राजèथान क ' फड़ लोक कला का...

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E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं कȧ अंतरा[çĚȣय मासक शोध पǒğका 17 अÈटू बर 2019 पीअर रȣåयूड रेĥȧड ǐरसच[ जन[ल This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 12 13 राजèथान कȧ फड़ लोक कला का अÚययन जाéनवी पाÖडेय (शोधाथȸ) Ĥोफे सर चğलेखा संह (संकायाÚय¢) मानवकȧ सामािजक एवं ललत कला संकाय मेवाड़ वæववɮयालय गंगरार, च×तौड़गढ़, राजèथान, भारत शोध सं¢ेप राजèथान अपनी लोक कलाओं क े लए दु Ǔनया मɅ Ĥसƨ है यहाँ क े हरेक ¢ेğ कȧ लोक कला वशेष मह×व रखती है। राजèथान क े भीलवाड़ा िजले मɅ फड़ लोक कला मɅ सभी कलाओं का समावेश है भोपा जनजाǓत कȧ वरासत फड़ मɅ कला, संगीत और साǑह×य का समावेश है कलाकार इसे फड़ पर चǒğत करते हɇ और गीतɉ मɅ इसका वण[न करते हɇ। यहाँ क े कलाकारɉ ने इसे सैकड़ɉ वषɟ से सहेज कर रखा है Ĥèतुत शोध पğ मɅ फड़ लोक कला कȧ आधुǓनक परàपरा का अÚययन कया गया है Ĥèतावना राजèथान को लोक कला कȧ खान कहा गया है , Èयɉक यहां पर अनेक लोक कलाएं हɇ और हर एक लोक कला अपने -अपने ¢ेğ मɅ वशेष मह×व रखती है। इÛहȣं लोक कलाओं मɅ से एक फड़ कला है। इसके बारे मɅ कहा जाता है क इस शैलȣ का जÛम लगभग 700 वष[ पूव[ मेवाड़ èकू ल कȧ लोक कला शैलȣ के नाम से हु आ है। हर जगह कȧ अपनी एक संèकृ Ǔत होती है। एक देश कȧ संèकृ Ǔत जब दूसरे देश मɅ जाती है तो दोनɉ देशɉ कȧ संèकृ Ǔतयɉ का आपस मɅ आदान- Ĥदान होता है। भारत मɅ अकबर का शासन आया तो उस समय संगीत मɅ काफȧ बदलाव आया। भीलवाड़ा वèğ Ǔनमा[ण और फड़ कला के लए जाना जाता है। फड़ चğकला शाहजहां के शासनकाल मɅ शाहपुरा पहु ंची और पछले 200 वषɟ से भीलवाड़ा मɅ जमी हु ई है। फड़ शैलȣ मɅ राजèथान के लोक देवताओं कȧ शौय[ गाथाओं का तथा उनसे संबंधत घटनाओं का चğण कया जाता है। भारत एक वशाल देश है। इसे जाǓतयɉ जनजाǓतयɉ एंव उप जाǓतयɉ का संĒहालय माना जाता है। राजèथान कȧ वभÛन लोक शैलयɉ मɅ एक मह×वपूण[ शैलȣ है फड़। इसकȧ Ĥाचीन संèकृ Ǔत आज भी लोक के èवǾपɉ मɅ खोजी जा सकती है। देखा जाए तो तेरहवीं शताÞदȣ के बाद राजपूत शैलȣ व मुगल शैलȣ के मĮण से मेवाड़ लोक शैलȣ का जÛम हु आ।

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  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ टूबर 2019

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 12 13

    राज थान क फड़ लोक कला का अ ययन

    जा नवी पा डेय (शोधाथ )

    ोफेसर च लेखा संह (संकाया य )

    मान वक सामािजक एव ंल लत कला संकाय

    मेवाड़ व व व यालय

    गंगरार, च तौड़गढ़, राज थान, भारत

    शोध सं ेप राज थान अपनी लोक कलाओं के लए दु नया म स है। यहाँ के हरेक े क लोक कला वशेष मह व रखती है। राज थान के भीलवाड़ा िजले म फड़ लोक कला म सभी कलाओं का समावेश है। भोपा जनजा त क वरासत फड़

    म कला, संगीत और सा ह य का समावेश है। कलाकार इसे फड़ पर च त करते ह और गीत म इसका वणन करते ह। यहाँ के कलाकार ने इसे सैकड़ वष से सहेज कर रखा है। तुत शोध प म फड़ लोक कला क आधु नक पर परा का अ ययन कया गया है।

    तावना राज थान को लोक कला क खान कहा गया है,

    य क यहां पर अनेक लोक कलाएं ह और हर

    एक लोक कला अपने-अपने े म वशेष मह व

    रखती है। इ ह ं लोक कलाओं म से एक फड़

    कला है। इसके बारे म कहा जाता है क इस

    शैल का ज म लगभग 700 वष पूव मेवाड़

    कूल क लोक कला शैल के नाम से हुआ है।

    हर जगह क अपनी एक सं कृ त होती है। एक

    देश क सं कृ त जब दूसरे देश म जाती है तो

    दोन देश क सं कृ तय का आपस म आदान-

    दान होता है। भारत म अकबर का शासन आया

    तो उस समय संगीत म काफ बदलाव आया।

    भीलवाड़ा व नमाण और फड़ कला के लए

    जाना जाता है। फड़ च कला शाहजहां के

    शासनकाल म शाहपुरा पहु ंची और पछले 200

    वष से भीलवाड़ा म जमी हु ई है। फड़ शैल म

    राज थान के लोक देवताओं क शौय गाथाओं का

    तथा उनसे संबं धत घटनाओं का च ण कया

    जाता है।

    भारत एक वशाल देश है। इसे जा तय

    जनजा तय एंव उप जा तय का सं हालय माना

    जाता है। राज थान क व भ न लोक शै लय म

    एक मह वपूण शैल है फड़। इसक ाचीन

    सं कृ त आज भी लोक के व प म खोजी जा

    सकती है। देखा जाए तो तेरहवी ंशता द के बाद

    राजपूत शैल व मुगल शैल के म ण से मेवाड़

    लोक शैल का ज म हुआ।

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ टूबर 2019

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 12 14

    फड़ कला धा मक आ थाओं के तीक से जुड़ी

    रह । फड़ म ऐस ेलोकनायक ह जो अपने धम से

    लोक आ था के क बनकर देवता व प पूजे

    जाने लगे। फड़ कला और महान फड़ च कार

    वग य ी लालजी जोशी दोन एक दूसरे के

    पयाय ह।

    लोक देवी देवताओं म सवा धक लोक य

    दुगापाल जी राठौड़, गोगाजी, देव नारायण जी,

    दशा माता, महादेव जी, सूरज नारायण, डाडा

    बाबा जी, भंवरालाल जी, शीतला माता, रामदेव

    जी आ द ह। इनक फड़ लोक मंगल क धा मक

    भावना लए होती है। राज थान म इस लोक

    कला शैल को अंतरा य या त दलवाने वाले

    सु स च कार ी लाल जी जोशी ह। इ ह ं के

    पूवज वारा इस शैल को वक सत कया गया।

    फड़ का मह व

    राज थान क सं कृ त म फड़ बांचन ेक वशेष

    पंरपरा है, जो कसी अ न ट क आंशका दूर

    करने हेतु मनौती के प म क जाती है। फड़

    का वाचन अ छे तर (खुल जगह) या चौपाल

    पर पूण आ था और ा के साथ कया जाता

    है। लोक नायक के जीवन काल म मु य घटना

    को च त करने क परंपरा बहु त ाचीन है।

    इससे पूव यह च प थर पर बनाए जाते थ,े

    कंतु प थर को इधर-उधर लान-ेले जाने म बहु त

    क ठनाई होती थी। इसी कारण इन गाथाओं को

    कपड़ ेपर च त कया जाने लगा।

    देश क वतं ता के प चात ् इन च म भी

    यवासा यक ि ट से काफ बदलाव हुआ और

    इ ह बाजार क मांग के अनुसार तैयार कया

    जाने लगा। वग य लालजी जोशी के प रवार म

    ी अ भषेक जोशी ने फड़ के नवीन च म

    व ड रकॉड बनाया है। ये मूलतः शाहपुरा के ह।

    फड़ म आयताकार कपड़ा होता है। इस पर

    थानीय राजाओं और लोकनायक के जीवन को

    च त कया जाता है। सूती या रेशमी कपड़े पर

    लाल, नारंगी और चटक रंग का योग कर

    कनार पर ठ पे लगाए जाते ह। इस कपड़े के

    दोन ओर बांस के डंडे लगाए जाते ह, िजससे

    एक थान से दूसरे थान पर आसानी से ले

    जाया जा सके।

    लोक देवता पाबू जी, रामदेव जी, गोगाजी,

    देवनारायण जी क जीवन कथा पर आधा रत

    बहु मू य फड़ च आज भी जमनी ांस टेन

    आ द कई देश के कला संगहालय एंव भारत के

    सं हालय, कलाकार के नजी सं ह म द शत

    ह। इस कला क वशेषता यह है क कलाकार

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 अ टूबर 2019

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 12 15

    फड़ संगीत च को देखते हु ए गायक करते ह।

    फड़ च बनाकर चार- सार करते ह।

    राज थानी फड़ संगीत को भोपा और भेपी के

    वारा गया और बजाया जाता है। इसम भोपा

    जंतर वा य और मार, रावणह था आ द वा य को

    बजाकर भोपा नृ य करता है और भेपी साथ म

    गाती है। यह फड़ संगीत चोचू बाट अपनी भाषा

    म पूवज क कहानी गाँव-गाँव म सुनाता है और

    रामदेव जी गोगा जी, तेजा जी, पाबू जी क फड़

    को बनाते है। उसक सबसे पहले पूजा आर भ

    करने के प चात ् उस फड़ च ण को देखते हु ए

    गात-ेबजाते है।

    राज थान म ह गौ नृ य भी बहु त स है।

    अपने -अपने अलग बह पया से भी संगीत को

    गाते बजाते है। भार जा त के लेाग भी अपने

    संगीत का चार फड़ संगीत को बांचते थे और

    गुजर जा त के लोग भी देवनारायण को अपना

    इ ट देवता मानते थे, जो खुद ह गुजर समुदाय

    के थे।

    चोचू बाट के वारा बतायी गयी कहानी के

    अनुसार नाग देवता का च सर पर छ , ल बी

    मूंछे, पोशाक पहने हु ये इस कार पूर कहानी को

    सुनकर हमारे पूवज एक रेखा खीच जो फड़ च

    के प म तैयार हो गयी और उसको देख-देख

    कर गा-गा गाकर चार सार करने लगे।

    स दभ थ मनोज जोशी जी वारा सा ा कार के अनुसार

    (राज थान च तौड़गढ़) व दना जोशी जी वारा सा ा कार के अनुसार

    ( च तौड़गढ़) अ भषेक जोशी वारा सा ा कार (शाहपुरा) क याण जोशी जी वारा (भीलवाड़ा)

    कैलाश जी और मंजू जी (भोपा और भोपी के वारा)(चदें रया)