशकार करना चाह रह ेथे।

    ऐसा भी नहीं ह ैवक मेरे कारनामे की सारे ही वनंदा कर

    रह ेथे, बहुत लोग खशु भी थे। लेवकन खशुी जावहर करते कैसे।

    पहरे लगे हुए थे खशुी पर। डर सच्चा था। लंदन में क्या परेू इगं्लैंड

    में ही भारतीयों को शक की वनगाह से दखेना शरुु कर वदया था।

    पकडकर लगते टटोलने।

    शासक चाह े वकतना ही कू्रर हो और वकतना ही

    तानाशाह। सच्चाई अपना रास्ता बना ही लेती ह।ै अखबारों ने

    तो घटना को जैसे छापा हो। रेवडयो ने भी चाह ेअपने तरीके से

    बताया। एक मेरे आयररश दोस्त बॉब कोनोली ने बडा नायाब

    तरीका वनकाला। उसको याद करता ह ं तो उसका मासमू सा

    चेहरा आखंों के आगे घमू जाता ह।ै सोच भी नहीं सकता था वक

    िो इतना साहवसक कारनामा भी कर सकता ह।ै उसने हाथ से

    एक पोस्टर वलखा और अपनी छाती पर वचपका वलया। घमूता

    रहा पावलययामेंट और कैक्सटन हाल के बीच। सारे लंदन में चचाय

    थी इसकी। अपने खनू से वचट्ठी वलखकर मझुे जेल के पते पर

    भजेी थी। मझुे नहीं वमली। उसके मजमनू को पढ़कर मदुों में भी

    जोश आ जाए। वलखा था - 'लांग वलि वसंह’, 'डाऊन विद

    वब्रवटश इपंीररवलज्म’, 'डाऊन विद वब्रवटश रूल इन इवंडया’।

    मझुे इसका अफसोस नहीं था वक लंदन में और भारत

    में कवथत विवभन्द्न संस्थाओ ंके पदावधकारी ि मौवजज लोग मेरे

    वकए की वनंदा कर रह ेथे। असल में उनको हमेशा सत्ता की नजर

    दखेनी होती ह।ै एक अफसोस जरूर था वक मेरी आिाज अगं्रेजी

    साम्राज्य फाईलों में ही दबकर रह गई। मेरे दशे के लोगों तक नहीं

    पहुचंी।

    धन्द्यिादी होना चावहए ग्रेट वब्रटेन की इवंडयन िकय सय

    एसोवसएशन के महासवचि कामरेड अितार वसंह जौहल का।

    उन्द्होंने छप्पन साल बाद 1996-97 में उधमवसंह के बयान दशे

    के लोगों तक पहुचंाने में बडी मेहनत की।

    आप के वदमाग में एक सिाल चक्कर काट रहा होगा।

    जवलयांिाल