Transcript
  • 1

    SCHEME FOR AWARD OF FELLOWSHIP TO OUTSTANDING

    PERSONS IN THE FIELD OF CULTURE

    Senior Fellowship for 2013-14

    FINAL DOCUMENTS

    File No.CCRT/SF-3/128/2015

    Field: Folk/Traditional and Indigenous Arts

    Sub-Field: Folk Music

    शीर्षक : बिहार के लोकगीतों का संकलन एवं उसके समजीत एवं सांस्कृततक महत्व।

    From: Upendra Kumar Choudhary C/o Mukesh Kumar, Nand Bhawan, New Bigrahpur, Mithapur Bus Stand, PO-GPO Patna, Mob:- 9304646636 Email: [email protected]

    To The Director Centre for Cultural Resources & Training, (Ministry of Culture), 15A, Sector-7, Dwarka, New Delhi-110075.

    mailto:[email protected]

  • 2

    अपनी बात

    वैदिक ॠचाओं की तरह लोकसंगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेिनाओं के सहजतम उद्गार हैं। लोकगीत लोक के गीत हैं। जजन्हें कोई एक व्यजतत नह ं िजकक पूरा लोक समाज अपनाता है। ये लेखनी द्वारा नह ं िजकक लोकजजकवा का -

    सहारा लेकर जन-मानस से तनआसतृ होकर िःज तक जीनवत है। सामान्यतआ लोक में प्रचललत, लोक द्वारा रचचत एवं लोक के ललए ललखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यजततत्व को लोक समनपषत कर िेता है। शास्रीय तनयमों की नवशेर् परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के ललए मानव अपने िःनन्ि की तरंग में जो छन्िोिद्ध वाणी सहज उद्भूत करता है, वह लोकगीत है। इस प्रकार लोकगीत शब्ि का अर्ष है-

    1. प्रचललत गीत लोक में

    2. लोकरचचत गीत-

    3. लोकनवर्यक गीत-

    लोकगीत तो प्रकृतत के उद्गार हैं। सादहत्य की छंििद्धता एवं अलंकारों से मुतत रहकर ये मानवीय संवेिनाओं के संवाहक के रूप में माधयुष प्रवादहत कर हमें तन्मयता के लोक में पहंुचा िेते हैं। लोकगीतों के नवर्य, सामान्य मानव की सहज संवेिना से जुड ेहुए हैं। इन गीतों में प्राकृततक सौंियष, सुख -िआुख , नवलभन्न संस्कारों और जन्म से मतृ्यु तक को िड़ ेह हृियस्पशी ढंग से गाया जाता है। अतआ कहा जा सकता है कक संगीतमयी प्रकृतत जि गुनगुना उठती है लोकगीतों का स्फुरण हो उठना स्वाभानवक ह है। नवलभन्न ॠतुओं के सहजतम प्रभाव से अनुप्राणणत ये लोकगीत प्रकृतत रस में ल न हो उठते हैं।

    सामाजजकता को जजंिा रखने के ललए लोकगीतों /लोकसंस्कृततयों का सहेजा जाना िहुत जरूर है। कहा जाता है कक जजस समाज में लोकगीत नह ं होत,े वहां पागलों की संख्या अचधक होती है। सदियों से ििे -कुचले समाज ने , खास कर मदहलाओं ने सामाजजक िंश /अपमान/रर-पनरवार के तानों/जीवन संरर्ों स ेजुड़ी िःपा-धापी को अलभव्यजतत िेने के ललए लोकगीतों का सहारा ललया। लोकगीत ककसी काल नवशरे् या कनव नवशरे् की रचनाएं नह ं हैं। अचधकांश लोकगीतों के रचइताओं के नाम अज्ञात हैं। िरअसल एक ह गीत तमाम कंठों से गुजर कर पूणष हुई है। मदहलाओं ने लोकगीतों को ज़िन्िा रखने में महत्वपूणष योगिान दिया है। िःज वैश्वीकरण की िःंधी में हमने अपनी कलाओं को तहस -नहस कर दिया है। अप नी संस्कृततयां अनुपयोगी /िेकार सी जान पड़ने लगी हैं। लोककर्ा की भााँतत लोकगीत भी हमें मानव की परंपरागत वसीयत के रूप में प्राप्त हैं।

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5

  • 3

    िाि अर्वा नानी के पास िैठकर िचपन में जो लोकगीत सुनी जाती है, इनका तनमाषण कि, कहााँ कैसे और ककसके द्वारा हुिः, यह िताना असंभव है।

    राष्ट्रनपता महात्मा गांधी ने लोकगीत के संिंध में कहा र्ा- कक लोकगीतों में धरती गाती है, पवषत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधरु कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं।

    बिहार की माती की अपनी सुगंध है और यहााँ के लोकगीत की िःवाज सूर नाम से ले कर लसगंापूर तक गई है यहााँ मैचर्ल , िजजजका, भोजपुर , मागधी, अचंगका िःदि कोयल की सुंिर भार्ाऐं हैं। यहााँ धालमषक लोकगीत, सामाजजक लोकगीत, पेशागीत , जातीय लोकगीत और नवलभन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोकगीत-संगीत, िःदि काफी प्रलसद्ध है। लोकगीतों में संस्कार गीत का, जो की नवलभन्न स्तनों एवं समाज में अगल-अलग होते है, का अत्यंत अचधक महत्व है। इन गीतों से उस समय के समाज के िारे में पता चलता है। उस समय की समजीत व्यवस्र्ा, मातनता, धारणाएाँ एवं मानवीय मूकयों की अवस्र्ा ज्ञात होता है।

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80

  • 4

    नवर्य सचूी

    अध्याय विषय पषृ्ठ संख्या

    पषृ्ट्टभलूम 6

    1 लोकगीतों में संगीत तत्व 7-11

    2 मगह लोकगीत

    सोहर गीत (9); जन्मोत्सव सम्िन्धी गीत (35); मुण्डन गीत (41); जनेऊ के गीत (44); सगुन के गीत (49); लगन गीत (52); चुमावन गीत (53); उिटन के गीत (55); कलसा गीत (58); तरउढार के गीत (61); पैरपूजी (63); िेटा-नववाह गीत (64); िेट -नववाह गीत (72); नहछू (79); जोग-माँगाई (80); पनरछन (84); वैवादहक झूमर(86); िेट -बििाई (89); िेटा-पतोह-पनरछन (94); गौना के गीत (95); िोंगा के गीत (97); लशव नववाह गीत (98); श्रम गीत(101); अन्य गीत(112); मुजस्लम संस्कार गीत (113)।

    12-131

    3 भोजपरु लोकगीत

    सोहर गीत(139); छठ गीत(145); कीर्त्षन (146); फगुिः के गीत (149); तनगुषण (150); लोनरयााँ (153); गंगा स्नान के गीत (161); रक्षा िंधन के गीत (164); चौर्ा चंिा के गीत (165); पराती लोकगीत (168); नववाह गीत (171)।

    132-185

    4 भोजपरु गार्ा/लोकगार्ा गीत

    िःकहा-ऊिल

    186-208

    5 मचैर्ल लोकगीत

    छठ गीत (206); कीतषन (216); सांसरिक

    209-284

  • 5

    लोकगीत:- सोहर गीत (223); मुंडन गीत (231); खेलौना लोकगीत (235); ऋतु लोकगीत:- चौमासा (238); िारहमासा (244); कजर (252); चैतावर (255); मलार (259); बिरहा (262); जट-जदटन (264); वसंत (269); फागु (271); लगनी (276); ततरहुत (278)।

    6 दहन्ि लोकगीत

    सोहर गीत (282); मेंहि गीत (289); जेवनार गीत (295); िेट -बििाई गीत (300); अन्य लोकगीत (302)

    285-310

  • 6

    पषृ्टभूमि

    बिहार भारत का एक प्राचीन राजय है एवं इसकी संस्कृतत तनराल है। यहााँ की शास्रीय संगीत िहुत ह प्रलसद्ध है। शास्रीय संगीत की तरह यहााँ के पौराणणक लोकगीत भी िहुत प्रलसद्ध है, जोकक एक साधारण व्यजतत के जीगन केन नवलभन्न रटनाओं के सार् जुड़ ेरहें है। हमारे राजय के ग्रामीण इलाकों में भ्रमण एवं िजुुगष पीढ़ के लोक कलाकारों से लमलने के िौरान िहूाँ से लोगकीट सनुने को लमलें हैं जो कक रोमाचंचत करने वाल एवं समाज के ललए अतत महत्वपणूष है। िहुत से लोकगीत अतत जीणष-शीणष अवस्र्ा में भी लमले हैं जो कक स्र्ातनक समाज एवं सनस्ततृत से जड़ुा हुिः है, जजसे संरक्षक्षत करना िःवश्यक है। इन्हें संरक्षक्षत एवं पणूष जीनवत करने का िातयत्व भारत सरकार से संस्कृतत मंरालय ने हमें दिया है। हमारा भरपरू प्रयास है कक हराई लपु्त होती अर्वा जीणष-शीणष अवस्र्ा से प्राप्त लोकगीतों का संकलन कर सके, उसकी संस्कृतत अपनी पणूष गनरमा के सार् स्र्ानपत हो सके तर्ा िःनेवाल पीढ़ को अपने पारंपनरक लोकगीत कफर से समाज में परू मयाषिा एवं अजस्मता के सार् प्राप्त हो सके।

  • 7

    अध्याय-1 लोकगीतों िें संगीत तत्ि

    लोकगीत और संगीत िोनों का ह उद्गम और नवकास प्रकृततक पनरवेश में स्वतआ हुिः है। इस गंगीत ने समग्र चर-अचर प्रकृतत में भावनात्मक, संवेिनात्मक गहराई िेकर सिको मुग्ध ककया। संगीत और काव्य िोनों के सजम्मश्रण से ह गीत िःनंिायक और भावनात्मक िनते है। अपनी गेयता के कारण ह गोकगीत कणषनप्रय हैं िःहुर लोकमानस में संचचत, सुरक्षक्षत होते हैं। लोक गीतों में संगीत अपनी पूणष सरलता और समरसता के सार् नवद्यमान रहता है। प्रत्येक अवसर के गीतों की लय अवसर के उपयुतत वातावरण के सार् संताल सुनायी पड़ती है। ऋतु गीतों में यदि झूले के गीतों मैं सावनी िहार की भांतत मीठी फुहारें हैं तो फाग गीतों की अपनी अलग मस्ती है। नववाह गीतों में हर्ष की प्रततध्वतन के सार् िेट की नविाई की मालमषकता भी है। सोहर गीतों में पुर जन्म के उछाह की ध्वतन स्पष्ट्ट सुनी जा सकती है। श्रम गीतों में एसएचिःरएम के कारण स्वांस के उतार चढ़ाव का प्रभाव इन गीतों की धनु पर स्पष्ट्ट है। लोकगीतों में संगीत की दृजष्ट्ट से महत्व िताते हुए डॉ॰ चचतंामणण उपाध्याय कहत ेहैं:- “संवेिनशील मानव हृिय के भाव सहजतआ जि मुख से अलभव्यंजजत होत ेहैं, स्वर एवं लयिद्ध हो जाने के पश्चात एक तनजश्चत धुन, गेय पद्धतत में प्रकट होते हैं। इन लोकधुनों की संख्या अनंत है। भारत के प्रत्येक जनपि में जजतने भी लोकगीत प्रचललत हैं, उनकी नवशरे् धुन है, ये धुनें तनसगष लसद्ध हैं। इन्ह ं लोक धुनों में भारतीय संगीत के प्रत्येक राग तछपे हैं।” गीत और संगीत िोनों ह मनुष्ट्य के िःदि सहचर हैं जो हमारे हृियगत भावों को स्पष्ट्ट करने के िःदि साधन हैं। भारतीय संगीत में लोक संगीत का नवलशष्ट्ट स्र्ान है। लोकगीतों की लोकनप्रयता में वाद्य और नतृ्य िहुत सहायक हैं। वाद्य मानव का चचर सहचर है। िःदि मानव ने पत्र्र, काष्ट्ठ, िााँस के वाद्य यंरों का प्रयोग ककया। हर्ोदे्रक को अलभव्यतत करने के ललए उसने जो उछल कूि की उसी से नतृ्य कला का जन्म

  • 8

    हुिः। भ्रमरों की गुंजार, कोयल की मीठी कूक तर्ा मयूरों के मधरु स्वर ने मानव को संगीत प्रेमी िनाया। संगीत सम्पूणष नवश्व की भार्ा है। कभी-कभी हादिषक भावनाओं को व्यतत करन ेमें जि शब्िों की भार्ा मूक हो जाती है, ति संगीत या िसूरे शब्िों मीन शुद्धवाि की भार्ा नैसचगषक अलभव्यजतत का साधन िन जाती है। सभ्यता और संस्कृतत के नवकास के सार् ह गीत और संगीत व्यवजस्र्त होते गये और गेय जातक, बरनपटक िःदि प्राचीन ग्रन्र्ों में लमलता है। डॉ धीरेंद्र वमाष, डॉ िािुराम सतसेना, सुनीता कुमार चटैजी, चग्रयसेन, चग्रम िःदि भार्ा वैज्ञातनकों का कर्न है कक भार्ा कक उत्पनर्त् से पूवष ह इंचगत भार्ा एवं कंठ स्वर का जन्म हुिः। यह सती है कक नवश्व कक समस्त भार्ाओ कक उत्पनर्त् से पूवष गायन कला का जन्म हुिः। इसी गायन कला के लोक संस्कृतत के रूप को हम अर्वषवेि में पाते है। संगीत शब्ि कक उत्पनर्त् गीत शब्ि से हुई है। गीत शब्ि कक रचना संस्कृत के “गे” धातु से हुई है। इसी “गे” से गेय और गीत शब्ि कक उत्पनर्त् मानी गयी है। अर्ाषत कोई भी शाजब्िक अर्वा स्वनरत रचना जो गायी जा सके, उसे गीत कहते हैं। इसी िःधार पर भारतीय संगीत में गीत शब्ि के अवयव, लक्षण गीत, सरगम गीत, चतैा, कजर अर्वा अन्य गोकगीत हैं। गीत के तीन अवयव कहे जा सकते हैं- शब्ि, स्वर, लय। इन्ह ं तीनों काव्य के िदहपषक्ष कक समजष्ट्ट के सार्-सार् काव्य के अतंरपक्ष अनुभूतत के सजम्मश्रण के ह गीत कक उत्पनर्त् हुई। यह लशद्ध सत्य है कक शास्रीय संगीत कक उत्पनर्त् लोक संगीत से हुई है।

    लोकगीतों िें संगीत के तत्िों का विश्लेषण: यह सत्य है कक लोक सगंीत लोकाचारों और उससे उत्पन्न गीतों का प्राण है। भोले-भाले सरल ग्राम्य जीवन में यह मनोरंजन के साधन हैं, जजनमें ग्राम्य जीवन, उनकी सूझ

  • 9

    िुझ, उनकी चचतंन शजतत, उनके िैतनक जीवन और सहज व्यजततत्व कक अलमट छाप लमलती है। लोकसंगीत का मापिंड ह लोक जीवन है जो लौककक होत े हुए भी सरल, िःनंिमय, अलौककक है। लोकगीतों में समाज, व्यजतत और वातावरण का इतना प्रभाव पड़ा कक संगीत में स्वरों के ग्रह (जजस स्वर से प्रारम्भ करें) अशं (िीच का स्वर), न्यास (जजस स्वर से अतं करें) की प्रवतृत गीत के भावानुकूल ह दिखलाई पड़ती है। यह कारण है की लोकधनुें अपने वातावरण के सार् समरस हैं। ये धनुें सहज एवं प्रकृततक हैं। इनमें कृबरमता लेश मार भी नह ं है। िःदिकाल में भारतीय संगीत में तीन स्वरों का प्रयोग र्ा- उिार्त्, अनुिार्त् और स्वनरत। इन स्वरों के पश्चात माध्यम और पंचम स्वरों की पनरककपना हुई। भारत मुतन के नाती शास्र के समय टक सप्त स्वरों की व्यवस्र्ा हो चकुी र्ी। इस प्रकार दहन्ि भार्ा की उत्पनर्त् के समय टक भारतीय संगीत काफी नवकलसत हो चकुा र्ा और इस समय तक गीतों की प्रारजम्भक अवस्र्ा स्वर मुर्चछषनाओं, ग्राम राग, जातत गायन से होता हुिः राग रूप में प्रस्फुदटत हो गया। भारतीय संगीत मैं सरगम का नवशरे् महत्व है। लोकगीतों में पुरुर्ों द्वारा गाये गये गीत (श्रमगीत, जातत गीत, चतैा िःदि) एवं जस्रयों द्वारा गाये गये (संस्कार गीत, श्रमगीत, ऋतुगीत िःदि) की स्वर संयोजना में तनतांत लभन्नता दिखाई पड़ती है। पुरुर् वगष की गंभीर ध्वतन के सार् उनके स्वरों के चयन में भी गंभीरता दिखाई पड़ती है। इसमें ऋर्भ और गांधार पर नवशरे् िल दिया जाता है। जैसे कक चतैा, बिरहा, अह रों का बिरहा धोबियों का, िःदि कक स्वर संयोजना से स्पष्ट्ट होता है। जस्रयों के गीत कोमल भावनाओं से इतने अचधक प्रभानवत होते हैं कक इन द्वार लहनरयों में मध्यम स्वर एवं पंचम स्वर के सार् सुद्ध (तन) अर्वा कोमल (तन) का प्रयोग प्राप्त होता है। जसैा कक ‘उलार’, ‘नववाह गीत’ ‘सहाना’ िःदि की स्वर संयोजन से स्पष्ट्ट होता है। श्री कोमल कोठार का कर्न है-

  • 10

    “लोकतीत के संगीन में लय की सहज प्रवनृर्त् की प्रधानता है। यहााँ लय का तलात्मक शास्रीय नवधान नह ं है। शास्रीय संगीत में लय का नवकास ताल की माराओ ंके सुतनजश्चत गणन एवं गुणन कीग जदटलताओं में नवभाजजत रहता है ककन्तु इसके नवपर त लोक संगीत में लय की सहज प्रवनृर्त् माताओं के नवलशष्ट्ट भाग में नवभाजजत रहती है।” ग्रामीण जनता तनरक्षर होते हुए भी ज्ञान के सुनहरे रत्नों से पनरपूणष है। उनका िःिशष है सावषभौलमक मानव जीवन का ऐतय। अनेक प्रान्तों, िेशों, जनपिों की सीमाओं में नवभतत होत ेहुए भी इन लोकगीतों एवं उनकी रचनाओं में यर्ेष्ट्ट समान्यताएाँ प्रपट होती हैं। इन समान्यताओं का संिंध नवसलभन्न जाततगत संस्कारों और उनकी िःत्मानुभूतत से संिजन्धत भावों से है। नवलभन्न भावों को नैसचगषक सहजता के सार् व्यतत करना इन लोकगीतों की शैल है। इन अलभव्यजतत में शब्ि, पंजतत, छंि, गीत इन चारों को स्वर-रूपी एक सूर में गुंकफत करने का सफल प्रयास लोकगीतों में लमलता है। लोकगीतों के शब्ि और स्वर की सकती में तािात्म्य भाव है। उनका अन्योन्य संिंध है। जीवन की सहज अलभव्यजतत स्वरों के सरल और सहज चयन के सार् इतनी रुल लमल गयी है कक शब्िों को परृ्क नह ं ककया जा सकता है। कुछ स्र्ल तो ऐसे िःते हैं जहां इन नैसचगषक शब्िों और स्वरों को ललनपिद्ध करना भी कदठन हो जाता है।

    लोकगीतों िें चंद औि ताल का सिन्िय

    ताल: जीवन धरण करन ेके सार् ह मानव ताल का अभ्यास ग्रहण करन ेलगता है। श्वास-प्रशवास में एक तालमयता होती है। शर र के नवलभन्न अवयवों की प्रकिया मैं भी एक गतत है। “हृिय की धड़कन में भी एक ताल है। िोलने में लय का संतुलन है। हमार चाल में एक प्रकार की ताल है। वास्तव में िेखा जाय तो प्रतीत होगा कक ताल ह संगीत का वह संिल है जो मानुर्ी के मन को िःग्रहपूवषक संगीत के िःनंि में लगाए रहता है। संगीत में सार् सुनने वाले या गाने वाले के तािात्म्य का प्रारम्भ भी ताल कक गतत से होना संभव है।”

  • 11

    स्ििाघात:- लोकगीतों में गायक अर्वा गातयकाएाँ जजस वणष अर्वा स्वर पर ़िोर िेते हैं, उसे ह स्वरारात कहते हैं। छंि एवं ताल नवश्लेर्ण के ललए इन स्वरारातों का नवशरे् महत्व है। गीतों के चलन और माराओं का प्रमाण इन्ह ं स्वरारातों से लमलता है। ढोलक अर्वा डफ वािक इन स्वरारातों पर नवशरे् ध्यान रखता है।

    लोकगीत औि िाद्य यंत्र : भारतीय संगीत में गीत के सार् गीत की गतत को प्रिलशषत करने के ललए िःवश्यकतानुसार समय-समय पर नवनवध वाद्य यंरों का िःनवष्ट्कार हुिः पर यह कि और कैसे हुिः, यह भी तनश्चयपूवषक नह ं कहा जा सकता।

    ग्रािीण गीत : शष्ट्र य संगीत से लभन्न होते हुिः भी इनमें लय, ताल और धनु का इतना सुंिर सहयोग होता है कक ककसी एक को िसूरे से अलग नह ं ककया जा सकता। लोकगीतों के सार् प्रमुख रूप से ढोलक का प्रयोग होता है। लोकसंगीत पर िजरवाि तनरंतर हावी होता जा रहा है। इसस ेउसकी सहजता और मौललकता िहुत तेजी से प्रभानवत हो रह है। मूल लोकधनुें लुप्त हो रह हैं, इन नवसंगततयों को रोकने हेतु इस पर ध्यान िेने और सतकष रहने कक िःवश्यकता है। यह काम सरकार स्तर पर भी होना चादहए और लोक संगीत के अध्येताओं को और उसके प्रतत समनपषत लोगों को भी व्यजततगत प्रयास करने की अपनरहायषता िःज अनुभव की जा रह है।

  • 12

    अध्याय –2 िगही लोकगीत

    िःदिम काल से लोकजीवन में लोकगीत िनते बिगड़ते और नवकलसत होते रहत े

    हैं। लोककण्ठ इसे अलभव्यतत करते रहा है। िःनषु्ट्ठाणणक कायों में लोकगीतों के गायक की प्रचरुता रह है। इस प्रकार से लोकगीत काल के नवकराल अतंराल को िेधते हुए िःज भी अपने नवलशष्ट्ट रूप में वतषमान है। इंका मौललक तत्व और मौणखक परंपरा हजारों-ह़िार वर्ष से कायम है परंतु लेखिद्ध नह ं होने के कारण इसका प्रामाणणक इततहास- भूगोल नह ं लमलता है। इसके अतीत अजस्तत्व की जानकार के ललए ककसी िेश के पनरतनजष्ट्ठत सादहत्य का अध्ययन- नवश्लेर्ण अपेक्षक्षत होता है। अन्य िेशों की तरह भारतीय लोकगीतों की परंपरा भी मौणखक रह है। अतआ इसके अतीत अजस्तत्व की जानकार के ललए प्राचीनतम वैदिक संदहताओं का अवलोकन करना पड़ता है।

    भारतीय लोकगीतों की परंपरा की तरह ह मगह लोकगीतों की भी परंपरा रह है। मगह लोकगीत का वेगीकरण अनेक नवद्वानों ने अपने-अपने ढंग से ककया है, जो मुख्य रूप से तनम्न है:-

    (क) संस्कार गीत; (ख) किया गीत; (ग) ऋतु गीत; (घ) िेव गीत; (ङ) िाल गीत; (च) नवनवध गीत।

    मगह लोकगीतों के प्रमुख वाहक तत्व उसके (1) गायक; (2) श्रोता; और (3) अलभव्यजतत की शैल या प्रकार होते है। गीतों का प्रमुख तत्व गायक होता है तयोंकक गायक के िःभाव में गीत की अलभव्यजतत कैस े होगी? ये गायक पुस्तक की तरह हैं जजससे गोकगीत पढ़ा या सुना जाता है। परंतु गायक पुस्तक की तरह सहज प्राप्य नह ं। ऐसे गायक प्रायआ िो वगों में पाये जाते हैं (1) स्री वगष और (2) पूरुर् वगष। मैंने जीतन ेलोकगीतों का संकलन ककया है उनमें स्रीवगष की प्रधानता रह है। ये जस्रयााँ अपने रर

  • 13

    की हो सकती है या प्रत्येक गााँव में 1-2 चचचषत गायक जस्रयााँ है जजसके पास गीतों का भंडार रहता है। लोकगीतों के तनमाषण ततंुओं का िसूरा तत्व श्रोता है। सभी प्रकार के गायकों के ललए श्रोता की िःवासयकता होती है, और यक एक अतनवायष तत्व है। लोकगीत का तीसरा तत्व है अलभव्यजतत की शैल या प्रकार। गीतों की अलभव्यजतत या गायन का ढंग अपना अलग होता है। गीत को गायक से सुनने की सह िःनंि िःता है, पढ़ने पर वैसा िःनंि नह ं िःता तयोंकक इनके अपने सुर और लय होत ेहैं। मगह लोकगीत के संकलन के िम में जो लोकगीत जीणष-शीणष अवस्र्ा में लमला उसे संकललत कर ललया जो तनम्न है:-

    नवर्य वस्तु एवं उपयोचगता की दृजष्ट्ट से मगह लोकगीतों का नवशाल भंडार पूजा-पाठ, िेवगीत, संस्कार गीत िःदि अनुष्ट्ठातनक गीतों के अतंगषत िःहें है। संस्कार गीत-िालक-िाललकाओं के जन्मोत्सव, मुण्डन, पूजन, जनेउफ तर्ा नववाह, िःदि पर गाये जाने वाले संस्कार गीत हैं-सोहर, खेलौनो, कोहिर, समुझ िनी, िःदि।

    सोहर रर में सतंान होन ेपर गाया जान ेवाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संिंचधत अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में सतंान के जन्म, उससे संिंचधत कहातनयों और उत्सवों के सुंिर वणषन लमलते हैं। राम जन्म और कृष्ट्ण जन्म की सुंिर कर्ाएाँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ट्ण के जन्मदिन कृष्ट्णाष्ट्टमी के अवसर पर भी भजन के सार् सोहर गाने की परंपरा है।

    https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BE&action=edit&redlink=1https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%80https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%9C%E0%A4%A8

  • 14

    सोहि गीत गीत-1

    छापक पेड़ तछउललया त पतवन धनवन हो तेदह तर ठाढ़ दहनरतनया त मन अतत अनमन हो।। चरतदह ंचरत हनरनवा त हनरनी से पूछेले हो हनरनी ! की तोर चरहा झुरान कक पानी बिनु मुरझलेु हो।। नाह ं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो हनरना ! िःजु राजा के छदठहार तोहे मानर डनरहें हो।। मचचयदह ंिइठल कोलसला रानी, हनरनी अरज करे हो रानी ! मसुिः त सींझलेा रसोइया खलनरया हमें दिदहतू नू हो।। पेड़वा से टााँगिो खलनरया त मनवा समुझाइबि हो रानी ! दहर कफर िेखबि खलनरया जनुक हनरना जजयतदह ंहो जाहु हनरनी रर अपना, खलनरया ना िेइि हो हनरनी ! खलर के खाँजड़ी मढ़ाइबि राम मोरा खेललहेनू हो।। जि -जि िाजेला खाँजुड़या सिि सुतन अहाँकेल हो हनरनी ठादढ ढेकुललया के नीच ेहनरन के बिजूरेल हो।।

    गीत-2 मचचया िइठल तुहूाँ सास,ु त सुनहऽ िचन मोरा हे। सास,ु सपन िेखलूाँ अजगूत, िालक एक सुन्नर हे॥1॥ चपु रहुाँ चपु रहुाँ, पुतहू, त सुनहऽ िचन मोरा हे। पुतहू सुतन पइाँहें गाँमवा के लोग करतइ उपहााँस तोरो हे॥2॥ िःज हकइ सोने के रात, ििुिः एक जलम लेता हे। पुतहू, िःज चानी केरा रात, होनरलवा जलम लेता हे॥3॥ रड़ी रात िीतल पहर रात, अउर अचधए रात हे। ललना, जलम ललहल नंिलाल, महल उठे सोहर हे॥4॥ सासु मोरा उठलन गवइत, ननि िजइवत हे। ललना, सामीजी त माललन फुलवनरया, माललन साँग सार खेलर् हे॥5॥

  • 15

    ऐहो एहो राजा िलुरइता राजा, सुनहऽ िचन मोरा हे। राजा, तोहरा के भेलो नंिलाल, महल उठे सोहर हे॥6॥ पसवा त चगरलइ िेल तर, कउनरया ििूर तर हे। राजा, चलल भेलन अपन महललया, महल उठे सोहर हे॥7॥ कोठे चदढ़ िेखचर्न िलुरइततन, झर रे झरोखे लगी हे। चनेरया, िःज रे उजाड़ी िेह ं िचगया, त फूल तछतराइ िेह ं हे॥8॥ महल में जुमलइ मललतनयााँ, त कर जोड़ी खाड़ा भेलइ हे। रानी, काहे लागी उजड़हइ िचगया, त काहे लागी फूल तछतरहइ हे॥9॥ काहे लागी िााँधहहु मललया, त काहे लागी लोरझोर हे। रानी, िरजहु अपन कोठीवाल, िचगया मत सून करूाँ हे॥10॥ मैं तोरा पूछूाँ मललतनयााँ, त सुनहऽ िचन मोरा गे। माललन, कइसे कइसे कयलें बिलास, मोरा के समुझाय िेंह गे॥11॥ रसे -रसे िेतनयााँ डोलौलूाँ, िःउ फूल तछतराउलूाँ हे। रानी, भउाँ रे रूपे राजा उहााँ गेलन, सभे रस चलूस लेलन हे॥12॥

    गीत-3 पदहला िरि जि िःयल सासु के िोलिल हे। सास,ु लमलल लेहु िाड़ा छछन से, िाड़ा ललक से हे॥1॥ अि सोंठ पीपर नह ं पीिो, नपयर ना पेन्हिो हे। नपया के सेज न जायिो, नपया के सुध ल हट तूाँह ं॥2॥ िसूरा िेिन जि िःयल, गोतनी के िोलावल हे। गोतनी, लमलल लेहु िाड़ा छनन से, िाड़ा ललक से हे॥3॥ अि सोंठ पीपर नह ं पीिो, नपयर ना पेन्हिो हे। नपया के मुाँह न िेखिो, नपया मन िोचधहऽ तूंह ं॥4॥ तेसरा िेिन जि उठल, ननि के िोलावल हे। ननिो, लमलल लेहु िाड़ा छछन से, िाड़ा ललक से हे॥5॥ अि सोंठ पीपर नह ं पीिो, नपयर न पेन्हिो हे। नपया साँग अि न सुतिों, सुततहऽ अि तूाँह ं॥6॥ चउठा िरि जि िःयल, जलमल नंिलाल हे।

  • 16

    अि त सासु हम जील छछन से, जील ललक से हे॥7॥ अि सोंठ पीपर हम पीिो, नपयर हम पेन्हिो हे। अि नपया पास हम जयिो, नपया के िोला िेहु हे॥8॥

    गीत-4 सासु जे गेलन िाल िरे हे, ननि जे गेलन पानी भरे। हमें प्रभु छेकलन डउेदढ़या, अि धतन असगर हे॥1॥ सासु जे अयलन िाल िर के, ननि जे अयलन पानी भर के हे। िहुिः, काहे तोर मुाँहवा नपयरायल, िेह ििुराएल हे॥2॥ लाज सरम के िात सासु कहलो न जाय, सुनलो न जाय। सासुजी, तोहर िेटा छेकलन डउेदढ़या, त िदहयााँ मुरूकक गेल हे॥3॥ जि हम जनती धतन कक लउर िार , अउरो िलुार िार । लनरके में गवना करइती, बििेस चलजइती बिरदहिः नह ं सुनती हे॥4॥

    गीत-5 कउन िािू के िचगया लगावल, जलर्ल हनरयर हे। ललना, कवन िािू हचर् रखवार, कउन चोर चोर कयलन हे॥1॥ िािा मोरा िचगया लगावल, जलर्ल हनरयर हे। ललना, मोरा भइया हचर् रखवार, साहेि चोर चोर कयलन हे॥2॥ एक फर तोड़ले िोसर फर, अउरो तेसर फर हे। ललना, जाचग पड़ल रखवार, िउना डारे िााँधल हे॥3॥ सोिरन के सााँट चोरवा के मारल, रेसमे डोरो िााँधल॥4॥ ररवा से इकसल जचा रानी, इयर नपयर पेन्हले हे। गोदिया में सोभइ एगो िालक, नयन िीच काजर हे॥5॥ भइया हमर िीरन भइया, सुनहु िचन मोरा हे। भइया, चोरवा हइ सुकुमार फुलुक डोर िााँचधहऽ, सोिरन सााँदट छुइह हे॥6॥

  • 17

    गीत-6 नपयवा, हो नपयवा, तू ह मोरा साहेि हो नपयवा। नपयवा, जे ितरया एक लगइत, दटकोरवा हम चखती हो॥1॥ धतनयााँ, हे धतनयााँ, तूह ं मोरा सुन्िर हे धतनयााँ। धतनयााँ, िेटवा जे एक बियइतऽ सोहरवा हम सुनती हे॥2॥ िेटवा जे होअ हे करम से जे ऊ राम िूझर् हे। ितरया जे होअ हे िःिमी से, िःउर मानुस से॥3॥ ओनरया कादट नेहयलन, सुरूज गोड़वा लगलन हे। हमें पर िःदित होअ न िेिःल, नपयवा मोरा ओलहन हे॥4॥ िःधी रातत गइले, पहर रातत, होनरल जलम ले ले हे॥5॥ अाँगना िहारइत चनेरिः, सुनहु िचन मोरा हे। चनेरया, प्रभुजी के सेजजया डाँसाव त नपयवा सुतनहें सोहर हे॥6॥

    गीत-7 ननि भौजइया लमलल पतनया के चलल , जमुन िह हे। ननि, जि होतो मोरा निंलाल, िेसर पदहरायि हे॥1॥ िेिो मैं िेिो तोरा ननिो हे, भइया के नपयार हहु हे। ननि, जि होतो मोरा नन्िलाल, िेसर पदहरायि हे॥2॥ िःधी रात बितलइ पहर रात, होनरला जनम लेलन हे। भउजो, अि भेलो तोरा नंिलाल, िेसर पदहरािहु हे॥3॥ कहल हल हे ननि, कहल हल, भइया के िलुार हहु हे। ननि, नइ िेिो तोहरा के िेसर, िेसनरया नइए िेिो हे॥4॥ सभवा िइठल तोहें िािूजी, त सुनहऽ िचन मोरा हे। िािूजी, तोर पुतहू कहलन िेसनरया, िेसनरया दिलाइ िेहु हे॥5॥ सउर पइसल तुहूाँ पुतहु न, सुनहऽ िचन मोरा हे। पुतहु, िेइ िेहु नाक के िेसनरया, त िेट रर पाहन हे॥6॥ नइ िेिइ, नइ िेिइ, नइ िेिइ, हम नकिेसर हे।

  • 18

    िािूजी, िेसर लमलल हे िहेज, िेसनरया नइए िेिइ हे॥7॥ पोर्ी पढ़इते तुहूाँ भइया, त सुनहऽ िचन मोरा हे। भइया, तोर धतन कहलन िेसनरया दिलाइ िेहु हे॥8॥ सउर पइसल तुहुाँ धतनयााँ, त सुनहऽ िचन मोरा हे। धतन, िेइ िेहु अपन िेसनरया, िदहनी रर पाहुन हे॥9॥ नइ िेिइ, नइ िेिइ, नइ िेिइ, नइ नकिेसर हे। प्रभु हम कहााँ पयिो िेसनरया, िेसनरया हेराय गेलो[8] हे॥10॥ चपु पहु, चपु रहु िदहनी, त सुनहऽ िचन मोरा हे। िदहनी, करिो में िोसर बििःह, त िलका पोसाय िेहु हे॥11॥ लगे िेह ं हाजीपुर िजनरया, िेसर हम लाइ िेिो हे। िदहनी, इनखा के िेिइन िनवास, से चपु रहु, चपु रहु हे॥12॥ एतना िचन जि सुनलन, सुनहुाँ न पावल हे। धतन, नककया से कादढ़ के िेसनरया भुइयााँ फें कक िेलन हे॥13॥ लेइ जाहु, लेइ जाहु, लेइ जाहु मोर नकिेसर हे। ननिो, ितन जाहु मोर सउतततनयााँ, जे रर से तनकासल हे॥14॥ काहे लागी लेिो िेसनरया, िेसनरया तोहरे छाजो हे। भउजो, जीये मोर भाइ भतीजवा, उगल रहे नइहर हे। काहे लागी िोसरा बििःह करिऽ, काहे लागी िेसर हे। भइया, लेइ तोर रोग -िलइया हमह ं जइिे सासुर हे॥16॥

    गीत-8 रर रर डोलऽहे नउतनयााँ, त हार् ले महाउर हे। राजा, मोरा तूाँ राँगा िऽ नपयनरया महल उठे सोहर हे॥1॥ जसोिा जी नंि के िोलाय के सभे हाल पूछल हे। राजा, गुनी सभ अचधको न जााँचचर्, दहरिा जुड़ाइ िेहु ना॥2॥ नंि कयलन धनिान से मन हरखायल हे। गेयानी गुनी सभ भेलन नेहाल अउरो कुछ चादहए हे ॥3॥ ककया तोरा चाह हउ नउतनयााँ, मााँगु मुाँह खोल खोल गे। नउतनयााँ, िेिऊ में अजोधेया के राज, िःउरो कछु चाहह गे॥4॥

    http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A5%8C%E0%A4%9C%E0%A4%87%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF_%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%B2%E0%A5%80,_%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8_%E0%A4%A6%E0%A4%B9_%E0%A4%B9%E0%A5%87_/_%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A5%80#cite_note-8

  • 19

    हाँलस हाँलस िोलहइ नउतनयााँ त सुनहु िचन मोरा हे। राजा हम लेिो सोने के लसकुड़या, अजोधेया राज की करि हे?॥5॥ जसोिा जी िेलकन लसकुड़या, रोहन गल हााँसुल हे। राजा िेलन पाट नपताम्िर, महल उठे सोहर हे॥6॥ िःवहु नयना से गोतनी अउरो सभ सुन्नर हे। गावहु िःज िधइया, महल उठे सोहर हे॥7॥ िूढ़ ं सूढ़ िेलकन अलससववा जुअहु पूत पंुडत हे। ललना, सुनर के नयना जुड़ायल लोग िाग हरणखत हे॥8॥ जे इह सोहर गावल, गाइ सुनावल हे ललना जलम जलम अदहयात, पुतर फल पावल हे॥9॥

    गीत-9

    रामचिंर जलम लेलन चइत रामनमी के॥1॥ डगनरन जे नेग मााँगइ, नार के कटाइ। कोलसला के काँ गन लेमो, चतैा रामनमी के॥2॥ नाउन जे नेग मााँगे, पैर के राँगाइ। कोलसला के काँ गन लेमो, चतैा रामनमी के॥3॥ धोबिन जे नेग मााँगे, फललया के धोिाइ। कोलसला के काँ गन लेमो, चतैा रामनमी के॥4॥ फूिः जे नेग मााँगे िःाँख के अाँजाइ। कोलसला के काँ गन लेमो, चतैा रामनमी के॥5॥ िाई जे नेग मााँगे, सौर के झोराइ[11]। कोलसला के काँ गन लेमो, चतैा रामनमी के॥6॥

    गीत-10

    हम नह ं पूजिइ िरदहया, भइया नह ं अयलन हे॥1॥ अाँगना िहारइत चनेरया त सुनहऽ िचन मोरा हे।

    http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0_%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%AE_%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%A8_%E0%A4%9A%E0%A4%87%E0%A4%A4_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_/_%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A5%80#cite_note-11

  • 20

    चनेरया, िेणख िःवऽ हमरो िीरन भइया, कहुाँ चलल िःवत हे॥2॥ िरूदह ंरोड़ा दहदंहिंःयल, पोखनरया रहरायल हे। गल गल इतर धमकी गेल, भइया मोरा िःयल हे॥3॥ मचचा िइठल तोहें सासुजी, सुनहऽ िचन मोरा हे। अि हम पूजिो िरदहया, भइया मोर िःयल हे॥4॥ सासुजी, कहाँमादह धनरयई िउनरया, कहााँ रे ई सोठाउर हे। सासुजी, कहााँ िइठइअइ िीरन भइया, िेखतो सोहावन हे॥5॥ कोठी कााँधे रणखहऽ िउनरया, कोदठल िीच सोठाउर हे। िहुिः अाँचरे िइठइहऽ िीरन भइया, िेखत सोहावन हे॥6॥ ओहर िइठल िलुरइततन ननिो, मुाँह चमकावल हे। जे कछु कोदठया के झारन, अाँगना के िाढ़न हे। भउजी सेहे लेके अयलन िीरन भइया, िेखते चगलटावन हे॥7॥

    गीत-11

    अाँगना में ितासा लुटायम हे, अाँगना में॥1॥ सासू जे ऐतन िेवोता मनौतन। उनका के पीर पेन्हायम हे, अाँगना में॥2॥ िेवोतो मनावे में कसर -मसर करतन। धीरे से पीर उतार लेम हे, अाँगना में॥3॥ गोततनी जे ऐतन पंर् राँधौतन। उनको के पीर पेन्हायम हे, अाँगना में॥4॥ पंर् राँधावे में कसर -मसर कनरहें। धीरे से नपयर उतार लेम हे, अाँगना में॥5॥ ननि जे ऐतन िःाँख अाँजौतन। उनको के काँ गना पेन्हायम हे, अाँगना में॥6॥ िःाँख अाँजौनी में कसर -मसर करतन। धीरे से काँ गना उतार लेम हे, अाँगना में॥7॥

  • 21

    गीत-12

    जसोिा तोहर भाग िड़ा लहिर नंिरानी िेवोकी तोहर भाग िड़ा लहिर हे रानी॥1॥ काहााँ जलमलन हे जिनुन्नन, काहााँ िाजत हे िधावा नंिरानी। िेवोकी रर में जलमलन जिनुन्नन, गोकुला में िाजत िधावा नंिरानी॥2॥ काहे के छूर से नार तछलायल, काहे के खपर नेहलायल नंिरानी। सोने के छूर से नार तछलायल, रूपे के खपर नेहलायल नंिरानी॥3॥ काहे के उजे अाँचगया टोनपया, केकरा के तू पदहरयिऽ नंिरानी। रेसमी के उजे अाँचगया टोनपया, केकरा के तू पदहरयिऽ नंिरानी। रेसमी के उजे अाँचगया टोनपया, अपन लाला के पदहरायि नंिरानी॥4॥ केरे लुटवचर् अन, धन, लछमी, केरे लुटावचर् मोती नंिरानी। नंि लुटावचर् अन, धन, लछमी, जसोिा लुटावचर् मोती नंिरानी॥5॥ अइसन जलम ललहल जिनुन्नन, रर िाजे िधावा नंिरानी॥6॥

    गीत-13 साड़ी न लहाँगा लहरिार लेिो भउजो हे। चोल न अाँचगया िूटेिार लिो भउजो हे॥1॥ काँ गना न लेिो, पहुाँची न लेिो। िाला तो लेिो चमकिार, सुनु भउजो हे॥2॥ रुपया न लेिो, अठन्नी न लेिो। चगन्नी तो लेिो हम हजार, सुनु भउजो हे॥3॥ चानी न लेिो, सोना न लेिो। हम लेिो चगतन चगतन लाल, सुनु भउजो हे॥4॥ जुग जुग जीओ भउजो, तोहरो होनरलवा। जुग -जुग िढ़ो अदहयात , सुनु भउजो हे॥5॥

  • 22

    गीत-14

    परर्म गनेस पि िंदि के, कुसल मनावहु हे। ललना, बिरन हरन गननायक, सोहर गावहु हे॥1॥ परर्म मास जि िीतल, िोसर तनयरायल हे। ललना, तेसर मास जि िःयल, चचत फनरयाल हे॥2॥ चउठा मास चदढ़ िःयल, पचमा बिततये गेल हे। ललना, छठे मास तनरायल, गरम जनायल हे॥3॥ सतमा मास जि िःयल, अठमा तनयरायल हे। ललना, नवमा मास जि िःयल, होनरला जलम भेल हे॥4॥ भािो के रइनी भेयामन, बिजुल चमक उठे हे। ललना, तेदह छन परगटे नंिलाल, महल उठे सोहर हे॥5॥ चन्नन लकड़ी कटायम, मंगल गायम हे। ललना, अरि ेसे िरिे लुटायम, सभ सुख पायम हे॥6॥ सासु के िेम तीसी तेलवा, ननि केरा गड़ी तेल हे। गोतनी के तेल -फुलेत , गोतततनयााँ के िेल -लेल हे॥7॥ सासु के िेम खटोलवा, ननि मचोला िेम हे। ललना, गोतनी के लाल पलाँचगया, हमहुाँ पइाँचा लेम हे॥8॥ सासु के िेम इयनर -नपयनर ननदिया के साड़ी िेम हे। ललना, गोतनी के लहाँगा -पटोर , हमहुाँ किहुाँ पइाँचा लेम हे॥9॥

    गीत-15

    सााँवन के सहनइया भिोइया के ककच -ककच ए। सुगा -सुगइया के पेट, िेिन कोई न जानये हे। सुगा -सुगइया के पेट , कोइल िखु जानये हे॥1॥ अाँगना िहारइत चनेरया, त सुनहऽ िचन मोरा हे। चनेरया, मोरा परभु िइठल िाँगलवा, से जाइके िोलाइ िेहु हे॥2॥ जुगवा खेलइते तोंहों िििुः, त सुनहऽ िचन मोरा हे। ििुिः, रउरे धतन िरिे िेयाकुल, रउरा के िोलाहट हे॥3॥ पसवा त चगरलइ िेल तर, अउरो ििूर तर हे।

  • 23

    ललना, धाइ पइसल गजओिर, कहऽ धतन कूसल हे॥4॥ डााँड़ मोरा फाट हे कसइल जाके, ओदटया चचकहकक मारे हे। परभुजी, िारह िनरसे मइया रूसल, सेहो िउाँसी लािह हे॥5॥ मचचया िइठल तोहें मइया, त सुनहऽ िचन मोरा हे। मइया, तोर पुतहू िरि िेयाकुल, तोरा के िोलाहट हे॥6॥ तुहूाँ त हऽ मोर िििुः, त रउरो िंसराखन हे। ििुिः, तोर धतन िचन कुठार, िोललया करेजे साले हे॥7॥ सउनरया िइठल तोहें धतनया त सुनहऽ िचन मोरा हे। धतन, िारह िनरस मइया रूसल, कहल नदह ंमानये हे॥8॥ लेहु परभु नाक के िेसनरया त मइया के समि िहु हे। परभुजी, िारहे िनरस चाची रूसल, उनख ेसमि िहु हे॥9॥ मचचया िइठल तोहे चाची, त सुनहऽ िचन मोरा हे। चाची, तोर पुतहू िरि िेयाकुल, तोरा के िोलाहट हे॥10॥ सामन के समनइया तो, भािो के ककच -ककच हे। ििुिः, वह हकइ पुरिा से पछेया, जड़इया मोरा लागये हे॥11॥ रड़ी रात गेलइ पहर रात होनरला जलम लेल हे। ललना, िज लगल अनन्ि िधावा, महल उठे सोहर हे॥12॥ अाँगना िहारइत चनेरया त सुनहऽ िचन मोरा हे। चनेरया, झट िए िााँटऽन सोंठउरा से होनरला जलम लेल हे॥13॥

    गीत-16

    रुनुक झुनुक बितछया िाजल, नपया पलाँग पर हे। ललना, पहनर कुसुम राँग चीर, पााँचो राँग अभरन हे॥1॥ जुगवा खेलइते तोंहे िेवरा त, सुनहऽ िचन मोरा हे। िेवरा, भइयाजी के जलि िोलावऽ, हम िरिे िेयाकुल हे॥2॥ जुगवा खेलइते तोंहे भइया त, सुनहऽ िचन मोरा हे। भइया, तोर धतन िरि िेयाकुल, तोरा के िोलावर् ुहे॥3॥ पसवा त चगरलइ िेल तर, अउरो ििूर तर हे। ललना, धाइ के पइसल गजओिर, कहु धतन कूसल हे॥4॥ डााँर मोर फाटहे करइल जाके, ओदटया चचकहकक मारे हे।

  • 24

    राजा, का कहूाँ दिलवा के िात, धरती मोर अन्हार लागे हे॥5॥ रोड़ा पीठे होिऽ असवार त डगनरन िोलवहु हे॥6॥ हचर्या खोलले हचर्सरवा, त रोड़ ेरोड़सार खोलल हे। राजा, रोड़ ेपीठ भेलन असवार, त डगनरन िोलावन हे॥7॥ के मोरा खोले हे केवुड़या त टाट फुरकावय हे। कउन साह के हहु तोह िेटवा, कतेक राते िःयल हे॥8॥ हम तोरा खोलऽ ह केवुड़या त टाट फुरकावदह हे। डगनरन, िलुरइता साह के हम ह अइ िेटवा, एते राते िःयल हे॥9॥ ककया तोरा माय से मउसी सगर नपततयाइन हे। ककया तोरा हर् ुचगनरर्ाइन कते राते िःयल हे॥10॥ न मोरा माय से मउसी, न सगर नपततिःइन हे। डगनरन, हचर्न मोर रर चगनरर्ाइन एते राते िःयल हे॥11॥ हचर्या पर हम नह ं जायि, रोड़ ेचगनर जायि हे। लेइ िःिऽ रानी सुखपालक, ओदह रे चदढ़ जायि हे॥12॥ जवे तोरा होयतो त िेटवा, ककए िेिऽ िान ितछना हे। जिे तोरा होयतो लछलमतनयााँ, त कदह के सुनावह हे॥13॥ डगनरन, जि मोरा होयतो त िेटवा, त कान िनुु सोना िेिो हे। डगनरन, जि होयत मोरा लछलमतनयााँ, पटोर पदहरायि हे॥14॥ सोने के सुखपालकी चढ़ल डगनरन िःयल हे। डगनरन िोलले गरभ सयाँ, सुनु राजा िसरर् ए॥15॥ राजा, तोर धतन हर्वा के सााँकर, मुहाँवा के फूहर हे। नह ं जानर् ूितुनयााँ के र त, िान कइसे हम लेिो हे॥16॥ काहेला डगनरन रोस करे, काहेला बिरोध करे हे। डगनरन हम िेिो अजोधेया के राज, लहलस रर जयिऽ हे॥17 इयर नपयर पेन्हले डगनरन, लहलस रर लउटल हे। जुग -जुग जजयो तोर होनरलवा , लिदट अाँगना िःयि हे॥18॥

  • 25

    गीत-17

    कहाँमा दह लेमुिः के रोपि, कहमा अनार रोपि हे। कहाँमादह रोपि नौरंचगया, से िेणख -िेणख जीउ भरे हे॥ 1॥ अाँगनादह रोपिइ से लेमुिः, णखरकी अनार रोपि हे। िरोजे पर रोपिइ नौरंचगया, से िेणख -िेणख जीउ भरे हे॥ 2॥ लटकल िेखलूाँ लेमुिः त, पकल अनार िेखलूाँ हे। गोले गोले िेखलूाँ नौरंचगया, जचा रे िरि िेयाकुल हे॥3॥ समना भिोइया केरा रततया, त हानरला जलम लेलन हे। िजे लागल अनन्ि िधािा त महल उठे सोहर हे॥4॥ कउन िन फूलहइ गुलिवा त कउन िन कुसुम राँग हे। कउन िेइ के राँगतइ चनुनरया, त िेखते सोहावाँन हे॥5॥ कंुज िन फूलहइ गुलिवा त कुरखेत कुसुम फूलइ हे। सुगह के राँगि चनुनरया, त िेखत सोहावाँन हे॥6॥

    गीत-18

    पााँच -पााँच पनवााँ के बिरवा त बिरवा सोहामन जी। अजी ननि, एहो बिरवा भइया जी के हारे् त मैया के मनावहु जी॥1॥ कक अजी भउजी, नाउन, कक अजी भउजी, भााँदटन। कक अजी भउजी, तोरा िाप के चनेरिः जी॥2॥ न एजी ननि, नाउन, न एजी ननि, भााँदटन। न एजी ननि, मोरा िाप के चनेरया जी। अजी ननि, मोरा प्रभु जी के िदहनी, ननि िलु लगिऽ जी॥3॥ जुगवा खेलइते भइया, िेलतेरे, अउरो ििुरतरे जी। अजी भइया, प्राण पेयार मोर भउजजया, त केलसया भसमलोटे जी॥4॥ जुगवा छोरलन राजा िेलतरे, अउरो ििुरतरे जी। कक अरे लाला, भाई चलले, गजओिर, कहू जी धतन कूसल हे॥5॥ लाज सरम केरा िात, कहलो न जाय, सुनलो न जाय। कक अजी प्रभु, मरलों करमवा के पीरा त ओिर चचकहकक मारे हे॥6॥ कदहतऽ त अजी धतनयााँ, जजरवा के िोरसी भरइतों, लवाँचगया के पासाँर जी।

  • 26

    कदहतऽ त अजी धतनयााँ, अपन अम्मााँ के िोलइतों, रततया सोहानन जी॥7॥ कदहतऽ त अजी धतनयााँ, सोए रहूाँ, अउरो िइदठ रहूाँ। अजी धतन, मातनक ि प िरएिों त रततया सोहावन जी॥8॥ न कहुाँ अजी प्रभुजी, सोए रहु, न कहुाँ िइदठ रहु। अजी प्रभु, िुतत जइहें मातनक ि प, रततया भेयावन जी॥9॥ िुतत जइहें जीरवा के िोरसी, लवंचगया के पासाँतर जी। अजी प्रभु, सोए जइहें तोहर अम्मााँ, त रततया भेयावन जी॥10॥ हम त जनतत धतन, बिरह िोललत, अउरो बिरह िोललत जी। अजी धतन, लनरके मैं गवना करइती, नविेस चलल जइती, बिरह नह ं सुनती जी॥11॥

    गीत-19

    ललनप पोतत अयलो कोठनरया, चननवााँ तछरकक अयलों हे। ए ललना, रुलम कफनर अयलन ररुनन्नन, सेजजया मोदह डाँलस िेहु हे॥1॥ सोनदह ंके मोरा नइहर, ओनरयतन,ओलती चएु हे। ए ललना, सातदह ंभइया के हम िदहतनयााँ, सेजजयवा हम कइसे डााँसि हे॥2॥ एतना िचन राजा सुनलन, सुनहुाँ न पवलन हे। ए ललना, चदढ़ गेलन रोड़ ेअसवार, मधिुन जायि हे॥3॥ एतना िचन धतन सुनलन, सुनहुाँ न पवलन हे। ए ललना, धनर लेलन रोड़ ेके लगाम, हमहुाँ जोउरे जायि हे॥4॥ सोनदहाँ के तोरा नइहर, ओनरयतन मोती चएु हे। ए धतन, सातदहाँ भइया के तुहूाँ िदहतनयााँ, कइसे तुहूाँ िन जयिो सेजजया डााँसि हे॥5॥ कफरहुाँ कफरहुाँ ए राजा जी, फेनुकै सेजजया डााँसि हे॥6॥ ललनप पोतत अयलो कोठनरया, चननवा तछरकक अयलों हे। ए ललना, डााँलस जे िेलो लाल पलाँचगया, सोवहु राजा ररुनन्नन हे॥7॥

  • 27

    गीत- 20

    नपपर लेके सासु खड़ी, नपपनरया पीले िहू। हो जयतो होनरलवा ला िधू, नपपनरया पीले िहू॥1॥ नपपर पीते मोरा होठ हरे, मोरा कंठ जरे हे। दहरिय कमलवा के फूल नपपनरया मैं न नपऊाँ ॥2॥ नपपर जेके भउजी खड़ी, चाची खड़ी। पुरतो होनरलवा के साध, नपपनरया पीले िहू॥3॥ नपपर पीते मोरा िःाँख जरे, नयना लोर ढरे। नपपर न कंठ ओकहाय नपपनरया मैं न नपऊाँ ॥4॥

    गीत- 21

    ककसुन जलम अि भेल, िधावा अि लेके चलऽ। गावत मंगलचार, सभे लमलल लेके चलऽ॥1॥ तेललन लयलक तेल, तमोललन िीरवा। माललन लौलक गुचर् हार, जसोिा जी के िःाँगनऽ॥2॥ धन -धन पंुडत लोग , धने जोग रोदहनी। धन भािों के रात, कन्हइया जी के जलम भेलइ॥3॥ धन जसोिा तोर भाग, कन्हइया तोरा गोि खेले। हरखदह िरखदह ंिेओ, िःनन्ि ररे रर मचल। लुटवत अनधन धान, तनहुतछ के तनछावर॥4॥ कउची के लगल पलना, कउची लागल हे डोर। के रे डोलािे िउिः पलना, के रे झूलनहार॥5॥ अगर -चनन केरा पलना , रेसम लागल हे डोर। जसोिा डोलािचर् पलना, ककसुन झूलनहार॥6॥ सले सले झूलहइ पलना, मइया िेखचर् रूप। नंि लुटावचर् संपतत, सभ भेलन नेहाल। गावचर् सुर मुतन कीरतत, लसव नाचर् िे ताल॥7॥

  • 28

    जे इह सोहर गावचर्, गाइ िेचर्न सुनाय। अनधन िाढ़चर् लछमी, िाढ़े कुल, अदहयात॥8॥ िााँझ के लमलइ पुतर फल, भरइ मरतछ के गोि। जलम जलम फल पावदह,ं पूरइ सभ मनकाम॥9॥

    गीत- 22

    साड़ी न लहाँगा लहरिार लेिो भउजो हे। चोल न अाँचगया िूटेिार लिो भउजो हे॥1॥ काँ गना न लेिो, पहुाँची न लेिो। िाला तो लेिो चमकिार, सुनु भउजो हे॥2॥ रुपया न लेिो, अठन्नी न लेिो। चगन्नी तो लेिो हम हजार, सुनु भउजो हे॥3॥ चानी न लेिो, सोना न लेिो। हम लेिो चगतन चगतन लाल, सुनु भउजो हे॥4॥ जुग जुग जीओ भउजो, तोहरो होनरलवा। जुग -जुग िढ़ो अदहयात , सुनु भउजो हे॥5॥

    गीत- 23

    मचचया िइठल तोंह मइया, त सुनहऽ िचन मोरा हे। मइया, हमहूाँ ल पललयइ त सउर, हमहूाँ कछु िान चाह हे॥1॥ सउर पइसल तोंहे िहुिः, त सुनहऽ िचन मोर हे। िहुिः, िेइ िेहु नाक के िेसनरया, िलुार चधया पाहुन हे॥2॥ एतना िचन जि सुनलन, सासु से अरज करे हे। सासुजी हम कहााँ पयिो िेसनरया, िेसनरया हेराइ गेल हे॥3॥ जुगवा खेलइते तोंहे भइया, त सुनहऽ िचन मोरा हे। भइया हमरा के िान ककछु चाह , सउर हम ल पलल हे॥4॥ एतना िचन जि सुनलन, धतन से कहे लगलन हे।

  • 29

    धतन िेइ िेहु नाक के िेसनरया, िदहन रर पाहुन हे॥5॥ एतना िचन जि सुनलन, परभु से अरज करे हे। परभुजी, कहााँ हम पायि िेसनरया, िेसनरया भुलाई गेल हे॥6॥ चपु रहु, चपु रहु िदहनी, त िदहनी िलुार िदहनी हे। कर लेिो िोसर बििःह, िेसर पदहरायि हे॥7॥ एतना िचन जि सुनलन, सुनहु न पावल हे। परभुजी, मत करू िोसर बििःह, िधइया हम िेइ िेवइ हे॥8॥

    गीत- 24

    ररवा से इकसल जसोिा रानी, सुभ दिन सामन हे। ललना, जमुना के इनर णझनर पतनयााँ सोहामन हे॥1॥ सात पााँच लमललन साँरततया से सोने रइला मारे् लेलन हे। गावदह ंमंगल गीत, िेखत सुर मोहदह ंहे॥2॥ केउ सखी मुाँह धोवे, केउ सखी हाँलस हाँलस पानी भरे हे। ललना, केउ एक पार ततनरयवा कपलस लोर ढारइ हो॥3॥ नइ हकइ नावोुड़या अउरो मलहवा भइया हे। ललना, केदह नवचध उतरि पार, ततनरया एक रोवइ हे॥4॥ िााँचध के कााँछ कछौंटा अउर छाती रइला लेइ हे। जाइ जुमल जमुना पार, काहे गे ततनरया रोवदह ंगे॥5॥ की तोर नइहर िरू कक सासुर िखु पड़ल हे। ततनरया, की तोर कंत बििेस कवन िखु िणुखत हे॥6॥ नइ मोरा नइहर िरू, न सासुर िखु पड़ल हे। नइ मोरा कंत नविेश, कोख िखु िणुखत हे॥7॥ सात पुतर िइि िेलन, कंस सभ हर लेलन हे। ललना, अठवें गरभ नचगचायल सेकरो भरोसा नइ हे॥8॥ चपु रहुाँ, चपु रहुाँ िेवोकी, त सुनह िचन मोरा हे। अपना िलक मोरा ि ंहऽ त हम पोसपाल िेिो हे॥-9॥ नौन, चाउर तेल पइाँचा भेल, सभे, चीज पइाँचा भेल हे। कोखवा उधार नइ सुनल , कइसे धीरजा िााँधव हे॥10॥

  • 30

    ककया साखी सुरजवा त ककया साखी गंगा माता हे। ललना, ककया साखी सुरुज के जोत, धरम मोर साखी हचर् हे॥11॥ हो गेल कौलकरार- िचन हम पालि हे। लाख िेतन मोरा कंस तइयो नई मानि हे॥12॥ िःयल भािो के रात, ककसुन पख अठमी हे। ललहलन ककसुन अवतार, सकल जग जानहु हे॥13॥ खलु गेल िजर केवााँड़, पहरु सभ सूतल हे। िेवोकी ले भागलन जसोिा के द्वार, महल उठे सोहर हे॥14॥ जो एदह मंगल गािदह ंगाइ सुनावदह ंहे। जलमजलम- अदहयात पुतर फल पावदह ंहे॥15॥

    गीत- 25

    िहुिः जे चलल नहाय, तो सासू तनरेखइ हे। िहुिः, कवन मरि चचत लायल, गरभ जनावल हे॥1॥ सासू िःधी रातत जा हइ, अउरो पहर रातत हे। सास,ू राती के िःव हइ भाँरवा, तो होइ के णखड़की से हे॥2॥ िोलवहऽ गााँव के पठेनरया, तो रेसम के जाल िुनऽ हे। ओदह जाल िुझयिइ भाँवरा, अछराँग मोरा छुदट जइहें हे॥3॥ मचचयादह िैठल सासू िढ़यततन, चचन्ह लेहु अपना िेटा के हे। सास,ु अछराँग मो�


Top Related