विवाहसंस्कारार्थ सिंहस्थ गुरु की...
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An Article on Vivah Muhurta by Dr. Shyam deo Mishra.TRANSCRIPT
वि���हसं�स्का�रा�र्थ� सिंसं�हस्थ गु�रा ु� का� वि���चना�
डा� . श्या�मदे�� मिमश्र संह�याका�च�या� ए�� सं�या�जका (ज्या�वि"ष)
म�.स्��.पी%., रा�.सं�.सं�., नाई दिदेल्ली%
वै�दि�क सा�हित्य में� हि�र्धा��रि�त घटी�द्वय�त्मेंक य� दि��पञ्च�शा�त्मेंक - क�लखण्ड क! मेंय���� सा" बा�� हि�कलक�, हिवैक�सा-क्रमें-वैशा�त%, में&हूर्त्त� शाब्� शु�भवि,या�या�ग्या. का�ली. म�हूर्त्तः�. इसा परि�भा�षा� क" रूप में� हि�त�न्त व्या�वै�रि�क र्धा��तल प� प्रहितष्ठि2त हुआ। जि7साक" फलस्वैरूप - अभिभाजि7त%, सा��भाटी, हिवै7य आदि� सा�वै�भा<ष्ठिमेंक एवै> हि�यत-क�लिलक में&हूर्त्त@ क" स्था�� प�, �"शा-क�ल-परि�स्थिस्थाहित क" अ�&सा��, क�य�-हिवैशा"षा य� सा>स्क��-हिवैशा"षा क" साम्पा����र्थ� में&हूर्त्त�-हिवैशा"षा क� त्य�ग एवै> ग्रण प्रचल� में� आय�। प्रस्त&त ल"ख में� हिवैच�य�में�ण हिवैषाय वि���हसं�स्का�रा�र्थ� सिंसं�हस्थ गु�रू का� वि���चना� इसाH क� एक प्रहितफल� �।
सा�में�न्यतय� सिंसाJस्था एवै> मेंक�स्था ग&रु में� हिवैवै� क�य� हि�हिषाद्ध में��� 7�त� �। य�M अवैर्धा"य � हिक ग&रु अप�H गहित सा" भ्रमेंण क�त� हुआ में"षा�दि� ��लिशायO में� सा" प्रत्य"क क� भाPग एक वैषा� में� क�त� �। अर्थ��त% एक वैषा� तक ग&रु एक H ��लिशा में� �त� �। ऐसा" में� 7बा ग&रु सिंसाJ य� मेंक� ��लिशा प� आय"ग� तP वै पRण�रूप"ण एक वैषा� तक उसाH ��लिशा में� �"ग�। इसा �शा� में� साम्पाRण� वैषा� भा� वै�वै�हिक क�य� �T P प�य"ग�। भा��त 7�सा" सा�>स्कU हितक रूप सा" सा>पन्न �"शा में� हिवैवै� 7�सा" अहित मेंत्वैपRण� सा>स्क�� क" अ�&2�� में� एक वैषा� क� अवै�Pर्धा हि�श्चय H अत्यन्त दुस्साह्य एवै> क्ल"शापRण� �। एत�र्थ� आच�य@ �" �"शा-क�ल-
वैशा�त% क& छ परि��� प्रस्त&त हिकय"। इ� परि���O प� चच�� क" पल" इसा हिवैषाय प� सिंचJत� अत्य�वैश्यक � हिक सिंसाJस्था ग&रू में� में�>गलिलक क�य� क्यO �T क��� च�हिए।
सिंसं�हस्थ गु�रू म2 म��गुलिलीका का�या� क्या5 नाह6 -
ग&रु साRय��दि� साभाH �"वैत�ओं क" आच�य� ̂। आच�य� क� लिशाष्य साRय� क" घ� अर्थ��त% सिंसाJ ��लिशा में� आ��, लिशाष्य साRय� क" लिलए अत्यन्त H मेंत्वैपRण� एवै> ग<�वै क! बा�त �। ऐसा" में� साRय� - 7P हिक हिवैवै��र्थ� साRय�-बाल क" रूप में� अत्यन्त आवैश्यक � - क� अप�" ग&रु क! सा"वै� में� तल्लH� P�" क" क��ण हिवैवै��दि� में>गल क�य@ में� पRण�तय� सा7ग ��� एवै> त��&रूप फल क��� दुष्क� �। ठीbक इसाH प्रक�� लिशाष्य साRय� क" घ� में� उपस्थिस्थात P�" क" क��ण सा"वै� सात्क�� सा" परि�पRण� लिशाष्यवैत्साल भा�वै वै�ल" ग&रु क� - 7P हिक हिवैवै��र्थ� ग&रु-बाल क" रूप में� अत्य�वैश्यक � - पRण� में�PयPग सा" फल �"�� सा>भावै �H �। इसा प्रक�� �P�O H साRय� एवै> ग&रु स्वै-स्वै वै�यलिcक क�य@ में� तत्प� ��" क" क��ण, में�>गलिलक क�य� में� स्वैपRण� बाल तर्थ� त��&ग&ण फल �"�" में� असामेंर्थ� Pत" ̂। इसाक" सा�र्थ H सा�र्थ आत्मेंक��क साRय� क! ��लिशा में� र्धामें� क��क ग&रु क� P�� �त्य�दि� हिवैषायक क�य@ क" साम्पा��� "त& �T अहिपत& आध्य�त्मित्मेंक क�य@ क" साम्पा��� "त& श्रे"यस्क� �। अतएवै सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� क�य� क� हि�षा"र्धा शा�स्त्रोंO में� ष्ठिमेंलत� �।
सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� सा>स्क�� क" कत�व्या�कत�व्या साम्बान्धीH 7P मेंत ग्रन्थोंO में� उपलब्ध ̂ उ�में� प्रर्थमें दृष्ट्या� हिवै�Pर्धा क� आभा�सा � । हिकन्त&, साRक्ष्में लिचन्त� सा" य ज्ञा�त Pत� � हिक य" साभाH मेंत, क�ल- भा"� य� �"शा-भा"� सा", सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� क" हि�षा"र्धा अर्थवै� प्रवैUभिर्त्त में� एक-दूसा�" क" साम्पाPषाक H प्रतHत Pत" ̂ ।
हिवैभिभान्न मेंतO क" आर्धा�� प�, हि�ष्कषा� तक पहुMच�" "त& हिवैषाय क� उपस्था�प� क्रष्ठिमेंक रूप सा" हिकय� 7� �� � ।
1. सिंसं�हस्थ गु�रु म2 सिंसं�ह ना�म��शु म2 वि���ह काम� का� विनाष�ध -
(अ) लील्ली का� म" - लल्ल �" में<ञ्जीHबान्धी, परि�णय� (हिवैवै�) एवै> वै�स्त&�"वै प्रहित2� में� सिंसाJ-��लिशास्था ग&रु कP हि�जिन्�त में��� �।
ना%चस्थ� �,सं�स्थ�ऽप्यावि"चराणगु"� बा�ली�>द्धे�ऽस्"गु� ��, सं�न्या�सं� दे��या�त्रा�-व्र"विनायामवि�लिध. काण���धस्"� देCक्षा� ।
1
मFञ्जी%बान्धो� गुण�ना�� पीरिराणनायानावि�लिध���स्"�दे��प्रवि"ष्ठा�, �ज्या�� संद्भिःM. प्रयात्ना�त्त्रित्त्रादेशुपीवि"गु�राF सिंसं�हरा�द्भिःशुस्थिस्थ"� �� ।।
(बा) �लिसंष्ठा का� म" (सिंसं�ह ना���शुस्थ गु�रु म2 पीQण� रूपी�ण त्या�ज्या) -
सिंसाJ ��लिशास्था ग&रु में� यदि� ग&रु सिंसाJ �वै�>शा में� P तP हिवैवै� कमें�-हि�षा"र्धा क! तHक्ष्णत� औ� भाH बाढ़ 7�तH � । सिंसाJस्था सिंसाJ�वै�>शास्था ग&रु कP तP वैलिसा2 �" का�लीम>त्या�-सं�ज्ञका क� � तर्थ� इसामें� हिवैवै� सा" �म्पाभिर्त्त क! मेंUत्य& तक क� फल क� � -
सिंसं�ह� सिंसं�ह��शुका� ज%�� कालिलीङ्गे� गुFडागु�ज�रा� । का�लीम>त्याराया� या�गु� देम्पत्या�र्निना�धनाप्रदे. ।।
��7में�त�ण्डक�� भाP7 एवै> में&हूत�लिचन्त�मेंभिणक�� ��में�च�य� �" भाH वैलिसा2 क" मेंत क� अ�&सा�ण हिकय� �।
2. दे�शुभ�दे सं� पीरिराह�रा -
यद्यहिप वैलिसा2, लल्ल, भाP7��7�दि� �" सिंसाJस्था एवै> सिंसाJ�वै�>शास्था ग&रु में� हिवैवै� कमें� क" त्य�ग क! बा�त कH � हिकन्त& �"शाभा"� सा" सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� हिकय� 7� साकत� �। वैलिसा2�द्य�च�य@ �" ग>ग� सा" �भिuण एवै> गP��वै�H सा" उर्त्त� (ग>ग� वै गP��वै�H क" बाHच क� मेंध्यभा��त - मेंध्यप्र�"शा, �भिuण हिबा��, ��7स्था��, में���ष्ट्र, ग&7��त, बा>ग�ल, उड़ीHसा� इत्य�दि�) क" प्र�"शाO में� H सिंसाJस्था ग&रु कP हिवैवै� कमें� "त& त्य�ज्य बात�य� �। दूसा�" शाब्�O में�, ग>ग� सा" उर्त्त� क" �"शाO में� एवै> गP��वै�H सा" �भिuण क" �"शाO में� (कश्मेंH�, हिमें�चलप्र�"शा, प>7�बा, उर्त्त�प्र�"शा, उर्त्त�H हिबा��, �"प�ल, उर्त्त�H बा>ग�ल, असामें, मेंद्रा�सा एवै> क" �ल) में� सिंसाJस्था ग&रु में� भाH हिवैवै� हिकय� 7� साकत� �।
(अ) �लिसंष्ठा का� म" - भ�गु%राथ्या�र्त्तःरा� काQ ली� गुF"म्या� देद्भिःक्षाण� "टे� । वि���ह� व्र"बान्धो� �� सिंसं�हस्थ�ज्या� ना दुष्यावि" ।।म>गु�न्द्रसं�स्थिस्थ"� ज%�� मध्यादे�शु� काराग्रह. । म>त्या�या�गु� म>त्या�दे. स्या�द्दम्पत्या�. पीञ्च�ष�". ।।
भा�गH�र्थH (ग>ग�) ��� सा" उर्त्त� एवै> ग<तमेंH (गP��वै�H) सा" �भिuण क" तटीO में� सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� हिकय� 7� साकत� � 7बाहिक मेंध्यभा��त (इ� �P�O �दि�यO क" मेंध्य में� स्थिस्थात प्र�"शाO) में� सिंसाJस्था ग&रु (मेंUत्य&यPग) में� हिकय� गय� हिवैवै� प�Mच वैषा� क" भाHत� H मेंUत्य&प्र� Pत� �।
(बा) म�हू"�लिचन्"�मद्भिःणका�रा रा�मद̀े�ज्ञ का� म" -��में��वैज्ञा �" वैलिसा2 क" मेंत क� पRण�तय� अ�&सा�ण क�त" हुय" ग>ग� क" �भिuण एवै> गP��वै�H क" उर्त्त� में� H सिंसाJस्था
ग&रु क� हि�षा"र्धा में��� � -सिंसं�ह� गु�राF सिंसं�हली�� वि���ह� ना�ष्टो�............. ना�न्यात्रा दे�शु�...............।।
(सं) भ�जरा�ज का� म" (सिंसं�हस्थ गु�रु म2 सिंसं�हना���शुस्थ गु�रु सं��त्रा �ज्या�) -भाP7��7 �" ��7में�त�ण्ड में� सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैशा"षाक� सिंसाJ �वै�>शास्था P�" प� हिवैवै�क�य� सावै�त्रों H मेंUत्य&प्र� में��त"
हुय" उसाक" त्य�ग क! बा�त कH � - सिंसं�हरा�शुF "� सिंसं�ह��शु� यादे� भ�वि" ��क्पीवि". । सं��दे�शु�ष्�या� त्या�ज्या� देम्पत्या�र्निना�धनाप्रदे. ।।
3. अ�शुभ�दे/चराणभ�दे सं� पीरिराह�रा -
सिंसाJस्था ग&रु में� भाH, सिंसाJ �वै�>शागत ग&रु तक H हिवैवै� कमें� क" त्य�ग क! बा�� आच�य@ �" क! � । सिंसं�ह� सिंसं�ह�शुका� ज%�� .......। वैलिसा2 क" इसा कर्थ� सा" य सा>क" त ष्ठिमेंलत� � । इसाH आशाय कP ��में�च�य� एवै> ��7में�त�ण्डक�� �" अत्यन्त स्फु& टीत� सा" �ख� � -
(अ) रा�जम�"�ण्डाका�रा का� म" -सिंसं�ह�ऽविपी भगुद̀े�त्या� गु�राF पी�त्रा�"% भ��"c ।।
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अत्यान्"सं�भगु� सं�ध्�% धनाध�न्यासंमत्त्रिन्�"� ।।पRवै��फ�ल्ग&�H �uत्रों क� स्वै�मेंH �"वैत� भाग �, भाग में� अर्थ��त% पR.फ�. में� ग&रु क" 7��" प� हिवैवै� प&त्रों, र्धा�, र्धा�न्य,
भा�ग्य सा" साम्पान्न चरि�त्रोंवैतH पत्�H प्र��� क��" वै�ल� Pत� � । (बा) म�हू"�लिचन्"�मद्भिःणका�रा का� म" -
मघा�दिदेपीञ्चपी�दे�ष� गु�रु. सं��त्रा विनान्दिन्दे". । गुङ्गे�गु�दे�न्"रा� विहत्�� शु�ष�ङ्c मिgष� ना दे�षका> "c ।।
सिंसाJ ��लिशा में� - मेंघ�, पR.फ�. तर्थ� उफ�. प्रर्थमें च�ण - य" �वै �uत्रों च�ण ̂ । अत| सिंसाJ ��लिशा में� प्रवै"शा क" सामेंय ग&रु मेंघ� �uत्रों में� Pत� � । इसा मेंघ� �uत्रों वै पR.फ�. क" प्रर्थमें च�ण (क& ल ष्ठिमेंल�क� मेंघ�दि� 5 �uत्रों च�ण) तक ग&रु क! स्थिस्थाहित कP ��में�च�य� �" सावै�त्रों (साभाH �"शाO में�) हिवैवै� क�य� "त& त्य�ज्य में��� �।
4. म�षगु" संQया� सं� पीरिराह�रा -
सिंसाJस्था ग&रु क" परि��� क" रूप में� आच�य@ �" य हिवैच�� �ख� � हिक जि7सा वैषा� ग&रु सिंसाJ ��लिशा में� उसा वैषा� में"षा में�सा में� (अर्थ��त% 7बा साRय� में"षा ��लिशा में� P प्र�य| 14 अप्र�ल सा" 14 मेंई तक) हिवैवै� क�य� हिकय� 7� साकत� �। ज्यPहितर्नि�Jबान्धीक�� क" अ�&सा�� य मेंत शा<�क�दि�यO कP भाH अभाHष्ट � -
मङ्गेली�ना%ह का� �h" सिंसं�हस्थ� ��क्पीवि"या�दे� । भ�नाF म�षगु"� संम्याविगुत्या�हुः. शुFनाका�देया. ।।
(अ) म�हू"�लिचन्"�मद्भिःणका�रा का� म" -��में�च�य� क" अ�&सा�� यदि� में"षा ��लिशा में� साRय� P तबा ग>ग� वै गP��वै�H क" मेंध्य स्थिस्थात प्र�"शाO में� भाH हिवैवै��दि�
सा>स्क��O कP शा&भा में��� �। ल"हिक� कलिलङ्ग (गP��वै�H औ� वै�त�णH ��� क" बाHच क� प्र�"शा), ग<ड (बा>ग�ल एवै> उड़ीHसा� प्र�"शा)
औ� ग&7��त प्र�"शाO में� सामेंस्त H सिंसाJस्था ग&रुक�ल हिवैवै� "त& वैज्य� में��� �।हि�ष्कषा� रूप में�, सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैशा"षाक� सिंसाJ-�वै�>शा-पय�न्त (अर्थ��त% मेंघ�दि� पञ्च च�णO तक) हिवैवै� क�य�
मेंध्यभा��त में� वैज्य� Pत� � । उसामें� भाH कलिलङ्ग, ग<ड़ी एवै> ग&7�� प्र�"शाO में� सामेंस्त सिंसाJस्था ग&रु H हिवैवै��र्थ� वैज्य� में��� गय� � । मेंध्य भा��त में� 7�M सिंसाJस्था ग&रु में� हिवैवै� क�य� त्य�ज्य � वै�M प� भाH (पRवै�c तH� प्र�न्तO कP छPड़ीक�) में"षा सा<� में�सा में� (14 अप्र�ल सा" 14 मेंई तक) हिवैवै� क�य� हिकय� 7� साकत� �। इसा प्रक�� प्रय�सा पRवै�क सिंसाJस्था ग&रु कP एवै> हिवैशा"षाक� मेंघ�दि� पञ्च च�णO में� स्थिस्थात ग&रु कP हिवैवै� क�य� "त& छPड़ी�� च�हिय" ।
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