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प्रेमचंद

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कथा-क्रम

प्रति�शोध : 3देवी : 15खुदी : 17बडे़ बाबू : 23

राष्ट्र का सेवक : 34आख़ि�री �ोहफ़ा : 35 क़ाति�ल : 49

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प्रति�शोध

या अपने ति�मंजि&ले मकान की छ� पर खड़ी सड़क की ओर उति+ग्न और अधीर आंखों से �ाक रही थी और सोच रही थी, वह अब �क आये क्यों नहीं ? कहां देर

लगायी ? इसी गाड़ी से आने को लिलखा था। गाड़ी �ो आ गयी होगी, स्टेशन से मुसाति9र चले आ रहे हैं। इस वक्त �ो कोई दूसरी गाड़ी नहीं आ�ी। शायद असबाब वगैरह रखने में देर हुई, यार-दोस्� स्टेशन पर बधाई देने के लिलए पहुँच गये हों, उनसे 9ुसC� मिमलेगी, �ब घर की सुध आयेगी ! उनकी &गह मैं हो�ी �ो सीधे घर आ�ी। दोस्�ों से कह दे�ी , &नाब, इस वक्त मुझे माफ़ कीजि&ए, ति9र मिमलिलएगा। मगर दोस्�ों में �ो उनकी &ान बस�ी है !

मामिमस्टर व्यास लखनऊ के नौ&वान मगर अत्यं� प्रति�मिK� बैरिरस्टरों में हैं। �ीन महीने

से वह एक रा&ीति�क मुकदमें की पैरवी करने के लिलए सरकार की ओर से लाहौर गए हुए हें। उन्होंने माया को लिलखा था—&ी� हो गयी। पहली �ारीख को मैं शाम की मेल में &रूर पहुंचंूगा। आ& वही शाम है। माया ने आ& सारा दिदन �ैयारिरयों में तिब�ाया। सारा मकान धुलवाया। कमरों की स&ावट के सामान सा9 करायें, मोटर धुलवायी। ये �ीन महीने उसने �पस्या के काटे थे। मगर अब �क मिमस्टर व्यास नहीं आये। उसकी छोटी बच्ची ति�लोत्तमा आकर उसके पैरों में लिचमट गयी और बोली—अम्मां, बाबू&ी कब आयेंगे ?

माया ने उसे गोद में उठा लिलया और चूमकर बोली—आ�े ही होंगे बेटी, गाड़ी �ो कब की आ गयी।

ति�लोत्तमा—मेरे लिलए अच्छी गुतिड़यां ला�े होंगे।माया ने कुछ &वाब न दिदया। इन्�&ार अब गुस्से में बदल�ा &ा�ा था। वह सोच रही

थी, जि&स �रह मुझे ह&र� परेशान कर रहे हैं, उसी �रह मैं भी उनको परेशान करँूगी। घण्टे-भर �क बोलूंगी ही नहीं। आकर स्टेशन पर बैठे हुए है ? &लाने में उन्हें म&ा आ�ा है । यह उनकी पुरानी आद� है। दिदल को क्या करँू। नहीं, &ी �ो यही चाह�ा है तिक &ैसे वह मुझसे बेरुखी दिदखला�े है, उसी �रह मैं भी उनकी बा� न पूछँू।

यकायक एक नौकर ने ऊपर आकर कहा—बहू &ी, लाहौर से यह �ार आया है।माया अन्दर-ही-अन्दर &ल उठी। उसे ऐसा मालूम हुआ तिक &ैसे बडे़ &ोर की हरार�

हो गयी हो। बरबस खयाल आया—लिसवाय इसके और क्या लिलखा होगा तिक इस गाड़ी से न आ सकंूगा। �ार दे देना कौन मुश्कि]कल है। मैं भी क्यों न �ार दे दंू तिक मै एक महीने के लिलए मैके &ा रही हँू। नौकर से कहा—�ार ले &ाकर कमरे में मे& पर रख दो। मगर ति9र कुछ सोचकर उसने लिल9ा9ा ले लिलया और खोला ही था तिक कागज़ हाथ से छूटकर तिगर पड़ा। लिलखा था—मिमस्टर व्यास को आ& दस ब&े रा� तिकसी बदमाश ने कत्ल कर दिदया।

२ई महीने बी� गये। मगर खूनी का अब �क प�ा नहीं चला। खुति9या पुलिलस के अनुभवी लोग उसका सुराग लगाने की ति9क्र में परेशान हैं। खूनी को तिगरफ्�ार करा

देनेवाले को बीस ह&ार रुपये इनाम दिदये &ाने का एलान कर दिदया गया है। मगर कोई न�ी&ा नहीं ।

कजि&स होटल में मिमस्टर व्यास ठहरे थे, उसी में एक महीने से माया ठहरी हुई है। उस

कमरे से उसे प्यार-सा हो गया है। उसकी सूर� इ�नी बदल गयी है तिक अब उसे पहचानना 3

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मुश्कि]कल है। मगर उसके चेहरे पर बेकसी या ददC का पीलापन नहीं क्रोध की गमb दिदखाई पड़�ी है। उसकी नशीली ऑंखों में अब खून की प्यास है और प्रति�शोध की लपट। उसके शरीर का एक-एक कण प्रति�शोध की आग से &ला &ा रहा है। अब यही उसके &ीवन का ध्येय, यही उसकी सबसे बड़ी अभिभलाषा है। उसके पे्रम की सारी तिनमिध अब यही प्रति�शोध का आवेग हैं। जि&स पापी ने उसके &ीवन का सवCनाश कर दिदया उसे अपने सामने �ड़प�े देखकर ही उसकी आंखें ठण्डी होंगी। खुतिफ़या पुलिलस भय और लोभ, &ॉँच और पड़�ाल से काम ले रही है, मगर माया ने अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिलए एक दूसरा ही रास्�ा अपनाया है। मिमस्टर व्यास को पे्र�-तिवद्या से लगाव था। उनकी संगति� में माया ने कुछ आरश्किlक अभ्यास तिकया था। उस वक्त उसके लिलए यह एक मनोरं&न था। मगर अब यही उसके &ीवन का सम्बल था। वह रो&ाना ति�लोत्तमा पर अमल कर�ी और रो&-ब-रो& अभ्यास बढ़ा�ी &ा�ी थी। वह उस दिदन का इन्�&ार कर रही थी &ब अपने पति� की आत्मा को बुलाकर उससे खूनी का सुराग लगा सकेगी। वह बड़ी लगन से, बड़ी एकाग्रलिचत्त�ा से अपने काम में व्यस्� थी। रा� के दस ब& गये थे। माया ने कमरे को अंधेरा कर दिदया था और ति�लोत्तमा पर अभ्यास कर रही थी। यकायक उसे ऐसा मालूम तिक कमरे में कोई दिदव्य व्यलिक्तत्व आया। बुझ�े हुए दीपक की अंति�म झलक की �रह एक रोशनी नज़र आयी।

माया ने पूछा—आप कौन है ?ति�लोत्तमा ने हंसकर कहा—�ुम मुझे नहीं पहचान�ीं ? मैं ही �ुम्हारा मनमोहन हँू &ो

दुतिनया में मिमस्टर व्यास के नाम से मशहूर था।‘आप खूब आये। मैं आपसे खूनी का नाम पूछना चाह�ी हँू।’‘उसका नाम है, ईश्वरदास।’‘कहां रह�ा है ?’‘शाह&हॉपुर।’माया ने मुहल्ले का नाम, मकान का नम्बर, सूर�-शक्ल, सब कुछ तिवस्�ार के साथ

पूछा और काग& पर नोट कर लिलया। ति�लोत्तमा &रा देर में उठ बैठी। &ब कमरे में ति9र रोशनी हुई �ो माया का मुरझाया हुआ चेहरा तिव&य की प्रसन्न�ा से चमक रहा था। उसके शरीर में एक नया &ोश लहरें मार रहा था तिक &ैसे प्यास से मर�े हुए मुसाति9र को पानी मिमल गया हो।

उसी रा� को माया ने लाहौर से शाह&हांपुर आने का इरादा तिकया।३

� का वक्त। पं&ाब मेल बड़ी �े&ी से अंधेरे को चीर�ी हुई चली &ा रही थी। माया एक सेकेण्ड क्लास के कमरे में बैठी सोच रही थी तिक शाह&हॉपुर में कहां ठहरेगी,

कैसे ईश्वरदास का मकान �लाशा करेगी और कैसे उससे खून का बदला लेगी। उसके बगल में ति�लोत्तमा बेखबर सो रही थीं सामने ऊपर के बथC पर एक आदमी नींद में गातिफ़ल पड़ा हुआ था।

रायकायक गाड़ी का कमरा खुला और दो आदमी कोट-प�लून पहने हुए कमरे में

दाख़िखल हुए। दोनो अंग्रे& थे। एक माया की �र9 बैठा और दूसरा दूसरी �र9। माया लिसमटकर बैठ गयी । इन आदमिमयों को यों बैठना उसे बहु� बुरा मालूम हुआ। वह कहना चाह�ी थी, आप लोग दूसरी �र9 बैठें , पर वही और� &ो खून का बदला लेने &ा रही थी, सामने यह ख�रा देखकर कांप उठी। वह दोनों शै�ान उसे लिसमट�े देखकर और भी करीब

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आ गये। माया अब वहां न बैठी रह सकी । वह उठकर दूसरे वथC पर &ाना चाह�ी थी तिक उनमें से एक ने उसका हाथ पकड़ लिलया । माया ने &ोर से हाथ छुड़ाने की कोलिशश करके कहा—�ुम्हारी शाम� �ो नहीं आयी है, छोड़ दो मेरा हाथ, सुअर ?

इस पर दूसरे आदमी ने उठकर माया को सीने से लिलपटा लिलया। और लड़खड़ा�ी हुई &बान से बोला—वेल हम �ुमका बहु�-सा रुपया देगा।

माया ने उसे सारी �ाक� से ढ़केलने की कोलिशश कर�े हुए कहा—हट &ा हराम&ादे, वनाC अभी �ेरा सर �ोड़ दंूगी।

दूसरा आदमी भी उठ खड़ा हुआ और दोनों मिमलकर माया को बथC पर लिलटाने की कोलिशश करने लगे ।यकायक यह खटपट सुनकर ऊपर के बथC पर सोया हुआ आदी चौका और उन बदमाशों की हरक� देखकर ऊपर से कूद पड़ा। दोनों गोरे उसे देखकर माया को छोड़ उसकी �र9 झपटे और उसे घूंसे मारने लगे। दोनों उस पर �ाबड़�ोडं हमला कर रहे थे और वह हाथों से अपने को बचा रहा था। उसे वार करने का कोई मौका न मिमल�ा था। यकायक उसने उचककर अपने तिबस्�र में से एक छूरा तिनकाल दिदया और आस्�ीनें समेटकर बोला—�ुम दोनों अगर अभी बाहर न चले गये �ो मैं एक को भी &ी�ा ना छोड़ुगँा।

दोनों गोरे छुरा देखकर डरे मगर वह भी तिनहत्थे न थे। एक ने &ेब से रिरवाल्वर तिनकल लिलया और उसकी नली उस आदमी की �र9 करके बोला-तिनकल &ाओ, रैस्कल !

माया थर-थर कांप रही थी तिक न &ाने क्या आ9� आने वाली हे । मगर ख�रा हमारी लिछपी हुई तिहम्म�ों की कंु&ी है। ख�रे में पड़कर हम भय की सीमाओं से आगे बढ़ &ा�े हैं कुछ कर गु&र�े हैं जि&स पर हमें खुद हैर� हो�ी है। वही माया &ो अब �क थर-थर कांप रही थी, तिबल्ली की �रह कूद कर उस गोरे की �र9 लपकी और उसके हाथ से रिरवाल्वर खींचकर गाड़ी के नीचे 9ें क दिदया। गोरे ने ख़िखलिसयाकर माया को दां� काटना चाहा मगर माया ने &ल्दी से हाथ खींच लिलया और ख�रे की &ं&ीर के पास &ाकर उसे &ोर से खीचा। दूसरा गोरा अब �क तिकनारे खड़ा था। उसके पास कोई हलिथयार न था इसलिलए वह छुरी के सामने न आना चाह�ा था। &ब उसने देखा तिक माया ने &ं&ीर खींच ली �ो भी�र का दरवा&ा खोलकर भागा। उसका साथी भी उसके पीछे-पीछे भागा। चल�े-चल�े छुरी वाले आदमी ने उसे इ�ने &ोर से धक्का दिदया तिक वह मुंह के बल तिगर पड़ा। ति9र �ो उसने इ�नी ठोकरें, इ�नी ला�ें और इ�ने घुंसे &माये तिक उसके मुंह से खून तिनकल पड़ा। इ�ने में गाड़ी रुक गयी और गाडC लालटेन लिलये आ�ा दिदखायी दिदया।

४गर वह दोनों शै�ान गाड़ी को रुक�े देख बे�हाशा नीचे कूद पडे़ और उस अंधेरे में न &ाने कहां खो गये । गाडC ने भी ज्यादा छानबीन न की और कर�ा भी �ो उस अंधेरे में

प�ा लगाना मुश्कि]कल था । दोनों �र9 खड्ड थे, शायद तिकसी नदी के पास थीं। वहां दो क्या दो सौ आदमी उस वक्त बड़ी आसानी से लिछप सक�े थे। दस मिमनट �क गाड़ी खड़ी रही, ति9र चल पड़ी।

ममाया ने मुलिक्त की सांस लेकर कहा—आप आ& न हो�े �ो ईश्वर ही &ाने मेरा क्या

हाल हो�ा आपके कहीं चोट �ो नहीं आयी ?उस आदमी ने छुरे को &ेब में रख�े हुए कहा—तिबलकुल नहीं। मैं ऐसा बेसुध सोया

हुआ था तिक उन बदमाशों के आने की खबर ही न हुई। वनाC मैंने उन्हें अन्दर पांव ही न रखने दिदया हो�ा । अगले स्टेशन पर रिरपोटC करँूगा।

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माया—&ी नहीं, खामखाह की बदनामी और परेशानी होगी। रिरपोटC करने से कोई 9ायदा नहीं। ईश्वर ने आ& मेरी आबरू रख ली। मेरा कले&ा अभी �क धड़-धड़ कर रहा है। आप कहां �क चलेंगे?

‘मुझे शाह&हॉपुर &ाना है।’‘वहीं �क �ो मुझे भी &ाना है। शुभ नाम क्या है ? कम से कम अपने उपकारक के

नाम से �ो अपरिरलिच� न रहँू।‘मुझे �ो ईश्वरदास कह�े हैं।‘माया का कले&ा धक् से हो गया। &रूर यह वही खूनी है, इसकी शक्ल-सूर� भी

वही है &ो उसे ब�लायी गयी थीं उसने डर�े-डर�े पूछा—आपका मकान तिकस मुहल्ले में है ?

‘.....में रह�ा हँू।माया का दिदल बैठ गया। उसने ख़िखड़की से लिसर बाहर तिनकालकर एक लम्बी सांस

ली। हाय ! खूनी मिमला भी �ो इस हाल� में &ब वह उसके एहसान के बोझ से दबी हुई है ! क्या उस आदमी को वह खं&र का तिनशाना बना सक�ी है, जि&सने बगैर तिकसी परिरचय के लिस9C हमदद~ के &ोश में ऐसे गाढे़ वक्त में उसकी मदद की ? &ान पर खेल गया ? वह एक अ&ीब उलझन में पड़ गयी । उसने उसके चेहरे की �र9 देखा, शरा9� झलक रही थी। ऐसा आदमी खून कर सक�ा है, इसमें उसे सन्देह था

ईश्वरदास ने पूछा—आप लाहौर से आ रही हैं न ? शाह&हाँपुर में कहां &ाइएगा ?‘अभी �ो कहीं धमCशाला में ठहरंूगी, मकान का इन्�&ाम करना हैं।’ईश्वरदास ने �ाज्जुब से पूछा—�ो वहां आप तिकसी दोस्� या रिर]�ेदार के यहाँ नहीं

&ा रही हैं?‘कोई न कोई मिमल ही &ाएगा।’‘यों आपका असली मकान कहां है?’‘असली मकान पहले लखनऊ था, अब कहीं नहीं है। मै बेवा हँू।’

५श्वर दास ने शाह&हॉँपुर में माया के लिलए एक अच्छा मकान �य कर दिदया । एक नौकर भी रख दिदया । दिदन में कई बार हाल-चाल पूछने आ�ा। माया तिक�ना ही चाह�ी थी तिक

उसके एहसान न ले, उससे घतिनK�ा न पैदा करे, मगर वह इ�ना नेक, इ�ना बामुरौव� और शरी9 था तिक माया म&बूर हो &ा�ी थी।

ईएक दिदन वह कई गमले और 9नbचर लेकर आया। कई खूबसूर� �सवीरें भी थी।

माया ने त्यौरिरयां चढ़ाकर कहा—मुझे सा&-सामान की तिबलकुल &रूर� नहीं, आप नाहक �कली9 कर�े हैं।

ईश्वरदास ने इस �रह लज्जिज्ज� होकर तिक &ैसे उससे कोई भूल हो गयी हो कहा—मेरे घर में यह ची&ें बेकार पड़ी थीं, लाकर रख दी।

‘मैं इन टीम-टाम की ची&ों का गुलाम नहीं बनना चाह�ी।’ईश्वरदास ने डर�े-डर�े कहा –अगर आपको नागवार हो �ो उठवा ले &ाऊँ ?माया ने देखा तिक उसकी ऑंखें भर आयी हैं, म&बूर होकर बोली—अब आप ले

आये हैं �ो रहने दीजि&ए। मगर आगे से कोई ऐसी ची& न लाइएगा

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एक दिदन माया का नौकर न आया। माया ने आठ-नौ ब&े �क उसकी राह देखीं &ब अब भी वह न आया �ो उसने &ूठे ब�Cन मां&ना शुरू तिकया। उसे कभी अपने हाथ से चौका –ब�Cन करने का संयोग न हुआ था। बार-बार अपनी हाल� पर रोना आ�ा था एक दिदन वह था तिक उसके घर में नौकरों की एक पलटन थी, आ& उसे अपने हाथों ब�Cन मां&ने पड़ रहे हैं। ति�लोत्तमा दौड़-दौड़ कर बडे़ &ोश से काम कर रही थी। उसे कोई ति9क्र न थी। अपने हाथों से काम करने का, अपने को उपयोगी सातिब� करने का ऐसा अच्छा मौका पाकर उसकी खुशी की सीमा न रही । इ�ने में ईश्वरदास आकर खड़ा हो गया और माया को ब�Cन मां&�े देखकर बोला—यह आप क्या कर रही हैं ? रहने दीजि&ए, मैं अभी एक आदमी को बुलावाये ला�ा हँू। आपने मुझे क्यों ने खबर दी, राम-राम, उठ आइये वहां से ।

माया ने लापरवाही से कहा—कोई &रुर� नहीं, आप �कली9 न कीजि&ए। मैं अभी मां&े ले�ी हँू।

‘इसकी &रूर� भी क्या, मैं एक मिमनट में आ�ा हँू।’ ‘नहीं, आप तिकसी को न लाइए, मै इ�ने ब�Cन आसानी से धो लूँगी।’

‘अच्छा �ो लाइए मैं भी कुछ मदद करँू।’यह कहकर उसने डोल उठा लिलया और बाहर से पानी लेने दौड़ा। पानी लाकर उसने

मं&े हुए ब�Cनों को धोना शुरू तिकया।माया ने उसके हाथ से ब�Cन छीनने की कोलिशश करके कहा—आप मुझे क्यों

शर्मिम�न्दा कर�े है ? रहने दीजि&ए, मैं अभी साफ़ तिकये डाल�ी हँू।‘आप मुझे शर्मिम�दा कर�ी हैं या मैं आपको शर्मिम�दा कर रहा हँू? आप यहॉँ मुसातिफ़र हैं

, मैं यहां का रहने वाला हँू, मेरा धमC है तिक आपकी सेवा करँू। आपने एक ज्याद�ी �ो यह की तिक मुझे &रा भी खबर न दी, अब दूसरी ज्याद�ी यह कर रही हैं। मै इसे बदाC]� नहीं कर सक�ा ।’

ईश्वरदास ने &रा देर में सारे ब�Cन साफ़ करके रख दिदये। ऐसा मालूम हो�ा था तिक वह ऐसे कामों का आदी है। ब�Cन धोकर उसने सारे ब�Cन पानी से भर दिदये और �ब माथे से पसीना पोंछ�ा हुआ बोला–बा&ार से कोई ची& लानी हो �ो ब�ला दीजि&ए, अभी ला दँू।

माया—&ी नहीं, मा9 कीजि&ए, आप अपने घर का रास्�ा लीजि&ए।ईश्वरदास—ति�लोत्तमा, आओ आ& �ुम्हें सैर करा लायें।माया—&ी नहीं, रहने दीजि&ए।ं इस वक्त सैर करने नहीं &ा�ी।माया ने यह शब्द इ�ने रूखेपन से कहे तिक ईश्वरदास का मुंह उ�र गया। उसने

दुबारा कुछ न कहा। चुपके से चला गया। उसके &ाने के बाद माया ने सोचा, मैंने उसके साथ तिक�नी बेमुरौव�ी की। रेलगाड़ी की उस दु:खद घटना के बाद उसके दिदल में बराबर प्रति�शोध और मनुष्य�ा में लड़ाई लिछड़ी हुई थी। अगर ईश्वरदास उस मौके पर स्वगC के एक दू� की �रह न आ &ा�ा �ो आ& उसकी क्या हाल� हो�ी, यह ख्याल करके उसके रोए ंखडे़ हो &ा�े थे और ईश्वादास के लिलए उसके दिदल की गहराइयों से कृ�ज्ञ�ा के शब्द तिनकल�े । क्या अपने ऊपर इ�ना बड़ा एहसान करने वाले के खून से अपने हाथ रंगेगी ? लेतिकन उसी के हाथों से उसे यह मनहूस दिदन भी �ो देखना पड़ा ! उसी के कारण �ो उसने रेल का वह स9र तिकया था वनाC वह अकेले तिबना तिकसी दोस्� या मददगार के स9र ही क्यों कर�ी ? उसी के कारण �ो आ& वह वैधव्य की तिवपभित्तयां झेल रही है और सारी उम्र झेलेगी। इन बा�ों का खयाल करके उसकी आंखें लाल हो &ा�ीं, मुंह से एक गमC आह

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तिनकल &ा�ी और &ी चाह�ा इसी वक्त कटार लेकरचल पडे़ और उसका काम �माम कर दे।

६& माया ने अन्तिन्�म तिनश्चय कर लिलया। उसने ईश्वरदास की दाव� की थी। यही उसकी आख़िखरी दाव� होगी। ईश्वरदास ने उस पर एहसान &रूर तिकये हैं लेतिकन

दुतिनया में कोई एहसान, कोई नेकी उस शोक के दाग को मिमटा सक�ी है ? रा� के नौ ब&े ईश्वादास आया �ो माया ने अपनी वाणी में पे्रम का आवेग भरकर कहा—बैदिठए, आपके लिलए गमC-गमC पूतिड़यॉं तिनकाल दँू ?

आईश्वरदास—क्या अभी �क आप मेरे इन्�&ार में बैठी हुई हैं ? नाहक गमb में परेशान

हुई। माया ने थाली परसकर उसके सामने रख�े हुए कहा—मैं खाना पकाना नहीं &ान�ी

? अगर कोई चीज़ अच्छी न लगे �ो माफ़ कीजि&एगा।ईश्वरदास ने खूब �ारीफ़ करके एक-एक ची& खायीं। ऐसी स्वादिदष्ट ची&ें उसने

अपनी उम्र में कभी न खायी थी।‘आप �ो कह�ी थी मैं खाना पकाना नहीं &ान�ी ?’‘�ो क्या मैं ग़ल� कह�ी थी ?’‘तिबलकुल ग़ल�। आपने खुद अपनी ग़ल�ी सातिब� कर दीं। ऐसे खस्�े मैंने जि&न्दगी

में भी न खाये थे।’‘आप मुझे बना�े है, अच्छा साहब बना लीजि&ए।’‘नहीं, मैं बना�ा नहीं, तिबलकुल सच कह�ा हँू। तिकस-कीस ची& की �ारी9 करंू?

चाह�ा हँू तिक कोई ऐब तिनकालूँ, लेतिकन सूझ�ा ही नहीं। अबकी मैं अपने दोस्�ों की दाव� करंूगा �ो आपको एक दिदन �कली9 दंूगा।’

‘हां, शौक़ से कीजि&ए, मैं हाजि&र हँू।’खा�े-खा�े दस ब& गये। ति�लोत्तमा सो गयी। गली में भी सन्नाटा हो गया। ईश्वरदास

चलने को �ैयार हुआ, �ो माया बोली—क्या आप चले &ाएगंे ? क्यों न आ& यहीं सो रतिहए? मुझे कुछ डर लग रहा है। आप बाहर के कमरे में सो रतिहएगा, मैं अन्दर आंगन में सो रहँूगीं

ईश्वरदास ने क्षण-भर सोचकर कहा—अच्छी बा� है। आपने पहले कभी न कहा तिक आपको इस घर में डर लग�ा है वनाC मैं तिकसी भरोसे की बुड्ढी और� को रा� को सोने के लिलए ठीक कर दे�ा ।

ईश्वरदास ने �ो कमरे में आसन &माया, माया अन्दर खाना खाने गयी। लेतिकन आ& उसके गले के नीचे एक कौर भी न उ�र सका। उसका दिदल &ोर-&ोर से घड़क रहा था। दिदल पर एक डर–सा छाया हुआ था। ईश्वरदास कहीं &ाग पड़ा �ो ? उसे उस वक्त तिक�नी शर्मिम�न्दगी होगी !

माया ने कटार को खूब �े& कर रखा था। आ& दिदन-भर उसे हाथ में लेकर अभ्यास तिकया । वह इस �रह वार करेगी तिक खाली ही न &ाये। अगर ईश्वरदास &ाग ही पड़ा �ो &ानलेवा घाव लगेगा।

&ब आधी रा� हो गयी और ईश्वरदास के खराCटों की आवा&ें कानों में आने लगी �ो माया कटार लेकर उठी पर उसका सारा शरीर कांप रहा था। भय और संकल्प, आकषCण और घृणा एक साथ कभी उसे एक कदम आगे बढ़ा दे�ी, कभी पीछे हटा दे�ी । ऐसा मालूम

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हो�ा था तिक &ैसे सारा मकान, सारा आसमान चक्कर खा रहा हैं कमरे की हर एक ची& घूम�ी हुई न&र आ रही थी। मगर एक क्षण में यह बेचैनी दूर हो गयी और दिदल पर डर छा गया। वह दबे पांव ईश्वरदास के कमरे �क आयी, ति9र उसके क़दम वहीं &म गये। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। आह, मैं तिक�नी कम&ोर हँू, जि&स आदमी ने मेरा सवCनाश कर दिदया, मेरी हरी-भरी खे�ी उ&ाड़ दी, मेरे लहलहा�े हुए उपवन को वीरान कर दिदया, मुझे हमेशा के लिलए आग के &ल�े हुए कंुडों में डाल दिदया, उससे मैं खून का बदला भी नहीं ले सक�ी ! वह मेरी ही बहनें थी, &ो �लवार और बन्दूक लेकर मैदान में लड़�ी थीं, दहक�ी हुई लिच�ा में हंस�े-हंस�े बैठ &ा�ी थी। उसे उस वक्त ऐसा मालूम हुआ तिक मिमस्टर व्यास सामने खडें हैं और उसे आगे बढ़ने की पे्ररणा कर रहे हैं, कह रहे है, क्या �ुम मेरे खून का बदला न लोगी ? मेरी आत्मा प्रति�शोध के लिलए �ड़प रही हैं । क्या उसे हमेशा-हमेशा यों ही �ड़पा�ी रहोगी ? क्या यही वफ़ा की श�C थी ? इन तिवचारों ने माया की भावनाओं को भड़का दिदया। उसकी आंखें खून की �रह लाल हो गयीं, होंठ दां�ों के नीचे दब गये और कटार के हत्थे पर मुटठी बंध गयी। एक उन्माद-सा छा गया। उसने कमरे के अन्दर पैर रखा मगर ईश्वरदास की आंखें खुल गयी थीं। कमरे में लालटेन की मजि�म रोशनी थी। माया की आहट पाकर वह चौंका और लिसर उठाकर देखा �ो खून सदC हो गया—माया प्रलय की मूर्ति�� बनी हाथ में नंगी कटार लिलये उसकी �र9 चली आ रही थी!

वह चारपाई से उठकर खड़ा हो गया और घबड़ाकर बोला—क्या है बहन ? यह कटार क्यों लिलये हुए हो ?

माया ने कहा—यह कटार �ुम्हारे खून की प्यासी है क्योंतिक �ुमने मेरे पति� का खून तिकया है।

ईश्वरदास का चेहरा पीला पड़ गया । बोला—मैंनें !‘हां �ुमने, �ुम्हीं ने लाहौर में मेरे पति� की हत्या की, &ब वे एक मुकदमें की पैरवी

करने गये थे। क्या �ुम इससे इनकार कर सक�े हो ?मेरे पति� की आत्मा ने खुद �ुम्हारा प�ा ब�लाया है।’

‘�ो �ूम मिमस्टर व्यास की बीवी हो?’‘हां, मैं उनकी बदनसीब बीवी हँू और �ुम मेरा सोहाग लूटनेवाले हो ! गो �ुमने मेरे

ऊपर एहसान तिकये हैं लेतिकन एहसानों से मेरे दिदल की आग नहीं बुझ सक�ी। वह �ुम्हारी खून ही से बुझेगी।’

ईश्वरदास ने माया की ओर याचना-भरी आंखों से देखकर कहा—अगर आपका यही 9ैसला है �ो लीजि&ए यह सर हाजि&र है। अगर मेरे खून से आपके दिदल की आग बुझ &ाय �ो मैं खुद उसे आपके कदमों पर तिगरा दँूगा। लेतिकन जि&स �रह आप मेरे खून से अपनी �लवार की प्यास बुझाना अपना धमC समझ�ी हैं उसी �रह मैंने भी मिमस्टर व्यास को क़त्ल करना अपना धमC समझा। आपको मालूम है, वह एक रानीति�क मुकदमें की पैरवी करने लाहौर गये थें। लेतिकन मिमस्टर व्यास ने जि&स �रह अपनी ऊंची कानूनी लिलयाक� का इस्�ेमाल तिकया, पुलिलस को झुठी शहाद�ों के �ैयार करने में जि&स �रह मदद दी, जि&स बेरहमी और बेदद~ से बेकस और ज्यादा बेगुनाह नौ&वानों को �बाह तिकया, उसे मैं सह न सक�ा था। उन दिदनों अदाल� में �माशाइयों की बेइन्�ा भीड़ रह�ी थी। सभी अदाल� से मिमस्टर व्यास को कोस�े हुए &ा�े थे मैं �ो मुकदमे की हकीक� को &ान�ा था । इस लिलए मेरी अन्�रात्मा लिस9C कोसने और गालिलयॉँ देने से शां� न हो सक�ी थी । मैं आपसे क्या कहूँ

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। मिमस्टर व्यास ने आखं खोलकर समझ- बूझकर झूठ को सच सातिब� तिकया और तिक�ने ही घरानो को बेलिचराग कर दिदया आ& तिक�नी माए अपने बेटो के लिलए खून के आंसू रो रही है, तिक�नी ही और�े रंडापे की आग में &ल रही है। पुलिलस तिक�नी ही ज्यादति�यां करे, हम परवाह नही कर�े । पुलिलस से हम इसके लिसवा और उम्मीद नही रख�े। उसमे ज्यादा�र &ातिहल शोहदे लुचे्च भरे हुए है । सरकार ने इस महकमे को कायम ही इसलिलए तिकया है तिक वह रिरआया को �ंग करे। मगर वकीलो से हम इन्सा9 की उम्मीद रख�े है। हम उनकी इज्ज� कर�े है । वे उच्चकोदिट के पढे लिलखे स&ग लोग हो�े है । &ब ऐसे आदमिमयों को हम पुलिलस के हाथो की कठपु�ली बना हुआ देख�े है �ो हमारे क्रोध की सीमा नहीं रह�ी मैं मिमस्टर व्यास का प्रशंसक था। मगर &ब मैने उन्हें बेगुनाह मुलजि&मों से &बरन &ुमC का इकबाल करा�े देखा �ो मुझे उनसे न9र� हो गयी । गरीब मुलजि&म रा� दिदन भर उल्टे लटकाये &ा�े थे ! लिस9C इसलिलए तिक वह अपना &ुमC, �ो उन्होने कभी नही तिकया, इकबाल कर ले ! उनकी नाक में लाल मिमचC का धुआं डाला &ा�ा था ! मिमस्टर व्यास यह सारी ज्यादाति�यां लिस9C अपनी आंखो से देख�े ही नही थे, बश्किल्क उन्हीं के इशारे पर वह की &ा�ी थी।

माया के चेहरे की कठोर�ा &ा�ी रही । उसकी &गह &ाय& गुस्से की गमb पैदा हुई । बोली–इसका आपके के पास कोई सबू� है तिक उन्होने मुलजि&मो पर ऐसी सज्जिख्�यां की ?

‘यह सारी बा�े आम�ौर पर मशहूर थी । लाहौर का बच्चा बच्चा &ान�ा है। मैने खुद अपनी आंखों से देखी इसके लिसवा मैं और क्या सबू� दे सक�ा हँू उन बेचारो का बस इ�ना कसूर था। तिक वह तिहन्दुस्�ान के सच्चे दोस्� थे, अपना सारा वक्त प्र&ा की लिशक्षा और सेवा में खचC कर�े थे। भूखे रह�े थे, प्र&ा पर पुलिलस हुक्काम की सज्जिख्�ंया न होने दे�े थे, यही उनका गुनाह था और इसी गुनाह की स&ा दिदलाने में मिमस्टर व्यास पुलिलस के दातिहने हाथ बने हुए थे!’माया के हाथ से खं&र तिगर पड़ा। उसकी आंखो मे आंसू भर आये, बोली मुझे न मालूम था तिक वे ऐसी हरक�े भी कर सक�े है।

ईश्वरदास ने कहा- यह न समजिझए तिक मै आपकी �लवार से डर कर वकील साहब पर झूठे इल्&ाम, लगा रहा हंू । मैने कभी जि&न्दगी की परवाह नहीं की। मेरे लिलए कौन रोने वाला बैठा हुआ है जि&सके लिलए जि&न्दगी की परवाह करँु। अगर आप समझ�ी हैं तिक मैने अनंुलिच� हत्या की है �ो आप इस �लवार को उठाकर इस जि&न्दगी का खात्मा कर दीजि&ए, मै &रा भी न जिझझकूगां। अगर आप �लवार न उठा सके �ो पुलिलस को खबर कर दीजि&ए, वह बड़ी आसानी से मुझे दुतिनया से रुखस� कर सक�ी है। सबू� मिमल &ाना मुश्कि]कल न होगा। मैं खुद पुलिलस के सामने &ुमC का इकबाल कर ले�ा मगर मै इसे &ुमC नही समझ�ा। अगर एक &ान से सैकड़ो &ाने बच &ाए ं�ो वह खून नही है। मैं लिस9C इसलिलए जि&न्दा रहना चाह�ा हँू तिक शायद तिकसी ऐसे ही मौके पर मेरी ति9र &रुर� पडे़ माया ने रो�े हुए- अगर �ुम्हारा बयान सही है �ो मै अपना, खून मा9 कर�ी हँू �ुमने &ो तिकया या बे&ा तिकया इसका 9ैसला ईश्वर करेगे। �ुमसे मेरी प्राथCना है तिक मेरे पति� के हाथों &ो घर �बाह हुए है। उनका मुझे प�ा ब�ला दो, शायद मै उनकी कुछ सेवा कर सकँू।

-- पे्रमचालीसा’ से

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देवी

� भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खडा था। सामने अमीनुददौला पाकC नीदं में डूबा खड़ा था। लिस9C एक और� एक �तिकयादार वेचं पर बैठी हंुई थी। पाकC के बाहर सड़क के

तिकनारे एक 9कीर खड़ा राहगीरो को दुआए ंदे रहा था। खुदा और रसूल का वास्�ा......राम और भगवान का वास्�ा..... इस अंधे पर रहम करो ।

रासड़क पर मोटरों ओर सवारिरयों का �ा�ां बन्द हो चुका था। इक्के–दुक्के आदमी

न&र आ &ा�े थे। फ़कीर की आवा& &ो पहले नक्कारखाने में �ू�ी की आवा& थी अब खुले मैदान की बुलंद पुकार हो रही थी ! एकाएक वह और� उठी और इधर उधर चौकन्नी आंखो से देखकर 9कीर के हाथ में कुछ रख दिदया और ति9र बहु� धीमे से कुछ कहकर एक �र9 चली गयी। 9कीर के हाथ मे काग& का टुकडा न&र आया जि&से वह बार बार मल रहा था। क्या उस और� ने यह काग& दिदया है ?

यह क्या रहस्य है ? उसके &ानने के कू�ूहल से अधीर होकर मै नीचे आया ओर 9ेकीर के पास खड़ा हो गया।

मेरी आहट पा�े ही 9कीर ने उस काग& के पु&� को दो उंगलिलयों से दबाकर मुझे दिदखाया। और पूछा,- बाबा, देखो यह क्या ची& है ?

मैने देखा– दस रुपये का नोट था ! बोला– दस रुपये का नोट है, कहां पाया ? 9कीर ने नोट को अपनी झोली में रख�े हुए कहा-कोई खुदा की बन्दी दे गई है।

मैने ओर कुछ ने कहा। उस और� की �र9 दौडा &ो अब अधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।

वह कई गलिलयों मे हो�ी हुई एक टूटे–9ूटे तिगरे-पडे मकान के दरवा&े पर रुकी, �ाला खोला और अन्दर चली गयी।

रा� को कुछ पूछना ठीक न समझकर मै लौट आया।रा�भर मेरा &ी उसी �र9 लगा रहा। एकदम �ड़के मै ति9र उस गली में &ा पहुचा ।

मालूम हुआ वह एक अनाथ तिवधवा है।मैने दरवा&े पर &ाकर पुकारा – देवी, मैं �ुम्हारे दशCन करने आया हँू। और� बहार

तिनकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की जि&न्दा �स्वीर मैने तिहचक�े हुए कहा- रा� आपने 9कीर को..................

देवी ने बा� काट�े हुए कहा– अ&ी वह क्या बा� थी, मुझे वह नोट पड़ा मिमल गया था, मेरे तिकस काम का था। मैने उस देवी के कदमो पर लिसर झुका दिदया।

- पे्रमचालीसा’ से

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खुदी

न्नी जि&स वक्त दिदलदारनगर में आयी, उसकी उम्र पांच साल से ज्यादा न थी। वह तिबलकुल अकेली न थी, माँ-बाप दोनों न मालूम मर गये या कहीं परदेस चले गये थे।

मुत्री लिस9C इ�ना &ान�ी थी तिक कभी एक देवी उसे ख़िखलाया कर�ी थी और एक देव�ा उसे कंधे पर लेकर खे�ों की सैर कराया कर�ा था। पर वह इन बा�ों का जि&क्र कुछ इस �रह कर�ी थी तिक &ैसे उसने सपना देखा हो। सपना था या सच्ची घटना, इसका उसे ज्ञान न था। &ब कोई पूछ�ा �ेरे मॉँ-बाप कहां गये ? �ो वह बेचारी कोई &वाब देने के ब&ाय रोने लग�ी और यों ही उन सवालों को टालने के लिलए एक �र9 हाथ उठाकर कह�ी—ऊपर। कभी आसमान की �रफ़ देखकर कह�ी—वहां। इस ‘ऊपर’ और ‘वहां’ से उसका क्या म�लब था यह तिकसी को मालूम न हो�ा। शायद मुन्नी को यह खुद भी मालूम न था। बस, एक दिदन लोगों ने उसे एक पेड़ के नीचे खेल�े देखा और इससे ज्यादा उसकी बाब� तिकसी को कुछ प�ा न था।

मु

लड़की की सूर� बहु� प्यारी थी। &ो उसे देख�ा, मोह &ा�ा। उसे खाने-पीने की कुछ तिफ़क्र न रह�ी। &ो कोई बुलाकर कुछ दे दे�ा, वही खा ले�ी और ति9र खेलने लग�ी। शक्ल-सूर& से वह तिकसी अचे्छ घर की लड़की मालूम हो�ी थी। ग़रीब-से-ग़रीब घर में भी उसके खाने को दो कौर और सोने को एक टाट के टुकडे़ की कमी न थी। वह सबकी थी, उसका कोई न था।

इस �रह कुछ दिदन बी� गये। मुन्नी अब कुछ काम करने के क़ातिबल हो गयी। कोई कह�ा, ज़रा &ाकर �ालाब से यह कपडे़ �ो धो ला। मुन्नी तिबना कुछ कहे-सुने कपडे़ लेकर चली &ा�ी। लेतिकन रास्�े में कोई बुलाकर कह�ा, बेटी, कुऍं से दो घडे़ पानी �ो खींच ला, �ो वह कपडे़ वहीं रखकर घडे़ लेकर कुऍं की �र9 चल दे�ी। &रा खे� से &ाकर थोड़ा साग �ो ले आ और मुन्नी घडे़ वहीं रखकर साग लेने चली &ा�ी। पानी के इन्�ज़ार में बैठी हुई और� उसकी राह देख�े-देख�े थक &ा�ी। कुऍं पर &ाकर देख�ी है �ो घडे़ रखे हुए हैं। वह मुन्नी को गालिलयॉँ दे�ी हुई कह�ी, आ& से इस कलमुँही को कुछ खाने को न दँूगी। कपडे़ के इन्�ज़ार में बैठी हुई और� उसकी राह देख�े-देख�े थक &ा�ी और गुस्से में �ालाब की �रफ़ &ा�ी �ो कपडे़ वहीं पडे़ हुए मिमल�े। �ब वह भी उसे गालिलयॉँ देकर कह�ी, आ& से इसको कुछ खाने को न दँूगी। इस �रह मुन्नी को कभी-कभी कुछ खाने को न मिमल�ा और �ब उसे बचपन याद आ�ा, &ब वह कुछ काम न कर�ी थी और लोग उसे बुलाकर खाना ख़िखला दे�े थे। वह सोच�ी तिकसका काम करँु, तिकसका न करँु जि&से &वाब दँू वही नाराज़ हो &ायेगा। मेरा अपना कौन है, मैं �ो सब की हँू। उसे ग़रीब को यह न मालूम था तिक &ो सब का हो�ा है वह तिकसी का नहीं हो�ा। वह दिदन तिक�ने अचे्छ थे, &ब उसे खाने-पीने की और तिकसी की खुशी या नाखुशी की परवाह न थी। दुभाCग्य में भी बचपन का वह समय चैन का था।

कुछ दिदन और बी�े, मुन्नी &वान हो गयी। अब �क वह और�ों की थी, अब मद� की हो गयी। वह सारे गॉँव की पे्रमिमका थी पर कोई उसका पे्रमी न था। सब उससे कह�े थे—मैं �ुम पर मर�ा हँू, �ुम्हारे तिवयोग में �ारे तिगन�ा हँू, �ुम मेरे दिदलो&ान की मुराद हो, पर उसका सच्चा पे्रमी कौन है, इसकी उसे खबर न हो�ी थी। कोई उससे यह न कह�ा था तिक �ू मेरे

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दुख-ददC की शरीक हो &ा। सब उससे अपने दिदल का घर आबाद करना चाह�े थे। सब उसकी तिनगाह पर, एक मजि�म-सी मुस्कराहट पर कुबाCन होना चाह�े थे; पर कोई उसकी बाँह पकड़नेवाला, उसकी ला& रखनेवाला न था। वह सबकी थी, उसकी मुहब्ब� के दरवा&े सब पर खुले हुए थे ; पर कोई उस पर अपना �ाला न डाल�ा था जि&ससे मालूम हो�ा तिक यह उसका घर है, और तिकसी का नहीं।

वह भोली-भाली लड़की &ो एक दिदन न &ाने कहॉँ से भटककर आ गयी थी, अब गॉँव की रानी थी। &ब वह अपने उत्र� वक्षों को उभारकर रुप-गवC से गदCन उठाये, न&ाक� से लचक�ी हुई चल�ी �ो मनचले नौ&वान दिदल थामकर रह &ा�े, उसके पैरों �ले ऑंखें तिबछा�े। कौन था &ो उसके इशारे पर अपनी &ान न तिनसार कर दे�ा। वह अनाथ लड़की जि&से कभी गुतिड़यॉँ खेलने को न मिमलीं, अब दिदलों से खेल�ी थी। तिकसी को मार�ी थी। तिकसी को जि&ला�ी थी, तिकसी को ठुकरा�ी थी, तिकसी को थपतिकयॉँ दे�ी थी, तिकसी से रुठ�ी थी, तिकसी को मना�ी थी। इस खेल में उसे क़त्ल और खून का-सा मज़ा मिमल�ा था। अब पॉँसा पलट गया था। पहले वह सबकी थी, कोई उसका न था; अब सब उसके थे, वह तिकसी की न थी। उसे जि&से चीज़ की �लाश थी, वह कहीं न मिमल�ी थी। तिकसी में वह तिहम्म� न थी &ो उससे कह�ा, आ& से �ू मेरी है। उस पर दिदल न्यौछावर करने वाले बहु�ेरे थे, सच्चा साथी एक भी न था। असल में उन सरति9रों को वह बहु� नीची तिनगाह से देख�ी थी। कोई उसकी मुहब्ब� के क़ातिबल नहीं था। ऐसे पस्�-तिहम्म�ों को वह ख़िखलौनों से ज्यादा महत्व न देना चाह�ी थी, जि&नका मारना और जि&लाना एक मनोरं&न से अमिधक कुछ नहीं।

जि&स वक्त़ कोई नौ&वान मिमठाइयों के थाल और 9ूलों के हार लिलये उसके सामने खड़ा हो &ा�ा �ो उसका &ी चाह�ा; मुंह नोच लूँ। उसे वह ची&ें कालकूट हलाहल &ैसी लग�ीं। उनकी &गह वह रुखी रोदिटयॉँ चाह�ी थी, सच्चे पे्रम में डूबी हुई। गहनों और अशर्ति9�यों के ढेर उसे तिबचू्छ के डंक &ैसे लग�े। उनके बदले वह सच्ची, दिदल के भी�र से तिनकली हुई बा�ें चाह�ी थी जि&नमें पे्रम की गंध और सच्चाई का गी� हो। उसे रहने को महल मिमल�े थे, पहनने को रेशम, खाने को एक-से-एक वं्य&न, पर उसे इन ची&ों की आकांक्षा न थी। उसे आकांक्षा थी, 9ूस के झोंपडे़, मोटे-झोटे सूखे खाने। उसे प्राणघा�क लिसजि�यों से प्राणपोषक तिनषेध कहीं ज्यादा तिप्रय थे, खुली हवा के मुकाबले में बंद पिप�&रा कहीं ज्यादा चाहे�ा !

एक दिदन एक परदेसी गांव में आ तिनकला। बहु� ही कम&ोर, दीन-हीन आदमी था। एक पेड़ के नीचे सत्तू खाकर लेटा। एकाएक मुन्नी उधर से &ा तिनकली। मुसातिफ़र को देखकर बोली—कहां &ाओगे ?

मुसाति9र ने बेरुखी से &वाब दिदया- &हनु्नम ! मुन्नी ने मुस्कराकर कहा- क्यों, क्या दुतिनया में &गह नहीं ?‘औरों के लिलए होगी, मेरे लिलए नहीं।’‘दिदल पर कोई चोट लगी है ?’मुसाति9र ने ज़हरीली हंसी हंसकर कहा- बदनसीबों की �क़दीर में और क्या है !

रोना-धोना और डूब मरना, यही उनकी जि&न्दगी का खुलासा है। पहली दो मंजि&ल �ो �य कर चुका, अब �ीसरी मंजिज़ल और बाकी है, कोई दिदन वह पूरी हो &ायेगी; ईश्वर ने चाहा �ो बहु� &ल्द।

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यह एक चोट खाये हुए दिदल के शब्द थे। &रुर उसके पहलू में दिदल है। वनाC यह ददC कहां से आ�ा ? मुन्नी बहु� दिदनों से दिदल की �लाश कर रही थी बोली—कहीं और वफ़ा की �लाश क्यों नहीं कर�े ?

मुसाति9र ने तिनराशा के भव से उत्तर दिदया—�ेरी �क़दीर में नहीं, वनाC मेरा क्या बना-बनाया घोंसला उ&ड़ &ा�ा ? दौल� मेरे पास नहीं। रुप-रंग मेरे पास नहीं, ति9र वफ़ा की देवी मुझ पर क्यों मेहरबान होने लगी ? पहले समझ�ा था वफ़ा दिदल के बदले मिमल�ी है, अब मालूम हुआ और ची&ों की �रह वह भी सोने-चॉँदी से खरीदी &ा सक�ी है।

मुन्नी को मालूम हुआ, मेरी नज़रों ने धोखा खाया था। मुसाति9र बहु� काला नहीं, लिस9C सॉँवला। उसका नाक-नक्शा भी उसे आकषCक &ान पड़ा। बोली—नहीं, यह बा� नहीं, �ुम्हारा पहला खयाल ठीक था।

यह कहकर मुन्नी चली गयी। उसके हृदय के भाव उसके संयम से बाहर हो रहे थे। मुसातिफ़र तिकसी खयाल में डूब गया। वह इस सुन्दरी की बा�ों पर गौर कर रहा था, क्या सचमुच यहां वफ़ा मिमलेगी ? क्या यहॉँ भी �क़दीर धोखा न देगी ?

मुसातिफ़र ने रा� उसी गॉँव में काटी। वह दूसरे दिदन भी न गया। �ीसरे दिदन उसने एक 9ूस का झोंपड़ा खड़ा तिकया। मुन्नी ने पूछा—यह झोपड़ा तिकसके लिलए बना�े हो ?

मुसातिफ़र ने कहा—जि&ससे वफ़ा की उम्मीद है। ‘चले �ो न &ाओगे?’‘झोंपड़ा �ो रहेगा।’‘खाली घर में भू� रह�े हैं।’‘अपने प्यारे का भू� ही प्यारा हो�ा है।’दूसरे दिदन मुन्नी उस झोंपडे़ में रहने लगी। लोगों को देखकर �ाज्जुब हो�ा था। मुन्नी

उस झोंपडे़ में नही रह सक�ी। वह उस भोले मुसाति9र को &रुर द़गा देगी, यह आम खयाल था, लेतिकन मुन्नी 9ूली न समा�ी थी। वह न कभी इ�नी सुन्दर दिदखायी पड़ी थी, न इ�नी खुश। उसे एक ऐसा आदमी मिमल गया था, जि&सके पहलू में दिदल था।

2तिकन मुसाति9र को दूसरे दिदन यह लिचन्�ा हुई तिक कहीं यहां भी वही अभागा दिदन न देखना पडे़। रुप में वफ़ा कहॉँ ? उसे याद आया, पहले भी इसी �रह की बा�ें हुई थीं,

ऐसी ही कसम खायी गयी थीं, एक दूसरे से वादे तिकए गए थे। मगर उन कच्चे धागों को टूट�े तिक�नी देर लगी ? वह धागे क्या ति9र न टूट &ाएगंे ? उसके क्षभिणक आनन्द का समय बहु� &ल्द बी� गया और ति9र वही तिनराशा उसके दिदल पर छा गयी। इस मरहम से भी उसके जि&गर का &ख्म न भरा। �ीसरे रो& वह सारे दिदन उदास और लिचन्तिन्�� बैठा रहा और चौथे रो& लाप�ा हो गया। उसकी यादगार लिस9C उसकी 9ूस की झोंपड़ी रह गयी।

ले

मुन्नी दिदन-भर उसकी राह देख�ी रही। उसे उम्मीद थी तिक वह &रुर आयेगा। लेतिकन महीनों गु&र गये और मुसाति9र न लौटा। कोई ख� भी न आया। लेतिकन मुन्नी को उम्मीद थी, वह &रुर आएगा।

साल बी� गया। पेड़ों में नयी-नयी कोपलें तिनकलीं, 9ूल ख़िखले, 9ल लगे, काली घटाए ंआयीं, तिब&ली चमकी, यहां �क तिक &ाड़ा भी बी� गया और मुसाति9र न लौटा। मगर मुन्नी को अब भी उसके आने की उम्मीद थी; वह &रा भी लिचन्तिन्�� न थी, भयभी� न थीं वह

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दिदन-भर म&दूरी कर�ी और शाम को झोंपडे़ में पड़ रह�ी। लेतिकन वह झोंपड़ा अब एक सुरभिक्ष� तिकला था, &हां लिसरति9रों के तिनगाह के पांव भी लंगडे़ हो &ा�े थे।

एक दिदन वह सर पर लकड़ी का गट्ठा लिलए चली आ�ी थी। एक रलिसयों ने छेड़खानी की—मुन्नी, क्यों अपने सुकुमार शरीर के साथ यह अन्याय कर�ी हो ? �ुम्हारी एक कृपा दृमिष्ट पर इस लकड़ी के बराबर सोना न्यौछावर कर सक�ा हँू।

मुन्नी ने बड़ी घृणा के साथ कहा—�ुम्हारा सोना �ुम्हें मुबारक हो, यहां अपनी मेहन� का भरोसा है।

‘क्यों इ�ना इ�रा�ी हो, अब वह लौटकर न आयेगा।’मुन्नी ने अपने झोंपडे़ की �र9 इशारा करके कहा—वह गया कहां &ो लौटकर

आएगा ? मेरा होकर वह ति9र कहां &ा सक�ा हैं ? वह �ो मेरे दिदल में बैठा हुआ है ! इसी �रह एक दिदन एक और पे्रमी&न ने कहा—�ुम्हारे लिलए मेरा महल हाजि&र है।

इस टूटे-9ूटे झोपडे़ में क्यों पड़ी हो ?मुन्नी ने अभिभमान से कहा—इस झोपडे़ पर एक लाख महल न्यौछावर हैं। यहां मैने

वह चीज़ पाई है, &ो और कहीं न मिमली थी और न मिमल सक�ी है। यह झोपड़ा नहीं है, मेरे प्यारे का दिदल है !

इस झोंपडे़ में मुन्नी ने सत्तर साल काटे। मरने के दिदन �क उसे मुसातिफ़र के लौटने की उम्मीद थी, उसकी आख़िखरी तिनगाहें दरवा&े की �र9 लगी हुई थीं। उसके खरीदारों में कुछ �ो मर गए, कुछ जि&न्दा हैं, मगर जि&स दिदन से वह एक की हो गयी, उसी दिदन से उसके चेहरे पर दीन्तिप्� दिदखाई पड़ी जि&सकी �रफ़ �ाक�े ही वासना की आंखें अंधी हो &ा�ीं। खुदी &ब &ाग &ा�ी है �ो दिदल की कम&ोरिरयां उसके पास आ�े डर�ी हैं।

-‘खाके परवाना’ से

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बडे़ बाबून सौ पैंसठ दिदन, कई घण्टे और कई मिमनट की लगा�ार और अनथक दौड़-धूप के बाद मैं आख़िखर अपनी मंजि&ल पर धड़ से पहुँच गया। बडे़ बाबू के दशCन हो गए। मिमट्टी

के गोले ने आग के गोले का चक्कर पूरा कर लिलया। अब �ो आप भी मेरी भूगोल की लिलयाक� के कायल हो गए। इसे रुपक न समजिझएगा। बडे़ बाबू में दोपहर के सूर& की गमb और रोशनी थी और मैं क्या और मेरी तिबसा� क्या, एक मुठ्ठी खाक। बडे़ बाबू मुझे देखकर मुस्कराये। हाय, यह बडे़ लोगों की मुस्कराहट, मेरा अधमरा-सा शरीर कांप�े लगा। &ी में आया बडे़ बाबू के कदमों पर तिबछ &ाऊँ। मैं काति9र नहीं, गालिलब का मुरीद नहीं, &न्न� के होने पर मुझे पूरा यकीन है, उ�रा ही पूरा जि&�ना अपने अंधेरे घर पर। लेतिकन 9रिर]�े मुझे &न्न� ले &ाने के लिलए आए �ो भी यकीनन मुझे वह &बरदस्� खुशी न हो�ी &ो इस चमक�ी हुई मुस्कराहट से हुई। आंखों में सरसों 9ूल गई। सारा दिदल और दिदमाग एक बगीचा बन गया। कल्पना ने मिमस्र के ऊंचे महल बनाने शुरु कर दिदय। सामने कुर्सिस�यों, पद� और खस की टदिट्टयों से स&ा-स&ाया कमरा था। दरवा&े पर उम्मीदवारों की भीड़ लगी हुई थी और ई&ातिनब एक कुसb पर शान से बैठे हुए सबको उसका तिहस्सा देने वाले खुदा के दुतिनयाबी फ़&C अदा कर रहे थे। न&र-मिमयाज़ का �ूफ़ान बरपा था और मैं तिकसी �रफ़ आंख उठाकर न देख�ा था तिक &ैसे मुझे तिकसी से कुछ लेना-देना नहीं।

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अचानक एक शेर &ैसी गर& ने मेरे बन�े हुए महल में एक भूचाल-सा ला दिदया—क्या काम है? हाय रे, ये भोलापन ! इस पर सारी दुतिनया के हसीनों का भोलापन और बेपरवाही तिनसार है। इस ड्याढ़ी पर माथा रगड़�े-रगड़�े �ीने सौ पैंसठ दिदन, कई घण्टे और कई मिमनट गु&र गए। चौखट का पत्थर मिघसकर &मीन से मिमल गया। ईदू तिबसा�ी की दुकान के आधे ख़िखलौने और गोव�Cन हलवाई की आधी दुकान इसी ड्यौढ़ी की भेंट चढ़ गयी और मुझसे आ& सवाल हो�ा है, क्या काम है !

मगर नहीं, यह मेरी ज्याद�ी हैं सरासर &ुल्म। &ो दिदमाग़ बडे़-बडे़ मुल्की और माली �मद्दनुी मसलों में दिदन-रा� लगा रह�ा है, &ो दिदमाग़ डाकूमेंटों, सरकुलरों, परवानों, हुक्मनामों, नक्शों वगै़रह के बोझ से दबा &ा रहा हो, उसके न&दीक मुझ &ैसे खाक के पु�ले की हस्�ी ही क्या। मच्छर अपने को चाहे हाथी समझ ले पर बैल के सींग को उसकी क्या खबर। मैंने दबी &बान में कहा—हु&ूर की क़दमबोसी के लिलए हाजि&र हुआ।

बडे़ बाबू गर&े—क्या काम है?अबकी बार मेरे रोए ंखडे़ हो गए। खुदा के फ़&ल से लहीम-शहीम आदमी हँू, जि&न

दिदनों काले& में था, मेरे डील-डौल और मेरी बहादुरी और दिदलेरी की धूम थी। हाकी टीम का कप्�ान, 9ुटवाल टीम का नायब कप्�ान और तिक्रकेट का &नरल था। तिक�ने ही गोरों के जि&स्म पर अब भी मेरी बहादुरी के दाग़ बाकी होंगे। मुमतिकन है, दो-चार अब भी बैसाख़िखयां लिलए चल�े या रेंग�े हों। ‘बम्बई क्रातिनकल’ और ‘टाइम्स’ में मेरे गेंदों की धूम थी। मगर इस वक्त बाबू साहब की गर& सुनकर मेरा शरीर कांपने लगा। कांप�े हुए बोला—हु&ूर की कदमबोसी के लिलए हाजि&र हुआ।

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बडे़ बाबू ने अपना स्लीपरदार पैर मेरी �रफ़ बढ़ाकर कहा—शौक से लीजि&ए, यह कदम हाजि&र है, जि&�ने बोसे चाहे लीजि&ए, बेतिहसाब मामले हैं, मुझसे कसम ले लीजि&ए &ो मैं तिगनूँ, &ब �क आपका मुंह न थक &ाए, लिलए &ाइए ! मेरे लिलए इससे बढ़कर खुशनसीबी का क्या मौका होगा ? औरों को &ो बा� बडे़ &प-�प, बडे़ संयम-व्र� से मिमल�ी है, वह मुझे बैठे-तिबठाये बग़ैर हड़-ति9टकरी लगाए हालिसल हो गयी। वल्लाह, हंू मैं भी खुशनसीब । आप अपने दोस्�-अहबाब, आत्मीय-स्व&न &ो हों, उन सबको लायें �ो और भी अच्छा, मेरे यहां सबको छूट है !

हंसी के पद� में यह &ो &ुल्म बडे़ बाबू कर रहे थे उस पर शायद अपने दिदल में उनको ना& हो। इस मनहूस �कदीर का बुरा हो, &ो इस दरवाज़े का भिभखारी बनाए हुए है। &ी में �ो आया तिक हज़र� के बढे़ हुए पैर को खींच लूं और आपको जि&न्दगी-भर के लिलए सबक दे दँू तिक बदनसीबों से दिदल्लगी करने का यह म&ा हैं मगर बदनसीबी अगर दिदल पर &ब्र न कराये, जि&ल्ल� का अहसास न पैदा करे �ो वह बदनसीबी क्यों कहलाए। मैं भी एक &माने में इसी �रह लोगों को �कली9 पहुँचाकर हंस�ा था। उस वक्त इन बडे़ बाबुओं की मेरी तिनगाह में कोई हस्�ी न थी। तिक�ने ही बडे़ बाबुओं को रुलाकर छोड़ दिदया। कोई ऐसा प्रो9ेसर न था, जि&सका चेहरा मेरी सूर� देख�े ही पीला न पड़ &ा�ा हो। ह&ार-ह&ार रुपया पाने वाले प्रो9ेसरों की मुझसे कोर दबकी थी। ऐसे क्लक� को मैं समझ�ा ही क्या था। लेतिकन अब वह &माना कहां। दिदल में पछ�ाया तिक नाहक कदमबोसी का लफ़्& &बान पर लाया। मगर अपनी बा� कहना &रुरी था। मैं पक्का इरादा करके अया था तिक उस ड्यौढ़ी से आ& कुछ लेकर ही उठंूगा। मेरे धीर& और बडे़ बाबू के इस �रह &ान-बूझकर अन&ान बनने में रस्साकशी थी। दबी ज़बान से बोला—हु&ूर, ग्रे&ुएट हँू।

शुक्र है, हज़ार शुक्र हैं, बडे़ बाबू हंसे। &ैसे हांडी उबल पड़ी हो। वह गर& और वह करख्� आवा& न थी। मेरा माथा रगड़ना आख़िखर कहां �क असर न कर�ा। शायद असर को मेरी दुआ से दु]मनी नहीं। मेरे कान बड़ी बेक़रारी से वे लफ़्& सुनने के लिलए बेचैन हो रहे थे जि&नसे मेरी रुह को खुशी होगी। मगर आह, जि&�नी मायूसी इन कानों को हुई है उ�नी शायद पहाड़ खोदने वाले फ़रहाद को भी न हुई होगी। वह मुस्कराहट न थी, मेरी �क़दीर की हंसी थी। हु&ूर ने फ़रमाया—बड़ी खुशी की बा� है, मुल्क और क़ौम के लिलए इससे ज्यादा खुशी की बा� और क्या हो सक�ी है। मेरी दिदली �मन्ना है, मुल्क का हर एक नौ&वान ग्रे&ुएट हो &ाए। ये ग्रे&ुएट जिज़न्दगी के जि&स मैदान में &ाय, उस मैदान को �रक्की ही देगा—मुल्की, माली, �मद्दनुी (म&हबी) ग़र& तिक हर एक तिकस्म की �हरीक का &न्म और �रक्की ग्रे&ुएटों ही पर मुनहसर है। अगर मुल्क में ग्रे&ुएटों का यह अफ़सोसनाक अकाल न हो�ा �ो असहयोग की �हरीक क्यों इ�नी &ल्दी मुदाC हो &ा�ी ! क्यों बने हुए रंगे लिसयार, दग़ाबा& &रपस्� लीडरों को डाके&नी के ऐसे मौके मिमल�े! �बलीग क्यों मुबज्जिल्लगे अले हुस्सलाम की इल्ल� बन�ी! ग्रे&ुएट में सच और झूठ की परख, तिनगाह का 9ैलाव और &ांचने-�ोलने की क़ाबलिलय� होना &रुरी बा� है। मेरी आंखें �ो ग्रे&ुएटों को देखकर नशे के द&� �क खुशी से भर उठ�ी हैं। आप भी खुदा के फ़&ल से अपनी तिक़स्म की बहु� अच्छी मिमसाल हैं, तिबल्कुल आप-टू-डेट। यह शेरवानी �ो बरक� एण्ड को की दुकान की लिसली हुई होगी। &ू�े भी डासन के हैं। क्यों न हो। आप लोंगों ने कौम की जि&न्दगी के मैयार को बहु� ऊंचा बना दिदया है और अब वह बहु� &ल्द अपनी मंजि&ल पर पहुँचेगी। ब्लैकबडC पेन भी है,

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वेस्ट एण्ड की रिरस्टवाच भी है। बेशक अब कौमी बेडे़ को ख्वा&ा ख़िखज़र की &रुर� भी नहीं। वह उनकी मिमन्न� न करेगा।

हाय �क़दीर और वाय �क़दीर ! अगर &ान�ा तिक यह शेरवानी और फ़ाउंटेनपेन और रिरस्टवा& यों मज़ाक का तिनशाना बनेगी, �ो दोस्�ों का एहसान क्यों ले�ा। नमाज़ बख्शवाने आया था, रोज़े गले पडे़। तिक�ाबों में पढ़ा था, ग़रीबी की हुलिलया ऐलान है अपनी नाकामी का, न्यौ�ा देना है अपनी जि&ल्ल� कों। �&ुबाC भी यही कह�ा था। चीथडे़ लगाये हुए भिभखमंगों को तिक�नी बेदद~ से दु�कार�ा हँू लेतिकन &ब कोई ह&र� सू9ी-साफ़ी बने हुए, लम्बे-लम्बे बाल कंधों पर तिबखेरे, सुनहरा अमामा सर पर बांका-ति�रछा शान से बांधे, संदली रंग का नीचा कु�ाC पहने, कमरे में आ पहुँच�े हैं �ो म&बूर होकर उनकी इज्ज� करनी पड़�ी है और उनकी पाकीज़गी के बारे में ह&ारों शुबहे पैदा होने पर भी छोटी-छोटी रक़म &ो उनकी नज़र की &ा�ी हे, वह एक द&Cन भिभखारिरयों को अच्छा खाना ख़िखलाने के सामान इकट्ठा कर दे�ी। पुरानी मसल है—भेस से ही भीख मिमल�ी है। पर आ& यह बा� ग़ल� सातिब� हो गयी । अब बीवी सातिहबा की वह �म्बीह याद आयी &ो उसने चल�े वक्त दी थी—क्यों बेकार अपनी बइज्ज�ी कराने &ा रहे हो। वह साफ़ समझेंगे तिक यह मांगे-&ांचे का ठाठ है। ऐसे रईस हो�े �ो मेरे दरवा&े पर आ�े क्यों। उस वक्त मैंने इस �म्बीह को बीवी की कमतिनगाह और उसका गंवारपन समझा था। पर अब मालूम हुआ तिक गंवारिरनें भी कभी-कभी सूझ की बा�ें कह�े हैं। मगर अब पछ�ाना बेकार है। मैंने आजिज़ज़ी से कहा—हु&ूर, कहीं मेरी भी परवरिरश फ़रमायें।

बडे़ बाबू ने मेरी �रफ़ इस अन्दा& से देखा &ैसे मैं तिकसी दूसरी दुतिनया का कोई &ानवर हँू और बहु� दिदलासा देने के लह&े में बोले—आपकी परवरिरश खुदा करेगा। वही सबका रज्ज़ाक है, दुतिनया &ब से शुरु हुई �ब से �माम शायर, हकीम और औलिलया यही लिसखा�े आये हैं तिक खुदा पर भरोसा रख और हम हैं तिक उनकी तिहदाय� को भूल &ा�े हैं। लतिकन खैर, मैं आपको नेक सलाह देने में कं&ूसी न करँुगा। आप एक अखबार तिनकाल लीजि&ए। यकीन मातिनए इसके लिलए बहु� ज्यादा पढे़-लिलखे होने की &रुर� नहीं और आप �ो खुदा के फ़ज़ल से ग्रे&ुएट है।, स्वादिदष्ट ति�लाओं और स्�lन-बदिटयों के नुस्खें लिलख़िखए। ति�ब्बे अकबर में आपको हज़ारों नुस्खे मिमलेंगे। लाइब्रेरी &ाकर नकल कर लाइए और अखबार में नये नाम से छातिपए। कोकशास्त्र �ो आपने पढ़ा ही होगा अगर न पढ़ा हो �ो एक बार पढ़ &ाइए और अपने अखबार में शादी के म&� के �रीके लिलख़िखए। कामेजिन्¯य के नाम जि&��ने ज्यादा आ सकें , बेह�र है ति9र देख़िखए कैसे डाक्टर और प्रो9ेसर और तिडप्टी कलेक्टर आपके भक्त हो &ा�े हैं। इसका खयाल रहे तिक यह काम हकीमाना अन्दाज़ से तिकया &ाए। ब्योपारी और हकीमाना अन्दा& में थोड़ा फ़क़C है, ब्योपारी लिसफ़C अपनी दवाओं की �ारीफ़ कर�ा है, हकीम परिरभाषाओं और सूलिक्तयों को खोलकर अपने लेखों को इल्मी रंग दे�ा है। ब्योपारी की �ारी9 से लोग लिचढ़�े हैं, हकीम की �ारीफ़ भरोसा दिदलाने वाली हो�ी है। अगर इस मामले में कुछ समझने-बूझने की &रुर� हो �ो रिरसाला ‘दरवेश’ हाजिज़र हैं अगर इस काम में आपको कुछ दिदक्क� मालूम हो�ी हो, �ो स्वामी श्र�ानन्द की ख़िखदम� में &ाकर शुजि� पर आमादगी &ातिहर कीजि&ए—ति9र देख़िखए आपकी तिक�नी खाति�र-�वा&ों हो�ी है। इ�ना समझाये दे�ा हँू तिक शुजि� के लिलए 9ौरन �ैयार न हो &ाइएगा। पहले दिदन �ो दो-चार तिहन्दू धमC की तिक�ाबें मांग लाइयेगा। एक हफ्�े के बाद &ाकर कुछ ए�रा& कीजि&एगा। मगर ए�रा& ऐसे हो जि&नका &वाब आसानी से दिदया &ा सके इससे स्वामी&ी को आपकी

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छान-बीन और &ानने की ख्वातिहश का यकीन हो &ायेगा। बस, आपकी चांदी है। आप इसके बाद इसलाम की मुखालिल9� पर दो-एक म&मून या म&मूनों का लिसललिसला तिकसी तिहन्दू रिरसाले में लिलख देंगे �ो आपकी जि&न्दगी और रोटी का मसला हल हो &ाएगा। इससे भी सरल एक नुस्खा है—�बलीग़ी मिमशन में शरीक हो &ाइए, तिकसी तिहन्दू और�, खासकर नौ&वान बेवा, पर डोरे डालिलए। आपको यह देखकर हैर� होगी तिक वह तिक�नी आसानी से आपसे मुहब्ब� करने लग &ा�ी है। आप उसकी अंधेरी जि&न्दगी के लिलए एक मशाल सातिब� होंगे। वह उज़ नहीं कर�ी, शौक से इसलाम कबूल कर लेगी। बस, अब आप शहीदों में दाख़िखल हो गए। अगर &रा एहति�या� से काम कर�े रहें �ो आपकी जि&न्दगी बडे़ चैन से गु&रेगी। एक ही खेवे में दीनो-दुतिनया दोनों ही पार हैं। &नाब लीडर बन &ाएगंे वल्लाह, एक हफ्�े में आपका शुमार नामी-गरामी लोगों में होने लगेगा, दीन के सच्चे पैरोकार। ह&ारों सीधे-सादे मुसलमान आपकों दीन की डूब�ी हुई तिक]�ी का मल्लाह समझेंगे। ति9र खुदा के लिसवा और तिकसी को खबर न होगी तिक आपके हाथ क्या आ�ा है और वह कहां &ा�ा है और खुदा कभी रा& नहीं खोला कर�ा, यह आप &ान�े ही हैं। �ाज्जुब है तिक इन मौकों पर आपकी तिनगाह क्यों नहीं &ा�ी ! मैं �ो बुड्ढा हो गया और अब कोई नया काम नहीं सीख सक�ा, वनाC इस वक्त लीडरों का लीडर हो�ा।

इस आग की लपट &ैसे मज़ाक ने जि&स्म में शोले पैदा कर दिदये। आंखों से लिचनगारिरयां तिनकलने लगीं। धीर& हाथ से छूटा &ा रहा था। मगर कहरे दरवेश बर &ाने दरवेश(भिभखारी का गुस्सा अपनी &ान पर) के मु�ातिबक सर झुकाकर खड़ा रहा। जि&�नी दलीलें दिदमाग में कई दिदनों से चुन-चुनकर रखी थीं, सब धरी रह गयीं। बहु� सोचने पर भी कोई नया पहलू ध्यान में न आया। यों खुदा के फ़ज़ल से बेवकूफ़ या कुन्द&ेहन नहीं हँू, अच्छा दिदमाग पाया है। इ�ने सोच-तिवचार से कोई अच्छी-सी ग&ल हो &ा�ी। पर �बीय� ही �ो है, न लड़ी। इत्त9ाक से &ेब में हाथ डाला �ो अचानक याद आ गया तिक लिस9ारिरशी ख�ों का एक पोथा भी साथ लाया हँू। रोब का दिदमाग पर क्या असर पड़�ा है इसका आ& �&ुबाC हो गया। उम्मीद से चेहरा 9ूल की �रह ख़िखल उठा। ख�ों का पुलिलन्दा हाथ में लेकर बोला—हु&ूर, यह चन्द ख� हैं इन्हें मुलातिह&ा 9रमा लें।

बडे़ बाबू ने बण्डल लेकर मेज़ पर रख दिदया और उस पर एक उड़�ी हुई नज़र डालकर बोले—आपने अब �क इन मोति�यों को क्यों लिछपा रक्खा था ?

मेरे दिदल में उम्मीद की खुशी का एक हंगामा बरपा हो गया। &बान &ो बन्द थी, खुल गयी। उमंग से बोला—हु&ूर की शान-शौक� ने मुझ पर इ�ना रोब डाल दिदया और कुछ ऐसा &ादू कर दिदया तिक मुझे इन ख�ों की याद न रही। हु&ूर से मैं तिबना नमक-मिमचC लगाये सच-सच कह�ा हँू तिक मैंने इनके लिलए तिकसी �रह की कोलिशश या लिस9ारिरश नहीं पहुँचायी। तिकसी �रह की दौड़-भाग नहीं की।

बडे़ बाबू ने मुस्कराकर कहा—अगर आप इनके लिलए ज्यादा से ज्यादा दौड़-भाग करने में भी अपनी �ाक़� खचC कर�े �ो भी मैं आपको इसके लिलए बुरा-भला न कह�ा। आप बेशक बडे़ खुशनसीब हैं तिक यह नायाब चीज़ आपकों बेमांग मिमल गई, इसे जि&न्दगी के सफ़र का पासपोटC समजिझए। वाह, आपकों खुदा के फ़ज़ल से एक एक़ से एक क¯दान नसीब हुए। आप &हीन हैं, सीधे-सच्चे हैं, बेलौस हैं, 9माCबरदार है। ओफ्9ोह, आपके गुणों की �ो कोई इन्�हा ही नहीं है। कसम खुदा की, आपमें �ो �माम भी�री और बाहरी कमाल भरे हुए हैं। आपमें सूझ-बूझ गlीर�ा, सच्चाई, चौकसी, कुलीन�ा, शरा9�, बहादुरी, सभी

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गुण मौ&ूद हैं। आप �ो नुमाइश में रखे &ाने के क़ातिबल मालूम हो�े हैं तिक दुतिनया आपकों हैर� की तिनगाह से देखे �ो दां�ों �ले उंगली दबाये। आ& तिकसी भले का मुंह देखकर उठा था तिक आप &ैसे पाकी&ा आदमी के दशCन हुए। यह वे गुण हैं &ो जि&न्दगी के हर एक मैदान में आपको शोहर� की चोटी �क पहुँचा सक�े हैं। सरकारी नौकरी आप &ैसे गुभिणयों की शान के क़ातिबल नहीं। आपकों यह कब गवारा होगा। इस दायरे में आ�े ही आदमी तिबलकुल &ानवर बन &ा�ा है। बोलिलए, आप इसे मं&ूर कर सक�े हैं ? हरतिगज़ नहीं।

मैंने डर�े-डर�े कहा—&नाब, &रा इन लफ्&ों को खोलकर समझा दीजि&ए। आदमी के &ानवर बन&ाने से आपकी क्या मंशा है?

बडे़ बाबू ने त्योरी चढ़ा�े हुए कहा—या �ो कोई पेचीदा बा� न थी जि&सका म�लब खोलकर ब�लाने की &रुर� हो। �ब �ो मुझे बा� करने के अपने ढंग में कुछ �रमीम करनी पडे़गी। इस दायरे के उम्मीदवारों के लिलए सबसे &रुरी और लाजिज़मी लिसफ़� सूझ-बूझ है। मैं नहीं कह सक�ा तिक मैं &ो कुछ कहना चाह�ा हँू, वह इस लफ्& से अदा हो�ा है या नहीं। इसका अंग्रे&ी लफ्& है इनटुइशन—इशारे के असली म�लब को समझना। मसलन अगर सरकार बहादुर यानी हातिकम जि&ला को लिशकाय� हो तिक आपके इलाके में इनकमटैक्स कम वसूल हो�ा है �ो आपका फ़&C है तिक उसमें अंधाधुन्ध इ&ाफ़ा करें। आमदनी की परवाह न करें। आमदनी का बढ़ना आपकी सूझबूझ पर मुनहसर है! एक हल्की-सी धमकी काम कर &ाएगी और इनकमटैक्स दुगुना-ति�गुना हो &ाएगा। यकीनन आपकों इस �रह अपना ज़मीर (अन्�:करण) बेचना गवारा न होगा।

मैंने समझ लिलया तिक मेरा इम्�हान हो रहा है, आलिशकों &ैसे &ोश और सरगमb से बोला—मैं �ो इसे &मीर बेचना नहीं समझ�ा, यह �ो नमक का हक़ है। मेरा ज़मीर इ�ना ना&³क नहीं है।

बडे़ बाबू ने मेरी �रफ़ क़¯दानी की तिनगाह से देखकर कहा—शाबाश, मुझे �ुमसे ऐसे ही &वाब की उम्मीद थी। आप मुझे होनहार मालूम हो�े हैं। लेतिकन शायद यह दूसरी श�C आपको मं&ूर न हो। इस दायरे के मुरीदों के लिलए दूसरी श�C यह है तिक वह अपने को भूल &ाए।ं कुछ आया आपकी समझ में ?

मैंने दबी &बान में कहा—&नाब को �कलीफ़ �ो होगी मगर &रा ति9र इसको खोलकर ब�ला दीजि&ए।

बडे़ बाबू ने त्योरिरयों पर बल दे�े हुए कहा—&नाब, यह बार-बार का समझाना मुझे बुरा मालूम हो�ा है। मैं इससे ज्यादा आसान �रीके़ पर खयालों को ज़ातिहर नहीं कर सक�ा। अपने को भूल &ाना बहु� ही आम मुहावरा हैं। अपनी खुदी को मिमटा देना, अपनी शज्जिख्सय� को फ़ना कर देना, अपनी पसCनालिलटी को खत्म कर देना। आपकी वज़ा-कज़ा से आपके बोलने, बा� करने के ढंग से, आपके �ौर-�रीकों से आपकी तिहजिन्दय� मिमट &ानी चातिहए। आपके मज़हबी, अखलाकी और �मद्दनुी असरों का तिबलकुल ग़ायब हो &ाना ज़रुर हैं। मुझे आपके चेहरे से मालूम हो रहा है तिक इस समझाने पर भी आप मेरा म�लब नहीं समझ सके। सुतिनए, आप ग़ालिलबन मुसलमान हैं। शायद आप अपने अक़ीदों में बहु� पक्के भी हों। आप नमाज़ और रोज़े के पाबन्द हैं?

मैंने फ़ख से कहा—मैं इन ची&ों का उ�ना ही पाबन्द हँू जि&�ना कोई मौलवी हो सक�ा हैं। मेरी कोई नमाज़ क़ज़ा नहीं हुई। लिसवाय उन वक्तों के &ब मैं बीमार था।

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बडे़ बाबू ने मुस्कराकर कहा—यह �ो आपके अचे्छ अखलाक ही कह दे�े हैं। मगर इस दायरे में आकर आपकों अपने अक़ीदे और अमल में बहु� कुछ काट-छां� करनी पडे़गी। यहां आपका मज़हब मज़हतिबय� का &ामा अज्जिख्�यार करेगा। आप भूलकर भी अपनी पेशानी को तिकसी लिस&दे में न झुकाए,ं कोई बा� नहीं। आप भूलकर भी ज़का� के झगडे़ में न 9ूसें, कोई बा� नहीं। लेतिकन आपको अपने म&हब के नाम पर फ़रिरयाद करने के लिलए हमेशा आगे रहना और दूसरों को आमादा करना होगा। अगर आपके जिज़ले में दो तिडप्टी कलक्टर तिहन्दू हैं और मुसलमान लिसफ़C एक, �ो आपका फ़&C होगा तिक तिह& एक्सेलेंसी गवनCर की ख़िखदम� में एक डेपुटेशन भे&ने के लिलए कौम के रईसों में आमादा करें। अगर आपको मालूम हो तिक तिकसी म्युतिनलिसपैलिलटी ने क़साइयों को शहर से बाहर दूकान रखने की �&वीज़ पास कर दी है �ो आपका फ़&C होगा तिक कौम के चौधरिरयों को उस म्युतिनलिसपैलिलटी का लिसर �ोड़ने के लिलए �हरीक करें। आपको सो�े-&ाग�े, उठ�े-बैठ�े &ा�-पॉँ� का राग अलापना चातिहए। मसलन इम्�हान के न�ी&ों में अगर आपको मुसलमान तिवद्यार्सिथ�यों की संख्या मुनालिसब से कम नज़र आये �ो आपको 9ौरन चांसकर के पास एक गुमनाम �� लिलख भे&ना होगा तिक इस मामले में &रुर ही सख्�ी से काम लिलया गया है। यह सारी बा�ें उसी इनटुइशनवाली श�C के भी�र आ &ा�ी हैं। आपको साफ़-साफ़ शब्दों में या इशारों से यह काम करने से लिलए तिहदाय� न की &ाएगी। सब कुछ आपकी सूझ-सूझ पर मुनहसर होगा। आपमें यह &ौहर होगा �ो आप एक दिदन &रुर ऊंचे ओहदे पर पहुँचेंगे। आपको &हां �क मुमतिकन हो, अंग्रे&ी में लिलखना और बोलना पडे़गा। इसके बग़ैर हुक्काम आपसे खुश न होंगे। लेतिकन क़ौमी ज़बान की तिहमाय� और प्रचार की सदा आपकी ज़बान से बराबर तिनकल�ी रहनी चातिहए। आप शौक़ से अखबारों का चन्दा हज़म करें, मंगनी की तिक�ाबें पढ़ें चाहे वापसी के वक्त तिक�ाब के 9ट-चिच�थ &ाने के कारण आपको माफ़ी ही क्यों न मांगनी पडे़, लेतिकन &बान की तिहमाय� बराबर &ोरदार �रीकें से कर�े रतिहए। खुलासा यह तिक आपको जि&सका खाना उसका गाना होगा। आपकों बा�ों से, काम से और दिदल से अपने मालिलक की भलाई में और म&बू�ी से उसको &माये रखने में लगे रहना पडे़गा। अगर आप यह खयाल कर�े हों तिक मालिलक की ख़िखदम� के ज़रिरये कौम की ख़िखदम� की करंुगा �ो यह झूठ बा� है, पागलपन है, तिहमाक़� है। आप मेरा म�लब समझ गये होंगे। फ़रमाइए, आप इस हद �क अपने को भूल सक�े हैं?

मुझे &वाब देने में &रा देर हुई। सच यह है तिक मैं भी आदमी हँू और बीसवीं सदी का आदमी हँू। मैं बहु� &ागा हुआ न सही, मगर तिबलकुल सोया हुआ भी नहीं हँू, मैं भी अपने मुल्क और क़ौम को बुलन्दी पर देखना चाह�ा हँू। मैंने �ारीख पढ़ी है और उससे इसी न�ी&े पर पहुँचा हँू तिक मज़हब दुतिनया में लिस9C एक है और उसका नाम है—ददC। मज़हब की मौ&ूदा सूर� धडे़बंदी के लिसवाय और कोई हैलिसय� नहीं रख�ी। ख�ने या चोटी से कोई बदल नहीं &ा�ा। पू&ा के लिलए कलिलसा, मसजि&द, मजिन्दर की मैं तिबलकुल &रुर� नहीं समझ�ा। हॉँ, यह मान�ा हँू तिक घमण्ड और खुदगर&ी को दबाये रखने के लिलए कुछ करना &रुरी है। इसलिलए नहीं तिक उससे मुझे &न्न� मिमलेगी या मेरी मुलिक्त होगी, बश्किल्क लिसफ़C इसलिलए तिक मुझे दूसरों के हक़ छीनने से नफ़र� होगी। मुझमें खुदी का खासा &ुज़ मौ&ूद है। यों अपनी खुशी से कतिहए �ो आपकी &ूति�यॉँ सीधी करँु लतिकन हुकूम� की बरदा]� नहीं। महकूम बनना शमCनाक समझ�ा हँू। तिकसी ग़रीब को &ुल्म का लिशकार हो�े देखकर मेरे खून में गमb पैदा हो &ा�ी है। तिकसी से दबकर रहने से मर &ाना बेह�र समझ�ा हँू।

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लेतिकन खयाल हाल�ों पर �ो फ़�ह नहीं पा सक�ा। रोज़ी तिफ़क्र �ो सबसे बड़ी। इ�ने दिदनों के बाद बडे़ बाबू की तिनगाहे करम को अपनी ओर मुड़�ा देखकर मैं इसके लिसवा तिक अपना लिसर झुका दँू, दूसरा कर ही क्या सक�ा था। बोला- &नाब, मेरी �रफ़ से भरोसा रक्खें। मालिलक की ख़िखदम� में अपनी �रफ़ से कुछ उठा न रक्खँूगा।

‘ग़ैर� को फ़ना कर देना होगा।’‘मं&ूर।’‘शरा9� के &ज्बों को उठाकर �ाक़ पर रख देना होगा।’‘मं&ूर।’‘मुखतिबरी करनी पडे़गी?’‘मं&ूर।’‘�ो तिबश्किस्मल्लाह, कल से आपका नाम उम्मीदवारों की फे़हरिरस्� में लिलख दिदया

&ायेगा ।’मैंने सोचा था कल से कोई &गह मिमल &ायेगी। इ�नी जि&ल्ल� क़बूल करने के बाद

रो&ी की तिफ़क से �ो आज़ाद हो &ाऊँगा। अब यह हक़ीक� खुली। बरबस मुंह से तिनकला—और &गह कब �क मिमलेगी?

बडे़ बाबू हंसे, वही दिदल दुखानेवाली हंसी जि&समें �ौहीन का पहलू खास था—&नाब, मैं कोई ज्योति�षी नहीं, कोई फ़कीर-दरवेश नहीं, बेह�र है इस सवाल का &वाब आप तिकसी औलिलया से पूछें। दस्�रखान तिबछा देना मेरा काम है। खाना आयेगा और वह आपके हलक में &ायेगा, यह पेशीनगोई मैं नहीं कर सक�ा।

मैंने मायूसी के साथ कहा—मैं �ो इससे बड़ी इनाय� का मुन्�जिज़र था। बडे़ बाबू कुसb से उठकर बोले—क़सम खुदा की, आप परले द&� के कूड़मग्ज़

आदमी हैं। आपके दिदमाग में भूसा भरा है। दस्�रखान का आ &ाना आप कोई छोटी बा� समझ�े हैं? इन्�ज़ार का मज़ा आपकी तिनगाह में कोई चीज़ ही नहीं? हालांतिक इन्�&ार में इन्सान उमरें गुज़ार सक�ा है। अमलों से आपका परिरचय हो &ाएगा। मामले तिबठाने, सौदे पटाने के सुनहरे मौके हाथ आयेंगे। हुक्काम के लड़के पढ़ाइये। अगर गंडे-�ावी& का फ़न सीख लीजि&ए �ो आपके हक़ में बहु� मुफ़ीद हो। कुछ हकीमी भी सीख लीजि&ए। अचे्छ होलिशयार सुनारों से दोस्�ी पैदा तिकजि&ए,क्योंतिक आपको उनसे अक्सर काम पडे़गा। हुक्काम की और�ें आप ही के माफ़C � अपनी &रुर�ें पूरी करायेंगी। मगर इन सब लटकों से ज्यादा कारगर एक और लटका है, अगर वह हुनर आप में है, �ो यक़ीनन आपके इन्�&ार की मुद्द� बहु� कुछ कम हो सक�ी है। आप बडे़-बडे़ हातिकमों के लिलए �फ़रीह का सामान &ुटा सक�े हैं !

बडे़ बाबू मेरी �रफ़ कनख़िखयों से देखकर मुस्कराये। �फ़रीह के सामान से उनका क्या म�लब है, यह मैं न समझ सका। मगर पूछ�े हुए भी डर लग�ा था तिक कहीं बडे़ बाबू तिबगड़ न &ाए ंऔर ति9र मामला खराब हो &ाए। एक बेचैनी की-सी हाल� में &मीन की �र9 �ाकने लगा।

बडे़ बाबू �ाड़ �ो गये तिक इसकी समझ में मेरी बा� न आयी लेतिकन अबकी उनकी त्योरिरयों पर बल नहीं पडे़। न ही उनके लह&े में हमदद~ की झलक फ़रमायी—यह �ो ग़ैर-मुमतिकन है तिकक आपने बाज़ार की सैर न की हो।

मैंने शमाC�े हुए कहा—नहीं हु&ूर, बन्दा इस कूचे को तिबलकुल नहीं &ान�ा। 22

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बडे़ बाबू—�ो आपको इस कूचे की खाक छाननी पडे़गी। हातिकम भी आंख-कान रख�े हैं। दिदन-भर की दिदमागी थकन के बाद स्वभाव�: रा� को उनकी �तिबय� �फ़रीह की �रफ़ झुक�ी हैं। अगर आप उनके लिलए ऑंखों को अच्छा लगनेवाले रुप और कानों को भानेवाले संगी� का इन्�ज़ाम सस्�े दामों कर सक�े हैं या कर सकें �ो...

मैंने तिकसी क़दर �ेज़ होकर कहा—आपका कहने का म�लब यह है तिक मुझे रुप की मंड़ी की दलाली करनी पडे़गी ?

बडे़ बाबू—�ो आप �ेज़ क्यों हो�े हैं, अगर अब �क इ�नी छोटी-सी बा� आप नहीं समझे �ो यह मेरा क़सूर है या आपकी अक्ल का !

मेरे जि&स्म में आग लग गयी। &ी में आया तिक बडे़ बाबू को &ु&ुत्सू के दो-चार हाथ दिदखाऊँ, मगर घर की बेसरोसामानी का खयाल आ गया। बीवी की इन्�&ार कर�ी हुई आंखें और बच्चों की भूखी सूर�ें याद आ गयीं। जि&ल्ल� का एक दरिरया हलक़ से नीचे ढकेल�े हुए बोला—&ी नहीं, मैं �ेज़ नहीं हुआ था। ऐसी बेअदबी मुझसे नहीं हो सक�ी। (आंखों में आंसू भरकर) &रुर� ने मेरी ग़ैर� को मिमटा दिदया है। आप मेरा नाम उम्मीदवारों में द&C कर दें। हाला� मुझसे &ो कुछ करायेंगे वह सब करँुगा और मर�े दम �क आपका एहसानमन्द रहँूगा।

-‘खाके परवाना’से

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राष्ट्र का सेवकष्ट्र के सेवक ने कहा—देश की मुलिक्त का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सुलूक, पति��ों के साथ बराबरी को ब�ाCव। दुतिनया में सभी भाई हैं, कोई

नीचा नहीं, कोई ऊंचा नहीं। रा

दुतिनया ने &य&यकार की—तिक�नी तिवशाल दृमिष्ट है, तिक�ना भावुक हृदय !उसकी सुन्दर लड़की इजिन्दरा ने सुना और लिचन्�ा के सागर में डूब गयी। राष्ट्र के सेवक ने नीची &ा� के नौ&वान को गले लगाया। दुतिनया ने कहा—यह फ़रिर]�ा है, पैग़म्बर है, राष्ट्र की नैया का खेवैया है।इजिन्दरा ने देखा और उसका चेहरा चमकने लगा। राष्ट्र का सेवक नीची &ा� के नौ&वान को मंदिदर में ले गया, देव�ा के दशCन कराये

और कहा—हमारा देव�ा ग़रीबी में है, जि&ल्ल� में है ; पस्�ी में हैं।दुतिनया ने कहा—कैसे शु� अन्�:करण का आदमी है ! कैसा ज्ञानी ! इजिन्दरा ने देखा और मुस्करायी। इजिन्दरा राष्ट्र के सेवक के पास &ाकर बोली— श्र�ेय तिप�ा &ी, मैं मोहन से ब्याह

करना चाह�ी हँू।राष्ट्र के सेवक ने प्यार की न&रों से देखकर पूछा—मोहन कौन हैं?इजिन्दरा ने उत्साह-भरे स्वर में कहा—मोहन वही नौ&वान है, जि&से आपने गले

लगाया, जि&से आप मंदिदर में ले गये, &ो सच्चा, बहादुर और नेक है। राष्ट्र के सेवक ने प्रलय की आंखों से उसकी ओर देखा और मुँह 9ेर लिलया।

-‘पे्रम चालीसा’ से

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आख़ि�री �ोहफ़ारे शहर में लिस9C एक ऐसी दुकान थी, &हॉँ तिवलाय�ी रेशमी साड़ी मिमल सक�ी थीं। और सभी दुकानदारों ने तिवलाय�ी कपडे़ पर कांग्रेस की मुहर लगवायी थी। मगर

अमरनाथ की पे्रमिमका की फ़रमाइश थी, उसको पूरा करना &रुरी था। वह कई दिदन �क शहर की दुकानोंका चक्कर लगा�े रहे, दुगुना दाम देने पर �ैयार थे, लेतिकन कहीं स9ल-मनोरथ न हुए और उसके �क़ा&े बराबर बढ़�े &ा�े थे। होली आ रही थी। आख़ि�र वह होली के दिदन कौन-सी साड़ी पहनेगी। उसके सामने अपनी म&बूरी को &ातिहर करना अमरनाथ के पुरुषोलिच� अभिभमान के लिलए कदिठन था। उसके इशारे से वह आसमान के �ारे �ोड़ लाने के लिलए भी �त्पर हो &ा�े। आख़ि�र &ब कहीं मक़सद पूरा न हुआ, �ो उन्होंने उसी खास दुकान पर &ाने का इरादा कर लिलया। उन्हें यह मालूम था तिक दुकान पर धरना दिदया &ा रहा है। सुबह से शाम �क स्वयंसेवक �ैना� रह�े हैं और �माशाइयों की भी हरदम खासी भीड़ रह�ी है। इसलिलए उस दुकान में &ाने के लिलए एक तिवशेष प्रकार के नैति�क साहस की &रुर� थी और यह साहस अमरनाथ में &रुर� से कम था। पडे़-लिलखे आदमी थे, राष्ट्रीय भावनाओं से भी अपरिरलिच� न थे, यथाशलिक्त स्वदेशी ची&ें ही इस्�ेमाल कर�े थे। मगर इस मामले में बहु� कट्टर न थे। स्वदेशी मिमल &ाय �ो बेह�र वनाC तिवदेशी ही सही- इस उसूल के मानने वाले थे। और खासकर &ब उसकी 9रमाइश थी �ब �ो कोई बचाव की सूर� ही न थी। अपनी &रुर�ों को �ो वह शायद कुछ दिदनों के लिलए टाल भी दे�े, मगर उसकी 9रमाइश �ो मौ� की �रह अटल है। उससे मुलिक्त कहां ! �य कर लिलया तिक आ& साड़ी &रुर लायेंगे। कोई क्यों रोके? तिकसी को रोकने का क्या अमिधकर हैं? माना स्वदेशी का इस्�ेमाल अच्छी बा� है लेतिकन तिकसी को &बदCस्�ी करने का क्या हक़ है? अच्छी आ&ादी की लड़ाई है जि&समें व्यलिक्त की आ&ादी का इ�ना बेदद~ से खून हो !

सा

यों दिदल को म&बू� करके वह शाम को दुकान पर पहुँचे। देखा �ो पॉँच वालण्टिण्टयर तिपकेटिट�ग कर रहे हैं और दुकान के सामने सड़क पर हज़ारों �माशाई खडे़ हैं। सोचने लगे, दुकान में कैसे &ाए।ं कई बार कले&ा मज़बू� तिकया और चले मगर बरामदे �क &ा�े-&ा�े तिहम्म� ने &वाब दे दिदया।

संयोग से एक &ान-पहचान के पज्जिण्ड�&ी मिमल गये। उनसे पूछा—क्यों भाई, यह धरना कब �क रहेगा? शाम �ो हो गयी।

पज्जिण्ड�&ी ने कहा—इन लिसरति9रों को सुबह और शाम से क्या म�लब, &ब �क दुकान बन्द न हो &ाएगी, यहां से न टलेंगे। कतिहए, कुछ खरीदने को इरादा है? आप �ो रेशमी कपड़ा नहीं खरीद�े?

अमरनाथ ने तिववश�ा की मु¯ा बनाकर कहा—मैं �ो नहीं खरीद�ा। मगर और�ों की फ़रमाइश को कैसे टालूँ।

पज्जिण्ड�&ी ने मुस्कराकर कहा—वाह, इससे ज्यादा आसान �ो कोई बा� नहीं। और�ों को भी चकमा नहीं दे सक�े? सौ हीले-ह&ार बहाने हैं।

अमरनाथ—आप ही कोई हीला सोलिचए।पज्जिण्ड�&ी—सोचना क्या है, यहॉँ रा�-दिदन यही तिकया कर�े हैं। सौ-पचास हीले

हमेशा &ेबों में पडे़ रह�े हैं। और� ने कहा, हार बनवा दो। कहा, आ& ही लो। दो-चार रोज़

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के बाद कहा, सुनार माल लेकर चम्प� हो गया। यह �ो रो& का धन्धा है भाई। और�ों का काम फ़रमाइश करना है, मद� का काम उसे खूबसूर�ी से टालना है।

अमरनाथ—आप �ो इस कला के पज्जिण्ड� मालूम हो�े हैं ! पज्जिण्ड�&ी—क्या करें भाई, आबरु �ो बचानी ही पड़�ी है। सूखा &वाब दें �ो

शर्मिम�दगी अलग हो, तिबगड़ें वह अगल से, समझें, हमारी परवाह ही नहीं कर�े। आबरु का मामला हैं। आप एक काम कीजि&ए। यह �ो आपने कहा ही होगा तिक आ&कल तिपकेटिट�ग है?

अमरनाथ—हां, यह �ो बहाना कर चुका भाई, मगर वह सुन�ी ही नहीं, कह�ी है, क्या तिवलाय�ी कपडे़ दुतिनया से उठ गये, मुझसे चले हो उड़ने!

पज्जिण्ड�&ी—�ो मालूम हो�ा है, कोई धुन की पक्की और� है। अच्छा �ो मैं एक �रकीब ब�ाऊँ। एक खाली काडC का बक्स ले लो, उसमें पुराने कपडे़ &लाकर भर लो। &ाकर कह देना, मैं कपडे़ लिलये आ�ा था, वालण्टिण्टयरों ने छीनकर &ला दिदये। क्यों, कैसी रेहगी?

अमरनाथ—कुछ &ंच�ी नहीं। अ&ी, बीस ए�राज़ करेंगी, कहीं पदाCफ़ाश हो &ाय �ो मुफ्� की शर्मिम�दगी उठानी पडे़।

पज्जिण्ड�&ी—�ो मालूम हो गया, आप बोदे आदमी हैं और हैं भी आप कुछ ऐसे ही। यहॉँ �ो कुछ इस शान से हीले कर�े हैं तिक सच्चाई की भी उसके आगे धुल हो &ाय। जि&न्दगी यही बहाने कर�े गु&री और कभी पकडे़ न गये। एक �रकीब और है। इसी नमूने का देशी माल ले &ाइए और कह दीजि&ए तिक तिवलाय�ी है।

अमरनाथ—देशी और तिवलाय�ी की पहचान उन्हें मुझसे और आपसे कहीं ज्यादा हैं। तिवलाय�ी पर �ो &ल्द तिवालय�ी का यक़ीन आयेगा नहीं, देशी की �ो बा� ही क्या है !

एक खद्दरपोश महाशय पास ही खडे़ यह बा�ची� सुन रहे थे, बोल उठे— ए साहब, सीधी-सी �ो बा� है, &ाकर साफ़ कह दीजि&ए तिक मैं तिवदेशी कपडे़ न लाऊंगा। अगर जि&द करे �ो दिदन-भर खाना न खाइये, आप सीधे रास्�े पर आ &ायेगी।

अमरनाथ ने उनकी �र9 कुछ ऐसी तिनगाहों से देखा &ो कह रही थीं, आप इस कूचे को नहीं &ान�े और बोले—यह आप ही कर सक�े हैं, मैं नहीं कर सक�ा।

खद्दरपोश—कर �ो आप भी सक�े हैं लेतिकन करना नहीं चाह�े। यहां �ो उन लोगों में से हैं तिक अगर तिवदेशी दुआ से मुलिक्त भी मिमल�ी हो �ो उसे ठुकरा दें।

अमरनाथ—�ो शायद आप घर में तिपकेटिट�ग कर�े होंगे?खद्दरपोश—पहले घर में करके �ब बाहर कर�े हैं भाई साहब। खद्दरपोश साहब चले गये �ो पज्जिण्ड�&ी बोले—यह महाशय �ो �ीसमारखां से भी

�ेज़ तिनकल। अच्छा �ो एक काम कीजि&ए। इस दुकान के पिप�छवाडे़ एक दूसरा दरवाज़ा है, ज़रा अंधेरा हो &ाय �ो उधर चले &ाइएगा, दायें-बायें तिकसी की �रफ़ न देख़िखएगा।

अमरनाथ ने पज्जिण्ड�&ी को धन्यवाद दिदया और &ब अंधेरा हो गया �ो दुकान के तिपछवाडे़ की �र9 &ा पहुँचे। डर रहे थे, कहीं यहां भी घेरा न पड़ा हो। लेतिकन मैदान खाली था। लपककर अन्दर गये, एक ऊंचे दामों की साड़ी �रीदी और बाहर तिनकले �ो एक देवी&ी केसरिरया साड़ी पहने खड़ी थीं। उनको देखकर इनकी रुह फ़ना हो गयी, दरवा&े से बाहर पांव रखने की तिहम्म� नीं हुई। एक �रफ़ देखकर �े&ी से तिनकल पडे़ और कोई सौ कदम भाग�े हुए चले गये। कम्र का लिलखा, सामने से एक बुदिढ़या लाठी टेक�ी चली आ रही

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थी। आप उससे लड़ गये। बुदिढ़या तिगर पड़ी और लगी कोसने—अरे अभागे, यह &वानी बहु� दिदन न रहेगी, आंखों में चबb छा गयी है, धक्के दे�ा चल�ा है !

अमरनाथ उसकी खुशामद करने लगे—मा9 करो, मुझे रा� को कुछ कम दिदखाई पड़�ा है। ऐनक घर भूल आया।

बुदिढ़या का मिमज़ा& ठण्डा हुआ, आगे बढ़ी और आप भी चले। एकाएक कानों में आवा& आयी, ‘बाबू साहब, &रा ठहरिरयेगा’ और वही केसरिरया कपड़ोवाली देवी&ी आ�ी हुई दिदखायी दीं।

अमरनाथ के पांव बंध गये। इस �रह कले&ा म&बू� करके खडे़ हो गये &ैसे कोई स्कूली लड़का मास्टर की बें� के सामने खड़ा हो�ा है।

देवी&ी ने पास आकर कहा—आप �ो ऐसे भागे तिक मैं &ैसे आपको काट खाऊँगी। आप &ब पढे़-लिलखे आदमी होकर अपना धमC नहीं समझ�े �ो दुख हो�ा है। देश की क्या हाल� है, लोगों को खद्दर नहीं मिमल�ा, आप रेशमी सातिड़यां खरीद रहे हैं !

अमरनाथ ने लज्जिज्ज� होकर कहा—मैं सच कह�ा हँू देवी&ी, मैंने अपने लिलए नहीं खरीदी, एक साहब की फ़रमाइश थीं

देवी&ी ने झोली से एक चूड़ी लिलकालकर उनकी �रफ़ बढ़ा�े हुए कहा—ऐसे हीले रोज़ ही सुना कर�ी हँू। या �ो आप उसे वापस कर दीजि&ए या लाइए हाथ मैं चूड़ी पहना दँू।

अमरनाथ—शौक से पहना दीजि&ए। मैं उसे बडे़ गवC से पहनँूगा। चूड़ी उस बलिलदान का लिचह्न है &ो देतिवयों के &ीवन की तिवशेष�ा है। चूतिड़यां उन देतिवयों के हाथ में थीं जि&नके नाम सुनकर आ& भी हम आदर से लिसर झुका�े हैं। मैं �ो उसे शमC की बा� नहीं समझ�ा। आप अगर और कोई ची& पहनाना चाहें �ो वह भी शौक़ से पहना दीजि&ए। नारी पू&ा की वस्�ु है, उपेक्षा की नहीं। अगर स्त्री, &ो क़ौम को पैदा कर�ी हैं, चूड़ी पहनना अपने लिलए गौरव की बा� समझ�ी है �ो मद� के लिलए चूड़ी पहनाना क्यों शमC की बा� हो?

देवी&ी को उनकी इस तिनलCज्ज�ा पर आश्चयC हुआ मगर वह इ�नी आसानी से अमरनाथ को छोड़नेवाली न थीं। बोलीं—आप बा�ों के शेर मालूम हो�े हैं। अगर आप हृदय से स्त्री को पू&ा की वस्�ु मान�े हैं, �ो मेरी यह तिवन�ी क्यों नहीं मान &ा�े?

अमरनाथ-इसलिलए तिक यह साड़ी भी एक स्त्री की 9रमाइश है।देवी-अच्छा चलिलए, मैं आपके साथ चलँूगी, &रा देखँू आपकी देवी &ी तिकस स्वभाव

की स्त्री हैं।अमरनाथ का दिदल बैठ गया। बेचारा अभी �क तिबना-ब्याहा था, इसलिलए नहीं तिक

उसकी शादी न हो�ी थी बश्किल्क इसलिलए तिक शादी को वह एक आ&ीवन कारावास समझ�ा था। मगर वह आदमी रलिसक स्वभाव के थे। शादी से अलग रहकर भी शादी के म&ों से अतिपरलिच� न थे। तिकसी ऐसे प्राणी की &रूर� उनके लिलए अतिनवायC थी जि&स पर वह अपने पे्रम को समर्तिप�� कर सकें , जि&सकी �रावट से वह अपनी रूखी-सूखी जि&न्दगी को �रो-�ाज़ा कर सकें , जि&सके पे्रम की छाया में वह &रा देर के लिलए ठण्डक पा सकें , जि&सके दिदल मे वह अपनी उमड़ी हुई &वानी की भावनाओं को तिबखेरकर उनका उगना देख सकें । उनकी नज़र ने माल�ी को चुना था जि&सकी शहर में घूम थी। इधर डेढ़-दो साल से वह इसी खलिलहान के दाने चुना कर�े थे। देवी&ी के आग्रह ने उन्हें थोड़ी देर के लिलए उलझन में डाल

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दिदया था। ऐसी शर्मिंम�दगी उन्हें जि&न्दगी में कभी न हुई थी। बोले-आ& �ो वह एक न्यो�े में गई हैं, घर में न होंगी।

देवी&ी ने अतिवश्वास से हंसकर कहा-�ो मैं समझ यह आपकी देवी&ी का कुसूर नहीं, आपका कुसूर है।

अमरनाथ ने लज्जिज्ज� होकर कहा-मैं आपसे सच कह�ा हँू, आ& वह घर पर नहीं।देवी ने कहा-कल आ &ाएगंी?अमरनाथ बोले-हां, कल आ &ाएगंी।देवी-�ो आप यह साड़ी मुझे दे दीजि&ए और कल यहीं आ &ाइएगा, मैं आपके साथ

चलँूगी। मेरे साथ दो-चार बहनें भी होंगी।२

मरनाथ ने तिबना तिकसी आपभित्त के वह साड़ी देवी&ी को दे दी और बोले-बहु� अच्छा, मैं कल आ &ाऊँगा। मगर क्या आपको मुझ पर तिवश्वास नहीं है &ो साड़ी

की &मान� &रूरी है?अ

देवी&ी ने मुस्कराकर कहा-सच्ची बा� �ो यही है तिक मुझे आप पर तिवश्वास नहीं।अमरनाथ ने स्वाभिभमानपूवCक कहा- अच्छी बा� है, आप इसे ले &ाए।ंदेवी ने क्षण-भर बाद कहा-शायद आपको बुरा लग रहा हो तिक कहीं साड़ी गुम न हो

&ाए। इसे आप ले�े &ाइए, मगर कल आइए &रूर।अमरनाथ स्वाभिभमान के मारे बगैर कुछ कहे घर की �र9 चल दिदये, देवी&ी ‘ले�े

&ाइए ले�े &ाइए’ कर�ी रह गयीं।अमरनाथ घर न &ाकर एक खद्दर की दुकान पर गये और दो सूटों का खद्दर खरीदा।

ति9र अपने द&b के पास ले &ाकर बोले-खली9ा, इसे रा�ों-रा� �ैयार कर दो, मुहंमागी लिसलाई दंूगा।

द&b ने कहा-बाबू साहब , आ&कल �ो होली की भीड़ है। होली से पहले �ैयार न हो सकें गे।

अमरनाथ ने आग्रह कर�े हुए कहा-मैं मुंहमांगी लिसलाई दंूगा, मगर कल दोपहर �क मिमल &ाए। मुझे कल एक &गह &ाना है। अगर दोपहर �क न मिमले �ो ति9र मेरे तिकस काम के न होंगे।

द&b ने आधी लिसलाई पेशगी ले ली और कल �ैयार कर देने का वादा तिकया।अमरनाथ यहां से आश्वस्� होकर माल�ी की �र9 चले। क़दम आगे बढ़�े थे लेतिकन

दिदल पीछे रहा &ा�ा था। काश, वह उनकी इ�नी तिवन�ी स्वीकार कर ले तिक कल दो घण्टे के लिलए उनके वीरान घर को रोशन करे! लेतिकन यकीनन वह उन्हें खाली हाथ देखकर मुहं 9ेर लेगी, सीधे मुहं बा� नहीं करेगी, आने का जि&क्र ही क्या। एक ही बेमुरौव� है। �ो कल आकर देवी&ी से अपनी सारी शमCनाक कहानी बयान कर दँू? उस भोले चेहरे की तिनस्स्वाथC उंमग उनके दिदल में एक हलचल पैदा कर रही थी। उन आंखों में तिक�नी गंभीर�ा थी, तिक�नी सच्ची सहानुभूति�, तिक�नी पतिवत्र�ा! उसके सीधे-सादे शब्दों में कमC की ऐसी पे्ररणा थी, तिक अमरनाथ का अपने इजिन्¯य-परायण &ीवन पर शमC आ रही थी। अब �क कांच के टुकडे़ को हीरा समझकर सीने से लगाये हुए थे। आ& उन्हें मालूम हुआ हीरा तिकसे कह�े हैं। उसके सामने वह टुकड़ा �ुच्छ मालूम हो रहा था। माल�ी की वह &ादू-भरी लिचत्तवन, उसकी वह मीठी अदाए,ं उसकी शोख़िखयां और नखरे सब &ैसे मुलम्मा उड़ &ाने के बाद अपनी

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असली सूर� में न&र आ रहे थे और अमरनाथ के दिदल में न9र� पैदा कर रहे थे। वह माल�ी की �र9 &ा रहे थे, उसके दशCन के लिलए नहीं, बश्किल्क उसके हाथों से अपना दिदल छीन लेने के लिलए। पे्रम का भिभखारी आ& अपने भी�र एक तिवलिचत्र अतिनच्छा का अनुभव कर रहा था। उसे आश्चयC हो रहा था तिक अब �क वह क्यों इ�ना बेखबर था। वह ति�लिलस्म &ो माल�ी ने वषº के ना&-नखरे, हाव-भाव से बांधा था, आ& तिकसी छू-मन्�र से �ार-�ार हो गया था।

माल�ी ने उन्हें खाली हाथ देखकर त्योरिरयां चढ़ा�े हुए कहा-साड़ी लाये या नहीं?अमरनाथ ने उदासीन�ा के ढंग से &वाब दिदया-नहीं।माल�ी ने आश्चयC से उनकी �र9 देखा-नही! वह उनके मुंह से यह शब्द सुनने की

आदी न थी। यहां उसने सम्पूणC समपCण पाया था। उसका इशारा अमरनाथ के लिलए भाग्य-लिलतिप के समान था। बोली-क्यों?

अमरनाथ- क्यों नहीं, नहीं लाये।माल�ी- बा&ार में मिमली न होगी। �ुम्हें क्यों मिमलने लगी, और मेरे लिलए।अमरनाथ-नहीं साहब, मिमली मगर लाया नहीं।माल�ी-आख़ि�र कोई व&ह? रुपये मुझसे ले &ा�े।अमरनाथ-�ुम खाम�ाह &ला�ी हो। �ुम्हारे लिलए &ान देने को मैं हाजिज़र रहा।माल�ी-�ो शायद �ुम्हें रुपये &ान से भी ज्यादा प्यारे हों?अमरनाथ-�ुम मुझे बैठने दोगी या नहीं? अमर मेरी सूर� से न9र� हो �ो चला

&ाऊँ!माल�ी-�ुम्हें आ& हो क्या गया है, �ुम �ो इ�ने �े& मिम&ा& के न थे?अमरनाथ-�ुम बा�ें ही ऐसी कर रही हो।माल�ी-�ो आख़िखर मेरी चीज़ क्यों नहीं लाये?अमरनाथ ने उसकी �रफ़ बडे़ वीर-भाव के साथ देखकर कहा-दुकान पर गया,

जि&ल्ल� उठायी और साड़ी लेकर चला �ो एक और� ने छीन ली। मैंने कहा, मेरी बीवी की फ़रमाइश है �ो बोली-मैं उन्हीं को दंूगी, कल �ुम्हारे घर आऊँगी।

माल�ी ने शरार�-भरी नज़रों से देख�े हुए कहा-�ो यह कतिहए आप दिदल हथेली पर लिलये ति9र रहे थे। एक और� को देखा और उसके कदमों पर चढ़ा दिदया!

अमरनाथ-वह उन और�ों में नहीं, &ो दिदलों की घा� में रह�ी हैं।माल�ी-�ो कोई देवी होगी? अमरनाथ-मै उसे देवी ही समझ�ा हँू।माल�ी-�ो आप उस देवी की पू&ा कीजि&एगा?अमरनाथ-मुझ &ैसे आवारा नौ&वान के लिलए उस मजिन्दर के दरवा&े बन्द हैं।माल�ी-बहु� सुन्दर होगी?अमरनाथ-न सुन्दर है, न रूपवाली, न ऐसी अदाए ंकुछ, न मधुर भातिषणी, न �न्वंगी।

तिबलकुल एक मामूली मासूम लड़की है। लेतिकन &ब मेरे हाथ से उसने साड़ी छीन ली �ो मैं क्या कर सक�ा हँू। मेरी गैर� ने �ो गवारा न तिकया तिक उसके हाथ से साड़ी छीन लूँ। �ुम्हीं इन्सा9 करो, वह दिदल में क्या कह�ी?

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माल�ी-�ो �ुम्हें इसकी ज्यादा परवाह है तिक वह अपने दिदल में क्या कहेगी। मैं क्या कहूँगी, इसकी &रा भी परवाह न थी! मेरे हाथ से कोई मदC मेरी कोई चीज़ छीन ले �ो देखंू, चाहे वह दूसरा कामदेव ही क्यों न हो।

अमरनाथ-अब इसे चाहे मेरी कायर�ा समझो, चाहे तिहम्म� की कमी, चाहे शराफ़�, मैं उसके हाथ से न छीन सका।

माल�ी-�ो कल वह साड़ी लेकर आयेगी, क्यों?अमरनाथ-&रूर आयेगी।माल�ी-�ो &ाकर मुंह धो आओ। �ुम इ�ने नादान हो, यह मुझे मालूम न था। साड़ी

देकर चले आये, अब कल वह आपको देने आयेगी! कुछ भंग �ो नहीं खा गये!अमरनाथ-खैर, इसका इम्�हान कल ही हो &ाएगा, अभी से क्यों बदगुमानी कर�ी

हो। �ुम शाम को ज़रा देर के लिलए मेरे घर �क चली चलना।माल�ी-जि&ससे आप कहें तिक यह मेरी बीवी है!अमरनाथ-मुझे क्या खबर थी तिक वह मेरे घर आने के लिलए �ैयार हो &ाएगी, नहीं �ो

और कोई बहाना कर दे�ा।माल�ी-�ो आपकी साड़ी आपको मुबारक हो, मैं नहीं &ा�ी।अमरनाथ-मैं �ो रो& �ुम्हारे घर आ�ा हँू, �ुम एक दिदन के लिलए भी नहीं चल सक�ीं?माल�ी ने तिनKुर�ा से कहा-अगर मौक़ा आ &ाए �ो �ुम अपने को मेरा शौहर

कहलाना पसन्द करोगे? दिदल पर हाथ रखकर कहना।अमरनाथ दिदल में कट गये, बा� बना�े हुए बोले-माल�ी, �ुम मेरे साथ अन्याय कर

रही हो। बुरा न मानना, मेरे व �ुम्हारे बीच प्यार और मुहब्ब� दिदखलाने के बाव&ूद एक दूरी का पदाC पड़ा था। हम दोनों एक-दूसरे की हाल� को समझ�े थे और इस पद� का हटाने की कोलिशश न कर�े थे। यह पदाC हमारे सम्बन्धों की अतिनवायC श�C था। हमारे बीच एक व्यापारिरक समझौ�ा-सा हो गया। हम दोनों उसकी गहराई में &ा�े हुए डर�े थे। नहीं,बश्किल्क मैं डर�ा था और �ुम &ान-बूझकर न &ाना चाह�ी थी। अगर मुझे तिवश्वास हो &ा�ा तिक �ुम्हें &ीवन-सहचरी बनाकर मैं वह सब कुछ पा &ाऊँगा जि&सका मैं अपने को अमिधकारी समझ�ा हँू �ो मैं अब �क कभी का �ुमसे इसकी याचना कर चुका हो�ा! लेतिकन �ुमने कभी मेरे दिदल में यह तिवश्वास पैदा करने की परवाह न की। मेरे बारे में �ुम्हें यह शक है, मैं नहीं कह सक�ा, �ुम्हें यह शक करने का मैं ने कोई मौक़ा नहीं दिदया और मैं कह सक�ा हँू तिक मैं उससे कहीं बेह�र शौहर बन सक�ा हँू जि&�नी �ुम बीवी बन सक�ी हो। मेरे लिलए लिसफ़C ए�वार की &रूर� है और �ुम्हारे लिलए ज्यादा वज़नी और ज्यादा भौति�क चीज़ों की। मेरी स्थायी आमदनी पॉँच सौ से ज्यादा नहीं, �ुमको इ�ने में सन्�ोष न होगा। मेरे लिलए लिस9C इस इत्मीनान की &रूर� है तिक �ुम मेरी और लिस9C मेरी हो। बोलो मं&ूर है।

माल�ी को अमरनाथ पर रहम आ गया। उसकी बा�ों में &ो सच्चाई भरी हुई थी, उससे वह इनकार न कर सकी। उसे यह भी यकीन हो गया तिक अमरनाथ की वफ़ा के पैर डगमगायेंगे नहीं। उसे अपने ऊपर इ�ना भरोसा था तिक वह उसे रस्सी से म&बू� &कड़ सक�ी है, लेतिकन खुद &कडे़ &ाने पर वह अपने को �ैयार न कर सकी। उसकी जि&न्दगी मुहब्ब� की बा&ीगरी में, पे्रम के प्रदशCन में गु&री थी। वह कभी इस, कभी उस शाख में चहक�ी ति9र�ी थी, बैकेद, आ&ाद, बेबन्द। क्या वह लिचतिड़या पिप�&रे में बन्द रह सक�ी है

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जि&सकी &बान �रह-�रह के म&ों की आदी हो गयी हो? क्या वह सूखी रोटी से �ृप्� हो सक�ी है? इस अनुभूति� ने उसे तिपघला दिदया। बोली-आ& �ुम बड़ा ज्ञान बघार रहे हो?

अमरनाथ-मैंने �ो केवल यथाथC कहा है।माल�ी-अच्छा मैं कल चलँूगी, मगर एक घण्टे से ज्यादा वहां न रहँूगी।अमरनाथ का दिदल शुतिक्रये से भर उठा। बोला-मैं �ुम्हारा बहु� कृ�ज्ञ हँू माल�ी। अब

मेरी आबरू बच &ायेगी। नहीं �ो मेरे लिलए घर से तिनकलना मुश्कि]कल हो &ा�ा है। अब देखना यह है तिक �ुम अपना पाटC तिक�नी खूबसूर�ी से अदा कर�ी हो।

माल�ी-उसकी �रफ़ से �ुम इत्मीनान रखो। ब्याह नहीं तिकया मगर बरा�ें देखी हैं। मगर मैं डर�ी हँू कहीं �ुम मुझसे दगा न कर रहे हो। मदº का क्या ए�बार।

अमरनाथ ने तिनश्चल भाव से कहा-नहीं माल�ी, �ुम्हारा सन्देह तिनराधार है। अगर यह &ं&ीर पैरों में डालने की इच्छा हो�ी �ो कभी का डाल चुका हो�ा। ति9र मुझ-से वासना के बन्दों का वहां गुज़र हीं कहां।

३सरे दिदन अमरनाथ दस ब&े ही द&b की दुकान पर &ा पहुँचे और लिसर पर सवार होकर कपडे़ �ैयार कराये। ति9र घर आकर नये कपडे़ पहने और माल�ी को बुलाने चले। वहां

देर हो गयी। उसने ऐसा �नाव-चिस�गार तिकया तिक &ैसे आ& बहु� बड़ा मोचाC जि&�ना है।

दूअमरनाथ ने कहा-वह ऐसी सुन्दरी नहीं है &ो �ुम इ�नी �ैयारिरयॉँ कर रही हो।माल�ी ने बालों में कंघी कर�े हुए कहा-�ुम इन बा�ों को नहीं समझ सक�े,

चुपचाप बैठे रहो।अमरनाथ-लेतिकन देर &ो हो रही है।माल�ी-कोई बा� नहीं।भय की उस सह& आशंका ने, &ो ण्टिस्त्रयों की तिवशेष�ा है, माल�ी को और भी

अमिधक स�Cक कर दिदया था। अब �क उसने कभी अमरनाथ की ओर तिवशेष रूप से कोई कृपा न की थी। वह उससे का9ी उदासीन�ा का ब�ाCव कर�ी थी। लेतिकन कल अमरनाथ की भंतिगमा से उसे एक संकट की सूचना मिमल चुकी थी और वह उस संकट का अपनी पूरी शलिक्त से मुकाबला करना चाह�ी थी। शतु्र को �ुच्छ और अपदाथC समझना ण्टिस्त्रयों क लिलए कदिठन है। आ& अमरनाथ को अपने हाथ से तिनकल�े वह अपनी पकड़ को म&बू� कर रही थी। अगर इस �रह की उसकी ची&ें एक-एक करके तिनकल गयीं �ो ति9र वह अपनी प्रति�Kा कब �क बनाये रख सकेगी? जि&स ची& पर उसका क़ब्&ा है उसकी �रफ़ कोई आंख ही क्यों उठाये। रा&ा भी �ो एक-एक अंगुल &मीन के पीछे &ान दे�ा है। वह इस नये लिशकारी को हमेशा के लिलए अपने रास्�े से हटा देना चाह�ी थी। उसके &ादू को �ोड़ देना चाह�ी थी।

शाम को वह परी &ैसी, अपनी नौकरानी और नौकर को साथ लेकर अमरनाथ के घर चली। अमरनाथ ने सुबह दस ब&े �क मदाCने घर को &नानेपन का रंग देने में खचाC तिकया था। ऐसी �ैयारिरयां कर रखी थीं &ैसे कोई अफ़सर मुआइना करने वाला हो। माल�ी ने घर में पैर रखा �ो उसकी सफ़ाई और स&ावट देखकर बहु� खुश हुई। &नाने तिहस्से में कई कुर्सिस�यां रखी थीं। बोली-अब लाओ अपनी देवी&ी को मगर &ल्द आना। वनाC मैं चली &ाऊँगी।

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अमरनाथ लपके हुए तिवलाय�ी दुकान पर गये। आ& भी धरना था। �माशाइयों की वहीं भीड़। वहां देवी &ी नहीं। पीछे की �रफ़ गये �ो देवी &ी एक लड़की के साथ उसी भेस में खड़ी थीं।

अमरनाथ ने कहा-माफ़ कीजि&एगा, मुझे देर हो गयी। मैं आपके वादे की याद दिदलाने आया हँू।

देवी&ी ने कहा-मैं �ो आपका इन्�&ार कर रही थी। चलो सुमिमत्रा, &रा आपके घर हो आयें। तिक�नी देर है?

अमरनाथ-बहु� पास है। एक �ांगा कर लूंगा।पन्¯ह मिमनट में अमरनाथ दोनों को लिलये घर पहुँचे। माल�ी ने देवी&ी को देखा और

देवी&ी ने माल�ी को। एक तिकसी रईस का महल था, आलीशान; दूसरी तिकसी फ़कीर की कुदिटया थी, छोटी-सी �ुच्छ। रईस के महल में आडम्बर और प्रदशCन था, फ़कीर की कुदिटया में सादगी और सफ़ाई। माल�ी ने देखा, भोली लड़की है जि&से तिकसी �रह सुन्दर नहीं कह सक�े। पर उसके भोलेपन और सादगी में &ो आकषCण था, उससे वह प्रभातिव� हुए तिबना न रह सकी। देवी&ी ने भी देखा, एक बनी-संवरी बेधड़क और घमण्डी और� है &ो तिकसी न तिकसी व&ह से उस घर में अ&नबी-सी मालूम हो रही है &ैसे कोई &ंगली &ानवर पिप�&रे में आ गया हो।

अमरनाथ लिसर झुकाये मु&रिरमों की �रह खडे़ थे और ईश्वर से प्राथCना कर रहे थे तिक तिकसी �रह आ& पदाC रह &ाये।

देवी ने आ�े ही कहा-बहन, आप भी लिसर से पांव �क तिवदेशी कपडे़ पहने हुई हैं?माल�ी ने अमरनाथ की �रफ़ देखकर कहा-मैं तिवदेशी और देशी के 9ेर में नहीं

पड़�ी। &ो यह लाकर दे�े हैं वह पहन�ी हँू। लाने वाले है ये, मैं थोडे़ ही बा&ार &ा�ी हँू।देवी ने लिशकाय�-भरी आंखों से अमरनाथ की �र9 देखकर कहा-आप �ो कह�े थे

यह इनकी 9रमाइश है, मगर आप ही का क़सूर तिनकल आया।माल�ी-मेरे सामने इनसे कुछ म� कहो। �ुम बा&ार में भी दूसरे मदº से बा�ें कर

सक�ी हो, &ब वह बाहर चले &ायं �ो जि&�ना चाहे कह-सुन लेना। मैं अपने कानों से नहीं सुनना चाह�ी।

देवी&ी-मैं कुछ कह�ी नहीं और बहन&ी, मैं कह ही क्या कर सक�ी हँू, कोई &बदCस्�ी �ो है नहीं, बस तिवन�ी कर सक�ा हँू।

माल�ी-इसका म�लब यह है तिक इन्हें अपने देश की भलाई का &रा भी ख्याल नहीं, उसका ठेका �ुम्हीं ने ले लिलया है। पढे़-लिलखे आदमी हैं, दस आदमी इज्ज़� कर�े हैं, अपना न9ा-नुकसान समझ सक�े हैं। �ुम्हारी क्या तिहम्म� तिक उन्हें उपदेश देने बैठो, या सबसे ज्यादा अक्लमन्द �ुम्हीं हो?

देवी&ी-आप मेरा म�लब गल� समझ रही हैं बहन।माल�ी-हॉँ, गल� �ो समझूँगी ही, इ�नी अक्ल कहां से लाऊँ तिक आपकी बा�ों का

म�लब समझूँ! खद्दर की साड़ी पहल ली, झोली लटका ली, एक तिबल्ला लगा लिलया, बस अब अज्जिख्�यार है &हां चाहें आयें-&ायें, जि&ससे चाहें हसें-बोलें, घर में कोई पूछ�ा नहीं �ो &ेलखाने का भी क्या डर! मैं इसे हुड़दंगापन समझ�ी हँू, &ो शरी9ों की बहू-बेदिटयों को शोभा नहीं दे�ा।

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अमरनाथ दिदल में कटे &ा रहे थे। लिछपने के लिलए तिबल ढंूढ रहे थे। देवी की पेशानी पर &रा बल न था लेतिकन आंखें डबडबा रही थीं।

अमरनाथ ने माल�ी से &रा �े& स्वर में कहा-क्यों खामखाह तिकसी का दिदल दुखा�ी हो? यह देतिवयां अपना ऐश-आराम छोड़कर यह काम कर रही हैं, क्या �ुम्हें इसकी तिबलकुल खबर नहीं?

माल�ी-रहने दो, बहु� �ारीफ़ न करो। &माने का रंग ही बदला &ा रहा है, मैं क्या करँूगी और �ुम क्या करोगे। �ुम मदº ने और�ों को घर में इ�नी बुरी �रह कैद तिकया तिक आ& वे रस्म-रिरवा&, शमC-हया को छोड़कर तिनकल आयी हैं और कुछ दिदनों में �ुम लोगों की हुकूम� का खा�मा हुआ &ा�ा है। तिवलाय�ी और तिवदेशी �ो दिदखलाने के लिलए हैं, असल में यह आ&ादी की ख्वातिहश है &ो �ुम्हें हालिसल है। �ुम अगर दो-चार शादिदयॉँ कर सक�े हो �ो और� क्यों न करें! सच्ची बा� यह है, अगर आंखें है �ो अब खोलकर देखो। मुझे वह आ&ादी न चातिहए। यहां �ो ला& ढो�े हैं और मैं शमC-हया को अपना चिस�गार समझ�ी हँू।

देवी&ी ने अमरनाथ की �र9 फ़रिरयाद की आंखों से देखकर कहा-बहन ने और�ों को &लील करने की क़सम खा ली है। मैं बड़ी-बड़ी उम्मीदें लेकर आयी थी, मगर शायद यहां से नाकाम &ाना पडे़गा।

अमरनाथ ने वह साड़ी उसको दे�े हुए कहा-नहीं, तिबलकुल नाकाम �ो आप नहीं &ायेंगी, हां, &ैसी कामयाबी की आपको उम्मीद थी वह न होगी।

माल�ी ने डपट�े हुए कहा-वह मेरी साड़ी है, �ुम उसे नहीं दे सक�े।अमरनाथ ने शर्मिंम�न्दा हो�े हुए कहा-अच्छी बा� है, न दंूगा। देवी&ी, ऐसी हाल� में

�ो शायद आप मुझे मा9 करेंगी।देवी&ी चली गयी �ो अमरनाथ ने त्योरिरयॉँ बदलकर कहा-यह �ुमने आ& मेरे मुंह में

कालिलख लगा दी। �ुम इ�नी बद�मी& और बद&बान हो, मुझे मालूम न था।माल�ी ने रोषपूणC स्वर में कहा-�ो अपनी साड़ी उसे दे दे�ी? मैंने ऐसी कच्ची

गोलिलयां नहीं खेली। अब �ो बद�मी& भी हँू, बदज़बान भी, उस दिदन इन बुराइयों में से एक भी न थी &ब मेरी &ूति�यां सीधी कर�े थे? इस छोकरी ने मोतिहनी डाल दी। &ैसी रूह वैसे 9रिर]�े। मुबारक हो।

यह कह�ी हुई माल�ी बाहर तिनकली। उसने समझा था &बान चलाकर और �ाक़� से वह उस लड़की को उखाड़ 9ें केगी लेतिकन &ब मालूम हुआ तिक अमरनाथ आसानी से क़ाबू में आने वाला नहीं �ो उसने 9टकार ब�ाई। इन दामों अगर अमरनाथ मिमल सक�ा था �ो बुरा न था। उससे ज्यादा कीम� वह उसके लिलए दे न सक�ी थी।

अमरनाथ उसके साथ दरवा&े �क आये &ब वह �ांगे पर बैठी �ो तिबन�ी कर�े हुए बोले-यह साड़ी दे दो न माल�ी, मैं �ुम्हें कल इससे अच्छी साड़ी ला दँूगा।

मगर माल�ी ने रूखेपन से कहा-यह साड़ी �ो अब लाख रुपये पर भी नहीं दे सक�ी।

अमरनाथ ने त्यौरिरयां बदलकर &वाब दिदया-अच्छी बा� है, ले &ाओ मगर समझ लो यह मेरा आख़िखरी �ोहफ़ा है।

माल�ी ने होंठ चढ़ाकर कहा-इसकी परवाह नहीं। �ुम्हारे बगैर मैं मर नहीं &ाऊँगी, इसका �ुम्हें यकीन दिदला�ी हँू!

-‘आख़िखरी �ोहफ़ा’ से33

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क़ाति�ल

ड़ों की रा� थी। दस ब&े ही सड़कें बन्द हो गयी थीं और गालिलयों में सन्नाटा था। बूढ़ी बेवा मां ने अपने नौ&वान बेटे धमCवीर के सामने थाली परोस�े हुए कहा-�ुम

इ�नी रा� �क कहां रह�े हो बेटा? रखे-रखे खाना ठंडा हो &ा�ा है। चारों �र9 सो�ा पड़ गया। आग भी �ो इ�नी नहीं रह�ी तिक इ�नी रा� �क बैठी �ाप�ी रहँू।

&ाधमCवीर हृष्ट-पुष्ट, सुन्दर नवयुवक था। थाली खींच�ा हुआ बोला-अभी �ो दस भी

नहीं ब&े अम्मॉँ। यहां के मुदाCदिदल आदमी सरे-शाम ही सो &ाए ं�ो कोई क्या करे। योरोप में लोग बारह-एक ब&े �क सैर-सपाटे कर�े रह�े हैं। जि&न्दगी के मजे़ उठाना कोई उनसे सीख ले। एक ब&े से पहले �ो कोई सो�ा ही नहीं।

मां ने पूछा-�ो आठ-दस ब&े सोकर उठ�े भी होंगे।धमCवीर ने पहलू बचाकर कहा-नहीं, वह छ: ब&े ही उठ बैठ�े हैं। हम लोग बहु�

सोने के आदी हैं। दस से छ: ब&े �क, आठ घण्टे हो�े हैं। चौबीस में आठ घण्टे आदमी सोये �ो काम क्या करेगा? यह तिबलकुल गल� है तिक आदमी को आठ घण्टे सोना चातिहए। इन्सान जि&�ना कम सोये, उ�ना ही अच्छा। हमारी सभा ने अपने तिनयमों में दाख़िखल कर लिलया है तिक मेम्बरों को �ीन घण्टे से ज्यादा न सोना चातिहए।

मां इस सभा का जि&क्र सुन�े-सुन�े �ंग आ गयी थी। यह न खाओ, वह न खाओ, यह न पहनो, वह न पहनो, न ब्याह करो, न शादी करो, न नौकरी करो, न चाकरी करो, यह सभा क्या लोगों को संन्यासी बनाकर छोडे़गी? इ�ना त्याग �ो संन्यासी ही कर सक�ा है। त्यागी संन्यासी भी �ो नहीं मिमल�े। उनमें भी ज्यादा�र इजिन्¯यों के गुलाम, नाम के त्यागी हैं। आ& सोने की भी कै़द लगा दी। अभी �ीन महीने का घूमना खत्म हुआ। &ाने कहां-कहां मारे ति9र�े हैं। अब बारह ब&े खाइए। या कौन &ाने रा� को खाना ही उड़ा दें। आपभित्त के स्वर में बोली-�भी �ो यह सूर� तिनकल आयी है तिक चाहो �ो एक-एक हड्डी तिगन लो। आख़ि�र सभावाले कोई काम भी कर�े हैं या लिसफ़C आदमिमयों पर कैदें ही लगाया कर�े हैं?

धमCवीर बोला-&ो काम �ुम कर�ी हो वहीं हम कर�े हैं। �ुम्हारा उदे्द]य राष्ट़ की सेवा करना है, हमारा उदे्द]य भी राष्ट़ की सेवा करना है।

बूढ़ी तिवधवा आ&ादी की लड़ाई में दिदलो-&ान से शरीक थी। दस साल पहले उसके पति� ने एक रा&¯ोहात्मक भाषण देने के अपराध में स&ा पाई थी। &ेल में उसका स्वास्थ्य तिबगड़ गंया और &ेल ही में उसका स्वगCवास हो गया। �ब से यह तिवधवा बड़ी सच्चाई और लगन से राष्ट़ की सेवा सेवा में लगी हुई थी। शुरू में उसका नौ&वान बेटा भी स्वयं सेवकों में शमिमल हो गया था। मगर इधर पांच महीनों से वह इस नयी सभा में शरीक हो गया और उसको &ोशीले कायCक�ाCओं मे समझा &ा�ा था।

मां ने संदेह के स्वर में पूछा-�ो �ुम्हारी सभा का कोई दफ्�र हैं?‘हां है।’‘उसमें तिक�ने मेम्बर हैं?’‘अभी �ो लिसफ़C पचास मेम्बर हैं? वह पचीस आदमी &ो कुछ कर सक�े हैं, वह

�ुम्हारे पचीस ह&ार भी नहीं कर सक�े। देखो अम्मां, तिकसी से कहना म� वनाC सबसे पहले मेरी &ान पर आफ़� आयेगी। मुझे उम्मीद नहीं तिक तिपकेटिट�ग और &ुलूसों से हमें आ&ादी

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हालिसल हो सके। यह �ो अपनी कमज़ोरी और बेबसी का साफ़ एलान हैं। झंतिडयां तिनकालकर और गी� गाकर कौमें नहीं आज़ाद हुआ कर�ीं। यहां के लोग अपनी अकल से काम नहीं ले�े। एक आदमी ने कहा-यों स्वराज्य मिमल &ाएगा। बस, आंखें बन्द करके उसके पीछे हो लिलए। वह आदमी गुमराह है और दूसरों को भी गुमराह कर रहा है। यह लोग दिदल में इस ख्याल से खुश हो लें तिक हम आज़ादी के करीब आ�े &ा�े हैं। मगर मुझे �ो काम करने का यह ढंग तिबल्कुल खेल-सा मालूम हो�ा है। लड़कों के रोने-धोने और मचलने पर ख़िखलौने और मिमठाइयां मिमला कर�ी है-वही इन लोगों को मिमल &ाएगा। असली ची& �ो �भी मिमलेगी, &ब हम उसकी कीम� देने को �ैयार होंगे।

मां ने कहा-उसकी कीम� क्या हम नहीं दे रहे हैं? हमारे लाखों आदमी&ेल नहीं गये? हमने डंडे नहीं खाये? हमने अपनी &ायदादें नहीं &ब्� करायीं?

धमCवीर-इससे अंग्रे&ों को क्या-क्या नुकसान हुआ? वे तिहन्दुस्�ान उसी वक्त छोडे़गे, &ब उन्हें यकीन हो &ाएगा तिक अब वे एक पल-भर भी नहीं रह सक�े। अगर आ& तिहन्दोस्�ान के एक ह&ार अंग्रे& कत्ल कर दिदए &ाए ं�ो आ& ही स्वराज्य मिमल &ाए। रूस इसी �रह आज़ाद हुआ, आयरलैण्ड भी इसी �रह आज़ाद हुआ, तिहन्दोस्�ान भी इसी �रह आज़ाद होगा और कोई �रीका नहीं। हमें उनका खात्मा कर देना है। एक गोरे अ9सर के कत्ल कर देने से हुकूम� पर जि&�ना डर छा &ा�ा है, उ�ना एक ह&ार &ुलूसों से मुमतिकन नहीं।

मां सर से पांव �क कापं उठी। उसे तिवधवा हुए दस साल हो गए थे। यही लड़का उसकी जि&�दगी का सहारा है। इसी को सीने से लगाए मेहन�-म&दूरी करके अपने मुसीब� के दिदन काट रही है। वह इस खयाल से खुश थी तिक यह चार पैसे कमायेगा, घर में बहू आएगी, एक टुकड़ा खाऊँगी, और पड़ी रहँूगी। आर&ुओं के प�ले-प�ले ति�नकों से उसने ऐ तिक]�ी बनाई थी। उसी पर बैठकर जि&न्दगी के दरिरया को पार कर रही थी। वह तिक]�ी अब उसे लहरों में झकोले खा�ी हुई मालूम हुई। उसे ऐसा महसूस हुआ तिक वह तिक]�ी दरिरया में डूबी &ा रही है। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर कहा-बेटा, �ुम कैसी बा�ें कर रहे हो। क्या �ुम समझ�े हो, अंग्रे&ों को कत्ल कर देने से हम आज़ाद हो &ायेंगे? हम अंग्रे&ों के दु]मन नहीं। हम इस राज्य प्रणाली के दु]मन हैं। अगर यह राज्य-प्रणाली हमारे भाई-बन्दों के ही हाथों में हो-और उसका बहु� बड़ा तिहस्सा है भी-�ो हम उसका भी इसी �रह तिवरोध करेंगे। तिवदेश में �ो कोई दूसरी क़ौम रा& न कर�ी थी, ति9र भी रूस वालों ने उस हुकूम� का उखाड़ 9ें का �ो उसका कारण यही था तिक &ार प्र&ा की परवाह न कर�ा था। अमीर लोग मजे़ उड़ा�े थे, गरीबों को पीसा &ा�ा था। यह बा�ें �ुम मुझसे ज्यादा &ान�े हो। वही हाल हमारा है। देश की सम्पभित्त तिकसी न तिकसी बहाने तिनकल�ी चली &ा�ी है और हम गरीब हो�े &ा�े हैं। हम इस अवैधातिनक शासन को बदलना चाह�े हैं। मैं �ुम्हारे पैरों में पड़�ी हँू, इस सभा से अपना नाम कटवा लो। खामखाह आग़ में न कूदो। मै अपनी आंखों से यह दृ]य नहीं देखना चाह�ी तिक �ुम अदाल� में खून के &ुमC में लाए &ाओ।

धमCवीर पर इस तिवन�ी का कोई असर नहीं हुआ। बोला-इसका कोई डर नहीं। हमने इसके बारे में काफ़ी एहति�या� कर ली है। तिगरफ्�ार होना �ो बेवकू9ी है। हम लोग ऐसी तिहकम� से काम करना चाह�े हैं तिक कोई तिगरफ्�ार न हो।

मां के चेहरे पर अब डर की &गह शर्मिंम�न्दगी की झलक नज़र आयी। बोली-यह �ो उससे भी बुरा है। बेगुनाह सज़ा पायें और क़ाति�ल चैन से बैठे रहें! यह शमCनाक हरक� है। मैं

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इसे कमीनापन समझ�ी हँू। तिकसी को लिछपकर क़त्ल करना दगाबा&ी है, मगर अपने बदले बेगुनाह भाइयों को 9ंसा देना देश¯ोह है। इन बेगुनाहों का खून भी काति�ल की गदCन पर होगा।

धमCवीर ने अपनी मां की परेशानी का म&ा ले�े हुए कहा-अम्मां, �ुम इन बा�ों को नहीं समझ�ी। �ुम अपने धरने दिदए &ाओ, &ुलूस तिनकाले &ाओ। हम &ो कुछ कर�े हैं, हमें करने दो। गुनाह और सवाब, पाप और पुण्य, धमC और अधCम, यह तिनरथCक शब्द है। जि&स काम का �ुम सापेक्ष समझ�ी हो, उसे मैं पुण्य समझ�ा हँू। �ुम्हें कैसे समझाऊँ तिक यह सापेक्ष शब्द हैं। �ुमने भगवदगी�ा �ो पढ़ी है। कृष्ण भगवान ने साफ़ कहा है-मारने वाला मै हँू, जि&लाने वाला मैं हँू, आदमी न तिकसी को मार सक�ा है, न जि&ला सक�ा है। ति9र कहां रहा �ुम्हारा पाप? मुझे इस बा� की क्यों शमC हो तिक मेरे बदले कोई दूसरा मु&रिरम करार दिदया गया। यह व्यलिक्तग� लड़ाई नहीं, इंग्लैण्ड की सामूतिहक शलिक्त से यु� है। मैं मरंू या मेरे बदले कोई दूसरा मरे, इसमें कोई अन्�र नहीं। &ो आदमी राष्ट़ की ज्यादा सेवा कर सक�ा है, उसे &ीतिव� रहने का ज्यादा अमिधकार है।

मां आश्चयC से लड़के का मुहं देखने लगी। उससे बहस करना बेकार था। अपनी दलीलों से वह उसे कायल न कर सक�ी थी। धमCवीर खाना खाकर उठ गया। मगर वह ऐसी बैठी रही तिक &ैसे लक़वा मार गया हो। उसने सोचा-कहीं ऐसा �ो नहीं तिक वह तिकसी का क़त्ल कर आया हो। या कत्ल करने &ा रहा हो। इस तिवचार से उसके शरीर के कंपकंपी आ गयी। आम लोगों की �रह हत्या और खून के प्रति� घृणा उसके शरीर के कण-कण में भरी हुई थी। उसका अपना बेटा खून करे, इससे ज्यादा लज्जा, अपमान, घृणा की बा� उसके लिलए और क्या हो सक�ी थी। वह राष्ट़ सेवा की उस कसौटी पर &ान दे�ी थी &ो त्याग, सदाचार, सच्चाई और साफ़दिदली का वरदान है। उसकी आंखों मे राष्ट़ का सेवक वह था &ो नीच से नीच प्राणी का दिदल भी न दुखाये, बश्किल्क &रूर� पड़ने पर खुशी से अपने को बलिलदान कर दे। अपिह�सा उसकी नैति�क भावनाओं का सबसे प्रधान अंग थी। अगर धमCवीर तिकसी गरीब की तिहमाय� में गोली का तिनशाना बन &ा�ा �ो वह रो�ी &रूर मगर गदCन उठाकर। उसे ग़हरा शोक हो�ा, शायद इस शोक में उसकी &ान भी चली &ा�ी। मगर इस शोक में गवC मिमला हुआ हो�ा। लेतिकन वह तिकसी का खून कर आये यह एक भयानक पाप था, कलंक था। लड़के को रोके कैसे, यही सवाल उसके सामने था। वह यह नौब� हरतिग& न आने देगी तिक उसका बेटा खून के &ुमC में पकड़ा न &ाये। उसे यह बरदा]� था तिक उसके &ुमC की स&ा बेगुनाहों को मिमले। उसे �ाज्जुब हो रहा था, लड़के मे यह पागलपन आया क्योंकर? वह खाना खाने बैठी मगर कौर गले से नीचे न &ा सका। कोई &ालिलम हाथ धमCवीर को उनकी गोद से छीन ले�ा है। वह उस हाथ को हटा देना चाह�ी थी। अपने जि&गर के टुकडे़ को वह एक क्षण के लिलए भी अलग न करेगी। छाया की �रह उसके पीछे-पीछे रहेगी। तिकसकी म&ाल है &ो उस लड़के को उसकी गोद से छीने!

धमCवीर बाहर के कमरे में सोया कर�ा था। उसे ऐसा लगा तिक कहीं वह न चला गया हो। 9ौरन उसके कमरे में आयी। धमCवीर के सामने दीवट पर दिदया &ल रहा था। वह एक तिक�ाब खोले पढ़�ा-पढ़�ा सो गया था। तिक�ाब उसके सीने पर पड़ी थी। मां ने वहीं बैठकर अनाथ की �रह बड़ी सच्चाई और तिवनय के साथ परमात्मा से प्राथCना की तिक लड़के का हृदय-परिरव�Cन कर दे। उसके चेहरे पर अब भी वहीं भोलापन, वही मासूमिमय� थी &ो पन्¯ह-बीस साल पहले नज़र आ�ी थी। ककC श�ा या कठोर�ा का कोई लिचहृन न था। मां की

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लिस�ां�पर�ा एक क्षण के लिलए मम�ा के आंचल में लिछप गई। मां ने हृदय से बेटे की हार्दिद�क भावनाओं को देखा। इस नौ&वान के दिदल में सेवा की तिक�नी उंमग है, कोम का तिक�ना ददC हैं, पीतिड़�ों से तिक�नी सहानुभूति� हैं अगर इसमे बूढ़ों की-सी सूझ-बूझ, धीमी चाल और धैयC है �ो इसका क्या कारण है। &ो व्यलिक्त प्राण &ैसी तिप्रय वस्�ु को बलिलदान करने के लिलए �त्पर हो, उसकी �ड़प और &लन का कौन अन्दा&ा कर सक�ा है। काश यह &ोश, यह ददC पिह�सा के पं&े से तिनकल सक�ा �ो &ागरण की प्रगति� तिक�नी �े& हो &ा�ी!

मां की आहट पाकर धमCवीर चौंक पड़ा और तिक�ाब संभाल�ा हुआ बोला-�ुम कब आ गयीं अम्मां? मुझे �ो &ाने कब नींद आ गयी।मॉँ ने दीवट को दूर हटाकर कहा-चारपाई के पास दिदया रखकर न सोया करो। इससे कभी-कभी दुघCटनाए ंहो &ाया कर�ी हैं। और क्या सारी रा� पढ़�े ही रहोगे? आधी रा� �ो हुई, आराम से सो &ाओ। मैं भी यहीं लेटी &ा�ी हँू। मुझे अन्दर न &ाने क्यों डर लग�ा है।

धमCवीर-�ो मैं एक चारपाई लाकर डाले दे�ा हँू।‘नहीं, मैं यहीं &मीन पर लेट &ा�ी हँू।’‘वाह, मैं चारपाई पर लेटँू और �ू &मीन पर पड़ी रहो। �ुम चारपाई पर आ &ाओ।’‘चल, मैं चारपाई पर लेटंू और �ू &मीन पर पड़ा रहे यह �ो नहीं हो सक�ा।’‘मैं चारपाई लिलये आ�ा हँू। नहीं �ो मैं भी अन्दर ही लेट�ा हँू। आ& आप डरीं क्यों?’‘�ुम्हारी बा�ों ने डरा दिदया। �ू मुझे भी क्यों अपनी सभा में नहीं सरीक कर ले�ा?’धमCवीर ने कोई &वाब नहीं दिदया। तिबस्�र और चारपाई उठाकर अन्दर वाले कमरे में

चला। मॉँ आगे-आगे लिचराग दिदखा�ी हुई चली। कमरे में चारपाई डालकर उस पर लेट�ा हुआ बोला-अगर मेरी सभा में शरीक हो &ाओ �ो क्या पूछना। बेचारे कच्ची-कच्ची रोदिटयां खाकर बीमार हो रहे हैं। उन्हें अच्छा खाना मिमलने लगेगा। ति9र ऐसी तिक�नी ही बा�ें हैं जि&न्हें एक बूढ़ी स्त्री जि&�नी आसानी से कर सक�ी है, नौ&वान हरतिगज़ नहीं कर सक�े। मसलन, तिकसी मामले का सुराग लगाना, और�ों में हमारे तिवचारों का प्रचार करना। मगर �ुम दिदल्लगी कर रही हो!

मां ने गभ्भीर�ा से कहा-नहीं बेटा दिदल्लगी नहीं कर रही। दिदल से कह रही हँू। मां का दिदल तिक�ना ना&ुक हो�ा है, इसका अन्दा&ा �ुम नहीं कर सक�े। �ुम्हें इ�ने बडे़ ख�रे में अकेला छोड़कर मैं घर नहीं बैठ सक�ी। &ब �क मुझे कुछ नहीं मालूम था, दूसरी बा� थी। लेतिकन अब यह बा�ें &ान लेने के बाद मैं �ुमसे अलग नहीं रह सक�ी। मैं हमेशा �ुम्हारे बग़ल में रहँूगी और अगर कोई ऐसा मौक़ा आया �ो �ुमसे पहले मैं अपने को कुबाCन करँूगी। मर�े वक्त �ुम मेरे सामने होगे। मेरे लिलए यही सबसे बड़ी खुशी है। यह म� समझो तिक मैं ना&ुक मौक़ों पर डर &ाऊंगी, चीखंूगी, लिचल्लाऊंगी, हरतिग& नहीं। सख्� से सख्� ख�रों के सामने भी �ुम मेरी &बान से एक चीख न सुनोगे। अपने बचे्च की तिह9ाज़� के लिलए गाय भी शेरनी बन &ा�ी है।

धमCवीर ने भलिक्त से तिवहृल होकर मां के पैरों को चूम लिलया। उसकी दृमिष्ट में वह कभी इ�ने आदर और स्नेह के योग्य न थी।

2सरे ही दिदन परीक्षा का अवसर उपज्जिस्थ� हुआ। यह दो दिदन बुदिढ़या ने रिरवाल्वर चलाने के अभ्यास में खचC तिकये। पटाखे की आवाज़ पर कानों पर हाथ रखने वाली, अपिह�सा और

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धमC की देवी, इ�ने साहस से रिरवाल्वर चला�ी थी और उसका तिनशाना इ�ना अचूक हो�ा था तिक सभा के नौ&वानों को भी हैर� हो�ी थी।

पुलिलस के सबसे बडे़ अफ़सर के नाम मौ� का परवाना तिनकला और यह काम धमCवीर के सुपुदC हुआ।

दोनों घर पहुँचे �ो मां ने पूछा-क्यों बेटा, इस अफ़सर ने �ो कोई ऐसा काम नहीं तिकया ति9र सभा ने क्यों उसको चुना?

धमCवीर मां की सरल�ा पर मुस्कराकर बोला-�ुम समझ�ी हो हमारी कांस्टेतिबल और सब-इंसे्पक्टर और सुपरिरण्टेण्डैण्ट &ो कुछ कर�े हैं, अपनी खुशी से कर�े हैं? वे लोग जि&�ने अत्याचार कर�े हैं, उनके यही आदमी जि&म्मेदार हैं। और ति9र हमारे लिलए �ो इ�ना ही काफ़ी है तिक वह उस मशीन का एक खास पु&ाC है &ो हमारे राष्ट्र को चरम तिनदCय�ा से बबाCद कर रही है। लड़ाई में व्यलिक्तग� बा�ों से कोई प्रयो&न नहीं, वहां �ो तिवरोध पक्ष का सदस्य होना ही सबसे बड़ा अपराध है।

मां चुप हो गयी। क्षण-भर बाद डर�े-डर�े बोली-बेटा, मैंने �ुमसे कभी कुछ नहीं मांगा। अब एक सवाल कर�ी हँू, उसे पूरा करोगे?

धमCवीर ने कहा-यह पूछने की कोई &रूर� नहीं अम्मा, �ुम &ान�ी हो मैं �ुम्हारे तिकसी हुक्म से इन्कार नहीं कर सक�ा।

मां-हां बेटा, यह &ान�ी हँू। इसी व&ह से मुझे यह सवाल करने की तिहम्म� हुई। �ुम इस सभा से अलग हो &ाओ। देखो, �ुम्हारी बूढ़ी मां हाथ &ोड़कर �ुमसे यह भीख मांग रही है।

और वह हाथ &ोड़कर भिभखारिरन की �रह बेटे के सामने खड़ी हो गयी। धमCवीर ने क़हक़हा मारकर कहा-यह �ो �ुमने बेढब सवाल तिकया, अम्मां। �ुम &ान�ी हो इसका न�ी&ा क्या होगा? जि&न्दा लौटकर न आऊँगा। अगर यहां से कहीं भाग &ाऊं �ो भी &ान नहीं बच सक�ी। सभा के सब मेम्बर ही मेरे खून के प्यासे हो &ायेंगे और मुझे उनकी गोलिलयों का तिनशाना बनना पडे़गा। �ुमने मुझे यह &ीवन दिदया है, इसे �ुम्हारे चरणों पर अर्तिप�� कर सक�ा हँू। लेतिकन भार�मा�ा ने �ुम्हें और मुझे दोनों ही को &ीवन दिदया है और उसका हक सबसे बड़ा है। अगर कोई ऐसा मौक़ा हाथ आ &ाय तिक मुझे भार�मा�ा की सेवा के लिलए �ुम्हें कत्ल करना पडे़ �ो मैं इस अतिप्रय कत्तCव्य से भी मुहं न मोड़ सकंूगा। आंखों से आंसू &ारी होंगे, लेतिकन �लवार �ुम्हारी गदCन पर होगी। हमारे धमC में राष्ट्र की �ुलना में कोई दूसरी ची& नहीं ठहर सक�ी। इसलिलए सभा को छोड़ने का �ो सवाल ही नहीं है। हां, �ुम्हें डर लग�ा हो �ो मेरे साथ न &ाओ। मैं कोई बहाना कर दंूगा और तिकसी दूसरे कामरेड को साथ ले लूंगा। अगर �ुम्हारे दिदल में कमज़ोरी हो, �ो फ़ौरन ब�ला दो।

मां ने कले&ा म&बू� करके कहा-मैंने �ुम्हारे ख्याल से कहा था भइया, वनाC मुझे क्या डर।

अंधेरी रा� के पदÀ में इस काम को पूरा करने का 9ैसला तिकया गया था। कोप का पात्र रा� को क्लब से जि&स वक्त लौटे वहीं उसकी जि&न्दगी का लिचराग़ बुझा दिदया &ाय। धमCवीर ने दोपहर ही को इस मौके का मुआइना कर लिलया और उस खास &गह को चुन लिलया &हां से तिनशाना मारेगा। साहब के बंगले के पास करील और करौंदे की एक छोटी-सी झाड़ी थी। वही उसकी लिछपने की &गह होगी। झाड़ी के बायीं �रफ़ नीची ज़मीन थी। उसमें बेर और अमरूद के बाग़ थे। भाग तिनकलने का अच्छा मौक़ा था।

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साहब के क्लब &ाने का वक्त सा� और आठ ब&े के बीच था, लौटने का वक्त ग्यारह ब&े था। इन दोनों वक्तों की बा� पक्की �रह मालूम कर ली गयी थी। धमCवीर ने �य तिकया तिक नौ ब&े चलकर उसी करौंदेवाली झाड़ी में लिछपकर बैठ &ाय। वहीं एक मोड़ भी था। मोड़ पर मोटर की चाल कुछ धीमी पड़ &ायेगी। ठीक इसी वक्त उसे रिरवाल्वर का तिनशाना बना लिलया &ाय।

ज्यों-ज्यों दिदन गु&र�ा &ा�ा था, बूढ़ी मां का दिदल भय से सूख�ा &ा�ा था। लेतिकन धमCवीर के दैनंदिदन आचरण में �तिनक भी अन्�र न था। वह तिनय� समय पर उठा, ना]�ा तिकया, सन्ध्या की और अन्य दिदनों की �रह कुछ देर पढ़�ा रहा। दो-चार मिमत्र आ गये। उनके साथ दो-�ीन बाजिज़यां श�रं& की खेलीं। इत्मीनान से खाना खाया और अन्य् दिदनों से कुछ अमिधक। ति9र आराम से सो गया, तिक &ैसे उसे कोई लिचन्�ा नहीं है। मां का दिदल उचाट था। खाने-पीने का �ो जि&क्र ही क्या, वह मन मारकर एक &गह बैठ भी न सक�ी थी। पड़ोस की और�ें हमेशा की �रह आयीं। वह तिकसी से कुछ न बोली। बदहवास-सी इधर-उधर दौड़�ी ति9र�ी थीं तिक &ैसे चुतिहया तिबल्ली के डर से सुराख ढंूढ़�ी हो। कोई पहाड़-सा उसके लिसर पर तिगर�ा था। उसे कहीं मुलिक्त नहीं। कहीं भाग &ाय, ऐसी &गह नहीं। वे मिघसे-तिपटे दाशCतिनक तिवचार जि&नसे अब �क उसे सान्�वना मिमल�ी थी-भाग्य, पुन&Cन्म, भगवान की म&b-वे सब इस भयानक तिवपभित्त के सामने व्यथC &ान पड़�े थे। जि&रहबख्�र और लोहे की टोपी �ीर-�ुपक से रक्षा कर सक�े हैं लेतिकन पहाड़ �ो उसे उन सब ची&ों के साथ कुचल डालेगा। उसके दिदलो-दिदमाग बेकार हो�े &ा�े थे। अगर कोई भाव शेष था, �ो वह भय था। मगर शाम हो�े-हो�े उसके हृदय पर एक शन्तिन्�-सी छा गयी। उसके अन्दर एक �ाक� पैदा हुई जि&से म&बूरी की �ाक़� कह सक�े हैं। लिचतिड़या उस वक्त �क 9ड़9ड़ा�ी रही, &ब �क उड़ तिनकलने की उम्मीद थी। उसके बाद वह बहेलिलये के पं&े और क़साई के छुरे के लिलए �ैयार हो गयी। भय की चरम सीमा साहस है।

उसने धमCवीर को पुकारा-बेटा, कुछ आकर खा लो।धमCवीर अन्दर आया। आ& दिदन-भर मां-बेटे में एक बा� भी न हुई थी। इस वक्त मां

ने धमCवीर को देखा �ो उसका चेहरा उ�रा हुआ था। वह संयम जि&ससे आ& उसने दिदन-भर अपने भी�र की बेचैनी को लिछपा रखा था, &ो अब �क उडे़-उडे़ से दिदमाग की शकल में दिदखायी दे रही थी, ख�रे के पास आ &ाने पर तिपघल गया था-&ैसे कोई बच्चा भालू को दूर से देखकर �ो खुशी से �ालिलयां ब&ाये लेतिकन उसके पास आने पर चीख उठे।

दोनों ने एक दूसरे की �रफ़ देखा। दोनों रोने लगे।मां का दिदल खुशी से ख़िखल उठा। उसने आंचल से धमCवीर के आंसू पोंछ�े हुए कहा-

चलो बेटा, यहां से कहीं भाग चलें।धमCवीर लिचन्�ा-मग्न खड़ा था। मां ने ति9र कहा-तिकसी से कुछ कहने की &रूर�

नहीं। यहां से बाहर तिनकल &ायं जि&समें तिकसी को खबर भी न हो। राष्ट्र की सेवा करने के और भी बहु�-से रास्�े हैं।

धमCवीर &ैसे नींद से &ागा, बोला-यह नहीं हो सक�ा अम्मां। कत्तCव्य �ो कत्तCव्य है, उसे पूरा करना पडे़गा। चाहे रोकर पूरा करो, चाहे हसंकर। हां, इस ख्याल से डर लग�ा है तिक न�ी&ा न &ाने क्या हो। मुमतिकन है तिनशाना चूक &ाये और तिगरफ्�ार हो &ाऊं या उसकी गोली का तिनशाना बनंू। लेतिकन खैर, &ो हो, सो हो। मर भी &ायेंगे �ो नाम �ो छोड़ &ाएगंे।

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क्षण-भर बाद उसने ति9र कहा-इस समय �ो कुछ खाने को &ी नहीं चाह�ा, मां। अब �ैयारी करनी चातिहए। �ुम्हारा &ी न चाह�ा हो �ो न चलो, मैं अकेला चला &ाऊंगा।

मां ने लिशकाय� के स्वर में कहा-मुझे अपनी &ान इ�नी प्यारी नहीं है बेटा, मेरी &ान �ो �ुम हो। �ुम्हें देखकर &ी�ी थी। �ुम्हें छोड़कर मेरी जि&न्दगी और मौ� दोनों बराबर हैं, बश्किल्क मौ� जि&न्दगी से अच्छी है।

धमCवीर ने कुछ &वाब न दिदया। दोनों अपनी-अपनी �ैयारिरयों में लग गये। मां की �ैयारी ही क्या थी। एक बार ईश्वर का ध्यान तिकया, रिरवाल्वर लिलया और चलने को �ैयार हो गयी।

धमCवीर का अपनी डायर लिलखनी थी। वह डायरी लिलखने बैठा �ो भावनाओं का एक सागर-सा उमड़ पड़ा। यह प्रवाह, तिवचारों की यह स्व�: सू्फर्ति�� उसके लिलए नयी ची& थी। &ैसे दिदल में कहीं सो�ा खुल गया हो। इन्सान लाफ़ानी है, अमर है, यही उस तिवचार-प्रवाह का तिवषय था। आरभ्भ एक ददCनाक अलतिवदा से हुआ-

‘रुखस�! ऐ दुतिनया की दिदलचश्किस्पयों, रुखस्�! ऐ जि&न्दगी की बहारो, रुखस�! ऐ मीठे &ख्मों, रुखस�! देशभाइयों, अपने इस आह� और अभागे सेवक के लिलए भगवान से प्राथCना करना! जि&न्दगी बहु� प्यारी चीज़ है, इसका �&ुबाC हुआ। आह! वही दुख-ददC के न]�र, वही हसर�ें और मायूलिसयां जि&न्होंने जि&�दगी को कडुवा बना रखा था, इस समय &ीवन की सबसे बड़ी पंू&ी हैं। यह प्रभा� की सुनहरी तिकरनों की वषाC, यह शाम की रंगीन हवाए,ं यह गली-कूचे, यह दरो-दीवार ति9र देखने को मिमलेंगे। जि&न्दगी बजिन्दशों का नाम है। बजिन्दशें एक-एक करके टूट रही हैं। जि&न्दगी का शीराज़ा तिबखरा &ा रहा है। ऐ दिदल की आज़ादी! आओ �ुम्हें नाउम्मीदी की कब्र में दफ़न कर दँू। भगवान् से यही प्राथCना है तिक मेरे देशवासी 9लें-9ूलें, मेरा देश लहलहाये। कोई बा� नहीं, हम क्या और हमारी हस्�ी ही क्या, मगर गुलशन बुलबुलों से खाली न रहेगा। मेरी अपने भाइयों से इ�नी ही तिवन�ी है तिक जि&स समय आप आ&ादी के गी� गायें �ो इस ग़रीब की भलाई से लिलए दुआ करके उसे याद कर लें।’

डायरी बन्द करके उसने एक लम्बी सांस खींची और उठ खड़ा हुआ। कपडे़ पहनेख् रिरवाल्वर &ेब में रखा और बोला-अब �ो वक्त हो गया अम्मां!

मां ने कुछ &वाब न दिदया। घर सम्हालने की तिकसे परवाह थी, &ो चीज़ &हां पड़ी थी, वहीं पड़ी रही। यहां �क तिक दिदया भी न बुझाया गया। दोनों खामोश घर से तिनकले।–एक मदाCनगी के साथ क़दम उठा�ा, दूसरी लिचन्तिन्�� और शोक-मग्न और बेबसी के बोझ से झुकी हुई। रास्�े में भी शब्दों का तिवतिनमय न हुआ। दोनों भाग्य-लिलतिप की �रह अटल, मौन और �त्पर थे-गद्यांश �े&स्वी, बलवान् पुनी� कमC की पे्ररणा, पद्यांश ददC, आवेश और तिवन�ी से कांप�ा हुआ।

झाड़ी में पहुँचकर दोनों चुपचाप बैठ गये। कोई आध घण्टे के बाद साहब की मोटर तिनकली। धमCवीर ने गौर से देखा। मोटर की चाल धीमी थी। साहब और लेडी बैठे थे। तिनशाना अचूक था। धमCवीर ने &ेब से रिरवाल्वर तिनकाला। मां ने उसका हाथ पकड़ लिलया और मोटर आगे तिनकल आयी।

धमCवीर ने कहा-यह �ुमने क्या तिकया अम्मां! ऐसा सुनहरा मौक़ा ति9र हाथ न आयेगा।

मां ने कहा-मोटर में मेम भी थी। कहीं मेम को गोली लग &ा�ी �ो?40

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‘�ो क्या बा� थी। हमारे धमC में नाग, नातिगन और सपोले में कोई भी अन्�र नहीं।’मां ने घृणा भरे स्वर में कहा-�ो �ुम्हारा धमC &ंगली &ानवरों और वहलिशयों का है, &ो

लड़ाई के बुतिनयादी उसूलों की भी परवाह नहीं कर�ा। स्त्री हर एक धमC में तिनद�ष समझी गयी है। यहां �क तिक वहशी भी उसका आदर कर�े हैं।

‘वापसी के समय हरतिग& न छोडंूगा।’‘मेरे &ी�े-&ी �ुम स्त्री पर हाथ नहीं उठा सक�े।’‘मैं इस मामले मे �ुम्हारी पाबजिन्दयों का गुलाम नहीं हो सक�ा।’मां ने कुछ &वाब न दिदया। इस नामदº &ैसी बा� से उसकी मम�ा टुकडे़-टुकडे़ हो

गयी। मुश्कि]कल से बीस मिमनट बी�े होंगे तिक वहीं मोटर दूसरी �रफ़ से आ�ी दिदखायी पड़ी। धमCवीर ने मोटर को गौर से देखा और उछलकर बोला- लो अम्मां, अबकी बार साहब अकेला है। �ुम भी मेरे साथ तिनशाना लगाना।

मां ने लपककर धमCवीर का हाथ पकड़ लिलया और पागलों की �रह &ोर लगाकर उसका रिरवाल्वर छीनने लगा। धमCवीर ने उसको एक धक्का देकर तिगरा दिदया और एक कदम रिरवाल्वर साधा। एक सेकेण्ड में मां उठी। उसी वक्त गोली चली। मोटर आगे तिनकल गयी, मगर मां &मीन पर �ड़प रही थी।

धमCवीर रिरवाल्वर 9ें ककर मां के पास गया और घबराकर बोला-अम्मां, क्या हुआ? ति9र यकायक इस शोकभरी घटना की प्र�ीति� उसके अन्दर चमक उठी-वह अपनी प्यारी मां का काति�ल है। उसके स्वभाव की सारी कठोर�ा और �े&ी और गमb बुझ गयी। आंसुओं की बढ़�ी हुई थरथरी को अनुभव कर�ा हुआ वह नीचे झुका, और मां के चेहरे की �र9 आंसुओं में लिलपटी हुई शर्मिंम�न्दगी से देखकर बोला-यह क्या हो गया अम्मां! हाय, �ुम कुछ बोल�ीं क्यों नहीं! यह कैसे हो गया। अंधेरे में कुछ नज़र भी �ो नहीं आ�ा। कहॉँ गोली लगी, कुछ �ो ब�ाओ। आह! इस बदनसीब के हाथों �ुम्हारी मौ� लिलखी थी। जि&सको �ुमने गोद में पाला उसी ने �ुम्हारा खून तिकया। तिकसको बुलाऊँ, कोई न&र भी �ो नहीं आ�ा।

मां ने डूब�ी हुई आवा& में कहा-मेरा &न्म स9ल हो गया बेटा। �ुम्हारे हाथों मेरी मिमट्टी उठेगी। �ुम्हारी गोद में मर रही हँू। छा�ी में घाव लगा है। ज्यों �ुमने गोली चलायी, मैं �ुम्हारे सामने खड़ी हो गयी। अब नहीं बोला &ा�ा, परमात्मा �ुम्हें खुश रखे। मेरी यही दुआ है। मैं और क्या कर�ी बेटा। मॉँ की आबरू �ुम्हारे हाथ में है। मैं �ो चली।

क्षण-भर बाद उस अंधेरे सन्नाटे में धमCवीर अपनी प्यारी मॉँ के नीम&ान शरीर को गोद में लिलये घर चला �ो उसके ठंडे �लुओं से अपनी ऑंसू-भरी ऑंखें रगड़कर आण्टित्मक आह्लाद से भरी हुई ददC की टीस अनुभव कर रहा था।

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