भारत क राजनैितक अथ./व1था, जनतांि4क...

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1 भारत क’ राजनैितक अथ./व1था, जनतांि4क अिधकार, और जनतांि4क अिधकार क’ लड़ाई 1 यह लेख गणतांि,क अ/धकार सुर4ा संगठन (GASS) के 7ारा आयो/जत एक कां<= स म= 18 माच@ , 2017 को रजनी देसाई 7ारा िदये गए DयाEयान पर आधाGरत है। बाद म= हKई चचा@ के चलते कु छ अंश जोड़े गए हO। इसके अलावा कु छ मामूली सुधार और संशोधन भी िकए गए हO। दोUतV, मO सं4ेप म= अपने तक@ कु छ इस Wकार रखना चाहXंगी: 1. हमारे देश के जनतांि,क अ/धकारV कY ZUथित को समझने उन अ/धकारV के /लए आंदोलन खड़ा करने के /लए देश कY राजनैितक अथ@DयवUथा को समझना बहKत ज़_री है। राजनैितक अथ@DयवUथा कY समझ हम= दो अ‘य बात= समझने म= मदद करती है: पहली, िआ/खर aयV हमारे देश म= हमेशा से लोगV का उbपीड़न और दमन होता आया है? और दूसरी यह िआ/खर िकन वाUतिवक हालातV म= जनता म= जनतांि,क अ/धकारV कY चेतना पनपती है। जािहर है िइन बातV को समझ कर ही हम अपने जनतांि,क अ/धकारV कY लड़ाई को िदशा दे पाएंगे। 2. हम= अ/धकारVकY पGरभाषा (concept) को ऐितहा/सक eिf से समझना होगा। जैसा िमाaस@ ने कहा था 'इंसान अपना इितहास खुद रचता है, पर वो उसे अपने मन मुतािबक नहg रचता; वो इितहास अपने चुने हKए हालातV म= भी नहg रचता, बZhक उसे उन हालातV म= रचना पड़ता है जो पहले से ही कायम हO, जो उसे अपने अतीत से िमलता है।' <ांस और इंiलOड जैसे देशV के इितहास म=, सामंती ढांचे के िवlm अलग-अलग समयV म= खूनी संघष@ हKए हO। इन संघषo के दौरान, इन देशV के नए उभरते पूंजीपित वग@ को सामंती वग@ के शासन को उखाड़ने के /लए शहरी और qामीण मेहनतकश जनता के सहयोग कY ज़lरत पड़ी। यह बात सच है िनए ढाँचे म= भी मेहनतकश जनता को सsा तो नहg िमली, पर कु छ तरह के अ/धकार िमले , और उससे भी ज़_री बात यह हKई िआम जनता के बीच अ/धकारV कY चेतना बनी, जो िसमय-समय म= धुंधली तो पड़ती आयी है पर कभी भी पूरी तरह से िमट नहg पाई। 3. अंqेज़ शासन के दौरान और उसके बाद भी, हमारे देश म= भी कई उथल-पुथल हKए। कई तरह के आंदोलन संघष@ हKए, पर पुराने ढाँचे को पूरी तरह कभी भी ढहा नहg पाए। /जसके चलते जनतांि,क उसूलV 1 इस लेख का अनुवाद कारवां कलेZaटव ने िकया है। मूल लेख Aspects of Indian Economy, Number 69, “Democratic Rights; Coal; Climate Change” (URL: http://rupe-india.org/69/contents.html) म= पाया जा सकता है। सuपक@ : [email protected] अथवा https://karwan-collective.appspot.com/

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    भारत क' राजनिैतक अथ./व1था, जनतािं4क अिधकार, और जनतािं4क

    अिधकार क' लड़ाई1

    यह लेख गणतांि,क अ/धकार सुर4ा संगठन (GASS) के 7ारा आयो/जत एक का

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    पर समाज रचने का काय@vम भी अधूरा ही रह गया। 1947 के बाद आये नए शासकV ने भी कई मायनV म= अंqेजी शासनकाल से िनरतंरता बनाए रखने का ही फैसला /लया। और यह इसी बात का पGरणाम है िक िपछले सsर सालV म= इस देश का आ/थ@क िवकास और ख़ास तौर से रोज़गार का Uवlप एकदम टेढ़ा-मेढा और बेढंगा रहा है। यहाँ करोड़V लोग असंगिठत 4े, म= ठंुसे पड़े हO और /सफ@ दो जून रोटी के /लए कमर-तोड़ मेहनत कर रहे हO, और दसूरी तरफ चंद अमीर लोग इस देश कY तमाम सuपदा पर कंुडली मारकर बैठे हO और सारा मलाई मaखन भी डकार रहे हO। इसी िवकृत ZUथित के चलते समाज म= मौजूद तमाम िपछड़ापन मजबूती के साथ अब भी बरकरार है। माaस@ के श{दV म=: मरे हKए पूव@जV कY परuपराएं िज़ंदा लोगV के िदमाग पर एक खराब सपने कY तरह बोझ होती हO। भारतीय समाज शायद दिुनया का सबसे बंटा हKआ समाज है, यहाँ कY मेहनतकश जनता जाित, धम@, Wा`त, भाषा म= बंटी हKई है, और उसके ऊपर इनम= भी कई तरह कY ऊंच-नीच और भेद-भाव बना हKआ है। ऐसे हालात तानाशाही के /लए एक दम िफट बैठते हO, और वाकई म= तानाशाही हम= देश के राजनैितक माहौल और सरकारी ढाँचे म= साफ़ िदखती है।

    4. िपछले 25 सालV म= हमारे देश म= बड़े पैमाने पर िवदेशी िनवेश हKआ है - यहाँ बड़ी सारी िवदेशी कuपिनयाँ भी आई ंहO और िवदेशी फाइन=स (िवsीय) कंपिनयV ने यहा ँिनवेश भी िकया है। चँूिक Dयापक गरीबी के चलत ेहमारे देश म= इन कंपिनयV के /लए पया@~ बाज़ार नहg है तो उतना मुनाफा कमाने कY गंुजाइश नहg बचती, इस/लए हमारा शासक वग@ और iलोबल पंूजी िमलकर इसकY भरपाई इन भुखमंगV कY बची जमा-पंूजी छीन कर कर रहे हO - जैसे िक उनकY ज़मीन और जंगल और उनके नीचे पाया जाने वाला खिनज। और इस ेअंजाम देने के /लए इस देश कY तानाशाही सरकार और राजनैितक माहौल से उनको भरपूर मदद िमल रही है।

    5.

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    दोUतV, कुछ समय से एक सवाल मुझे कVचे जा रहा है - सरकार 7ारा हाल ही म= िकये गए नोटबंदी ने मेहनतकश जनता कY िज़ंदगी म= कहर बरपाया है, ख़ास तौर पर इस देश के िवशाल असंगिठत 4े, म= काय@रत बहKसंEयक लोगV पर। यहाँ तक िक अमbय@ सेन, /ज`ह= कY िकसी भी सूरत म= कर वामपंथी अथ@शाी नहg कहा जा सकता, ने भी इस चाल को तानाशाही कहा। लेिकन आचय@ कY बात तो यह है िक इतनी िदaकतV के बावजूद इस बड़े देश म= रह रही िवशाल आबादी (जो कY /जंदा रहने के /लए िनरतंर जूझ रही है), म= कहg से भी सरकार कY इस चाल के /खलाफ िवोह तो दरू बड़े पैमाने पर जन आंदोलन भी खड़ा नहg हKआ। आ/खर aयV?

    तानाशाही

    हालाँिक नोटबंदी एक बेहद ही बेहXदी और िवनाशकारी कार@वाई थी पर ऐसा कतई नहg है िक हमारे इस जनतांि,क देश म= यह पहली बार हो रहा हो। लेिकन इस पर बात करने से पहले आइए हम कुछ ऐसे मुV पर थोड़ी बातचीत करते हO जो पहली नज़र म= इस िवषय से एकदम हटकर लग सकते हO। शायद आप सब को छsीसगढ़ के बारे म= पता होगा, जहाँ सरकार ने सारे िनयम-कानून को एकदम ही ताक पर रख िदया है, जनतांि,कता तो बहKत दरू कY बात लगती है। सरकारी तं, का नंगा नाच आम सी बात है - िकतनी घटनाएं िगनाएं, सूची बहKत लuबी है। पहले तो पु/लस एक िनजी आतंकवादी फ़ौज खड़ा करती है जो वहां कY बेबस जनता पर इतना जुhम ढाती है िक बड़ी संEया म= वे पड़ोसी Wा`त म= भाग जाते हO। िफर जब कोट@ उस गैरकानूनी सेना को िनरUत करने का आदेश देती है तो Wशासन उसे अपने ही पु/लस फोस@ म= शािमल कर लेती है। पु/लस वहां कानून के रखवाले नहg बZhक खुद कानून है।

    वहां कY सामा`य पु/लस भी ऐसे-ऐसे कारनामे करती है िक सुनने वालV के आंसू िनकल आएं। और जो बात सबसे यादा अचंिभत करने वाली है िक जुhमी अपने कारनामV को छुपाने कY कोिशश भी नहg करते, बZhक वे बड़ी शान से खुम खुा ही ये काम करते हO। मसलन एक 13 साल का आिदवासी बालक, जो जंगल म= महKए के पेड़ से लाल चgटी पकड़ के लौट रहा था, उसे सुर4ा बल के जवान पकड़ लेते हO और पेड़ से बांधकर चाकू घVप-घVपकर पूछताछ करते हO। लड़के को कान म= कम सुनाई देता था /जसके चलते वह उनके सवालV का सही-सही जवाब नहg दे पाया; तो उसकY गांव वालV के सामने गोली मारकर हbया कर दी जाती है। इसी तरह यह क़ानून के र4क पूरे-पूरे क़Uबे कY मिहलाओं का खुम-खुा बलाbकार करते हO, िनयिमत _प से।

    और अगर कहg कोई हो जो िहuमत करके इन वारदातV कY जांच या उस पर Gरपोट@ /लखने कY ज़ुर@त करे, तो उ`ह= देशोही करार िदया जाता है। एक नामी मानवा/धकार काय@कता@ पर राजोह का संगीन आरोप लगाकर उसे जेल म= डाल िदया जाता है; दसूरे का आम ढहा िदया जाता है; वकYलV को धमकाकर उ`ह= उनके भाड़े के मकानV से जबरन बाहर िनकाल िदया जाता है; प,कारV को या तो भगा िदया जाता है या िफर उ`ह= जेल

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    म= डाल िदया जाता है; जो Wोफेसर इस पर पड़ताल करते हO, उनपर हbया का संगीन जुम@ थोप िदया जाता है; एक मिहला काय@कता@ जो पु/लस के जुhमV को उजागर कर रही थी उसे हवालात म= टाच@र िकया जाता है; एक और िवाथ जो पु/लस और सुर4ा बल के सबसे िघनौने वारदातV का िववरण बना रहा था उसे डरा-धमका कर भगाने कY कोिशश कY जाती है। और िफर पु/लस ही इन मानवा/धकार काय@कता@ओं के /खलाफ Wदश@न करती है, उनके पुतले जलाती है।

    ऐसा भी नहg िक यह दहशत /सफ@ छsीसगढ़ कY जनता पर ही छाई हो, उड़ीसा म= भी कमोबेश यही कहानी है। हम सब को यह भी पता है िक देश के कई िहUसV म=, जैसे िक कमीर म=, ऐसा क़ाननू (AFSPA) लागू है जो कारगर _प से यही कहता है िक कोई क़ानून नहg ह,ै बस सब कुछ सुर4ा बल कY मनमज पर है। जब एक मानवा/धकार संUथान कमीर मुे पर बOगलुl म= सuमलेन करती है, तो उसके पदा/धकाGरयV पर देशोह का इलज़ाम थोप िदया जाता है। तिमलनाडु म= एक कलाकार, वहां कY सााी पर एक गीत गाता है तो उस पर राजोह का आरोप लगाकर िगरतार कर /लया जाता है।

    कुछ अ`य जगहV पर जैसे िक गुजरात म=, एक इशारे से गंुडे मवा/लयV को खुली छूट दे दी जाती है - उ`ह= आवासन िदया जाता है िक वे लूटमार, चोरी-डकैती, हbया-बलाbकार कुछ भी कर=, उ`ह= कुछ नहg होगा। पु/लस कY तरफ से िबhकुल िनZच`त होकर वे यह सब काम कर सकते हO। जब Wशासन को लगता है िक कbलेआम काफY हो चुका है, वह िफर एक इशारा करती है और दंगे ख़bम हो जाते हO। बाद म= जो लोग दोिषयV को क़ानून के दायरे म= लाने कY कोिशश करते हO, कानून उ`हg को दोषी करार देता है, और असली अपराधी न /सफ@ छूट जाते हO बZhक िदन-ब-िदन राजनैितक तरaकY भी करते हO।

    बस इसी बात के चलते िक शासक जब मज़ हमारे नाम मा, के अ/धकारV को छीन सकते हO िबhकुल वैसे ही जैसे ZUवच दबाकर आप बsी बुझाते हो, इस DयवUथा को तानाशाही करार देना एकदम सटीक है। और यह कोई नई बात नहg है। 8 नवuबर को /जस Wकार नोटबंदी लागू कY गई, वह िबलकुल 25 जून, 1975 म= लागू कY गई आपातकाल (emergency) कY याद िदलाती है, फक@ बस इतना है िक नोटबंदी का असर और भी Dयापक रहा और उसकY आ/थ@क किड़याँ कहg यादा गहरी हO। यह बात तय है िक देशी-िवदेशी बड़ी पँूजी ने िड/जटल India बनाने के /लए दबाव डाला होगा और उनके /लए नोटबंदी बेहद लाभदायक भी रहा होगा, पर ऐसा लगता है िक इतना बड़ा िनण@य बस एक छोटी सी मंडली ने /लया है, /जनके सदUय ऊँगली पर िगने जा सकते हO।

    Wधानमं,ी ने इस देश के तथाक/थत गGरमामय जनतांि,क ढाँचे कY पूरी तरह से अवमानना कY। संसद - यह िकस िचिड़या का नाम है? संसद कY पहले से रज़ामंदी लेना या िफर एक आिड@न=स ही जारी करना तो छोड़ो, हमारे चुने हKए Wधानमं,ी ने इस अहम् िवषय पर बाद म= भी संसद म= चचा@ करने से मना कर िदया।

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    और राfपित पद कY Wिता? राfपित को तो बताया भी नहg गया, पूरे 10 िदनV बाद बस एक ीिफंग कY गई।

    और मंि,मंडल (cabinet) को? उ`ह= मोदी के भाषण के एक घंटा पहले सूचना दी गई - कोई सलाह-मशवरा नहg, बस सूचना।

    और राय सरकारV को? राय सरकार=, सरकार कY वह इकाई हO /जनका िक जनता से सीधा जुड़ाव है - उ`ह= भी आम जनता के साथ ही नोटबंदी का पता चला, उससे पहले उ`ह= भी कोई सूचना नहg थी।

    और देश के सवoपGर बOक - Gरज़व@ बOक को? RBI के गवन@र को यादा से यादा एक िदन पहले सूचना दी गई और उ`हVने िबना कोई ना-नुकुर िकये चुपचाप जहा ँहUता4र करने को कहा गया कर िदए। RBI के गवन@र का ओहदा महज़ एक मूक चपरासी का ही रह गया (जैसा िक 1975 म= राfपित फख़lीन अली अहमद का हKआ था) और इस चपरासी ने भी अपनी तरफ से छोटी से छोटी जानकारी तक को ससंद को देने से मना कर िदया, जसैे िक र िकये गये नोटV म= से िकतनी वापस बOकV म= जमा हKए, या िफर उसको नोटबंदी के बारे म= पहले से पता था या नहg, या िफर िकस अ/धिनयम (Act) के तहत ये करवाई कY गई।

    और सुWीम कोट@? शुlआत म= थोड़ी बहKत आलोचनाbमक िटपिणयां करने के बाद उसने भी बड़ी सफाई से हUत4ेप करने से मना कर िदया। सं4ेप म= कहा जाए तो इस पूरी घटना ने एक बहKत ही बिढ़या ढंग से हम लोगV को एक महbवपूण@ सबक /सखाया - हमारे इस लोकतं, के तमाम मिहमामंिडत संUथानV कY अस/लयत - और यह भी िक हम अपने जनतांि,क अ/धकारV कY सुर4ा के /लए इन पर िकतना भरोसा कर सकते हO।

    राजनिैतक अथ./व1था

    इस भाग म= मO तानाशाही और भारत कY राजनैितक अथ@DयवUथा के ढांचे और चGर, के संबंधV पर रोशनी डालना चाहX ंगी; साथ ही उसके चलते लोकतांि,क अ/धकारV के आ`दोलनV के सामने जो काम उभर के आते हO उसे भी रखंूगी। पर उससे पहले, राजनैितक अथ@DयवUथा और लोकताZ`,क अ/धकार का मतलब aया है, उसे समझना होगा।

    राजनैितक अथ@DयवUथा एक भारी भरकम जुमला है और सुनने म= बेहद किठन लग सकता है। पर आसान श{दV म= कहा जाए तो उसका सuब`ध सीधे-सीधे इस बात से है िक िकसी समाज म= िज़ंदा रहने के /लए यादातर लोगV को aया करना पड़ता है।2 या यँू कहा जाए िक िकसी भी समाज म= अलग अलग समय, काल, Uथान, और शासन DयवUथा म= वहां कY जनता को आजीिवका के /लए िकस तरह का म करना

    2 एंगेhस के श{दV म= 'मोटे तौर पर कहा जाए तो राजनिैतक अथ@DयवUथा उन िनयमV का िवान है जो इसंान के जीन ेके /लए ज़_री वUतओुं का उbपादन और िवतरण को िनयं,ण करत ेहO। माaस@ का कहना ह ै िक 'नागGरक समाज कY संरचना को समझन ेके /लए उसकY राजनैितक अथ@DयवUथा कY समझ ज़_री है।

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    पड़ता है (समाज से मतलब है िक वे पGरZUथितयां /जनम= वे पैदा होते हO या जीते हO - चाहे वह इितहास का कोई भी काल हो या िफर दिुनया के िकसी भी कोने म= हो)। भरपेट खाने के /लए लोगV को aया व कैसा और िकतना म करना पड़ता है, पेट भरने के /लए काम करते हKए उनका समाज के अ`य लोगV, वगo ंव तबकV से कैसा Gरता कायम होता है, अपने और पGरवार के /लए दो जून रोटी का जुगाड़ करने म= लगे लोगV के जीवन से जुड़ी ये सचाईयां उनके जीवन पर इतनी हावी हO िक इ`ह= समझे िबना लोगV के साथ कोई भी साथ@क बातचीत नहg कY जा सकती।

    आजीिवका कमाने के /लए लोगV को म करना पड़ता है, और म करने के /लए लोगV को उन साधनV कY ज़lरत पड़ती है जो उbपादन के /लए ज़_री हV, जसैे िक - ज़मीन, पानी, औज़ार, फ़ैaट ी, मशीन इbयािद। पर इन साधनV पर िकनका अ/धकार होता है, या िफर कौन उसका मा/लक है, या िफर िकस के पास उतना पैसा है िक वह इ`ह= खरीद सके या िफर भाड़े पर ले सके? यािन िक वे कौन से लोग हO जो िबना म िकये अ`य लोगV के म के आधार पर मुनाफा कमा सकते है? और वे कौन से लोग हO /जनके पास साधन न होन ेके कारण, उ`ह= चुपचाप हर शत@ मानकर म करना पड़ता है?

    उbपादन के साधनV के मा/लक और कंगाल िमक के बीच का Gरता; /जनके पास साधनV का पूरा िनयं,ण है और जो औरV कY मज़ पर चलने पर मजबूर हO - उनके बीच का Gरता, यही राजनैितक अथ@DयवUथा का सार है। यही तय करता है िक समाज म= मेहनत के फल का बंटवारा कैसे होगा। वगo ंम= बंटे समाज म= ये Gरते ज़_र गैरबराबरी के ही हVगे चाहे उस गैरबराबरी का Uवlप कैसा भी हो - सामंती, पंूजीवादी, वगैरह।

    इस गैरबराबरी को शासक वग@, जो एक अhपसंEयक वग@ होता है या यँू किहये चंद लोगV से ही बना होता है, बड़ी मुUतैदी से कायम रखता है, और लगातार उसे खाद-पानी देता है तािक वह पनपता रहे। इसम= कोई शक नहg िक जनता खुद भी तमाम संUकार, रीित-Gरवाज़ जैसे ऐितहा/सक बंधनV म= बंधे होने के कारण इन हालातV को बनाए रखने म= मदद करती है। यह सांUकृितक बेिड़याँ इस दमनकारी तं, को िवोह से बचाए रखती हO। और आ/खर म= जो इस सबके बावजूद आवाज़ उठाने कY ज़ुर@त करते हO उ`ह= शासक वग@ दबाव, बल, सज़ा यहाँ तक कY मौत से चुप करा देता है - पर िकसी भी हालात म= इस गैरबराबरी को ख़bम नहg होने देता।

    इन दमनकारी पGरZUथित म= म करने पर मजबूर होने के कारण, म का मतलब ही कf या उbपीड़न (टाच@र) हो गया है। यहाँ तक िक अंqेजी श{द labour, work, toil सभी का मूल मतलब पीड़ा, कf, यहाँ तक िक टाच@र है। मराठी म= म के /लए कf श{द का इUतमाल होता है - /जसका मतलब हम सबको पता है। मानव इितहास म= हमेशा से ही लोगV को ज़बरदUती काम करवाया गया है चाहे गुलाम बनाके, या िफर

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    सामंती बंधुआ बनाके, या उbपीिड़त जाितयV म= धकेलकर, या पंूजीवादी समाज म= उसे मज़दरू बनाके - जो महज़ भूख से मजबूर हो जाता है।3

    वहg दसूरी तरफ इितहास म= हमेशा से लोगV के म से जो उपजता है (उगता है या बनता है) उस पर सारा मा/लकाना हक़ ताकतवर, धनी वग@ का ही होता आया ह।ै इस तरह जब लगातार समाज कY सारी धन-संप/s पर इस वग@ का क{ज़ा होता रहता है तो वह और भी ताकतवर व धनवान बनता जाता है। ऐसे म= जब कभी शोिषत मज़दरू वग@ अपने कमरतोड़ म के बोझ को थोड़ा कम करने का Wयास करते हO या िफर अपने उbपादन का थोड़ा सा िहUसा अपने नाम करने कY कोिशश करते हO /जससे िक वे अपनी िज़ंदगी, कुछ हद तक ही सही, अपनी शतo ंपर जी सक= , तब मुीभर ताकतवर लोग अपनी सारी शि उनके WयासV को कुचलने म= लगा देते हO तािक सारी संप/s और कमाई पर उनका क{ज़ा बना रहे। समाज म= शोषण का यही मूल कारण है - सामा/जक ढांचे को बनाए रखने के /लए तमाम तरीकV के सामा/जक-राजनैितक शोषण के ह/थयारV व ताकत का इUतेमाल िकया जाता है, /जनम= िक सरकारी तं, (state) सबसे संगिठत शि है। इससे यह सािबत होता है िक साम/जक शोषण ढांचागत है - Dयिगत नहg।

    यह शोषण मानव इितहास के अलग-अलग समय म=, अलग-अलग समाज म=, िभ-िभ _पV म= Wकट हKआ है। अलग अलग समाजV का ऐितहा/सक eिfकोण से ठोस िवलेषण ही राजनैितक अथ@DयवUथा का सार है।4

    लोकतािo4क अिधकार

    यही कारण है िक हम= लोकतांि,क अ/धकारV के मसले को ऐितहा/सक चमे से समझना होगा। अ/धकार के बारे म= आम समझ तो यह है िक वह कोई ऐसी चीज़ है जो समय के साथ नहg बदलता और उसकY समझ भी भावाbमक है (ठोस के िवपरीत) है /जसे 'छीना' या 'िदया' जा सकता है। वहg यह माना जाता है िक मानव अ/धकार कुछ 'Wाकृितक िनयमV' पर या िफर कुछ मानव मूhयV पर आधाGरत हO (जो इस समय UN चाट@र म= समािहत हO) जैसे िक सवंैधािनक अ/धकार संिवधान म= हO, और कानूनी अ/धकार अलग-अलग कानूनV म= हO, वगैरह वगैरह। और आज भी यह अ/धकार भारत के अ/धकांश नागGरकV के /लए /सफ@ कागज़ी हO - उनका यथाथ@ से कोई लेना-देना नहg हO। इन अ/धकारV के बारे म= साफ़-साफ़ बोल पाना भी एक लuबी लड़ाई कY

    3 काम कY पGरभाषा इससे ठीक िवपरीत रही ह,ै यादातर आिदम समाजV म= /जन के बार ेहम= पता चला है - वहा ंलोग शोषण या दमन के डर से हाकें नहg जात ेथे बZhक वहा ंलोग सामा/जक िज़uमेदारी, परपंरा, सuमान पान ेके /लए, बेहतर कारीगरी करके खशु होन ेजसेै सकाराbमक Wोbसाहन के कारण काम करत ेथे। और यह तय हम= भिवय के समाज गढ़ने कY संभावनाओ ंकY तरफ इंिगत करता है जहा ँकाम दमन से नहg करवाया जाएगा। 4 /जन हालातV म= इंसान उbपादन और िविनमय करते हO वे एक से नहg होते - अलग-अलग देशV म=, एक ही देश म= अलग-अलग जगह, अलग-अलग पीिढ़यV म=, वे िभ होत ेहO। इसी कारण से राजनैितक अथ@DयवUथा हर देश या हर समय के /लए एक सी नहg हो सकती। राजनैितक अथ@DयवUथा दरअसल एक ऐितहा/सक िवान है।

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    Wिvया से संभव हो पाया है पर उसको सही मायने म= लागू कर पाना अभी भी शेष है - जो िक भिवय म= ही होगा।

    लोकताZ`,क अ/धकार के /लए आंदोलन िकसी िवशेष राजनैितक अथ@DयवUथा म= ही हो सकता है और ऎसी ठोस पGरZUथित िकसी िवशेष ऐितहा/सक Wिvया से ही उभरती है।

    िबना लड़े कोई भी अ/धकार हा/सल नहg होता; और जो समाज शोषण पर आधाGरत हो उसम= जनतांि,क अ/धकारV कY लड़ाई म= सबसे बड़ा रोड़ा शासक वग@ या िफर उसका एक िवशेष तबका ही होता है। कहने का मतलब यह है िक यह िकसी लोकतं, िवरोधी Dयि िवशेष या िफर गुट का काम नहg, न ही िकसी ज`मजात मानव Wकृित के चलते ऐसा है - दसूरV का शोषण और दमन करने के पीछे ना तो कोई सहज मानव Wवृ/s है और ना ही ऐसा िकसी धम@ या संUकृित के चलते ही है। शोषण कY जड़ म= है सारी कमाई हड़पने कY वह ज़lरत, जो िक एक गैरबराबर समाज म= शासक वग@ को हमेशा ही रहती है, /जसके चलते वह लोगV को दबाकर रखता है तािक लोग िहUसेदारी न मांग सक= । हाँ यह बात ज़_र है िक इसके चलते वह हर तरीके कY Wितिvयावादी (जो सही Wगित के /खलाफ हो) संUकृित और परuपराओं को बढ़ावा देता है; जनता म= कोई भी हािनकारक lख पनपे तो उसे हवा देता है। ऎसी DयवUथा म= दसूरV पर धस जमाने वाले DयियV को भी आगे बढ़ने का खूब मौका िमलता है। यह सारी चीज़= शासक वग@ को जनता को दबाए रखने के अितGर ह/थयार मुहैया करवाती हO, और इनके सहारे वह अपना वच@Uव बेधड़क बनाए रखता है।

    जैसा िक हमने पहले ही देखा है लोगV म= लोकताZ`,क अ/धकारV कY चेतना उनके समाज कY ठोस राजनैितक अथ@DयवUथा के चGर, पर िनभ@र करती है। अhपिवक/सत समाजV म=, जहाँ सामा/जक पGरवत@न आधा-अधूरा या टेढ़ा-मेढ़ा ही हो पाया है, और सब जगह समान भी नहg, हर समाज अपने आप म= एकदम िनराला होता है, और उसी िनरालेपन से तय होती है उस समाज के लोगV कY चेतना।

    तो इसी/लए हम= जनतांि,क अ/धकारV के /लए आंदोलन कY ज़_रत, और उसकY कारगर तैयारी कैसे कY जाए, दोनV के /लए ही वहां कY राजनैितक अथ@DयवUथा को समझना पड़ेगा।

    *

    अ/धकार aया है - इसकY अवधारणा ही एक लuबी ऐितहा/सक Wिvया का नतीजा है।5 जब समाज वगo ंम= बंटा, और िफर जब आ/थ@क _प से सश शासक वग@ को शोिषत वग@ को दबाए रखने के /लए सsा या राज (State) जैसा असरदार ह/थयार उभरा, उसी Wिvया से 'अ/धकार' कY समझ भी उभरी। ितस पर भी

    5 एंगेhस बताते हO िक 'आिदवासी समाज म= शासक और शा/सत म= भेद नहg होता इस/लए अ/धकार और िज़uमेदारी म= भी भेद नहg होता। यह सवाल िक साव@जिनक मामलV म= भागीदारी करना अ/धकार ह ैया िज़uमेदारी उनके /लए बेमायने है, उ`ह= वह उतना ही अटपटा लगेगा /जतना िक अगर कोई उनसे पछेू िक सोना, खाना या िशकार करना अ/धकार है या िज़uमेदारी।

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    'अ/धकार' - जो पूरे मानव जाित पर लागू हो ऐसी कोई हवाई बात नहg थी, “ऐितहा/सक तौर पर अ/धकार हमेशा ही िकसी िवशेष वग@ को िदया जाता है और अमूमन वह संप/s के आधार पर तय होता है िक िकसको िकतना अ/धकार है - /जसके पास यादा, उसका अ/धकार भी यादा। और यह बात एकदम साफ़ श{दV म= ऐलान कY जाती है िक संप/s के मा/लकV को गरीब और फaकड़ जनता से बचाना ही सsा (State) सरकार जैसे संगठन कY मुEय िज़uमेदारी है”।

    यह ZUथित बदली, या िफर ऐसा लगा िक बदली, जब लोकताZ`,क मूhयV पर गणतं, बने। पंूजीपित वग@ और सामंती वग@ के बीच म= सिदयV तक लuबी लड़ाई चलने के बाद ही यूरोप म= जनतांि,क (democratic) सरकार कY Uथापना हKई। साल 1642 म= हKआ इंiलOड का गृहयुm 6, सामंती वग@ के /खलाफ पंूजीपित वग@ कY पहली िनणा@यक जीत थी। इस संघष@ म= पंूजीपितयV ने अगुआई कY और जनता ने सामंती ताकतV के /खलाफ उनका साथ िदया। संसद, जो िक Dयापारी और उोगपितयV के िहतV का Wितिन/धbव करती थी, उसके /लए इंiलOड के साट (जो िक भूिमहर सामंतV के िहतV का र4क था) को अपने बल पर उखाड़ फ= कना संभव नहg था, और इस/लए उ`ह= जनता कY मदद कY ज़lरत पड़ी। पर जनता आ/खर उनका साथ aयV देती? उनका सहयोग पाने के /लए पंूजीपित वग@ ने इस लड़ाई को कुछ इस तरह पेश िकया िक लगे िक वे जनता के िहत म= दमनकारी सामंतवाद के /खलाफ हO - यानी िक जीतने पर आम जनता सामंतV के चंगुल से आज़ाद हो जाएगी।

    पर नए शासक वग@ के /लए सबसे बड़ी िदaकत कY बात यह थी िक एक बार जनता को आपने राजनैितक पहल करने को उकसा िदया, तो उस /ज को बहKत आसानी से बोतल म= वापस कैद नहg कर सकते आम जनता से मदद लेने के खतरV के बारे म= संसद अनजान नहg थी, पर उस समय उनके पास दसूरा कोई चारा भी नहg था - शाही गुट को पछाड़ने के /लए उ`ह= जनता से धन (टैaस के ज़Gरए) भी लेना पड़ा व उ`ह= ह/थयारबंद भी करना पड़ा। इस ऐितहा/सक गृहयुm के चलते इंiलOड म= राजनैितक और अिभDयि कY आज़ादी कY मानो एक िवशाल लहर दौड़ गई, जो लगभग 18 साल तक बनी रही (1642 - 60)।

    और उस दौरान कई नए राजनैितक दल भी उभरे - The Levellers, The Diggers और The Ranters, /ज`हVने vांितकारी िवचारधाराओं का जमकर Wचार Wसार िकया। साल 1642 म= िडiगेस@ पाट ने 1381 म= हKए िकसान िवोह के नारV का िफर से लोगV के बीच Wचार िकया 'जब आदम (दिुनया का पहला मानव) िमी खोदता था और ईव (दिुनया कY पहली मादा) कपड़े बुनती थी, तब कौन नवाबी करता था -

    6 इससे पहल ेभी सामंतवाद के /खलाफ कई बड़े िकसान िवोह हKए - जैसे िक 1381 म= इंiलOड म= हKआ िकसान िवोह, जम@नी का िकसान युm (1524-25) पर उ`ह= सहयोगी वग@ न िमलने कY वजह से वे सफल नहg हो पाए। सामतंवाद के /खलाफ िकसान िवोहV का सबसे संप इितहास शायद चीन का रहा है - पर नए समाज और नए नेतृbव के अभाव म= उनका मौजूदा सामंती ताकतV ने ही इUतमाल िकया - महज़ एक राज घराने को हटाकर दसूरा गी पर बैठ जाते, पर साम`तवाद यV का bयV बना रहता।

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    (कहने का मतलब यह है िक मानव समाज म= हमेशा से ही आज कY तरह अमीर और गरीब तबका नहg था - एक समय था जब सबको काम करना पड़ता था)।

    पर अंत म= यह vांितकारी पािट@यां िटक नहg पाई ंऔर सामंती शासकV कY जगह पंूजीवादी शासकV ने ले ली और िफर से जनता पर अपना राज कायम िकया। पर इसके बावजूद भी आम जनता को राजनैितक लड़ाई म= झVकने के कुछ Uथायी पGरणाम रहे। aयंूिक उसके बाद राजगी पर जो भी बैठा उसे हमेशा याद रहा िक जनता ने राजा चाhस@ को सजाये मौत दी थी जैसा िक एक राजभ ने बड़े दःुख से कहा: उन लोगV ने सरकार के सारे गूढ़ रहUयV को इन जािहलV के सामने खोल कर रख िदया (जैसे कY सूअर के सामने मोती रख द=) और सामा`य जनता और फ़ौज को इतनी सारी गु~ बात= बता दg िक अब सरकार कY कोई भी धस नहg रही ..... इसके चलते उ`हVने सामा`य लोगV को इतना अaखड़ और खोजी बना िदया है िक अब उनम= इतनी िवनता ही नहg बची िक उनपर सही ढंग से शासन िकया जा सके।

    सामंतवाद और पंूजीवाद के बीच के लuबे संघष@ कY सबसे िनणा@यक घड़ी है ांसीसी vांित (1789 -93) - एक बेहद ही खूनी संघष@ /जसमे बहKसंEयक िकसान और शहरी मज़दरूV ने (जो िगनती म= बहKत यादा नहg थे) पँूजीपित वग@ का साथ िदया, इस उuमीद म= िक उ`ह= सामंती दमन से आज़ादी िमलेगी।

    ांसीसी vांित के समय यूरोप कY अUसी Wितशत जनता देहात म= बसती थी। यादातर लोग िकसी न िकसी तरह कY गुलामी या बंधन म= जकड़े थे।

  • 11

    िकया जा सके ऐसा अ/धकार' माना गया है। पर इस अ/धकार का लाभ कुछ चंद लोगV को ही िमल सकता था।

    और इस बात ने एक दिुवधा खड़ी कर दी - aया गरीब िनध@न जनता, उस घोषणा म= कहे गए अपने बाकY अ/धकारV के ज़Gरए, अमीर तबके कY संप/s (यानी िक पूरे समाज कY अ/धकांश संप/s) को हा/सल करन ेके /लए आंदोलन कर सकती थी? लेिकन इससे तो उस 'पिव,' िनजी संप/s के अ/धकार का उंघन हो जाता। और हकYकत म= शहरी मजदरूV ने तो एक बराबरी के समाज कY मांग करते हKए आंदोलन करना शु_ भी कर िदया, और कुछ vांितकारी लोकताZ`,क सोच रखने वाले िवचारक उनके Wवा भी बन गए। हैरत कY बात तो यह है िक जनता 7ारा चलाया गया यह सीधा जनतं, जो सड़क से िनयंि,त होता था (महलV या संसद से नहg) काफY िदन तक चला, और काफY मशaकत के बाद ही पंूजीपित वग@ इन 'उqवािदयV' को कुचलने म= सफल हKआ।

    बुजु@आ लोकताZ`,क अ/धकारV (पंूजीवाद से जो उभरे) का शुlआत से ही पूरी दिुनया पर गहरा असर रहा aयVिक /जस राजनैितक अथ@DयवUथा के चलते वे उभरे, वे पहले से ही अपने उपिनवेशV - गुलामV और वहां कY Wाकृितक सuपदाओं (/जनका वो भरपूर शोषण करते थे) पर पूरी तरह िनभ@र थी।

  • 12

    भारतीय हक'कत

    अब हम अपने देश म= आते हO। आपको शायद यह जानकर आचय@ होगा िक 1947 म= इंiलOड कY संसद म= पाGरत एक अ/धिनयम के तहत देश कY सsा भारतीयV के हाथ आई। उस समय देश कY बहKसंEयक आबादी देहात म= बसती थी और वे कृिष पर िनभ@र थे। यह बात भी सभी मानते हO िक उस समय के Wच/लत (जो अमूमन पाया जाता हो) कृिष सuब`ध औपिनवेिशक शोषण कY ज़_रतV के िहसाब से बने थे। वे इतने िपछड़ ेथे िक, न /सफ@ कृिष बZhक पूरे देश कY अथ@DयवUथा म= िकसी भी Wकार का िवकास होना मुZकल था। और इसके चलते पूरा समाज भी एकदम िपछड़ा हKआ था। ज़मgदार, साहXकार, िबचौ/लयV कY कई परत=, अफसरV और अ/धकाGरयV जसैी परजीवी (दसूरV के म पर पलने वाले) ताकत=, िकसानV कY खून पसीने कY कमाई को ऐंठकर उसे अपने ऐशो आराम म= खच@ कर देते या िफर साबाजी या और िकसी तरह के फ़ालतू के काम म= लगा देते। कृिष अथ@DयवUथा इन परजीिवयV के चंगुल म= इस कदर फंसी हKई थी िक असली उbपादनकता@ (िकसान) के पास अपने /लए कुछ भी नहg बचता था - यानी िक उनकY खरीदने कY 4मता बहKत कम थी। ऐसा भी नहg िक उनको ज़lरत नहg थी, ज़lरत तो बहKत थी पर पैसे नहg थे। खरीददार न होने से औोिगक माल कY बाज़ार म= मांग भी बहKत कम थी /जसके चलते औोिगक िवकास सही ढंग से नहg हो पाया और उसका असर औोिगक मज़दरू पर भी पड़ा। वहg दसूरी ओर इस देश के Wगितशील तबके ने यह मान /लया था िक इस नई DयवUथा म= जाितवाद अपने आप ख़bम हो जाएगा।

    पर इन सsर सालV म= अनिगनत सरकारी सिमितयां, सव¡4ण, काननूV के बावजूद इस पGरZUथित म= बस नाम मा, का ही सुधार हKआ है। इससे हम यह अंदाजा लगा सकते हO िक इस परजीवी वग@ कY सरकारी तं, पर भी िकतनी मजबूत पकड़ है। भूिम अ/धqहण क़ानून के तहत जो ज़मीन अितGर घोिषत कY गई थी, वह कृिष योiय भूिम का महज दो Wितशत ही थी, और उससे भी कम का बंटवारा िकया गया, वो भी सबसे ओछी ज़मीन। इसका नतीजा यह रहा िक ज़मीन तो बँट गई पर भूिम िवतरण कY असमानता म= कोई सुधार नहg हKआ। हाल के आंकड़V के अनुसार - 2.6% िकसानV के पास 24.6% और 7.2% िकसानV के पास 46.7% ज़मीन का मा/लकाना हक़ है। भूिम सुधार पर 1973 म= लािनंग कमीशन कY आ/धकाGरक टाUक फ़ोस@ ने तो साफ़ श{दV म= कहा िक हमारे देश म= भूिम सुधार का काय@vम सफल aयV नहg हKआ: इस देश कY ताकत के ढाँचे (power structure - या और श{दV म= कहा जाए तो ताकतवर वग@ का दबदबा) को देखते हKए यह Uवाभािवक है िक यहाँ कY सरकार भूिम सुधार के /लए पया@~ राजनैितक Wितबmता नहg जुटा पाई।

    और अब तो भिूम सधुार का मतलब ही बदल गया है

    'भूिम सुधार' का सही मतलब है qामीण सuपदा का लोकताZ`,क पुनग@ठन (उिचत बंटवारा) जो िक समूची राजनैितक अथ@DयवUथा के लोकताZ`,क पुनग@ठन का आधार है। पर समय के साथ आम चचा@ और सरकारी नीितयV म= भूिम सुधार कY इस मूल अवधारणा म= बदलाव हKआ है - पहले तो समूचे कृिष 4े, के िवकास के

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    बदले 'हGरत vांित जैसे काय@vमV को बढ़ावा िदया गया - जहाँ बस कुछ चुने हKए इलाकV म= बहKत यादा उbपादन पर ज़ोर िदया गया; और अब तो इसका मतलब हो गया है 'मु बाज़ार' जो िक कृिष व उससे जुड़ ेतमाम 4े,V म= थोपा जा रहा है। नीित आयोग के भूिम संबंधV पर बने विक¢ ग qुप ने 2006 म= इस पर यह िटप£णी कY :

    अUसी के दशक म= जब उदारवाद ने भारतीय अथ@DयवUथा म= अपने पैर जमाने शुl िकए, पहले चोरी िछपे और 1991 के बाद एक आंधी कY तरह, तब से देश कY राजनीित से भूिम सुधार का एज=डा मानो गायब ही हो गया। सरकार म= बैठे 'DयापाGरयV के िहतैषी तो इस िवषय पर बात करने से भी कतराते हO। उ`ह= यह िचंता खाए जाती है िक भूिम बाजार म= अगर सरकार ने िकसी भी तरह के हUत4ेप कY बात भी कY तो उससे Dयापारी/ बाजार के ऑपरेटस@ कहg डर न जाएं। और कुछ करना तो दरू, उ`ह= तो मौजूदा भूिम सुधार के कानून ही नागवार लगते हO जो िक सsर के दशक म= क= ीय सरकार के िदशा िनद¡श पर लागू िकए गए थे। उनके िहसाब से ये कानून एकदम बेकार और बेहXदे हO aयVिक वे पँूजी को आज़ादी से भू-बाज़ार म= खेलने नहg देते - उस पर जबरन अड़ंगे लगाते हO। इस/लए एक ताकतवर तबका इस बात पर लगातार ज़ोर लगा रहा है िक भू-सुधार के कानूनV को बदला जाए - लOड सी/लंग एaट (यादा से यादा िकतनी ज़मीन एक आदमी के पास हो सकती है) कY सीमा या तो हटाई जाए या िफर उसे बढ़ाया जाए, ज़मीन को ठेके पर उठाने िदया जाए, और ठेका या पे पर दी गयी ज़मीन कY शत¡ बाज़ार 7ारा तय हV, बड़े-बड़े कॉपoरेट घरानV को भू-बाज़ार म= घुसने कY अनुमित दी जाए, पंूजीवादी खेती शु_ कY जाए या िफर ठेके पर खेती करने िदया जाए, और पारuपGरक फसलV कY जगह िनया@त उपयोगी फसल उगाई जाए।

    अब 'भूिम सुधार' का मतलब है िक िकसानV कY बची-खुची कानूनी सुर4ा को वUत िकया जाए और उनकY संप/s बड़े ज़मgदारV और कॉपoरेट सेaटर को सप दी जाए। इसी मंशा से अब भू ऑपरेटस@/Dयापारी बड़े ज़ोरV से इस बात कY मांग कर रहे हO िक पेदारी Wथा को िफर से कानूनी जामा पहनाया जाए - /जसे एक समय पर परजीवी (parasitic) करार देकर गैरकानूनी बनाया गया था।

    मौजूदा नवउदारवाद के शासन म= जहाँ िकसानV कY आbमहbया कY वारदात= बहKत तेज़ी से बढ़ रहg हO, उससे जूझने के /लए हमारे शासक वग@ का WUताव यह नहg है िक कैसे DयापाGरयV और साहXकारV का शोषण ख़bम िकया जाए। बZhक हमारी सरकार तो इस Wयास म= लगी है िक कैसे कृिष Dयवसाय कY दैbयाकार iलोबल कuपिनयाँ और भी आसानी से देश के कृिष 4े, पर क{ज़ा कर सक= - िकसान आbमहbया के मसले का अनोखा 'हल' ढँूढा है। पर सही मायने म= देखा जाए तो िकसान- आbमहbया तथाक/थत 'वैवीकरण' कY नीितयV का सीधा पGरणाम है: लागत कY लगातार बढ़ती कYमत=, मोनसOटो जैसी मhटीनेशनल कंपिनयV पर बीज के /लए िनभ@रता, सरकारी िवUतार सवेाओं (िकसानी के /लए शोध और ान कY बातV के बारे म=

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    िकसानV को बताना, उ`ह= लगातार िशि4त करना /जससे िकसान बदलते हKए हालात से जूझ सक= व नए ान का लाभ उठा सक= ) को धीमे-धीमे बंद कर देना, /जससे िक िकसान लगातार िनजी िवUतार सेवाओं पर िनभ@र होता जाए (िनजी िवUतार सेवा ज़ािहर है कuपिनयाँ चलाएंगी और वे िकसानV को अपना सामान लेने पर मजबूर कर=गी चाहे ज़_रत हो न हो)। सुिनयो/जत ढंग से सरकारी खरीददारी को कम िकया जाना, देश को कृिष-िनया@त के /लए खोल देना। इस सभी के चलते हमारे देश के िकसान िवव Uतर पर कृिष वUतओु ंकY कYमतV म= होनवेाली भयानक उतार चढ़ाव कY चपेट म= आ जाते हO। िकसानV कY आbमहbया का यही मूल कारण है।

    ज़ािहर है िक कृिष 4े, म= िकसी भी Wकार के सचेत पGरवत@न के काय@vम को एक राजनैितक Wिvया से ही अंजाम िदया जा सकता है, और उसके /लए राजनैितक ताकतV का, यािन िक सsा_ढ़ वग@ का सामना करना होगा। िपछले 6 दशकV म= चाहे जो भी बदलाव आया हो या िफर सरकारी खातV म= पंचायतीराज के Wसार के बारे म= जो भी /लखा हो, हकYकत तो यह है िक आज भी इस देश के गाँव म= छोटे िकसानV (/जनका िक अपनी ज़मीन पर मा/लकाना हक़ है) का लोकतं, नहg हO। बZhक आज भी गांव कमोबेश, qामीण मालदार वग@ के मनमाना हरकतV का और भीषण दमनकारी ताकतV का क= है, और यह ताकतवर वग@ आज भी अमूमन उच जाित से ही आता है।

    घरेलू सuपदा के िवतरण (अलग-अलग वगo ंम= aया-aया घरेलू सामान है इसका लेखा जोखा) पर हKए एक शोध के Gरपोट@ म= /लखा गया था िक 'आज भी qामीण 4े, म= ज़मीन ही दौलत व ताकत के Wतीक भी हO और पैमाना भी'। qामीण समाज म= ज़मीन कY िमZhकयत ही तय करती है िक सsा िकसके हाथ म= है।

    अ`य कारक जैसे िक, उbपादन के अ`य संसाधनV (औज़ार, मशीन, ट ेaटर, आिद) कY िमZhकयत; सामूिहक संप/s (जो /सफ@ कहने को ही सामूिहक है जैसे िक पानी, सामुदाियक ज़मीन, सरकारी ज़मीन, आिद) पर क{ज़ा, जाितगत दादािगरी, अ/धकाGरयV और ससंदीय राजनेताओं तक पहK ँच व चुनावV पर Wभाव - कY भी भूिमका है, पर ज़मीन कY िमZhकयत के साथ जोड़कर ही वे असरदार होते हO। इसके अलावा vेिडट, लागत, उपज या पैदावार और म के बाज़ारV (इनके खरीद फरोEत) म= भी बड़े ज़मgदारV का ही बोलबाला है।

    संिवधान, चुनाव, संसद, और तरह-तरह कY संUथाएं, लोकतं, होने का ¦म तो पैदा करते हO पर देश कY राजनैितक अथ@DयवUथा को देखा जाए तो समझ म= आता है िक यह /सफ@ िदखावे के /लए हO, आम जनता के /लए यह सब कोई भी मायने नहg रखता। हकYकत म= आम जनता और सरकार के बीच का Gरता बेहद अलोकतांि,क (लोकतं, का एकदम उलट) है।

    ढाचंागत प|रवत.न या िवकृित

    िपछले कई दशकV से कृिष पर रोज़गार-िनभ@रता म= िगरावट दज़@ हKई है, पर उससे कहg यादा तेज़ी से कृिष आमदनी म= िगरावट आई है (कृिष का राf ीय आय म= िहUसा लगातार कम हKआ है), /जसका मतलब है िक

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    कृिष म= लगे हKए लोगV कY आय लगातार बाकY 4े, के मुकाबले घट रही है। हाल िफलहाल म= कृिष से पलायन कY र§तार म= तेज़ी आई है। इससे कुछ लोगV को लगने लगा है िक शायद देश कY अथ@DयवUथा म= सकाराbमक पGरवत@न हो रहा है। पर कृिष से पलायन करके मज़दरू जा कहाँ रहे हO? aया उ`ह= कहg और इससे बेहतर आजीिवका िमल पा रही है या महज़ उ`ह= कृिष से ज़बरन बाहर ढकेला जा रहा है?

    सचमुच बहKत सालV से (या यँू कह= िक 1947 से ही) इस बात कY उuमीद कY जा रही है िक भारत कY अथ@DयवUथा कृिष और अनौपचाGरक 4े, जैसे महज़ गुज़र-बसर करने लायक आजीिवका से िनकलकर पंूजीवादी DयवUथा म= त{दील हो जाएगी; ऐसी DयवUथा म= /जसम= यादातर काम औपचाGरक और औोिगक 4े,V म= होगा। म बाज़ार भी िनयम अनुसार चल=गे। मज़दरू को िनयिमत आय िमलेगी, उसे Uवरोज़गार (जो िक एकदम ही अिनZचत और छोटे रकम पर गुज़र-बसर करने कY मजबूरी का एक और श{द है) पर िनभ@र नहg होना पड़ेगा, वह या तो पूरी तरह नौकरी पर होगा या िफर पूरी तरह बेकार, और नौकरी औपचाGरक होगी (यानी िक काम के घंटे और aया काम है, काम कY सुर4ा, काम करने के िनयम, Gरटायरम=ट के बाद कY सुिवधाएं, और अ`य काननूी सुर4ा पहले से ही तय रहेगी) यह भी उuमीद कY गयी थी िक सभी कामV म= यूिनयन होगा और औोिगक संबंधV (इंडZUटयल Gरलेश`स) म= सामूिहक सौदेबाजी और यूिनयन कY िनणा@यक भूिमका होगी।

    पर यथाथ@ म= देखा जाए तो भारत कY कहानी कुछ और ही रही: • Uवरोज़गार यानी िक - कृिष, छोटा Dयापारी, बहKत छोटे और घरेलू उोग, कारीगर, खुदरा Dयापारी, इbयािद, का िहUसा कम तो हो रहा है पर बहKत ही धीमे-धीमे और आज भी वह 50 Wितशत के ऊपर ही होगा।

    • िनयिमत पगार पाने वालV कY कुल रोज़गार के अनुपात म= शायद ही बढ़ोsरी हKई है, और वह बहKत थोड़े लोगV को ही िमलती है।

    • Casual या अUथायी िमकV के अनुपात म= बहKत बढ़ोsरी हKई है और वत@मान म= हर तीसरा िमक अUथायी या casual है। यानी िक कुछ लोग अब Uवरोज़गार से अUथायी कामV म= चले गए हO पर उ`ह= िनयिमत रोज़गार नहg िमला।

    और: • संगिठत 4े, का अनुपात अभी भी कुल रोज़गार का एक बंटा पांच ही है - यािन िक 5 म= से 4 मज़दरू असंगिठत 4े, म= काम करते हO।

    • पर उससे भी ज़_री बात यह है िक 'संगिठत 4े, म= नौकरी' का मतलब कतई यह नहg िक नौकरी पaकY हो। िपछले कुछ सालV से संगिठत 4े, म= अनौपचाGरक नौकGरयV का अनुपात लगातार बढ़ा है (अUथायी िमक (casual), ठेका िमक (contract workers) अपर=िटस (apprentice) - /जनकY नौकरी म= न तो ZUथरता है, न ही सुर4ा और उ`ह= िकसी भी Wकार कY सामा/जक सुर4ा कY सुिवधाएँ भी

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    उपल{ध नहg हO)। और हकYकत यह है िक वत@मान समय म= संगिठत 4े, म= लगे अ/धकाँश कम@चाGरयV कY नौकरी भी अनौपचाGरक है।

    • कुल कामगारV के 82 Wितशत लोग असंगिठत 4े, म= काम करते हO। इस तरह कुल अनौपचाGरक कामगारV कY संEया (संगिठत और असंगिठत िमलाकर) 92 Wितशत है। इस/लए हमारे देश म=, कुछ िगने चुने नौकGरयV को छोड़कर, आम नौकGरयां एकदम ओछे Wकार कY हO /जनम= रोज़गार कY `यूनतम एव ंउिचत सुिवधाएँ भी नहg िमलती हO।

    यहाँ इस बात पर यान देना ज़_री है िक ऊपर बताए गए हालात पारuपGरक िवकास के /सmांतV (theory) या वत@मान म= िवक/सत माने जाने वाले देशV के ऐितहा/सक अनुभवV से एकदम मेल नहg खाते।

    1991 म= हKए उदारीकरण के बाद कृिष म= रोज़गार का अनुपात कम तो हKआ है, पर आज भी बहKसंEयक लोग कृिष म= ही लगे हO। उोग 4े, म= रोज़गार बढ़ा तो है पर बहKत कम - कुल रोज़ग़ार का मा, 13 Wितशत उोग 4े, म= हO - /जसम= सभी Wकार के उोग शािमल हO - छोटी और बहKत छोटी इकाइयां भी।

    सेवा 4े, म= कुछ तरह कY नौकGरयां बढ़ी हO - Dयापार, यातायात (transport), भंडारण/गोदाम (storage), होटल और रेUतोरां, दरूसंचार, िवs (finance), Gरयल एUटेट (मकान, दकुान, ज़मीन), वािणय सेवाएं, इbयािद। इन 4े,V म= कई सारी 'मयम वगय' नौकGरयां हO। पर इनम= बड़े पैमाने पर असुरि4त और कम वेतन वाली नौकGरयां भी शािमल हO। साथ ही साथ मयम वगय' नौकGरयV का एक मुEय ©ोत - सामुदाियक, सामा/जक और Dयिगत सेवाओं म= (जो यादातर सरकारी होते थे और इस/लए सुरि4त थे) नौकGरयां घटी हO।

    बस एक िनमा@ण ही ऐसा 4े, है /जसम= नौकGरयां नाटकYय _प से बढ़g हO। 1993-94 म= कुल रोज़गार म= िनमा@ण का अनुपात 3.1% हKआ करता था और 2011-12 म= वह बढ़कर 10.6% हो गया है। िनमा@ण का काम बहKत ही मेहनत वाला है और समूचे 4े, म= शायद ही कोई नौकरी हो जो औपचाGरक या िफर सुरि4त हो। कोई भी ट ेड यूिनयन या सामुदाियक संगठन के न होने के कारण मज़दरूV कY जान या िकसी भी तरह कY सुर4ा कY कोई जवाबदेही नहg है। और शायद इसी/लए देश के सबसे गरीब रायV से ही िनमा@ण मज़दरू पूरे देश भर म= िनया@त िकये जाते हO - छsीसगढ़, झारख£ड, िबहार, उड़ीसा, बंगाल, इbयािद।

    लोग~ क' ज़दंगी

    तो यह है हमारे देश म= रोज़गार कY सचाई - इसी कमाई से इस देश के अ/धकाँश लोग खाते हO और बाकY ज़_रत= भी पूरी करते हO। हाँ सरकारी आंकड़V म= ज़_र गरीबी लगातार घट रही है और अब तो महज़ 20 Wितशत लोग ही आ/धकाGरक _प से गरीब हO। िवव बOक तो इससे भी एक कदम आगे िनकल गया है - हाल म= छपे एक दUतावेज़ के अनुसार भारत म= अब (2011 - 12) मा, 12.4 Wितशत आबादी ही गरीब बची है।

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    इस तरह चलता रहा तो जhद ही देश म= गरीबी पूरी तरह ख़bम हो जाएगी, हकYकत म= न सही, देशी और िवदेशी अथ@शा/यV और नौकरशाहV कY कhपना म= ही सही।

    इसके ठीक िवपरीत एक और सरकारी किमटी - NCEUS या Wच/लत भाषा म= जो सेनगु~ा किमटी के नाम से जानी जाती है, ने यह ऐलान करके सनसनी फैला दी थी िक 2004-05 म= देश कY कुल आबादी म= 77 Wितशत लोग 'गरीब और कमज़ोर' थे। और तब से, सेनगु~ा किमटी के यह भयानक आंकड़े, शासक वग@ के सामा/जक खच@ को कम करने के जूनून पर साये कY तरह मंडरा रहे हO। वहg 'Wितित' अथ@शा/यV कY फ़ौज सेनगु~ा किमटी कY Gरपोट@ को बदनाम करने कY कोिशश म= लगी हKई है, वे यह बात सािबत करना चाहते हO िक उनके शोध के तरीके ही गलत थे। पर उनके /लए अफ़सोस कY बात है िक अ`य तरीकV से भी 'गरीब और कमज़ोर' कY दर कमोबेश उतनी ही बैठ रही है। इसके अलावा यह भी तय सामने आया है िक देश के अ/धकांश लोगV को पया@~ और भरपेट भोजन भी नहg िमल रहा है। एक आंकलन के अनुसार, देश म= चार म= से तीन लोग आ/धकाGरक मानदंड से तय िकए गए आवयक पोषण (कैलोरीज) से कम खाते हO। और उसम= भी जो बात गौर करने लायक है वह यह है िक उनके आहार म= Wोटीन कY मा,ा लगातार घट रही है - यानी िक वे िटी िटी कर भात या रोटी तो ठंूस लेते हO पर उिचत पौिfकता नहg जुटा पाते।

    देहात 4े, के आधे से यादा मकान कचे हO - यानी िक वे घास, बांस, िमटटी, कचा ईटं, इbयािद सामान से बने हO। उनमे 70 Wितशत घरV म= एक या दो कमरे ही हO। qामीण 4े, म= १० Wितशत से कम बचे ही हाईUकूल तक पहK ँच पाते हO। 2011 कY जनगणना से यह पता चला है िक दो-ितहाई लोगV को साफ़ पीने के पानी का ©ोत भी उपल{ध नहg है।

    हमारे लोगV का शारीGरक UवाUय भी दयनीय है। हमारे बचे कुपोिषत, अिवक/सत (सामा`य से छोटे कद के) हO, और उ`ह= खून कY कमी भी है। इस सब के चलते उनका मान/सक िवकास भी ठीक तरह से हो नहg पाता। फ़ूड एंड एqीकhचरल आग¡नाईजेशन (FAO) के अनुसार दिुनया कY कुल कुपोिषत आबादी म= भारत का िहUसा 1990-92 से 2010-12 म= बढ़ा है - उदारीकरण, िनजीकरण और वैवीकरण के महान युग म=।

    यहां हमने तीन मुV पर बात रखी है - भूिम सुधार कY असफलता, रोज़गार के अिवक/सत और िवकृत Uवlप और जनता कY बदहाल अवUथा। वत@मान म= इन तीनV मुV के आपसी GरतV को नज़रअंदाज़ करना एक फैशन सा हो चला है। जब िक यह बात पूरी तरह स े/सm हो चुकY है िक िकसी भी अथ@DययवUथा के /लए आमूल भूिम सुधार होना बेहद ज़_री है - न /सफ@ वहां कY जनता का हाल सुधारने के /लए, बZhक एक सuपूण@ औोिगक िवकास कY नीवँ डालने के /लए /जससे िक रोज़गार का वाUतिवक िविवधीकरण हो सके (कहने का मतलब है िक कई तरह कY नौकGरयां िमलने कY संभावना बने)।

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    िवकास ने एक िवकृत राह पकड़ी है - /जसम= देश कY 92 Wितशत आबादी को अनौपचाGरक टुटपँु/जया नौकGरयV म= फांस रखा गया है, जहाँ न तो उिचत तनEवाह िमलती है, न ही कोई सुर4ा है। इस तरह जूझने से उनका शरीर और उनकY आbमा इस क़दर टूट चुकY ह ैिक संभलना मुZकल है। वहg रोज़ लाखV करोड़V कY तादाद म= लोग इन कम उbपादकता वाली नौकGरयV के समंदर म= गोते लगा रह= है जहाँ पहले से ही एक िवशाल आबादी तैरने कY नाकाम कोिशश कर रही है। पर इन लोगV कY कमर-तोड़ मेहनत के बावजूद उbपादकता इतनी कम aयV है? पूरी अथ@DयवUथा म= िनवेश (पंूजी कहाँ और िकतनी लगाया जा रही है) का जो Uवlप है वह इस ZUथित के /लए िज़uमेदार है - यहाँ पंूजी का बड़ा अंश संगिठत 4े, कY चोटी पर लगाया जाता है और आम मज़दरूV कY फ़ौज को /सफ@ गुज़र बसर हो सके ऐसे कामV के ग¬े म= धकेल िदया जाता है। जो देश एक मॉडन@ अथ@DयवUथा होने का दावा करता हो, वहां बहKसंEयक लोग महज़ गुज़र बसर करने जैस ेछोटे काम म= लगे हV, और उनकY संEया कम होने के बजाय बढ़ रही हो, यह अपने आप म= एक िवडuबना है।

    और साथ ही साथ यह अधपेटा खाकर आधा-अधूरा काम करनेवाली मज़दरूV कY फ़ौज अथ@DयवUथा के िशखर पर बैठे चुिनंदा लोगV को और यादा पनपने म= मदद करती है। लेिकन यह भूखे नंगे अनौपचाGरक िमक इन अमीरV कY कैसे मदद करते हO?

    1. सUता सामान और सUती सवेाएं उपल{ध कराकर - जो सब-कांट ेZaटंग (या बड़े ठेकेदार 7ारा िदए गए छोटे-छोटे ठेके) 7ारा सीधे कंपिनयV के उbपादन म= शािमल हो जाते हO।

    2. सUते दरV म= माल और सेवाओं का उbपादन करके - जो िक कंपिनयV म= काम कर रहे मज़दरू और कम@चारी खरीदते हO और इसके चलते उ`ह= यादा पगार नहg देना पड़ता और कंपनी का पैसा बच जाता है।

    3. और सबसे अहम्, ये िवशाल बेकार और अध@ बेकार कY फ़ौज एक तलवार कY तरह नौकरी करनेवालV के सर पे लटकती रहती है - उनको लगातार अपनी नौकरी खोने का डर लगा रहता है और इस/लए वे मा/लकV कY जायज़, नाजायज़, सभी शत¡ ं मँुह सीकर मान जाते हO। कम@चाGरयV को लाइन पर रखने का मा/लकV का यह सबसे असरदार ह/थयार है।

    इस Wकार जैसे जसैे बेकार और अध@ बेकार कY फ़ौज बढ़ती जाती है, कॉपoरेट 4े, पर चब चढ़ती जाती है। राf ीय आय म= औपचाGरक 4े, का िहUसा बढ़ने के बावजूद नौकGरयV का अनुपात कम हKआ है।

    गौर करनेवाली और उेखनीय बात यह है िक साल 2000 से 2016 के बीच देश के सबसे अमीर 1 Wितशत लोगV का पूरे देश कY सuपदा पर क{ज़ा 36.8% से बढ़कर 58.4% हो गया है। देश म= खरबपितयV कY संEया बहKत तेज़ी से बढ़ी है, कॉपoरेटV कY संप/s और शि म= भी तेज़ी से इज़ाफ़ा हKआ है।

    देश कY संप/s म= िवदेिशयV का क{ज़ा भी खूब तेज़ी से बढ़ा है - बड़ी तादाद म= नयी िवदेशी कuपिनयाँ बाजार म= आई ंऔर यहाँ अपने Dयापार को फैलाया, पर इसके अलावा हमारे शेयर बाज़ार और ऋण बाजार म= भी

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    िवदेशी िनवेशकV ने भारी िनवेश िकया और हमारी कंपिनयV को भी बड़ी मा,ा म= वािणZयक क़ज़@ (commercial लोन) देकर भारत कY अथ@DयवUथा पर अपनी पकड़ और मजबूत कY है। इसके तीन तरह के पGरणाम हो सकते हO: 1. देश से बड़े पैमाने पर संप/s का पलायन - /जसकY तुलना आंकलन के अनुसार अंqेज़ शासन के दौरान हो रहे लूट से कY जा सकती है।

    2. देश कY िकसी भी नीित से अगर यह िवदेशी िनवेशक नाखुश हKए तो वे यहाँ से चले जाने कY धमकY दे सकते हO, और उसका पGरणाम होगा भयानक संकट। इस/लए सभी सरकार= चाहे वे िकसी भी राजनैितक दलV से सरोकार रखती हV करीबन एक जैसी नीितयां अपनाती हO - वही जो िवदेशी िनवेशकV को भाए।

    3. और फलUव_प संसदीय लोकतं, के रUमV Gरवाज़ और भी खोखले बनते जाते हO।

    /ापक उपीड़न और िवभाजन

    भारत का मज़दरू वग@ शायद दिुनया का सबसे भेदभाव वाला मजदरूवग@ है और कई तरह से िवभा/जत है। वह न /सफ@ /लंग, भाषा या Wा`त से िवभा/जत है पर धम@ और जाित जैसे गुज़रे ज़माने कY DयवUथा से भी बंटा हKआ है। सबसे खराब हालत द/लत और आिदवा/सयV कY है (जो कुल आबादी का एक चौथाई िहUसा हO) - उनम= सबसे यादा गरीबी, कुपोषणता और समय से पहले मृbयु दर, और सबसे कम िश4ा के मौके/पहK ँच (access to education) पाई जाती है।

    द/लतV का अमूमन खेती योiय ज़मीन पर हक़ नहg होता है और यह उनके /लए बहKत ही घातक है aयVिक 80 Wितशत द/लत देहातV म= बसते हO और दो-ितहाई खेती पर िनभ@र हO (आजीिवका के /लए)। इसके चलत ेउ`ह= जबरन दसूरV के खेतV म= मजूरी करनी पड़ती है। नतीजतन उन पर सिदयV से जो जाितगत जुhम और उbपीड़न होता आया है (जो हमारे देश का एक अनोखा सामा/जक ल4ण है और शायद ही दिुनया म= कहg पाया जाता है) उसे लगातार हवा िमलती है, और समय के साथ कमज़ोर होने कY जगह वह और भी मजबूत होता जाता है। नीित आयोग के एक Expert Group (िवशेष समूह) ने यह िटप£णी कY :

    हमारे देश म= आज भी द/लत जाितयV के लोगV को कई तरह के सामा/जक भेदभाव का सामना करना पड़ता है मसलन - खाना, कपड़े, शादी और नौकरी से सuबं/धत। यहाँ तक िक छुआछूत, जो िक भेदभाव करने का सबसे खुम खुा तरीक़ा है, वह भी कई मायनV म= आज भी कायम है। ... देहात 4े, म= द/लतV पर उbपीड़न, जरायम और मानव अ/धकार का उंघन आज भी बड़े पैमाने पर होता रहता है। उनके सभी Wकार के अ/धकारV का उंघन होता है - जैसे िक नागGरक अ/धकार (वोट देने का अ/�