आदिकाल : परिचय · web viewposted by: स प दक- म थ ल श व...

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आआआआआआ : आआआआआ Posted by: सससससस- ससससससस सससससस on: October 29, 2007 In: 1 सससससस Comment! आआआआआआ आआ 1000 आआ 1325 आआ ससससस ससससससस सस सस ससस सस सससससस सससससससस ससससस सस ससस-सससस ससस ससस सससस सस सससस सससस-ससस, ससससस-ससससस ससस सस सससस ससस सस सस सससससस सससस सससस सससस ससस सस ससससससस ससससससस ससस ससससस ससस ससससस सस : ससससस-ससससससस, ससस-ससससससस, ससस ससससससस, ससससस-ससससससस, ससससससससस सससससससससससस सस ससस ससससससस सस ससससससस सस ससस सससस ससस सस ससससस ससससससस सस सससससस ससससस सस सस सससससस सस ससस ससससससस सससस सस ससससससस सससस सस ससससससस सस ससस ससससस सससससस सससससस सससससस सससससस सससस सस ससससससस (ससससससस सससस सससससससस) ससससस ससससस सससस सस ससससससस सससससससस ससससस, ससससस, सससससससस, सससससस, सससससससससस ससस ससससस सससससस सस ससससससस ससस सस|सस ससस सससस सससस सस सससससस सस सससस सस सससस सस| सससस सससससस ससससससससस सससससस सस ससससससससस सससससस सस सससससस ससस सससस ससससससससस ससस सससस ससससससससस सस सस सससससस सस सससससससससस सस सससस सससस ससससस ससससससससससस ससस ससस सससससससस सससस सससससस-सससस ससससस सस ससससस सस सससस सससस ससस सससससस सससस ससससससस ससससससस ससससस सस ससससस ससससससससस सससस ससससससस सस ससससस ससस सस सस सससससस ससस ससससस ससस ससस ससस सससससस-सससससससस ससस ससससससस सससस सससससससससस सससससस सस सससससस ससससससस सससस ससससससस सससससससस सससससससससस, सससससससस, ससससस ससस ससस सससस सस सससससस ससस सससस ससस सस सससससस सससससससस ससससस सससस सससस ससस ससससससस सससस ससस, ससस- ससस ससससस सस सस सससससस ससससस ससससससससस ससस-ससससससस सस ससससससस सस ससससससस ससससस सस सससस सससससस सससस सस

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Page 1: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

आदिकाल परिचयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

आदिकाल सन 1000 स 1325 तक हिदी साहितय क इस यग को आचाय राचदर शकल न वीर-गाा काल ना दिदया इसका चारण-काल थिसदध-सात काल और अनय ना स भी उललख हिकया जाता इस सय का साहितय खयतः चार रपो मिलता

थिसधद-साहितय ना-साहितय जन साहितय चारणी-साहितय परकीणक साहितय

सिसदध औ नाथ साहितयय साहितय उस सय थिलखा गया जब हिदी अपभरश स आधहिनक हिदी की ओर हिवकथिसत ो री ी थिसदध ध की वजरयान शाखा क अनयायी उस सय थिसदध कलात इनकी सखया चौरासी ानी गई सरपा (सरोजपाद अवा सरोजभदर) पर थिसदध ान गए इसक अहितरिरकत शबरपा लइपा डोमभिFपा कणपा कककरिरपा आदिद थिसदध सहितय क परख कहिव |य कहिव अपनी वाणी का परचार जन भाषा करत | उनकी सजिजया परवततिM नषय की सवाभाहिवक वततिM को क दर रखकर हिनधारिरत हई ी इस परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा

जन साहितयअपभरश की जन-साहितय परपरा हिदी भी हिवकथिसत हई बड-बड परबधकावयो क उपरात लघ खड-कावय ता कतक रचनाए भी जन-साहितय क अतगत आती सवयभ का पउ-चरिरउ वासतव रा-का ी सवयभ पषपदत धनपाल आदिद उस सय क परखयात कहिव गजरात क परथिसधद जनाचाय चदर भी लगभग इसी सय क जनो का सबध राजसथान ता गजरात स हिवशष रा इसीथिलए अनक जन कहिवयो की भाषा पराचीन राजसथानी री जिजसस अवाचीन राजसथानी एव गजराती का हिवकास हआ सरिरयो क थिलख रा-गर भी इसी भाषा उपलबध

चाणी-साहितयइसक अतगत चारण क उपरात बरहमभटट और अनय बदीजन कहिव भी आत सौराषटर गजरात और पततिcी राजसथान चारणो का ता बरज-परदश दिदलली ता पवT राजसथान भटटो का पराधानय रा ा चारणो की भाषा साधारणतः राजसथानी री और भटटो की बरज इन भाषाओ को हिडगल और हिपगल ना भी मिल य कहिव परायः राजाओ क दरबारो रकर उनकी परशमभिसत हिकया करत अपन आशरयदाता राजाओ की अहितरजिजत परशसा करत शरगार और वीर उनक खय रस इस सय की परखयात रचनाओ चदबरदाई कत पथवीराज रासो दलपहित कत खाण-रासो नरपहित-नाल कत बीसलदव रासो जगहिनक कत आल खड वगर खय इन सवामिधक तवपण पथवीराज रासो इन सब गरो क बार आज य थिसदध हआ हिक उनक कई अश कषपक

परकीणक साहितयखडी बोली का आदिद-कहिव अीर खसरो इसी सय ो गया खसरो की पथिलया और करिरया परखयात थिल-कोहिकल हिवदयापहित भी इसी सय क अतगत हए आपक धर पदो क कारण आपको lsquoअततिभनव जयदवrsquo भी का जाता थिली और अवटट आपकी रचनाए मिलती आपकी पदावली का खय रस शरगार ाना गया अबदल रान कत lsquoसदश रासकrsquo भी इसी सय की एक सदर रचना इस छोट स पर-सदश-कावय की भाषा अपभरश स अतयमिधक परभाहिवत ोन स कछ हिवदवान इसको हिदी की रचना न ानकर अपभरश की रचना ानत

आशरयदाताओ की अहितरजिजत परशसाए यधदो का सदर वणन शरगार-मिततिशरत वीररस का आलखन वगर इस साहितय की परख हिवशषताए इसला का भारत परवश ो चका ा दशी रजवाड परसपर कल वयसत सब एक सा मिलकर सलानो क सा लडन क थिलए तयार नी परिरणा य हआ हिक अलग-अलग सबको राकर सलान यी सथिसथर ो गए दिदलली की गददी उनोन परापत कर ली और Rशः उनक राजय का हिवसतार बढन लगा ततकालीन कहिवता पर इस सथिसथहित का परभाव दखा जा सकता

आदिकाल क नामकण की समसयाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

साहितय क इहितास क पर काल का नाकरण हिवदवानो न इस परकार हिकया -1 डॉहिगरयसन - चारणकाल2 मिशरबधओ - परारततिभककाल3 आचाय राचदर शकल- वीरगाा काल4 राहल सकतयायन - थिसदध सात यग5 ावीर परसाद हिदववदी - बीजवपन काल6 हिवशवना परसाद मिशर - वीरकाल

7 जारी परसाद हिदववदी - आदिदकाल8 राकार वा - चारण काल आचाय ामचदर शकल का मत आचाय राचदर शकल न इस काल का ना वीरगाा काल रखा इस नाकरण का आधार सपषट करत हए व थिलखत - hellipआदिदकाल की इस दीघ परपरा क बीच पर डढ-सौ वष क भीतर तो रचना की हिकसी हिवशष परवततिM का हिनcय नी ोता-ध नीहित शरगार वीर सब परकार की रचनाए दोो मिलती इस अहिनरदिदषट लोक परवततिM क उपरात जब स सलानो की चढाइयो का आरभ ोता तब स हिदी साहितय की परवततिM एक हिवशष रप बधती हई पात राजाततिशरत कहिव अपन आशरयदाता राजाओ क पराRपण चरिरतो या गााओ का वणन करत यी परबध परपरा रासो क ना स पायी जाती जिजस लकषय करक इस काल को न वीरगाा काल का इसक सदभ व तीन कारण बतात - 1इस काल की परधान परवततिM वीरता की ी अात इस काल वीरगाातक गरो की परधानता री 2अनय जो गर परापत ोत व जन ध स सबध रखत इसथिलए ना ातर और3 इस काल क फटकर दो परापत ोत जो साहितयितयक ता हिवततिभनन हिवषयो स सबमिधत हिकनत उसक आधार पर भी इस काल की कोई हिवशष परवततिM हिनधारिरत नी ोती शकल जी व इस काल की बार रचनाओ का उललख हिकया -1 हिवजयपाल रासो (नललसिस कत-स1355) 2मीर रासो (शागधर कत-स1357) 3 कीरतितलता (हिवदयापहित-स1460) 4कीरतितपताका (हिवदयापहित-स1460) 5 खाण रासो (दलपहितहिवजय-स1180) 6बीसलदव रासो (नरपहित नाल-स1212) 7 पथवीराज रासो (चद बरदाई-स1225-1249) 8जयचदर परकाश (भटट कदार-स 1225) 9 जययक जस चदिदरका (धकर कहिव-स1240) 10पराल रासो (जगहिनक कहिव-स1230) 11 खसरो की पथिलया (अीर खसरो-स1350) 12हिवदयापहित की पदावली (हिवदयापहित-स1460)शकल जी दवारा हिकय गय वीरगााकाल नाकरण क सबध कई हिवदवानो न अपना हिवरोध वयकत हिकया इन शरी ोतीलाल नारिरया आचाय जारीपरसाद हिदववदी आदिद खय आचाय हिदववदी का कना हिक वीरगाा काल की तवपण रचना पथवीराज रासो की रचना उस काल नी हई ी और य एक अध-परााततिणक रचना यी नी शकल न जिजन गो क आधार पर इस काल का नाकरण हिकया उन स कई रचनाओ का वीरता स कोई सबध नी बीसलदव रासो गीहित रचना जयचदर परकाश ता जययक जस चदिदरका -इन दोनो का वीरता स कोई सबध नी य गर कवल सचना ातर अीर खसरो की पथिलयो का भी वीरतव स कोई सबध नी हिवजयपाल रासो का सय मिशरबधओ न स1355 ाना अतः इसका भी वीरता स कोई सबध नी पराल रासो पथवीराज रासो की तर अध परााततिणक रचना ता इस गर का ल रप परापय नी कीरतितलता और कीरतितपताका- इन दोनो गरो की रचना हिवदयापहित न अपन आशरयदाता राजा कीरतितसिस की कीरतित क गणगान क थिलए थिलख उनका वीररस स कोई सबध नी हिवदयापहित की पदावली का हिवषय राधा ता अनय गोहिपयो स कषण की पर-लीला इस परकार शकल जी न जिजन आधार पर इस काल का नाकरण वीरगाा काल हिकया व योगय नी डॉहियसन का मत डॉहिगरयसन न हिदी साहितय क इहितास क पर काल को चारणकाल ना दिदया पर इस ना क पकष व कोई ठोस तक नी द पाय उनोन हिदी साहितय क इहितास का परारभ 643 ई स ानी हिकनत उस सय की हिकसी चारण रचना या परवततिM का उललख उनोन नी हिकया वसततः इस परकार की रचनाए 1000 ईस तक मिलती ी नी इस थिलए डॉहिगरयसन दवारा दिदया गया ना योगय नी

मिमशरबधओ का मतमिशरबधओ न ईस 643 स 1387 तक क काल को परारततिभक काल का य एक साानय ना और इस हिकसी परवततिM को आधार नी बनाया गया य ना भी हिवदवानो को सवीकाय वी डॉामकमा वमा का मतडॉराकार वा- इनोन हिदी साहितय क परारततिभक काल को चारणकाल ना दिदया इस नाकरण क बार उनका कना हिक इस काल क सभी कहिव चारण इस तथय स इनकार नी हिकया जा सकता कयोहिक सभी कहिव राजाओ क दरबार-आशरय रनवाल उनक यशोगान करनवाल उनक दवारा रचा गया साहितय चारणी कलाता हिकनत हिवदवानो का ानना हिक जिजन रचनाओ का उललख वा जी न हिकया उन अनक रचनाए सदिदगध कछ तो आधहिनक काल की भी इस कारण डॉवा दवारा दिदया गया चारणकाल ना हिवदवानो को ानय नी ाहल सकतयायन का मतराहल सकतयायन- उनोन 8 वी स 13 वी शताबदी तक क काल को थिसदध-सात यग की रचनाए ाना उनक तानसार उस सय क कावय दो परवततिMयो की परखता मिलती - 1थिसदधो की वाणी- इसक अतगत बौदध ता ना-थिसदधो की ता जनहिनयो की उपदशलक ता ठयोग की हिRया का हिवसतार स परचार करनवाली रसयलक रचनाए आती 2सातो की सतहित- इसक अतगत चारण कहिवयो क चरिरत कावय (रासो गर) आत जिजन कहिवयो न अपन आशरय दाता राजा एव सातो की सतहित क थिलए यदध हिववा आदिद क परसगो का बढा-चढाकर वणन हिकया इन गरो वीरतव का नवीन सवर खरिरत हआ राहल जी का य त भी हिवदवानो दवारा ानय नी कयोहिक इस नाकरण स लौहिकक रस का उललख करनवाली हिकसी हिवशष रचना का पराण नी मिलता नापी ता ठयोगी कहिवयो ता खसरो आदिद की कावय-परवततिMयो का इस ना सावश नी ोता आचाय मावी परसा हि0वी का मतआचाय ावीर परसाद हिदववदी- उनोन हिदी साहितय क पर काल का ना बीज-बपन काल रखा उनका य ना योगय नी कयोहिक साहितयितयक परवततिMयो की दमिषट स य काल आदिदकाल नी य काल तो पववतT परिरहिनमित अपभरश की साहितयितयक परवततिMयो का हिवकास आचाय जाी परसा हि0वी का मतआचाय जारी परसाद हिदववदी- इनोन हिदी साहितय क इहितास क परारततिभक काल को आदिदकाल ना दिदया हिवदवान भी इस ना को अमिधक उपयकत ानत इस सदभ उनोन थिलखा - वसततः हिदी का आदिद काल शबद एक परकार की भराक धारणा की समिषट करता और शरोता क थिचM य भाव पदा करता हिक य काल कोई आदिद नोभावापनन परपराहिवहिनकत कावय-रसथिढयो स अछत साहितय का काल य ठीक वी य काल बहत अमिधक परपरा-परी रसथिढगरसत सजग और सचत कहिवयो का काल आदिदकाल ना ी अमिधक योगय कयोहिक साहितय की दमिषट स य काल अपभरश काल का हिवकास ी पर भाषा की दमिषट स य परिरहिनमित अपभरश स आग बढी हई भाषा की सचना दता आचाय जारीपरसाद हिदववदी न हिदी साहितय क आदिदकाल क लकषण-हिनरपण क थिलए हिनमनथिलखिखत पसतक आधारभत बतायी -

1पथवीराज रासो 2पराल रासो 3हिवदयापहित की पदावली 4कीरतितलता 5कीरतितपताका 6सदशरासक (अबदल रान) 7पउचरिरउ (सवयभ कत राायण) 8भहिवषयतका (धनपाल) 9परात-परकाश (जोइनद) 10बौदध गान और दोा (सपादक परपरसाद शासतरी) 11सवयभ छद और 12पराकत पगल नाम हिनणयइस परकार हिदी साहितय क इहितास क पर काल क नाकरण क रप आदिदकाल ना ी योगय व साक कयोहिक इस ना स उस वयापक पभमि का बोध ोता जिजस पर परवतT साहितय खडा भाषा की दमिषट स इस काल क साहितय हिदी क परारततिभक रप का पता चलता तो भाव की दमिषट स भथिकतकाल स लकर आधहिनक काल तक की सभी परख परवततिMयो क आदिद बीज इस खोज जा सकत इस काल की रचना-शथिलयो क खय रप इसक बाद क कालो मिलत आदिदकाल की आधयातमितक शरगारिरक ता वीरता की परवततिMयो का ी हिवकथिसत रप परवतT साहितय मिलता इस कारण आदिदकाल ना ी अमिधक उपयकत ता वयापक ना

सिसदध साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

थिसदध साहितय क इहितास चौरासी थिसदधो का उललख मिलता थिसदधो न बौदध ध क वजरयान ततव का परचार करन क थिलय जो साहितय जनभाषा थिलखा व हिनदी क थिसदध साहितय की सीा आता सिसदध सपा (सरपाद सरोजवजर राहल भरदर) स थिसदध समपरदाय की शरआत ानी जाती य पल थिसदध योगी जाहित स य बराहमण राहल साकतयायन न इनका जनकाल 769 ई का ाना जिजसस सभी हिवदवान सत इनक दवारा रथिचत बMीस गर बताए जात जिजन स lsquoदोाकोशrsquo हिनदी की रचनाओ परथिसदध इनोन पाखणड और आडमबर का हिवरोध हिकया ता गर सवा को तव दिदया इनक बाद इनकी परमपरा को आग बढान वाल परख थिसदध हए Rश इस परकार - शबपा इनका जन 780 ई हआ य कषहितरय सरपा स इनोन जञान परापत हिकया lsquoचयापदrsquo इनकी परथिसदध पसतक इनकी कहिवता का उदारण दखिखय- रिर य रिर तइला बाडी खस सतला षकडय सर कपास फ़दिटला तइला वाहिडर पासर जोणा वाहिड ताएला हिफ़टली अधारिर र आकास फ़थिलआ लइपा य राजा धपाल क राजयकाल कायसथ परिरवार जन शबरपा न इन अपना थिशषय ाना ा चौरासी थिसदधो इनका सबस ऊचा सथान ाना जाता उडीसा क ततकालीन राजा और तरी इनक थिशषय ो गए

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 2: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

चाणी-साहितयइसक अतगत चारण क उपरात बरहमभटट और अनय बदीजन कहिव भी आत सौराषटर गजरात और पततिcी राजसथान चारणो का ता बरज-परदश दिदलली ता पवT राजसथान भटटो का पराधानय रा ा चारणो की भाषा साधारणतः राजसथानी री और भटटो की बरज इन भाषाओ को हिडगल और हिपगल ना भी मिल य कहिव परायः राजाओ क दरबारो रकर उनकी परशमभिसत हिकया करत अपन आशरयदाता राजाओ की अहितरजिजत परशसा करत शरगार और वीर उनक खय रस इस सय की परखयात रचनाओ चदबरदाई कत पथवीराज रासो दलपहित कत खाण-रासो नरपहित-नाल कत बीसलदव रासो जगहिनक कत आल खड वगर खय इन सवामिधक तवपण पथवीराज रासो इन सब गरो क बार आज य थिसदध हआ हिक उनक कई अश कषपक

परकीणक साहितयखडी बोली का आदिद-कहिव अीर खसरो इसी सय ो गया खसरो की पथिलया और करिरया परखयात थिल-कोहिकल हिवदयापहित भी इसी सय क अतगत हए आपक धर पदो क कारण आपको lsquoअततिभनव जयदवrsquo भी का जाता थिली और अवटट आपकी रचनाए मिलती आपकी पदावली का खय रस शरगार ाना गया अबदल रान कत lsquoसदश रासकrsquo भी इसी सय की एक सदर रचना इस छोट स पर-सदश-कावय की भाषा अपभरश स अतयमिधक परभाहिवत ोन स कछ हिवदवान इसको हिदी की रचना न ानकर अपभरश की रचना ानत

आशरयदाताओ की अहितरजिजत परशसाए यधदो का सदर वणन शरगार-मिततिशरत वीररस का आलखन वगर इस साहितय की परख हिवशषताए इसला का भारत परवश ो चका ा दशी रजवाड परसपर कल वयसत सब एक सा मिलकर सलानो क सा लडन क थिलए तयार नी परिरणा य हआ हिक अलग-अलग सबको राकर सलान यी सथिसथर ो गए दिदलली की गददी उनोन परापत कर ली और Rशः उनक राजय का हिवसतार बढन लगा ततकालीन कहिवता पर इस सथिसथहित का परभाव दखा जा सकता

आदिकाल क नामकण की समसयाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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साहितय क इहितास क पर काल का नाकरण हिवदवानो न इस परकार हिकया -1 डॉहिगरयसन - चारणकाल2 मिशरबधओ - परारततिभककाल3 आचाय राचदर शकल- वीरगाा काल4 राहल सकतयायन - थिसदध सात यग5 ावीर परसाद हिदववदी - बीजवपन काल6 हिवशवना परसाद मिशर - वीरकाल

7 जारी परसाद हिदववदी - आदिदकाल8 राकार वा - चारण काल आचाय ामचदर शकल का मत आचाय राचदर शकल न इस काल का ना वीरगाा काल रखा इस नाकरण का आधार सपषट करत हए व थिलखत - hellipआदिदकाल की इस दीघ परपरा क बीच पर डढ-सौ वष क भीतर तो रचना की हिकसी हिवशष परवततिM का हिनcय नी ोता-ध नीहित शरगार वीर सब परकार की रचनाए दोो मिलती इस अहिनरदिदषट लोक परवततिM क उपरात जब स सलानो की चढाइयो का आरभ ोता तब स हिदी साहितय की परवततिM एक हिवशष रप बधती हई पात राजाततिशरत कहिव अपन आशरयदाता राजाओ क पराRपण चरिरतो या गााओ का वणन करत यी परबध परपरा रासो क ना स पायी जाती जिजस लकषय करक इस काल को न वीरगाा काल का इसक सदभ व तीन कारण बतात - 1इस काल की परधान परवततिM वीरता की ी अात इस काल वीरगाातक गरो की परधानता री 2अनय जो गर परापत ोत व जन ध स सबध रखत इसथिलए ना ातर और3 इस काल क फटकर दो परापत ोत जो साहितयितयक ता हिवततिभनन हिवषयो स सबमिधत हिकनत उसक आधार पर भी इस काल की कोई हिवशष परवततिM हिनधारिरत नी ोती शकल जी व इस काल की बार रचनाओ का उललख हिकया -1 हिवजयपाल रासो (नललसिस कत-स1355) 2मीर रासो (शागधर कत-स1357) 3 कीरतितलता (हिवदयापहित-स1460) 4कीरतितपताका (हिवदयापहित-स1460) 5 खाण रासो (दलपहितहिवजय-स1180) 6बीसलदव रासो (नरपहित नाल-स1212) 7 पथवीराज रासो (चद बरदाई-स1225-1249) 8जयचदर परकाश (भटट कदार-स 1225) 9 जययक जस चदिदरका (धकर कहिव-स1240) 10पराल रासो (जगहिनक कहिव-स1230) 11 खसरो की पथिलया (अीर खसरो-स1350) 12हिवदयापहित की पदावली (हिवदयापहित-स1460)शकल जी दवारा हिकय गय वीरगााकाल नाकरण क सबध कई हिवदवानो न अपना हिवरोध वयकत हिकया इन शरी ोतीलाल नारिरया आचाय जारीपरसाद हिदववदी आदिद खय आचाय हिदववदी का कना हिक वीरगाा काल की तवपण रचना पथवीराज रासो की रचना उस काल नी हई ी और य एक अध-परााततिणक रचना यी नी शकल न जिजन गो क आधार पर इस काल का नाकरण हिकया उन स कई रचनाओ का वीरता स कोई सबध नी बीसलदव रासो गीहित रचना जयचदर परकाश ता जययक जस चदिदरका -इन दोनो का वीरता स कोई सबध नी य गर कवल सचना ातर अीर खसरो की पथिलयो का भी वीरतव स कोई सबध नी हिवजयपाल रासो का सय मिशरबधओ न स1355 ाना अतः इसका भी वीरता स कोई सबध नी पराल रासो पथवीराज रासो की तर अध परााततिणक रचना ता इस गर का ल रप परापय नी कीरतितलता और कीरतितपताका- इन दोनो गरो की रचना हिवदयापहित न अपन आशरयदाता राजा कीरतितसिस की कीरतित क गणगान क थिलए थिलख उनका वीररस स कोई सबध नी हिवदयापहित की पदावली का हिवषय राधा ता अनय गोहिपयो स कषण की पर-लीला इस परकार शकल जी न जिजन आधार पर इस काल का नाकरण वीरगाा काल हिकया व योगय नी डॉहियसन का मत डॉहिगरयसन न हिदी साहितय क इहितास क पर काल को चारणकाल ना दिदया पर इस ना क पकष व कोई ठोस तक नी द पाय उनोन हिदी साहितय क इहितास का परारभ 643 ई स ानी हिकनत उस सय की हिकसी चारण रचना या परवततिM का उललख उनोन नी हिकया वसततः इस परकार की रचनाए 1000 ईस तक मिलती ी नी इस थिलए डॉहिगरयसन दवारा दिदया गया ना योगय नी

मिमशरबधओ का मतमिशरबधओ न ईस 643 स 1387 तक क काल को परारततिभक काल का य एक साानय ना और इस हिकसी परवततिM को आधार नी बनाया गया य ना भी हिवदवानो को सवीकाय वी डॉामकमा वमा का मतडॉराकार वा- इनोन हिदी साहितय क परारततिभक काल को चारणकाल ना दिदया इस नाकरण क बार उनका कना हिक इस काल क सभी कहिव चारण इस तथय स इनकार नी हिकया जा सकता कयोहिक सभी कहिव राजाओ क दरबार-आशरय रनवाल उनक यशोगान करनवाल उनक दवारा रचा गया साहितय चारणी कलाता हिकनत हिवदवानो का ानना हिक जिजन रचनाओ का उललख वा जी न हिकया उन अनक रचनाए सदिदगध कछ तो आधहिनक काल की भी इस कारण डॉवा दवारा दिदया गया चारणकाल ना हिवदवानो को ानय नी ाहल सकतयायन का मतराहल सकतयायन- उनोन 8 वी स 13 वी शताबदी तक क काल को थिसदध-सात यग की रचनाए ाना उनक तानसार उस सय क कावय दो परवततिMयो की परखता मिलती - 1थिसदधो की वाणी- इसक अतगत बौदध ता ना-थिसदधो की ता जनहिनयो की उपदशलक ता ठयोग की हिRया का हिवसतार स परचार करनवाली रसयलक रचनाए आती 2सातो की सतहित- इसक अतगत चारण कहिवयो क चरिरत कावय (रासो गर) आत जिजन कहिवयो न अपन आशरय दाता राजा एव सातो की सतहित क थिलए यदध हिववा आदिद क परसगो का बढा-चढाकर वणन हिकया इन गरो वीरतव का नवीन सवर खरिरत हआ राहल जी का य त भी हिवदवानो दवारा ानय नी कयोहिक इस नाकरण स लौहिकक रस का उललख करनवाली हिकसी हिवशष रचना का पराण नी मिलता नापी ता ठयोगी कहिवयो ता खसरो आदिद की कावय-परवततिMयो का इस ना सावश नी ोता आचाय मावी परसा हि0वी का मतआचाय ावीर परसाद हिदववदी- उनोन हिदी साहितय क पर काल का ना बीज-बपन काल रखा उनका य ना योगय नी कयोहिक साहितयितयक परवततिMयो की दमिषट स य काल आदिदकाल नी य काल तो पववतT परिरहिनमित अपभरश की साहितयितयक परवततिMयो का हिवकास आचाय जाी परसा हि0वी का मतआचाय जारी परसाद हिदववदी- इनोन हिदी साहितय क इहितास क परारततिभक काल को आदिदकाल ना दिदया हिवदवान भी इस ना को अमिधक उपयकत ानत इस सदभ उनोन थिलखा - वसततः हिदी का आदिद काल शबद एक परकार की भराक धारणा की समिषट करता और शरोता क थिचM य भाव पदा करता हिक य काल कोई आदिद नोभावापनन परपराहिवहिनकत कावय-रसथिढयो स अछत साहितय का काल य ठीक वी य काल बहत अमिधक परपरा-परी रसथिढगरसत सजग और सचत कहिवयो का काल आदिदकाल ना ी अमिधक योगय कयोहिक साहितय की दमिषट स य काल अपभरश काल का हिवकास ी पर भाषा की दमिषट स य परिरहिनमित अपभरश स आग बढी हई भाषा की सचना दता आचाय जारीपरसाद हिदववदी न हिदी साहितय क आदिदकाल क लकषण-हिनरपण क थिलए हिनमनथिलखिखत पसतक आधारभत बतायी -

1पथवीराज रासो 2पराल रासो 3हिवदयापहित की पदावली 4कीरतितलता 5कीरतितपताका 6सदशरासक (अबदल रान) 7पउचरिरउ (सवयभ कत राायण) 8भहिवषयतका (धनपाल) 9परात-परकाश (जोइनद) 10बौदध गान और दोा (सपादक परपरसाद शासतरी) 11सवयभ छद और 12पराकत पगल नाम हिनणयइस परकार हिदी साहितय क इहितास क पर काल क नाकरण क रप आदिदकाल ना ी योगय व साक कयोहिक इस ना स उस वयापक पभमि का बोध ोता जिजस पर परवतT साहितय खडा भाषा की दमिषट स इस काल क साहितय हिदी क परारततिभक रप का पता चलता तो भाव की दमिषट स भथिकतकाल स लकर आधहिनक काल तक की सभी परख परवततिMयो क आदिद बीज इस खोज जा सकत इस काल की रचना-शथिलयो क खय रप इसक बाद क कालो मिलत आदिदकाल की आधयातमितक शरगारिरक ता वीरता की परवततिMयो का ी हिवकथिसत रप परवतT साहितय मिलता इस कारण आदिदकाल ना ी अमिधक उपयकत ता वयापक ना

सिसदध साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदध साहितय क इहितास चौरासी थिसदधो का उललख मिलता थिसदधो न बौदध ध क वजरयान ततव का परचार करन क थिलय जो साहितय जनभाषा थिलखा व हिनदी क थिसदध साहितय की सीा आता सिसदध सपा (सरपाद सरोजवजर राहल भरदर) स थिसदध समपरदाय की शरआत ानी जाती य पल थिसदध योगी जाहित स य बराहमण राहल साकतयायन न इनका जनकाल 769 ई का ाना जिजसस सभी हिवदवान सत इनक दवारा रथिचत बMीस गर बताए जात जिजन स lsquoदोाकोशrsquo हिनदी की रचनाओ परथिसदध इनोन पाखणड और आडमबर का हिवरोध हिकया ता गर सवा को तव दिदया इनक बाद इनकी परमपरा को आग बढान वाल परख थिसदध हए Rश इस परकार - शबपा इनका जन 780 ई हआ य कषहितरय सरपा स इनोन जञान परापत हिकया lsquoचयापदrsquo इनकी परथिसदध पसतक इनकी कहिवता का उदारण दखिखय- रिर य रिर तइला बाडी खस सतला षकडय सर कपास फ़दिटला तइला वाहिडर पासर जोणा वाहिड ताएला हिफ़टली अधारिर र आकास फ़थिलआ लइपा य राजा धपाल क राजयकाल कायसथ परिरवार जन शबरपा न इन अपना थिशषय ाना ा चौरासी थिसदधो इनका सबस ऊचा सथान ाना जाता उडीसा क ततकालीन राजा और तरी इनक थिशषय ो गए

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

In 1 आदिदकाल Comment

भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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Page 3: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

7 जारी परसाद हिदववदी - आदिदकाल8 राकार वा - चारण काल आचाय ामचदर शकल का मत आचाय राचदर शकल न इस काल का ना वीरगाा काल रखा इस नाकरण का आधार सपषट करत हए व थिलखत - hellipआदिदकाल की इस दीघ परपरा क बीच पर डढ-सौ वष क भीतर तो रचना की हिकसी हिवशष परवततिM का हिनcय नी ोता-ध नीहित शरगार वीर सब परकार की रचनाए दोो मिलती इस अहिनरदिदषट लोक परवततिM क उपरात जब स सलानो की चढाइयो का आरभ ोता तब स हिदी साहितय की परवततिM एक हिवशष रप बधती हई पात राजाततिशरत कहिव अपन आशरयदाता राजाओ क पराRपण चरिरतो या गााओ का वणन करत यी परबध परपरा रासो क ना स पायी जाती जिजस लकषय करक इस काल को न वीरगाा काल का इसक सदभ व तीन कारण बतात - 1इस काल की परधान परवततिM वीरता की ी अात इस काल वीरगाातक गरो की परधानता री 2अनय जो गर परापत ोत व जन ध स सबध रखत इसथिलए ना ातर और3 इस काल क फटकर दो परापत ोत जो साहितयितयक ता हिवततिभनन हिवषयो स सबमिधत हिकनत उसक आधार पर भी इस काल की कोई हिवशष परवततिM हिनधारिरत नी ोती शकल जी व इस काल की बार रचनाओ का उललख हिकया -1 हिवजयपाल रासो (नललसिस कत-स1355) 2मीर रासो (शागधर कत-स1357) 3 कीरतितलता (हिवदयापहित-स1460) 4कीरतितपताका (हिवदयापहित-स1460) 5 खाण रासो (दलपहितहिवजय-स1180) 6बीसलदव रासो (नरपहित नाल-स1212) 7 पथवीराज रासो (चद बरदाई-स1225-1249) 8जयचदर परकाश (भटट कदार-स 1225) 9 जययक जस चदिदरका (धकर कहिव-स1240) 10पराल रासो (जगहिनक कहिव-स1230) 11 खसरो की पथिलया (अीर खसरो-स1350) 12हिवदयापहित की पदावली (हिवदयापहित-स1460)शकल जी दवारा हिकय गय वीरगााकाल नाकरण क सबध कई हिवदवानो न अपना हिवरोध वयकत हिकया इन शरी ोतीलाल नारिरया आचाय जारीपरसाद हिदववदी आदिद खय आचाय हिदववदी का कना हिक वीरगाा काल की तवपण रचना पथवीराज रासो की रचना उस काल नी हई ी और य एक अध-परााततिणक रचना यी नी शकल न जिजन गो क आधार पर इस काल का नाकरण हिकया उन स कई रचनाओ का वीरता स कोई सबध नी बीसलदव रासो गीहित रचना जयचदर परकाश ता जययक जस चदिदरका -इन दोनो का वीरता स कोई सबध नी य गर कवल सचना ातर अीर खसरो की पथिलयो का भी वीरतव स कोई सबध नी हिवजयपाल रासो का सय मिशरबधओ न स1355 ाना अतः इसका भी वीरता स कोई सबध नी पराल रासो पथवीराज रासो की तर अध परााततिणक रचना ता इस गर का ल रप परापय नी कीरतितलता और कीरतितपताका- इन दोनो गरो की रचना हिवदयापहित न अपन आशरयदाता राजा कीरतितसिस की कीरतित क गणगान क थिलए थिलख उनका वीररस स कोई सबध नी हिवदयापहित की पदावली का हिवषय राधा ता अनय गोहिपयो स कषण की पर-लीला इस परकार शकल जी न जिजन आधार पर इस काल का नाकरण वीरगाा काल हिकया व योगय नी डॉहियसन का मत डॉहिगरयसन न हिदी साहितय क इहितास क पर काल को चारणकाल ना दिदया पर इस ना क पकष व कोई ठोस तक नी द पाय उनोन हिदी साहितय क इहितास का परारभ 643 ई स ानी हिकनत उस सय की हिकसी चारण रचना या परवततिM का उललख उनोन नी हिकया वसततः इस परकार की रचनाए 1000 ईस तक मिलती ी नी इस थिलए डॉहिगरयसन दवारा दिदया गया ना योगय नी

मिमशरबधओ का मतमिशरबधओ न ईस 643 स 1387 तक क काल को परारततिभक काल का य एक साानय ना और इस हिकसी परवततिM को आधार नी बनाया गया य ना भी हिवदवानो को सवीकाय वी डॉामकमा वमा का मतडॉराकार वा- इनोन हिदी साहितय क परारततिभक काल को चारणकाल ना दिदया इस नाकरण क बार उनका कना हिक इस काल क सभी कहिव चारण इस तथय स इनकार नी हिकया जा सकता कयोहिक सभी कहिव राजाओ क दरबार-आशरय रनवाल उनक यशोगान करनवाल उनक दवारा रचा गया साहितय चारणी कलाता हिकनत हिवदवानो का ानना हिक जिजन रचनाओ का उललख वा जी न हिकया उन अनक रचनाए सदिदगध कछ तो आधहिनक काल की भी इस कारण डॉवा दवारा दिदया गया चारणकाल ना हिवदवानो को ानय नी ाहल सकतयायन का मतराहल सकतयायन- उनोन 8 वी स 13 वी शताबदी तक क काल को थिसदध-सात यग की रचनाए ाना उनक तानसार उस सय क कावय दो परवततिMयो की परखता मिलती - 1थिसदधो की वाणी- इसक अतगत बौदध ता ना-थिसदधो की ता जनहिनयो की उपदशलक ता ठयोग की हिRया का हिवसतार स परचार करनवाली रसयलक रचनाए आती 2सातो की सतहित- इसक अतगत चारण कहिवयो क चरिरत कावय (रासो गर) आत जिजन कहिवयो न अपन आशरय दाता राजा एव सातो की सतहित क थिलए यदध हिववा आदिद क परसगो का बढा-चढाकर वणन हिकया इन गरो वीरतव का नवीन सवर खरिरत हआ राहल जी का य त भी हिवदवानो दवारा ानय नी कयोहिक इस नाकरण स लौहिकक रस का उललख करनवाली हिकसी हिवशष रचना का पराण नी मिलता नापी ता ठयोगी कहिवयो ता खसरो आदिद की कावय-परवततिMयो का इस ना सावश नी ोता आचाय मावी परसा हि0वी का मतआचाय ावीर परसाद हिदववदी- उनोन हिदी साहितय क पर काल का ना बीज-बपन काल रखा उनका य ना योगय नी कयोहिक साहितयितयक परवततिMयो की दमिषट स य काल आदिदकाल नी य काल तो पववतT परिरहिनमित अपभरश की साहितयितयक परवततिMयो का हिवकास आचाय जाी परसा हि0वी का मतआचाय जारी परसाद हिदववदी- इनोन हिदी साहितय क इहितास क परारततिभक काल को आदिदकाल ना दिदया हिवदवान भी इस ना को अमिधक उपयकत ानत इस सदभ उनोन थिलखा - वसततः हिदी का आदिद काल शबद एक परकार की भराक धारणा की समिषट करता और शरोता क थिचM य भाव पदा करता हिक य काल कोई आदिद नोभावापनन परपराहिवहिनकत कावय-रसथिढयो स अछत साहितय का काल य ठीक वी य काल बहत अमिधक परपरा-परी रसथिढगरसत सजग और सचत कहिवयो का काल आदिदकाल ना ी अमिधक योगय कयोहिक साहितय की दमिषट स य काल अपभरश काल का हिवकास ी पर भाषा की दमिषट स य परिरहिनमित अपभरश स आग बढी हई भाषा की सचना दता आचाय जारीपरसाद हिदववदी न हिदी साहितय क आदिदकाल क लकषण-हिनरपण क थिलए हिनमनथिलखिखत पसतक आधारभत बतायी -

1पथवीराज रासो 2पराल रासो 3हिवदयापहित की पदावली 4कीरतितलता 5कीरतितपताका 6सदशरासक (अबदल रान) 7पउचरिरउ (सवयभ कत राायण) 8भहिवषयतका (धनपाल) 9परात-परकाश (जोइनद) 10बौदध गान और दोा (सपादक परपरसाद शासतरी) 11सवयभ छद और 12पराकत पगल नाम हिनणयइस परकार हिदी साहितय क इहितास क पर काल क नाकरण क रप आदिदकाल ना ी योगय व साक कयोहिक इस ना स उस वयापक पभमि का बोध ोता जिजस पर परवतT साहितय खडा भाषा की दमिषट स इस काल क साहितय हिदी क परारततिभक रप का पता चलता तो भाव की दमिषट स भथिकतकाल स लकर आधहिनक काल तक की सभी परख परवततिMयो क आदिद बीज इस खोज जा सकत इस काल की रचना-शथिलयो क खय रप इसक बाद क कालो मिलत आदिदकाल की आधयातमितक शरगारिरक ता वीरता की परवततिMयो का ी हिवकथिसत रप परवतT साहितय मिलता इस कारण आदिदकाल ना ी अमिधक उपयकत ता वयापक ना

सिसदध साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदध साहितय क इहितास चौरासी थिसदधो का उललख मिलता थिसदधो न बौदध ध क वजरयान ततव का परचार करन क थिलय जो साहितय जनभाषा थिलखा व हिनदी क थिसदध साहितय की सीा आता सिसदध सपा (सरपाद सरोजवजर राहल भरदर) स थिसदध समपरदाय की शरआत ानी जाती य पल थिसदध योगी जाहित स य बराहमण राहल साकतयायन न इनका जनकाल 769 ई का ाना जिजसस सभी हिवदवान सत इनक दवारा रथिचत बMीस गर बताए जात जिजन स lsquoदोाकोशrsquo हिनदी की रचनाओ परथिसदध इनोन पाखणड और आडमबर का हिवरोध हिकया ता गर सवा को तव दिदया इनक बाद इनकी परमपरा को आग बढान वाल परख थिसदध हए Rश इस परकार - शबपा इनका जन 780 ई हआ य कषहितरय सरपा स इनोन जञान परापत हिकया lsquoचयापदrsquo इनकी परथिसदध पसतक इनकी कहिवता का उदारण दखिखय- रिर य रिर तइला बाडी खस सतला षकडय सर कपास फ़दिटला तइला वाहिडर पासर जोणा वाहिड ताएला हिफ़टली अधारिर र आकास फ़थिलआ लइपा य राजा धपाल क राजयकाल कायसथ परिरवार जन शबरपा न इन अपना थिशषय ाना ा चौरासी थिसदधो इनका सबस ऊचा सथान ाना जाता उडीसा क ततकालीन राजा और तरी इनक थिशषय ो गए

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 4: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

मिमशरबधओ का मतमिशरबधओ न ईस 643 स 1387 तक क काल को परारततिभक काल का य एक साानय ना और इस हिकसी परवततिM को आधार नी बनाया गया य ना भी हिवदवानो को सवीकाय वी डॉामकमा वमा का मतडॉराकार वा- इनोन हिदी साहितय क परारततिभक काल को चारणकाल ना दिदया इस नाकरण क बार उनका कना हिक इस काल क सभी कहिव चारण इस तथय स इनकार नी हिकया जा सकता कयोहिक सभी कहिव राजाओ क दरबार-आशरय रनवाल उनक यशोगान करनवाल उनक दवारा रचा गया साहितय चारणी कलाता हिकनत हिवदवानो का ानना हिक जिजन रचनाओ का उललख वा जी न हिकया उन अनक रचनाए सदिदगध कछ तो आधहिनक काल की भी इस कारण डॉवा दवारा दिदया गया चारणकाल ना हिवदवानो को ानय नी ाहल सकतयायन का मतराहल सकतयायन- उनोन 8 वी स 13 वी शताबदी तक क काल को थिसदध-सात यग की रचनाए ाना उनक तानसार उस सय क कावय दो परवततिMयो की परखता मिलती - 1थिसदधो की वाणी- इसक अतगत बौदध ता ना-थिसदधो की ता जनहिनयो की उपदशलक ता ठयोग की हिRया का हिवसतार स परचार करनवाली रसयलक रचनाए आती 2सातो की सतहित- इसक अतगत चारण कहिवयो क चरिरत कावय (रासो गर) आत जिजन कहिवयो न अपन आशरय दाता राजा एव सातो की सतहित क थिलए यदध हिववा आदिद क परसगो का बढा-चढाकर वणन हिकया इन गरो वीरतव का नवीन सवर खरिरत हआ राहल जी का य त भी हिवदवानो दवारा ानय नी कयोहिक इस नाकरण स लौहिकक रस का उललख करनवाली हिकसी हिवशष रचना का पराण नी मिलता नापी ता ठयोगी कहिवयो ता खसरो आदिद की कावय-परवततिMयो का इस ना सावश नी ोता आचाय मावी परसा हि0वी का मतआचाय ावीर परसाद हिदववदी- उनोन हिदी साहितय क पर काल का ना बीज-बपन काल रखा उनका य ना योगय नी कयोहिक साहितयितयक परवततिMयो की दमिषट स य काल आदिदकाल नी य काल तो पववतT परिरहिनमित अपभरश की साहितयितयक परवततिMयो का हिवकास आचाय जाी परसा हि0वी का मतआचाय जारी परसाद हिदववदी- इनोन हिदी साहितय क इहितास क परारततिभक काल को आदिदकाल ना दिदया हिवदवान भी इस ना को अमिधक उपयकत ानत इस सदभ उनोन थिलखा - वसततः हिदी का आदिद काल शबद एक परकार की भराक धारणा की समिषट करता और शरोता क थिचM य भाव पदा करता हिक य काल कोई आदिद नोभावापनन परपराहिवहिनकत कावय-रसथिढयो स अछत साहितय का काल य ठीक वी य काल बहत अमिधक परपरा-परी रसथिढगरसत सजग और सचत कहिवयो का काल आदिदकाल ना ी अमिधक योगय कयोहिक साहितय की दमिषट स य काल अपभरश काल का हिवकास ी पर भाषा की दमिषट स य परिरहिनमित अपभरश स आग बढी हई भाषा की सचना दता आचाय जारीपरसाद हिदववदी न हिदी साहितय क आदिदकाल क लकषण-हिनरपण क थिलए हिनमनथिलखिखत पसतक आधारभत बतायी -

1पथवीराज रासो 2पराल रासो 3हिवदयापहित की पदावली 4कीरतितलता 5कीरतितपताका 6सदशरासक (अबदल रान) 7पउचरिरउ (सवयभ कत राायण) 8भहिवषयतका (धनपाल) 9परात-परकाश (जोइनद) 10बौदध गान और दोा (सपादक परपरसाद शासतरी) 11सवयभ छद और 12पराकत पगल नाम हिनणयइस परकार हिदी साहितय क इहितास क पर काल क नाकरण क रप आदिदकाल ना ी योगय व साक कयोहिक इस ना स उस वयापक पभमि का बोध ोता जिजस पर परवतT साहितय खडा भाषा की दमिषट स इस काल क साहितय हिदी क परारततिभक रप का पता चलता तो भाव की दमिषट स भथिकतकाल स लकर आधहिनक काल तक की सभी परख परवततिMयो क आदिद बीज इस खोज जा सकत इस काल की रचना-शथिलयो क खय रप इसक बाद क कालो मिलत आदिदकाल की आधयातमितक शरगारिरक ता वीरता की परवततिMयो का ी हिवकथिसत रप परवतT साहितय मिलता इस कारण आदिदकाल ना ी अमिधक उपयकत ता वयापक ना

सिसदध साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदध साहितय क इहितास चौरासी थिसदधो का उललख मिलता थिसदधो न बौदध ध क वजरयान ततव का परचार करन क थिलय जो साहितय जनभाषा थिलखा व हिनदी क थिसदध साहितय की सीा आता सिसदध सपा (सरपाद सरोजवजर राहल भरदर) स थिसदध समपरदाय की शरआत ानी जाती य पल थिसदध योगी जाहित स य बराहमण राहल साकतयायन न इनका जनकाल 769 ई का ाना जिजसस सभी हिवदवान सत इनक दवारा रथिचत बMीस गर बताए जात जिजन स lsquoदोाकोशrsquo हिनदी की रचनाओ परथिसदध इनोन पाखणड और आडमबर का हिवरोध हिकया ता गर सवा को तव दिदया इनक बाद इनकी परमपरा को आग बढान वाल परख थिसदध हए Rश इस परकार - शबपा इनका जन 780 ई हआ य कषहितरय सरपा स इनोन जञान परापत हिकया lsquoचयापदrsquo इनकी परथिसदध पसतक इनकी कहिवता का उदारण दखिखय- रिर य रिर तइला बाडी खस सतला षकडय सर कपास फ़दिटला तइला वाहिडर पासर जोणा वाहिड ताएला हिफ़टली अधारिर र आकास फ़थिलआ लइपा य राजा धपाल क राजयकाल कायसथ परिरवार जन शबरपा न इन अपना थिशषय ाना ा चौरासी थिसदधो इनका सबस ऊचा सथान ाना जाता उडीसा क ततकालीन राजा और तरी इनक थिशषय ो गए

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 5: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

1पथवीराज रासो 2पराल रासो 3हिवदयापहित की पदावली 4कीरतितलता 5कीरतितपताका 6सदशरासक (अबदल रान) 7पउचरिरउ (सवयभ कत राायण) 8भहिवषयतका (धनपाल) 9परात-परकाश (जोइनद) 10बौदध गान और दोा (सपादक परपरसाद शासतरी) 11सवयभ छद और 12पराकत पगल नाम हिनणयइस परकार हिदी साहितय क इहितास क पर काल क नाकरण क रप आदिदकाल ना ी योगय व साक कयोहिक इस ना स उस वयापक पभमि का बोध ोता जिजस पर परवतT साहितय खडा भाषा की दमिषट स इस काल क साहितय हिदी क परारततिभक रप का पता चलता तो भाव की दमिषट स भथिकतकाल स लकर आधहिनक काल तक की सभी परख परवततिMयो क आदिद बीज इस खोज जा सकत इस काल की रचना-शथिलयो क खय रप इसक बाद क कालो मिलत आदिदकाल की आधयातमितक शरगारिरक ता वीरता की परवततिMयो का ी हिवकथिसत रप परवतT साहितय मिलता इस कारण आदिदकाल ना ी अमिधक उपयकत ता वयापक ना

सिसदध साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदध साहितय क इहितास चौरासी थिसदधो का उललख मिलता थिसदधो न बौदध ध क वजरयान ततव का परचार करन क थिलय जो साहितय जनभाषा थिलखा व हिनदी क थिसदध साहितय की सीा आता सिसदध सपा (सरपाद सरोजवजर राहल भरदर) स थिसदध समपरदाय की शरआत ानी जाती य पल थिसदध योगी जाहित स य बराहमण राहल साकतयायन न इनका जनकाल 769 ई का ाना जिजसस सभी हिवदवान सत इनक दवारा रथिचत बMीस गर बताए जात जिजन स lsquoदोाकोशrsquo हिनदी की रचनाओ परथिसदध इनोन पाखणड और आडमबर का हिवरोध हिकया ता गर सवा को तव दिदया इनक बाद इनकी परमपरा को आग बढान वाल परख थिसदध हए Rश इस परकार - शबपा इनका जन 780 ई हआ य कषहितरय सरपा स इनोन जञान परापत हिकया lsquoचयापदrsquo इनकी परथिसदध पसतक इनकी कहिवता का उदारण दखिखय- रिर य रिर तइला बाडी खस सतला षकडय सर कपास फ़दिटला तइला वाहिडर पासर जोणा वाहिड ताएला हिफ़टली अधारिर र आकास फ़थिलआ लइपा य राजा धपाल क राजयकाल कायसथ परिरवार जन शबरपा न इन अपना थिशषय ाना ा चौरासी थिसदधो इनका सबस ऊचा सथान ाना जाता उडीसा क ततकालीन राजा और तरी इनक थिशषय ो गए

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 6: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

डोमभि5या गध क कषहितरय वश जन डोमभिFया न हिवरपा स दीकषा गरण की ी इनका जनकाल 840 ई रा इनक दवारा इककीस गरो की रचना की गई जिजन lsquoडोतमिमब-गीहितकाrsquo rsquoयोगाचयाrsquo और lsquoअकषरहिदवकोपदशrsquo परख कणपा इनका जन बराहमण वश 820 ई हआ ा य कनाटक क लहिकन हिबार क सोपरी सथान पर रत जालधरपा को इनोन अपना गर बनाया ा इनक थिलख चौMर गर बताए जात य पौराततिणक रसथिढयो और उन फल भरो क खिखलाफ कककरिपा कहिपलवसत क बराहमण कल इनका जन हआ चपटीया इनक गर इनक दवारा रथिचत 16 गर ान गए

नाथ साहितयPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परहितहिRया क रप आदिदकाल नापथियो की ठयोग साधना आरF हई इस प को चलान वाल तसयनदरना (छदरना) ता गोरखना (गोरकषना) ान जात इस प क साधक लोगो को योगी अवधत थिसदध औघड का जाता का य भी जाता हिक थिसदधत और नात एक ी थिसदधो की भोग-परधान योग-साधना की परवततिM न एक परकार की सवचछदता को जन दिदया जिजसकी परहितहिRया ना सपरदाय शर हआ ना-साध ठयोग पर हिवशष बल दत व योग ागT व हिनगण हिनराकार ईशवर को ानत ताकथित नीची जाहितयो क लोगो स कई पहच हए थिसदध एव ना हए ना-सपरदाय गोरखना सबस तवपण आपकी कई रचनाए परापत ोती इसक अहितरिरकत चौरनगीना गोपीचनद भररी आदिद ना पनथ क परख कहिव इस सय की रचनाए साधारणतः दोो अवा पदो परापत ोती कभी-कभी चौपाई का भी परयोग मिलता परवतT सत-साहितय पर थिसधदो और हिवशषकर नाो का गरा परभाव पडा गोरकषना क जनकाल पर हिवदवानो तभद राहल साकतयायन इनका जनकाल 845 ई की 13 वी सदी का ानत ना परमपरा की शरआत बहत पराचीन री हिकत गोरखना स इस परमपरा को सवयवसथिसथत हिवसतार मिला गोरखना क गर तसयनदरना दोनो को चौरासी थिसदधो परख ाना जाता गर गोरखना को गोरकषना भी का जाता इनक ना पर एक नगर का ना गोरखपर गोरखना ना साहितय क आरFकता ान जात गोरखपी साहितय क अनसार आदिदना सवय भगवान थिशव को ाना जाता थिशव की परमपरा को सी रप आग बढान वाल गर तसयनदरना हए ऐसा ना समपरदाय ाना जाता गोरखना स पल अनक समपरदाय जिजनका ना समपरदाय हिवलय ो गया शव एव शाकतो क अहितरिरकत बौदध जन ता वषणव योग ागT भी उनक समपरदाय आ मिल गोरखना न अपनी रचनाओ ता साधना योग क अग हिRया-योग अात तप सवाधयाय और ईशवर परणीधान को अमिधक तव दिदया इनक ाध य स ी उनोन ठयोग का उपदश दिदया गोरखना शरीर और न क सा नए-नए

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

In 1 आदिदकाल Comment

भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 7: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

परयोग करत गोरखना दवारा रथिचत गरो की सखया ४० बताई जाती हिकनत डा बड़थयाल न कवल १४ रचनाए ी उनक दवारा रथिचत ानी जिजसका सकलन lsquoगोरखबानीrsquo हिकया गया जनशरहित अनसार उनोन कई कदिठ न (आड-हित रछ) आसनो का आहिवषकार भी हिकया उनक अजब आसनो को दख लोग अ चमभिFत ो जात आग चलकर कई कावत परचलन आई जब भी कोई उलट-सीध काय करता तो का जाता हिक lsquoय कया गोरखधधा लगा रखा rsquo गोरखना का ानना ा हिक थिसजिदधयो क पार जाकर शनय सामिध सथिसथत ोना ी योगी का पर लकषय ोना चाहिए शनय सामिध अात सामिध स कत ो जाना और उस पर थिशव क सान सवय को सथाहिपत कर बरहमलीन ो जाना जा पर पर शथिकत का अनभव ोता ठयोगी कदरत को चनौती दकर कदरत क सार हिनयो स कत ो जाता और जो अदशय कदरत उस भी लाघकर पर शदध परकाश ो जाता थिसदध योगी गोरखना क ठयोग की परमपरा को आग बढान वाल थिसदध योहिगयो परख - चौरगीना गोपीना चणकरना भतरिर जालनधरीपाव आदिद 13 वी सदी इनोन गोरख वाणी का परचार-परसार हिकया ा य एकशवरवाद पर बल दत बरहमवादी ता ईशवर क साकार रप क थिसवाय थिशव क अहितरिरकत कछ भी सतय नी ानत ना समपरदाय गर गोरखना स भी पराना गोरखना न इस समपरदाय क हिबखराव और इस समपरदाय की योग हिवदयाओ का एकतरीकरण हिकया पव इस सपरदाय का हिवसतार अस और उसक आसपास क इलाको ी जयादा रा बाद सच पराचीन भारत इनक योग ठ सथाहिपत हए आग चलकर य समपरदाय भी कई भागो हिवभकत ोता चला गया

ासो कावय वीगाथायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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पमाल ासो - इस गरनथ की ल परहित की नी मिलती इसक रचमियता क बार भी हिववाद पर इसका रचमियता ldquordquoोबा खणडrdquo को स १९७६ हिव डॉ शयासनदर दास न ldquordquoपराल रासोrdquo क ना स सपादिदत हिकया ा डॉ ाता परसाद गपत क अनसार य रचना सोलवी शती हिवRी की ो सकती इस रचना क समबनध काफी तभद शरी राचरण यारण ldquordquoमितरrdquo न अपनी कहित ldquordquoबनदलखणड की ससकहित और साहितयrdquo ldquoपराल रासोrdquo को चनद की सवतनतर रचना ाना हिकनत भाषा शली एव छनद -ोवा खणडrdquo स य काफी ततिभनन उनोन टीकागढ राजय क वयोवदध दरवारी कहिव शरी ldquordquoअतमिमबकशrdquo स इस रचना क कठसथ छनद लकर अपनी कहित उदारण सवरप दिदए रचना क एक छनद सय की सचना दी गई जिजसक अनसार इस १११५ हिव की रचना बताया गया जो पथवीराज एव चनद क सय की हितथियो स ल नी खाती इस आधार पर इस चनद की रचना कस ाना जा सकता य इस पराल चनदल क दरवारी कहिव जगाहिनक की रचना ान तो जगहिनक का रासो की भी उपलबध नी ोता सवगTय नदरपाल सिस न अपन एक लख थिलखा हिक जगहिनक का असली रासो अनपलबध इसक कछ हिसस

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

In 1 आदिदकाल Comment

भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 8: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

दहितया सर एव चरखारी राजयो वतान जो अब नषट ो चक पथवीाज ासो - य कहिव चनद की रचना इस दिदललीशवर पथवीराज क जीवन की घटनाओ का हिवशद वणन य एक हिवशाल ाकावय य तरवी शदी की रचना डा ातापरसाद गपत इस १४०० हिव क लगभग की रचना ानत पथवीराज रासो की एहिताथिसकता हिववादगरसत वीसलव ासो - य रचना पततिcी राजसथान की रचना हितथि स १४०० हिव क आसपास की इसक रचमियता नरपहित नाल रचना वीर गीतो क रप उपलबध इस वीसलदव क जीवन क १२ वष क कालखणड का वणन हिकया गया ममी ासो - इस रचना की कोई ल परहित नी मिलती इसका रचमियता शाङरiexclगधर ाना जाता पराकत पगल इसक कछ छनद उदारण क रप दिदए गय गरनथ की भाषा मीर क सय क कछ बाद की लगती अतः भाषा क आधार पर इस मीर क कछ बाद का ाना जा सकता बतरदध ासो- इसका रचमियता जल जिजस पथवीराज रासो का परक कहिव भी ाना गया कहिव न रचना सय नी दिदया इस पथवीराज रासो क बाद की रचना ाना जाता मज ास - य अपभरश की रचना इस लखक का ना की नी दिदया गया रचना काल क हिवषय कोई हिनततिcत त नी मिलता चनदर की य वयाकरण रचना स ११९० की ज का शासन काल १००० -१०५४ हिव ाना जाता इसथिलए य रचना १०५४-११९० हिव क बीच कभी थिलखी गई ोगी इस ज क जीवन की एक परणय का का थिचतरण कनाटक क राजा तलप क या बनदी क रप ज का पर तलप की हिवधवा पतरी णालवती स ी जाता ज उसको लकर बनदीग स भागन का परसताव करता हिकनत णालवती अपन परी को वी रखकर अपना परणय समबनध हिनभाना चाती ी इसथिलए उसन तलप को भद द दिदया जिजसक परिरणासवरप Rोधी तलप न णालवती क सान ी उसक परी ज को ाी स कचलवाकर ार डाला का सतर को दखत हए रचना छोटी परतीत नी ोतीखममाण ासो - इसकी रचना कहिव दलपहित हिवजय न की इस खाण क सकालीन अातदय स ७९० स ८९० हिव ाना गया हिकनत इसकी परहितयो राणा सगरा सिस हिदवतीय क सय १७६०-१७९० क पव की नी ोनी चाहिए डॉ उदयनारायण हितवारी न शरी अगरचनद नाटा क एक लख क अनसार इस स १७३०-१७६० क धय थिलखा बताया गया जबहिक शरी राचनदर शकल इस स ९६९-स ८९९ क बीच की रचना ानत उपलबध पराणो क आधार पर इस स १७३०-७९० क धय थिलखा ाना जा सकता ममी ासो- इसक रचमियता श कहिव य रचना जोधराज कM मीर रासो क पल की छनद सखया लगभग ३०० इस रणभौर क राणा मीर का चरिरतर वणन हिवजय पाल ासो - नल थिस भाट कत इस रचना क कवल ४२ छनद उपलबध हिवजयपाल हिवजयगढ करौली क यादव राजा इसक आततिशरत कहिव क रप नल थिस का ना आता रचना की भाषा स य १७ वी शताबदी स पव की नी ो सकती सनश ासक - य अपभरश की रचना रथिचमियता अबदल रान य रचना ल सथान या लतान क कषतर स समबतमिनधत कल छनद सखया २२३ य रचना हिवपरलF शरगार की इस हिवजय नगर की कोई हिवयोहिगनी अपन पहित को सदश भजन क थिलए वयाकल तभ कोई पथिक आ जाता और व हिवरहिणी उस अपन हिवर जहिनत कषटो को सनात लगती जब पथिक उसस पछता हिक उसका पहित हिक ॠत गया तो व उMर गरीष ॠत स परारF कर हिवततिभनन ॠतओ क हिवर जहिनत कषटो का वणन करन लगती य सब सनकर जब पथिक चलन लगता तभी उसका परवासी पहित आ जाता य रचना स ११०० हिव क पcातदय की ाणा ासो - दयाल दास दवारा हिवरथिचत इस गरनथ शीशौदिदया वश क राजाओ क यदध एव जीवन की घटनाओ का हिवसतार पवक वणन १३७५-१३८१ क धय का ो सकता इस रतला क राजा रतनसिस का वM वरणिणत हिकया गया कायम ासो - य रासो ldquordquoनयात खा जानrdquo दवारा रचा गया इसका रचना काल स १६९१ हिकनत इस १७१०

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

In 1 आदिदकाल Comment

भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 9: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

हिव की घअना वाला कछ अश परततिकषपत कयोहिक यदिद कहिव इस सय तक जीहिवत ा तो उसन पव हितथि सचक कयो बदला य वसा का वसा ी थिलखा इस राजसथान क कायखानी वश का इहितास वरणिणत शतर साल ासो- रचमियता डगरसी कहिव इसका रचना काल स १७१० ाना गया छद सखया लगभग ५०० इस बदी क राव शतरसाल का वM वरणिणत हिकया गया आकण ासो - य एक परकार का ासय रासो इस खटल क जीवन चरिरतर का वणन हिकया गया इसका रचमियता कीरतितसनदर रचना स १७५७ हिव की इसकी कल छनद सख ३९ सागत सिस ासो- य हिगरधर चारण दवारा थिलखा गया इस शथिकतसिस एव उनक वशजो का वM वणन हिकया गया शरी अगरचनदर शरी अगरचनद नाटा इसका रचना काल स १७५५ क पcात का ानत इसकी छनद सखया ९४३ ाउजतसी ासो - इस रचना कहिव का ना नी दिदया गया और न रचना हितथि का ी सकत इस बीकानर क शासक राउ जतसी ता हाय क भाई कारान हए एक यदध का वणन जतसी का शासन काल स १५०३-१५१८ क आसपास रा अत-य रचना इसक कछ पcात की ी री ोगी इसकी कल छनद सखया ९० इस नरोM सवाी न राजसथान भारतीय परकाथिशत कराया ासा भगवनतसिस - सदाननद दवारा हिवरथिचत इस भगवनतसिस खीची क १७९७ हिव क एक यदध का वणन डॉ ातापरसाद गपत क अनसार य रचना स १७९७ क पcात की इस कल १०० छनद कहिया की ायसौ - य स १९३४ की रचना इसक रचमियता कहिव गलाब जिजनक शवशज ार चतवbrvbarदी चतभज वदय आतरी जिजला गवाथिलयर हिनवास करत शरी चतभज जी क वशज शरी रघननदन चतवbrvbarदी आज भी आनतरी गवाथिलया ी हिनवास करत जिजनक पास इस गररनथ की एक परहित वतान इस करहिया क पारो एव भरतपराधीश जवारसिस क बीच हए एक यदध का वणन ासो भइया बादसिस - इस गरनथ की रचना हितथि अहिनततिcत परनत इस वरणिणत घटना स १८५३ क एक यतर की इसी क आधार पर हिवदवानो न इसका रचना काल स १८५३ क आसपास बतलाया इसक रचमियता थिशवना ायचसा - य भी थिशवना की रचना इस भी रचना काल नी दिदया उपयकत ldquordquoरासा भइया बादर सिसrdquo क आधार पर ी इस भी स १८५३ क आसपास का ी ाना जा सकता इस धारा क जसवतसिस और रीवा क अजीतसिस क धय हए एक यदध का वणन कसिलयग ासो - इस कथिलयगका वणन य अथिल राथिसक गोहिवनद की रचना इसकी रचना हितथि स १८३५ ता छनद सखया ७० वलपहिताव ायसा - इसक रचमियता कहिव जोगीदास भाणडरी इस ाराज दलपहितराव क जीवन काल क हिवततिभनन यदधो की घटनाओ का वणन हिकया गया कहिव न दलपहित राव क अतयिनत यदध जाजऊ स १७६४ हिव उसकी वीरगहित क पcात रायसा थिलखन का सकत दिदया इसथिलय य रचना स १४६४ की ी ानी जानी चाहिए रासो क अधययन स ऐसा लगता हिक कहिव ाराजा दलपहितराव का सकालीन ा इस गरनथ दलपहितराव क हिपता शभकण का भी वM वरणिणत अतः य दो रायसो का सतमिमथिलत ससकरण इसकी कल छनद सखया ३१३ इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव न हिकया ता ldquoकनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा नस भारतीय साहितय क नशी अततिभननदन अक इस परकाथिशत हिकया गया शतर जीत ायसा - बनदली भाषा क इस दसर रायस क रचमियता हिकशनश भाट इसकी छनद सखया ४२६ इस रचना क छनद ४२५ व क अनसार इसका रचना काल स १८५८ हिव ठरता दहितया नरश शतर जीत का सय स १८१९ स १९४८ हिव तदनसार सनदय १७६२ स १८०१ तक रा य रचना ाराजा शतरजीत सिस क जीवन की एक अतयिनत घटना स समबतमिनधत इस गवाथिलयर क वसतमिनधया ाराजा दौलतराय क फरानसीसी सनापहित पीर और शतरजीत सिस क धय सवढा क हिनकट हए एक यदध का सहिवसतार वणन इसका सपादन शरी रिर ोनलाल

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

In 1 आदिदकाल Comment

भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
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Page 10: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

शरीवासतव न हिकया ता इस ldquordquoभारतीय साहितयrdquo कनयालालनशी हिदी हिवदयापीठ आगरा दवारा परकाथिशत हिकया गया गढ पथना ासो- रचमियता कहिव चतरानन इस १८३३ हिव क एक यदध का वणन हिकया गया छनद सखया ३१९ इस वरणिणत यदध आधहिनक भरतपर नगर स ३२ ील पव पना गरा वा क वीरो और सादत अली क धय लडा गया ा भरतपर क राजा सजारनसिस क अगरकषक शादलसिस क पतरो क अदमय उतसा एव वीरता का वणन हिकया गया बाब वनदावनदास अततिभननदन गरनथ सन १९७५ हिनदी साहितय समलन इलााबाद दवारा इसका हिववरण परकाथिशत हिकया गयापाीछत ायसा - इसक रचमियता शरीधर कहिव रायसो दहितया क वयोवदध नरश पारीछत की सना एव टीकागढ क राजा हिवRाजीतसिस क बाघाट सथिसथत दीवान गनधवसिस क धय हए यदध का वणन यदध की हितथि स १८७३ दी गई अतएव य रचना स १८७३ क पcात की ी री ोगी इसका समपादन शरी रिरोन लाल शरीवासतव क दवारा हिकया गया ता भारतीय साहितय सनदय १९५९ कनयालाल नशी हिनदी हिवदयापीठ आगरा दवारा इस परकाथिशत हिकया गयाबाघाट ासो - इसक रचमियता परधान आननदसिस कडरा इस ओरछा एव दहितया राजयो क सीा समबनधी तनाव क कारण हए एक छोट स यदध का वणन हिकया गया इस रचना पदय क सा बनदली गदय की भी सनदर बानगी मिलती बाघाट रासो बनदली बोली का परचथिलत रप पाया जाता कहिव दवारा दिदया गया सय बसाख सदिद १५ सवत १८७३ हिवRी अल सवत १८७२ दिदया गया इस शरी रिरोनलाल शरीवासतव दवारा समपादिदत हिकया गया ता य भारतीय साहितय दिदरत इस ldquordquoबाघाइट कौ राइसोrdquo क ना स ldquordquoहिवधय थिशकषाrdquo ना की पहितरका भी परकाथिशत हिकया गया झासी की ायसी - इसक रचनाकार परधान कलयाणिणस कडरा इसकी छनद सखया लगभग २०० उपलबध पसतक छनद गणना क थिलए छनदो पर Rाक नी डाल गय इस झासी की रानी लकषीबाई ता टरी ओरछा वाली रानी थिलडई सरकार क दीवान नतथ खा क सा हए यदध का हिवसतत वणन हिकया गया झासी की रानी ता अगरजो क धय हए झासी कालपी कौच ता गवाथिलयर क यदधो का भी वणन सततिकषपत रप इस पाया जाता इसका रचना काल स १९२६ तदनसार १९६९ ई अातदय सन १९५७ क जन-आनदोलन क कल १२ वष की सयावमिध क पcात की रचना इस शरी रिरोन लाल शरीवासतव दहितया न ldquordquoवीरागना लकषीबाईrdquo रासो और कानी ना स समपादिदत कर सयोगी परकाशन जिनदर थिल दहितया स परकाथिशत कराया लकषमीबाई ासो - इसक रचमियता प दन ोन हिदववदी ldquordquoदनशrdquo कहिव की जनभमि झासी इस रचना का सपादन डॉ भगवानदास ाौर न हिकया य रचना परयाग साहितय समलन की ldquordquoसाहितय-ोपाधयायrdquo की उपामिध क थिलए भी सवीकत ो चकी इस कहित का रचनाकाल डॉ भगवानदास ाौर न स १९६१ क पव का ाना इसक एक भाग की सातयिपत पतमिषपका रचना हितथि स १९६१ दी गई रचना खसथिणडत उपलबध हई जिजस जयो का तयो परकाथिशत हिकया गया हिवथिचतरता य हिक इस कलयाणसिस कडरा कत ldquordquoझासी कौ रायसोrdquo क कछ छनद जयो क तयो कहिव न रख दिदय कल उपलबध छनद सखया ३४९ आठव भाग सातयिपत पतमिषपका नी दी गई जिजसस सपषट हिक रचना अभी पण नी इसका शष हिससा उपलबध नी ो सका कलयाण सिस कडरा कत रासो और इस रासो की का लगभग एक सी ी पर दनश कत रासो रानी लकषीवाई क ऐहिताथिसक एव सााजिजक जीवन का हिवशद थिचतरण मिलता छछ ायसा - बनदली बोली थिलखी गई य एक छोटी रचना छछदर रायस की पररणा का सरोत एक लोकोथिकत को ाना जा सकता - ldquordquoभई गहित साप छछदर करीrdquo इस रचना ासय क ना पर जातीय दवषभाव की झलक दखन को मिलती दहितया राजकीय पसतकालय मिली खसथिणडत परहित स न तो सी छनद सखया जञात ो सकी और न कहिव क समबनध ी कछ जानकारी उपलबध ो सकीफ रचना की भाषा जी हई बनदली अवशय ी ऐसी रचनाए दरबारी कहिवयो दवारा अपन आशरयदाता को परसनन करन अवा कायर कषहितरयतव पर वयगय क

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 11: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

थिलय थिलखी गई ोगी

जन साहितय की ास पक चनायPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on January 26 2008

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भारत क पततिcी भाग जन साधओ न अपन त का परचार हिनदी कहिवता क ाधय स हिकया इनोन ldquoरासrdquo को एक परभावशाली रचनाशली का रप दिदया जन तीplusmnकरो क जीवन चरिरत ता वषणव अवतारो की काय जन-आदशsup2 क आवरण lsquoरासlsquo ना स पदयबदध की गयी अतः जन साहितय का सबस परभावशाली रप lsquoरासlsquo गर बन गय वीरगााओ रास को ी रासो का गया हिकनत उनकी हिवषय भमि जन गरो स ततिभनन ो गई आदिदकाल रथिचत परख हिनदी जन साहितय का सततिकषपत परिरचय इस परकार ndash

1 उपदश रसायन रास- य अपभरश की रचना एव गजर परदश थिलखी गई इसक रचमियता शरी जिजनदM सरिर कहिव की एक और कततिM ldquoकालसवरप कलकlsquo १२०० हिव क आसपास की री ोगी य ldquoअपभरश कावय तरयीlsquo परकाथिशत और दसरा डॉ दशर ओझा और डॉ दशर शा क समपादन रास और रासानवयी कावय परकाथिशत हिकया गया

2 भरतशवर बाहबथिल रास- शाथिलभदर सरिर दवारा थिलखिखत इस रचना क दो ससकरण मिलत पला पराचय हिवदया जिनदर बडौदा स परकाथिशत हिकया गया ता दसरा ldquoरासlsquo और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत हआ कहित रचनाकाल स १२३१ हिव दिदया हआ इसकी छनद सखया २०३ इस जन तीकर ॠषभदव क पतरो भरतशवर और बाहबथिल राजगददी क थिलए हए सघष का वणरन

3 बजिदध रासlsquo य स १२४१ क आसपास की रचना इसक रचमियत शाथिलभदर सरिर कछ छनद सखया ६३ य उपदश परक रचना य भी ldquoरास और रासानवयी कावयlsquo परकाथिशत

4 जीवदया रास-य रचना जालोर पततिcी राजसथान की ldquoरास और रासानवयी कावय सकथिलत इसक रचमियता कहिव आसग स १२५७ हिव रथिचत इस रचना कल ५३ छनद

5 चनदर वाला रास-जीवदया रास क रचनाकार आसग की य दसरी रचना य भी १२५७ हिव क आसपास की रचना य शरी अगर चनद नाटा दवारा समपादिदत राजसथान भारती परकाथिशत

6 रवतहिगरिर रासlsquo य सोरठ परदश की रचना रचनाकार शरी हिवजय सन सरिर य स १२८८ हिव क आसपास की रचना ानी जाती य ldquoपराचीन गजर कावयlsquo परकाथिशत

7 नहित जिजणद रास या आब रास- य गजर परदश की रचना रचनाकार पालण एव रचना काल स १२०९ हिव

8 नमिना रास- इसक रचमियता सहित गण ान जात कहिव की एक अनय कहित गणधर साध शतक वततिM स १२९५ की अतः य रचना इस हितथि क आसपास की री ोगी

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 12: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

9 गय सकाल रास- य रचना दो ससकरणो मिली जिजनक आधर पर अनानतः इसकी रचना हितथि लगभग स १३०० हिव ानी गई इसक रचनाकार दलततिण शरी अगरचनद नाटा दवारा समपादिदत ldquoराजसथान भारतीlsquo पहितरका परकाथिशत ता दसराससकरण ldquoरास और रासानवयीlsquo कावय

10 सपत कषहितरस रास- य रचना गजर परदश की ता इसका रचना काल स १३२७ हिव ाना जाता

11 पड रास- य गजर परदश की रचना रचना डलीक 12 कचछथिल रास- य रचना भी गजर परदश क अनतगत रचना की हितथि स १३६३ हिव ानी

जाती 13 सरा रास - य अमबदव सरिर की रचना इस स १३६१ तक की घटनाओ का उललख

ोन स इसका रचनाकाल स १३७१ क बाद ाना गया य पाटण गजरात की रचना 14 प पडव रास- शाथिलभदर सरिर दवारा रथिचत य कहित स १४१० की रचना य भी गजर की

रचना इस हिवततिभनन छनदो की ७९५ पथिकतया 15 गौत सवाी रास- य स १४१२ की रचना इसक रचनाकार हिवनय परभ उपाधयाय 16 कार पाल रास- य गजर परदश की रचना रचनाकाल स १४३५ क लगभग का

इसक रचनाकार दवपरभ 17 कथिलकाल रास- इसक रचमियता राजसथान हिनवासी ीराननद सरिर य स १४८६ की रचना

१८ शरावकाचार- दवसन नाक परथिसदध जन आचाय न ९३३ ई इस कावय की रचना की इसक २५० दोो शरावक ध का परहितपादन हिकया

अमी खसोPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

अीर खसरो जन 1253 हिनधन 1325 कछ परख कहितया- lsquoतफ़ा-तस-थिसगरrsquo lsquoबाहिmiddotया नाहिmiddotयाrsquo lsquoतगलकनााrsquo lsquoन-थिसहिफ़रrsquo lsquoकरिरयाrsquo ज ाल मिसकी कल तगाफल दराय नना बनाय बहितया हिक ताब हिगजा न दार ऐजा न लह का लगाए छहितया शबान हिजा दाज य व रोज वसतल च इमर कोत सखी हिपया तो जो न दख तो कस काट अनधरी रहितया

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 13: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

छाप-हितलक तज दीनी र तोस नना मिला क पर बटी का दवा हिपला क तबारी कर दीनी र ोस नना मिला क खसरो हिनजा प बथिल-बथिल जइए ो सागन कीनी र ोस नना मिला क का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर भया को दिदयो बाबल ल दो-लाको दिदयो परदस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर खट की गयाजिजत ाक क ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर बल की कथिलयाघर-घर ाग ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस कोठ तल स पलहिकया जो हिनकलीबीरन छाए पछाड अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तो बाबल तोर हिपजर की थिचहिडयाभोर भय उड ज अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस तारो भरी न गहिडया जो छोडीछटा सली का सा अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस डोली का पदा उठा क जो दखाआया हिपया का दस अर लखिखय बाबल ोरका को बया हिबदस का को बया हिबदस अर लखिखय बाबल ोर दो -

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 14: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

खसरो रन साग की जागी पी क सग तन रो न हिपयो को दोउ भए एक रग खसरो दरिरया पर का उलटी वा की धार जो उतरा सो डब गया जो डबा सो पार खीर पकायी जतन स चरखा दिदया जला आया कMा खा गया त बठी ढोल बजा गोरी सोव सज पर ख पर डार कस चल खसरो घर आपन साझ भयी चह दस क करनी - थिलपट-थिलपट क वाक सोई छाती स छाती लगाक रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखी साजन ना सखी जाडा वो आय तब शादी ोव उस हिबन दजा और ना कोय ीठ लाग वाक बोल ऐ सखी साजन ना सखी ढोल सगरी रन छहितयन पर राखा रप रग सब वाका चाखा भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखी ार

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 15: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

दोसखन - राजा पयासा कय गधा उदास कय लोटा न ा दीवार कय टटी रा कय लटा राज न ा अनार कय न चखा वजीर कय न रखा दाना न ा दी कय न जा नौकर कय न रखा जामिन न ा घर कय अमिधयारा फकीर कय बडबडाया दिदया न ा गोशत कय न खाया डो कय न गाया गला न ा सोसा कय न खाया जता कय न पना तला न ा थिसतार कय न बजा औरत कय न नाई परदा न ा पहिडत कय न नाया धोबन कय न ारी गयी धोती न ी खिखचडी कय न पकायी कबतरी कय न उडायी छडी न ी पथिलया - एक गनी न य गन कीना रिरयल हिपजर द दीना दखो जादगर का काल डार रा हिनकाल लाल (पान)

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
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          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 16: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

एक परख सदर रत जो दख वो उसी की सरत हिफR पली पायी ना बोझन लागा आयी ना (आईना) बाला ा जब सबको भाया बडा हआ कछ का न आया खसरो क दिदया उसका नाव अ को नी छाडो गाव (दिदया) १खा गया पी गया द गया बMा ऐ सखिख साजन ना सखिख कMा २ थिलपट थिलपट क वा क सोई छाती स छाती लगा क रोई दात स दात बज तो ताडा ऐ सखिख साजन ना सखिख जाडा ३ रात सय व र आव भोर भय व घर उदिठ जाव य अचरज सबस नयारा ऐ सखिख साजन ना सखिख तारा ४ नग पाव हिफरन नहि दत पाव स मिटटी लगन नहि दत पाव का चा लत हिनपता ऐ सखिख साजन ना सखिख जता ५

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 17: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

ऊची अटारी पलग हिबछायो सोई र थिसर पर आयो खल गई अखिखया भयी आनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चाद ६ जब ाग तब जल भरिर लाव र न की तपन बझाव न का भारी तन का छोटा ऐ सखिख साजन ना सखिख लोटा ७ वो आव तो शादी ोय उस हिबन दजा और न कोय ीठ लाग वा क बोल ऐ सखिख साजन ना सखिख ढोल ८ बर-बर सोवतहि जगाव ना जाग तो काट खाव वयाकल हई ककी बककी ऐ सखिख साजन ना सखिख कखी ९ अहित सरग रग रगील गणवत बहत चटकीलो

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 18: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

रा भजन हिबन कभी न सोता ऐ सखिख साजन ना सखिख तोता १० आप हिल और ो हिलाए वा का हिलना ोए न भाए हिल हिल क वो हआ हिनसखा ऐ सखिख साजन ना सखिख पखा ११ अध हिनशा व आया भौन सदरता बरन कहिव कौन हिनरखत ी न भयो अनद ऐ सखिख साजन ना सखिख चद १२ शोभा सदा बढावन ारा आखिखन स थिछन ोत न नयारा आठ पर रो नरजन ऐ सखिख साजन ना सखिख अजन १३ जीवन सब जग जासो क वा हिबन नक न धीरज र र थिछनक हिय की पीर ऐ सखिख साजन ना सखिख नीर १४

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 19: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

हिबन आय सबी सख भल आय त अग-अग सब फल सीरी भई लगावत छाती ऐ सखिख साजन ना सखिख पाती १५ सगरी रन छहितया पर राख रप रग सब वा का चाख भोर भई जब दिदया उतार ऐ सखी साजन ना सखिख ार जीवन-परिरचयवशअीर खसरो क पवज जारा तक और उनक ल middotबील का ना lsquoलाचीनrsquo या lsquoजारय लाचीनrsquo ा lsquoजाराrsquo लतः कोई वश ा तकfrac12 शबद lsquoलाचीनrsquo का अ lsquoगलाrsquo इसस अनान लगता हिक जारा वश की हिकसी गला शाखा स इसका समबनध ा इनक middotबील का ल सथान तरतिकसतान का lsquoकशrsquo नाक सथान ा जो अब lsquoकबMल खजराrsquo कलाता कछ लोग इस lsquoाय गrsquo क पास का एक दसरा सथान भी ानत lsquoकशrsquo स इनक पवज बलख आ गय वी स इनक हिपता भारत आए जन-सथान अीर खसरो का जन-सथान काफ़ी हिववादासपद भारत सबस अमिधक परथिसदध य हिक व उMर परदश क एटा जिजल क lsquoपदिटयालीrsquo ना क सथान पर पदा हए कछ लोगो न गलती स lsquoपदिटयालीrsquo को lsquoपदिटयालाrsquo भी कर दिदया यदयहिप पदिटयाला स उनका कोई समबनध नी ा ा पदिटयाली स अवशय ा पदिटयाली क दसर ना ोमिनपर ता ोमिनाबाद भी मिलत पदिटयाली इनक जन की बात हाय क काल क ामिद हिबन फ़जललला जाली न अपन lsquoतजहिकराrsquo सरल आरफ़ीनrsquo सबस पल की उसी क आधार पर बाद लोग उनका जन पदिटयाली ोन की बात थिलखत और करत र हिनदी उद ता अगरजी की परायः सभी हिकताबो उनका जन पदिटयाली ी ाना गया एजीआबरी की परथिसदध पसतक lsquoकलाथिसकल रशिशयन थिलटरचरrsquo ता lsquoएनासाइकलोपीहिडया हिबरटाहिनकाrsquo जस परााततिणक गरनथो भी यी ानयता कछ लोगो न अीर खसरो का जन भारत क बार भी ोन की बात की उदारण क थिलए मद शफ़ी

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
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      • जन साहितय की रास परक रचनाय
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          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 20: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

ोअसथिललफ़ lsquoयखानाrsquo न lsquoखजन अखबारrsquo क वाल स अफ़गाहिनसतान काबल स पाच ील दर lsquoगोरबदrsquo ना क middotसब इनका जन ाना उनका कना हिक अीर खसरो क हिपता अपन भाइयो स लडकर काबल चल गय हिकत हिफर जब चगज खा उधर आया तो व भागकर हिफर भारत आ गय ऐस ी कछ लोगो न बखारा भी उनक पदा ोन की बात की दाहिगसतानी न थिलखा हिक इनका जन भारत क बार हआ और य अपन ा-बाप क सा बलख स हिनदसतान आए एक त य भी हिक इनकी ा जब बलख स आयी तो व गभवती ी ता इनका जन भारत ी हआइस सदी क सातव दशक 1976 पाहिकसतानी लखक ताज हसन की अीर खसरो पर एक पसतक परकाथिशत हई जिजस उनोन हिवसतार स अीर खसरो की जनभमि पर हिवचार करत हए उपयकत सभी तो का खणडन हिकया ता य थिसदध हिकया हिक खसरो का जन दिदलली हआ इसीथिलए उनोन अपनी पसतक का ना रखा lsquoअीर खसरो दलवी यात और शायरीrsquo छः वष बाद 1982 य पसतक भारत छपी वसततः लगता हिक खसरो दिदलली ी पदा हए पदिटयाली या काबल आदिद नी इसक पकष काफी बात की जा सकती यो उपयकत तो पदिटयाली या दिदलली जन-सथान ी अमिधकाश हिवदवानो को ानय र इन दोनो भी पकष-हिवपकष हिवचार करन पर सभावना यी लगती हिक व दिदलली ी पदा हए इस परसग हिनमनाहिकत बात दखी जा सकती - (1) इहितास बतलाता हिक 1253 जब अीर खसरो पदा हए पदिटयाली परायः जगल ा वा न तो बादशाी हिmiddotला ा और न बसती आस-पास क बागी राजपतो को दबान क थिलए हिmiddotला बाद बना और तभी बसती भी बसी ऐसी सथिसथहित वा अीर खसरो क पदा ोन का परशन ी नी उठता(2) उस काल की परथिसदध इहितास-पसतक lsquoतबकात-ए-नाथिसरrsquo (नाज सराज-थिलखिखत) खसरो क हिवषय काफ़ी कछ हिकनत इनक पदिटयाली जनन की बात नी (3) खसरो अपन काल अपनी फ़ारसी शायरी क थिलए फ़ारस (ईरान) भी परथिसदध ो गए वा क परथिसदध साहितयितयक इहितासो उनका ना आता जिजस उनकी पदाइश दिदलली थिलखी गयी वा क परथिसदध कहिवयो शख सादी स लकर अबबास इmiddotबाल तक सभी न उन lsquoखसरो दलवीrsquo का उनक ना क सा lsquoदलवीrsquo का जोडा जाना सपषट ी इसी ानयता पर आधारिरत हिक व दली पदा हए (4) खसरो क नाना दिदलली रत ता व एक नवसथिसल (नय-नय बन सलान) राजपत जिजनका ना रावल अादललक ा उनोन ध तो इसला अपनाया ा हिकनत उनक घर क रीहित-रिरवाज परी तर हिनदओ क ी जिजन परायः पला बचचा सतरी क ायक ी ोता खसरो क हिपता लाचीन middotबील क लाचीन लोगो भी य परमपरा ी इस तर अमिधक सभव यी हिक व अपन ा क सबस बड बट ोन क कारण अपन नाना क घर अात दिदलली ी पदा हए (5) य बात कई जग आई हिक पदाइश क बाद अीर खसरो क हिपता उन बकbrvbar लपटकर हिकसी सफ़ी सत क पास ल गय ता उस सत न थिशश खसरो को दखकर का हिक य एक खाकानी (ईरान क अतयनत परथिसदध कहिव) स भी बडा ोगा और middotयात तक इसका ना रगा लोगो का अनान हिक य सफ़ी सत जरत हिनजाददीन औथिलया जो दिदलली रत इस बात स भी उनकी पदाइश दिदलली ी ोन की बात थिसदध ोती (6) परायः वयथिकत का अपन जन-सथान स हिवशष लगाव ोता खसरो का इस तर का लगाव दिदलली स खब ा उनक साहितय सथान-सथान पर इस बात क सकत व जब भी दिदलली छोडकर अयोधया पदिटयाली लखनौती लतान या की और गए जलद-स-जलद लौट आय ता जब भी बार र दिदलली उन बार-बार याद आती री दिदलली स उनका लगाव इतना जयादा ा हिक उनोन lsquoसनवी करानससादनrsquo ना की एक नसवी दिदलली की हिवशषताओ स हिवशष रप स सबध थिलखी जिजस इसी कारण lsquoसनवी दर थिसफ़त-ए-दलीrsquo भी कत इस दिदलली

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
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      • आदिकाल क नामकरण की समसया
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          • ढोला मार रा दहा
Page 21: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

क थिलए lsquoअदन की जननतrsquo lsquoदिदल की रानीrsquo lsquoआख का नशाrsquo lsquoहिफरदोस-ए-पाकrsquo lsquoबाग-ए-अरrsquo lsquoजननत की रिरयालीrsquo ता lsquoचाद की कदrsquo जसी अततिभवयथिकतयो का परयोग अपन जीवन क परवतT भाग हिmiddotला बन जान क बाद उन पदिटयाली भी जाना पडता ा हिकनत य जग उन हिबलकल पसद नी ी इसीथिलए उनोन एक ओर जा दिदलली की खहिबयो को लकर एक सनवी थिलखी तो दसरी सनवी lsquoथिशकायतनाा ोमिनपर पदिटयालीrsquo थिलखी जिजस पदिटयाली की थिशकायत यो इस अफ़गानो की जयादहितयो का वणन ता इस भी उनोन बार-बार दिदलली को बडी ललक स याद हिकया (7) उनक हिपता का सबध भी कभी पदिटयाली स नी रा अतः यदिद व अपन नाना क या नी भी पदा हए ो तो पदिटयाली तो पद नी ी हए उनक हिपता भी बार स आकर ी दलली बस परथिसदध इहितासकार दौलतशा सरकदी न अीर खसरो क हिपता को lsquoदिदललीवालाrsquo का (8) खसरो क जो हिदी छनद आज मिलत उनकी भाषा या तो दिदलली की खडी बोली या अवधी दिदलली व पदा हए बड हए पढ-थिलख ता र भी इस तर या हिक भाषा उनकी ातभाषा अतः काफ़ी कछ इसी स थिलखा इसक अहितरिरकत अवध भी अयोधया ता लखतौनी व रत र अतः अवधी भी थिलखा गर पदिटयाली व जात तो र हिकनत व जग उन न रची न वा की बोली ी व अपना सक कना न ोगा हिक पदिटयाली बरज बोली जाती इसीथिलए उनकी रचनाओ स कोई भी बरज भाषा नी (9) अीर खसरो पर पसतक थिलखन वाल एक लखक 1 न य भी थिलखा हिक सवय अीर खसरो न य थिलखा हिक दिदलली उनका lsquoवतन-ए-असलrsquo हिकत इस बात का उनोन सदभ नी दिदया हिक खसरो न हिकस पसतक और का य बात की सभव हिक की उनोन ऐसा का ो ालाहिक यदिद की सवय खसरो न य बात की ोती तो उस अनतःसाकषय क आधार पर बहत पल स उनकी पदाइश भारत भी लोग दिदलली ी ानत ोत कयोहिक उनकी रचनाओ को लोग काफ़ी पल स पढत र यो यदिद सचच उनोन ऐसा थिलखा तब तो दिदलली पदा ोन की बात सभावना न ोकर एक सचचाई ानी जा सकती दिदलली उनका जन-सथान ानन वाल य भी कत र हिक खसरो का पतक घर दिदलली दरवाज क पास lsquoनक सरायrsquo ा जन-हितथिहिवततिभनन पसतको खसरो का जन 1252 1253 1254 या 1255 ई दिदया गया वसततः उनका जन हिजरी हआ ा जो ईसवी सन 1253-54 पडता नाखसरो का या ना lsquoखसरोrsquo न ा इनक हिपता न इनका ना lsquoअबल सनrsquo रखा ा lsquoखसरो ना इनका तखललस या उपना ा हिकनत आग चलकर इनका य उपना ी इतना परथिसदध हआ हिक लोग इनका या ना भल गयlsquoअीर खसरोrsquo lsquoअीरrsquo शबद का भी अपना अलग इहितास य भी इनक ना का ल अश नी जलालददीन खिखलजी न इनकी कहिवता स परसनन ो इन lsquoअीरrsquo का खिखताब दिदया और तब स य lsquoथिलककशोअरा अीर खसरो lsquo क जान लगाता-हिपता और भाईखसरो की ा एक ऐस परिरवार की ी जो लतः हिनद ा ता इसला ध सवीकार कर थिलया ा इनकी ातभाषा हिदी ी इनक नाना का ना रावल एादललक ा य बाद नवाब एादललक क ना स परथिसदध हए ता बलबन क यदधतरी बन य ी सलान बन यो लान बनन क बावजद इनक घर सार-रसो-रिरवाज हिनदओ क य दिदलली ी रत खसरो क हिपता सफ़ददीन द तरतिकसतान क लाचीन middotबील क एक सरदार गलो क अतयाचार स तग आकर य 13 वी सदी भारत आय भारत आकर य का बस इस सबध तभद कछ लोग जो खसरो की जनभमि पदिटयाली ानत य भी ानत हिक खसरो क हिपता भारत आकर पदिटयाली

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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Page 22: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

बस हिकत य बात बहत तक सगत नी हिक बीच लाौर दिदलली जस सथानो को छोडकर पदिटयाली जा बस जा उस सय जगल ा ता बसती भी नी ी ऐसी सथिसथहित य ठीक बात लगती हिक व दिदलली आकर बस (पीछ इस बात पर कछ हिवसतार स हिवचार हिकया जा चका ) य एक वीर योदधा ता अलततश न अपन दरबार इन ऊच पद पर हिनयकत हिकया ा इनका वारतिषक वतन बार सौ तनका (चादी का एक पराना थिसकका) ा कछ लोगो क अनसार य कल तीन भाई सबस बड इजजAtildeदीन आलीशा जो अरबी-फ़ारसी क हिवदवान दसर हिसाददीन जो अपन हिपता की तर योदधा और तीसर अबल सन जो कहिव ता आग चलकर जो lsquoअीर खसरोrsquo ना स परथिसदध हए कछ लोग खसरो को छोटा न ानकर बीच का भाई भी ानत ता हिसाददीन को छोटा भाई अमिधक परााततिणक त य हिक य दो भाई ी ता अीर खसरो ी बड इनक भाई जिजन कछ लोगो न इजजAtildeदीन अलीशा ता कछ लोगो न अजीज अलाउददीन शा का वसततः इनक मितर और उस काल क परथिसदध काहितब खसरो उन बडा भाई जसा ानत कछ लोगो क अनसार इनका ना अलाउददीन ऐशा ा इनक छोट भाई हिसाददीन (कछ लोगो क अनसार middotतलग हिसाददीन) खसरो क हिपता का ना कछ लोगो न lsquoलाचीनrsquo का हिकत वसततः य उनक middotबील या वश का ना ा उनका ना नी उनक हिपता का ना जसा हिक पीछ दख चक सफ़ददीन द ा ऐस ी उनक हिपता को lsquoअीर बलखrsquo lsquoअीर गजनीrsquo ता lsquoअीर जारा लाचीनrsquo आदिद भी का गया हिवदया और गरlsquoगरतल कालrsquo की भमिका खसरो न अपन हिपता को lsquoउमीrsquo अात lsquoअनपढrsquo का हिकनत ऐसा अनान लगता हिक अनपढ बाप न अपन बट क पढन-थिलखन का अचछा परबनध हिकया ा व बचपन स ी दरस जान लग उन दिदनो सनदर लखन पर काफ़ी बल दिदया जाता ा अीर खसरो को सलख का अभयास ौलाना सादददीन न कराया ा यो सलख आदिद उनका न लगता नी ा और बहत क उमर स ी व कावय रथिच लन लग 10 वष की उमर उनोन कावय रचना परारF कर दी ी खसरो न सचच अ हिकसी को अपना कावय-गर कदाथिचत नी बनाया दीबाचतथिसगर उनोन सवय सकत हिकया हिक हिकसी अचछ कहिव को व अपना उसताद न बना सक जो ठीक स उन शायरी का रासता बताए ता कावय-दोषो क परहित सावधान कर हिकनत हिकसी सतर पर हिकसी शाबददीन नाक वयथिकत स जो कदाथिचत कहिव तो बड न हिकनत हिवदवान उनोन अपनी lsquoशत हिबहिसतrsquo नाक कहित का सशोधन कराया ा उस पसतक क अनत इस बात का उललख करत हए उनोन का हिक शाबददीन न एक दशन की तर उनकी गलहितयो को दखा और एक दोसत की भाहित खसरो की सराना की lsquoगरMल कालrsquo भी उनका उललख य शाबददीन कौन इस समबनध हिववाद और सहिनcय कना कछ कदिठन एक शाबददीन का पता ततकालीन साहितय स चलता हिकनत व कदाथिचत खसरो क सकालीन न ोकर उनक कछ पल हए खसरो न कावय क कषतर थिशकषा हिकसी वयथिकत स न लकर सादी सनाई खाकानी अनवरी ता काल आदिद क कावय-गरनथो स ली हिवशषतः खाकानी सनाई और अनवरी का तो उनकी कई रचनाओ ता कहितयो पर सपषट परभाव ध क कषतर जसा हिक परथिसदध उनक गर जरत हिनजाददीन औथिलया आठ वष की उमर ी अपन हिपता क सा खसरो उनक पास गय ता उनक थिशषय ो गय जञानखसरो की हिनदी फारसी तकfrac12 अरबी ता ससकत आदिद कई भाषाओ गहित ी सा ी दशन धशासतर इहितास यदध-हिवदया वयाकरण जयोहितष सगीत आदिद का भी उनोन अधययन हिकया ा इतन अमिधक हिवषयो जञानाजन का शरय खसरो हिक हिवदया-वयसनी परकहित एव परवततिM को तो ी सा ी हिपता की तय क बाद नाना एादललक क सरकषण

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 23: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

को भी जिजनकी सभा कहिव हिवदवान एव सगीतजञ आदिद परायः आया करत जिजन खसरो को सज ी सतसग-लाभ का अवसर मिला करता ाहिववा ता सनतानखसरो क हिववा क समबनध की कोई उललख नी मिलता हिकनत य हिनततिcत हिक उनका हिववा हआ ा उनकी पसतक lsquoलला जनrsquo स पता चलता हिक उनक एक पतरी ी जिजसका ततकालीन सााजिजक परवततिM क अनसार उन दःख ा उनोन उकत गरनथ अपनी पतरी को समबोमिधत करक का हिक या तो त पदा न ोती या पदा ोती भी तो पतर रप एक पतरी क अहितरिरकत उनक तीन पतर भी जिजन एक का ना थिलक अद ा य कहिव ा और सलतान फ़ीरोजशा क दरबार स इसका समबनध ातयखसरो को अपन गर जरत हिनजाददीन औथिलया क परहित बहत ी शरदधा-भाव और सन ा जिजन दिदनो व अपन अतयिनत आशरयदाता गयासददीन तगलक क सा बगाल आRण पर गय हए जरत हिनजाददीन का दानत ो गया खसरो को जब साचार मिला तो व बद दखी हए और तरनत दिदलली लौट का जाता आत ी काल कपड पन व अपन गर की सामिध पर गए और य छनद- गोरी सव सज पर डार कसचल खसरो घर आपन रन भई चह दस ककर बोश ो गए गर की तय का खसरो को इतना दःख हआ हिक व इस सद को बदाशत न कर सक और छः ीन क भीतर ी उनकी इलीला सापत ो गयी उनकी तय-सन 725 हिजरी ाना जाता जो ईसवी सन 1324-25 दश-परखसरो दश-पर कट-कट कर भरा ा उन अपनी ातरभमि भारत पर गव ा lsquoन थिसपरrsquo भारतीय पततिकषयो का वणन करत हए व कत हिक या की ना क सान अरब और ईरान कोई पकषी नी इसी परकार भारतीय ोर की भी उनोन बहत परशसा की उनकी रचनाओ कई सथानो पर भारतीय जञान दशन अहितथि-सतकार फलो-वकषो रीहित-रिरवाजो ता सौनदय की कतकठ स परशसा मिलती व अपन को बड गव क सा हिनदसतानी तक का करत एक सथान पर उनोन थिलखा -तक हिनदसताहिनय न हिदवी गोय जवाब(अात हिनदसतानी तक ह हिनदवी जवाब दता ह)एक अनय सथान पर व कत lsquo हिदसतान की तती ह अगर त वासतव झस जानना चात ो तो हिदवी पछो तम अनप बात बता सकगाrsquo इसस सपषट सकत मिलता हिक फ़ारसी क इतन बड कहिव ोत हए भी अपनी ातभाषा lsquoहिनदवीrsquo का उन क गव न ा lsquoन थिसपरrsquo एक सथल पर खसरो न ससकत को फ़ारसी स बढकर का वीसत जबानी का थिसफ़त दरदरीकतरज अरबी व बतरज दरी जीहिवका और आशरय साहितयकार परायः बहत वयवारिरक या सासारिरक दमिषट स बहत सफल नी ोत हिकनत खसरो अपवाद जनजात कहिव ोत हए भी वयवारिरकता की उन की नी ी इसका सबस बडा पराण य हिक उनक आशरयदाता की तया कर राजसMा थियान वाल न उन उसी सन स अपना कपापातर बनाया परसतत पथिकतयो क लखक क न

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 24: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

खसरो क परहित एक शका री और अब भी व बहत बड सफ़ी ान जात और कदाथिचत भी हिकनत इस बात का कया साधान ो सकता हिक कोई सफ़ी हिकसी आशरयदाता की जी खोलकर परसशा करता ो उसक परहित सन रखता ो हिकनत उस आशरयदाता की तया कर राजसMा क थियान वाल क गददी पर बठत ी उसी सवर उस तयार की भी व परसशा करन लग ऐसा कोई तभी कर सकता जब उस अपन सफ़ीतव स अमिधक अपनी जीहिवका और आशरय की थिचनता ो खसरो नाथिसरददीन क जान पदा हए लगभग 20 वष की उमर तक आत-आत कहिव रप उनकी काफ़ी परथिसजिदध ो गयी उस सय क पव इन हिकसी आशरय की आवशयकता नी ी व अपन नाना क सा रत हिकनत उसी सय इनक नाना का दानत ो गया अतः इनक सान जीहिवका का परशन आया उस सय बादर गयासददीन बलबन ा व खसरो ता उनकी कावय-परहितभा स परिरथिचत तो नी ा-खसरो न बलबन की परसशा थिलखा भी-हिकनत साहितयानरागी न ोन क कारण खसरो की ओर उसन धयान नी दिदयाखसरो को पला आशरय बादशा गयासददीन क भतीज अलाउददीन हिकशल खा बारबक न दिदया य थिलक छजज क ना स परथिसदध ा ता कडा (इलााबाद) का ाहिक ा यो थिलक छजज क अहितरिरकत बलबन क चचर भाई अीर अली सरजानदार ता दिदलली को कोतवाल फ़खरददीन स भी उन सायता मिली ी थिलक छजज क या खसरो दो वष तक ी रक हिक एक घटना न उनको दसरा आशरय ढढन को जबर कर दिदया हआ य हिक एक दिदन थिलक छजज क दरबार बलबन क दसर पतर नाथिसरददीन बगरा खा ता कई अनय लोग आय हए खसरो की कहिवता स परसनन ो बगरा खा न उन चादी क ाल रपय भरकर उन परसकार रप दिदया खसरो न बगरा खा की परसशा कसीदा का थिलकत छजज इस पर नाराज ो गया खसरो न उस खश करन की बहत कोथिशश की हिकनत उन सफलता नी मिली बमभिलक व खसरो को सजा भी दना चाता ा हिकनत खसरो सथिसथहित को भाप कर भाग हिनकल और अनत बगरा खा को अपना आशरयदाता बनाया बगरा खा lsquoसाानाrsquo बलबन की छावनी क शासक उनोन खसरो का उथिचत आदर-सतकार हिकया ता अपना lsquoनदी खासrsquo (खय साी या मितर) बनाकर रखा वा खसरो कछ ी दिदन तक रक पाय हिक लखनौती क शासक तगरल न हिवदरो कर दिदया दो बार बलबन की सना उसस ारकर लौट आयी तो व सवय बगरा खा को सा ल चल पडा खसरो भी सा गए बरसात क दिदन बडा कषट हआ अनत तगरल ारा गया और बगरा खा लखनौती और बगाल का शासक बना दिदया गया हिकनत खसरो का दिदल उधर नी लगा और व बलबन क सा दिदलली लौट आए दिदलली लौटन पर बलबन न अपनी जीत क उपलकषय उतसव नाया उसका बडा लडका सलतान मद-जो लतान का ाहिक ा-भी उतसव सतमिमलहित हआ खसरो को अब दसर आशरयदाता की आवशयकता ी उनोन सलतान मद को अपनी कहिवताए सनायी उसन इनकी कहिवताए बहत पसनद की और इन अपन सा लतान ल गया वा सफ़ी साधओ एव कहिवयो का अचछा जघट ा खसरो क नीच एक परथिसदध कहिव सययद सन थिसजजी जो खसरो क अचछ मितर बन गय कछ लोग गजल इन खसरो स भी अचछा ानत खसरो क आशरयदाताओ सलतान अद सवामिधक साहितय-वयसनी एव कलानरागी हिकनत खसरो का जी वा कभी नी लगा व वा पाच वष तक र हिकनत परहितवष दिदलली आत र अतयिनत वष गलो न लतान पर ला कर दिदया बादशा क सा खसरो भी लडाई सतमिमथिलत हए बादशा तो ार गए और खसरो बनदी बना थिलए गए ता हिरात और बलख स ल जाए गए दो वष बाद हिकसी परकार अपन कौशल और सास क बल व शतरओ क पज स छटकर लौट सक का जाता हिक लौटन पर व गयासददीन बलबन क दरबार गय और सलतान मद की तय पर बडा कडा रशिशया पढा जिजस सन बादशा इतना रोय हिक उन बखार आ गया और तीसर दिदन उनका दानत ो गया

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 25: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

इसक बाद खसरो दो वष तक अवध को सबदार अीर अली सरजादार क या र और 1288 ई दिदलली लौट आए का जाता हिक lsquoअसपनााrsquo पसतक इनी अीर क थिलए खसरो न थिलखी ी बगरा खा क पतर इजददीन middotकबाद जब गददी पर बठ तो बाप-बट एक बात पर अनबन ो गयी और अनत दोनो यदध की नौबत आ गयी हिकनत अीर अली सरजादार ता कछ लोगो क अनसार खसरो-जो वा उपसथिसथत -क बीच-बचाव क कारण सघष टल गया और सझौता ो गया बाप-बटा मिल गए middotकबाद न खसरो को राजयसमान दिदया और उसन बाप-बट क मिलन पर एक सनवी थिलखन को का खसरो न नसवी हिकरानससादन (=बाप-बट का मिलन) इनी क कन पर थिलखनी शर की जो छः ीनो परी हई

हिवदयापहितPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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हिवदयापहित भारतीय साहितय की भथिकत परपरा क परख सतभो स एक और थिली क सवsup2परिर कहिव क रप जान जात इनक कावयो धयकालीन थिली भाषा क सवरप का दशन हिकया जा सकता इन वषणव और शव भथिकत क सत क रप भी सवीकार हिकया गया मिथिला क लोगो को lsquoदथिसल बयना सब जन मिटठाrsquo का सतर द कर इनोन उMरी-हिबार लोकभाषा की जनचतना को जीहिवत करन का ती परयास हिकया मिथिलाचल क लोकवयवार परयोग हिकय जानवाल गीतो आज भी हिवदयापहित की शरगार और भथिकत रस पगी रचनाय जीहिवत lsquoपदावलीrsquo और lsquoकीरतितलताrsquo इनकी अर रचनाय

परमख चनायाकहिव हिवदयापहित ससकत अबटठ थिली आदिद अनक भाषाओ क परकाणड पहिडत शासर और लोक दोनो ी ससार उनका असाधारण अमिधकार ा ककाणड ो या ध दशन ो या नयाय सौनदय शासर ो या भथिकत रचना हिवर वया ो या अततिभसार राजा का कहिततव गान ो या साानय जनता क थिलए गया हिपणडदान सभी कषतरो हिवदयापहित अपनी कालजयी रचनाओ क बदौलत जान जात ाकहिव ओईनवार राजवश क अनक राजाओ क शासनकाल हिवराजान रकर अपन वदशय एव दरदरशिशता सो उनका ागदशन करत र जिजन राजाओ न ाकहिव को अपन या समान क सा रखा उन परख (क) दवसिस (ख) कीरतितसिस (ग) थिशवसिस (घ) पदमसिस (च) नरसिस (छ) धीरसिस (ज) भरवसिस और (झ) चनदरसिसइसक अलाव ाकहिव को इसी राजवश की तीन राहिनयो का भी सलाकार रन का सौभागय परापत ा य राहिनया (क) लखिखादवी (दई) (ख) हिवशवासदवी और (ग) धीरहितदवीथिल कहिव कोहिकल रसाथिसदध कहिव हिवदयापहित तलसी सर कबर ीरा सभी स पल क कहिव अीर खसरो यदयहिप इनस पल हए इनका ससकत पराकत अपभरश एव ात भाषा थिली पर सान अमिधकार ा हिवदयापहित की रचनाए ससकत अवटट एव थिली तीनो मिलती दथिसल वयना अात थिली थिलख चद पदावली कहिव को अरचव परदान करन क थिलए काफी थिली साहितय धयकाल क तोरणदवार पर जिजसका ना सवणाकषर अहिकत व चौदवी शताबदी क सघषपण वातावरण उतपनन अपन यग का परहितहिनमिध थिली साहितय-सागर का वालीहिक-कहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर बहखी परहिता-समपनन इस ाकहिव क वयथिकततव एक सा थिचनतक शासरकार ता साहितय रथिसक का अदभत सनवय ा ससकत रथिचत इनकी परष परीकषा भ-परिरRा थिलखनावली शवसवशवसार शवसवशवसार पराणभत पराण-सगर गगावाकयावली

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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Page 26: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

हिवभागसार दानवाकयावली दगाभथिकततरहिगणी गयापतालक एव वषकतय आदिद गरनथ जा एक ओर इनक गन पासथिणडतय क सा इनक यगदरषटा एव यगसरषटा सवरप का साकषी तो दसरी तरफ कीरतितलता एव कीरतितपताका ाकहिव क अव भाषा पर समयक जञान क सचक ोन क सा-सा ऐहिताथिसक साहितयितयक एव भाषा समबनधी तव रखनवाला आधहिनक भारतीय आय भाषा का अनप गरनथ परनत हिवदयापहित क अकष कीरतित का आधार जसा हिक पल का जा चका थिली पदावली जिजस राधा एव कषण का पर परसग सवपर उMरभारत गय पद क रप परकाथिशत इनकी पदावली मिथिला क कहिवयो का आदश तो ी नपाल का शासक सात कहिव एव नाटककार भी आदश बन उनस थिली रचना करवान लग बाद बगाल अस ता उडीसा क वषणभकतो भी नवीन पररणा एव नव भावधारा अपन न सचाथिलत कर हिवदयापहित क अदाज ी पदावथिलयो का रचना करत र और हिवदयापहित क पदावथिलयो को ौखिखक परमपरा स एक स दसर लोगो परवाहित करत रकहिव कोहिकल की कोलकानत पदावली वयथिकतकता भावातकता सततिशरपतता भावाततिभवयथिकतगत सवाभाहिवकता सगीतातकता ता भाषा की सकारता एव सरलता का अदभत हिनदbrvbarशन परसतत करती वणय हिवषय क दमिषट स इनकी पदावली अगर एक तरफ स इनको रसथिसदध थिशषट एव यादिदत शरगारी कहिव क रप परोपासक सौनदय पारसी ता पाठक क हदय को आननद हिवभोर कर दन वाला ाधय का सरषटा थिसदधसत कलाकार थिसदध करती तो दसरी ओर इन भकत कहिव क रप शासरीय ाग एव लोकाग दोनो साजसय उपसथिसथत करन वाला ध एव इषटदव क परहित कहिव का सनवयातक दमिषटकोण का परिरचय दन वाला एक हिवथिशषट भकत हदय का थिचतर उपसथिसथत करती सा ी सा लोकाचार स समबदध वयावारिरक पद परणता क रप इनको मिथिला की सासकहितक जीवन का कशल अधयता पराततिणत करती इतना ी नी य पदावली इनक जीवनत वयथिकततव का भोगा हआ अनभहित का साकषी बन साज की तातकालीन करीहित आरशिक वषमय लौहिकक अनधहिवशवास भत-परत जाद-टोना आदिद का उदघाटक भी इसक अलाव इस पदावली की भाषा-सौव सलथिलत पदहिवनयास हदयगराी रसातकता परभावशाली अलकार योजना सकार भाव वयजना एव सधर सगीत आदिद हिवशषता इसको एक उMोM कावयकहित क रप भी परहितमित हिकया ालाहिक य भी एक तवपण तथय हिक ाकहिव हिवदयापत अपनी अर पदावली क रचना क थिलए अपन पववतT ससकत कहिवयो खासकर भारहिव काथिलदास जयदव ष अरक गोवदधनाचाय आदिद स क ॠततिण नी कयोहिक जिजस हिवषयो को ाकहिव न अपनी पदावली परसतत हिकया व हिवषय पव स ी ससकत क कहिवयो की रचनाओ परसतत ो चका ा हिवदयापहित की ौथिलकता इस हिनहित हिक इनोन उन रचनाओ की हिवषय उपा अलकार परिरवश आदिद का अनधानकरण न कर उस अपन दीध जीवन का तवपण एव ारमिक नानाहिवध अनभव एव आसथा को अनसयत कर अपरहित ाधय एव असी पराणवMा स यकत ातभाषा यो परसतत हिकया हिक व इनक हदय स नसक वलक लबजी ानव क हदय परवश कर जाता यी कारण हिक ाकहिव की कावय परहिता की गञज ातर मिथिलाचल तक नी अहिपत ससत पवाplusmnचल पवाplusmnचल भी कयो ससत भारतवष ससत भारतवष ी कयो अखिखल हिवशव वयापत राजल स लकर पणकटी तक गजायान हिवदयापहित का कोलकानत पदावली वसतत भारतीय साहितय की अनप वभव हिवदयापहित क परसग सवगTय डॉ शलनदर ोन झा की उथिकत वसतत शतपरहितशत या ष व थिलखत ldquoनपालक पावतय नीड रटओ अवा कारपक वनवीथिचका बगालक शसय शयाला भमि रओ अवा उतकलक नारिरकर हिनकज हिवदयापहितक सवर सवतर सान रप स गजिजत ोइत रत छहिन हिनक ई अर पदावली जहिना ललनाक लजजावत कठ स तहिना सगीतजञक सामिधत सवरस राजनतकीक ाव-भाव हिवलासय दमिषट हिनकषपस भकत डलीक कीतन नतन स वषणव-वशणवीक एकताराक झकारस हिनसत ोइत यग-यगस शरोतागणक रस तपत करत रल अथिछ एव करत मिथिला थिलक जातीय एव सासकहितक गरिराक ान-हिबनद एव साहितयितयक जागरणक परतीक थिचनक रप आराधय एव आरामिधत ाकहिव हिवदयापहितक रचना जरिरना धयकालीन थिली साहितयितयक अनप हिनमिध आथिछ तहिना धयकाल रथिचत ससत थिली साहितय सो हिनक परभावक एकानत परहितफल अथिछrdquoाकहिव हिवदयापहित का जन वतान धबनी जनपद क हिबसप नाक गाव एक सभरानत थिल बराहमण गणपहित ठाकर (इनक हिपता का ना) क घर हआ ा बाद यससवी राजा थिशवसिस न य गाव हिवदयापहित को दानसवरप द दिदया ा इस दानपतर हिक परहितथिलहिप आज भी हिवदयापहित क वशजो क पास जो आजकल सौराठ नाक गाव रत उपलबध

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 27: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

दसतावजो एव पजी-परबनध की सचनाओ स य सपषट ो जाता हिक ाकहिव अततिभनव जयदव हिवदयापहित का जन ऐस यशसवी थिल बराहमण परिरवार हआ ा जिजस पर हिवदया की दवी सरसवती क सा लकषी की भी असी कपा ी इस हिवखयात वश (हिवषयवार हिवसपी) एक-स-एक हिवदधान शासरजञ धशासरी एव राजनीहितजञ हए ाकहिव क वहपरहिपता दवादिदवय कणाटवशीय राजाओ क सतमिनध हिवगरहिक ता दवादिदवय क सात पतरो स धीरशवर गणशवर वीरशवरआदिद राज रिरसिसदव की तयिनतरपरिरषद इनक हिपता जयदM ठाकर एव हिपता गणपहित ठाकर राजपसथिणडत इस तर पासथिणडलय एव शासरजञान कहिव हिवदयापहित को सज उMरामिधकार मिला ा अनक शासरीय हिवषयो पर कालजयी रचना का हिनाण करक हिवदयापहित न अपन पवजो की परमपरा को ी आग बढायाऐस हिकसी भी थिलखिखत पराण का अभाव जिजसस य पता लगाया जा सक हिक ाकहिव कोहिकल हिवदयापहित ठाकर का जन कब हआ ा यदयहिप ाकहिव क एक पद स सपषट ोता हिक लकषण-सवत २९३ शाक १३२४ अात न १४०२ ई दवसिस की तय हई और राजा थिशवसिस मिथिला नरश बन मिथिला परचथिलत हिकवदतयिनतयो क अनसार उस सय राजा थिशवसिस की आय ५० वष की ी और कहिव हिवदयापहित उनस दो वष बड यानी ५२ वष क इस परकार १४०२-५२उ१३५० ई हिवदयापहित की जनहितथि ानी जा सकती लकषण-सवत की परवMन हितथि क समबनध हिववाद कछ लोगो न सन ११०९ ई स तो क न १११९ ई स इसका परारभ ाना सव नगनदरना गपत न लकषण-सवत २९३ को १४१२ ई ानकर हिवदयापत की जनहितथि १३६० ई ानी हिगरपसन और ाोपाधयाय उश मिशर की भी यी ानयता परनत शरीबरजननदन साय ldquoबरजवललभrdquo शरीरा वकष बनीपरी डॉ सभदर झा आदिद सन १३५० ई को उनका जनहितथि का वष ानत डॉ थिशवपरसाद क अनसार ldquoहिवदयापहित का जन सन १३७४ ई क आसपास सभव ाल ोता rdquo अपन गरनथ हिवदयापहित की भमिका एक ओर डॉ हिवानहिवारी जदार थिलखत हिक ldquoय हिनततिcततापवक नी जाना जाता हिक हिवदयापहित का जन कब हआ ा और व हिकतन दिदन जीत रrdquo (प ४३) और दसरी ओर अनान स सन १३८० ई क आस पास उनकी जनहितथि ानत ालाहिक जनशरहित य भी हिक हिवदयापहित राजा थिशवस स बहत छोट एक हिकवदनती क अनसार बालक हिवदयापहित बचपन स तीवर और कहिव सवभाव क एक दिदन जब य आठ वष क तब अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा थिशवस क राजदरबार पहच राजा थिशवसिस क कन पर इनोन हिनमनथिलखिखत द पथिकतयो का हिनाण हिकयापोखरिर रजोखरिर अर सब पोखराराजा थिशवसिस अर सब छोकरायदयहिप ाकहिव की बालयावसथा क बार हिवशष जानकारी नी हिवदयापहित न परथिसदध रिरमिशर स हिवदया गरण की ी हिवखयात नयामियक जयदव मिशर उफ पकषधर मिशर इनक सपाठी जनशरहितयो स ऐसा जञात ोता लोगो की धारणा य हिक ाकहिव अपन हिपता गणपहित ठाकर क सा बचपन स ी राजदरबार जाया करत हिकनत चौदवी सदी का शषाध मिथिला क थिलए अशातयिनत और कल का काल ा राजा गणशवर की तया असलान नाक यवन-सरदार न कर दी ी कहिव क सवयसक एव राजा गणशवर क पतर कीरतितसिस अपन खोय राजय की परातयिपत ता हिपता की तया का बदला लन क थिलए परयतनशील सभवत इसी सय ाकहिव न नसरतशा और हिगयासददीन आशरशा जस परषो क थिलए कछ पदो की रचना की राजा थिशवसिस हिवदयापहित क बालसखा और मितर अत उनक शासन-काल क लगभग चार वष का काल ाकहिव क जीवन का सबस सखद सय ा राजा थिशवसिस न उन य समान दिदया हिबसपी गाव उन दान पारिरतोहिषक क रप दिदया ता lsquoअततिभनवजयदवrsquo की उपामिध स नवाजा कतजञ ाकहिव न भी अपन गीतो दवारा अपन अततिभनन मितर एव आशरयदाता राजा थिशवसिस एव उनकी सल पतनी रानी लखिखा दवी (लथिलादई) को अर कर दिदया सबस अमिधक लगभग २५० गीतो थिशवसिस की भततिणता मिलती हिकनत ोड ी सय ी पन मिथिला पर ददOacuteव का भयानक कोप हआ यवनो क आसनन आRण का आभाष पाकर राजा थिशवसिस न हिवदयापहित क सरकषण अपन परिरजनो को नपाल-तराई-सथिसथत दरोणवार क अमिधपहित परादिदतय क आशर रजाबनौली भज दिदया यदध कषतर सFवत थिशवसिस ार गय हिवदयापहित लगभग १२ वष तक परादिदतय क आशर र वी इनोन थिलखनावली की रचना की उस सय क एक पद स जञात ोता हिक उनक थिलए य सय बडा दखदायी

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

In 1 आदिदकाल Comment

बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 28: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

ा थिशवसिस क छोट भाई पदमसिस को राजयामिधकार मिलन पर औइनवार-वशीय राजाओ का आशरय पन ाकहिव को परापत हआ और व मिथिला वापस लौट आए पदमसिस क कवल एक वष क शासन क बाद उनकी धपतनी हिवशवासदवी मिथिला क राजसिसासन पर बठी जिजनक आदश स उनोन दो तवपण गरनथः शवसवसवसार ता गगावाकयावली थिलख हिवशवासदवी क बाद राजा नरसिसदव lsquoदपनारायणrsquo ारानी धीरती ाराज धीरसिस lsquoहदयनारायणrsquo ाराज भरवसिस lsquoरिरनारायणrsquo ता चनदरसिस lsquoरपनारायणrsquo क शासनकाल ाकहिव को लगातार राजयाशरय परापत ोता रा ाजनहितथि की तर ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की तय क समबनध भी हिवदवानो तभद इतना सपषट और जनशरहितया बताती हिक आधहिनक बगसराय जिजला क उबाजिजदपर (हिवदयापहितनगर) क पास गगातट पर ाकहिव न पराण तयाग हिकया ा उनकी तय क समबनध य पद जनसाधारण आज भी परचथिलत lsquoहिवदयापहितक आय अवसानकाहितक धवल तरयोदथिस जानrsquoया एक बात सपषट करना अहिनवाय हिवदयापहित थिशव एव शथिकत दोनो क परबल भकत शथिकत क रप उनोन दगा काली भरहिव गगा गौरी आदिद का वणन अपनी रचनाओ य हिकया मिथिला क लोगो य बात आज भी वयापत हिक जब ाकहिवहिवदयापहित काफी उमर क ोकर रगन ो गए तो अपन पतरो और परिरजनो को बलाकर य आदश दिदयाldquoअब इस शरीर का तयाग करना चाता ह री इचछा हिक गगा क हिकनार गगाजल को सपश करता हआ अपन दीध जीवन का अतयिनत सास ल अत आप लोग झ गगालाभ करान की तयारी लग जाए करिरया को बलाकर उस पर बठाकर आज ी थिसरिरया घाट (गगातट) ल चलrdquoअब परिरवार क लोगो न ाकहिव का आजञा का पालन करत हए चार करिरयो को बलाकर ाकहिव क जीण शरीर को पालकी सलाकर थिसरिरया घाट गगालाभ करान क थिलए चल पड - आग-आग करिरया पालकी लकर और पीछ-पीछ उनक सग-समबनधी रात-भर चलत-चलत जब सयsup2दय हआ तो हिवदयापहित न पछा ldquoभाई झ य तो बताओ हिक गगा और हिकतनी दर rdquoldquoठाकरजी करीब पौन दो कोसrdquo करिरयो न जवाब दिदया इस पर आतहिवशवास स भर ाकहिव यकाएक बोल उठ ldquoरी पालकी को यी रोक दो गगा यी आएगीrdquoldquoठाकरजी ऐसा सभव नी गगा या स पौन दो कोस की दरी पर ब री व भला या कस आऐगी आप ोडी धय रकख एक घट क अनदर लोग थिसरिरया घाट पहच जाएगrdquoldquoनी-नी पालकी रोकrdquo ाकहिव कन लग ldquo और आग जान की जररत नी गगा यी आएगी आगर एक बटा जीवन क अतयिनत कषण अपनी ा क दशन क थिलए जीण शरीर को लकर इतन दर स आ रा तो कया गगा ा पौन दो कोस भी अपन बट स मिलन नी आ सकती गगा आएगी और जरर आएगीrdquoइतना ककर ाकहिव धयानदरा बठ गए पनदर-बीस मिनट क अनदर गगा अपनी उफनती धारा क परवा क सा वा पहच गयी सभी लोग आcय ाकहिव न सवपर गगा को दोनो ा जोडकर परणा हिकया हिफर जल परवश कर हिनमनथिलखिखत गीत की रचना कीबड सखसार पाओल तअ तीरछोडइत हिनकट नयन ब नीरकरनोरिर हिबलओ हिबल तरगपहिन दरसन ोए पनहित गगएक अपराध घब ोर जानीपरल ाए पाए त पानीहिक करब जप-तप जोग-धआनजन कतार एकहि सनान

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
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Page 29: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

भनई हिवदयापहित सदजो तोीअनतकाल जन हिबसर ोीइस गगा सतहित का अ कछ इस परकार सपषट हिकया जा सकता ldquo ा पहितत पावहिन गग तमार तट पर बठकर न ससार का अपव सख परापत हिकया तमारा साीपय छोडत हए अब आखो स आस ब र हिनल तरगोवानी पजयती गग कर जोड कर तमारी हिवनती करता ह हिक पन तमार दशन ोrdquoठर एक अपराध को जानकर भी सा कर दना हिक ा न तम अपन परो स सपश कर दिदया अब जप-तप योग-धयान की कया आवशयकता एक ी सनान रा जन कता ो गया हिवदयापहित तस (बार-बार) हिनवदन करत हिक तय क सय झ त भलनाrdquoइतना ी नी कहिव हिवदयापहित न अपनी पतरी दललहि को समबोमिधत करत हए गगा नदी क तट पर एक और तवपण गीत का हिनाण हिकया य गीत कछ इस परकार दललहि तोर कतय छथि ायकहन ओ आब एखन नायवा बझ ससार-हिवलासपल-पल नाना भौहितक तरासाए-बाप जजो सदगहित पाबसननहित का अनप सख आबहिवदयापहितक आय अवसानकारतितक धबल तरयोदथिस जानइसका साराश य हिक ाकहिव वयोवदध ो चक अपन जीवन का अत नजदीक दखकर इस नशवर शरीर का तयाग करन क पहिवतर तट पर अपन सखा-समबतमिनधयो क सा पहच गय पजयशलीला ा गगा अपन इस ान यशसवी पतर को अक सट लन क थिलए परसतत ो गई इसी कषण ाकहिव हिवदयापहित अपनी एकलौती पतरी को समबोमिधत करत हए कत अी दलारिर तमारी ा का को न हिक अब जलदी स सनान करक चली आए भाई दरी करन स भला कया ोगा इस ससार क भोग-हिवलास आदिद को वय सझ या पल-पल नाना परकार का भय कषट आदिद का आगन ोता रता अगर ाता-हिपता को सदगहित मिल जाय तो उसक कल और परिरवार क लोगो को अनप सख मिलना चाहिए कया तमारी ा नी जानती जो आज जहित पहिवतर कारतितक यकत तरयोदशी हितथि अब र जीवन का अनत हिनततिcत rdquo इस तर स गगा क परहित ाकहिव न अपनी अटट शरदधा दिदखाया और इसक बाद ी उनोन जीवन का अतयिनत सास इचछानसार गगा क हिकनार थिलयानगनदरना गपत सन १४४० ई को ाकहिव की तय हितथि का वष ानत उश मिशर क अनसार सन १४६६ ई क बाद तक भी हिवदयापहित जीहिवत डॉ सभदर झा का ानना हिक ldquoहिवशवसत अततिभलखो क आधार पर य कन की सथिसथहित हिक ार कहिव का सय १३५२ ई और १४४८ ई क धय का सन १४४८ ई क बाद क वयथिकतयो क सा जो हिवदयापहित की ससामियकता को जोड दिदया जाता व सवा भराक rdquo डॉ हिवानहिबारी जदार सन १४६० ई क बाद ी ाकहिव का हिवरोधाकाल ानत डॉ थिशवपरसाद सिस हिवदयापहित का तयकाल १४४७ ानत ाकहिव हिवदयापहित ठाकर क पारिरवारिरक जीवन का कोई सवथिलखिखत पराण नी हिकनत मिथिला क उतढपोी स जञात ोता हिक इनक दो हिववा हए पर पतनी स नरपहित और रपहित नाक दो पतर हए और दसरी पतनी स एक पतर वाचसपहित ठाकर ता एक पतरी का जन हआ ा सभवत ाकहिव की यी पतरी lsquoदललहिrsquo ना की ी जिजस तयकाल रथिचत एक गीत ाकहिव अर कर गय कालानतर हिवदयापहित क वशज हिकसी कारणवश (शायद यादवो एव सलानो क उपदरव स तग आकर) हिवसपी को तयागकर सदा क थिलए सौराठ गाव (धबनी जिजला सथिसथत सागाछी क थिलए परथिसदध गा) आकर बस गए आज ाकहिव क सभी वशज इसी गाव हिनवास करत

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 30: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

कावय और साहितय क कषतर ाकहिव न हिनमनथिलखिखत गरनथो की रचना की-(क) परषपीकषा(ख) भपरिकरमा(ग) कीरतितलता(घ) कीरतितपताका(च) गोकषहिवजयाटक तथा(छ) मणिणमजीनादिटकाइन गरनथो क समबनध सततिकषपत हिववरण नीच दिदया जा रा (क) परषपीकषााकहिव हिवदयापहित ठाकर न परष परीकषा की रचना ाराजा थिशवसिस क हिनदbrvbarशन पर हिकया ा य गरनथ पततिc क साजशाततिसरयो क इस भरानत हिक ldquoभारत concept of man in Indian Tradition नाक हिवषय पर पटना हिवशवहिवदयालय क ान साजशासरी परो तकर झा न एक उM कोदिट की गरनथ की रचना की य गरनथ साजशाततिसरयो इहितासकारो ानव वजञाहिनको राजनीहितशाततिसरयो क सा-सा दशन एव साहितय क लोगो क थिलए भी एक अपव कहित परषपरीकषा की का दी गयी वीरका सबजिदधका सहिवदयका और परषाका- इन चार वग पञचतनतर की परमपरा थिशकषापरद काए परसतत की गयी (ख) भपरिकरमाभपरिरRा नाक एक अतयनत परभावकारी गरनथ की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न ाराज दवसिस की आजञा स की ी इस गरनथ बलदवजी दवारा की गयी भपरिरRा का वणन और नमिषारणय स मिथिला तक क सभी ती सथलो का वणन भपरिरRा को ाकहिव का पर गरनथ ाना जाता कारण औइनवारवशीय जिजन राजा या राहिनयो क आदश स कहिवशर हिवदयापहित ठाकर न गरनथ रचना की उन सबस वयोवदध दवसिस ी भाषा और शली की दमिषट स भी ाल ोता हिक य कहिव की पर रचना (ग) कीरतितलतापरवतT अपभरश को ी सभवत ाकहिव न अवटठ ना दिदया जञातवय हिक ाकहिव क पव अददयाण (अबदल रान) न भी lsquoसनदशरासकrsquo की भाषा को अबटठ ी का ा कीरतितलता की रचना ाकहिव हिवदयापहित ठाकर न अवटठ की और इस ाराजा कीरतितसिस का कीरतितकीतन हिकया गरनथ क आरF ी ाकहिव थिलखत hellip शरोतजञातवदानयसय कीरतितसिस ीपतकरोत कहिवत कावय भवय हिवदयापहित कहिवअात ाराज कीरतितसिस कावय सननवाल दान दनवाल उदार ता कहिवता करनवाल इनक थिलए सनदर नोर कावय की रचना कहिव हिवदयापहित करत य गरनथ पराचीन कावयरदिढयो क अनरप शक-शकी-सवाद क रप थिलखा गया कीरतितसिस क हिपता रा गणशवर की तया असलान नाक पवन सरदार न छल स करक मिथिला पर अमिधकार कर थिलया ा हिपता की तया का बदला लन ता राजय की पनपरातयिपत क थिलए कीरतितसिस अपन भाई वीरसिस क साा जौनापर (जौनपर) गय और वा क सलतान की सायता स असलान को यदध परासत कर मिथिला पर पन अमिधकार हिकया जौनपर की यातरा वा क ाट-बाजार का वणन ता ाराज कीरतितसिस की वीरता का उललख कीरतितलता इसक वणनो याध क सा शासराय पदधहित का परभाव भी वणन क बयौर पर जयोहितरीशवर क वणरतनाकर की सपषट धाप ततकालीन राजनहितक सााजिजक और सासकहितक सथिसथहित क अधययन क थिलए कीरतितलता स बहत सायता ली जा सकती इस गरनथ की रचना तक ाकहिव हिवदयापहित ठाकर का कावयकला परौढ ो चकी ी इसी कारण इनोन आतगौरवपरक पथिकतया थिलखीबालचनद हिवजजावड भासा दह नहि लगगइ दजजन ासाओ परसर र थिसर सोइ ई ततिणचचई नाअर न ोइ

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

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जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 31: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

चत पललव क अनत ाकहिव थिलखत ldquohellipाधय परसवसथली गरयशोहिवसतार थिशकषासखीयावजिदधcमिदञच खलत कवरतिवदयापतभारतीrdquo रपरसाद शासरी न भरवश lsquoखलत कवrsquo क सथान पर lsquoखलनकवrsquo पढ थिलया और तब स डॉ बाबरा सकसना हिवानहिवारी जदार डॉ जयकानत मिशर डॉ थिशवपरसाद सिस परभहित हिवदधानो न हिवदयापहित का उपना lsquoखलन कहिवrsquo ान थिलया य अनवान कर थिलया गया हिक चहिक कहिव अपन को lsquoखलन कहिवrsquo कता अात उसक खलन की ी उमर इसथिलए कीरतितलता ाकहिव हिवदयापहित ठाकर की पर रचना अब इस भर की कोई गजाइश नी और कीरतितलता कहिव की हिवकथिसत कावय-परहिता क दशन ोत (घ) कीरतितपताकााकहिव हिवदयापहित ठाकर न बड ी चतरता स ाराजा थिशवसिस का यशोवणन हिकया इस गरनथ की रचना दोा और छनद की गयी की-की पर ससकत क शलोको का भी परयोग हिकया गया कीरतितपताका गरनथ की खसथिणडत परहित ी उपलबध जिजसक बीच ९ स २९ तक क २१ प अपरापत गरनथ क परारभ अदधनारीशवर चनदरचड थिशव और गणश की वनदना कीरतितपताका गरनथ क ३० व प स अनत तक थिशवसिस क यदध पराR का वणन इसथिलए डॉ वीरनदर शरीवासतव अपना वकतवय कछ इस तर थिलखत हिक ldquoअत हिनरतिववाद रप स हिपछल अश को हिवदयापहित-हिवरथिचत कीरतितपताका का जा सकता जो वीरगाा क अनरप वीररस की औजमभिसवता स पण rdquo (हिवदयापहित-अनशीलन एव लयाकन खणड-१ प३०)(च) गोकषहिवजयगोरकषहिवजय क रप हिवदयापहित न एक नतन परयोग हिकया य एक एकाकी नाटक इसक कनोपकन ससकत और पराकत भाषा का परयोग गीत कहिव की ातभाषा थिली गोरकषना और तसयनदरना की परथिसदध का पर य नाटक आधारिरत कत हिक ाकहिव न इस नाटक की रचना ाराजा थिशवसिस की आजञा स हिकया ा(छ) मणिणमजा नादिटकाय एक लघ नादिटका इस नादिटका राजा चनदरसन और ततिणजरी क पर का वणन

चबाईPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on October 29 2007

In 1 आदिदकाल Comment

जन - सवत 1205 तदनसार 1148 ईसवी तय - सवत 1249 तदनसार 1191 ईसवी रचनाए -rdquo पथवीराज रासो rdquo - दो भागो नागरी परचारिरणी सभा दवारा परकाथिशत चदबरदाई को हिदी का पला कहिव और उनकी रचना पथवीराज रासो को हिदी की पली रचना ोन का समान परापत पथवीराज रासो हिदी का सबस बडा कावय-गर इस 10000 स अमिधक छद और ततकालीन परचथिलत 6 भाषाओ का परयोग हिकया गया इस गर उMर भारतीय कषहितरय साज व उनकी परपराओ क हिवषय हिवसतत जानकारी मिलती

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
    • जन साहितय
    • चारणी-साहितय
    • परकीरणक साहितय
      • आदिकाल क नामकरण की समसया
      • सिदध साहितय
      • नाथ साहितय
      • रासो कावय वीरगाथाय
      • जन साहितय की रास परक रचनाय
      • अमीर खसरो
      • विदयापति
        • परमख रचनाय
          • चदबरदाई
          • जगनिक का आलहाखणड
          • दामोदर पडित - उकति वयकति परकरण
          • ढोला मार रा दहा
Page 32: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

इस कारण ऐहिताथिसक दमिषट स भी इसका बहत तव व भारत क अहित हिद समराट पथवीराज चौान ततीय क मितर ता राजकहिव पथवीराज न 1165 स 1192 तक अजर व दिदलली पर राज हिकया यी चदबरदाई का रचनाकाल ा ११६५ स ११९२ क बीच जब पथवीराज चौान का राजय अजर स दिदलली तक फला हआ ा उसक राज कहिव चद बरदाई न पथवीराज रासो की रचना की य हिनदी का पर ाकावय ाना जा सकता इस ाकावय पथवीराज चौान क जीवन और चरिरतर का वणन हिकया गया चद बरदाई पथवीराज क बचपन क मितर और उनकी यदध यातराओ क सय वीर रस की कहिवताओ स सना को परोतसाहित भी करत पथवीराजरासो ढाई जार पो का बहत बडा गर जिजस ६९ सय (सग या अधयाय) पराचीन सय परचथिलत परायः सभी छदो का इस वयवार हआ खय छनद - कहिवM (छपपय) दा(दोा) तोर तरोटक गाा और आया जस कादबरी क सबध परथिसदध हिक उसका हिपछला भाग बाण भटट क पतर न परा हिकया वस ी रासो क हिपछल भाग का भी चद क पतर जलण दवारा पण हिकया गया रासो क अनसार जब शााबददीन गोरी पथवीराज को कद करक गजनी ल गया तब कछ दिदनो पीछ चद भी वी गए जात सय कहिव न अपन पतर जलण क ा रासो की पसतक दकर उस पण करन का सकत हिकया जलण क ा रासो को सौप जान और उसक पर हिकए जान का उललख रासो - पसतक जलण तथ द चथिल गजजन नपकाज रघनानचरिरत नतकत भप भोज उदधरिरय जिजमि पथिराजसजस कहिव चद कत चदनद उदधरिरय हितमि रासो दिदए हए सवतो का ऐहिताथिसक तथयो क सा अनक सथानो पर ल न खान क कारण अनक हिवदवानो न पथवीराजरासो क ससामियक हिकसी कहिव की रचना ोन सद करत और उस १६वी शताबदी थिलखा हआ गर ठरात इस रचना की सबस परानी परहित बीकानर क राजकीय पसतकालय मिली कल ३ परहितया रचना क अनत पथवीराज दवारा शबद भदी बाण चला कर गौरी को ारन की बात भी की गयी बहखी परहितभा क धनी चनद वरदाई आदिदकाल क शर कहिव उनका जीवन काल बारवी शताबदी ा एक उM कहिव ोन क सा व एक कशल योदधा और राजनायक भी व पथवीराज चौान क अततिभनन मितर उनका रथिचत ाकावय ldquoपथवीराज रासोrdquo हिनदी का पर ाकावय ाना जाता इस ाकावय ६९ खणड और इसकी गणना हिनदी क ान गरनथो की जाती चनद वरदाई क कावय की भाषा हिपगल ी जो कालानतर बज भाषा क रप हिवकथिसत हई उनक कावय चरिरतर थिचतरण क सा वीर रस और शरगार रस का ोक सनवय हिकनत पथवीराज रासो को पढन स जञात ोता हिक ाराजा पथवीराज चौान न जिजतनी भी लडाइया लडी उन सबका परख उददशय राजकारिरयो क सा हिववा और अपरण ी दिदखाई पडता इथिछनी हिववा पहमावती सया सयोहिगता हिववा आदिद अनको पराण पथवीराज रासो पथवीराज की शगार एव हिवलासहिपरयता की ओर भी सकत करत पथवीराज रासो क कछ अश या परसतत ndash

पदमसन कवर सघर ताघर नारिर सजानता उर इक पतरी परकट नह कला ससभान

नह कला ससभान कला सोल सो बमिननयबाल वस सथिस ता सीप अमिमरत रस हिपमिननय

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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Page 33: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

हिबगथिस कल-ततिसरग भरर बन खजन मिमरग लदिटटयीर कीर अर हिबब ोहित नष थिसष अहि घदिटटय

छपपहित गयद रिर स गहित हिब बनाय सच सथिचय

पदमिहिनय रप पदमावहितय नह का-कामिहिन रथिचय

नह का-कामिहिन रथिचय रथिचय रप की रासपस पछी ग ोहिनी सर नर हिनयर पास

सादिदरक लसथिचछन सकल चौसदिठ कला सजान

जाहिन चतदस अग खट रहित बसत परान

सहिषयन सग खलत हिफरत लहिन बगग हिनवासकीर इकक दिदतमिषषय नयन तब न भयो हलास

न अहित भयौ हलास हिबगथिस जन कोक हिकरन-रहिबअरन अधर हितय सघर हिबबफल जाहिन कीर छहिब

य चात चष चहिकत उ ज तसथिककय झरतयिपप झर

चच चहदिटटय लोभ थिलयो तब गहित अपप कर

रषत अनद न हलस ल ज ल भीतर गइयपजर अनप नग हिन जदिटत सो हितहि रषषत भइय

हितहि ल रषषत भइय गइय खल सब भलल

थिचM चहटटयो कीर सो रा पढावत फलल

कीर कवरिर तन हिनरहिष दिदहिष नष थिसष लौ य रपकरता करी बनाय क य पततिदमनी सरप

कदिटटल कस सदस पोप रचमियत हिपकक सदकल-गध वय-सध सगहित चलत द द

सत वसतर सो सरीर नष सवाहित बद जस

भर-भहि भललहि सभाव करद वास रस

ननन हिनरहिष सष पाय सक य सदिदनन रहित रथिचयउा परसाद र रिरयत मिलहि राज परथिराज जिजय

जगहिनक का आलाखणड

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

In 1 आदिदकाल Comment

कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

In 1 आदिदकाल Comment

बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

  • आदिकाल परिचय
    • सिदध और नाथ साहितय
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Page 34: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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कासिलजर क राजा परार क आशरय जगहिनक ना क एक कहिव जिजनोन ोब क दो परथिसदध वीरो -आला और ऊदल(उदयसिस)- क वीरचरिरत का हिवसतत वणन एक वीरगीतातक कावय क रप थिलखा ा जो इतना सवहिपरय हआ हिक उसक वीरगीतो का परचार Rश सार उMरी भारत हिवशषत उन सब परदशो जो कननौज सामराजय क अतगत -ो गया जगहिनक क कावय का की पता नी पर उसक आधार पर परचथिलत गीत हिदी भाषाभाषी परातो क गाव-गाव सनाई दत य गीत lsquoआलाrsquo क ना स परथिसदध और बरसात गाय जात गावो जाकर दखिखय तो घगजन क बीच हिकसी अलत क ढोल क गभीर घोष क सा य हकार सनाई दगी- बार बरिरस ल ककर जीऐ औ तर लौ जिजऐ थिसयारबरिरस अठार छतरी जिजऐ आग जीवन को मिधककार इस परकार साहितयितयक रप न रन पर भी जनता क कठ जगहिनक क सगीत की वीरदपपण परहितधवहिन अनक बल खाती हई अब तक चली आ री इस दीघ कालयातरा उसका बहत कछ कलवर बदल गया दश और काल क अनसार भाषा ी परिरवतन नी हआ वसत भी बहत अमिधक परिरवतन ोता आया बहत स नय असतरो (जस बदकहिकरिरच) दशो और जाहितयो (जस हिफरगी) क ना सतमिमथिलत ोत गय और बराबर ो जात यदिद य साहितयितयक परबध पदधहित पर थिलखा गया ोता तो की न की राजकीय पसतकालयो इसकी कोई परहित रततिकषत मिलती पर य गान क थिलय ी रचा गया ा इस पहिडतो और हिवदवानो क ा इसकी रकषा क थिलय नी बढ जनता ी क बीच इसकी गज बनी री-पर य गज ातर ल शबद नी आला का परचार यो तो सार उMर भारत पर बसवाडा इसका कनदर ाना जाता वा इस गान वाल बहत अमिधक मिलत बदलखड -हिवशषत ोबा क आसपास भी इसका चलन बहत आला गान वाल लोग अलत कलात इन गीतो क सचचय को सवसाधारण lsquoआलाखडrsquo कत जिजसस अनान मिलता हिक आला सबधी य वीरगीत जगहिनक क रच उस कावय क एक खड क अतगत जो चदलो की वीरता क वणन थिलखा गया ोगा आला और उदल परार क सात और बनाफर शाखा क छहितरय इन गीतो का एक सगर lsquoआलाखडrsquo क ना स छपा फर खाबाद क ततकालीन कलकटर मिचालस इथिलयट न पल पल इनगीतो का सगर करक छपवाया ा आलाखड ता लडाइयो का जिजR शरआत ाडौ की लडाई स ाडौ क राजा करिरगा न आला-उदल क हिपता जचछराज-बचछराज को रवा क उनकी खोपहिडया कोलह हिपरवा दी ी उदल को जब य बात पता चली तब उनोन अपन हिपताकी ौत का बदला थिलया तब उनकी उर ातर १२ वष ी आलाखड यदध लडत हय र जान को लगभग र लडाई हिाहिडत हिकया गया - चन-चन नच बदलाउदल क पकारिर-पकारिरभाहिग न जयो कोऊ ोरा त यारो रखिखयो ध ारखदिटया परिरक जौ रिर जौबदिढ सात साख को नारन ा रिरक जौ रिर जौोइ जगन-जगन लौ ना

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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Page 35: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

अपन बरी स बदला लना सबस अ बात ाना गया - lsquoजिजनक बरी समख बठ उनक जीवन को मिधककारrsquo इसी का अनसरण करत हय ता हिकसस उMर भारत क बीड इलाको हय जिजन लोगो न आला गात हय नरसार हिकय या अपन दशनो को ौत क घाट उतारा पतर का तव पता चला जब का जाता - जिजनक लहिडका सर हइग उनका कौन पडी परवा सवाी ता मितर क थिलय कबानी द दना सज गण बताय गय - जा पसीना हिगर तमारा त द दऊ रकत की धार आजञाकारिरता ता बड भाई का समान करना का कई जग बखान गया इक बार ल आला क पतर इदल का अपरण ो जाता इदल ल उदल क सा गय आला न गसस उदल की बहत हिपटाई की- र बास आला गवाय औ उदल को ारन लाग ऊदल चपचाप ार खात -हिबना परहितरोध क तब आला की पतनी न आला को रोकत हय का- त रहिब जौ दहिनया इदल फरिर मिलग आयकोख को भाई त ारत ौ ऐसी तमहि नाथिसब नाय यदयहिप आला वीरता ता अनय ता बातो का अहितशयोथिकत पण वणन ताहिप ौखिखक परमपरा क ाकावय आलाखणड का वथिशषटय बनदली का अपना ोवा १२वी शती तक कला कनदर तो रा जिजसकी चचा इस परबनध कावय इसकी परााततिणकता क थिलए न तो अनतःसाकषय ी उपादय और न बरतिसाकषय इहितास परादbrvbarदव की का कछ दसर ी रप परनत आला खणड का राजा पराल एक वभवशाली राजा आला और ऊदल उसक सानत य परबनध कावय ससत कजोरिरयो क बावजद बनदलो जन साानय की नीहित और कतवय का पाठ थिसखाता बनदलखणड क परतयक गावो घनघोर वषा क दिदन आला जता भरी दपरी सरवन गाइय सोरठ गाइय आधी रातआला पवाडा वादिदन गाइय जा दिदन झडी लग दिदन रात आला भल ी ौखिखक परमपरा स आया पर बनदली ससकहित और बोली का पर ाकावय जगहिनक इसक रचमियता भाषा कावय बनदली बोली का उM ाकावय सवीकार हिकया जाना चाहिए बनदली बोली और उसक साहितय का सदध इहितास और भाषा कावयकाल उसकी कोई भी थिलखिखत कहित उपलबध नी

ामो पहिडत - उसिY वयसिY परकण

Posted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 21 2008

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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बारवी सदी दाोदर पहिडत न ldquoउथिकत वयथिकत परकरणrsquo की रचना की इस परानी अवधी ता शौरसनी - बरज - क अनक शबदो का उललख परापत बारवी शती क परारभ बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत बोलचाल की ससकत भाषा थिसखान वाला गर ldquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrdquo स हिनदी की पराचीन कोशली या अवधी बोली क सवरप का कछ बोध करान सायता परदान करती हिनदी भाषा क Rमिक हिवकास एव इहितास क हिवचार स बारवी शती क परारF बनारस क दाोदर पहिडत दवारा रथिचत हिदवभाहिषक गर lsquoउथिकत-वयथिकत-परकरणrsquo का हिवशष ततव य गर हिनदी की परानी कोशली या अवधी बोली बोलन वालो क थिलए ससकत थिसखान वाला एक नअल जिजस परानी अवधी क वयाकरततिणक रपो क सानानतर ससकत रपो क सा परानी कोशली एव ससकत दोनो उदारणातक वाकय दिदय गय उदारणसवरपः-परानी कोशली ससकतको ए कोऽय का ए हिकमिद का ए दइ वसत क एत दव वसतनी का ए सव कानयताहिन सवाततिण तन ाझ कवण ए तयोसतषा वा धय कतोऽय अर जाणथिस एन ाझ कवण तोर भाई अो जानासयषा धय कसतव भराता का इा त करथिस हिकतर तव करोहिष पअउ पचामि का करिरथिस हिक करिरषयथिस पदिढउ पदिठषयामि को ए सोअ क एष सवहिपहित को ए सोअनत आचछ क एष सवपननासत अधारी राहित चोर ढक अनधकारिरताया रातरौ चौरो ढौकत

ढोला मार ा दाPosted by सपादक- मिथिलश वानकर on August 20 2008

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ढोला मार ा दा गयारवी शताबदी रथिचत एक लोक-भाषा कावय लतः दोो रथिचत इस लोक कावय को सतरवी शताबदी कशलराय वाचक न कछ चौपाईया जोडकर हिवसतार दिदया इस राजकार ढोला और राजकारी ार की परका का वणन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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          • ढोला मार रा दहा
Page 37: आदिकाल : परिचय · Web viewPosted by: स प दक- म थ ल श व मनकर on: October 29, 2007 In: 1 आद क ल Comment! आद क ल सन

ढोला-मार का कथानक इस पर वाता का कानक सतर इतना ी हिक पगल का राजा अपन दश अकाल पडन क कारण ालवा परानत परिरवार सहित जाता उसकी थिशश वय की राजकारी (ारवणी) का बाल-हिववा ालवा क सालकार (ढोला) स कर दिदया जाता सकाल ो जान स पगल का राजा लौट कर घर आ जाता सालकार वयसक ोन पर अपनी पतनी को थिलवान नी जाता उस इस बाल हिववा का जञान भी नी ोता इस बीच सालकार का हिववा ालवाणी स ो जाता जो सनदर और पहित-अनरक ता ालवणी को ारवणी (सौत) क ोन का जञान और पगल का कोई सदश अपन ालवा आन नी दती कालातर ारवणी (ार) अकरिरत यौवना ोती उस पर यौवन अपना रग दिदखाता इधर सवपन उस हिपरय का दशन भी ो जाता पयावरण स सभी उपकरण उस हिवर का दारण दख दत पहिपा सारस एव कञज पकषीगण को व अपनी हिवर वया समबोमिधत करती पगल क राजा क पास एक घोडो का सौदागर आता और ालवा क सालकार की बात करता य सचना सनकर ारवणी और वयथित ो जाती सालकार को बलावा ढादिढयो (ागणार) क दवारा भजा जाता य गान बजान वाल चतर ढाढी गनतवय सथान पर पहचकर सालकार (ढोला) को ारवणी की सथिसथहित का परा जञान करा दत ढोला पगल त परसथान करना चाता परनत सौत ालवणी उस बान बनाकर रोकती रती ालवणी की ईषया थिचनता उनाद कपट हिवर और असाय अवसथा का वणन दो हिवसतार स हआ अनत ढोला परसथान कर ी दता और पगल पहच जाता ढोला और ारवणी का मिलन ोता सख हिवलास सय वयतीत ोता हिफर पहित-पतनी अपन दश लौटत तो ाग ऊर-सरा क जाल स तो बच जात परनत एक नई हिवपदा उन घर लती राहितर को रहिगसतान का पीवणा (सप) ारवणी को सघ जाता ारवणी क त-पराय अचतन शरीर को दखकर सथिसथहित हिवष ो जाती हिवलाप और Rनदन स सारा वातावरण भर जाता तब थिशव-पावती परकट ोकर ारवणी को जीहिवत करत (इसी बीच एक योगी-योहिगनी न का हिक व ार को जीहिवत कर सकत उनोन ार को पन जीवनदान दिदया) दोनो हिफर ल को लौटन लग तभी डकतो का सरदार उन ारन आ गया लहिकन लोक गायको न उन बचा थिलया अतत व अपन ल लौट सक अनक दखो क बाद एक सखात पर कानी बन सकी ढोला ार सकशल अपन घर पहचत आननद स जीवन वयतीत करत वा पर चतर ढोला सौहिता डा की नोक झोक का साधान भी करता ारवणी को अमिधक पयार व सन सरतिपत करता इस लोक कावय का कया ल रप ा य खोजना कदिठन जिजस का का उतस काल की पत खो गया ो उसका आदिद खोजना असFव-सा परनत परसतत lsquoढोला-ार रा दाrsquo नाक कहित क जिजतन राजसथानी परमपरा क रपानतर मिल उन एक लाकष-ततिणक तथय उजागर ोता जान पडता यदिद हिवचारा य क सकत हिक य तो lsquoपरसगातक गीतोrsquo का सगर जिजस परसगो क का सतर को अ स इहित तक अकषणण रखन का धयान रखा गया य कहित ल रप स दोो मिलती य दो शरगार रस की जो परमपरा आरभ करत वी आग जाकर हिबारी क दोो परहितफथिलत ोती डॉ जारीपरसाद हिदववदी न इस कावय क भाव गाFीय को परिरषकत लोक-रथिच का परतीक ाना

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