3 archana trivedi 6-17shabdbraham.com/shabdb/archive/v8i6/sbd-v8-i6-sn-2.pdf · ‘रंगभू...

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E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं कȧ अंतरा[çĚȣय मासक शोध पǒğका 17 अĤैल 2020 पीअर रȣåयूड रेĥȧड ǐरसच[ जन[ल This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 6 Ǒहंदȣ उपÛयासɉ मɅ रचना×मक काय[Đम : एक वæलेषण Įीमती अच[ना ǒğवेदȣ (शोधाथȸ) भाषा अÚययन शाला देवी अǑहãया वæववɮयालय डॉ पुçपɅġ दुबे (Ǔनदȶशक) महाराजा रणजीत संह कॉलेज ऑफ़ Ĥोफे शनल साɃसेस इंदौर, मÚयĤदेश, भारत शोध सं¢ेप साǑह×य मɅ समाज का ĤǓतǒबàब उपिèथत होता है युग चेतना से संपृÈत साǑह×य समाज कȧ Ĥवृि×तयɉ को उजागर करता है साǑह×यकार क े लए समाज कȧ घटनाएं कÍचे माल क े Ǿप मɅ होती हɇ , िजÛहɅ वह अपनी कãपना शिÈत से कथानक मɅ चǒğत करता है Ǒहंदȣ उपÛयासकारɉ ने देश और समाज को Ĥभावत करने वालȣ िèथǓतयɉ को अपने उपÛयासɉ मɅ अभåयÈत कया है। Ĥèतुत शोध पğ मɅ Ǒहंदȣ उपÛयासɉ मɅ वण[त रचना×मक काय[Đम का वæलेषण कया गया है। Ĥèतावना साǑह×य और समाज का अंतसɍबंध बहु त èपçट है। साǑह×य मɅ समाज कȧ च×तवृ ि×तयां ĤǓतǒबिàबत होती हɇ। साǑह×यकार कȧ कालĤवाह को देखने कȧ Ǻिçट अलग होती है। वह आमजनजीवन मɅ घुलामला होने के बाद भी उससे असंपृÈत रहकर पǐरिèथǓतयɉ का आकलन करता है और अपने साǑह×य मɅ उÛहɅ अभåयÈत करता है। ǑहÛदȣ उपÛयास साǑह×य अपनी वकास याğा मɅ िजन मोड़ɉ से होकर गुजरा है , उसमɅ भारतीय èवाधीनता संĒाम का एक लंबा कालखंड है। ǑहÛदȣ उपÛयासɉ मɅ सन ् 1857 के Ĥथम èवाधीनता संĒाम से लेकर सन् 1947 मɅ भारत के आजाद होने तक अनेक वचारधाराओं के उ×थान-पतन को अभåयिÈत मलȣ है। आजादȣ के बाद भी अनेक उपÛयासɉ मɅ वचारɉ कȧ ĤǓतÚवǓन सुनायी देती है। भारतɅदु काल के वभÛन उपÛयासकारɉ ने आधारपीǑठका तैयार कȧ , परंतु उनके उपÛयास सामािजक सरोकारɉ से बहु त दूर थे। मुंशी Ĥेमचंद ने उपÛयास को सोƧेæयता Ĥदान कȧ। उसे यथाथ[ के धरातल पर उतारकर समाज के साथ उसका संबंध èथापत कया। जब Ĥेमचंद ने लखना Ĥारंभ कया , तब भारतीय राजनीǓत मɅ महा×मा गांधी का Ĥवेश हु आ। भारत कȧ आÚयाि×मक पृçठभूम होने से समाज ने गांधीजी के स×य और अǑहंसा के वचार को èवीकार कया। मुंशी Ĥेमचंद ने इस सूğ को पकड़कर अपने उपÛयासɉ के कथानक मɅ गांधी वचार को जगह दȣ। महा×मा गांधी ने अंĒेजɉ से देश को आजाद कराने के लए स×याĒह का शèğ Ǒदया और देश के पुनǓन[मा[ण के लए रचना×मक काय[Đम का तानाबाना बुना।

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  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 6

    हंद उप यास म रचना मक काय म : एक व लेषण

    ीमती अचना वेद (शोधाथ )

    भाषा अ ययन शाला

    देवी अ ह या व व व यालय

    डॉ पु प दुबे ( नदशक)

    महाराजा रणजीत संह कॉलेज ऑफ़ ोफेशनल सा सेस

    इंदौर, म य देश, भारत

    शोध सं ेप सा ह य म समाज का त ब ब उपि थत होता है। युग चेतना से संपृ त सा ह य समाज क वृि तय को उजागर करता है। सा ह यकार के लए समाज क घटनाएं क चे माल के प म होती ह, िज ह वह अपनी क पना शि त से कथानक म च त करता है। हंद उप यासकार ने देश और समाज को भा वत करने वाल ि थ तय को अपने

    उप यास म अ भ य त कया है। तुत शोध प म ह ंद उप यास म व णत रचना मक काय म का व लेषण कया गया है।

    तावना सा ह य और समाज का अंतसबंध बहु त प ट

    है। सा ह य म समाज क च तवृ ि तयां

    त बि बत होती ह। सा ह यकार क काल वाह

    को देखने क ि ट अलग होती है। वह

    आमजनजीवन म घुला मला होने के बाद भी

    उससे असंपृ त रहकर प रि थ तय का आकलन

    करता है और अपने सा ह य म उ ह अ भ य त

    करता है। ह द उप यास सा ह य अपनी वकास

    या ा म िजन मोड़ से होकर गुजरा है, उसम

    भारतीय वाधीनता सं ाम का एक लंबा कालखंड

    है। ह द उप यास म सन ् 1857 के थम

    वाधीनता सं ाम से लेकर सन ् 1947 म भारत

    के आजाद होने तक अनेक वचारधाराओं के

    उ थान-पतन को अ भ यि त मल है। आजाद

    के बाद भी अनेक उप यास म वचार क

    त व न सुनायी देती है। भारतदु काल के

    व भ न उप यासकार ने आधारपी ठका तैयार

    क , परंतु उनके उप यास सामािजक सरोकार से

    बहु त दूर थे। मुंशी ेमचंद ने उप यास को

    सो े यता दान क । उसे यथाथ के धरातल पर

    उतारकर समाज के साथ उसका संबंध था पत

    कया। जब ेमचंद ने लखना ारंभ कया, तब

    भारतीय राजनी त म महा मा गांधी का वेश

    हु आ। भारत क आ याि मक पृ ठभू म होने से

    समाज ने गांधीजी के स य और अ हंसा के

    वचार को वीकार कया। मुंशी ेमचंद ने इस

    सू को पकड़कर अपने उप यास के कथानक म

    गांधी वचार को जगह द । महा मा गांधी ने

    अं ेज से देश को आजाद कराने के लए

    स या ह का श दया और देश के पुन नमाण

    के लए रचना मक काय म का तानाबाना बुना।

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 7

    इन रचना मक काय म ने देश के लोग म

    आ म व वास का संचार कया। रचना मक

    काय म स या ह का अ भ न ह सा थे। दोन

    के बीच सामंज य के साथ एक अ य वभाजन

    भी था। स या ह राजनी त के अ धक नकट था

    और रचना मक काय म समाज क पुनरचना से

    जुड़ा हुआ था। इस लए जो कायकता रचना मक

    काय म म संल न थे, उ ह स या ह इ या द

    करके जेल जाने क मनाह थी। देश म नयी

    शि त का संचार करने क ि ट से गांधीजी ने

    वे काय म उठाये, जो सीधे जनता के दय का

    पश करते थे। उनका अं तम ल य गर ब से

    गर ब यि त क वतं ता था। महा मा गांधी ने

    इसे अ हंसक पु षाथ क उपा ध से वभू षत

    कया। ह द उप यास म इन रचना मक

    काय म को अ भ यि त मल है।

    कौमी एकता

    भारत के आजाद आंदोलन म हंद-ूमुि लम

    एकता सबसे बड़ी चुनौती रह । शां त और स ाव

    के लए इसे मंजूर सब कोई करते ह, परंतु समय

    आने पर इस बात को भूलने म देर नह ं लगाते।

    अं ेज ने अनेक बार हंद-ूमुि लम एकता को

    न ट करने के यास कए। सन ् 1920 म

    गांधीजी ने कहा, ‘‘ खलाफत के न को म

    सव प र थान देता हू ं। असहयोग का श भी

    उसे हम िजस प म जानते ह, खलाफत के

    न पर वचार करते-करते हाथ लगा है। एक

    क र हंदू होने के नाते मुझे इस बात क बड़ी

    चंता होती है। य द सात करोड़ मुसलमान से म

    अपने धम को सुर त रखना चाहता हू ं तो मुझे

    उनके धम को बचाने के लए भी मरने को तैयार

    रहना चा हए। यह बात हंदुओं के लए भी सह

    है। जब तक हंद-ूमुसलमान एक नह ं होत,े तब

    तक वरा य एक अथ वह न आदश है।...जब

    तक हंदू और मुसलमान के बीच स ची एकता

    था पत नह ं हो जाती, तब तक म दोन से

    कहता हू ं क इस सा ा य को मटाना असंभव

    है। सात करोड़ मुसलमान और ततीस करोड़ हंद,ू

    एकता के सवा कसी और तरह साथ नह ं रह

    सकते। हंदू और मुसलमान म जबानी नह,ं

    दल एकता होनी चा हए। अगर ऐसा हो तो हम

    एक साल म वरा य क थापना कर सकते

    ह।’’1

    मु ंशी ् रेमचंद के उप यास ‘ ेमा म’ म लखते

    ह, ‘‘ हंदू खुलेआम मुसलमान के हाथ से और

    मुसलमान हंदुओं के हाथ से पानी लकेर पी रहे

    थे। हंद-ूमुसलमान एकता इन जुलूस का मु य

    नारा था।’’2

    उ ह ने ‘कमभू म’ उप यास म अमरकांत और

    सल म क दो ती का च ण कया है। लाला

    अमरकांत वै णव मत को मानने वाले ह, परंतु

    अंत म उनका भी दय प रवतन होता है और वे

    सल म के साथ बैठकर भोजन करते ह। महा मा

    गांधी जीवनभर दोन धम के झगड़ को शांत

    कराते रहे। जब देश आजाद के ज न म डूबा

    हु आ था, तब वे नोआखल म हु ए भीषण दंगे क

    आग को बुझा रहे थे। कौमी एकता के बना पूण

    वरा य का कट होना नामुम कन है।

    अ पृ यता नवारण

    अ पृ यता हंदू धम का कलंक और शाप है।

    लाख लोग को सैकड़ वष तक उनके मूलभूत

    अ धकार से वं चत रखना और उनके साथ

    गुलाम क तरह यवहार करना कसी कार से

    याय नह ं कहा जा सकता। यह सब कुछ धम

    क आड़ लेकर कया गया। वतं ता आंदोलन म

    अ पृ यता नवारण मह वपूण रचना मक

    काय म बन गया। जब अं ेज ने द लत को

    अलग मता धकार देने क बात कह , तब इसने

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

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    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 8

    और ग त पकड़ी। गांधीजी ने इस वचार के

    खलाफ उपवास कया। पि डत मदनमोहन

    मालवीय क अ य ता म ब बई म एक

    आमसभा हु ई िजसम अ पृ यता को दूर करने के

    लए अ खल भारतीय अ पृ यता वरोधी संगठन

    खड़ा कया गया। ी घन यामदास बडला

    अ य और अमृतलाल ठ कर मं ी चुने गए।

    यह संगठन बाद म ‘ह रजन सेवक संघ’ के प

    म काम करने लगा। द लत जा तय के संबंध म

    1919 म ह ताव पा रत कर दया गया था

    क ‘‘परंपरा से द लत जा तय पर जो कावट

    चल आ रह ह, वे बहु त दुःख देने वाल ह और

    ोभकारक ह, िजससे द लत जा तय को बहु त

    क ठनाइय और असु वधाओं का सामना करना

    पड़ता है। इस लए याय और भलमानसी का यह

    तकाजा है क ये तमाम बं दश उठा द जाएं।’’3

    ेमचंद के ‘गबन’ उप यास का पा रमानाथ का

    छुआछूत म व वास नह ं है। वह कलक ता म

    एक ख टक के यहां नवास करता है। वह ख टक

    जा त क बु ढ़या से कहता है, ‘‘म तो तु हार

    रसोई म खाऊंगा। जब मां-बाप ख टक ह, तो बेटा

    भी ख टक है। िजसक आ मा बड़ी हो वह

    ा मण है।....आदमी पाप से नीच होता है, खाने-

    पीने से नह ं होता, ेम से जो भोजन मलता है,

    वह प व होता है। उसे तो देवता भी खाते ह।’’4

    शराबबंद वरा य क लड़ाई म शराबबंद को वशेष थान

    ा त था। जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन

    ारंभ कया तब शराब दुकान पर धरना देना भी

    उसम शा मल था। शराबखोर देश के वकास के

    लए सबसे बड़ी बाधा है और नै तक ि ट से

    भयंकर पापकम है। गांधीजी का मानना है क

    य द हम स चा वरा य हा सल करना है तो

    अफ म, शराब वगैरा चीज क यसन म फंसे

    हु ए अपने करोड़ भाई-बहन के भा य को हम

    भ व य म सरकार क मेहरबानी या मज पर

    झूलता नह ं छोड़ सकते। रा सेवक का ाथ मक

    कत य शराबबंद है। ‘‘अगर हम शराब और

    नशेबाजी के शकार बने रहे, तो हमार आजाद ,

    खाल गुलाम क आजाद होगी।’’5

    ‘रंगभू म’ उप यास का पा सूरदास वा तव म

    गांधीजी का त प है। वह नशे को देश के लए

    घातक मानता है। एक थान पर वह कहता है,

    ‘‘बजरंगी - मुझे जो घंटे भर के लए राज मल

    जाता, तो सबसे पहले शहर भर क ताड़ी क

    दुकान म आग लगवा देता।’’6

    खाद

    भारत ने दु नया को व व या दान क ।

    वै दक ऋ ष गृ समद ने कपास क खोज क ।

    उससे उ ह ने सूत कातना और बुनने क कला

    का वकास कया। अं ेज के आगमन तक यहां

    क व कला दु नयाभर म मशहू र थी। अमीर,

    गर ब, म हला, पु ष सभी चरखा चलाकर बुनकर

    से कपड़ा बुनवा लया करते थे। वक त

    अथ यव था भारत क असल ताकत थी। अं ेज

    ने व नमाण और इसके आसपास खड़े

    ह तो योग को न ट करना ारंभ कया। देश क

    जनता पूर तरह से अं ेज क गुलाम हो गई।

    अं ेज क चा माल इं लड ले जाने लगे और वहां

    से प का माल बनाकर भारत म भेजने लगे। इस

    शोषण को देखकर दादाभाई नौरोजी ने लखा क

    अं ेज ऐसी गाय है जो चारा भारत म खाती है

    और दूध इं लड म देती है। लोकमा य तलक के

    नेतृ व म वदेशी आंदोलन चलाया गया। इसम

    इं लड से बनी हु ई व तुओं के ब ह कार क बात

    कह गयी, परंतु अ य देश क व तुओं को

    वीकार कया गया। जब महा मा गांधी ने ‘ हंद

    वराज’ पु तक लखी, तब उसम चरखे का िज

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

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    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 9

    कया। ले कन तब तक उ ह ने चरखा देखा तक

    नह ं था। जब गांधीजी भारत आए, तब उ ह ने

    देश- मण के दौरान भीषण गर बी और दा र य

    को देखा। उ ह ने गुजरात के गांव म चरखे को

    खोज नकाला और उसीसे बने हु ए व पहनने

    का संक प लया। गांधीजी वतं ता ाि त के

    लए चरखा और खाद पर बराबर जोर देते थे।

    उनका प ट मानना था क भारत गांव का देश

    है। ामवा सय को खाल समय म काम देने का

    इससे बढ़कर सरल, स ता उपाय दूसरा नह ं हो

    सकता। महा मा गांधी ने खाद को वरा य के

    आंदोलन से जोड़ दया। भारत म असहयोग

    आंदोलन ारंभ होने पर उ ह ने लखा क,

    ‘‘ हंद ु तान को अगर कोई दल ल चरखे क तरफ

    खींच रह है तो वह है भूख। चरखे क पुकार

    दूसर सब पुकार से मधुर है, य क यह ेम

    क पुकार है और ेम ह वरा य है।..हमको

    भारत के उन लाख -करोड़ आद मय क हालत

    पर अव य वचार करना चा हए, िजनका जीवन

    पशु से भी गया बीता हो गया है, जो बलकुल

    मरणो मुख हो रहे ह। यह चरखा ह देश के उन

    लाख भाइय और बहन के लए एकमा

    संजीवनी बूट है।’’7

    ‘कमभू म’ उप यास का पा अमरकांत अपने

    पता से कहता है, ‘‘चरखा पये के लए नह ं

    चलाया जाता, बि क वह आ मशु का साधन

    है।’’8

    अमरकांत ऐि छक दा र य को अपनाता है।

    उसके पास धन-संपि त क कमी नह ं है, परंतु

    अशु साधन से अिजत संपि त के उपयोग को

    वह गलत मानता है। वावलंबी जीवन ह े ठ

    है। युवाओ ंको काम करके उपाजन करने म शम

    नह ं आना चा हए। ‘‘अमर खाद बेच रहा

    है।...एक वक ल साहब ने खस का पदा उठाकर

    देखा और बोले, ‘‘यार, यह या गजब करते हो,

    यु न सपल क म नर क तो लाज रखते, सारा

    भ कर दया। या कोई मजूर नह ं मलता था

    ?

    अमर ने ग ा लये- लये कहा, ‘‘मजूर करने से

    यु न सपल क म नर क शान म ब ा नह ं

    लगता। ब ा लगता है - धोख-ेधड़ी क कमाई

    खाने से।’’9

    दूसरे ामो योग

    खाद के पूरक उ योग धंधे दूसरे ामो योग ह।

    ामीण को रोजगार क तलाश म शहर म न

    आना पड़े, इसक मुक मल योजना खाद तथा

    ामो योग म है। दूसरे धंध के बना गांव क

    आ थक रचना पूण नह ं हो सकती। इसके लए

    गांधीजी के सहयोगी जे.सी.कुमार पा ने

    ामो योग म अनेक कार के संशोधन उपि थत

    कए। गांव म बनने वाल व तुओं के उपयोग को

    आजाद आंदोलन के साथ जोड़ दया गया। हाथ

    से बनी हु ई व तुओं को वशेष मह व मला।

    आमजनता ने इन व तुओं के उपयोग को

    रा भि त से जोड़ा और वयं को गौरवाि वत

    महसूस करने लगी। ामीण सामािजक जीवन को

    बनाने म इन ामो योग क मह वपूण भू मका

    थी। जीवन क आव यकताएं गांव म बनी

    व तुओं से पूर क जाएं, ऐसा आ ह रखा गया।

    इस वचार को भी मुंशी ेमचंद ने ‘कमभू म’

    उप यास म थान दया है। कसी भी समाज म

    मुदा मांस खाना सबसे नकृ ट माना जाता है।

    उप यास म च त चमकार क ब ती के अनेक

    लोग पास के गांव से मृत गाय को अपने कंध

    पर रखकर लाते ह। इस य को देखकर

    अमरकांत गांव छोड़कर जाने लगता है। तब चैड़ी

    छाती वाला युवा चमकार को समझाते हु ए कहता

    है, ‘‘मर गाय के मांस म ऐसा कौन-सा मजा

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 10

    रखा है, िजसके लए सब जने मरे जा रहे हो।

    ग ढा खोदकर मांस गाड़ दो, खाल नकाल लो।

    वह भी जब अमर भैया क सलाह हो। हमको तो

    उ ह ं क सलाह पर चलना है। उनक राह पर

    चलकर हमारा उ ार हो जाएगा। सार दु नया हम

    इसी लए तो अछूत समझती है क हम दा -

    शराब पीते ह, मुदा-मांस खाते ह और चमड़े का

    काम करते ह। और हमम या बुराई है ? दा -

    शराब हमने छोड़ ह द - हमने या छोड़ द ,

    समय ने छुड़वा द - फर मुदा-मांस म या रखा

    है। रहा चमड़े का काम, उसे कोई बुरा नह ं कह

    सकता, और अगर कहे भी तो हम उसक परवाह

    नह ं। चमड़ा बनाना-बेचना कोई बुरा काम नह ं

    है।’’10

    यशपाल के ‘देश ोह ’ उप यास के ब बाबू

    ामो योग क थापना के लए ामो योग

    आ म बनाते ह। उनका मानना है, ‘‘भारत नगर

    का नह ं ाम का देश है। य द भारत के ामीण

    आ म नभर और वतं हो जाएं तो देश क

    सम याएं वयं ह हल हो जाएंगी। देश वतं

    हो सकता है।’’11

    गांव क सफाई जब महा मा गांधी भारत आए तब उ ह ने सन ्

    1916 म काशी हंदू व व व यालय म भाषण

    दया। उ ह ने तभी भारत म या त गंदगी क

    ओर सभी का यान आक षत करते हु ए कहा

    क, ‘‘अगर हमारे मं दर कुशादगी और सफाई के

    नमूने न ह तो हमारा वरा य कैसा होगा ?’’12

    गांधीजी ने आजाद क लड़ाई म सफाई को

    सबसे ऊपर रखा। शहर और गांव म फैल गंदगी

    को देखकर वे दु ःखी हो जाते। सफाई और

    स या ह को उ ह ने एक ह माना। इस बारे म

    रचना मक काय म पुि तका म वे लखते ह,

    ‘‘सभी गांव म घूमते समय जो अनुभव होता है

    उससे दल को खुशी नह ं होती। गांव के बाहर

    और आसपास इतनी गंदगी होती है और वहां

    इतनी बदबू आती है क अ सर गांव म जाने

    वाले को आंख मूंदकर व नाक दबाकर जाना

    पड़ता है।...हमने रा य या सामिजक सफाई को

    न तो ज र गुण माना और न उसका वकास ह

    कया। य रवाज के कारण हम अपने ढंग से

    नहा भर लेते ह मगर िजस नद , तालाब या कुएं

    के कनारे हम ा या वैसी ह दूसर कोई

    धा मक या करते ह और िजन जलाशय म

    प व होने के वचार से हम नहाते ह उनके पानी

    को बगाड़ने या गंदा करने म हम कोई हचक

    नह ं होती। हमार इस कमजोर को म बड़ा दुगुण

    मानता हू ं। इस दुगुण का ह यह नतीजा है क

    हमारे गांव क हमार प व न दय के प व तट

    क ल जाजनक दुदशा और गंदगी से पैदा होने

    वाल बीमा रयां हम भोगनी पड़ती है।’’

    भी म साहनी के ‘तमस’ उप यास म आजाद के

    लए बि तय म सफाई काम को मह व दया

    गया है। गर ब को आजाद आंदोलन म शा मल

    करने के लए उनके तर पर आना ज र था।

    सफाई काय और देशभि त एक-दूसरे के पूरक ह।

    इसे समझाते हु ए उप यास के पा ब शीजी

    कहते ह, ‘‘ या गर बी म काम करने जाओगे तो

    पतलून पहनकर जाओगे ? झाडू लेकर या खाद

    पहनकर जाते हो तो लोग तु ह अपना समझते

    ह।’’13

    नयी या बु नयाद ताल म जब गांधीजी भारत आए तब वे कुछ समय के

    लए रवीं नाथ टैगोर के शां त नकेतन म रहे।

    वहां पर उ ह ने व या थय के बीच रहते हु ए

    नयी ताल म का योग कया। िजसे देखकर

    रवीं नाथ टैगोर ने कहा क यह वरा य क

    चाबी है। महा मा गांधी का श ा के संबंध म

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    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

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    प ट मानना था क, ‘‘परदेशी हु कूमत चलाने

    वाल ने अनजाने ह य न हो श ा के े म

    अपने काम क शु आत बना चूके बलकुल छोटे

    ब च से क है। हमारे यहां िजसे ाथ मक श ा

    कहा जाता है वह तो एक मजाक है। उसम गांव

    म बसने वाले हंदु तान क ज रत और मांग

    का जरा भी वचार नह ं कया गया है। और वैसे

    देखा जाय तो उसम शहर का भी कोई वचार

    नह ं हु आ है। बु नयाद ताल म हंदु तान के

    तमाम ब च को फर गांव के रहने वाले ह या

    शहर के हंदु तान के सभी े ठ और थायी

    त व के साथ जोड़ देती है। यह ताल म बालक

    के मन और शर र दोन का वकास करती है।

    बालक को अपने वतन के साथ जोड़ रखती है।

    उसे अपने और देश के भ व य का गौरवपूण

    च दखाती है। और उस च म देखे हु ए

    भ व य के हंदु तान का नमाण करने म बालक

    या बा लका अपने कूल जाने के दन से ह हाथ

    बंटाने लग,े इसका इंतजाम करती है।’’14

    ‘कमभू म’ उप यास के पा डा◌.ॅशां तकुमार पेशे

    से ा यापक ह, परंतु उ ह उस ताल म पर जरा

    भी भरोसा नह ं है। वह उसक क मय को जानते

    ह और सल म से कहते ह, ‘‘यह केराये क

    ताल म हमारे कैरे टर को तबाह कर डालती है।

    हमने ताल म को भी एक यापार बना लया है।

    यापार म यादा पू ंजी लगाओ, यादा नफा

    होगा। ताल म म भी खच यादा करो, यादा

    ऊंचा ओहदा पाओग,े म चाहता हू ं, ऊंची-से-ऊंची

    ताल म सबके लए मुआफ हो, ता क गर ब-स-े

    गर ब आदमी भी ऊंची-से-ऊंची लयाकत हा सल

    कर सबके और ऊंचे-स-ेऊंचा ओहदा पा सके।

    यु नव सट के दरवाजे म सबके लए खुले रखना

    चाहता हू ं। सारा खच गवनमट पर पड़ना चा हए।

    मु क को ताल म क उससे कह ं यादा ज रत

    है, िजतनी फौज क ।’’15 वह ं अमरकांत भी

    पि चमी श ा का वरोधी है। अमरकांत का

    व वास है क, ‘‘जीवन को सफल बनाने के लए

    श ा क ज रत है, ड ी क नह ं। हमार ड ी

    है - हमारा सेवा-भाव, हमार न ता, हमारे जीवन

    क सरलता। अगर यह ड ी नह ं मल , अगर

    हमार आ मा जाग रत नह ं हु ई, तो कागज क

    ड ी यथ है।’’16

    ि यां

    कसी भी समाज क ग तशीलता का पैमाना

    वहां क ि य क दशा को माना जाता है।

    ाचीनकाल म भारत म म हलाओं को पु ष के

    बराबर अ धकार ा त थे। ि य ने भी वै दक

    ऋचाओं क रचना क ं। कालांतर म म हलाओं को

    अनेक बंधन म जकड़ दया गया। वे अंधकार म

    डूब गयीं। पुनजागरणकाल म समाज सुधारक ने

    म हलाओं क ि थ त पर यान दया और अनेक

    आंदोलन चलाए। जब महा मा गांधी भारत आए,

    तब उनक प नी क तूरबा के जीवन से अनेक

    म हलाओं को ेरणा मल । स या ह के तर के ने

    ि य को आजाद आंदोलन म भाग लेने के

    लए े रत कया। सैकड़ साल से िज ह घर क

    चहारद वार से बाहर नह ं नकलने दया गया हो,

    उ ह स या ह ने जीवनदान दया। गांधीजी न े

    ी-पु ष म भेदभाव न मानते हु ए समानता क

    बात कह । गांधीजी को म हलाओं क अ हंसा

    शि त पर अ धक भरोसा था। ि य ने अपनी

    शि त को पहचाना नह ं और पु ष ने ी को

    अपना म नह ं माना, बि क वामी मानकर

    यवहार कया। रचना मक काय म म ी

    श ा और उनके जीवन तर को सुधारने के

    लए अनेक बात को शा मल कया गया। इसने

    गांधीजी को अपना स या ह काय म आगे बढ़ाने

    म सहायता दान क ।

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    ेमचंद के ‘सेवासदन’ उप यास का पा प संह

    कहता है, ‘‘हम उन वे याओं से घृणा करने का

    कोई अ धकार नह ं है, यह उनके साथ घोर

    अ याय होगा, ये हमार कुवासना, सामािजक

    अ याचार और कु थाएं ह, िज ह ने वे या का प

    धारण कर लया है, कस मुंह से घृणा कर?’’17

    आजाद आंदोलन म पु ष के समान ि य ने

    भी बढ़-चढ़कर भाग लया। परंपरागत भारतीय

    समाज म ि य का बाहर नकलना आजाद

    आंदोलन क सबसे बड़ी सफलता है। स या ह

    वृ ि त अपनाने म ि यां भी पीछे नह ं ह।

    ‘कमभू म’ उप यास के ारंभ म सुखदा

    वला सनी है। ले कन जब अमरकांत घर छोड़कर

    जाने क बात करता है, तब उसम आ चयजनक

    प रवतन होता है। वह कहती है, ‘‘ि यां अवसर

    पड़ने पर कतना याग कर सकती ह, यह तुम

    नह ं जानते। म इस फटकार के बाद इन गहन

    क ओर ताकना भी पाप समझती हू,ं इ ह

    पहनना तो दूसर बात है। अगर तुम डरते हो क

    म कल से ह तु हारा सर खाने लगू ंगी, तो म

    तु ह व वास दलाती हू ं क अगर गहन का

    नाम मेर जबान पर आए, तो जबान काट लेना।

    म यह भी कहे देती हू ं क म तु हारे भरोसे पर

    नह ं जा रह हू ं। अपनी गुजर भर को आप कमा

    लूंगी। रो टय म यादा खच नह ं होता। खच

    होता है आड बर म। एक बार अमीर क शान

    छोड़ दो, फर चार आने पैसे म काम चलता

    है।’’18

    आरो य के नयम क श ा

    भारत म जैसे सफाई के त जाग कता का

    अभाव है, वैसे ह आरो य के नयम क श ा

    भी न के बराबर है। सभी को वा य क श ा

    देने से अ धकांश रोग को दूर कया जा सकता

    है। गांधीजी ाकृ तक च क सा के हमायती रहे।

    उ ह ने न सफ वयं पर, बि क अपने पु ,

    अपनी प नी और अ य बीमार क सेवा करते

    हु ए ाकृ तक च क सा का उपयोग कया और

    अनेक असा य रोग को ठ क कया। महा मा

    गांधी को अनेक कार क गंभीर बीमा रय ने

    घेरा, परंतु उ ह ने भोजन सुधार, उपवास और

    जल च क सा, म ी क प ी आ द से खुद को

    ठ क कया। उनका कहना था क स या ह को

    बीमार होने का हक नह ं है। य द बीमार हु ए ह

    तो उसका उपचार ाकृ तक प त से ह कया

    जाना चा हए। अपने मन के वकार को दूर करने

    से शर र नरोग हो जाता है। उ ह ने द ण

    अ का म मेल नस का काम कया और बोअर

    यु के समय रेड ास क ओर से घायल क

    सहायता क ।

    ‘रंगभू म’ उप यास के पा गांगुल वृ ह, परंतु

    अद य उ साह से आरो य स म त का संचालन

    करते ह। सेवक को बीमार होने का अ धकार नह ं

    है। आ मसंयम क नींव पर बनने वाला जीवन

    वृ ाव था तक आरो य के नयम का पालन

    करता है। उसका जीवन कृ त के अनुसार चलता

    है। ेमचंद उनका च र बताते हु ए लखत ह,

    ‘‘जब यव थापक सभा के काम से अवकाश

    मलता है, तो न य दो ढाई घंटे युवक को

    शर र- व ान संबंधी या यान देते ह। पा य म

    तीन वष म समा त हो जाता है। तब सेवा-काय

    ारंभ होता है। अब क बीस युवक उ तीण ह गे

    और यह न चय कया गया है क वे दो साल

    भारत मण कर, पर शत यह है क उनके साथ

    एक लु टया, डोर, धोती और क बल के सवा

    और सफर का सामान न हो। यहां तक क खच

    के लए पये भी न रखे जाएं। इससे कई लाभ

    ह गे - युवक को क ठनाइय का अ यास होगा,

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    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

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    देश क यथाथ दशा का ान होगा, धैय, साहस,

    उ योग, संक प आ द गुण क वृ होगी।’’19

    ांतीय भाषाएं और रा भाषा

    अपनी भाषा के बारे म महा मा गांधी के वचार

    बलकुल प ट थे। द ण अ का म रहते हु ए

    उ ह ने अपने ब च को गुजराती भाषा म श ा

    दान क । इस बारे म ग रराज कशोर अपने

    उप यास ‘पहला गर म टया’ म लखते ह,

    ‘‘गांधीजी ने पोलक से कहा, ‘‘दु नया म ऐसा

    कोई समाज है जो अपनी भाषा याग कर दूसर

    भाषा के मा यम से उ न त करने का सपना देखे

    ? जो ऐसा करता है वह मृगतृ णा म जीता है।

    इ ह पहले गुजराती जाननी होगी...। म गुलाम

    देश म पैदा हुआ। म अपने देश क भाषाओं को

    अं ेजी के मुकाबले पर खड़ा नह ं कर पा रहा हू ं।

    वह उ ह र धती हु ई आगे बढ़ रह है। या म

    अपने घर म भी इस य न को छोड़ दू ं ?’’20

    भारत क आजाद और रा य एकता म ह द

    भाषा मह वपूण कड़ी है। द ण अ का से भारत

    आते ह महा मा गांधी ने हंद , हंदु तानी का

    नारा बुलंद कया। लखनऊ कां ेस म अं ेजी म

    भाषण चाहने वाल को गांधीजी ने कहा क य द

    आप एक वष के भीतर ह द नह ं सीख लगे, तो

    आपको मेरा भाषण अं ेजी म सुनने को नह ं

    मलेगा। वाइसराय वारा बुलायी यु प रषद म

    अकेले गांधीजी ने ह ह द म बोलने का साहस

    कया। गांधीजी अंगे ् रजी को मो हनी कहते थे।

    काशी हंद ू व व व यालय म या यान देते हु ए

    उ ह ने कहा क ब बई म हु ए अ धवेशन म

    तमाम ोता केवल उन भाषण से भा वत हु ए,

    जो ह द म दए गए थे।...य द आप मुझसे कह

    क हमार भाषा म उ तम वचार अ भ य त

    नह ं कए जा सकते, तब तो हमारा संसार से उठ

    जाना अ छा है। या कोई यि त व न म भी

    यह सोच सकता है क अं ेजी भ व य म कसी

    भी दन भारत क रा भाषा हो सकती है ? जब

    तक ह द भाषा म सारा सावज नक काय नह ं

    होगा, तब तक देश क उ न त नह ं हो सकती।

    जब गांधीजी इ दौर आए तब एक ताव वारा

    ह द रा भाषा मानी गयी।

    कसान

    भारत क अ धसं य आबाद गांव म नवास

    करती है। इनम भी कसान क तादाद सबसे

    यादा है। वरा य क इमारत कसान पर ह

    टक सकती है। उ ह य द अपनी ताकत का

    अहसास हो जाए तो कोई भी हु कूमत उनके

    सामने नह ं टक सकेगी। महा मा गांधी ने

    चंपारण से अपने आंदोलन क शु आत क थी।

    सौ साल पहले क यव था को बलकुल अ हंसक

    तर के से तोड़ना कोई छोट बात नह ं थी। इसम

    बीस लाख कसान ने भाग लया। नील के ध बे

    को मटाने के लए पहले खूनी संघष हो चुके थ,े

    ले कन गांधीजी के नेतृ व म चल ेआंदोलन ने

    ख बदल दया। चंपारण के कसान म

    राजनी तक जागृ त पैदा हु ई। गांधीजी को

    कसान पर अ धक भरोसा था। वह इस लए क

    कसान को एक बार यह समझ आ जाए क

    उनक तकल फ के लए कौन िज मेदार है, फर

    वे अ हंसा को समझकर उसे आजमा लेते ह।

    भगवतीचरण वमा के उप यास ‘टेढ़े मेढ़े रा ते’ म

    गांव क सम याओं को सुलझाने के लए माकडेय

    स या ह का रा ता बताते हु ए कहता है, ‘‘ये

    कसान वैसे ह कब भूख नह ं मरते ? एक बार

    उनक समझ म यह बात आ जाय क इस

    पशुता क िजंदगी से मृ यु अ छ है, तो सब

    कुछ संभव हो जाएगा। और साथ ह म तो यह

    कहता हू ं क स य और अ हंसा म इतना बल है

    क बड़े से बड़े अ याचार को दबा सकती है,

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    केवल मनु य म इस स य और अ हंसा पर पूण

    व वास होना चा हए। तवार जी भी मनु य ह

    तो ह, उनके पास भी दय है, क णा है। ऐसी

    हालत म आप यह कैसे समझते ह क इस स य

    और अ हंसा का असर उन पर न पड़ेगा?’’21

    मजदूर आजाद आंदोलन म ऐसे अनेक अवसर आए जब

    मजदूर ने अपने अ धकार हा सल करने के लए

    हड़ताल आ द का सहारा लया। खासकर

    अहमदाबाद के मजदूर संघ को देशभर म

    अनुकरणीय माना गया। मजदूर क दशा सुधारे

    बना आजाद का कोई मतलब नह ं है। उ ह

    जीवनोपयोगी सभी सु वधाएं उपल ध होनी

    चा हए। बना कसी तरह का शोरगुल, धांधल या

    दखावा कए ह उसक ताकत बराबर बढ़ती गई

    है। उसका अपना अ पताल है, मल मजदूर के

    ब च के लए उसके अपने मदरसे ह, बड़ी उमर

    के मजदूर को पढ़ाने के लास ह, उसका अपना

    छापखाना और खाद भंडार है और मजदूर के

    रहने के लए उसने घर भी बनवाये ह।

    अहमदाबाद के कर ब-कर ब सभी मजदूर के नाम

    मतदाताओं क सूची म दज ह और चुनाव म वे

    पुरअसर तर के से हाथ बंटाते ह।....यहां के

    मजदूर और मा लक ने अपने आपसी झगड़े

    मटाने के लए यादातर अपनी राजीखुशी से

    पंच क नी त को वीकार कया है।

    यशपाल के ‘देश ोह ’ उप यास के ब बाबू कहते

    ह, ‘‘समाज के लए मजदूर और मा लक दोन ह

    आव यक ह। मजदूर के बना मा लक का

    नमाण नह ं हो सकता। उनका वचार है क

    ‘‘मा लक मजदूर म ेणी हंसा न होकर य द ेम

    हो, मा लक अपने को मजदूर का र क और

    पता समझे तो उनम वेष न होकर ेम होगा।

    उसम झगड़े क गुंजाइश नह ं हो वह तो राम

    रा य का आदश है।’’22

    इसी उप यास क बीवी राजदुलार ख ना अपने

    को मजदूर के समक लाने के लए झोपड़ी म

    ह रहने का न चय करती है।’’23

    व याथ कसी भी देश को उसके व या थय से काफ

    अपे ाएं होती ह। देश नमाण म उनक भू मका

    मह वपूण होती है। आजाद आंदोलन म जब

    गांधीजी ने असहयोग का आ वान कया तब

    हजार क सं या म व या थय ने कूल-

    का◌ॅलेज का ब ह कार कर दया। उनम से कई

    दुबारा अपने कूल-का◌ॅलेज म नह ं गए और

    सेवाकाय म लग गए। इससे आंदोलन को आगे

    बढ़ने म सहायता मल । गांधीजी अं ेजी श ा

    पर नरंतर हार करते रहे। वे इस श ा को

    झूठा मोह मानते थे। पराई भाषा म ानाजन

    कर व याथ अपने क मती वष ऐसे ह बरबाद

    कर देते ह। इन व या थय का अ हंसा क तरफ

    कोई खंचाव नह ं है। गांधीजी ने अपनी

    यु नव सट क भू मका तुत करते हु ए भरती

    संबंधी नयम जार कए, जो इस कार थे:

    1 व या थय को दलबंद वाल राजनी त म कभी

    शा मल न होना चा हए।

    2 उ ह राजनी तक हड़ताल न करनी

    चा हए।.....सं था के अ धकार व या थय क

    बात न सुन तो उ ह छूट है क वे उ चत र त

    स,े स यतापूवक, अपनी-अपनी सं थाओं से बाहर

    नकल आय और तब तक वापस न जाएं, जब

    तक सं था के यव थापक पछताकर उ ह वापस

    न बुलाय। कसी भी हालत म और कसी भी

    वचार से उ ह अपने से भ न मत रखने वाले

    व या थय या कूल-का◌ॅलेज के अ धका रय के

    साथ जबरद ती न करनी चा हए। उ ह यह

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    व वास होना चा हए क अगर वे अपनी मयादा

    के अनु प यवहार करगे और मलकर रहगे तो

    जीत उनक होगी।

    3 सब व या थय को सेवा क खा तर शा ीय

    तर के से कातना चा हए। कताई के अपने साधन

    और दूसरे औजार को उ ह हमेशा साफ-सुथरा

    सु यवि थत और अ छ हालत म रखना चा हए।

    संभव हो तो वे अपने ह थयार , औजार या

    साधन को खुद ह बनाना सीख ल। अलब ता,

    उनका काता सूत सब से ब ढ़या होगा। कताई

    संबंधी सारे सा ह य का उसम छपे आ थक,

    सामािजक, नै तक और राजनी तक सब रह य

    का उ ह अ ययन करना चा हए।

    4 अपने पहनने-ओढ़ने के लए वे हमेशा खाद

    का ह उपयोग कर, और गांव म बनी चीज के

    बदले परदेश क या यं क बनी वैसी चीज को

    कभी न बरत।

    5 वंदेमातरम गाने या रा य झ डा फहराने के

    मामले म दूसर पर जबरद ती न कर। रा य

    झ डे के ब ले वे खुद अपने बदन पर चाहे

    लगाय, ले कन दूसर को उसके लए मजबूर न

    कर।

    6 तरंगे झ डे के संदेश को अपने जीवन म

    उतारकर दल म सां दा यकता या अ पृ यता को

    घुसने न द। दूसरे धम वाले व या थय और

    ह रजन को अपने भाई समझकर उनके साथ

    स ची दो ती कायम कर।

    7 अपने दुखी-दद पड़ो सय क सहायता के लए

    वे तुरंत दौड़ जाएं, आसपास के गांव म सफाई

    का और भंगी का काम कर और गांव के बड़ी

    उमरवाले ी-पु ष व ब च को पढ़ाव।

    8 आज हंदु तान का जो दोहरा व प तय हु आ

    है, उसके अनुसार दोन शै लय और दोन

    ल पय के साथ वे रा भाषा हंदु तानी सीख ल,

    ता क जब हंद या उदू बोल जाए अथवा नागर

    या उदू ल प लखी जाए, तब उ ह वह नयी न

    मालूम हो।

    9 व याथ जो भी कुछ नया सीख, उस सब को

    अपनी मातृभाषा म लख ल और जब वे हर

    ह ते अपने आसपास के गांव म दौरा करने

    नकल, तो उसे अपने साथ ले जाएं और लोग

    तक पहु ंचाए।

    10 वे लुक- छपकर कुछ न कर, जो कर खु लम-

    खु ला कर। अपने हर काम म उनका यवहार

    बलकुल शु हो। वे अपने जीवन को संयमी और

    नमल बनाय। कसी चीज से न डर और नभय

    रहकर अपने कमजोर सा थय क र ा करने म

    मु तैद रह और दंग के अवसर अपनी जान क

    परवाह न करके अ हंसक र त से उ ह मटाने

    को तैयार रह। और जब वरा य क आ खर

    लड़ाई छड़ जाए, तब अपनी सं थाएं छोड़कर

    लड़ाई म कूद पड़ और ज रत पड़ने पर देश क

    आजाद के लए अपनी जान कुरबान कर द।

    11 अपने साथ पढ़नेवाल व याथ बहन के

    त अपना यवहार बलकुल शु और

    स यतापूण रख।

    मृदुला गग के ‘अ न य’ उप यास का पा

    अ विजत अपने म से कहता है, ‘‘गांधीजी ने

    छुपकर काम करने को गलत बतलाया था।

    उ ह ने सभी भू मगत व ो हय को सलाह द थी

    क वह सरकार के आगे समपण कर दे।’’24

    अ विजत गांधीजी वारा दए गए स ांत को

    दोहराते हु ए कहता है, ‘‘उ ह आ म याग और

    वे छापूवक हण क गयी द र ता क कला

    और सुंदरता को समझना होगा या उ ह रा य

    नमाण के काय म लग जाना चा हए, उ ह वयं

    हाथ से कात बुनकर ख र का चार करना

    चा हए। उ ह जीवन के येक े म एक दूसरे

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    के साथ नद ष संपक था पत करके लोग के

    दय म सां दा यक ए य का बीज होना चा हए।

    वयं अपने उदाहरण वारा अ पृ यता का

    येक प म नवारण करना चा हए और

    नशेबाज के साथ संबंध था पत करके अपने

    आचरण को प व रखकर मादक चीज के याग

    का सार करना चा हए। यह सेवाएं ह िजनके

    वारा गर ब क तरह नवाह हो सकता है जो

    लोग गर बी म न रह सकते हो ,उ ह छोटे

    रा य धंध म पड़ जाना चा हए िजससे वेतन

    मल जाए।’’25

    आ थक समानता जब से अथ यव था म बाजार का त व दा खल

    हुआ है, तब से पूंजी और मजदूर का झगड़ा और

    संघष बढ़ गया है। ाचीनकाल से आ थक

    समानता के संबंध म अनेक वचार य त कए

    गए। गांधीजी ने इस संबंध म ‘ ट शप’ का

    वचार रखा। धनवान को उ ह ने स पि त का

    मा लक न मानते हु ए ‘ ट ’ माना। जमनालाल

    बजाज ने वयं को इस कसौट पर स कया।

    गांधीजी का मानना था क दु नया क अथरचना

    ऐसी हो िजसम कसी को भी अ न और व के

    अभाव क तकल फ न सहनी पड़े। उनक ि ट

    म आ थक समानता अ हंसापूण वरा य क

    मु य चाबी है। आजाद आंदोलन म अनेक लोग

    ने वचारपूवक ऐि छक दा र य को अपनाया।

    धनवान होने के बाद भी वयं को संपि त का

    ट माना और आजाद आंदोलन म सभी कार

    से सहायता दान क । यह वचार स या ह क

    ेणी म ह आता है। गांधीजी ने पू ंजी को दोषी

    न मानते हु ए उसके दु पयोग क ओर संकेत

    कया। आ थक समानता था पत होने पर ह

    अ हंसक समाज रचना बनेगी।

    मु ंशी ेमचंद के ‘कमभू म’ उप यास म रेणुका को

    ारंभ म अपने धन का बहु त घमंड रहता है।

    बाद म उसक भी गांधी वचार पर आ था बढ़

    जाती है। जब डा◌ॅ.शां तकुमार अपना आ म

    चलाने के लए रेणुका के पास पया मांगने जाते

    ह, तब रेणुका कहती है, ‘‘अगर आप कोई ट

    बना सक, तो म आपक कुछ सहायता कर

    सकती हू ं। बात यह है क िजस स पि त को

    अब तक संचती आती थी, उसका अब

    भोगनेवाला नह ं है।...मुझे आप गुजारे के लए

    सौ पये मह ने ट से दला द िजएगा।’’26

    रेणुका भी रचना मक काय क ओर अ सर हो

    जाती है। वह कहती है, ‘‘मं दर तो य ह इतने

    हो रहे ह क पूजा करने वाले नह ं मलते।

    श ादान महादान है और वह भी उन लोग म,

    िजनका समाज ने हमेशा ब ह कार कया

    हो।.... ट बनाना पहला काम है। मुझे अब कुछ

    नह ं पूछना है! आपके ऊपर मुझे पूरा व वास

    है।’’27

    न कष ह द उप यास म रचना मक काय म का

    यापक प से च ण कया गया है। वाधीनता

    आंदोलन और उसके बाद लखे गए उप यास म

    इनक चचा क गयी है। ये रचना मक काय म

    कथानक म गूंथ दए गए ह। यथाथ के धरातल

    पर उतरकर देखने से इन रचना मक काय म

    का मह व समझ म आ जाता है। रा नमाण

    के लए इनक ासं गकता असं द ध है।

    संदभ ंथ 1 बाप-ूकथा, ह रभाऊ उपा याय, पृ ठ 19-20 2 ेमा म, ेमचंद पृ ठ 15-16 3 बाप-ूकथा, ह रभाऊ उपा याय, पृ ठ 125

    4 गबन, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 133 5 बाप-ूकथा, ह रभाऊ उपा याय, पृ ठ 199

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ ैल 2020

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 8, Issue 6 17

    6 रंगभू म, ेमचंद, पृ ठ 25

    7 बाप-ूकथा, ह रभाऊ उपा याय, पृ ठ 35 8 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 12

    9 कमभू म, मु ंशी 5 ेमचंद, पृ ठ 91 10 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 125 11 देश ोह , यशपाल, पृ ठ 96 12 बाप-ूकथा, ह रभाऊ उपा याय, पृ ठ 7 13 तमस, भी म साहनी, पृ ठ 51 14 रचना मक काय म, अन.ु का शनाथ वेद , पृ ठ 15

    15 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 57 16 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 78

    17 सेवासदन, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 18 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 85 19 रंगभू म, ेमचंद, पृ ठ 91 20 पहला गर म टया, ग रराज कशोर, पृ ठ 614 21 टेढ़े मेढ़े रा त,े भगवतीचरण वमा, पृ ठ 213 22 देश ोह , यशपाल पृ ठ 46 23 देश ोह , यशपाल पृ ठ 65

    24 अ न य, मृद ुला गग, पृ ठ 113 25 अ न य, मृद ुला गग, पृ ठ 131

    26 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 166 27 कमभू म, मु ंशी ेमचंद, पृ ठ 167